Friday, 19 December 2025
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क्या वक्कामुल्ला को कोठी मिलेगा

शिमला/शैल। जिस वक्कामुल्ला से मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह की पत्नी ने वाकायदा अपने चुनाव शपथ पत्र में अपने और वीरभद्र सिंह के नाम तीन करोड़ नब्बे लाख का मुक्त ऋण लेना दिखाया है। वह वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर 17 मैगावाट के साई कोठी हाईडल परियोजना को हासिल करने के लिये अदालती लड़ाई लड़ रहा है। एक समय प्रदेश सरकार ने चम्बा की साई कोठी हाईडल परियोजना वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को आंवटित की थी लेकिन आंवटन के बाद वक्कामुल्ला इस परियोजना की अपफ्रन्ट प्रिमियम राशी जमा नहीं करवा पाया और न ही काम शुरू कर पाया। इस कारण सरकार ने यह आवंटन रद्द कर दिया।
जब यह आंवटन रद्द हुआ उसी दौरान वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर ने प्रतिभा सिंह और वीरभद्र को करीब चार करोड़ का मुक्त ट्टण देकर सबको चैंका दिया। यही नही इसी वक्कामुल्ला ने वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य की कंपनी को भी करीब डेढ करोड़़ का ऋण दिया है। वक्कामुल्ला की एक अन्य कंपनी से प्रतिभा सिंह, अपराजिता कुमारी और अमित पाल सिंह ने एक करोड़ के शेयर खरीद रखे हैं। धूमल पुत्रों ने इस ऋण को लेकर एक बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया था। आरोप लगा था कि यह सारा लेन देन इस प्रोजेक्ट की एवज में हुआ है। इसी परिदृश्य में वक्कामुल्ला ने साई कोठी प्रोजेक्ट के रद्द हुए आंवटन को पुनः बहाल करने की गुहार लगायी।यह गुहार मान ली गयी और आवंटन बहाल कर दिया गया। लेकिन इसमें अपफ्रन्ट प्रिमियम बढ़ाकर एक करोड़ से भी थोड़ा ज्यादा कर दिया गया। लेकिन समय विस्तार हासिल करने के वाबजूद भी वक्कामुल्ला यह राशी जमा नही करवा पाये। सरकार ने नवम्बर 2013 में फिर यह आवंटन रद्द कर दिया।
आंवटन रद्द किये जाने को वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। उसका एतराज है कि समय विस्तार देने के साथ अपफ्रन्ट प्रिमियम की राशी नही बढ़ायी जा सकती। सरकार अदालत में अपने स्टैण्ड पर कायम है। अब 22 अगस्त को यह मामला मुख्य न्यायधीश मंसूर अहमद मीर और जस्टिस त्रिलोक चैहान की खण्डपीठ में लगा था। वक्कामुल्ला ने इस पर बहस के लिये समय मांगा और अब 29.11.2016 को इसकी सुनवाई होगी। वक्कामुल्ला वीरभद्र परिवार को ऋण देने के मामले में ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं। ईडी की आंशका है कि यह मुक्त ऋण देने की बात केवल पेपर एंट्री है। अब वक्कामुल्ला को अपनी वित्तिय हैसियत प्रमाणित करने की चुनौती है और उस चुनौती में यह साई कोठी प्रोजेक्ट भी एक बड़ा सवाल बन कर रास्ते में खडा हो गया है।

वीरभद्र और सुभाष आहलूवालिया के मामलों में ईडी का अलग-अलग आचरण सवालों में

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया के मामलों में ईडी के अलग-अलग आचरण को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। स्मरणीय है कि मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई में दर्ज आय से अधिक संपत्ति का मामला ईडी में उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी तक जा पहुंचा है। वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय से लगातार सुरक्षा की गुहार लगा रहे हंै । लेकिन अभी तक सफलता नही मिली है। जबकि सुभाष आहलूवालिया के मामले में ईडी एकदम खामोश बैठ गया है। ईडी की इस खामोशी को लेकर जांच ऐजैन्सी की निष्पक्षता और उसमें संभावित जुगाड़तन्त्र को लेकर हर तरह के सवाल उठने लग पड़े हैं।
स्मरणीय है कि ईडी में 2015 के शुरू में ही दो वकीलों अजय पराशर और अनिल कालिया द्वारा कालेधन पर गठित एसआईटी के सदस्य सचिव एम एल मीणा को सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ भेजी शिकायत मिली थी। शिकायत में आहलूवालिया के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और मनीलाॅंडरिंग के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। कालेधन पर गठित एसआईटी को भेजी यह शिकायत जब सामान्य विभागीय प्रक्रिया के तहत ईडी के पास पहुंची तो इसे अगली कारवाई के लिये शिमला कार्यालय को भेजा गया था। ईडी के शिमला कार्यालय में पहंुची इस शिकायत पर सुभाष आहलूवालिया को अपना पक्ष रखने के लिये नोटिस भेजा गया था। नोटिस में यह कहा गया था कि अमेरीका में उनके कथित कज़िन नरेश आहलूवालिया के साथ उनके रिश्तों तथा नरेश आहलूवालिया के विषय में विस्तृत जानकारी जानने के लिये उन्हें तलब किया गया है। लेकिन जैसे ही इस नोटिस के भेजे जाने के समाचार छपे उसी के साथ ईडी के शिमला स्थित सहायक निदेशक भूपेन्द्र नेगी की प्रतिनियुक्ति रद्द किये जाने को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र भेज दिया। इस पत्रा के साथ बढ़े विवाद पर भाजपा ने प्रदेश विधान सभा में हंगामा खड़ा कर दिया था। सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी। उस समय मुख्यमन्त्री ने सदन को बताया था कि सुभाष आहलूवालिया का मामला चण्डीगढ़ स्थानान्तरित हो चुका है। चण्डीगढ़ कार्यालय के मुताबिक यह मामला दिल्ली स्थानान्तरित हो चुका है। यह एक गंभीर शिकायत थी जिस पर सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी।
लेकिन इस विवाद के बाद आज तक इस शिकायत को लेकर और कोई कारवाई सामने नहीं आयी है। शिकायत में 103 करोड़ के कालेधन तथा सोलह बैंक खातों और उन्नीस संपतियों का विवरण है। सबसे रोचक पक्ष यह है कि जब यह शिकायत चर्चा में आयी थी उस समय वीरभद्र परिवार के खिलाफ सीबीआई या ईडी में कहीं कोई मामला नहीं था। लेकिन उसके बाद वीरभद्र के परिवार के खिलाफ दर्ज मामले कहीं के कहीं पहुंच गये है। जबकि सुभाष के मामलों को भाजपा और ईडी तक सभी भूल गये हैं। ईडी के इस तरह के आचरण को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। स्मरणीय है कि धूमल शासन में विजिलैन्स द्वारा शुरू की गई इस जांच का चालान विशेष न्यायाधीश वन की अदालत में पहुंचा था लेकिन इस पर कोई फैंसला आने से पहले ही सरकार बदल गयी और वीरभद्र सत्ता में आ गये तथा इस मामले को वापिस ले लिया गया । इसी कारण यह शिकायत नये सिरे से उठी और ई डी तक पहुंची है। यह शिकायत पाठकों के सामने यथास्थिति रखी जा रही है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या वीरभद्र परिवार को सीबीआई और ईडी मामलों में राहत मिल पायेगी

शिमला/शैल। ईडी में वीरभद्र परिवार के एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की लगातार चल रही गिरफ्तारी और 9 अगस्त को प्रतिभा सिंह तथा 12 अगस्त को इन्ही के आयकर के वकील चन्द्रशेखर के जांच ऐजैन्सी के सामने पेश होने के बाद यह सवाल चर्चा में चल रहा है कि क्या इन मामलों में इस परिवार को राहत मिल पायेगी। किसी भी मामलें में दर्ज एफआईआर यदि रद्द हो जाती है या उसमें जांच के बाद ‘‘कुछ भी नही पाया गया’’ की रिपोर्ट अदालत में दायर नही हो जाती है तो ऐसे मामलों में राहत की संभावना नही के बराबर रह जाती है। वीरभद्र परिवार दोनांे मामलों में दर्ज एफ.आई. आर. को रद्द करने और उनकी संभावित गिरफ्रतारी पर स्थायी रोक लगाये जाने की लगातार गुहार लगा रहा है लेकिन अब तक ऐसा हो नही पाया है।
स्मरणीय है कि सीबीआई ने 23.9.2015 को आय से अधिक संपति का मामला दर्ज किया था और वीरभद्र के आवास पर छापामारी की थी। सीबीआई के इस कदम को हिमाचल उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी और दर्ज एफआईआर को रद्द करने की गुहार लगायी गयी। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को सुनवाई के लिये स्वीकारते हुए 1.10.2015 को इसमें सीबीआई को निर्देश जारी करते हुए इसकी जांच जारी रखने लेकिन अभियुक्तों के ब्यान दर्ज करने या अदालत में चालान दायर करने के लिये उच्च न्यायालय की पूर्व अनुमति लेने की शर्त लगा दी। हिमाचल उच्च न्यायालय के इन निर्देशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए सीबीआई ने मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रंासफर करने का आग्रह कर दिया। सीबीआई के आग्रह को स्वीकारते हुए सवोच्च न्यायालय ने 5.11.2015 को मामला दिल्ली उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया। मामला ट्रांसफर होने के बाद सीबीआई ने हिमाचल उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों को रद्द करने की गुहार दिल्ली उच्च न्यायालय से लगा दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 6 अप्रैल को हिमाचल उच्च न्यायालय के निर्देशों में आंशिक संशोधन करते हुए प्रार्थीयों से पूछताछ की अनुमति दे दी। इस अनुमति के बाद वीरभद्र सीबीआई में पेश हुए हैं। 6 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिखा है कि Now the situation has changed as statements of some of the witnesses been recorded under Section 164 Cr. P.C. and some stamp papers have also been recovered which create suspicion on the genuineness of MOU dated 15.06.2008.
दूसरी ओर सीबीआई की एफआईआर के बाद 27.10.2015 को ईडी ने इसी आधार पर मनी लाॅडंरिंग का मामला दर्ज कर लिया। ईडी ने भी कई स्थानों पर छापामारी की है। ईडी ने उसके बाद वीरभद्र और प्रतिभा सिंह को अपना पक्ष रखने के लिये कई बार बुलाया और नही आने के बाद 23.3.2016 को परिवार की करीब आठ करोड़ की संपति अटैच कर ली। इस अटैचमैन्ट में अपराजिता कुमारी के 15,85,639 तथा विक्रमादित्य के 62,86,746 रूपये हैं। ईडी की इस कारवाई को अपराजिता और विक्रमादित्य ने CWP 3008/16 के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। 6 अप्रैल को सुनवाई के लिये आए इस मामले पर 12 अप्रैल को ईडी ने एडज्यूडिकेटिंग आथाॅरिटी के पास मनीलाॅंडरिंग एक्ट की धारा 5 (5) के तहत शिकायत दायर कर दी। जिसे CM NO 12627/16 के तहत चुनौती दी गयी और उच्च न्यायालय ने अटैचमैन्ट आदेश को जारी रखते हुए इस पर अगली कारवाई के लिये रोक लगा दी। इसी बीच ईडी ने आनन्द चौहान को आठ जुलाई को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी से अपनी गिरफ्तारी की आंशका जताते हुए वीरभद्र और प्रतिभा सिंह ने अदालत से अपनी सुरक्षा की गुहार लगा दी। अदालत ने इनकी गिरफ्तारी पर कोई रोक नही लगायी है। ईडी ने प्रतिभा सिंह को 28 जुलाई को पेश होने का नोटिस भेजा था लेकिन वह पेश नही हुई। 29 जुलाई को यह मामला सुनवाई के लिये लगा था। उस दिन प्रतिभा सिंह ने 9 अगस्त को ईडी जांच में पेश होने और जांच में सहयोग देने का अनुग्रह अदालत में रखा।
इस पर प्रतिभा सिंह 9 अगस्त को जांच में शामिल हुई। जांच में शामिल होने के बाद की गयी अगली कारवाई को लेकर स्टेट्स रिपोर्ट अदालत में रखी जायेगी। आर्डर में लिखा है कि Status report shall be filed regard to the further investigation carried out by the respondent before the next date. अगली तारीख 24 अगस्त है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि 24 अगस्त तक ईडी अगली जांच को भी अजांम देगा। ईडी ने 10-11 और बारह अगस्त को कुछ लोगों को बुला रखा था। जिसमें चुन्नी लाल और चन्द्रशेखर भी थे। सीबीआई के संद्धर्भ में 6 अप्रैल को अदालत में आ चुका है कि कुछ गवाहों के 164ब्तच्ब् के तहत ब्यान हो चुके हैं। स्मरणीय है कि चुन्नी लाल के मुनीम को सीबीआई ने पकडा था और उसके ब्यान करवा लिये गये थे। 8 जुुलाई को आनन्द चौहान के साथ चुन्नी लाल को भी पकड़ा गया था। सूत्रों के मुताबिक चुन्नी लाल भी ब्यान दे चुका है क्योंकि मुनीम के ब्यान के बाद उसके पास कोई और विकल्प शेष नही था। अब इस मामले में मेघराज, कनुप्रिया, स्टांप पेपर विक्रेता और चन्द्रशेखर ऐसे व्यक्ति हैं जो इसमें कहीं न कहीं जुड़े हुए है। इन सब की भूमिका सेब बागीचे की आय से लेकर उसकी बिक्री तथा संशोधित आयकर रिटर्नज दायर किये जाने के साथ जुडी हुई है। यदि बागीचे से छः करोड़ का सेब होना प्रमाणित नही होता है तो यह सब मनीलाॅडरिंग में अभियुक्तों की ़श्रेणी में आ सकते हैं।
इसी तरह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से लिये गये ऋण की स्थिति है यदि उसके पास ऋण देने की क्षमता प्रमाणित न हो सकी तो यह लेनदेन भी मनीलाॅडरिंग माना जायेगा। इसी ऋण के बाद महरौली के फार्म हाऊस की खरीद हुई और गढ्ढे परिवार इसमें कुछ अदायगी ब्लैक में होने की बात पहले ही स्वीकार कर चुका है। इसी के साथ ईडी में एक समय राजेन्द्र राणा के नाम से गयी शिकायत को भी जोड़े जाने की चर्चा है। भले ही राणा ऐसी शिकायत न करने का शपथ पत्र ईडी को सौंप चुके हैं। ईडी के उच्चस्थ सूत्रों की माने तो सुभाष आहलूवालिया का मामला चण्डीगढ़ से दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद इसमें ऊना के दो वकीलों के नाम से आयी शिकायत की कड़ीयां भी इस प्रकरण से जोडी जा रही हैं। संभवत इसी सब को सामने रखते हुए अदालत वीरभद्र परिवार को राहत नही दे पा रही है। माना जा रहा है कि 17 अगस्त को इस मामले में चन्द्रशेखर और प्रतिभा सिंह को ईडी ने फिर से बुलाया है और आनन्द चौहान के साथ इनका आमना सामना हो सकता है।
इस प्रकरण में चल रही कानूनी प्रक्रिया में जहां अभी तक मामले के सह अभियुक्त आनन्द चौहान को जमानत नही मिल पा रही है वहीं मुख्य अभियुक्तों को भी संभावित गिरफ्तारी से सुरक्षा नहीं मिल रही है और न ही जांच ऐजैन्सीयां उनकी गिरफ्तारी का कदम उठा पा रही हैं। इस परिदृश्य में राहत की संभावनाएं भी कमजोर होती जा रही हैं।

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