शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के लिये अगले चुनाव दिसम्बर 2022 में होने हैं। इन चुनावों की तैयारी में राजनीतिक दल अभी से जुट गये हैं। भाजपा ने मिशन रिपीट शुरू कर दिया है। भाजपा की तर्ज पर ही कांग्रेस ने भी चुनावी तैयारीयों के नाम पर तीन महत्वपूर्ण कमेटीयों का गठन कुछ दिन पहले कर दिया है। कांग्रेस की यह कमेटीयां हैं राजनीतिक मामलों की चुनाव रणनीति समिति, समन्वयन समिति और अनुशासन समिति। प्रदेश
जब वीरभद्र सिंह ने सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने के लिये मुहिम छेड़ दी थी तब कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिये आनन्द शर्मा ने ही वीरभद्र, मुकेश अग्निहोत्री और आशा कुमारी को राज़ी किया था और पत्र लिखवाया था। कुलदीप राठौर को आनन्द शर्मा की पसन्द माना जाता है। इसलिये यह संभव नहीं हो सकता कि कुलदीप राठौर ने अपने ही स्तर पर आनन्द शर्मा को इन कमेटीयों से बाहर रखने का जोखिम उठा लिया हो। कुलदीप राठौर के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी ने पहले लोकसभा चुनावों और उसके बाद विधानसभा उपचुनावों का सामना किया और दोनों में हार देखनी पड़ी। लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के संकेत तो उसी समय मिल गये थे जब वीरभद्र सिंह ने मण्डी से होने वाले संभावित प्रत्याशी को लेकर यह ब्यान दिया था कि कोई भी ‘‘मकरझण्डू’’ चुनाव लड़ लेगा। वीरभद्र का चुनावों की पूर्व संध्या पर ऐसा ब्यान आना पार्टी की चुनावी तैयारीयों और उसके उम्मीदवारों की गंभीरता को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट कर जाता है। लेकिन वीरभद्र सिंह के ऐसे ब्यान पर पार्टी अध्यक्ष और प्रभारी दोनो ही कुछ नहीं कर सके।
वीरभद्र प्रदेश मे कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता हैं। आनन्द शर्मा को कांग्रेस में लाने और समय आने पर दिल्ली में स्थापित करने का श्रेय भी वीरभद्र सिंह को ही जाता है। अपने विरोधीयों से किस हद तक लड़ सकते हैं यह 1993 में प्रदेश देख चुका है जब सुखराम आधे विधायकों को लेकर चण्डीगढ़ बैठे रहे और शिमला में वीरभद्र सिंह ने अपने समर्थकों से विधानसभा का घेराव कराकर हाईकमान को उन्हें मुख्यमन्त्री की शपथ दिलाने के लिये बाध्य कर दिया था। उस समय आनन्द शर्मा ने किस हद तक वीरभद्र का साथ दिया है यह भी पूरा देश जानता है आज यह पुराने प्रसंग इसलिये प्रसांगिक हो गये हैं कि वीरभद्र के सामने ही आनन्द शर्मा को संगठन की कमेटीयों से बाहर कर दिया गया और वह चुप हैं। कुछ हल्को में यह माना जा रहा है कि वीरभद्र परिवार के खिलाफ जो सीबीआई और ईडी में आज भी मामले लंबित चले आ रहे हैं उनके कारण वीरभद्र सिंह के पास चुप रहने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचा है। यदि शिमला ग्रामीण से ताल्लुक रखने वाले भाजपा नेताओं के यहां से उभरे संकेतों को अधिमान दिया जाये तो यह वर्ग भाजपा हाईकमान को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि वीरभद्र परिवार को अदालत से एक बार दोषी करार दिलाकर उसे चुनाव लड़ने से ही अयोग्य करवा दिया जाये। चर्चा है कि प्रदेश भाजपा नेतृत्व का भी एक बड़ा वर्ग इस योजना को गलत नहीं मान रहा है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर अब तक हुए हर चुनाव में इन केसों के माध्यम से उनकी आक्रामकता को सफलतापूर्वक कुन्द किया है। आज भी भाजपा को कांग्रेस में सबसे ज्यादा डर वीरभद्र सिंह से ही है।
ऐसे में जब आनन्द शर्मा को संगठन की कमेटीयों से बाहर रखा गया और केन्द्र में भी राज्य सभाओं में उपनेता होने के अतिरिक्त और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी है तो उससे यही निकलता है कि या तो उन्हे प्रदेश में अगले चुनावों में किसी बड़ी भूमिका में उतारा जायेगा या फिर राज्यसभा की पारी समाप्त होने के बाद उन्हें उन्ही के हाल पर छोड़ दिया जायेगा। इसमें क्या घटता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस समय उन्हें बाहर रखना कोई शुभ संकेत नही है।