शिमला/शैल। विधानसभा बजट सत्र चौदह फरवरी से होने जा रहा है। पिछले वर्ष यह बजट सत्र चौदह मार्च से शुरू हुआ था। बजट सत्र का एक माह पहले ही बुला लिया जाना निश्चित रूप से लोकसभा चुनावों का समय से पहले होने का स्पष्ट संकेत है। स्पष्ट है कि जब चुनाव पहले होंगे तो आचार संहिता भी पहले ही लग जायेगी। आचार संहिता पहले लगने से सरकार विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस द्वारा दी गई गारंटीयों के अमल पर कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठा पायेगी। भाजपा इन गारंटीयों पर सरकार से सवाल पूछने के लिये स्वतंत्र रहेगी। वैसे भाजपा और सरकार के रिश्ते बहुत सारे मुद्दों पर आपसी भाईचारे जैसे ही हैं। क्योंकि भाजपा जब सत्ता में थी तो उसने भाजपा द्वारा ही तब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपने ही सौंपे आरोप पत्रों पर कोई जांच नहीं बैठायी थी। अब उसी रिश्ते को एक कदम और आगे बढ़ाते हुये सुक्खु सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर भाजपा काल के प्रशासन को न केवल यथास्थिति बनाये रखा बल्कि उसे उचित पुरस्कार भी दिया। चुनावों के दौरान सार्वजनिक रूप से जारी किये गये अपने ही आरोप पत्र पर कोई जांच बिठाने का जोखिम नहीं उठाया। पांच सौ से अधिक संस्थाओं को बन्द करके तथा मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति करके ठोस मुद्दे भी उपलब्ध करवाये हैं। इन दोनों को भाजपा ने उच्च न्यायालय तक पहुंचा दिया है।
इसी के साथ भाजपा पर जो आरोप प्रदेश को कर्ज में डूबाने का कांग्रेस लगाती थी उसमें अपने ही कर्ज के आंकड़े से पृष्ठभूमि में धकेल दिया है। पीछे बरसात में आयी आपदा में केन्द्र द्वारा प्रदेश की उचित सहायता न करने के आरोपों को अब राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर सरकार के राम मय होने के आचरण ने पीछे धकेल दिया है। सरकार ने विधायकों को मिलने वाली विधायक विकास निधि का आवंटन वित्तीय कारणों से रोक रखा था। लेकिन जैसे ही लोकसभा चुनाव समय से पहले होने के संकेत आये और भाजपा ने इस निधि को जारी करने के लिये समय की रेखा भी खींच दी तो सरकार ने यह राशि तुरन्त प्रभाव से जारी कर दी। आपसी भाईचारे और सहयोग के इससे अच्छे उदाहरण और क्या हो सकते हैं।
यह सब इसलिये प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय किसानी/बागवानी से जुड़ी सारी योजनाएं फील्ड में व्यावहारिक रूप से दम तोड़ चुकी हैं। मनरेगा में पिछले नौ माह से सरकार सामान की खरीद के लिए कोई पैसा जारी नहीं कर पायी है। गांव में मनरेगा के तहत बनने वाले ‘गौ शैड’ के लिये कोई पैसा जारी नहीं कर पायी है। कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र में तो विधायक की अपनी पंचायत और अपने ही गांव के कई लोग इस सहायता की ‘‘इन्तजार’’ में बैठे हुये हैं। बागवानी से जुड़ी सारी योजनाएं दम तोड़ चुकी है क्योंकि इनके लिये न केन्द्र और न ही राज्य की मद से पैसा जारी हो पा रहा है। इसलिए इस समय कांग्रेस और भाजपा दोनों मौन साधे बैठे हैं। सबसे बड़ी चौंकाने वाली स्थिति तो यह है कि केन्द्र सरकार के कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘‘खाता एक नजर में’’ जारी रिपोर्ट के अनुसार इस मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के तहत पिछले पांच वर्षों में 105543.71 करोड़ रुपया लैप्स कर दिया गया है। यह पैसा लाभार्थियों को जारी ही नहीं किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक किसान सम्मान निधि के तहत जारी 6000 वार्षिक पाने वालों का आंकड़ा भी प्रश्नित हो जाता है। कृषि मंत्रालय की यह रिपोर्ट केन्द्र सरकार के दावों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हो जाता है। इस रिपोर्ट पर भाजपा की चुप्पी तो समझ आ सकती है लेकिन कांग्रेस के चुप रहने को भाईचारे की संज्ञा न देकर और क्या नाम दिया जा सकता है। ऐसे भाईचारे के परिदृश्य में चुनाव परिणाम क्या रहेंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
शिमला/शैल। डीजीपी कुण्डू के खिलाफ आये प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वाेच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। अब यह अपने पद पर बने रहेंगे। सर्वाेच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की जांच के लिये एस.आई.टी. गठित करने के निर्देश को बहाल रखा है और शिकायतकर्ता निशान्त शर्मा और उसके परिवार को सुरक्षा उपलब्ध करवाने के निर्देश को भी बहाल रखा है। कुण्डू इसी वर्ष अप्रैल में सेवानिवृत होने जा रहे हैं। इस परिदृश्य में सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला कुण्डू के लिये एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन इस प्रकरण में आये उच्च न्यायालय और फिर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों ने कुछ ऐसे बुनियादी सवाल सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर खड़े कर दिये हैं जिनका परिणाम दूरगामी होगा। क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय ने कुण्डू को अपने पद से हटाने के उच्च न्यायालय के फैसले से असहमति जताई है। कुण्डू ने सर्वाेच्च न्यायालय में एस.पी. शिमला की रिपोर्ट की निष्पक्षता पर शिमला ब्लास्ट प्रकरण में आयी उनकी रिपोर्ट पर उठे सवालों के संद्धर्भ में प्रश्न उठाये हैं। इस प्रकरण में एस.आई.टी कब गठित होती है और उसकी जांच रिपोर्ट कब आती है यह सब आने वाला समय ही बतायेगा।
इस प्रकरण में सरकार की कार्यशैली पर जो सवाल उठते हैं वह आम आदमी के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। क्योंकि निशान्त शर्मा की शिकायत पर कोई भी जांच होने से पहले ही उसके खिलाफ कुण्डू एक एफ.आई.आर. दर्ज करवा देते हैं और उसके होटल को निगरानी पर डाल देते हैं। जिन व्यापारिक सहयोगियों के खिलाफ निशान्त शर्मा की शिकायत है उन्हीं के साथ डी.जी.पी. की लम्बी बात होना उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड पर आ चुका है और इस तथ्यात्मक रिकॉर्ड पर सर्वाेच्च न्यायालय ने कोई टिप्पणी नहीं की है। यह टिप्पणी न किया जाना उच्च न्यायालय में आये रिकॉर्ड की प्रामाणिकता पर भी कोई सवाल खड़े नहीं करता है क्योंकि उसकी सत्यता के आगे जांच में परखी जायेगी। लेकिन इस प्रकरण में जिस तरह से सवाल सरकार की निष्क्रियता और धर्मशाला पुलिस की कार्यशाली पर उठे हैं उससे पूरे तंत्र की विश्वसनीयता प्रश्नित हो गयी है।
उच्च न्यायालय ने जब डी.जी.पी. को हटाने के पहली बार निर्देश दिये तो सरकार ने उस पर अमल करते हुये उन्हें तो प्रधान सचिव आयुष तैनात कर दिया लेकिन एस.पी. कांगड़ा को लेकर सरकार चुप रही। जब उच्च न्यायालय ने दूसरी बार फैसले में रिकाल याचिका को अस्वीकार कर दिया तब भी एस.पी. को लेकर सरकार की ओर से कोई कारवाई सामने नहीं आयी। फिर जब कुण्डू उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दूसरी बार सर्वाेच्च न्यायालय गये तो शायद वहां पर सरकार का पक्ष रखने के लिये कोई उपलब्ध ही नहीं था। सरकार के ऐसे आचरण से क्या यह सन्देश नहीं जाता है कि सरकार की पहली प्राथमिकता अधिकारी हैं न की आम आदमी।
शिमला/शैल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हिमाचल से राज्यसभा सांसद जगत प्रकाश नड्डा की अध्यक्षता में हुई कोर कमेटी की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्रीयांे शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल तथा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के न आने से भाजपा के अन्दर के हालात को लेकर अनचाहे ही जो सन्देश गया है वह कोई बहुत सुखद नहीं है। क्योंकि नड्डा के इस दौर से पहले बड़ी प्रमुखता से यह समाचार छपा था कि नड्डा प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। स्वभाविक था कि इस दौरे में नड्डा के चुनाव लड़ने का सवाल मीडिया के लिये एक प्रमुख मुद्दा रहता। नड्डा ने चुनाव लड़ने से इन्कार करते हुये यह भी जोड़ दिया कि चुनाव कमेटी का निर्णय सर्वोपरि होगा। इससे स्पष्ट हो जाता है कि नड्डा के चुनाव लड़ने का फैसला अभी यथास्थिति बना हुआ है। चुनाव लड़ने की संभावना इसलिये प्रबल हो जाती है कि उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल इसी वर्ष समाप्त हो जायेगा और तीसरे कार्यकाल की अनुमति भाजपा का संविधान नहीं देता। राज्यसभा में तीसरे कार्यकाल के लिये भी यही स्थिति है और अभी चुनावी राजनीति से शायद वह रिटायर होना नहीं चाहेंगे।
इस परिपेक्ष में नड्डा का यह दौरा भाजपा की चुनावी स्थितियों के आकलन के साथ ही उनके व्यक्तिगत आकलन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी उनकी राष्ट्रीय अध्यक्षता के कार्यकाल में ही हुये हैं। नड्डा का गृह प्रदेश होने के नाते विधानसभा चुनावों में उनके परोक्ष/अपरोक्ष फैसलों का ही वर्चस्व रहा है। विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की चुनावी सभाओं के बावजूद भी भाजपा एक प्रतिशत से भी कम मतों के अन्तर से चुनाव हार गयी। पार्टी ने इन चुनावों के लिये मुख्यमंत्री भी घोषित कर रखा था। विधानसभा की हार के कारणों में नड्डा के प्रदेश में एकधिकार दखल को भी बड़ा कारण माना गया है। क्योंकि प्रदेश में कई बार नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें उठी मंत्रिमण्डल में फेरबदल कुछ मंत्रियों को हटाने और विभागों में परिवर्तन की चर्चाएं चली जो अन्त में सिर्फ से आगे नहीं बढ़ पायी। इस सबका परिणाम पार्टी की हार के रूप में सामने आया। अनुराग ठाकुर और जयराम ठाकुर के बीच केंद्रीय विश्वविद्यालय को लेकर देहरा में एक सार्वजनिक मंच पर हुआ विवाद आज भी सबको याद है। राजीव बिन्दल को किस तरह से प्रताड़ित किया गया था वह भी कोई बहुत पुरानी बात नहीं है। यह सब कुछ आज कोर कमेटी की बैठक में भाजपा के इन तीन बड़े नेताओं का न आना राजनीतिक विश्लेष्कांे के लिये बहुत कुछ दे गया है।
क्योंकि यदि नड्डा लोकसभा के लिये उम्मीदवार बनाये जाते हैं तो उनके लिये यह स्थिति नहीं है कि वह प्रदेश की किसी भी ओपन सीट से चुनाव लड़ने का साहस कर पायें। उनके लिये हमीरपुर ही उनकी पहली पसन्द होगी और वहां से अनुराग ठाकुर को बदलना बहुत आसान नहीं होगा। वैसे बहुत अरसे से अनुराग को चंडीगढ़ शिफ्ट करने की चर्चाएं राजनीतिक हलकों में चल रही हैं। वैसे इस समय भाजपा में डॉ. बिन्दल के अतिरिक्त कोई दूसरा बड़ा नेता सुक्खू सरकार के खिलाफ ज्यादा सटीक आक्रमकता नहीं दिखा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा लोकसभा का यह चुनाव सुक्खू सरकार को अपने एजेंडा पर लड़ने के लिये बाध्य कर पायेगी या स्वयं सरकार के ऐजैण्डे के ट्रैप में आ जायेगी। क्योंकि इस समय सरकार और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आपस में पूरे तालमेल से चल रहा है।
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