आय से अधिक संपति मामले में सीबीआई फिर पंहुची सर्वोच्च न्यायालय
शिमला/शैल। वीरभद्र सिंह के साथ आय से अधिक संपत्ति और मनीलाॅडंरिग मामलों में सहअभियुक्त बनी प्रतिभा सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय से ईडी द्वारा संभावित गिरफ्तारी से बचने के लिये स्थायी राहत का आग्रह किया था। जिसे अदालत स्वीकार नहीं कर पायी है। उच्च न्यायालय ने प्रतिभा सिंह को ईडी की जांच में आठ अगस्त को शामिल होने के निर्देश देते हुए केवल इतनी राहत प्रदान की है कि उन्हें उस दिन गिरफ्तार न किया जाये। प्रतिभा सिंह के जांच में शामिल
होने के बाद ईडी इस संद्धर्भ में अदालत के सामने रिपोर्ट रखेगा जिसमें यह खुलासा रहेगा कि उन्होने जांच में कितना सहयोग दिया, भविष्य में सहयोग का कितना भरोसा दिया और रिपोर्ट में यह भी रहेगा कि ईडी प्रतिभा सिंह के सहयोग से कितना सन्तुष्ट है।
स्मरणीय है कि ईडी ने 27.10.2015 को मनीलाॅडरिंग का मामला दर्ज किया था और उसके बाद 21.3.2016 तक करीब आठ बार इस दंपत्ति को जांच में शामिल होने के नोटिस भेजे थे लेकिन यह लोग एक बार भी जांच में शामिल नही हुए जिसके बाद 23.3.2016 को ईडी ने करीब आठ करोड़ की संपत्ति के अटैचमैन्ट आदेश जारी कर दिये। अब 8 जुलाई को इसी मामले में सह अभियुक्त बने चुन्नी लाल और आनन्द चैहान को सीबीआई तथा ईडी ने हिरासत में ले लिया। आनन्द चैहान अभी तक ईडी की हिरासत में है और उसे जमानत नही मिली है। चुन्नी लाल से सीबीआई ने पूछताछ की है और सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने उसके धारा 164 के तहत ब्यान करवा कर उसे सरकारी गवाह बना दिया है। वीरभद्र सीबीआई की जांच एक बार शामिल हो चके हैं लेकिन इस शामिल होने से सीबीआई ज्यादा सन्तुष्ट नही रही है और उसने वीरभद्र के खिलाफ असहयोग का आरोप लगाते हुए उनकी कस्टोडियल पूछताछ का आग्रह अदालत से किया था। उच्च न्यायालय ने यह मामला 23.8.2016 के लिये रखा है और सीबीआई को अभी तक कस्टोडियल जांच की अनुमति नही दी है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई अब इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गयी है।
सीबीआई ने 21.9.2015 को आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था लेकिन अब यह मामला मनीलाॅडरिंग का भी बन गया है। कोई मामला मनीलाॅंडरिग के दायरे में तब आता है जब ऐसी आय से संपत्ति अर्जित की जाये जो कि वास्तव हुई ही न हो। वीरभद्र और प्रतिभा के मामले में भी 6 करोड़ की आय सेब के बागीचे से रिकार्ड पर दिखा दी गयी है जो कि आयकर से लेकर ईडी की जांच तक में बागीचे से होना प्रमाणित नही हो पायी है। ईडी के मुताबिक वीरभद्र, प्रतिभा ंिसंह के पास अपना ही काला धन था जिसे जायज बनाने के लिये आनन्द चैहान और चुन्नी लाल का सहारा लिया गया। क्यांेकि चुन्नी लाल के माध्यम से आनन्द चैहान ने छः करोड़ का सेब कब कैसे और किसे बेचा यह प्रमाणित नहीं हो पाया है। जबकि पैसा प्रतिभा सिंह के दिल्ली के एस बी आई बैंक खाते में जमा हुआ और फिर उससे ग्रेटर कैलाश में प्रतिभा सिंह के नाम पर 4,47,20,000 में पांच सौ गज का मकान खरीदा गया। इसमें यदि बागीचे से छः करोड़ की आय प्रमाणित न हो पायी तो यह मामला गंभीर होगा।
इसी तरह अपने चुनावी शपथ पत्र में प्रतिभा सिंह ने वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से करीब 6.5 करोड़ का कर्ज परिवार के सदस्यों के नाम पर लिया दिखाया है। यह कर्ज बिना ब्याज और बिना जमानत के है। इस कर्ज के बाद ही महरोली में फार्म हाऊस की खरीद हुई है। वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से लिया गया यह कर्ज भी जांच के दायरे में है। ईडी ने 23.3.2016 के अपने अटैचमैन्ट आर्डर में साफ लिखा है कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को लेकर जांच चल रही है। सूत्रों के मुताबिक अब यह जांच पूरी हो चुकी है और संभवतः प्रतिभा सिंह से इस संद्धर्भ में भी पूछताछ होगी। सूत्रों के मुताबिक जांच ऐजैन्सीयों को वक्कामुल्ला के पास भी आय के कोई बड़े स्त्रोत नही मिले हैं। जिनके आधार पर वह इतना बड़ा ब्याज मुक्त कर्ज दे पाता। वक्कामुल्ला के पास भी यदि इतनी बड़ी आय के वैध स्त्रोत न मिले तो यह लेन देन भी मनीलाॅडरिंग माना जायेगा। इस लेन देन के लाभार्थीयों में वीरभद्र परिवार के सदस्यों के साथ ही ओएसडी अमित पाल सिंह भी शामिल हैं।
इस तरह से वक्कामुल्ला से हुए लेन देन की केन्द्रिय भूमिका में प्रतिभा सिंह आती है। इसलिये इस लोन की प्रमाणिकता को लेकर पहली पूछताछ प्रतिभा सिंह से होनी है क्योंकि जो पावर प्रोजेैक्ट वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर ने हिमाचल सरकार से लिया था उसमें वह डिफालटर रहे हंै। यह भी चर्चा है कि इसी वक्कामुल्ला के साथ इस परिवार के कुछ सदस्यों की कुछ मिनी हाईडल प्रोजैक्टस में भी हिस्सेदारी है। स्मरणीय है कि ईडी ने मामला दर्ज करने के बाद देश के कुछ स्थानों पर इस मामले में छापामारी की थी। इस छापामारी के सूत्र क्या रहेे हंै और छापामारी में किससे क्या हाथ लगा है इसको लेकर भी सवाल पूछे जाने की संभावना है। सूत्रों के मुताबिक जो अधिकारी प्रतिभा सिंह को उनके राजनीतिक कार्य निपटाने में सहयोग करते थे वह भी ऐजैन्सी के राडार पर चल रहे हैं और उनसे भी किसी स्टेज पर पूछताछ की जा सकती है।
अब केन्द्रिय मन्त्री मण्डल में हुए फेरबदल में स्टील मन्त्रालय की जिम्मेदारी चैधरी विरेन्द्र सिंह को मिली है। चैधरी विरेन्द्र ंिसंह जब कांग्रेस में थे तब वह हिमाचल के प्रभारी थे। लेकिन प्रभारी के नाते उनके रिश्ते वीरभद्र सिंह से बहुत अच्छे नही रहे यह सब जानते हैं। विरेन्द्र सिंह ने जब कांग्रेस छोड़ी थी तब वीरभद्र सिंह ने ही उनके खिलाफ सबसे ज्यादा कटु प्रतिक्रिया दी थी। अब सीबीआई ने जो सर्वोच्च न्यायालय में फिर से दस्तक दी है उसे भी इसी परिदृश्य में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि वीरभद्र के स्टील मन्त्री के कार्यकाल में वर्ष 2011 में सेल के आधुनिकीकरण के लिये 10,883 करोड़ और आरआईएनएल के लिये खर्च किये गये 12,228 करोड़ भी सीबीआई की जांच के दायरे में चले रहे हैं। इस आधुनिकीकरण के तहत सरकारी और निजि क्षेत्र में 64 रिसर्च प्रोजैक्टस शुरू किये गये थे जिन पर 2010 मे 442 करोड़ खर्च किये गये थे। इसी आधुनिकीकरण के तहत ही एक स्क्रैब सबकमेटी गठित की गयी थी। इस कमेटी द्वारा किये गये कार्यो पर भी जांच की संभावना है। Sail द्वारा पीआरपी के तहत 2011 में कुछ अधिकारियों को की गयी 232 करोड़ की पेमैन्ट को लेकर तो कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में कड़ी टिप्पणीयां की हुई हैं। माना जा रहा है कि कैग की टिप्पणीयांें को आधार बनाकर सीबीआई स्टील मन्त्रालय को लेकर एक बड़ी जांच को भी अंजाम दे सकता है। इस परिदृश्य में आने वाले दिनों में आय से अधिक संपत्ति और मनीलाॅडरिंग के मामले वीरभद्र परिवार पर और भारी पड़ सकते हैं यदि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर और बागीचे की आय प्रमाणित न हो पायी तो।
शिमला। क्या प्रदेश के राजभवन और राज्य सरकार के सचिवालय के बीच खुला टकराव होने जा रहा है। यह चर्चा सचिवालय और राजभवन के गलियारों से निकलकर मालरोड के स्कैंडल प्वाईंट तक पहुंच गयी है। चर्चा का आधार है राजभवन में लंबित खेल विधेयक। वीरभद्र सरकार ने इस कार्यालय में एक बार फिर विधानसभा में नया खेल विधेयक पारित करवाया है। जब यह विधेयक सदन मे चर्चा में आया था तो उस समय भाजपा ने इसका कड़ा विरोध करते हुए इसे सलैक्ट कमेटी को सौंपने का प्रस्ताव रखा था जिसे संख्या बल के आधार पर सरकार ने अस्वीकार करते हुए विधेयक पारित कर दिया था।
लेकिन इस विवादित विधेयक का विरोध सदन से निकल कर राजभवन तक पहुंच गया। भाजपा के एक प्रतिनिधिमण्डल ने राजभवन में महामहिम राज्यपाल से मिलकर इस विधेयक को अपनी स्वीकृति न देने का अनुरोध किया। भाजपा के बाद एचपीसीए ने भी अनुराग की अध्यक्षता में राजभवन में दस्तक देकर इस विधेयक को स्वीकृति न देने का आग्रह किया। संयोगवश राज्यपाल की नियुक्ति भाजपा की मोदी सरकार ने की है। ऐसे में भाजपा के विरोध को नजर अन्दाज कर पाना राजभवन के लिये संभव ही नही है। इसी कारण से यह विधेयक आज तक राजभवन में लबिंत पडा हुआ है। वीरभद्र कई बार इस विधेयक को लेकर राजभवन को कोस चुके हैं। अब तो नया विधेयक लाने तक की धमकी दे दी है। लेकिन राजभवन पर अब भी कोई असर नही है। क्यांेकि वित विधेयक के अतिरिक्त अन्य किसी भी विधेयक को किसी समय सीमा के भीतर पारित करने या वापिस लौटाने की बाध्यता नही है। इसी के सहारे राजभवन खेल विधेयक पर खामोश बैठा है।
लेकिन अब कृषि और बागवानी विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों को सेवा विस्तार दिये जाने के सरकार के अनुरोध को ठुकराकर राजभवन ने अपनी नीयत और नीति जग जाहिर कर दी है। प्रदेश के भीतर चल रहे विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक और शेैक्षणिक मामलों में राज्य सरकार को दखल का अधिकार नही है। इन पर कुलाधिपति के नाते राज्यपाल का ही एकाधिकार है। राज्य सरकार ने अपने ही स्तर पर सेवा विस्तार की अनुशंसा करके कुलाधिपति के अधिकारों का अतिक्रमण करने का जो प्रयास किया था उसे ठुकरा कर नये आवेदन मंगवाने की अधिसूचना जारी करके राज्य सरकार को करारा जवाब दिया है। राजभवन और राज्य सचिवालय में पनपता यह सौहार्द क्या रंग दिखायेगा इस पर सबकी निगाहें लगी हंै।
शिमला/शैल। जब से केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जेे.पी. नड्डा ने प्रदेश की राजनीति में वापसी के संकेत दिये हैं तब से न केवल भाजपा के भीतरी समीकरणों में ही बदलाव आया है बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित पूरे प्रदेश के सियासी समीकरण बदले हैं। भाजपा में नड्डा
को प्रदेश के अगले मुख्यमन्त्री के एक प्रबल दावेदार के रूप में एक वर्ग से देखना शुरू कर दिया है। इस वर्ग का तर्क है कि अगले चुनाव तक धूमल 75 वर्ष की आयु सीमा के दायरे में आ जायेंगे और भाजपा ने जब केन्द्र में 75 के पार के नेताओं को केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल से बाहर रखा है तो फिर प्रदेशों में भी यह नियम लागू करना ही पडे़गा। कांगड़ा के सांसद पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार इसी गणित के चलते केन्द्रिय टीम से बाहर है। केन्द्र की इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश के नेताओं का इससे प्रभावित होना भी स्वाभाविक है। इसी प्रभाव का परिणाम था कि जब पिछले दिनो नड्डा पीटरहाॅफ में आये थे तो धूमल के सर्मथकों का एक बड़ा वर्ग उनके गिर्द घेरा डाले देखा गया था। चर्चा तो यहां तब है कि कुछ लोगों ने धूमल और अनुराग के खिलाफ चल रहे एचपीसीए और अन्य मामलों की विस्तृत जानकारी भी पार्टी अध्यक्ष अमितशाह तक पहुंचा दी है। सूत्रोें की माने तो करीब एक दर्जन विधायकों ने भी ऐसे पत्र पर हस्ताक्षर किये है। आय से अधिक संपति की शिकायत का भी पूरा जिक्र इसमें किया गया है। तर्क रखा गया है कि चुनावोेें के दौरान यह मामले चर्चा में आयेगें और इनका पार्टी की सियासी सेहत पर प्रतिकूल असर पडे़गा। धूमल खेमा भी इस पूरे खेल पर नजर रखे हुए है। माना जा रहा है कि इस रणनीति के सूत्र धारों में शान्ता और उनके समर्थक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भाजपा के इन समीकरणों का प्रभाव हिलोपा और प्रदेश की आम आदमी पार्टी ईकाईयों पर भी पडा है। हिलोपा के भाजपा में संभावित विलय की जो चर्चाएं 2013 में ही शुरू हो गयी थी वह अब फलीभूत होती नजर आ रही हैं। हिलोपा का सारा कुनवा नाराज भाजपाईयों का ही था। सब जानते है कि नाराज लोग धूमल की कार्यशैली के विरोधी थे और समय-समय पर अपनी नाराजगी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं तक पहंचाते रहे हैं बल्कि भाजपा से अलग होने से पहले धूमल के खिलाफ एक विस्तृत प्रतिवेदन तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी को सौंपा था। जिसकी जांच उस समय नड्डा को ही सौंपी गयी थी। हिलोपा के कई लोग विलय का एक समय तक विरोध करते रहे है। लेकिन अब बदले समीकरणों में सबने एकमत से यह फैसला महेश्वर पर छोड़ दिया हैै। हिलोपा का विधिवत विलय कभी भी सुनने को मिल सकता है। क्योंकि इस समय यह विलय हिलोपा और भाजपा दोनों की राजनीतिक आवश्यकता बन चुका है। भाजपा का राष्ट्रीय ग्राफ अब आशानुरूप आगे नहीं बढ़ रहा जिसके हर आये दिन नए नए कारण बनते जा रहें हंै। हिलोपा विलय की चर्चा के बाद विकल्प बनने की सोच भी नही सकती है।
स्ंायोगवश इसी सबके बीच प्रदेश की आम आदमी पार्टी ईकाई भी भंग हो गयी। लोकसभा चुनावोें में चारो सीटों पर चुनाव लड़कर प्रदेश में कदम रखने वाली पार्टी तब से लेकर अब तक अपनी उपस्थिति तक ढंग से दर्ज नही करवा पायी। परिणाम स्वरूप केन्द्रिय नेतृत्व को कड़ा कदम उठाते हुए इसे भंग करना पडा। नयी ईकाई के गठन की प्रक्रिया तो चल रही है लेकिन कब तक यह पूरी होकर प्रभावी ढंग से काम करना शुरू कर पायेगी यह कहना कठिन है फिलाहल आप के न होने का भी लाभ भाजपा और कांग्रेस को ही मिलेगा यह स्वाभाविेक है।
कांग्रेस इस समय वीरभद्र मामले में ऐसी उलझ गयी है कि उसे कोई भी स्पष्ट फैसला लेने का साहस नही हो रहा है। सरकार इस समय हर रोज अपनी कथित उपलब्धियों के वखान नये-नये विज्ञापन जारी कर रही है। विज्ञापनों की रफ्रतार जितनी तेज है उतनी ही तेजी वीरभद्र के दौरे में रही है। वीरभद्र ने भी अपने दौरों में जनता को दिल खोल कर घोषणाओं का तोहफा दिया है। घोषणाओं और विज्ञापनों को एक साथ मिलाकर देखाजाये तो पूरी स्थिति चुनाव प्रचार अभियान का संकेत देती है। क्योंकि घोषणाओं और विज्ञापनों से जनता में जो जन अपेक्षाएं उभार दी गयी हैं उन्हे दिसम्बर 2017 तक यथा स्थिति बनायेे रखना किसी के लिये भी संभव नहीं है। फिर वीरभद्र सीबीआई और ईडी के जाल में ऐसे उलझे हुए हैं कि हर समय किसी भी अशुभ की आंशका के साये में जी रहे हैं। यह आंशका कभी भी सही सिद्ध हो सकती है कि स्थिति बनी हुई है। ऐसे में कांग्रेस के लिये नेतृत्व परिवर्तन या विधानसभा भंग करवा कर नये चुनावों में जाने का फेैसला लेने की बाध्यता बढ़ती जा रही है। यदि विधानसभा भंग करवा कर नये चुनाव करवाने का फैसला लिया जाता है तो भाजपा भी उसका अनुमोदन करने को तैयार बैठी है कांग्रेस और भाजपा दोनों ही यह चाहेगें कि अगले वर्ष पंजाब के चुनाव होने से पहले ही हिमाचल के चुनाव करवा लिये जायंे। क्योंकि इस समय प्रदेश में तीसरा राजनीतिक विकल्प है ही नही। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि इस समस कांग्रेस और भाजपा इस संभावित विकल्प को रोकने के लिये अपरोक्ष में आपस में तालमेल भी कर सकते हैं।
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