Friday, 19 September 2025
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IFS संजीव चतुर्वेदी के मामले में आये कैट के फैंसले से नड्डा की नीयत और निति सवालों में

शिमला/शैल। हिमाचल से भाजपा के राज्यसभा सांसद केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी नड्डा को आने वाले विधानसभा चुनावों में मुख्यमन्त्री के दावेदारों में गिना जा रहा है। बल्कि जबसे उनकी दावेदारी के संकेत उभरे हैं तभी से प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। लेकिन इस दावेदारी के बाद उनकी कार्यशैली पर भी नजरें जाना शुरू हो गयी है। क्योंकि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ फतवा लेकर सत्ता में आयी है। मोदी ने दावा किया है कि न खाऊंगा और न ही खाने दूंगा। लेकिन नड्डा मोदी के इस मानक पर खरे उतरते नजर नही आ रहे हैं। जब सांसद बने थे उस समय देश के प्रतिष्ठित संस्थान एम्ज में तैनात चीफ विजिलैन्स अफसर आई एफ एस संजीव चतुर्वेदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिये काफी सुर्खियों में थे। लेकिन नड्डा ने संजीव चतुर्वेदी को एम्ज से हटाने के लिये स्वास्थ्य मन्त्रालय को पत्र लिखे। लेकिन इसी दौरान केन्द्र में सरकार बदल गयी। डा. हर्षवर्धन स्वास्थ्य मन्त्री बने। उन्हे भी उसी तर्ज पर नड्डा ने पत्र लिखे। इसी बीच नड्डा ही स्वास्थ्य मन्त्री बन गये। बतौर स्वास्थ्य मन्त्री नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं और इस नाते संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ कारवाई करना आसान हो गया।
एम्ज के निदेशक ने 17.1.16 को संजीव चतुर्वेदी को एक डिस्प्लेजर मैमोरण्डम जारी किया। जिसमें कहा गया कि
इसके बाद 30 मार्च को इस मैमोरण्डम पर नड्डा ने भी बतौर अध्यक्ष एम्ज अपनी स्वीकृति दे दी। इस पर चतुर्वेदी ने इन पत्रों को वापिस लेने के लिये निदेशक को ज्ञापन दिया जिसे स्वीकार नही किया गया। बल्कि यह पत्रा सचिव स्वास्थ्य, एंवम् परिवार कल्याण सचिव वन एवम् पर्यावरण भारत सरकार तथा मुख्य सचिव उत्तराखंड को भी भेज दिये गये। चतुर्वेदी आई एफ एस हैं इस नाते सचिव वन एवंम् पर्यावरण को यह पत्र भेजा गया और एम्ज का कार्यकाल पूरा करने पर उतराखण्ड वापिस जाना था इसलिये वहां के मुख्य सविच को भी यह पत्र भेजा गया। एक ओर संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ संसद के 2015 के शीतकालीन सत्र के दौरान गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के लिये यह मेमो जारी हो रहे थे वहंी दूसरी ओर अनुकरणीय सेवाओं के लिये उन्हें मेगासेसे अवार्ड से नवाजा गया। चतुर्वेदी ने संसद सत्र के दौरान किस तरह की अनुशासन हीनता बरती, किस अधिकारी के आदेशों की अवेहलना की गयी इस सबका कोई जिक्र उन पत्रों में नही है जो उन्हें जारी किये गये। यहां तक की संजीव चतुर्वेदी ने कभी नड्डा के साथ काम भी नही किया है। लेकिन नड्डा ने एम्ज के निदेशक द्वारा जारी किये गये मेमो को ही अनुमति प्रदान कर कारवाई को अंजाम दे दिया। चतुर्वेदी को अपना पक्ष तक रखने का अवसर नही दिया गया।
अपने खिलाफ हुई एकतरफा कारवाई को चतुर्वेदी ने कैट में चुनौती दी। कैट ने सारा रिकार्ड देखने के बाद इन मैमोज़ को रद्द करते हुए कहा है कि कैट का चतुर्वेदी के पक्ष में आया फैसला नड्डा की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खडे़ करता है।
क्योंकि चुतर्वेदी एम्ज में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली लडाई लड़ रहे थे। एम्ज के भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई में शिकायतें थी। इन शिकायतों पर एम्ज में अपने स्तर पर की गयी कारवाई से सीबीसी को सूचित करने के लिये 9.1.14, 17.12.14 और 5.10.15 को सीबीआई ने पत्रा भेजे थे। इसी संद्धर्भ में जब संजीव चतुर्वेदी सीबीआई के निेर्देशों का पालन कर रहे थे तभी वहां से खदेड़ने के लिये यह मेमो जारी करने का खेल शुरू हो गया और नड्डा भी इस खेल का एक पात्रा बन गये।
एम्ज में बडे स्तर पर भ्रष्टाचार है यह सीबीआई के 4.2.16 को भेजे पत्र से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है। इस भ्रष्टाचार की जांच क्यों नही होने दी जा रही है? भ्रष्टाचारीयों को बचाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? स्वास्थ्य एंवम परिवार कल्याण मन्त्री के नाते नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में बतौर केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री और एम्ज के अध्यक्ष होने के नाते भ्रष्टाचार की गहन जांच करवाने और भ्रष्टों को सजा दिलाने की जिम्मेदारी उन पर आती है। लेकिन यहां पर भ्रष्टाचार की जांच करवाने की बजाये उस अधिकारी को प्रताड़ित किया गया जो इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था।



 






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