शिमला/शैल। हिमाचल की बेटी पदमश्री अभिनेत्राी कंगना रणौत और उनकी बहन रंगोली चन्देल के खिलाफ मुंबई में बान्द्रा पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 158 A, 295 A और 124 A के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है। यह मामला अदालत के सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आये निर्देशों पर दर्ज किया गया है। इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय में आयी एक याचिका पर कंगना रणौत के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। कर्नाटक में दर्ज किया गया मामला कंगना की उन प्रतिक्रियाओं पर किया गया जो उन्होंने कृषि उपज विधेयकों पर उभरे किसान आन्दोलन को लेकर सोशल मीडिया के मंचो पर अपनी पोस्ट और ट्वीटस के माध्यम से व्यक्त की थीं। मुबई में फिल्म उद्योग के एक कास्ंिटग निदेशक मुनब्बर अलि सैयद की शिकायत पर अदालत में मामला दर्ज करने के निर्देश दिये हैं। दानों ही मामले गंभीर हैं और इनके परिणाम भी गंभीर होंगे। माना जा रहा है कि इन मामलों में कंगना के पास सार्वजनिक क्षमा याचना मांगने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रहेगा। उसकी यह प्रतिक्रियाएं राजनीतिक बड़बोलेपन का परिणाम मानी जा रही हैं। कंगना सार्वजनिक तौर पर चर्चा में तब आयी जब सुशान्त सिंह राजपूत प्रकरण पर उन्होंने अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी को एक इन्ट्रव्यूह देकर यह कहा कि सुशान्त ने आत्महत्या नही की है बल्कि यह हत्या का मामला है। इसमें ड्रग माफिया की भी भूमिका है और इस सबके उनके पास पक्के सबूत मौजूद हैं। कंगना ने यहां तक दावा किया था कि यदि वह अपने आरोपों को प्रमाणित नही कर पायेंगी तो पदमश्री वापिस कर देंगी। इसी बीच मुुंबई में उनके कार्यालय में हुए अवैध निर्माण के खिलाफ कारवाई हो गयी। इस कारवाई को लेकर कंगना ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जुबानी जंग छेड़ दी थी। इस जंग के परिणाम स्वरूप हिमाचल सरकार ने उसे सुरक्षा दे दी। हिमाचल सरकार की सिफारिश पर केन्द्र ने उसे वाई प्लस सुरक्षा प्रदान कर दी। एकदम इतनी सुरक्षा और चर्चा पा लेने के परिणाम स्वरूप यह क्यास लगाये जाने शुरू हो गये कि राष्ट्रपति उसे सांसद मनोनीत करने वाले हैं और बिहार विधान सभा चुनावों में कंगना भाजपा की स्टार प्रचार हो जायेंगी। हिमाचल में भी उसे भविष्य में बड़ी भूमिका में देखा जाने लगा। प्रदेश भाजपा ने उसके अवैध निर्माण को गिराये जाने के खिलाफ शिमला की रिज से उसके पक्ष में प्रदेशभर में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया। मोदी -भाजपा के भक्तों ने तो मीडिया और उसके बाहर बदले में प्रियंका गांधी के आवास को गिराये जाने की मांग तक छेड़ दी।
लेकिन जैसे ही सुशान्त सिंह राजपूत मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी और उसके बाद एम्ज़ की विशेषज्ञ कमेटी ने पूरी स्पष्टता के साथ सुशान्त की मौत को हत्या की बजाये आत्महत्या ही करार दिया तो सारा परिदृश्य ही बदल गया। अब तो सीबीआई ने भी सुशान्त सिंह मामले को आत्महत्या ही कहा है। जब सारी बहस का मुद्दा ही बदल गया तो एनवीएसए ने कुछ मीडिया चैनलों के खिलाफ अपनी गाज गिराते हुए उन्हें जुर्माना लगाया और फतवा दिया कि सुशान्त मामले में बहुत कुछ झूठ परोसा जा रहा था। इस कारवाई से पूरे प्रकरण का परिदृश्य ही बदल गया है। प्रदेश भाजपा के लिये कंगना रणौत अब कोई मुद्दा नही रह गया है और कंगना ने स्वयं भी इस संबंध में मौन धारण कर लिया है। अब जब अदालत के निर्देशों पर कंगना के खिलाफ मामले दर्ज हो गये हैं और भाजपा इस पर कोई चर्चा नहीं कर पा रही है तो राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में दबी जुबान से यह कहा जाने लगा है कि कंगना के कन्धों पर महाराष्ट्र और बिहार में कोई बड़ी गेम खेलने की विसात बिछा रही थी जो एम्ज की रिपोर्ट आने से आगे नहीं बढ़ पायी।
शिमला/शैल। जिस अटल टनल का उद्घाटन प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तीन अक्तूबर को किया है इसका शिलान्यास 28 जून 2010 को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद की मेयर पर्सन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया था। उस समय प्रदेश में मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल थे और वीरभद्र केन्द्र में ईस्पात मन्त्री थे। इस शिलान्यास में यह सभी लोग शामिल थे और इसकी पट्टिका वहां पर लगाई गयी थी लेकिन अब जब इस अटल टनल का प्रधानमन्त्री ने उद्घाटन किया तब यह शिलान्यास पट्टिका वहां से गायब हो गयी। इस पर जब कांग्रेस ने सवाल उठाया तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संसद सुरेश कश्यप ने यह जवाब दिया कि कांग्रेस भी अपने शासन में ऐसे पट्टिकाओं को बदलती रही है और इसके कई प्रमाण उनके पास हैं। भाजपा अध्यक्ष के इस जवाब से स्पष्ट हो जाता है कि शिलान्यास पट्टिका को पूरी सोच समझ के साथ ही वहां से हटाया गया है।
स्मरणीय है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी उद्घाटन अवसर पर कहा था कि उनसे पहले की सरकारों में ईच्छाशक्ति का अभाव था इसलिये बड़ी योजनाओं पर काम नहीं हो सका। प्रधानमन्त्री के इस कथन से यह गंध आती है कि उनसे पहले देश में किसी ने कुछ किया ही नहीं है। जो कुछ भी विकास हुआ है वह मोदी के आने पर ही हुआ है। स्वभाविक है कि जब शीर्ष पर बैठे हुए व्यक्ति में ऐसी मानसिकता घर कर लेती है तब नीचे का हर व्यक्ति भी उसी मानसिकता से ग्रस्त हो जाता है और आज शायद भाजपा इसी का शिकार हो रही है। जो नेता ऐसी सोच से सहमत नही होते हैं उन्हें ऐसे अवसरों पर आने से ही रोक दिया जाता है। सुरेश कश्यप का जवाब इसी मानसिकता की पुष्टि करता है।
इस शिलान्यास पट्टिका के गायब कर दिये जाने पर कांग्रेस को एक मुद्दा मिल गया है। मनाली ब्लाक कांग्रेस ने वाकायदा इस संबंध में शिकायत दर्ज करवायी है और पुलिस थाना कैलांग ने इस आश्य की एफआईआर दर्ज कर ली है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर ने इस संबंध में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर डीजीपी और जिला कुल्लु को पत्र लिखकर पन्द्रह दिनों में इस शिलान्यास पट्टिका को पुनः स्थापित करने और दोषियों के खिलाफ बड़ी कारवाई करने की मांग की है अन्यथा कांग्रेस इस मुद्दे को प्रदेश की जनता के सामने ले जायेगी। इस समय पूरा देश किसान आन्दोलन के कारण उबल रहा है। हिमाचल के किसान बागवान भी इस पर अपना रोष प्रकट कर चुके हैं। ऐसे माहौल में कांग्रेस को सरकार के सारे जन विरोधी फैसलों को जनता में ले जाने का अवसर मिल गया है। राठौर ने इस संद्धर्भ में आरोप लगाया है कि जब कोरोना के कारण आम आदमी की पूरी वित्तिय स्थिति प्रभावित हो गयी है तब ऐसे वक्त में सरकार ने अपनी तिजोरी भरने के लिये बिजली, पानी मंहगा किया फिर बस किराये बढा दिये और अब अस्पतालों में टेस्टों के रेट बढ़ा कर एक और बोझ जनता पर डाल दिया है। पिछले सात महीने से लोगों के काम धन्धे बन्द हैं और सरकार लगातार मंहगाई परोसती जा रही है। राठौर ने इन सारे बढ़े हुए दामों को वापिस लेने की मांग करते हुए सरकार को चेतावनी दी है कि सीमेन्ट कंपनीयों के दवाब में प्रदेश को लूटा जा रहा है। राठौर ने किसानों बागवानों के कृषि क्रेडिट कार्ड पर चक्रवृद्धि ब्याज वसूलने पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे तुरन्त प्रभाव से बन्द करने की मांग की है।
माना जा रहा है कि शिलान्यास पट्टिका गायब किये जाने से कांग्रेस को सरकार के खिलाफ जनता में जाने के लिये एक बहुत ही प्रभावी मुद्दा मिल गया है। सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है क्योंकि इस तरह का आचरण सबके विकास, सबके साथ और सबके विश्वास से एकदम उल्ट है। ऐसे में सारे फैसलों को मिलाकर जनता के लिये एक बड़ा मुद्दा बन जाता है।
शिमला/शैल। अटल टनल उद्घाटन एक बड़ा अवसर था क्योंकि इसका सामरिक महत्व है और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं यह उद्घाटन किया। फिर यह उद्घाटन कोरोनाकाल में हुआ और यह दौर आर्थिक मंदी का चल रहा है। इस आर्थिक मंदी का असर प्रदेश पर भी हुआ है। इससे राजस्व संग्रहण पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और केन्द्र ने राज्य को उसका जीएसटी का हिस्सा देने में भी असमर्थमता व्यक्त कर दी है। यही नहीं एक समय प्रदेश के लिये घोषित किये गये 69 राष्ट्रीय राजमार्गो का तोहफा भी क्रूर मज़ाक ही साबित हुआ है। ऐसे हालात में प्रधानमन्त्री का प्रदेश में आना एक बहुत बड़ा अवसर था। माना जा रहा था कि प्रदेश का नेतृत्व जब सामूहिक रूप से प्रधानमन्त्री के सामने प्रदेश की कठिनाईयां रखेगा तो अवश्य ही कुछ विशेष सहायता मिल जायेगी। जब मुख्यमन्त्री के साथ दो पूर्व मुख्यमन्त्री भी मिलकर प्रदेश का पक्ष रखेंगे तो उसे नज़रअन्दाज करना संभव नही होगा। क्योंकि जब सार्वजनिक रूप से शीर्ष नेतृत्व द्वारा कोई मांग रखी जाती है तो वह अवश्य ही पूरी होती है। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। प्रधानमन्त्री अलग से प्रदेश को कुछ देकर नही गये। बल्कि बहुत सारे लोगों का अपने संबोधन में नाम तक नहीं ले पाये। इस नाम न लेने से बहुत लोगों के योगदान को प्रधानमन्त्री उचित मान सम्मान तक नहीं दे पाये बल्कि यह कहकर गये कि उनके पूर्ववर्तियों मे बड़ी योजनाओं के लिये ईच्छा शक्ति का अभाव था सभी की निन्दा भी कर गये और यह अब विपक्ष को एक मुद्दा भी मिल गया है।
अब विपक्ष के साथ ही सत्तापक्ष में भी दबी जुबान से यह चर्चा शुरू हो गयी है कि आखिर प्रधानमन्त्री से इतनी बड़ी भूल कैसे हो गयी। क्या उद्घाटन से पहले प्रधानमन्त्री की प्रदेश के नेतृत्व और शीर्ष प्रशासन से इस बारे में कोई चर्चा नही हुई होगी। क्योंकि सामान्यतः ऐसे आयोजनों से पहले प्रदेश नेतृत्व से पूरा फीडबैक लिया जाता है ताकि बाद में प्रदेश को उससे लाभ मिले। लेकिन इस आयोजन में जिस तरह से प्रदेश भाजपा के दो वरिष्ठतम नेताओं पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल इसमें आने से ही रोक दिये गये उससे निश्चित रूप से प्रदेश की राजनीति में एक नई ईबारत लिखे जाने का धरातल तैयार हो गया है। क्योंकि शान्ता-धूमल का प्रदेश में अपना एक अलग ही स्थान है प्रदेश के लिये इनके योगदान को हर चुनाव में भुनाया जाता है। यदि 2017 के विधानसभा चुनावों में धूमल को नेता घोषित नही किया जाता तो शायद भाजपा की सरकार न बन पाती। विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनावों की जीत केन्द्रिय नेतृत्व के कारण मिली है और उसके बाद विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की कमजोरी के कारण सफलता मिली थी। यह सफलताएं प्रदेश सरकार और संगठन के कारण कतई नहीं है। इसका खुलासा अब कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक के निदेशकों के हुए चुनावों में हो गया है। इन चुनावों में राकेश पठानिया, सरवीण चैधरी, विक्रम ठाकुर और गोविन्द ठाकुर के जोनों में भाजपा उम्मीदवारों की हार एक बड़ा सन्देश है क्योंकि यह सभी जयराम मन्त्रीमण्डल के प्रभावी मन्त्री हैं।
यही नहीं सरकार और संगठन में भी सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है इसका संकेत पिछले दिनों सरवीण चैधरी पर लगे ज़मीन खरीद के आरोपों से सामने आ चुका है। इन आरोपों के सामने आते ही विजिलैन्स जांच की चर्चाएं चली लेकिन जैसे ही सरवीण ने अपना मुह खोला तो इन सबकी हवा निकल गयी। स्वास्थ्य विभाग में डा. राजीव बिन्दल पर आरोप और उन्होंने नैतिकता के आधार पर अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। बाद में उन्हें क्लीनचिट मिल गया और संदेश यह गया कि शायद यह आरोप उन्हे अध्यक्ष पद से अलग करने के लिये ही लगाये गये थे। अब नरेन्द्र बरागटा के चुनावक्षेत्र में दूसरे नेताओं के बढ़ते दखल पर राजनीति गर्माने लगी है। बरागटा इस दखल से आहत हैं और मुख्यमन्त्री तथा पार्टी अध्यक्ष से अलग-अलग मिलकर अपना रोष प्रकट कर चुकें हैं। लेकिन इस पर भी अभी तक कोई परिणाम सामने नही आया है। कांगड़ा में रमेश धवाला बनाम पवन राणा खड़ा हुआ मुद्दा भी अपनी जगह अभी तक कायम है। अभी पीछे जो अधिकारियों के तबादले हुए हैं उनमें भी यह बाहर आया है कि एक अधिकारी के साथ एक विधायक के रिश्ते अच्छे न होने की गाज तबादले के रूप में गिरी है। मुख्यमन्त्री पर कौन लोग प्रभावी हो गये हैं यह चर्चा भी लगभग हर जुबान तक आ चुकी है। मन्त्री ही एक दूसरे के खिलाफ अपरोक्ष में यह उछालने लग गये हैं कि किसने कहां मकान खरीद लिया और किसने बागीचा खरीद लिया। पार्टी कार्यालय सोलन के लिये ज़मीन खरीदने में पार्टी के ही लोगों के खिलाफ घपला करने के आरोप भी अपनी जगह अब तक खड़े हैं। ऐसे में अगर इस सबको इकट्ठे मिलाकर एक आकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी के भीतर रोष की एक एक चिंगारी सुलगनी शुरू हो गयी है जो कभी भी किसी बड़े विस्फोट की शक्ल ले सकती है।
जब सरकार और संगठन में अन्दरखाते अशांति का वातावरण खड़ा हो तब दो वरिष्ठतम नेताओं पूर्व मुख्यमन्त्रीयों को प्रधानमन्त्री के लिये रखे आयोजन में शामिल होने के लिये मना कर दिया जाये तो यह स्वभाविक है कि इसको लेकर प्रदेश भर में चर्चाओं का दौर चलेगा ही। ऐसे में यह देखा जा रहा है कि क्या शान्ता -धूमल को इस आयोजन में न आने के निर्देश देना उनका मान सम्मान माना जाये या यह माना जाये कि वह अब अप्रसांगिक हो गये हैं। क्योंकि यदि यह एहमियत कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते अपनाई गयी है तब तो यह सरकार के कोरोना प्रबन्धों पर केन्द्र का एक बड़ा फतवा हो जाता है। क्योंकि यह निर्देश पीएमओ के नाम से प्रदेश की जनता के सामने रखे गये हैं।
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