Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

क्या सरकार की असफलताओं के लिये अकेले नौकरशाही ही जिम्मेदार है

सरकार के तीन वर्षों पर कुछ सवाल
प्रदेश का कर्जभार 60,000 करोड़ से पार क्यों
प्रदेश के वित्तिय संस्थानों का 21,75,623 लाख का आऊट सोर्स स्टैण्डिंग ऋण कितना सुरक्षित है?
प्रदेश के बैंको का सीडी अनुपात 44.33 पर क्यों आ गया है
2541 करोड़ का बांटा गया मुद्रा लोन कितना वापिस आया है?
प्रदेश में लकड़ी का 226 हजार घन मीटर से घटकर 187 हजार घन मीटर रह जाना क्या चिन्ता का विषय नही?


शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता में तीन वर्ष पूरे कर लिये हैं। यह तीन वर्ष पूरे होने पर मुख्यमन्त्री से लेकर नीचे तक सभी ने सरकार की उपलब्धियां गिनाने की रस्मअदायगी भी पूरी की है। इस अवसर पर जो मुख्य आयोजन रखा गया था उसके मुख्य वक्ता रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह थे। जयराम ने इस अवसर पर अपने पहली बार विधायक बनने से लेकर पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और अब मुख्यमन्त्री बनने तक में राजनाथ सिंह के सहयोग और आशीर्वाद पर उनका विशेष आभार जताया है। लेकिन इस अवसर पर राजनाथ सिंह के संबोधन को पार्टी के ही लोगों ने कितनी गंभीरता और ईमानदारी से सुना है इसका प्रमाण सोलन कार्यालय में इस संबोधन के दौरान चल रहे नाच का विडियो वायरल होने से सामने आ गया है। इसी आधार पर इस सारे आयोजन को एक रस्मअदायगी से ज्यादा महत्व देना अर्थहीन हो जाता है। क्योंकि सभी मन्त्रीयों और अन्य बड़े नेताओं को ऐसे अवसरों पर कुछ तो बोलना ही होता है और वह सरकार तथा नेता की प्रशंसा के अतिरिक्त कुछ बोल भी नहीं सकते। लाभार्थीयों की इससे अधिक आवश्यकता भी नहीं होती है। इस नाते मुख्यमन्त्री से लेकर नीचे अंध भगत कार्यकर्ता तक यही एक बड़ी उपलब्धि है कि इस सरकार के भी सत्ता में तीन साल पूरे हो गये हैं। क्योंकि जिन्हें किसी भी कारण से ताजपोशी मिल गयी है उनके लिये इससे अच्छी सरकार और कोई हो ही नहीं सकती है। फिर 2019 का लोकसभा और उसके बाद विधानसभा के उपचुनाव इसी नेतृत्व के तहत जीते हैं।
लेकिन सत्ता में बने रहने से हटकर एक दूसरा पक्ष भी होता है और वह है आम आदमी। इस आम आदमी को इन तीन वर्षों में क्या मिला। इस मिलने का सबसे बड़ा आधार साधन वित्त होता है। परिवार से लेकर देश तक सभी को धन उपलब्धता के माध्यम से ही मिलता है और यह धन या तो कमाने से या फिर संपति बेचकर या कर्ज उठाकर मिलता है। इस दृष्टि से केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकार तक ने संपत्तियां बेचने और कर्ज उठाने के आसान रास्ते को ही अपनाया है। सरकार संपत्ति बेचने के लिये पीपीपी और वीओटी का रूट अपनाती है। जब सार्वजनिक संसाधनों का दोहन प्राइवेट सैक्टर को दिया जाता है तो उसके लिये यही रास्ता चुना जाता है। प्रदेश में सीमेन्ट और बिजली का उत्पादन इसी माध्यम से प्राइवेट सैक्टर के पास है। इस माध्यम से सरकारी खजाने को क्या हासिल हुआ है इसका प्रमाण वाईल्ड फ्लावर हाल, मकलोड़गंज बसपा परियोजना और आईएसबीटी शिमला जैसे दर्जनों मामलें हैं जिनका उल्लेख कैग रिपोर्टों में मिलता है। जयराम सरकार भी इसी संस्कार और संस्कृति को बढ़ाने में ईमानदारी से लगी हुई है। सरकारी नौकरियों में आऊट सोर्स भी इसी विधा का अंग है। आज शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम विभागों में भी आऊट सोर्स के माध्यम से नोकरियां दी जा रही है। जिस क्षेत्र से मुख्यमन्त्री होगा उसी से आऊट सोर्स के ठेकेदार होंगे इस रस्म को भी ईमानदारी से निभाया जा रहा है। सरकारी नौकरियों में आऊट सोर्स लाने के लिये ही तो लाइने दी गयी थी। कि सरकारी कर्मचारी काम नहीं करता है। इसी के लिये तो ‘‘जो काम न करे उसे वेत्तन क्यों’’ के नाम से एक वक्तव्य प्रकाशित किया गया था। इसलिये आऊट सोर्स के माध्यम से नौकरी देने को सरकार की उपलब्धि या सरकारी धन के हथियाने का जायज साधन तैयार करना माना जाये इसका फैसला पाठक स्वयं करें। क्योंकि यह सरकार भी करोड़ों का कमीशन आऊट सोर्स के नाम पर दे रही है। मण्डी जिला में ही करीब एक दर्जन ऐसे ठेकेदार कार्यरत हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद जिस तरह से यह सरकार प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में उलझाती जा रही है हर नागरिक के लिये ये चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। क्योंकि इस समय प्रदेश का कर्जभार 60,000 करोड़ से ऊपर जा चुका है। आज प्रति व्यक्ति यह कर्ज शायद आठ लाख से भी उपर जा चुका है। कैग रिपोर्टों के मुताबिक विकास के नाम पर लिया जा रहा सारा कर्ज ब्याज चुकाने में ही लग रहा है। विकास के लिये इसमें से कुछ नहीं बच रहा है। सरकार इस ओर कतई भी चिन्तित नहीं है। जब सारा कर्ज गैर उत्पादक कार्यों पर ही खर्च हो जायेगा तो स्वभाविक है कि अन्य खर्च चलाने के लिये हर उत्पाद और सेवा के दाम बढ़ाने पड़ रहे है। पैट्रोल, डीजल, रसोई गैस और खाद्यान सभी के दाम बढ़ने का मुख्य कारण यही है। इसी कर्ज के कारण बिजली, पानी, परिवहन और स्कूलों में बच्चों की फीस तक बढ़ रही है। इस समय सरकार का वित्तिय प्रबन्धन पूरी तरह बिगड़ चुका है और इसके कारण विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। सरकार इसके लिये अब अफसरशाही को कोसने लग पड़ी है। जब कोई मुख्यमन्त्री अपने कार्यकाल के तीसरे वर्ष की समाप्ति पर अपनी असफलताओं के लिये नौकरशाही पर दोष डालने लग पड़े तो इससे साफ हो जाता है कि अब अफसरशाही के भी हाथ खड़े होने लग पड़े हैं।
यदि इन तीन वर्षों की वित्तिय स्थिति पर नज़र डाली जाये तो जो तथ्य सामने आते हैं उनमें सबसे पहले आता है मुद्रा ऋण के नाम पर 2541.43 करोड़ का कर्ज 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बांटा गया। इसमें कितना अब तक वापिस आ पाया है इसका कोई रिकार्ड सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। विधानसभा में आयी जानकारी के मुताबिक प्रदेश के सहकारी बैंकों का एनपीए ही 900 करोड़ से ऊपर जा चुका है। एनपीए की यह स्थिति 2018 में थी। लेकिन इसके बाद भी कृषि सहकारी सभाओं को 80685 लाख, गैर कृषि सहकारी सभाओं को 38703.88 लाख, अर्बन बैंकों को 75590.24 लाख और प्राइमरी भूसुधार बैक, राज्य एवम् केन्द्रिय बैंकों ने प्रदेश में 7,71039.79 लाख के ऋण एडवांस किये। यह कर्ज 2018-19 में दिये गये हैं। इनमें यदि इसी वर्ष 2018 -19 में ही आऊट स्टैण्डिंग हो चुके ऋणों का आंकड़ा भी सामने रखा जाये तो कृषि सहकारी सभाओं में 1,30,745.34 लाख, गैर कृषि सहकारी सभाओं में 35142.18 लाख, अर्बन बैंकों में 14538.12 लाख प्राईमरी लैण्ड मार्टगेज बैंक और राज्य एवम् केन्द्रिय बैंकों में 1895197.36 लाख के ऋण आऊट स्टैण्डिंग हो चुके हैं। इन ट्टणों का परिणाम है किसी डी अनुपात जो 30-9-2018 को 47.46 था वह 30-9-2019 को 44.33 पर आ गया है। बैंको का 30-8-2018 को प्रदेश सरकार में जो निवेश 263.69 करोड़ था वह 30-9-2018 को घटकर 233.09 करोड़ रह गया है। यह आंकड़े सरकार के 2019-20 के विधानसभा मे रखे आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज है। इन आंकडों से प्रदेश की वास्तविक वित्तिय स्थिति का पता चलता है। इन आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के सारे वित्तिय संस्थानों द्वारा जो 21,75,623.50 लाख का दिया गया  ऋण है वह ऋण वापसी की समय सीमा पार कर चुका है। इसमें से कितना ऋण एनपीए हो जायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन प्रदेश के सहकारी बैंकों के 980 करोड़ के एनपीए से ही पाठक अनुमान लगा सकते है।
प्रदेश और सरकार के वित्त की समझ रखने वाले यह मानेंगे की यदि सरकार इस जमीनी हकीकत को समझ कर नहीं चलेगी तो आने वाला समय बहुत ही कठिन हो जायेगा क्योंकि जब इन्हीं आंकड़ो के अनुपात में इसी सर्वेक्षण में इसी अवधि में हुए विकास के कुछ आंकड़ो पर भी नजर डाली जाये तो इस भयानकता को समझना आसान हो जायेगा। क्योंकि इस अवधि में फोरलेन सड़क 6 किमी, डबल लेन 3 किमी और सिंगल लेन 496 किमी सड़क निर्माण हुआ। 2017-18 में प्रदेश 226.5 हजार घन मीटर लक्कड़ थी जो 2018-19 में घटकर 187.6 हजार घन मीटर रह गयी है। प्राकृतिक संसाधन क्यों कम हो रहे हैं यह सवाल अहम है। आज सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर मुख्यमन्त्री से यह अपेक्षा की जानी चाहिये कि वह स्थिति की इस गंभीरता को सामने रखते हुए यह जानने का प्रयास करें कि ऐसा क्यों हुआ है। क्या इसके लिये अकेले नौकरशाही को ही जिम्मेदार ठहराना सही होगा।

आप को स्पष्ट करना होगा कि उसका पहला प्रतिद्धन्दी कौन है कांग्रेस या भाजपा

शिमला/शैल। हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों से ही प्रदेश मेे विकल्प बनने के प्रयास शुरू कर दिये थे। उस समय प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उसके बाद आये विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों तक कदम रखने का साहस नहीं किया। 2014 से लेकर आज 2020 के अन्त तक शायद चौथी बार अपने संयोजक बदल चुकी है। जो लोग 2014 में पार्टी के साथ जुड़े थे उनमें से शायद ही अब एक प्रतिशत भी इसमें रहे होंगे। आम आदमी पार्टी को लेकर यह चर्चा इसलिये आवश्यक है क्योंकि आप की दिल्ली में तीसरी बार सरकार बन गयी है। पड़ोसी राज्य पंजाब में भी उसकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है और वह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने की ईच्छा रखती है। इसी ईच्छा के प्रचार प्रभाव से अन्य प्रदेशों में भी लगता है कि वहां पर आप अपना आधार स्थापित कर सकती है। लेकिन व्यवहारिक पक्ष यह है कि दिल्ली में सरकार में बराबर बने रहने के बाद पंजाब को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य में अपनी प्रभावी ईकाईयां तक स्थापित नहीं कर पायी हैं। ऐसा क्यों है जब तक आप का नेतृत्व इस सवाल पर ईमानदारी से चिन्तन नहीं कर लेता है तब तक उसके प्रयास सफल नहीं होंगे।
इस सवाल पर चिन्तन करते हुए सबसे पहले यह तथ्य सामने आता है कि 2014 में मोदी का प्रधानमन्त्री बनना और राष्ट्रीय राजधानी में आपका सरकार बनाना अन्ना आन्दोलन के प्रतिफल हैं। क्योंकि उस समय आन्दोलन के मंच पर प्रभावी रूप से दिखने वाला सारा प्रमुख नेतृत्व आम आदमी पार्टी के वर्तमान नेता ही थे। उस समय के कुछ नेता भाजपा में भी चले गये हैं। अन्ना आन्दोलन का सारा प्रभावी नेतृत्व आज या तो आप में हैं या भाजपा में। लेकिन कांग्रेस या अन्य किसी दल में शायद कोई भी नहीं है। अन्ना आन्दोलन संघ का सुनियोजित प्रायोजित कार्यक्रम था यह प्रमाणित हो चुका है। भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को उस आन्दोलन में प्रमुखता से उठाया था उनमें से एक भी मुद्दा मोदी के छः वर्ष के शासन में प्रमाणित नहीं हो पाया है। 1,76,000 करोड़ के टूजी स्कैम पर तो मोदी सरकार अदालत में यह कह चुकी है कि यह स्कैम घटा ही नहीं है। इसमें आकलन में गलती हो गयी थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उस आन्दोलन के निहित उद्देश्य क्या थे। आज जिस संकट में देश चल रहा है उसके बीज अन्ना आन्दोलन में बोये गये थे जिनकी फसल आज काटनी पड़ रही है।
इस परिदृश्य में यह समझना और भी आवश्यक हो जाता है कि आप किसका विकल्प बनना चाहती है भाजपा या कांग्रेस का। केन्द्र शासित राज्य दिल्ली में आप की सरकार का बने रहना भाजपा को लाभ देता है क्योंकि वहां पर कांग्रेस का विरोध करने के लिये आप से ज्यादा कारगर हथियार और कोई नहीं हो सकता है। यही स्थिति पंजाब में है क्योंकि वहां अकाली भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। हिमाचल में भी भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर होती है। इसलिये आप जब तक यह तय नहीं कर लेती है कि उसे कांग्रेस को हराना है या भाजपा को तब तक उसका प्रदेश में आकार ले पाना संभव नहीं होगा। यही स्थिति प्रदेश में बने अन्य दलों की भी है। आप को लेकर यह सवाल और भी ज्यादा प्रसांगिक इसलिये हो जाता है कि जहां आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने विवादित कृषि कानूनों की प्रतियां दिल्ली विधानसभा के पटल पर फाड़ी वहीं पर दूसरा सच यह भी है कि केजरीवाल सरकार ने ही इन कानूनों को अपने राज्य दिल्ली में अधिसूचित भी कर रखा है। यह सवाल अब आप नेतृत्व से पूछा भी जाने लगा है। क्योंकि इससे या तो उसकी वैचारिक अस्पष्टता झलकती है या फिर वह ऐसे समय में भी दोहरे चरित्र को लेकर चल रही है।
हिमाचल में 2014 से अब तक सभी चुनाव कांग्रेस हारती आयी है यह एक कड़वा सच है। इस हार के कारणों पर ईमानदारी से कोई चिन्तन नहीं हो पाया है। आज भी कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ एक स्वर से हमलावर नहीं हो पा रही है। बल्कि कुछ बड़े नेताओं के खिलाफ तो यह चर्चित होने लग पड़ा है कि वह जयराम के सबसे बड़े सलाहकार बने हुए हैं पार्टी का सारा शीर्ष नेतृत्व एक जुट नहीं है। ऐसे में कांग्रेस भाजपा से कितना मुकाबला कर पायेगी यह अभी स्पष्ट नहीं है। इस परिदृश्य में जब आप भी कांग्रेस को पहला प्रतिद्वन्दी मानकर उस पर हमलावर होगी तो इससे भाजपा को और ताकत मिल जायेगी। इसलिये प्रदेश के नये संयोजक को यह स्पष्ट करना होगा कि उसका पहला प्रतिद्वन्दी कौन है कांग्रेस या भाजपा।

प्राईवेट स्कूलों के लिये लूट का लाईसैंस बन सकता है उच्च न्यायालय का फैसला

शिमला/शैल। प्रदेश के सरकारी और गैर सरकारी सारे शैक्षणिक संस्थान 14 मार्च से कोरोना के कारण बन्द चल रहे हैं। इनके बन्द होने से स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई बन्द हो गई राष्ट्रीय स्तर पर यह हुआ। कोरोना के कारण लाॅकडाऊन से सारी गतिविधियां बन्द हो गयी थीं। सरकारी कर्मचारियों और बड़े उद्योग घ्रानों को छोड़ कर शेष सब लोगों की आय के साधनों पर इस स्थिति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस प्रभाव के कारण प्राइवेट स्कूलों के संद्धर्भ में 27 मार्च को प्रदेश सरकार ने यह आदेश जारी किया कि यह स्कूल छात्रों से स्कूल फीस लेने की समय सीमा 30 मार्च से 30 अप्रैल तक बढ़ायेंगे और इसके लिये कोई लेट फीस नहीं ली जायेगी। इन निर्देशों को 2 अप्रैल और 25 अप्रैल को दोहराया भी गया। लेकिन इनमें फीस के साथ जाने वाले शुल्कों का जिक्र नहीं किया गया। इसके बाद 26 मई को राज्यपाल ने इस संद्धर्भ में कुछ प्रोपोजल अनुमोदित किये और निदेशक उच्च शिक्षा की ओर से 27 मई को इस आश्य की अधिसूचना जारी कर दी गयी। आठ बिन्दुओं की इस अधिसूचना में टयूशन फीस मासिक आधार पर लेने के निर्देश जारी किये गये। यह भी कहा गया कि टयूशन फीस भी उन्हीं क्लासों से ली जायेगी जिन्हें आनलाईन पढ़ाया जा रहा है। टयूशन फीस के अतिरिक्त लिये जाने वाले अन्य शुल्कों को स्थगित रखने के लिये कहा गया। इसी में यह भी कहा गया कि यह प्राईवेट स्कूल अपने अध्यापकों या गैर अध्यापकों के वेतन भत्तों में किसी तरह की कोई कटौती नहीं करेंगे। इसमें अगर उन्हें धन की कोई कमी आती है तो वह इसे स्कूल चलाने वाली सोसायटी /ट्रस्ट से पूरा करेंगे। सरकार के यह आदेश/निर्देश प्रदेश में कार्यरत सभी प्राईवेट स्कूलों पर एक बराबर लागू थे चाहे वह किसी भी बोर्ड से संवद्ध थे।
सरकार की इस अधिसूचना के बाद जब आनलाईन शुरू हुआ तब इन स्कूलों ने बच्चों से फीस और अन्य शुल्क आदि की मांग शुरू कर दी। प्राईवेट स्कूलों के यह शुल्क आदि हजारों में हैं। जिन बच्चों के अभिभावकों की कोरोना लाकडाऊन के कारण आय बुरी तरह प्रभावित हुई थी उन्हें यह अदायगी करना समस्या बन गया। फिर आनलाईन पढ़ाई के लिये बच्चों को स्मार्ट फोन और उसका नेट का खर्चा उठाना भी एक तरह से फीस भरना ही हो गया था। इस वस्तुस्थिति में प्रभावित अभिभावक इक्कट्ठे होने लगे और छात्र अभिभावक मंच बन गया। इस मंच ने प्राईवेट स्कूलों की इस मांग के खिलाफ आन्दोलन का रास्ता अपना लिया क्योंकि सरकार इस संबंध में दोहरी नीति पर चलती रही। अभिभावकों और प्राईवेट स्कूलों दोनों के साथ खड़ा होने का प्रयास करती रही। इस प्रयास का परिणाम यह हुआ कि छात्र अभिभावक मंच को अपना आन्दोलन और तेज करने की बाध्यता हो गयी और दूसरी ओर प्रदेश के 45 प्राईवेट स्कूलों ने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा दिया।
उच्च न्यायालय का फैसला प्राईवेट स्कूलों के हक में आया है। उच्च न्यायालय ने साफ कहा है कि सरकार ने अपनी अधिसूचनाओं में फीस वगैरा को केवल स्थगित किया था उन्हें माफ नहीं किया था। 1997 के एक्ट के मुताबिक प्राईवेट स्कूलों को रेगुलेट करने का अधिकार है लेकिन इसके तहत फीस या अन्य शुल्क और अध्यापकों की नियुक्ति आदि को रैगुलेट करने का अधिकार सरकार को नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने कई फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि फीस आदि के मामलों में सरकार कोई दखल नहीं दे सकती है। इसी के साथ उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि

5(iii) While directing the private schools to neither stop payment of monthly salary nor reduce the existing total emoluments being paid to their teaching and non-teaching staff but at the same time permitting the schools to collect only the tuition fee, that too on monthly basis without authorizing them to compulsorily realize even this tuition fee is an unreasonable restriction. As in such situation incoming of funds have been made more or less voluntary, dependant on the goodwill of the parents whereas outgoing payments to be made by the schools are mandatory. Learned Additional Advocate General could not justify as to why even the tuition fee has not been permitted to be collected compulsorily by the private schools. This is rather an illogical and arbitrary condition. In case, the privately managed schools can not authoritatively charge even the ‘tuition fee’ then it is beyond comprehension as to how they will pay the monthly salary/emoluments to not only their teaching but non-teaching staff as well. It cannot be assumed that private schools have unending supply of reserve funds with them. Thus conditions No. 6,7 and 8 in the impugned communication dated 27.5.2020 run in contradiction to each others’ professed object. The object sought to be achieved in condition No. 8 will eventually be defeated by condition Nos. 6 and 7.
We cannot loose sight of the fact that by and large wards of affluent/reasonably well off families study in the private schools. Private schools are sought after because of the status and reputation they enjoy. These schools may have been closed temporarily but are required to maintain their already created infrastructure and instructional facilities. Their recognition and affiliation also depends upon compliance of these aspects. These schools are not financially aided by the State government. Whether all this can be met from tuition fees alone is another question. Neither we have the facts nor the figures to deal with the income and expenditure of the schools nor we intend to go into the related factual muddle. But these aspects do need consideration by the State while imposing temporary restrictions upon the private schools.

उच्च न्यायालय की इन टिप्पणीयों से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की नीति इस बारे में साफ नहीं रही है क्योंकि सरकार ने जब अपने निर्देशों में यह कहा था कि धन की कमी स्कूल चलाने वाली सोसायटी/ट्रस्ट पूरा करेगा तब इस पर अमल क्यों सुनिश्चित नहीं किया गया? इसे उच्च न्यायालय में पूरे विस्तार के साथ क्यों नही उठाया गया? क्या जब कोई स्कूल खोलने के किसी का प्रस्ताव सरकार के पास राजस्व अधिनियम की धारा 118 आदि की अनुमतियों के लिये सरकार के पास आता है तो क्या इसे एक उ़द्योग या वाण्ज्यिक संस्थान के नाम पर अनुमतियां दी जाती है। क्या सरकार इन संस्थानों के लिये बिजली, पानी और सड़क जैसी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाती है। आज जब आम आदमी संकट में चल रहा है तब भी ऐसी संस्थाओं का यह आचरण इस ओर ध्यान आकर्षित करता है कि हम कंही शिक्षा के बाजा़रीकरण की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं। उच्च न्यायालय के फैसले के परिदृश्य में इस ओर विचार करने की आवश्यकता है।

More Articles...

  1. बसपा परियोजना और विवेकानन्द मैमोरियल ट्रस्ट में मिले अनुभव के बाद भी निजिक्षेत्र की वकालत क्यों
  2. शान्ता की सिफारिशों का प्रतिफल है किसान आन्दोलन
  3. कब तक लिया जाता रहेगा विकास के नाम पर कर्ज
  4. क्या मुख्यमन्त्री को गुमराह किया जा रहा है या सलाहकारों को सही में जानकारी ही नही है
  5. सरकार और संगठन के लिये आसान नही होगा आने वाला समय
  6. स्वास्थ्य विभाग की खरीद पर उठते सवालों का स्पष्टीकरण केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग से क्यों
  7. कंगना रणौत पर हिमाचल भाजपा अब चुप क्यों
  8. अटल टनल से सोनिया गांधी की शिलान्यास पट्टिका गायब होने पर भड़की कांग्रेस पुलिस में दी शिकायत
  9. शान्ता-धूमल को उद्घाटन समारोह में न आने के निर्देश देना-किसी तूफान का पूर्व संकेत तो नही
  10. विज्ञापनो की जानकारी न देकर विभाग की कार्य प्रणाली पर उठे सवाल
  11. क्या स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की प्राथमिकता नही है
  12. क्या प्रदेश कांग्रेस संगठन में भी बदलाव आयेगा
  13. केन्द्र सरकार ने खर्चे कम करने के लिये नौकरीयों पर लगाया प्रतिबन्ध क्या जयराम सरकार भी ऐसा करेगी
  14. कोरोना पर चर्चा में विपक्ष और सत्तापक्ष की जीत में जनता की फिर हार
  15. प्रदेश के तीस मानवाधिकार संगठनों ने दी आवाज हम अगर नहीं उठे तो...
  16. पत्र प्रकरण पर आनन्द शर्मा माफी मांगे उपाध्यक्ष खाची के ब्यान से गरमायी कांग्रेस की सियासत
  17. जज पर आरोप लगाने का मामला पहुंचा उच्च न्यायालय
  18. घातक होगा भ्रष्टाचार के मामलों में दोहरे मापदण्ड अपनाना तीनों अधिकारियों के मामलों में बेचने वाले भूमि हीन हो गये हैं भूमिहीन होने के कारण ही अनुराग- अरूण मामले में विजिलैन्स की कैन्सेलेशन रिपोर्ट अस्वीकार हो चुकी हैं
  19. क्या केन्द्र के निर्देशों की उल्लंघना पर राज्य सरकारों को दंडित किया जायेगा
  20. क्या 118 की इन अनुमतियों को रद्द कर पायेगी सरकार

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search