Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश कोर कमेटी की बैठक में शान्ता, धूमल और अनुराग का गैर हाजिर रहना पुराने संबंधों की छाया तो नहीं?

ShareThis for Joomla!

कोर कमेटी की बैठक में शान्ता, धूमल और अनुराग का गैर हाजिर रहना पुराने संबंधों की छाया तो नहीं?

  • नड्डा के चुनाव लड़ने से इन्कार के साथ ही फैसला चुनाव कमेटी पर छोड़ने का अर्थ क्या है
  • क्या भाजपा सुक्खू सरकार को अपने ऐजैण्डे पर चुनाव लड़ने के लिए बाध्य कर पायेगी।

शिमला/शैल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हिमाचल से राज्यसभा सांसद जगत प्रकाश नड्डा की अध्यक्षता में हुई कोर कमेटी की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्रीयांे शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल तथा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के न आने से भाजपा के अन्दर के हालात को लेकर अनचाहे ही जो सन्देश गया है वह कोई बहुत सुखद नहीं है। क्योंकि नड्डा के इस दौर से पहले बड़ी प्रमुखता से यह समाचार छपा था कि नड्डा प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। स्वभाविक था कि इस दौरे में नड्डा के चुनाव लड़ने का सवाल मीडिया के लिये एक प्रमुख मुद्दा रहता। नड्डा ने चुनाव लड़ने से इन्कार करते हुये यह भी जोड़ दिया कि चुनाव कमेटी का निर्णय सर्वोपरि होगा। इससे स्पष्ट हो जाता है कि नड्डा के चुनाव लड़ने का फैसला अभी यथास्थिति बना हुआ है। चुनाव लड़ने की संभावना इसलिये प्रबल हो जाती है कि उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल इसी वर्ष समाप्त हो जायेगा और तीसरे कार्यकाल की अनुमति भाजपा का संविधान नहीं देता। राज्यसभा में तीसरे कार्यकाल के लिये भी यही स्थिति है और अभी चुनावी राजनीति से शायद वह रिटायर होना नहीं चाहेंगे।
इस परिपेक्ष में नड्डा का यह दौरा भाजपा की चुनावी स्थितियों के आकलन के साथ ही उनके व्यक्तिगत आकलन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी उनकी राष्ट्रीय अध्यक्षता के कार्यकाल में ही हुये हैं। नड्डा का गृह प्रदेश होने के नाते विधानसभा चुनावों में उनके परोक्ष/अपरोक्ष फैसलों का ही वर्चस्व रहा है। विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की चुनावी सभाओं के बावजूद भी भाजपा एक प्रतिशत से भी कम मतों के अन्तर से चुनाव हार गयी। पार्टी ने इन चुनावों के लिये मुख्यमंत्री भी घोषित कर रखा था। विधानसभा की हार के कारणों में नड्डा के प्रदेश में एकधिकार दखल को भी बड़ा कारण माना गया है। क्योंकि प्रदेश में कई बार नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें उठी मंत्रिमण्डल में फेरबदल कुछ मंत्रियों को हटाने और विभागों में परिवर्तन की चर्चाएं चली जो अन्त में सिर्फ से आगे नहीं बढ़ पायी। इस सबका परिणाम पार्टी की हार के रूप में सामने आया। अनुराग ठाकुर और जयराम ठाकुर के बीच केंद्रीय विश्वविद्यालय को लेकर देहरा में एक सार्वजनिक मंच पर हुआ विवाद आज भी सबको याद है। राजीव बिन्दल को किस तरह से प्रताड़ित किया गया था वह भी कोई बहुत पुरानी बात नहीं है। यह सब कुछ आज कोर कमेटी की बैठक में भाजपा के इन तीन बड़े नेताओं का न आना राजनीतिक विश्लेष्कांे के लिये बहुत कुछ दे गया है।
क्योंकि यदि नड्डा लोकसभा के लिये उम्मीदवार बनाये जाते हैं तो उनके लिये यह स्थिति नहीं है कि वह प्रदेश की किसी भी ओपन सीट से चुनाव लड़ने का साहस कर पायें। उनके लिये हमीरपुर ही उनकी पहली पसन्द होगी और वहां से अनुराग ठाकुर को बदलना बहुत आसान नहीं होगा। वैसे बहुत अरसे से अनुराग को चंडीगढ़ शिफ्ट करने की चर्चाएं राजनीतिक हलकों में चल रही हैं। वैसे इस समय भाजपा में डॉ. बिन्दल के अतिरिक्त कोई दूसरा बड़ा नेता सुक्खू सरकार के खिलाफ ज्यादा सटीक आक्रमकता नहीं दिखा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा लोकसभा का यह चुनाव सुक्खू सरकार को अपने एजेंडा पर लड़ने के लिये बाध्य कर पायेगी या स्वयं सरकार के ऐजैण्डे के ट्रैप में आ जायेगी। क्योंकि इस समय सरकार और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आपस में पूरे तालमेल से चल रहा है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search