Friday, 19 December 2025
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मनी लाॅंडरिंग प्रकरण में वक्कामुल्ला से लिया गया ऋण केवल कागजी कारवाई, ईडी जांच से उभरे संकेत

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के मनीलाॅंडरिंग प्रकरण में गिरफ्तार उनके एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की न्यायिक हिरासत चार दिन के लिये और बढ़ा दी गयी है। अब उन्हें सात तारीख को फिर अदालत में पेश किया जायेगा। इस बार फिर ईडी ने इस मामले की जांच अभी तक पूरी न होने का तर्क अदालत में रखा है। ईडी ने इस मामले की जांच में 23 मार्च को करीब आठ करोड़ की चल-अचल संपत्ति अटैच की थी। इस संपत्ति में वीरभद्र, प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य और अपराजिता कुमारी के कुछ एफडीआर, एलआईसी पालिसियां और कुछ बैंक खातों के अतिरिक्त ग्रेटर कैलाश में प्रतिभा सिंह के नाम मकान शामिल है। 23 मार्च के आदेश में सारा कुछ एलआईसी पालिसीयों और संशोधित आयकर रिर्टनज तथा सेब बागीचे की आये के गिर्द ही है। इस आदेश में वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से जुडे प्रकरण की जांच अभी तक पूरी न होने का स्पष्ट उल्लेख है।
वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से करीब चार करोड़ का मुक्त ऋण लेने का खुलासा प्रतिभा सिंह के चुनाव शपथ पत्र से सामने आया है। इसी खुलासे के बाद वक्कामुल्ला की एक कंपनी से विक्रमादित्य की कंपनी के नाम भी ऋण लिया जाना सामने आया है। महरौली में फार्म हाऊस की खरीद भी इसी के बाद सामने आयी है और इस प्रकरण की जांच अब सूत्रों के मुताबिक लगभग पूरी हो चुकी है। पिछले दिनों जब आनन्द चौहान की जमानत याचिका खारिज हुई थी उस आदेश में भी जांच को लेकर खुलासे सामने आये हैं। करीब 28 पन्नो के इस आदेश के मुताबिक वक्कामुल्ला से जो ऋण लिया दिखाया गया है। उसकी प्रमाणिकता पर भी सन्देह है। ईडी के उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक यह सारा ऋण भी केवल कागजी कारवाई है और ऋण के माध्यम से इस धन का भी शोधन किया गया है। कुछ और स्थानों पर भी संपत्तियां होने की संभावना जताई गयी है। इस सबमें प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह की सक्रिय भूमिका से ही यह लाॅंडरिंग हुई है। इस लाॅंडरिंग में आनन्द चौहान तथा चन्द्र शेखर की भी भूमिका मानी जा रही है और इसी के स्पष्टीकरण के लिये इन सबको ईडी में तलब भी किया गया था। माना जा रहा है कि इस संद्धर्भ में भी एक और अटैचमैन्ट आर्डर जारी किया जा सकता है।
ईडी के प्रकरण के साथ ही सीबीआई की चार्जशीट का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है और उसमें अन्ततः चालान दायर करने की अनुमति मिलेगी ही। इस चालान का ठोस आधार आनन्द चौहान और वीरभद्र सिंह के बीच 15.6.2008 को हस्ताक्षिरत हुआ एग्रीमैन्ट हैं। क्योंकि एक एग्रीमैन्ट विश्म्बर दास के साथ 17.6.2008 को होता है। दोनो अनुबन्धों की प्रमाणिकता संदिग्ध है तथा इनमें प्रयुक्त स्टांप पेपर तो नासिक प्रैस से आये ही बहुत बाद में हैं। अनुबन्धों को लेकर उठे यह सवाल ही पूरे प्रकरण की आपराधिक धुरी बन गये हैं। इन तथ्यों के आधार पर सीबीआई को चालान पेश करने की अनुमति मिलना तय माना जा रहा है। इस तरह वीरभद्र का यह सारा प्रकरण अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है। जंहा से कांग्रेस की राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय है क्योंकि इस प्रकरण में आरोप तय होने के साथ राजनीति में गर्माहट आ जायेगी।

सीआईसी के लिये चहतों में प्रतिस्पर्धा

शिमला/शैल। प्रदेश का मुख्य सूचना आयुक्त कौन होगा यह सवाल एक बार फिर चर्चा में आ गया है इस बार चर्चा के कारण है कि एक तो सरकार ने इसके लिये चयन कमेटी का गठन कर दिया है। इसमें मुख्मन्त्री और नेता प्रतिपक्ष को पदेन सदस्य है। इनके साथ वरिष्ठ मन्त्राी विद्या स्टोक्स को तीसरा सदस्य नामित किया गया है। इस पद के लिये करीब डेढ़ सौ आवेदन आये हुए हैं। इन्हे कैसे शार्ट लिस्ट किया जायेगा और उसके लिये क्या मानदण्ड रहेगा यह अभी तक स्पष्ट नही किया गया है। 

इस चर्चा का दूसरा कारण है कि इसके एक प्रबल दावेदार प्रदेश लोकसेवा आयेगा के वर्तमान अध्यक्ष के एस तोमर है तोमर ने इस पद के लिये आवेदन कर रखा है लेकिन संविधान के मुताबिक लोकसेवा आयोग के सदस्य या अध्यक्ष इस पद के बाद सरकार में कोई और पद स्वीकार नही कर सकते। तोमर के आवेदन पर इसी पद के एक अन्य प्रतिद्वंद्धी देवाशीष भट्टाचार्य ने महामहिम राज्यपाल को एक शिकायत भेज कर तोमर की दावेदारी पर एतराज जताते हुए उनके खिलाफ कारवाई की मांग कर रखी है। राजभवन से यह शिकायत सरकार के विधि विभाग के पास राय के लिये पहुंच चुकी है। विधि विभाग क्या राय देता है। इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
इस परिदृश्य में इस पद के अन्य दावेदार सक्रिय हो गये हैं। चनय कमेटी में बहुमत से फैसला होना है इसलिये मुख्यमन्त्री का आर्शीवाद जिसको प्राप्त होगा वही सीआईसी बन जायेगा । अब मुख्यमन्त्री के आर्शीवाद के लिये चहतों में ही प्रतिस्पर्धा रहेगी यह स्वभाविक है। इसमें कौन बाजीमार लेता है यह देखना दिलचस्प बन गया है क्योंकि इसमें वन विभाग के एक नेगी को सबसे ऊपर माना जा रहा है।

IFS संजीव चतुर्वेदी के मामले में आये कैट के फैंसले से नड्डा की नीयत और निति सवालों में

शिमला/शैल। हिमाचल से भाजपा के राज्यसभा सांसद केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी नड्डा को आने वाले विधानसभा चुनावों में मुख्यमन्त्री के दावेदारों में गिना जा रहा है। बल्कि जबसे उनकी दावेदारी के संकेत उभरे हैं तभी से प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। लेकिन इस दावेदारी के बाद उनकी कार्यशैली पर भी नजरें जाना शुरू हो गयी है। क्योंकि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ फतवा लेकर सत्ता में आयी है। मोदी ने दावा किया है कि न खाऊंगा और न ही खाने दूंगा। लेकिन नड्डा मोदी के इस मानक पर खरे उतरते नजर नही आ रहे हैं। जब सांसद बने थे उस समय देश के प्रतिष्ठित संस्थान एम्ज में तैनात चीफ विजिलैन्स अफसर आई एफ एस संजीव चतुर्वेदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिये काफी सुर्खियों में थे। लेकिन नड्डा ने संजीव चतुर्वेदी को एम्ज से हटाने के लिये स्वास्थ्य मन्त्रालय को पत्र लिखे। लेकिन इसी दौरान केन्द्र में सरकार बदल गयी। डा. हर्षवर्धन स्वास्थ्य मन्त्री बने। उन्हे भी उसी तर्ज पर नड्डा ने पत्र लिखे। इसी बीच नड्डा ही स्वास्थ्य मन्त्री बन गये। बतौर स्वास्थ्य मन्त्री नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं और इस नाते संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ कारवाई करना आसान हो गया।
एम्ज के निदेशक ने 17.1.16 को संजीव चतुर्वेदी को एक डिस्प्लेजर मैमोरण्डम जारी किया। जिसमें कहा गया कि
इसके बाद 30 मार्च को इस मैमोरण्डम पर नड्डा ने भी बतौर अध्यक्ष एम्ज अपनी स्वीकृति दे दी। इस पर चतुर्वेदी ने इन पत्रों को वापिस लेने के लिये निदेशक को ज्ञापन दिया जिसे स्वीकार नही किया गया। बल्कि यह पत्रा सचिव स्वास्थ्य, एंवम् परिवार कल्याण सचिव वन एवम् पर्यावरण भारत सरकार तथा मुख्य सचिव उत्तराखंड को भी भेज दिये गये। चतुर्वेदी आई एफ एस हैं इस नाते सचिव वन एवंम् पर्यावरण को यह पत्र भेजा गया और एम्ज का कार्यकाल पूरा करने पर उतराखण्ड वापिस जाना था इसलिये वहां के मुख्य सविच को भी यह पत्र भेजा गया। एक ओर संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ संसद के 2015 के शीतकालीन सत्र के दौरान गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के लिये यह मेमो जारी हो रहे थे वहंी दूसरी ओर अनुकरणीय सेवाओं के लिये उन्हें मेगासेसे अवार्ड से नवाजा गया। चतुर्वेदी ने संसद सत्र के दौरान किस तरह की अनुशासन हीनता बरती, किस अधिकारी के आदेशों की अवेहलना की गयी इस सबका कोई जिक्र उन पत्रों में नही है जो उन्हें जारी किये गये। यहां तक की संजीव चतुर्वेदी ने कभी नड्डा के साथ काम भी नही किया है। लेकिन नड्डा ने एम्ज के निदेशक द्वारा जारी किये गये मेमो को ही अनुमति प्रदान कर कारवाई को अंजाम दे दिया। चतुर्वेदी को अपना पक्ष तक रखने का अवसर नही दिया गया।
अपने खिलाफ हुई एकतरफा कारवाई को चतुर्वेदी ने कैट में चुनौती दी। कैट ने सारा रिकार्ड देखने के बाद इन मैमोज़ को रद्द करते हुए कहा है कि कैट का चतुर्वेदी के पक्ष में आया फैसला नड्डा की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खडे़ करता है।
क्योंकि चुतर्वेदी एम्ज में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली लडाई लड़ रहे थे। एम्ज के भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई में शिकायतें थी। इन शिकायतों पर एम्ज में अपने स्तर पर की गयी कारवाई से सीबीसी को सूचित करने के लिये 9.1.14, 17.12.14 और 5.10.15 को सीबीआई ने पत्रा भेजे थे। इसी संद्धर्भ में जब संजीव चतुर्वेदी सीबीआई के निेर्देशों का पालन कर रहे थे तभी वहां से खदेड़ने के लिये यह मेमो जारी करने का खेल शुरू हो गया और नड्डा भी इस खेल का एक पात्रा बन गये।
एम्ज में बडे स्तर पर भ्रष्टाचार है यह सीबीआई के 4.2.16 को भेजे पत्र से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है। इस भ्रष्टाचार की जांच क्यों नही होने दी जा रही है? भ्रष्टाचारीयों को बचाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? स्वास्थ्य एंवम परिवार कल्याण मन्त्री के नाते नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में बतौर केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री और एम्ज के अध्यक्ष होने के नाते भ्रष्टाचार की गहन जांच करवाने और भ्रष्टों को सजा दिलाने की जिम्मेदारी उन पर आती है। लेकिन यहां पर भ्रष्टाचार की जांच करवाने की बजाये उस अधिकारी को प्रताड़ित किया गया जो इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था।



 






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