शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस का पुनर्गठन अभी तक नहीं हो पाया है। यहां तक कांग्रेस हाईकमान के साथ भी इस संबंध में प्रदेश नेताओं की बैठक हो चुकी है। पिछली बैठक में हाईकमान ने प्रदेश के मंत्रियों से अलग मंत्रणा की थी और तब यह लगा था कि एक-दो दिन में घोषणा हो जायेगी। परन्तु ऐसा हो नहीं सका। क्योंकि प्रदेश अध्यक्षा प्रतिभा सिंह ने शिमला में पत्रकारों से बात करते हुये स्पष्ट कहा कि वीरभद्र लीगेसी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि अगला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से होना चाहिये। साथ ही यह भी कहा कि अगला अध्यक्ष कोई मंत्री हो सकता है। प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के बयानों से स्पष्ट हो जाता है कि अभी अगले गठन पर प्रदेश के नेताओं में ही कोई सहमति नहीं हो पायी है।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने अढ़ाई वर्ष हो गये हैं। प्रदेश संगठन में पिछले वर्ष नवम्बर से सारी कार्यकारणीयां भंग हैं। यदि सरकार और संगठन में अब तक के कार्यकाल की समीक्षा की जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में अब तक तालमेल का अभाव रहा है और यह अभाव खुलकर जगजाहिर भी हो चुका है। वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सरकार में यह यथोचित समायोजन की मांग उठी और हाईकमान तक भी पहुंची लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका। इसी तालमेल के अभाव का परिणाम था की छः विधायकों ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। कांग्रेस प्रदेश में लोकसभा और राज्यसभा सभी कुछ हार गयी लेकिन हाईकमान ने इस हार का कोई गंभीर संज्ञान नहीं लिया। हाईकमान इसी में खुश रही की दल बदल के प्रयासों के बावजूद भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बच गयी। आपसी तालमेल का अभाव उस समय भी जगजाहिर हो गया था जब धर्माणी और गोमा को मंत्री बनने के बाद उन्हें विभागों के आवंटन में जरूरत से ज्यादा समय लगा दिया गया। यह स्थिति व्यवहारिक रूप से अब तक बनी हुई है और इसी के कारण सरकार पर अफसरशााही के हावी होने की शिकायतें हाईकमान तक भी जा पहुंची है।
इसी वर्ष के अन्त में पंचायत और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव होने हैं। यह चुनाव सरकार के कामकाज की परीक्षा होंगे। कांग्रेस विधानसभा चुनावों में दस गारंटियां जनता को देकर सत्ता में आई थी। अब यह गारंटियां कितनी पूरी हुई हैं इसका हिसाब हर वोटर मांगेगा और हर कांग्रेस कार्यकर्त्ता को इसका जवाब देना होगा। इस दौरान वित्तीय संकट के आवरण में जनता पर कितना कर्जभार लाद दिया गया और उसके अनुपात में आम आदमी के संसाधन कितने बढ़े हैं इसका भी व्यवहारिक लेखा-जोखा इन चुनावों में रखना पड़ेगा। यह सबसे बड़ा सवाल होगा कि कांग्रेस का कार्यकर्ता क्या संदेश लेकर जनता के बीच जायेगा। सरकार ने स्थानीय निकायों के चुनाव में ओबीसी को आरक्षण देने की बात की है। परन्तु यह आरक्षण तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक जातीय जनगणना नहीं हो जाती है। इसलिये यह बहुत संभव है कि विधानसभा के इस सत्र में यह प्रस्ताव आये कि स्थानीय निकायों के चुनाव दो वर्षों के लिये टाल दिये जायें। यह चुनाव टलने से इन निकायों में तो हार से बच जाएंगे परन्तु पंचायत के चुनाव में क्या होगा यह एक बड़ा सवाल रहेगा। इन्हीं चुनावों के कारण इस समय संगठन के पुनर्गठन को और टालना संभव नहीं होगा। हिमाचल में संगठन का पुनर्गठन प्रदेश नेतृत्व के साथ हाई कमान के लिए भी चुनौती बनता जा रहा है।