शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रदेश की तीन जलवि़द्युत परियोजनाओं के लोकार्पण अवसर पर आयोजित रैली एक सफल रैली रही है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। यह रैली प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का सफल संकेत मानी जा सकती है। क्योंकि इस रैली मे प्रधानमंत्री ने जो बुनियादी सवाल उछाले हैं वह आने वाले दिनों में निश्चित रूप से बहस का मुद्दा बनेगे? प्रधानमंत्री ने प्रदेश की जनता को बताया कि केन्द्र ने 15वें वित्तायोग
की सिफारिशों के बाद हिमाचल को 72 हजार करोड़ रूपेय का आवंटन किया है। जबकि 14 वें वित्तायोग के तहत यह राशी केवल 21 हजार करोड़ थी। 14वां वित्त आयोग यूपीए सरकार के समय आया था और 15वां अब भाजपा सरकार के दौरान आया है। कांग्रेस के मुकाबले तीन गुणा से भी ज्यादा आंवटन प्रदेश को मिला है। मोदी ने स्पष्ट कहा है कि केन्द्र और प्रदेश की जनता राज्य सरकार से इस पैसे के खर्च का हिसाब मांगेगी। राज्य सरकार का खर्च कितना तर्क संगत होता है? उसमें कितनी फज़ूल खर्ची होती है? इन सवालों पर कभी बहस नही हुई है। क्योंकि जनता को इस तरह के तथ्यों की कभी सीधी जानकारी होती ही नहीं है। यह पहली बार है कि देश के प्रधान मंत्री ने जनता के सामने इतना बड़ा आंकड़ा रखा है। इस आंकड़े को झुठलाना या इस पर कोई और किन्तु/परन्तु उठाना राज्य सरकार के लिये संभव नही होगा।
केन्द्र ने राज्य को 61 राष्ट्रीय उच्च मार्ग दिये हैं इन उच्च मार्गों पर कार्य शुरू हो इसके लिये समय पर इनकी डीपीआर बनकर केन्द्र के पास पहुचनीं चाहिये। डीपीआर राज्य सरकार को बनानी है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पिछले दिनों यह कहा हैं कि डीपीआरज बनाने के लिये उन्हे पैसा नही दिया गया हैं अब मुख्यमंत्री का यह तर्क प्रधान मन्त्री के 72 हजार करोड़ के आंकड़े के नीचे इस कदर दब जायेगा कि
इससे उभरना राज्य सरकार के लिये संभव नहीं हि पायेगा क्योंकि प्रधानमन्त्री ने अपने संबोधन में जहां पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को विकास का पर्याय बताया वहीं वर वीरभद्र को नाम लिये बगैर ही भ्रष्टाचार का पर्याय करार दिया। प्रधान मन्त्री के इस संकेत से यह भी संदेश उभरता है कि केन्द्र के खिलाफ चल रही जांच के प्रति पूरी तरह गभीर है और सही समय पर उसके परिणाम सामने आयेंगें आज राज्य सरकार का कर्जभार लगातार बढ़ता जा रहा है। इस समय बहुत सारे विकास के कार्य पैसों के अभाव में बन्द हो चुके है। मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र में ठेकेदारों की पैमेन्टस रूकने के कारण ठेकेदारों ने काम बन्द कर दिये है। प्रदेश के पेयजल योजनाओं के लिये आये हजारों करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर न जाने के कारण केन्द्र ने इन योजनाओं के लिये अगले भुगतान के लिये शर्ते कड़ी कर दी है। पर्यटन में फर्जी उपयोगिता पर जांच प्रमाण पत्र सौंपे जाने को लेकर शिकायते केन्द्र के पास पहुंच चुकी हैं और इन शिकायतों पर जांच को रोक पाना संभव नही होगा क्योंकि आर टी आई के तहत इन शिकायतों पर हुई कारवाई की जानकारी भी मांग ली गयी है।
कैग रिपोर्टो में सरकार के खर्चो को लेकर एक लम्बे समय से सवाल उठते रहे हैं लेकिन यह सवाल कभी बहस का मुद्दा नही बन पाये है। आज प्रधान मन्त्री द्वारा एक खुले मंच से 72 हजार करोड़ के आंकड़े की जानकारी आम आदमी के बीच आने से स्वाभाविक रूप से इस पर बहस उठेगी ही। क्योंकि यह आम आदमी का पैसा है और उसे यह हक हासिल है कि वह इस खर्च का हिसाब मांगे। प्रधानमंत्री ने जनता से स्पष्ट कहा है कि वह इस खर्च का सरकार से हिसाब मांगे। मोदी के इस आंकडे़ के हथौड़े से राज्य सरकार का बचना अंसभव है।
शिमला। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच के लिये पूर्व मुख्य मन्त्री प्रेम कुमार धूमल, उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर तथा मोदी के वित्त मंत्री अरूण जेटली को लगातार कोसते आ रहे हैं। ऐसे में जब मोदी तीन जल विद्युत परियोजनाओं के लोकार्पण के लिये प्रदेश में आये तो यह स्वाभाविक था कि वह वीरभद्र के प्रति अक्रामकता अपनाते और उनके भ्रष्टाचार को एक बार फिर जनता के बीच उछालते। क्योंकि भाजपा के लिये चुनावी माहौल बनाने के लिये यह आवश्यक भी था और मोदी ने ऐसा किया भी। मोदी ने बिना नाम लिये वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर निशाना साधा और साथ ही राज्य सरकार से 72 हजार करो
ड़ का हिसाब भी मांग लिया लेकिन वीरभद्र-मोदी और प्रदेश भाजपा नेतृत्व की इस चाल को पहले ही भांप चुके थे। इसी लिये लोकार्पण के अवसर पर वह मोदी के साथ रहे और उन्हें एक लम्बा चैड़ा मांग पत्र भी थमा दिया। अब वीरभद्र का मांग पत्र और मोदी द्वारा 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा जाना दोनो बराबर के मुद्दे हैं। अब आने वाले दिनों में पता चलेगा कि इन मुद्दों को कौन कितना समझता और उछालता है।
हिमाचल जैसे प्रदेश को 72 करोड़ केन्द्र द्वारा दिया जाना एक बहुत बड़ी बात हैं इस रकम के खर्चे का हिसाब मांगा जाना भी स्वाभाविक और आवश्यक है। लेकिन इस हिसाब -किताब के बीच वीरभद्र ने मांग पत्र का जो तीर छोड़ा है उससे बचना प्रदेश भाजपा के लिये आसान नही होगा। इस मांग पत्र का समर्थन करना भाजपा के लिये एक कड़ी परीक्षा सिद्ध होगा। मांगपत्र के अनुसार यह मुद्दे उठायेे गये हैं।
1. 1000 करोड़ की विशेष श्रृतिपूर्ति अनुदानः अन्र्तराष्ट्रीय पर्यावरणीय आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की अनुपालना के तहत सारे पर्वतीय क्षेत्रों में हरित कटान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा हुआ हैं इस प्रतिबन्ध के कारण इन क्षेत्रों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस नुकसान की प्रतिपूर्ति के आंकलन के लिये एक समय योजना आयोग ने वी के चुतवेर्दी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि सकल बजटीय सहयोग का दो प्रतिशत इन प्रभावित पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष अनुदान दिया जाये। लेकिन इस कमेटी की सिफारिशों पर अब तक अमल नही हो सका है और अब वीरभद्र ने इस संद्धर्भ में मोदी से एक हजार करोड़ के विशेष अनुदान की मांग कर डाली है।
2. जल विद्युत परियोजनाओं को त्वरित प्रभाव से पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की जाये। वीरभद्र के मांगपत्र के अनुसार हिमाचल प्रदेश कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत में वन क्षेत्र होने की शर्त को पूरा करता है। इस लिये प्रदेश की सभी लंबित जल विद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृतियां तुरन्त प्रभाव से प्रदान की जायें ।
3. शिमला हवाई अड्डे से व्यवसायिक उड़ाने शुरू की जाये। शिमला ही एक मात्रा ऐसा राजधानी शहर है जहां कोई भी हवाई सुविधा नही हैं अब यहां पर अधोसंरचनात्मक सुविधाओं का भी स्तरोन्यन किया गया है। इसलिये यहां से व्यवसायिक उड़ाने शीघ्र शुरू की जानी चाहिये।
4. सतलुज जल विद्युत निगम के पास फालतू बड़ी भूमि को राज्य सरकार को वापिस किया जाये। 1980 के दशक में इस निगम को कार्यालय एंव्म आवास काॅलोनी के निमार्ण के लिये जमीन दी गयी थी जो कि अब तक अनुपयोगी पड़ी हुई हैं और सरप्लस है। इसे राज्य सकरार को वापिस किया जाये ताकि इसे इंजीनियरिंग काॅलिज की स्थापना के लिये इस्तेमाल किया जा सके।
5. भाखंड़ा व्यास प्रबन्धन बोर्ड में पूर्ण कालिक सदस्य का दर्जा दिया जाये। क्यांेकि भाखंड़ा परियोजना के कारण 103425 एकड़ और व्यास परियोजना के कारण डैहर तथा पौंग बांध में 65563 एकड़ प्रदेश की कृषि भूमि जलमग्न हुई है। इसके अतिरिक्त 16 अगस्त 1983 को पत्र व्यवहार के दिशा निर्देशानुसार 19/20 जनवरी 1987 को हुई बोर्ड की 124वीं बैठक में हिमाचल को सहयोगी राज्य का दर्जा दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 27.9.11 के अपने फैसले में हिमाचल की 7.19प्रतिशत की भागीदारी को स्वीकार किया है। लेकिन इन फैसलों पर अब तक अमल नही हो सका है। इस पर शीघ्र अमल करवाया जाये।
6. भाखंड़ा नंगल समझौता 1959 तथा 31 दिसम्बर 1998 के अन्र्तराष्ट्रीय समझौतों के अनुसार हिमाचल को सतलुज, रावी तथा व्यास से पानी का कोई आंवटन नही हुआ है । इन नदियों से हिमाचल के जल उपयोग अधिकारों को देखते हुए इन परियोजनाओं से लगते ग्रामीण क्षेत्रो की जलापूर्ति के लिये अनापति प्रमापत्र की आवश्यकता समाप्त की जाये।
7. हिमाचल प्रदेश राज्य ने पंजाब तथा हरियाणा राज्यों के विरूद्ध बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन में 3957 करोड़ रुपये के विद्युत एरियर दावों को 5 जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप प्रस्तुत किया था। भारत सरकार ने यद्यपि अलग से एनएफएल दरों की संस्तुति की थी, जो हिमाचल प्रदेश को मान्य नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के दावों को केवल राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटिड की दरों तक सीमित रखना न केवल घोर अन्याय है, बल्कि सहभागी राज्यों की भावनाओं के विरूद्व भी है क्योंकि एनएफएल की दरों को रियायती दरें माना जाता है तथा रियायती दरें कभी भी समझौते की दरें नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया।
8. एफसीएए 1980 के अंतर्गत प्रदेश को सड़कों के निर्माण के लिये वन भूमि के उपयोग के एवज में सीए तथा एनपीवी जमा करना होता है, जो अनिवार्य है। गत तीन वर्षों में प्रदेश ने विभिन्न प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की सड़कों के लिये सीए तथा एनपीवी के रूप में लगभग 60 करोड़ रुपये जमा किए हैं। निकट भविष्य में स्थिति और गंभीर होने वाली है, क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत आने वाली लगभग सभी सड़कें वन क्षेत्र से गुजरती हैं। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया कि प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की एनपीवी केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाए।
9. प्रधानमंत्री से भारत सरकार द्वारा एआईबीपी तथा एफएमपी के अंतर्गत पूर्व स्वीकृत योजनाओं के लिये धनराशि जारी करने का आग्रह किया गया। अधिकांश ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा निजी संसाधनों से ही भारी धनराशि व्यय की जा चुकी है तथा इसका भुगतान करना केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा अभी भी शेष है।
10. मनरेगा के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के लिये उपयोगी और अधिक गतिविधियों को शामिल किया जाए। भांग के पौधे हिमाचल प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर पर उगते हैं। यह एक गंभीर सामाजिक खतरा बन जाता है। प्रदेश सरकार ने आग्रह किया है भांग के पौधों को उखाड़ना भी मनरेगा की पात्र गतिविधि शामिल किया जाए। ग्रामीण विकास विभाग ने पहले ही 22 अगस्त, 2016 से 5 सितम्बर, 2016 तक भांग/अफीम उन्मूलन अभियान शुरू किया था तथा इस अभियान के अंतर्गत 2145.79 हेक्टेयर क्षेत्रा से भांग उखाड़ी गई।
11. प्रदेश में छोटे तथा मझौले किसानों द्वारा चाय की खेती की जाती है, न कि असम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों की तरह जहां बड़े किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं। मुख्यमंत्री ने आग्रह किया कि चाय बागानों के पुनर्जीवन को भी मनरेगा गतिविधि में शामिल किया जाए।
12. प्रदेश सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत हिमालयन सर्किट के तहत 100 करोड़ रुपये की परियोजनाऐं केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय को वित्त पोषण हेतु सौंपी हैं। मुख्यमंत्री ने हिमालयन सर्किट योजना के अंतर्गत धनराशि जारी करने के लिये भी केन्द्र सरकार से आग्रह किया।
शिमला/शैल। वीरभद्र और अन्य के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति और ईडी में मनी लॉडंरिग के तहत मामले दर्ज होकर जांच चल रही है। सीबीआई ने जांच पूरी करके ट्रायल कोर्ट में चालान दायर करने की अनुमति दिल्ली उच्च न्यायालय से मांग रखी है इस पर अदालत में बहस चल रही है वीरभद्र का तर्क है कि इस प्रकरण की जांच करने का अधिकार ही सीबीआई को नही था इसलिये इस संद्धर्भ में दर्ज एफ आई आर रद्द होनी चाहिये। ईडी ने इस प्रकरण में आधी जांच पूरी करके एक चालान ट्रायल कोर्ट में भी डाल दिया है। इसी जांच आठ करोड़ की चल अचल संपत्ति 23 मार्च को अटैच हुई थी और इसी जांच के परिणाम स्वरूप आनन्द चौहान आज जेल में है।
वीरभद्र और उनके परिजन इस मामले को केवल आयकर का मामला करार देकर सीबीआई और ईडी की जांच को केन्द्र सरकार का राजनीतिक प्रतिशोध प्रचारित कर रहें है सीबीआई के अधिकार क्षेत्र पर हिमाचल उच्च न्यायालय में ही सवाल खड़ा कर दिया गया। हिमाचल उच्च न्यायालय ने यह सवाल आने पर सीबीआई पर कुछ बंदिशे लगा दी थी लेकिन साथ ही जांच जारी रखने के भी निर्देश दे दिये थे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया था। जहां इस पर सुनवाई चल रही हैं लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच को सीबीआई के अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पर अन्तिम फैसला आ जाने तक रोका तक नही गया। आज सीबीआई औ ईडी अपनी जांच के परिणामों के आधार पर इसको एक पुख्ता मामला मान रहे है। एक वर्ष से अधिकार क्षेत्र का यह सवाल उच्च न्यायालय के सामने खड़ा है मजे की बात तो यह है कि वीरभद्र सिंह ने भी अधिकार क्षेत्र के सवाल के साथ इसकी जांच को स्टे करने तक की गुहार नहीं लगायी है। इस परिदृश्य में यह पूरा प्रकरण एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
इसलिये पूरे प्रकरण को इस पृष्ठभूमि में समझने की आवश्यकता है वीभरद्र सिंह ने वर्ष 2006- 2007 और 2007-2008 के लिये जो आयकर रिटर्न दायर किये है उनका फैसला 1-7-2008 और 17-6-2009 को आया है। इन दोनों रिटर्नज में एक साल 12,05,000 और 16,00,000 का सेब एक नरवीर जनारथा को बेचा दिखाया गया है। दोनों वर्ष आय का मुख्य स्त्रोत कृषि आय और बैंक की जमा पूंजी पर ब्याज दिखाया गया हैं। कृषि आय से हटकर 2006- 2007 में 4,38,890 और 2007- 2008 में 6,56,809 रूपये की आय दिखाई गयी है। आनन्द चौहान के साथ बागीचे के प्रबन्धन का एग्रीमेन्ट 15-6-2008 को साईन हुआ है। वर्ष 2009 - 2010 में पहले आय 7,35,000 दिखायी गयी है। और संशोधित रिटर्न में यही आय 2,21,35,000 हो जाती है ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब चौहान के साथ एग्रीमेन्ट तो 15-6-2008 को साईन हो गया। 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला भी 17-6-2009 को आ गया तो फिर इस बीच आनन्द चौहान ने यह क्यां नही बताया कि वर्ष 2009- 2010 मे सात लाख के नहीं बल्कि दो करोड़ से भी अधिक के सेब हुए हैं। संशोधित रिटर्न मार्च 2012 मे दायर हुए । अर्थात मार्च 2012 तक संशोधित रिटर्न के हिसाब से पूरी पैमेन्ट आ गयी थी। 17-6-2009 को जब 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला डीआर कालिया ने किया तब तक इस बढ़ी हुई आय का कोई संकेत नही है। संयोगवश जून 2009 में ही वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री बने और 2012 तक रहे । आयकर विभाग ने 2011 में चौहान से पूछताछ शुरू कर दी थी। वीरभद्र और उनके परिवार के नाम आनन्द चौहान 31-12-2010 तक सारी पालिसीयां बना लेता है जिसका अर्थ है कि उस समय आनन्द के पास सारा कैश आ चुका फिर यह कैसे हुआ कि इस बढ़ी आय पर संशोधित रिटर्न 2010 या 2011 में क्यों दायर नही हुए? नवम्बर- दिसम्बर 2011 में आनन्द चौहान आयकर विभाग में ब्यान देता है और उसके बाद ही यह संशोधित रिटर्न दायर होते है। इस परिदृश्य में क्या इसे महज आयकर का ही मामला माना जा सकता है? इस सवाल पर आयकर से लेकर सीबीआई और ईडी तक इसे कृषि आय मानने को तैयार नही है और वीरभद्र ने कृषि आय से हटकर आय का और कोई बड़ा स्त्रोत कभी बता नही रखा है।
दूसरी ओर 30-11-2010 और 1-12-2010 को मित्तल इस्पात उद्योग पर हुए छोपमारी में जो डायरी आयकर विभाग को मिली थी उसमें 28-10-2009, 23-12-2009, 21-04-2010 और 24-8-2010 'Min of Steel APs' के नाम भी 15 लाख की पैमेन्ट दर्ज है। यह डायरी आने के बाद जनवरी 2011 में ही वीरभद्र को स्टील मन्त्रालय से बदल दिया गया था। इस मन्त्रालय के बदलाव पर कई अखबारों ने इसे 2012 में इस डायरी प्रकरण का परिणाम कहा था। जनवरी 2013 से इसमें प्रशान्त भूषण और उनका एन जी कामन काज़ सामने आ गया उसने सीबीआई, सी बी सी और केन्द्र सरकार सभी से इस प्रकरण में जांच की मांग उठायी। लेकिन जब किसी ने कोई कारवाई नही की तो उसने दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दे दी । इस पर वीरभद्र सरकार और स्वयं वीरभद्र ने इस पर एतराज उठाया कि प्रशान्त भूषण यह मामला जनहित में नहीं वरन् व्यक्तिगत द्वेष से उठा रहे है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कपिल सिब्बल के एतराज को मानते हुए प्रशान्त भूषण और कामन काज दोनो को इससे हटाकर इसमें कोर्ट मित्र की नियुक्ति करके इसको अदालत का स्वतः संज्ञान मान लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस स्टैण्ड से सीबीआई हरकत में आयी। इसमें पहले स्टेटस रिपोर्ट दायर हुई। इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपना रूख और कड़ा कर लिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय के इसी कड़े रूख का परिणाम है कि इसमें यह एक एफ आई आर दर्ज हुई। ऐसे में इतनी लम्बी कानूनी यात्रा के बाद का क्या इसका परिणाम एफआई आर रद्द होने या चालान ट्रायल कोर्ट में दाखिल होने के रूप में सामने आता है। इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। क्योंकि इस मामले में यह भी महत्वपूर्ण हैं कि जब विक्रमादित्य और अपराजिता के नाम एल आई सी की पालिसीयां ली गयी तब उनके पास आय का स्वतन्त्र स्त्रोत क्या था? सारी पालिसीयां और एफ डी आर 23 मार्च के अटैचमैन्ट आर्डर में दर्ज है वह सब 31-12-2010 तक ली गयी थी। इसी अटैचमैन्ट आर्डर में यह भी दर्ज है कि विक्रमादित्य ने पहली बार आयकर रिटर्न 2011 में भरी है। इसका अर्थ है कि तब तक उसके पास कोई स्वतन्त्रा आय का स्त्रोत नही था और सब कुछ वीरभद्र सिंह का ही दिया हुआ था। इस नाते इस सारी आय का स्पष्टीकरण केवल वीरभद्र सिंह से ही आना है और यह उनकी घोषित आय से मेल नही खाता है। सूत्रों की माने तो सीबीआई ने आय का मूल आधार 1948, 1953 और फिर 1974 में आये राजस्व नियमों के तहत शेष बची संपत्ति को माना है और इस संपत्ति के अतिरिक्त और कोई आय स्त्रोत घोषित नही है यह दायर ही रिटर्न से साबित हो जाता है।
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