शिमला/शैल। मनीलाॅडरिंग मामले में ईडी द्वारा वीरभद्र सिंह के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की गिरफ्तारी के बाद इस मामले का पूरा परिदृश्य बदल गया है। वीरभद्र अपनी गिरफ्तारी की आशंका को भांपते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण में जा पहुंचे हैं। अदालत से उन्हें राहत मिल पाती है या नही इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नही है। जानकारों का मानना है ईडी के जाल में फंसे छंगन भुजबल को आज तक जमानत नही मिल पायी है। तो वीरभद्र को उसी अधिनियम में राहत कैसे मिल पायेगी। इस मामलें में वीरभद्र और परिवार की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है। वीरभद्र अपने खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रही जांच के लिये प्रेम कुमार धूमल, अरूण जेटली और अनुराग ठाकुर को जिम्मेदार ठहराते रहें है। जबकि यदि वीरभद्र के पूरे प्रकरण पर मनीलाॅडरिंग अधिनियम के परिदृश्य में नजर डाली जाये तो इसके लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार वीरभद्र के अपने ही विश्वस्त रहे हैं।
मनीलाॅडरिंग के वर्तमान अधिनियम के प्रावधान के अनुसार बैंको के लिये यह अनिवार्य है कि वह उनके पास किसी के बैंक खाते में अचानक ज्यादा पैसा जमा होने या सामान्य से ज्यादा निकासी की सूचना निमित रूप से आयकर विभाग को देंगे। इसी अनिवार्यता के चलते आनन्द चौहान के खातों की जानकारी आयकर विभाग में पहंुची। यह जानकारी जब पहुंची तब 2011 में आकर ने आनन्द चौहान से पूछताछ शुरू कर दी। आनन्द चैहान के खातों में 2011 तक कैश जमा होने और उस कैश से वीरभद्र और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर एलआईसी पालिसीयां लिये जाने का रिकार्ड था। आनन्द चैहान ने यह पैसा वीरभद्र के सेब बागीचे की आय बताया सेब बागीचे की आय के नाम पर वीरभद्र को तीन वर्षों की आयकर रिटर्नज संशोधित करने पड गयी। 2013 में मनीलाॅडरिंग अधिनियम कुछ संशोधन करके सरकार ने इसे और कड़ा कर दिया। वीरभद्र द्वारा संशोधित आयकर रिटर्नज दायर करने से उन पर भी आयकर की जांच शुरू हो गयी। प्रशांत भूषण ने मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंचा दिया। जिसके चलते सीबीआई और ईडी ने 2015 में वीरभद्र के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जो आज दो लोगों की गिरफ्रतारी और स्वयं उनके द्वारा गिरफ्रतारी की संभावित आशंका के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय से सुरक्षा की गुहार लगाने के मुकाम पर पहुंच गया है। ईडी ने 23.3.2016 वीरभद्र, प्रतिभा सिंह , विक्रमादात्यि और अपराजिता की करीब आठ करोड़ की चल अचल संपति अटैच कर ली है।
अब यदि इस पूरे मामले पर नजर डाली जाये तो यह सामने आता है कि 2011 में आनन्द चैहान की आयकर जांच से यह मामला शुरू होता है। मार्च 2012 में वीरभद्र संशोधित रिटर्नज दायर करते हंै। 2015 में सीबीआई और ईडी मामले दर्ज करते हैं। मार्च 2016 में अटैचमैन्ट आर्डर जारी होता है। 2015 में मामला दर्ज होने तक आनन्द चौहान और वीरभद्र इस पैसे को बागीचे की आय करार देते आये हैं। लेकिन किसी ने भी इस पक्ष को नही देखा कि 6 करोड़ का सेब उत्पादन, फिर उसका विक्रय और मार्किट तक उसके ढुलान का कोई ठोस आधार तो तैयार कर लिया जाता। सेब के ढुलाने में लगे वाहनों की मार्किटींग के लिये एन्ट्री होती है। एक प्रतिशत की फीस सरकार की मार्किट कमेटी को जाती है। लेकिन तीन वर्षाे में छः करोड़ का सेब बेचा जाता विक्री से जुडे कोई भी ठोस दस्तावेज जांच ऐजैन्सीयों को नही दिखाये जाते हैं। यहां तक की मार्किट कमेटी की फीस तक जमा नही होती है। न तो मार्किट कमेटी यह फीस मांगती है और न ही सेब बेचने खरीदने वाले इस ओर ध्यान देते हंै। जनवरी और फरवरी 2016 में जांच एजैन्सीयां अधिकारिक रूप से निदेशक बागवानी, निदेशक ट्रांसपोर्ट और सचिव मार्किट कमेटी से रिपोर्ट हासिल करते हंै। वीरभद्र सरकार के यह तीनो विभाग जो रिपोर्ट जांच ऐजैन्सी को सौंपते है। यह रिपोर्ट वीरभद्र और आनन्द चैहान के दावों का समर्थन नही करती है। इनके मुताबिक सेब के उत्पादन और उसकी बिक्री से जुडे सारे दावे आधारहीन हैं। इन रिपोर्टों पर आनन्द चौहान और वीरभद्र को अपना पक्ष रखने के लिये ऐजैन्सी बुलाती है। लेकिन यह लोेग नही जाते हैं और अन्ततः 23.3.2016 को ईडी आठ करोड़ की संपति अटैच कर लेती है।
यहां यह सवाल उठता है कि क्या वीरभद्र के विश्वस्तों ने इनती लंबी चली जांच प्रक्रिया के दौरान इस मामले की गंभीरता का आकलन ही नही किया या फिर उनकी नीयत में कोई खोट था। जानकारों का मामना है कि ईडी के अटैचमैन्ट आर्डर से पहले तक वीरभद्र और आनन्द चौहान को इस संकट से बाहर निकलने के कई रास्ते थे। ईडी की जांच में ठीक से शामिल न होना भी नुकसान देह रहा है। दूसरी ओर धूमल के खिलाफ आयी आय से अधिक संपति की शिकायत पर आज तक मामला दर्ज न हो पाना तो विश्वस्तों की नीयत और नीति पर सीधे सवाल खडे़ करता है। यहां तक कि आज जब वीरभद्र अपने विश्वस्तों को धूमल परिवार के मामले में गंभीरता और तेजी लाने के निर्देश देते हैं तो इन पर अमल होने से पहले ही इसकी सूचना अरूण धूमल को पहुंच जाती है और वह इस पर डीजीपी को सोशल मीडिया में धमकी तक दे डालते हैं।
यह दूसरी बात हैं कि स्वंय वीरभद्र ने भी 31.3.99 को मुख्यसचिव और एडीजीपी विजिलैन्स को पत्रा लिखकर ऐसी ही धमकी दी थी।
वीरभद्र की यह धमकी तो आज भी उन पर भारी पड़ सकती है और इसकी जानकारी उनके विश्वस्तों को भी है जो इस पर मौन बैठे हुए हंै। वीरभद्र की जांच के मामलों में यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि उनके विश्वस्तों ने इस बारे में उनकी ईमानदारी से सहायता करने या राय देने में उचित भूमिका नहीं निभायी है।
शिमला/शैल। वीरभद्र और परिवार के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपति और ईडी में चल रहे मनीलाॅॅंडरिंग मामलों में चुन्नी लाल और आनन्द चैहान के बाद कुछ आर गिरफ्रतारीयां होने की संभावना बढ़ गयी है। क्योंकि जून में आयकर प्राधिकरण के चण्डीगढ़ बैंच में चल रही वीरभद्र सिंह की अपील पर सुनवाई रूक गयी
और बैच में कुछ स्थानान्तर हो गयेे। स्मरणीय हैं कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहे मामलों में तीनों विभाग-आयकर सीबीआई तथा ईडी आपसी तालमेल बनाये हुए है। आयकर ने अपनी जांच में जो कुछ तथ्य जुटाये हैं उनकी जानकारी यथा स्थिति सीबीआई को दे दी गयी थी। सीबीआई ने अपनी जांच के सारे तथ्य ईडी को उपलब्ध करा दिये। क्योंकि ईडी का आयकर और सीबीआई पर समानान्तर अधिकार क्षेत्रा है। इन विभागों में आये मामलों की पूरी जानकारी ईडी को दे दी जाती है।
आनन्द चौहान के बैंक खातों में एकदम करोड़ों रूपया कैश जमा होने और फिर उसे निकाले जाने की जानकारी जब सामान्य रूप से आयकर विभाग में पहुंची थी तब आनन्द चौहान ने आयकर में 22.11.11 को पेश होकर यह बताया था कि उसी का पैसा है और उसका पूरा ब्योरा 15 दिन बाद विभाग को सौंप देगा। लेकिन जब 15 दिन बाद फिर पेश हुआ तो इस पैसे को वीरभद्र के बागीचे की आय बताया और अपने को बागीचे का प्रबन्धक तथा इस आश्य का एक 15.6.08 का हस्ताक्षरित ऐग्रीमेंन्ट भी पेश कर दिया। आनन्द के खाते में करोड़ो जमा हुआ था और उससे वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम पर करोड़ो की एल आई सी पालिसियां ली गयी थी। जबकि वीरभद्र सिंह ने अपनी आयकर रिटर्नज में तीन साल की कुल आय 47.35 लाख दिखा रखी थी। आनन्द चैहान के ब्यान के बाद वीरभद्र ने मार्च 2012 में इन्ही वर्षो की संशोधित रिटर्न फाईल करके 47.35 की आय को बढकार 6.1 करोड़ दिखा दिया। इस विरोधाभास के कारण पूरे मामले की जांच हुई। जांच में आनन्द चैहान के साथ हुआ एग्रीमैन्ट सही नही पाया गया बल्कि 17.6.08 का इसी बागीचे का एक और एग्रीमैन्ट विश्म्बर दास के साथ मिल गया। इसकी सत्यता भी संदिग्ध हो गयी। बागीचेे में करोड़ो के सेब के उत्पादन की संभावनाओं पर बागवानी निदेशालय से रिपोर्ट ली गयी और इस रिपोर्ट ने भी आनन्द चौहान और वीरभद्र के दावों का समर्थन नही किया। यह सेब परवाणु के सेब व्यापारी चुन्नी लाल को बचा दिखाया गया। इतने सेब की ढुलाई के लिये जो वाहन प्रयुक्त हुए दिखाये गये उन पर ट्रांसपोर्ट निदेशालय से रिपोर्ट ली गयी। इस रिपोर्ट में दिखाये गये नम्बरों के वाहन पाये ही नही गये। सेब की ढुलाई में प्रयुक्त वाहनों की मार्किटिंग बोर्ड केे रिकार्ड में एन्ट्री होती है। परन्तु मार्किटिंग बोर्ड की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि ऐसी एन्ट्रीयां उनके रिकार्ड में नही हैं। चुन्नी लाल ने जिन फर्माे से आनन्द चैहान को एक करोड़ की कैश पेमैन्ट एडवासं में उसके सामने उसके कार्यालय में दिया जाना दिखाया सीबीआई की जांच में वह फर्मे पायी ही नही गयी। इस तरह उत्पादन से लेकर विक्रय तक के सारे दावे सही नही पाये गये हैं। जबकि एलआई सी की रिपोर्ट में 18 पालिसीयां होने की डिटेले दी गयी है। इनमें से कुछ को भुनाकर ग्रेटर कैलाश दिल्ली में खरीदे गये मकान में निवेश किया गया है। इस तरह आनन्द चौहान और चुन्नी लाल के माध्यम से बैंक में आये करोड़ो के प्रत्यक्ष लाभार्थी वीरभद्र और परिवार है यह सीबीआई और ईडी की जांच में आ चुका है।
इसी दौरान वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के माध्यम से भी छः करोड से अधिक का फ्री लोन वीरभद्र परिवार को मिला है। एक कंपनी में वीरभद्र परिवार के सदस्यों के 90 लाख के शेयर और उनके ओएडी अमित पाल के दस लाख के शेयर सामने आये हैं। वक्कामुल्ला का आय का स्तो़त्रा भी अभी तक प्रामाणित नही हो पाया है। जबकि इसी दौरान महरौली में फार्म हाऊस की खरीद सामने आ चुकी है। वक्कामुल्ला को लेकर ईडी में अभी तक जांच चल रही है। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया में वीरभद्र के ओएसडी को लेकर एक पोस्ट चर्चा में चल रही है। इस पोस्ट मुताबिक अमित पाल ने देश के कई भागों में सात प्लैट और 79 करोड़ के निवेश कर रखे हैं। अमित पाल ने इस पोस्ट के होने की पुष्टि करते हुऐ दावा किया हैं कि सब गल्त है और इसको लेकर उन्होने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवा रखी है। जिसे वह शीघ्र ही सार्वजनिक कर देगें। लेकिन पुलिस विभाग ने ऐसी कोई शिकायत आने की पुष्टि नही की है। इस समय अमित पाल को लेकर ऐसी पोस्ट का सामने आना यह इंगित करता है कि यह पोस्ट भी जांच ऐजैन्सीयों की जांच का केन्द्र बनेगी। दूसरी ओर वीरभद्र के प्रधान निजि सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ पहले से ही ऊना के दो वकीलों के नाम से एक शिकायत ईडी में लंबित चल रही है। ऐजैन्सी सूत्रों के मुताबिक अमित पाल की पोस्ट और सुभाष की शिकायत पर भी प्रारम्भिक जांच शुरू हो गयी है।
यह भी चर्चा हैं कि सीबीआई ने एक और पुराने मामले को भी नये सिरे से खंगालने का प्रयास शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक चुन्नी लाल और आनन्द चैहान से कांगडा के बड़ा भंगाल को लेकर भी कुछ प्रश्न पूछे गये हैं। ऐजन्सी सूत्रों के मुताबिक इस मामले में कुछ और गिरफ्तारीयों होने की भी संभावना है। स्मरणीय है कि आनन्द चैहान और चुन्नी लाल ने हिमाचल उच्च न्यायालय से वीरभद्र की तर्ज पर राहत मांगी थी जो उन्हे नही मिली है। इस तरह ईडी पर अदालत की ओर से वंदिश नही है। इस मामले में वरिष्ठ वकील आरके आनन्द और सलमान खुर्शीद को शिमला लाकर उनसे राय लिये जाने की भी चर्चा है। कुछ राजनीतिक हल्कों में यह भी चर्चा है कि पूरे प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए वीरभद्र पद त्यागने का भी फैसला ले सकते हैं।
शिमला/शैल। क्या प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा का राजनीतिक विकलप बन पोयगा? यह सवाल एक बार फिर राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि प्रदेश में इस समय कांग्रेस और भाजपा दोनो का शीर्ष नेतृत्व एक बराबर सवालों और जांच ऐजैन्सीयो की जांच की आंच झेल रहा है आजतक प्रदेश में सता कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच रही है। और इसी सता के कारण यह नेतृत्व अब तक अपने को बचाता भी रहा है। इनके इस बचाव की कला की कीमत प्रदेश ने कैसे चुकाई है इसका प्रमाण है प्रदेश के कर्जभार का आंकड़ा 46 हजार करोड़ तक पहुंचना और जिस दिन यह आंकड़ा 60 हजार करोड़ तक पहुंच जायेगा तब प्रेदश के कर्ज लेने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लग जायेगा। केन्द्रिय सहायता तक रूक जायेगी। प्रदेश का शीर्ष प्रशासन इस स्थिति को जानता और समझता है। संभवत इसी कारण प्रशासनिक हल्को में भी राजनीतिक विकल्प की आवश्यकता पर चर्चा चल पडी है।
इस परिदृश्य में यदि पूर्व में विकल्प के लिये हुए प्रयासों पर नजर डाली जाये तो लोकराज पार्टी से लेकर हिंविका, हिलोपा तक जो कुछ हुआ है उसका एक निश्कर्ष स्पष्ट है कि जिस भी नेता ने एक बार सता का सुख भोग लिया हो वह विपक्ष की राजनीति कर ही नही सकता। विजय सिंह मनकोटिया और राजन सुशांत भी इसी कारण असफल रहे है। लेकिन प्रदेश की जनता ने हर प्रयास को समर्थन देने का साहस दिखाया है और तभी जनता दल को 17 सीटांे पर चुनाव लड़कर 11 पर जीत हासिल हुई थी। इतनी ही जीत एक बार लोक राजपार्टी को मिली थी। विकल्प की यह पृष्ठ भमि आज नया प्रयास करने वालों को सामने रखनी होगी। क्योंकि भाजपा और कांग्रेस आसानी से अपना हकदार क्यों पैदा होने देगी।
इस समय प्रदेश के भविष्य को संभालने के लिये विकल्प की अतिआवश्यकता है क्योंकि जहां कांग्रेस और भाजपा में चाटुकारिता की संस्कृति हावी हो चुकी है वहीं पर प्रशासन भी इसी संस्कृति का शिकार हो चुका है। यहां तक कि लोकतन्त्र का चैथा खम्भा होने का दावा करने वाली पत्रकारिता ने भी आत्मचिन्तन का गला घोंट रखा है। पत्रकार नेता और अधिकारी से ज्यादा व्यापारी हो चुके हैं। ऐसे में विकल्प का साहस जुटाने वालों को इन ताकतों से एक ही समय में इक्टठे लोहा लेना होगा। क्योंकि इस समय राष्ट्रीय स्तर पर आम आदी पार्टी जैसे जैसे भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनने की ओर एक कदम बढ़ा रही है उसी अनुपात में यह सारी ताकतें उस पर हमलावार होती जा रही है।
हिमाचल में भी विकल्प की उम्मीद केवल हिमाचल में विकन्प की उम्मीद केवल आम आदमी पार्टी से ही की जा सकती है। क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के हाईकमानों की तरह अभी आप का हाई कमान नहीं है। भाजपा और कांग्रेस अपने भ्रष्टों पर कारवाई से पहले उनकी भ्रष्टता को सही ठहराने का प्रयास करती है जबकि केजरीवाल ने हर आरोपी पर कारवाई करने में कोई देर नहीं लगाई है। हिमाचल के परिदृश्य में यहां की सारी कार्यकारिणी को सामूहिक रूप से भंग करके अपनी निष्पक्षता का परिचय दे दिया है। यह निष्पक्षता उनके भविष्य की उम्मीद जगाती है। कार्यकारिणी को भंग करके नये पर्यवक्षकों की टीम भेज दी गई है और इस टीम ने अपना काम शुरू भी कर दिया है यह पर्यवेक्षक अपना क्या आंकलन सामने रखते हैं यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन प्रदेश की अब तक की ईकाई राजन सुशांत के नेतृत्व में प्रदेश की जनता को यह तक नही बता पाई है कि प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा का विकल्प आखिर क्यों चाहिये? यह प्रदेश इनकी किन नीतियों के कारण कर्ज के मकड़ जाल में फंस कर रह गया है? कहां इन दोनों ने एक दूसरे के भ्रष्टाचार को नजरअन्दाज किया है? क्योंकि आज जो कुछ प्रदेश में घट चुका है यदि उसका ईमानदारी से पर्दाफाश किया जाये तो इनको राष्ट्रीय स्तर पर भी जवाबदेह होना पड़ेगा। उम्मीद है कि ‘आप’ अगली ईकाई घोषित करने से पहले इन तथ्यों को ध्यान में रखेगी।
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