शिमला/शैल। स्वर्गीय विमल नेगी मौत प्रकरण में गिरफ्तार हुये ए.एस.आई. पंकज शर्मा को प्रदेश उच्च न्यायालय से जमानत मिल गयी है। पंकज शर्मा को सीबीआई ने 14 सितम्बर को गिरफ्तार किया था और यह जांच उच्च न्यायालय ने 23 मई को सीबीआई को सौंपी थी। पंकज शर्मा की हिरासत बढ़ाये जाने के सीबीआई के आग्रह को अदालत ने अस्वीकार कर दिया था और सीबीआई ने अदालत के इस आदेश को कोई चुनौती नहीं दी थी। यह चुनौती न दिया जाना ही उच्च न्यायालय में पंकज को जमानत मिलने का एक बड़ा आधार बना है। वैसे सीबीआई ने अदालत के संज्ञान में यह अवश्य लाया है की पंकज शर्मा ने जांच के दौरान उसका नार्काे और पॉलीग्राफ टेस्ट करवाये जाने को सहमति व्यक्त की थी परन्तु जब उसे इसके लिये अदालत में पेश किया गया तो उसने इससे इन्कार कर दिया। यह टेस्ट अभियुक्त की सहमति के बिना नहीं करवाये जा सकते हैं यह नियमों में प्रावधान है। पंकज शर्मा को जमानत मिलने से यह मामला फिर उसी स्टेज पर आ पहुंचा है जहां से यह शुरू हुआ था। स्मरणीय है कि पंकज शर्मा इस मामले का एक केन्द्रीय पात्र बन चुका है क्योंकि जब विमल नेगी का शव बरामद हुआ था तब घटनास्थल पर पहुंचने वालों में पंकज ही पहला पुलिस अधिकारी था। पंकज ने ही विमल नेगी की तलाशी में मिले सामान को लिया था और उसमें से पैन ड्राइव को उसने अपने ही पास रख लिया और बाद में उसे सदर थाना शिमला में फारमैट कर दिया। यह सब थाने के सीसीटीवी कैमरा में दर्ज है। यह सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में उच्च न्यायालय में कहा है।
विमल नेगी प्रकरण में पुलिस ने दो एसआईटी गठित की थी और पंकज शर्मा किसी भी एसआईटी का सदस्य नहीं था ऐसे में वह घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने और शव की तलाशी लेने वाला कैसे तथा किसके निर्देश पर बना? पैन ड्राइव को किसके निर्देश पर फारमैट किया? यह प्रश्न अभी तक अनुतरित हैं। सीबीआई इन सवालों का जवाब नहीं खोज पायी है। नेगी के परिजनों का आरोप है कि नेगी को पावर कारपोरेशन में प्रबन्ध निदेशक मीणा और निर्देशक देशराज प्रताड़ित करते थे और इसी प्रताड़ना का परिणाम है विमल नेगी की मौत। देशराज सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत पर हैं और हरिकेश मीणा उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत पर हैं। ऐसे में पंकज की जमानत के बाद यह संभावना भी व्यक्त की जाने लगी है कि इन लोगों को भी नियमित जमानत मिल जाएगी। प्रदेश सरकार भी इस मामले में एक पक्ष बनने का प्रयास कर रही है। एसपी शिमला सीबीआई जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके है। पावर कारपोरेशन द्वारा निष्पादित की जा रही परियोजनाओं में भ्रष्टाचार होने के आरोप लगे हैं। यह भी आरोप है कि स्व. नेगी पर भी इस भ्रष्टाचार में सहभागी बनने के लिये दबाव डाला जा रहा था। सीबीआई इस मामले की जांच पिछले पांच माह से कर रही है। पंकज शर्मा की गिरफ्तारी इस प्रकरण में अब तक पहली गिरफ्तारी रही है और उसमें भी अब जमानत मिल जाने के बाद सीबीआई का अगला सफर इस मामले में स्वतः ही प्रश्नित होता जा रहा है। क्योंकि सीबीआई अभी तक कथित भ्रष्टाचार के मामलों पर प्रकाश नहीं डाल पायी है। इस वस्तुस्थिति में स्व. नेगी के परिजनों को कब न्याय मिलेगा यह सवाल एक बार फिर अनिश्चितता के साये में आ खड़ा हुआ है।
शिमला/शैल। कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला का निदेशक मण्डल नाबार्ड और आर.बी.आई. की रिपोर्ट के बाद भंग कर दिया गया है। नाबार्ड ने पूरे निदेशक मण्डल के सदस्यों से जवाब तलबी की है। इसी बीच इस प्रकरण में ई.डी का दखल हो गया है। ई.डी. ने बैंक प्रबंधन से शिमला में पूछताछ की है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में सी.बी.आई. का भी दखल होने वाला है। इसी बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि बैंक के घोटाले में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। बैंक में जिस तरह का कामकाज पिछले आठ वर्षों से चल रहा था उसको देखते हुये सरकार ने निदेशक मण्डल को निलंबित कर दिया है। बैंक के निदेशक मण्डल के निलंबन का आधार नाबार्ड और आर.बी.आई. की विस्तृत रिपोर्ट बनी है। लेकिन मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से यह संदेश गया है कि इस सरकार के कार्यकाल में नियुक्त निदेशक मण्डल भी बैंक की कार्य प्रणाली में सुधार नहीं ला पाया बल्कि उसी कार्य संस्कृति को आगे बढ़ाता रहा। प्रदेश के सरकारी बैंकों पर पंजीयक सहकारी सभाओं के माध्यम से सरकार का पूरा नियंत्रण है और इसी नियंत्रण के माध्यम से सहकारी बैंकों को सहकारिता विभाग से निकाल कर वित्त विभाग के अधीन ला दिया गया और वित्त विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री के अपने पास हैं। बैंक किसी को भी कोई भी राहत ऋण के मामले में ओ.टी.एस. योजना के तहत ही दे सकता है। इस परिदृश्य में इन दिनों जिस तरह से 45 करोड़ के ऋण को 21 करोड़ में सेटल करने का प्रकरण चर्चा में आया है और बैंक में ई.डी. का दखल हो गया है उससे इस मामले ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है।
स्मरणीय है कि कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला बैंस प्रकरण के कारण चर्चा में आया और इस समय प्रदेश का सबसे गंभीर मुद्दा बन चुका है। जिसका राजनीतिक प्रतिफल बहुत गंभीर होने के संकेत बाहर आते जा रहे हैं। क्योंकि यह चर्चा तब उठी जब बैंस ने एक पत्रकार वार्ता में यह आरोप लगाया कि उसने ई.डी. में शिकायत दर्ज करवाई है और इस शिकायत के आधार पर ई.डी. ने नादौन और हमीरपुर में छापेमारी की तथा दो लोगों को हिरासत में ले लिया। इसी छापेमारी के दौरान बैंस के खिलाफ उसके ऋण मामले को लेकर विजिलेंस में केस दर्ज हो गया। केस दर्ज होने पर बैंस उच्च न्यायालय पहुंच गये और उच्च न्यायालय ने जिस तर्ज में इस मामले में टिप्पणियां की है उनसे स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला बहुत कमजोर है। बैंस को जो ऋण बैंक ने स्वीकृत किया उसमें बैंक ने स्वतः ही कटौती कर दी जबकि बैंस ने इस ऋण के लिए जो संपत्ति बैंक के पास गिरवी रखी थी उसकी कीमत 2018 में 75 करोड़ आंकी गई थी। परन्तु बाद में बैंक प्रबंधन ने बैंस को संद्धर्भ में लिये बिना ही उसकी कीमत 20 करोड़ कर दी। यहां यह स्वभाविक प्रश्न उठता है कि मनाली में जिस जमीन की कीमत 2018 में 75 करोड़ थी उसकी कीमत 2023 में 20 करोड़ कैसे रह गयी। अब जब बैंक में ई.डी. ने दखल दिया है और बैंस का रिकॉर्ड तलब किया तब उसकी फाइल ही बैंक ने गायब कर दी। यह फाइल गायब होने पर बैंक ने अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच आदेशित कर दी है। बैंस के केस की फाइल ही बैंक द्वारा गायब कर दिये जाने से बैंस द्वारा बैंक प्रबंधन पर लगे जा रहे आरोप स्वतः ही गंभीर हो जाते हैं। फिर ओ.टी.एस. को लेकर भी यह सामने आ चुका है कि बैंक द्वारा लायी गयी यह योजना स्वतः ही लैप्स हो गयी है क्योंकि इसमें छः माह तक कोई कारवाई ही नहीं हुई है और नियमों के मुताबिक योजना में गैप आने पर इसको पुनः लागू करने के लिये आर.बी.आई. और नाबार्ड से नये सिरे से अनुमति लेनी पड़ती है। पंजीयक सहकारी सभाएं ने यह स्पष्ट उल्लेख किया है कि यह अनुमति लेना अनिवार्य है। परन्तु बैंक प्रबंधन ने अपने ही स्तर पर ओ.टी.एस. को पुनः चालू कर दिया और 45 करोड़ का ऋण 21 करोड़ में सेटल कर दिया। बैंक में घटे इस सबके परिदृश्य में बैंस द्वारा लगाये जा रहे सारे आरोप स्वतः ही प्रमाणित हो जाते हैं। क्योंकि बैंस ने यह दावा किया है कि उसने इस संद्धर्भ में उससे मिले हर व्यक्ति की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग कर रखी है। यह रिकॉर्डिंग ई.डी. और सी.बी.आई. को भी उपलब्ध करवा दिये जाने का दावा बैंस ने किया है। बैंस ने यह आरोप लगाया है कि उसकी अपने ऋण मामले में मनाली में बैंक के पास गिरवी रखी गयी जमीन को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को देने की योजना बनायी गयी थी। प्रियंका गांधी को यह जमीन देने की बात बैंस को ज्ञानचन्द के माध्यम से सूचित की गयी थी। बैंस के मुताबिक इस सबकी उसने रिकॉर्डिंग कर रखी है। स्वभाविक है कि जब ई.डी. को कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध करवाया गया होगा तभी ई.डी. ने इस मामले में कदम उठाया होगा। वैसे ही ई.डी. पर यह आरोप है कि वह राजनीतिक आकांओं के इशारे पर काम करती है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति जिस मोड पर आ पहुंची है उसके परिदृश्य में भी यह माना जा रहा है कि हिमाचल में अगले दो-तीन माह में कुछ बड़ा घटेगा। क्योंकि यदि बैंस की जमीन प्रियंका गांधी को दिये जाने का संदेश किसी भी नेता ने दिया है और उसकी ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग ई.डी., सी.बी.आई. तक पहुंच चुकी है तो उसके राजनीतिक अर्थ बहुत दूरगामी हो जाते हैं यह तय है।
शिमला/शैल। क्या भाजपा सुक्खू सरकार के प्रति ईमानदार, गंभीरता से आक्रामक है या उसकी आक्रामकता एक राजनीतिक रस्म अदायगी भर है? यह सवाल इसलिये उठ रहा है कि सुक्खू सरकार जिस तरह से कर्ज पर आश्रित हो गयी है वह भविष्य के लिये एक बड़े संकट का न्योता साबित होगी। क्योंकि बढ़ते कर्ज का सबसे पहला और बड़ा असर यह होता है कि सरकार को अपने प्रतिबद्ध खर्चों में सबसे पहले कटौती करनी पड़ती है। इन प्रतिबद्ध खर्चों में सबसे पहले कर्मचारी वर्ग आता है। उसमें स्थायी नियमित रोजगार को कम करके अस्थायी और आउटसोर्स का सहारा लेना पड़ता है। जब से प्रदेश में आउटसोर्स का चलन शुरू हुआ है तभी से उसी अनुपात में नियमित रोजगार में कटौती हुई है। बढ़ते कर्ज का दूसरा प्रभाव जन सुविधाओं पर पड़ता है। सरकार नियमित सुविधाओं से कर्ज के अनुपात में ही पीछे हटती जाती है। इस सरकार पर कर्ज पर आश्रित होने का जितना आरोप लगता जा रहा है उसी अनुपात में यह सरकार पूर्व सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती जा रही है। लेकिन पूर्व के सरकार के नेतृत्व द्वारा इस कुप्रबंधन का कोई कड़ा जवाब नहीं दिया जा रहा है। इस सरकार पर विपक्ष भ्रष्टाचार के जितने आरोप लगा रहा है वह सब अपने में गंभीर हैं। लेकिन उन आरोपों पर अब तक एक भी आरोप पत्र विधिवत राज्यपाल को सौंपकर किसी जांच की मांग नहीं की गयी है। बल्कि जो आरोप देहरा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे होशियार सिंह ने वाकायदा विधिवत शिकायत के रूप में महामहिम राज्यपाल को सौंपे हैं उनकी जांच की मांग को लेकर पूरी भाजपा खामोश खड़ी है और राजभवन भी शायद उस शिकायत को भूल ही गया है। बल्कि एचआरटीसी कि ई-वर्कशॉप को लेकर नादौन में खरीदी गई जमीन में घपला होने के जो आरोप विधायक सुधीर शर्मा ने लगाये थे उन आरोपों पर भी पूरी भाजपा ने मौन साध लिया है। ऐसे और भी कई उदाहरण है जो भाजपा नेतृत्व से इस दिशा में जवाब मांगते हैं।
इस परिदृश्य में भाजपा की आक्रामकता को लेकर आम आदमी भी इसे एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं है। भाजपा की इस नीयत और नीति पर अब कुछ सवाल उठने लग पड़े हैं। क्योंकि भाजपा ने राज्यसभा चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवार को विजयी बना लिया था उस समय भाजपा पर धन बल के सहारे सरकार गिराने का आरोप लगा था। इस आरोप के बाद कांग्रेस और भाजपा में जिस तरह के आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चला और अदालत तक भी पहुंच गया उसका अंतिम परिणाम कोई सामने नहीं आया है। यह सही है कि इस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है। इसी नाजुकता के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का अभी तक विकल्प नहीं ला पायी है। यह माना जा रहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय परिदृश्य का असर प्रदेश पर भी पड़ रहा है। प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी में क्षेत्रीय असन्तुलन के आरोप मुखरित होने लग पड़े हैं। इसलिये प्रदेश सरकार के प्रति भाजपा की आक्रामकता पर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। बल्कि यह कहा जाने लगा है की मुख्यमंत्री सुक्खू की सियासी चालों ने कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को पंगु बना दिया है और भ्रष्टाचार के आरोपों पर ई.डी. में जाने की चुनौती दे रहे हैं।
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