Sunday, 21 December 2025
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क्या कांग्रेस में उन विद्रोहियों की वापसी हो रही है जिन्होंने चुनावों में गद्दारी की है

जल उपकार आयोग में हुई ताजपोशीयों से उठी चर्चा
क्या जल उपकर आयोग वांछित परिणाम दे पर पायेगा
 
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने पिछले दिनों जल उपकर आयोग का गठन किया है। इसमें एक अध्यक्ष और तीन सदस्य नियुक्त किये गये हैं। आयोग का अध्यक्ष जल शक्ति विभाग से सेवानिवृत्त हुये सचिव अमिताभ अवस्थी को लगाया है। अवस्थी कांगड़ा के धर्मशाला के रहने वाले हैं जबकि तीनों सदस्य जिला शिमला के रहने वाले हैं। इनमें से धरेला सेवानिवृत्त इंजीनियर है और जोगिन्दर कवंर तथा अरुण शर्मा राजनीतिक कार्यकर्ता है। अरुण शर्मा एक समय शिमला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन जोगिन्दर कंवर कांग्रेस के पिछले विधानसभा चुनावों में मुखर विरोधी रहे हैं। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधायक कुलदीप राठौर के विरुद्ध उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी विजय पाल खाची का हर तरह से खुलकर समर्थन किया है। शिमला और अन्य स्थानों में पर भी उन्होंने चुनावों में भाजपा का खुलकर समर्थन किया है। जोगिन्दर कंवर कॉलेज और विश्वविद्यालय में शायद मुख्यमंत्री के निकट सहयोगी रहे हैं। वैसे जोगिन्दर कंवर एक अच्छे राजनीतिक कार्यकर्ता और भरोसेमंद मित्र माने जाते हैं। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के अन्दर इस ताजपोशी से सवाल उठे हैं यदि समय रहते उन्हें शान्त न किया गया तो कभी भी एक बड़ा विस्फोट सरकार और संगठन के बीच हो सकता है। क्योंकि सुक्खू की सरकार पर मित्रों की सरकार होने का जो आरोप विपक्ष लगा रहा था वही आज कांग्रेस के अपने भीतर से भी उठने लग पड़ा है।
जल उपकर अधिनियम सुक्खू सरकार ने ही पारित किया है। लेकिन भारत सरकार ने इस अधिनियम को गैर कानूनी और असंवैधानिक करार देते हुये केन्द्र के स्वामित्व वाली जल विद्युत परियोजनाओं के प्रबंधन को बाकायदा पत्र भेजकर यह उपकर न देने और इसका पुरजोर विरोध करने का निर्देश दिया है। सरकार के मुताबिक कुछ प्राइवेट सैक्टर के उत्पादकों ने यह उपकर लागू करने पर सहमति जताई है। लेकिन कुछ उत्पादकों ने इस अधिनियम को उच्च न्यायालय में चुनौती भी दे रखी है और मामला अदालत के विचार अधीन है। इस अधिनियम को उच्च न्यायालय ने स्टे नहीं किया है इसीलिए सरकार जल उपकर आयोग का गठन कर पायी है। यदि उच्च न्यायालय इस अधिनियम के पक्ष में भी निर्णय देता है तो भी यह मामला अपील में सर्वाेच्च न्यायालय जायेगा। क्योंकि केन्द्र सरकार इसका विरोध कर रही है। जिन राज्यों ने ऐसा जल उपकर लगा रखा है वहां पर शायद केन्द्र के सीधे स्वामित्व वाली परियोजनाएं नहीं है। पंजाब और हरियाणा की सरकारें भी इस उपकर का विरोध कर रही हैं। अभी हिमाचल सरकार ने किसी भी जल विद्युत उत्पादक को जल उपकर के बिल नहीं भेजे हैं। माना जा रहा है कि यह उपकर देने वाली हिमाचल सरकार के स्वामित्व वाली परियोजनाएं ही न रह जायें। वैसे भी जल उपकर आयोग का दखल तो इस उपकर के तहत उत्पादक को दिये जाने वाले बिल और जल शक्ति विभाग के मध्य आये किसी विवाद पर ही शुरू होगा। ऐसे में इस उपकर के माध्यम से जो राजस्व जुटाने की योजना बनायी गयी थी उसे पूरा होने में लम्बा समय लगेगा। तब तक यह आयोग एक राजनीतिक बहस का विषय होकर ही रह जायेगा।
इस परिदृश्य में सरकार पर अपनो के ही जो आक्षेप आने शुरू हो गये हैं उनके परिणाम गंभीर होने की आशंका बढ़ती जा रही है। क्योंकि अब तक सरकार ने जितनी गैर विधायकों की ताजपोशीयां की हैं उनमें शायद 95ः से भी अधिक अकेले जिला शिमला से ही है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या जिला शिमला के बाहर कांग्रेस संगठन और कार्यकर्ता है ही नहीं? यह भी चर्चा है कि इतनी सारी ताजपोशीयां शिमला से ही करके यहां के चुने हुये विधायकों के खिलाफ भी समानान्तर सत्ता केन्द्र तो नहीं खड़े किये जा रहे हैं। क्योंकि लोगों को मुख्यमंत्री से काम करवाने के लिये यह सत्ता केन्द्र आसानी से उपलब्ध रहेंगे। इसी के माध्यम से लोगों का अपने मंत्रियों विधायकों के पास या हॉली लॉज जाना भी कम हो जायेगा। इस समय यह आरोप तो मंत्रियों से भी आने शुरू हो गये हैं कि मुख्यमंत्री की अप्रूवल के बाद भी सचिव और विभागाध्यक्ष के स्तर पर इनके काम नहीं हो रहे हैं। शायद सारे अधिकारी मुख्यमंत्री ने अपने ही पास केंद्रित कर रखे हैं।
यहां तक चर्चाएं चल पड़ी हैं कि कल तक जो विधायक आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में जगह पाने के लिये प्रयास कर रहे थे अब वह भी मन्त्री बनने के ज्यादा इच्छुक नहीं रह गये हैं। माना जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच काफी तनावपूर्ण राजनीतिक स्थितियां बनेंगी। एक-एक सीट के लिये मारकाट होगी। भाजपा अभी से आक्रामक होती जा रही है। जबकि कांग्रेस के पास भाजपा के खिलाफ कुछ नहीं है। जो आरोप कल तक बतौर विपक्ष कांग्रेस भाजपा पर सदन के भीतर और बाहर हमले करती थी उन हमलों की धार इन आठ माह में बुरी तरह पूर्ण हो चुकी है क्योंकि सरकार व्यवस्था बदलने में लगी थी। इसी सूत्र के कारण आज भी कांग्रेस कार्यकर्ता स्वयं ही आश्वस्त नहीं हो पा रहा है कि सही में सत्ता बदल चुकी है। सरकार ने अपने आठ माह के कार्यकाल में अपनों से ज्यादा भाजपाइयों के हितों की रक्षा की है। शिमला कांग्रेस का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता था लेकिन अनुपात से अधिक ताजपोशीयों ने इस दुर्ग को भी अन्दर से खोखला कर दिया। इसका असर पूरे प्रदेश पर पढ़ने जा रहा है। क्योंकि जितना प्रतिनिधित्व अकेले शिमला को दे दिया गया उतना अन्य जिलों को दिया जाना संभव ही नहीं होगा। इसके परिणाम स्वरूप कल लोकसभा चुनावों में न विधायकों और न कार्यकर्ताओं के पास कुछ परोसने को होगा। हां यह माना जा रहा है की जोगिन्दर कंवर की ताजपोशी के बाद कांग्रेस के हर उस विद्रोही की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया है जिस पर चुनावों में पार्टी के साथ गद्दारी करने के आरोप लगे हैं।

कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर प्रतिभा के बाद राठौर भी हुये मुखर

जिन लोगों ने चुनावों में कांग्रेस को विरोध किया उनकी ताजपोशी क्यों और कैसे
आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पायी यह सरकार
बेरोजगार युवा होने लगे लामबन्द
मित्रों की ही सरकार होकर रह गयी सुक्खू सरकार
कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर बने मामले तक वापस नहीं हुये

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार को सत्ता में आये अभी आठ माह का ही समय हुआ है। लेकिन इस अल्पकाल में ही यह सरकार अपनों के ही निशाने पर आ गयी है। यह निशाना भी किसी और ने नहीं बल्कि पार्टी की अध्यक्षा एवं सांसद प्रतिभा सिंह तथा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता विधायक कुलदीप राठौर ने साधा है। सरकार पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी किये जाने का आरोप है। प्रतिभा सिंह यह शिकायत राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे से दिल्ली में मुलाकात करके उनके संज्ञान में ला चुकी है। कुलदीप राठौर ने शिमला में एक पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री से मांग की है कि जिन सैकड़ों कार्यकर्ताओं के दम पर पार्टी सत्ता में आयी है उन्हें उचित मान सम्मान दिया जाना चाहिये। राठौर ने कहा है कि पिछली सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए दर्जनों कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले बने जो अब तक वापस ले लिए जाने चाहिए लेकिन ऐसा हुआ नहीं है राठौर के मुताबिक उनके अपने खिलाफ भी कई मामले बने हैं। लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने तो अधिकारियों को लक्ष्मण रेखा न लांघने की चेतावनी देते हुये यहां तक कहा है कि जो प्रस्ताव विभाग की ओर से सरकार को भेजे जाते हैं वह दिल्ली पहुंचते-पहुंचते कैसे बदल जाते हैं।

 

सुक्खू सरकार के खिलाफ यह आम आदमी की शिकायत है कि उसके काम नहीं हो रहे हैं। यह पता ही नहीं चलता कि उनके प्रतिवेदन कहां चले जाते हैं। कुछ मंत्रियों की भी यही शिकायत है कि विभाग में सचिव और निदेशक के स्तर पर उनके आदेशों की अनुपालना नहीं हो रही है। चर्चा है कि मंत्री जब अपने विभाग के सचिव की शिकायत लेकर मुख्यमंत्री के पास गये और सचिव को बदलने का आग्रह किया तो मुख्यमंत्री ने सचिव को बदलने की बजाये मंत्री का ही विभाग बदलने की पेशकश कर दी। सरकार में शक्तियों के इस जुबानी केंद्रीयकरण पर उस समय मोहर लग गयी जब एक बड़े अधिकारी को मुख्यमंत्री ने डांट लगा दी। चर्चा है कि बड़े अधिकारी के कार्यालय में मुख्यमंत्री से अनुमति प्राप्त कुछ आवेदन/प्रतिवेदन आगामी अनुपालना के लिये पहुंचे थे। अधिकारी ने उन पर तुरन्त प्रभाव से अमल कर दिया। अमल करने की रिपोर्ट लेकर अधिकारी मुख्यमंत्री को सूचित करने उनके कार्यालय पहुंच गये। मुख्यमंत्री से मिलने गये तो उन्हें पी.एस. के कमरे में प्रतीक्षा करने के लिये कह दिया। कुछ समय बाद मुख्यमंत्री वहां आये और अधिकारी को डांट दिया कि उनसे बिना पूछे उनकी अनुमतियों पर अमल कैसे कर दिया। वह तो हरके आवेदन पर अप्रूवल कर देते हैं लेकिन करना वही होता है जिसका वह संदेश करें। मुख्यमंत्री कार्यालय में घटा यह किस्सा सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैंडल तक हर एक की जुबान पर है। मुख्यमंत्री को इस तरह के केंद्रीयकरण की आवश्यकता क्यों आ पड़ी है इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है और शायद यह दिल्ली दरबार तक भी पहुंच चुका है।

 

इस समय सरकार बनने के बाद जितने गैर विधायकों की ताजपोशी की गयी है उनका एक ही मानदण्ड रहा है मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत मित्रता। इस मित्रता में दो-चार ऐसे लोग भी हैं जो भाजपा के समर्थक और कांग्रेस के विरोधी रहे हैं। चुनावों में ऐसे लोगों ने कुछ स्थानों पर कांग्रेस प्रत्याशियों का खुलकर विरोध किया है। इस पर तो यहां तक चर्चा चल पड़ी है कि ऐसा किसी निश्चित योजना के तहत तो नहीं किया गया था। माना जा रहा है कि जल्द ही इस दिशा में कोई बड़ा खुलासा सामने आने वाला है। शायद इसी वस्तुस्थिति के कारण हाईकमान के रणनीतिकार के सर्वे से लेकर एक टी.वी. चैनल और ज्योतिष की भविष्यवाणीयों तक में आ रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रदेश की चारों सीटें हार जायेगी। इन आकलन में इसलिये दम लग रहा है क्योंकि यह सरकार आठ माह में सात हजार करोड़ का कर्ज लेने के बाद भी आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पायी है। बेरोजगार युवा सरकार के खिलाफ लामबन्द होने लग गया है। विपक्ष सरकार पर हमलावर होना शुरू हो गया है। भाजपा यह आरोप लगा रही है कि यह तो केवल मित्रों की सरकार है आम आदमी से इसका कोई लेना देना नहीं है। कोई भी कांग्रेस नेता भाजपा के आरोपों का कारगर जवाब नहीं दे पा रहा है। अब यह देखना शेष है कि कांग्रेस हाईकमान इस स्थिति का क्या संज्ञान लेती है। क्योंकि सरकार अभी जनता को दी गारंटीयों पर कुछ ज्यादा नहीं कर पायी है। ओल्ड पैन्शन को लेकर भी निगमों/बोर्डों के कर्मचारियों के प्रति अभी सरकार स्थिति स्पष्ट नहीं कर पायी है। कर्मचारी इस पर आन्दोलन तक की बात कर रहे हैं। हिमाचल सरकार की व्यवहारिक स्थिति को यदि भाजपा ने प्रदेश से बाहर भी उठा दिया तो पार्टी के लिये एक बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। क्योंकि हिमाचल सरकार पिछली भाजपा सरकार के प्रति जिस तरह का नरम रुख लेकर चल रही है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे पड़े हैं।

 

विक्रमादित्य सिंह की अफसरशाही को चेतावनी सरकार में संभावित विस्फोट का पहला संकेत

  • केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर प्रदेश के लिए तीन हजार करोड़ का प्रबंध एक बड़ी उपलब्धि
  • सरकार में हर उपेक्षित की आवाज बनने की ओर है यह पहला कदम
  • किसी दण्डित कर्मचारी नेता के हमलों से यह कदम नहीं रुकेंगे
  • सरकार को अपनी कार्यप्रणाली सुधारने का भी पहला संकेत है ब्यान

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के पदभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री ने सत्ता संचालन के सूत्र के रूप में प्रदेश की जनता से यह कहा था कि वह राज करने नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन करने आये हैं। इस आठ माह में व्यवस्था परिवर्तन के प्रयोग से जो अवस्था शासन-प्रशासन में उभर कर आयी है उसके परिणाम स्वरूप आज सुक्खू के मंत्री अपने में ही आमने सामने खड़े होने के कगार पर पहुंच गये हैं। शिमला टैक्सी यूनियन विवाद में पहली बार मंत्री आपस में उलझे। उसके बाद अवैध खनन पर मंत्री टकराव में आये। सेब ढुलाई के मामले में तो बागवानी मंत्री और मुख्यमंत्री के ही अलग-अलग स्टैंड सामने आ गये हैं। अब लोक निर्माण मंत्री को तो पत्रकार वार्ता के माध्यम से यह कहने की नौबत आ गयी की अधिकारी अपनी सीमा न लांघें। पार्टी अध्यक्षा को तो राष्ट्रीय अध्यक्ष से यह कहना पड़ गया है कि वह अपने को आहत और उपेक्षित महसूस कर रही हैं। यह सब कुछ प्रदेश की जनता के सामने खुलकर आ चुका है क्योंकि व्यवहारिक सच यही है। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नीचे तक सारा विपक्ष इस पर तंज कर रहा है। इस तरह सरकार की जो तस्वीर आम आदमी में बनती जा रही है उसको सामने रखते हुये यह नहीं लगता कि आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा कर पायेगी। हाईकमान के पास भी एक सर्वे के माध्यम से यह स्थिति पहुंच चुकी है। यदि समय रहते हालात पर नियन्त्रण न पाया गया तो इससे राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के लिये स्थितियां कठिन हो सकती हैं।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि अब तक जो घटा है उस पर कुछ विस्तार से चर्चा की जाये। स्मरणीय है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदेश की जनता को दस गारंटीयां जारी की थी। यह गारंटीयां जारी करते हुये यह नहीं कहा गया था कि इन्हें अगले विधानसभा चुनाव के चुनावी वर्ष में लागू किया जायेगा। बल्कि इन गारंटीयों पर लोकसभा चुनावों में जनता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से जवाब मांगेगी। क्योंकि गांव में यह सवाल कार्यकर्ता से ही पूछे जायेंगे। वहां पर बड़ा नेता तो उपलब्ध नहीं रहता है। मंत्रियों में जो यह आमने-सामने की स्थितियां बनती जा रही है इस पर सवाल पूछे जायेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज कांग्रेस का कार्यकर्ता ही अपने को हताश और उपेक्षित महसूस कर रहा है। क्योंकि ब्लॉक और जिला स्तर पर वही प्रशासनिक व्यवस्था बैठी हुई हैं जो भाजपा शासन के दौरान वहां पर थी और उसी के खिलाफ आम कार्यकर्ता का गुस्सा था रोष था। व्यवस्था के नाम पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को यह लग ही नहीं रहा है कि सरकार बदल गयी है। क्योंकि सरकार बदलने के बाद दो माह के भीतर ब्लॉक जिला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण और प्लानिंग कमेटीयां गठित होती थी जिनमें पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सदस्य नामित किया जाता था और इस तरह करीब दो हजार कार्यकर्ता अपने को सम्मानित महसूस करते थे। सरकार की सहायता के लिये एक समानान्तर व्यवस्था खड़ी हो जाती थी। विभिन्न निगमों/बोर्डों में संचालन मण्डल गठित किये जाते थे। इन कदमों से संगठन मजबूत होता था। सरकार बनने के बाद संगठन को मजबूती प्रदान करना सरकार का दायित्व होता है। लेकिन सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। कार्यकर्ता जब संगठन के पदाधिकारियों से इस बारे में कोई बात उठाते हैं तो यही निष्कर्ष निकलता है कि सरकार जानबूझकर संगठन को कमजोर कर रही है।
भाजपा शासन में जनता महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त थी। इसी से सत्ता परिवर्तन हुआ था। जनता को यह आशा थी कि उसे महंगाई और बेरोजगारी से राहत मिलेगी। लेकिन इन आठ माह में इन दोनों मुहानांे पर जनता को घोर निराशा ही अब तक मिली है। क्योंकि बिजली पानी और राशन हर चीज के दामों में बढ़ौतरी की गयी है। दो बार तो डीजल के रेट बढ़ाये गये हैं जिसका असर हर चीज पर हुआ है क्योंकि ट्रक यूनियनों ने इसके कारण माल भाड़े के रेट बढ़ा दिये हैं। युवाओं को रोजगार देने के मामले में भी यह सरकार कुछ नहीं कर पायी है। बेरोजगार युवा सरकार के खिलाफ लामबन्द होता जा रहा है। सरकार के आते ही एक लाख युवाओं को रोजगार देने की गारंटी दी गयी थी। लेकिन रोजगार देने के बजाये उस अदारे को ही बन्द कर दिया गया जिसके माध्यम से रोजगार मिलता था। लोक सेवा आयोग को यह अतिरिक्त काम सौंपा गया है और इससे उसका काम भी प्रभावित हो गया है। क्योंकि वहां पर कोई नये संसाधन इस काम के लिये नहीं दिये गये हैं। जबकि वहां पर सदस्य का एक पद खाली चला आ रहा है जिसे भरकर आयोग के संसाधन बढ़ाये जा सकते थे। आम आदमी की भी यही शिकायत है कि उसके काम नहीं हो रहे हैं। अभी स्थानान्तरणों को लेकर महीने के अंतिम चार दिनों में ही विचार किये जाने की जो नीति घोषित की गयी है उस पर विधायक रवि ठाकुर ने ही खुलेआम नाराजगी व्यक्त कर दी है।
इस समय आम आदमी सरकार से संतुष्ट नहीं है उसे लग रहा है की गारंटीयां देकर उससे छल किया गया है। सरकार नाजुक वित्तीय स्थिति के नाम कीमतें बढ़ाने के अतिरिक्त संसाधन जुटाने का और कोई व्यवहारिक उपाय कर नहीं रही है। कीमतें इस तरह से बढ़ाई जा रही है कि लोग जल्द ही इसे भूल जायेंगे। इस आपदा में भी सरकार राहत राशि बढ़ाने की घोषणाएं तो करती जा रही हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से पीड़ित तक यह सहायता पहुंचने में लम्बा समय लगेगा। ऐसे हालात में जब मंत्रियों/विधायकों के लिये भी यह स्थिति आ जाये कि अफसरशाही इन्हें भी हल्के से लेना शुरू कर दें तो स्थिति निश्चित रूप से विस्फोटक होने के कगार पर पहुंच चुकी है। यह विक्रमादित्य की पत्रकार वार्ता से स्पष्ट हो गया है। विक्रमादित्य सिंह का अफसरशाही को यह कहना कि वह लक्ष्मण रेखा न लांघें और इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा अपने में बहुत कुछ संकेत दे जाता है। विक्रमादित्य सिंह ने दिल्ली जाकर केंद्रीय मंत्रियों के सामने जिस तरह से पक्ष रखा है उससे प्रदेश के लिये उन्होंने तीन हजार करोड़ का प्रबंध करके अपनी सूझबूझ और कार्यकुशलता का परिचय दे दिया है। उनके कदमों को किसी दण्डित कर्मचारी नेता के ब्यानों के माध्यम से रोकना संभव नहीं होगा। इस पत्रकार वार्ता के बाद संगठन और सरकार में हर उस व्यक्ति की उम्मीद और आवाज बन जायेंगे जो इस वातावरण में अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

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