Friday, 19 September 2025
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प्रदेश के तीस मानवाधिकार संगठनों ने दी आवाज हम अगर नहीं उठे तो...

ह्रास होते संवैधानिक मूल्यों और जनाधिकार पर चिन्ता व्यक्त करते हुए  प्रदेश में कार्यरत मानवाधिकार संगठनों ने एक मंच पर आकर राष्ट्रीय अभियान  ‘‘ हम अगर नहीं उठे तो.........’’ के लिये देश प्रदेश के नागरिकों का आहवान किया है कि वह राष्ट्रीय प्रश्नों पर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। मंच  का मानना है कि.......पिछले पांच महीनों में जब से देश वैश्विक महामारी से  ग्रस्त हुआ है और राष्ट्र व्यापी तालाबंदी हुई है, इस ने हमारे राजनीतिक,  आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था की घोर खामियां और गंभीर अभाव को नंगा कर दिया है।
आज लाखों की संख्या में जनता के सबसे कमजोर तबके खासकर महिला, दलित,  अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, किसानों, ट्रांसजेंडर्स लोगों को अपने जीवन और  स्वाभिमान के लिए अनगिनत संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है। इन विभिन्न  समुदायों द्वारा झेली गई खुली और गुप्त हिसां की निदां की जानी चाहिए। इस दौरान, सरकारों ने सार्वजिनक हित में जवाबदेही की बजाए एक एडहाॅक  (तदर्थ), केंद्रिकृत और गैर संवेदनशील रवैया अपनाया। सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के बजाये मजदूरों व उन किसानों का  जिन्होंने अपना रोजगार उनकी आर्थिक मदद करने के बजाये राज्य लगातार सार्वजनिक संसाधनों का निजीकरण करने के लिए कार्य कर रहा है, जनता और  पर्यावरण को ‘ 'ease of doing business (कारोबार करने में सुगमता) के नाम  से बेचा जा रहा है, डिजिटल निगरानी बढ़ाई जा रही है, और उन आवाजों को दबाया जा रहा है जो कि जवाबदेही पारदर्शिता और न्याय की मांग कर रही हैं।
हिमाचल प्रदेश, जिस को देश में एक प्रगतिशील राज्य के तौर पर देखा जाता है, में पिछले कुछ दशकों से हमने देखा है कि न केवल जनहितैषिता नीतियां व  शासकीय प्रक्रियाएं क्षीण होती जा रहे हैं बल्कि सामाजिक और आर्थिक  धुर्वीकरण भी बढ़ रहा है। नफरतों से भरे संदेश व फर्जी खबरें राज्य में  दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमलों का कारण बन रही हैं। हिमाचल की बेरोजगार  दर अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है और नौजवान गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट में फसें हो जो आत्महत्या व नशों की तरफ धकेले जा रहे हैं। लाकडाउन के  दौरान राज्य में महिलाओं पर बर्बर घरेलू व लैंगिक हिसां के मामले तेजी के  साथ बढे़ हैं। घरेलू स्तर पर पुनरपलायन (reverse migration) ने महिलाओं  पर अतिरिक्त कार्यभार डाल दिया है। जैसे ही स्कूल लाकडाउन में आ गए तो आनलाईन शिक्षा का मंत्र फूंक दिया गया  और परिजनों को पालतू पशु बेच कर स्मार्टफोन खरीदने को मजबूर होना पड़ा।  शिक्षा का निजीकरण घोर गरीब परिवारों की जेबों को बुरी तरह से काट रहा है।  कृषि व्यवस्था की बहुत सारी खामियों को दूर करते हुए किसानों की जीविका को  मजबूत करने के बजाए, घुमंतु व भूमिहीन समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित  करने की बजाए, राज्य सरकार हवाई अड्डे, हाईड्रो प्रोजेक्टस, फोर लेन हाईवे  के निर्माण पर जोर दे रही है। एक ऐसा राज्य जो पहले से ही विभिन्न जलवायु  और प्राकृतिक संकटों की चपेट में है, अगर लोगों की आजीविका प्रणालियों की  सुरक्षा नहीं की गयी तो आने वाले समय में यहां की सामाजिक, आर्थिक और  राजनैतिक हालात भयावह होते जायेंगे। औरतों के खिलाफ हिंसा पर रोक
राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन 181 और अन्य राज्य हेल्पलाइन जैसे कि 103, 102,  1090 आदि हर समय कार्यरत रहें घरेलू या सार्वजनिक क्षेत्र में लिग आधारित हिसां की सभी शिकायतों की दर्ज करने और उन पर कारवाई करने के लिए पुलिस को संवेदनशील और निर्देशित किया  जाना चाहिए।
सभी जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के दफ्तर कार्यत्मक होने चाहिए। फास्ट  ट्रैक और आभासी अदालतों सहित सभी न्यायालयों को संरक्षण, निवास, रखरखाव और  बाल हिरासत के आपातकालीन आदेशों को पारित करने के लिए कार्य करना चाहिए सभी पुलिस स्टेशनों/थानों में अनिवार्य रूप से पीड़ितों की सहायता और सहारे  (महिला, बच्चे और अन्य कमजोर समूह) के लिए पर्याप्त संख्या में महिला  पुलिसकर्मी होनी चाहिए वन स्टाॅप सेंटरनंबर (सखी केंद्र) पूरी तरह से कार्यशील रहने के लिए और  प्रत्येक जिले में महिलाओं के लिए आश्रय गहृ बनाए और चलाए जाने चाहिए हेल्पलाइन, वन स्टाॅप क्राइसिस सेंटर और अन्य सभी सहायता सेवाओं के बारे में प्रचार और जागरूकता सभी मीडिया प्लटफोर्माे पर आयोजित की जानी चाहिए सीमावर्ती जमीनी कार्यकर्ताओं का संरक्षण और सहायता के प्रावधान करे जाएं दलित और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षा भूमिहीन गरीब, सिंमात वन आश्रितों और दलित समाज के लोगों की बेदखली बंद की  जाए। शामलात और वनभूमि पर दलितों के अधिकार बहाल किये जाएं। भूूमि आवंटन की स्कीम को तुरंत लागू किया जाए। भेदभाव मुक्त शिक्षण संस्थान के लिए एक अभियान शुरू करे, खुला शौच मुक्त  पंचायत की तर्ज पर भेदभाव मुक्त पंचासत, जिले के अभियान। प्रदेश में बंगाल घुमन्तु बिमुक्त समुदायों, एकल महिलाओं, जनजातीय दलितों  तथा अल्पसंख्यकों की पहचान करके उनके अधिकारों और न्यायपूर्ण हिस्सेदारी के लिए समावेशी नीति बनाई जाए।
प्रदेश सरकार द्वारा आवासीय भूमिहीनों के लिए बनाई गई आवासीय भूमि योजना  में 50,000 रूपये की वार्षिक आय सीमा की शर्त से सफाई कामगारों  (बाल्मीकी) समुदाय, बंगाल समुदाय, गुज्जरों, एकल महिलाओं, दिव्यागों तथा  अनुसूचित जाति के आवासीय भूमिहीनों को बाहर रखा जाये। आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में अनुसूचित  जाति, जन जाति उपयोजना कानून बनाया जाए। राज्य एस. सी आयोग की स्थापना की जाये ताकि हिंसा के मामले का जल्द से जल्द  निपटारा किया जाए। राज्य में संवैधानिक मूल्यों- खास कर धर्म और जाति निधरित भेदभाव और गैर बराबरी को खत्म करने के लिए मीडिया के माध्यम से प्रचार प्रसार किया जाए। फेक न्यूज़ और नफरत तथा डर फैलाने वाले तत्वों पर तुरंत कारवायी की जाए।

CAA, NRC, NPR जैसे कानूनों जो समाज में ध्रुवीकरण बढाएंगे को रद्द  किया जाए।
सरकार से जवाबदेही मांगने वाले और अन्य के खिलाफ संघर्षशील सामाजिक और  राजनैतिक कार्यकर्ताओं का दमन बंद हो। युवाओं के मानसिक तनाव पर कार्य देश में नौजवानों की नौकरियों को लेकर बनी हुई असुरक्षा को खत्म करने के कृषि आधारित लघु उद्योग को बढावा दिया जाए, सरकारी क्षेत्र में नौकरियां  पैदा की जाये साथ में ही पुरानी नितियों को पूरा किया जाये। शिक्षा में स्टूडेंस के दबाब को कम करने के लिए शिक्षा नीति में किया गया बदलाव वापिस लिया जाये और शिक्षा का बाजारीकरण, निजीकरण, भगवाकरण बंद किया  जाये ताकि हर स्टूडेंस शिक्षा प्राप्त कर सके। रोजगार के साथ-साथ परामर्श प्रोग्राम करवाए जायें यहां पर वह अपनी समस्याओं
 पर विचार चर्चा कर सके और मदद के लिए टेलिफोन सेवा जारी की जाये।  बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाए।
नौजवानों को नशे से बचाने के लिए हर संभव प्रयास किये जाएं। डिप्रेशन से ग्रस्त नौजवानों के लिए मनोचिकित्सकों की फ्री सेवा प्रदान की जाए। गांव, बस्तियों व शिक्षण संस्थानों में वैज्ञानिक सांस्कृतिक कार्यक्रम और  खेल-कूद से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा जाए। शिक्षा का अधिकार सबको राष्ट्रीय शिक्षा नीति को संसद में चर्चा के लिए पटल पर रखा जाए। कोविड़-महामारी के दौरान प्रभावित हुए प्रवासी परिवारों से संबन्ध रखने वाले
बच्चों को शिक्षा का अधिकार स्वास्थ्य सुविधाएं व सह पोषण प्रदान किया जाए। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 को पूरी तरह से लागू करना सुनिश्चित किया जाए और स्कूली शिक्षा का सर्वव्यापीकरण किया जाए।
आनलाईन के माध्यम से अनुदेशों/ हिदायतों को रोका जाए और अन्य विकल्प तलाश किए जाएं। शिक्षा के व्यापारीकरण को रोका जाए गैर राज्यीय हस्तक्षेप को नियन्त्रित  करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। दलित आदिवासी, अल्पसंख्यक बच्चे, अक्षम बच्चे, बालिकायें तथा कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा मे आने वाले विशिष्ट बाधाओं को शामिल किया जाए। विद्यालयों के युक्तिकरण को समाप्त किया जाए। विद्यालयों को पुनः खुलने से पूर्व उन्हें उचित ढंग से संक्रमण मुक्त करने  तथा उनकी साफ सफाई संबन्धि उचित सुविधाएं प्रदान की जाएँ।
अध्यापकों के रिक्त पदों को तुरन्त प्रभाव से भरा जाए और उनके बचे वेतन और  भत्तों का भी तुरन्त प्रभाव से भुगतान किया जाए। प्रवासी मजदूर को सुरक्षा कोविड-19 के दौरान किये गये राशन वितरण, प्रवासी मजदूरों से जुड़ी सारी  जानकारी और अभी चल रही सरकारी योजनाओं व स्कीमों के बारे में जानकारों को  साझा और सामूहिक की जाये। राज्य में प्रवासी मजदूरों की स्थितियों पर एक सरकारी मसौदा बनाना- इसके  लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी /टास्क फोर्स का गठन कर मजदूरों की आज की  स्थितियों तथा आवश्यकताओं पर एक सर्वेक्षण तथा रिपोर्ट अगले 6 माह के अन्दर जारी होनी चाहिए। सभी प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड की अनिवार्यता हटाते हुए, राशन वितरण  प्रणाली की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इसके अलावा उनकी रोजगार गारंटी,
स्वास्थ्य सामाजिक सुरक्षा सरकार द्वारा सुनिश्चित की जाये तथा प्रवासी मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए सुविधाओं को मजबूत और सरल  भी किया  जाए। आवास सुविाधाएंः प्रवासी व अन्य सभी मजदूर जो हिमाचल में सफाई कर्मचारी,  नगर पालिका व अन्य सरकारी व विभागों में कार्यरत कामगार हैं और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले दिहाड़ी या ठेकेदार मजदूर को प्रधानमंत्री आवास  योजना व अन्य योजनाओं के तहत आवास सुविधा दी जाए।
पंचायत, ब्लाक, तहसील और जिला स्तर पर उनकी मदद के लिए हेल्पडेस्क तथा  शिकायत निवारण प्रणाली को स्थापित और क्रियान्वित करना चाहिए। राज्य के श्रम कानूनों में किये गये बदलावों को जल्द से जल्द रद्द किया  जाना चाहिए और मजदूरों के अधिकारों का हनन न हो यह सुनिश्चित करने के लिए  सभी मौजूदा कानूनों के क्रियान्वयन के लिए श्रम विभाग द्वारा तुरंत कदम  उठाये जाने चाहिए। 

ISWMA 1979 के अंतर्गत प्रदेश में काम कर रहे सभी प्रवासी मजदूरों के  पंजीकरण को अनिवार्य बनाना। मजबूरन पलार्न को रोकना और स्थायी आजीविका के साधन जिसमें - कुशलता बढाना,  जमीन/जंगल और प्राकृतिक संसाधनों पर आधरित आजीविकाओं और परंपरागत  आजीविकाओं/कुटीर उद्योगों, कृर्षि को मजबूत करने के लिए नीतियां बनाना
शामिल हो। कृषि संकट के लिए जरूरी कदम भू-उपयोग के परिवर्तन को रोकना- बहुमूल्य खेती और वनभूमि का गैर-कृषि  उपयोग, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित  नहीें किया जाये।
परम्परागत बीजों और फसल की किस्मों को बढ़ावा देकर पोषण सुरक्षा-खाद्य  संप्रभुता सुनिश्चित करें।
पर्वतीय राज्यों  में खेती को व्यवहार्य बनाने के लिए खेतों के साथ पशुधन  और वन संर्पक को पुनर्जीवित करना। भारती खाद्य निगम से गेहूं और चावल के आयात पर निर्भरता कम करना।
 पहाड़ी खेती के स्थायी और गैर-रासायनिक रूप को बढ़ावा देना। उत्पादकों की आय पर समझौता किए बिना अन्य उपलब्ध पारंपरिक व जैविक विकल्प  प्रदान करके रासायनिक उर्वरकों के उपयोग का प्रतिबंध। सहकारी-साझी और प्राकृतिक-कृषि (एग्रो-इकोलाॅजी) के तहत लाकर परती और  बंजर भूमि को समेकित किया जाए।
महिलाओं /एकल महिला मुखिया परिवार व भूमिहीन पररवारों को विकेंद्तरित तरीके से, सहभागी बना कर भूमि प्रदान की जाए। परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहित करते समय उचित मुआवजा और पुनर्वास  अधिनियम 2013 का पूर्ण और निष्पक्ष अमल किया जाए। जल-जंगल-जमीन पर अधिकार और प्राकृतिक संरक्षण पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना का केंद मंत्रालय द्वारा जारी 2020 मसौदा  रद्द किया जाए। राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं खास कर बड़ी परियोजनाओं पर तुरंत रोक लगनी  चाहिए और इनके प्रभावों पर एक बहुआयामी अध्ययन करना चाहिए। स्पीती और चेनाब नदियों को अविरल घोषित कर उन पर जल विद्युत परियोजनाएं नही
 बनाई जायें। फोर-लेन सड़कों के निर्माण पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
वन अधिकार कानून को तुरंत लागू किया जाये और लंबित दावों पर कार्यवाही के  लिए जिला और उपखंड स्तरीय समितियों की बैठकें की जाए। राज्य स्तरीय निगरानी समिति की बैठक कर कानून के क्रियान्वयन पर कार्य हो।
वनों के संरक्षण तथा प्रबधंन में स्थानीय समुदायों की पूरी भागीदारी हो तथा वन आधारित समुदाय जैसे घुमंतू पशुपालकों और जन जातीय समुदायों की  आजीविकाओं को भी मजबूत किया र्जो -इसमें ग्राम सभा की भूमिका को मजबूत किया जाये ।
जन जातीय क्षेत्रों में PESA कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाये।

टूरिस्म को निंयंत्रित किया जाये और टूरिस्म से जुड़े निर्माण खास कर  शहरों में निर्माण कार्याें को योजनाबद तरीके से जनता और नागरिकों की
भागीदारी के साथ लागू किया जाये। शहरी गैर कानूनी इमारतों को लेकर NGT के निर्णयों का पालन किया जाये।
ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए और प्रदूषण को रोकने के लिए योजनायें बनाई  जाए। और प्रदूषण निंयत्रण बोर्ड को मजबूत किया जाये। हम अपील करते हैं कि इन सभी मुद्दों पर सरकार और सरकारी संस्थानों द्वारा  ठोस कदम उठाये जायें ताकि हिमाचल की जनता के संवैधानिक और मूलभूत अधिकारों  को सुरक्षा प्रदान हो।
आल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन एसोसिएशन, बल्ह बचाओ किसान संघर्ष समिति, भगत सिंह विचार मंच, दलित शोषण मुक्ति मंच, दलित विकास संगठन, ईगैलिटेरियन  ट्रेल्स, एकल नारी शक्ति संगठन, घुमंतू पशुपालक महासभा, गुज्जर कल्याण सभा, हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति, हिमाचल किसान सभा, हिमाचल प्रदेश वर्कर्स सालिडेरिटी, हिमाचल स्टडेन्ट एनसेम्बल, हिमाचल वन अधिकार मंच, हिमाचल  अवेकनिंग सोसाईटी, सिरमौर, हिमासहल नारी सभा, हिमालय नीति अभियान, हिमधरा  पर्यावरण समूह, जागोरी ग्रामीण, जान अभियान संस्था, जन जातीय एकता मांच, करसोग जन सेवा विकास मंच, कांगड़ा नागरिक अधिकार मंच, महिला कल्याण, कुल्लू, नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वीमेन, वन बिलियन राइजिंग अभियान, पर्वतीय महिला अधिकार मंच, पीपल एक्शन फार पीपल इन नीड, राइट तो एजुकेशन फोरम, हिमाचल,  सामाजिक आर्थिक समानता के लिए जान मांच, संभावना संस्थान, स्पिति सिविल  सोसाइटी, तीर्थन कंसर्वशन एंड टूरिज्म डेवलपमेंट एसोसिएशन, यंग वीमेन  क्रिस्चियन एसोसिएशन।

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