Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों से फिर उठे वैधानिक सवाल

ShareThis for Joomla!

मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों से फिर उठे वैधानिक सवाल

सीपीएस अधिनियम की वैधता का मामला उच्च न्यायालय मे लंबित है
प्रदेश उच्च न्यायालय एक बार ऐसी नियुक्तियों को अवैध करार दे चुका है
देश के आठ उच्च न्यायालय ऐसे प्रयासों को असंवैधानिक करार दे चुके हैं
जुलाई 2017 में सर्वाेच्च न्यायालय असम के मामले में ऐसे अधिनियम को असंवैधानिक कह चुका है
पिछली सरकार में नहीं हुई थी ऐसी नियुक्तियां

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने मन्त्रीमण्डल के विस्तार से पहले छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां करके प्रदेश में एक वैधानिक बहस छेड़ दी है। क्योंकि पूर्व में भी एक समय स्व. वीरभद्र सिंह ने अपनी सरकार में मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की थी। इन नियुक्तियों को संसद द्वारा संविधान के 91वें संशोधन के तहत लाये गये प्रावधानों के उल्लंघना करार देते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय में सिटीजन प्रोटेक्शन फॉर्म ने चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देते हुये तुरन्त प्रभाव से इन सचिवों को अपने पदों से हटा दिया था। इसके बाद राज्य सरकार ने फिर इस आश्य का अधिनियम पारित करके ऐसी नियुक्तियों के लिए पुनः ही मार्ग प्रशस्त कर दिया। लेकिन इसी बीच देश के कई अन्य राज्यों में ऐसी नियुक्तियां की गयी। इन राज्यों में भी ऐसी नियुक्तियों को अदालतों में चुनौतियां दी गयी। देश के आठ उच्च न्यायालय अपने-अपने राज्य में ऐसी नियुक्तियों को रद्द कर चुके हैं। असम राज्य का मामला तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था और सर्वाेच्च न्यायालय ने 26 जुलाई 2017 को असम के अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए स्पष्ट कहा है कि राज्य विधायिका को ऐसा अधिनियम पारित करने का अधिकार ही नहीं है। इसी परिदृश्य में हिमाचल के अधिनियम को भी एक अधिवक्ता मनिकताला ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। जो अब तक लंबित है। इसी कारण से पिछली सरकार में ऐसी नियुक्तियां नही की गयी थी। अब सुक्खू सरकार द्वारा यह नियुक्तियां करने से ‘‘एक कारण’’ पैदा हो गया है। इस पर उच्च न्यायालय में लंबित मामले पर तत्काल प्रभाव से सुनवाई की मांग आयेगी और मामला सर्वाेच्च तक भी जा सकता है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि यदि इस वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी मुख्यमंत्री को नहीं थी तो क्या प्रशासन भी इस बारे में बेखबर था। या मुख्यमंत्री ने प्रशासन की राय को अनसुना कर दिया है। चर्चा है कि विधि सचिव ने मुख्यमंत्री को तथ्यों से अवगत करवा दिया था। माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर और बाहर यह एक बड़ी बहस का मुद्दा बनेगा। क्योंकि तीन गैर विधायकों को सरकार कैबिनेट रैंक में नियुक्तियां दे चुकी हैं। अगले मन्त्रीमण्डल के विस्तार के समय यह वैधानिक प्रश्न अवश्य उठेगा। ऐसा माना जा रहा है मुख्यमंत्री को निष्पक्ष राय नहीं मिल रही है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search