Sunday, 21 December 2025
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सरकार और संगठन के लिये आसान नही होगा आने वाला समय

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश भाजपा के प्रभारी और सह प्रभारी दोनों बदल दिये गये हैं। हिमाचल ही नही बल्कि अन्य राज्यों के प्रभारी भी बदले गये हैं। इस नाते हिमाचल के संद्धर्भ में इस बदलाव को अलग से देखने आंकने की कोई ज्यादा आवश्यकता नही बनती है। लेकिन प्रदेेश भाजपा के अन्दर जो कुछ पिछले कुछ असरे से घट रहा है उस परिदृश्य में यह बदलाव महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि हाईकमान सबसे पहले और सबसे ज्यादा अधिमान राज्य के बारे में प्रभारी की रिपोर्ट को ही देता है। कई बार प्रभारी हाईकमान के सामने बहुत सारी चीजों को आने ही नही देते हैं क्योंकि वह ज्यादातर सरकार से प्रभावित रहते हैं। सरकार के कारण बहुत सारे कार्यकर्ता तो प्रभारी तक पहुुच ही नही पाते है। प्रभारी सभी कार्यकर्ताओं को जान ही नही पाते हैं। भाजपा के पिछले प्रभारी मंगल पंाडे की इस संद्धर्भ में बहुत सारी स्वभाविक सीमाएं रही हैं क्योंकि वह स्वयं बिहार के रहने वाले थे इस नाते हिमाचल के सभी लोगों को समझना-जानना उनके लिये संभव था ही नही। फिर वह प्रभारी के साथ-साथ बिहार में मन्त्री भी थे। इस परिप्रेक्ष में अब जो प्रभारी अविनाश राय खन्ना लगाये गये हैं वह हिमाचल के बारे में सारी जानकारी रखते हैं क्योंकि पंजाब से ताल्लुक रखते हैं। गडशंकर एकदम ऊना से लगा क्षेत्र है। 1966 तक तो आज का आधा हिमाचल पंजाब ही था। इस कारण खन्ना एक ऐसे प्रभारी सिद्ध होंगे जो राज्य सरकार की फीडबैक पर निर्भर नही करेंगे। यही स्थिति सह प्रभारी टण्डन की है क्योंकि वह चण्डीगढ से हैं। इस परिप्रेक्ष में यह बदलाव महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को प्रभारी और सह प्रभारी बहुत अरसे से व्यक्तिगत स्तर पर जानते है। संभवतः इसी कारण से भाजपा के भीतर इन नियुक्तियोें के बाद एक हलचल शुरू हो गयी है। कई कयास लगने शुरू हो गये हैं इस हलचल का आधार यह माना जा रहा है कि जब प्रभारियों की नियुक्तियों को दिल्ली में अन्तिम रूप दिया जा रहा था उस समय केन्द्रिय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर प्रदेश के दौरे पर थे। उन्हंे यह दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली बुला लिया गया। उनके कार्यक्रमों को यहां पर संासद किश्न कपूर ने पूरा किया। अनुराग के दिल्ली वापिस जाने के बाद प्रभारियों का यह फैसला आया और उसके बाद उन्हंे जम्मू कश्मीर के निकाय चुनावों के लिये प्रभारी भी नियुक्त कर दिया गया। आने वाले दिनों में केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल में भी फेरबदल होने जा रहा है। इस फेरबदल में अनुराग के प्रभावित होने की भी अटकले हैं हिमाचल में सरकार को तीन वर्ष हो गये है। हिमाचल में हर चुनाव में सरकार बदल जाती है यह इतिहास रहा है। इस बार सरकार लम्बे अरसे से विवादों में चल रही है यह विवाद भी अपने ही लोगों के कारण रहे हैं। सरकार और उसके मन्त्रीयों की कारगुजारियों को लेकर कई गुमनाम पत्र अपने ही कार्यकर्ता लिख चुके हैं। एक पत्र पर हुई हलचल का परिणाम है अपने ही पूर्व मन्त्री के खिलाफ एफआईआर बाद में इसी प्रंसग में निदेशक स्वास्थ के खिलाफ मामला बना और गिरफ्तारी हुई। स्वास्थ्य मन्त्री बदला, विधानसभा अध्यक्ष बदला और फिर पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी गयी। संगठन में नये अध्यक्ष के आने के बाद कई स्थानों पर संगठन की ईकाईयों में फेरबदल हुआ। सरवीण चैधरी, रमेश धवाला, पवन राणा, राजीव बिन्दल, महेन्द्र सिंह और नरेन्द्र बरागटा सबके सब अपने-अपने में मुद्दा बने हुए हंै। सोलन में पार्टी कार्यालय के लिये ली गयी ज़मीन में जो घपला हुआ है उससे यह सन्देश गया है कि जो पार्टी अपने ही घर में घपला कर सकती है वह अन्य जगहों पर क्या कुछ करती होगी। स्वभाविक है कि जिस सरकार के साये तले इतना सब कुछ घट जाये उसके सत्ता मेें वापसी करने को लेकर सोचना भी दूर की बात हो जाती है। सरकार किन लोगों के प्रभाव में काम कर रही है यह अब एक सामान्य जन चर्चा बन चुकी है लेकिन शायद पार्टी हाईकमान ही इस जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ रही है।
संभव है कि पूर्व प्रभारी हिमाचल का आकलन भी बिहार के आईने से ही करते रहे हैं इसीलिये इस सब पर ध्यान नही दिया गया। माना जा रहा है कि नये प्रभारी इस सब कुछ को तुरन्त प्रभाव से हाईकमान के संज्ञान में लायंेगे। क्योंकि हिमाचल के सन्द्धर्भ में यह जो कुछ घट चुका है बहुत मायने रखता है। अब तो अदालत तक ने सात विभागों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने की अनुशंसा कर दी है। इसी के साथ प्रदेश लोक सेवा आयोग में नयी नियुक्तियों से पहले नये नियम बनाने और प्रक्रिया तय करने का मामला भी इस सरकार के लिये एक परीक्षा से कम नही होने वाला है हर आदमी की निगाहें इस ओर लगी हुई हैं।

स्वास्थ्य विभाग की खरीद पर उठते सवालों का स्पष्टीकरण केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग से क्यों

शिमला/शैल। पूर्व स्वास्थ्य मन्त्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह ने प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में कोरोना काल के दौरान की गयी खरीददारीयों में बड़ा घोटाला होने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं जीएस बाली, चन्द्र कुमार और विपल्व ठाकुर के साथ एक संयुक्त पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए यह आरोप लगाया कि विभाग ने 514 रूपये का आक्सीजन मीटर 29506 रूपये का मास्क 16 और 9000 का आक्सीजन गैस सिलैण्डर 15700 रूपये में खरीद कर घोटाला किया गया है। आरोप लगाया गया 15 आईटमों की खरीद में ही 24,49000 रूपये का घपला किया गया है। विभाग में हुई कुल खरीददारीयों में उसे 4 करोड़ का घपला होने का आरोप है। आक्सीजन गैस पाईप लाईन सिलैण्डर सप्लाई करने और उन्हें लगाने की पूरी प्रक्रिया का काम केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया है। मैडिकल से संबंधित इन आईटमों के मानदण्ड और मानक क्या थे और सप्लाई किये गये उपकरण इन मानको पर पूरे उतरते हैं या नहीं इसको लेकर कोई खुलासा पत्राकार वार्ता में नही किया गया है। यह खरीद कोरोना काल में की गयी जब पूरे देश में लाॅकडाऊन चल रहा था और यातायात के सारे साधन बन्द थे। हालात की इसी गंभीरता को ध्यान मे रखते हुए दवाईयोें और उपकरणों की खरीद के लिये प्रदेश के वित्त विभाग ने खरीद नियमों में भी आवश्यक बदलाव कर दिये थे। नियमों के बदलाव के परिदृश्य में स्वास्थ्य विभाग की खरीद सवालों के घेरे से बाहर हो जाती है। लेकिन विधान सभा के मानसून सत्र में जब विधायक लखविन्दर राणा, राम लाल ठाकुर और रमेश धवाला ने यह सवाल पूछा कि गत तीन वर्षों में 31-1-2020 तक किस किस फर्म से कितनी कितनी धनराशी की दवाईयां और उपकरण खरीदे गये और सरकार द्वारा रोगियों को जो मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं उनके सैंपल फेल हुए हैं। यह जानकारी सदन में रखने की बजाये जबाव दिया गया कि सूचना एकत्रित की जा रही है। यह सवाल कोविड से पहले की खरीद पर था और विभाग पर बहुत पहले ही इस संबंध में सवाल उठने शुरू हो गये थे। ऐसे में जब जबाव में यह कहा जायेगा कि सूचना एकत्रित की जा रही है तो निश्चित रूप से इस सन्देह को बल मिलेगा कि कुछ छुपाया जा रहा है। अब जब कांग्रेस नेताओं ने विभाग की खरीद पर सवाल उठाये हैं तो उस पर केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता विद्युत केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग लौंग बुड शिमला की ओर से जारी किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि इन मानको के उपकरण मांगे गये थे और बोली दाता को किन मानदण्डांे पर पूरा उतरना था। यह स्पष्ट किया गया है कि इस खरीद के लिये पहले 16-5-2020 को ई-निविदायें आमन्त्रित की गयी लेकिन कोई आवेदन नही आया। इस कारण 23-5-2020 को फिर ई निविदायें आमन्त्रित की गयीं और चार निविदायें आयी। पूरी प्रक्रिया अपनाते हुए न्यूनतम बोली दाता को खरीद का आर्डर दिया गया। पूरी प्रक्रिया एकदम पारदर्शी और न्यूनतम बोलीदाता सारे मानकों को पूरा करता है इसलिये खरीद पर सवाल उठाना तथ्यहीन और गलत है।
यह स्पष्टीकरण केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता (विद्युत) द्वारा जारी किया गया है। इससे यह आभास होता है कि यह निविदायें प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने नहीं बल्कि केन्द्रिय लोक निर्माण ने आमन्त्रित की थी। यहां यह सवाल उठता है कि क्या स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिये खरीद ऐजैन्सी केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग को बना रखा था? यदि ऐसा था तो यह कब किया गया? जो स्पष्टीकरण आया है उसके मुताबिक चार बोलीदाता थे लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग भी एक बोलीदाता था। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह केन्द्रिय लोकनिर्माण विभाग यह उपकरण स्वयं बनाता है? क्या वह ऐसे उपकरणों की गुणवता जांचने के विशेषज्ञ हैं। केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग ने किस अधिकार से यह स्पष्टीकरण जारी किया है यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। बल्कि इससे अनचाहे ही यह मामला और उलझ जाता है। क्योंकि खरीद पर आरोप तो कीमतों को लेकर लगाये गये हैं और स्पष्टीकरण प्रक्रिया को लेकर दिया गया है।

कंगना रणौत पर हिमाचल भाजपा अब चुप क्यों

शिमला/शैल। हिमाचल की बेटी पदमश्री अभिनेत्राी कंगना रणौत और उनकी बहन रंगोली चन्देल के खिलाफ मुंबई में बान्द्रा पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 158 A, 295 A और 124 A के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है। यह मामला अदालत के सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आये निर्देशों पर दर्ज किया गया है। इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय में आयी एक याचिका पर कंगना रणौत के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। कर्नाटक में दर्ज किया गया मामला कंगना की उन प्रतिक्रियाओं पर किया गया जो उन्होंने कृषि उपज विधेयकों पर उभरे किसान आन्दोलन को लेकर सोशल मीडिया के मंचो पर अपनी पोस्ट और ट्वीटस के माध्यम से व्यक्त की थीं। मुबई में फिल्म उद्योग के एक कास्ंिटग निदेशक मुनब्बर अलि सैयद की शिकायत पर अदालत में मामला दर्ज करने के निर्देश दिये हैं। दानों ही मामले गंभीर हैं और इनके परिणाम भी गंभीर होंगे। माना जा रहा है कि इन मामलों में कंगना के पास सार्वजनिक क्षमा याचना मांगने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रहेगा। उसकी यह प्रतिक्रियाएं राजनीतिक बड़बोलेपन का परिणाम मानी जा रही हैं। कंगना सार्वजनिक तौर पर चर्चा में तब आयी जब सुशान्त सिंह राजपूत प्रकरण पर उन्होंने अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी को एक इन्ट्रव्यूह देकर यह कहा कि सुशान्त ने आत्महत्या नही की है बल्कि यह हत्या का मामला है। इसमें ड्रग माफिया की भी भूमिका है और इस सबके उनके पास पक्के सबूत मौजूद हैं। कंगना ने यहां तक दावा किया था कि यदि वह अपने आरोपों को प्रमाणित नही कर पायेंगी तो पदमश्री वापिस कर देंगी। इसी बीच मुुंबई में उनके कार्यालय में हुए अवैध निर्माण के खिलाफ कारवाई हो गयी। इस कारवाई को लेकर कंगना ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जुबानी जंग छेड़ दी थी। इस जंग के परिणाम स्वरूप हिमाचल सरकार ने उसे सुरक्षा दे दी। हिमाचल सरकार की सिफारिश पर केन्द्र ने उसे वाई प्लस सुरक्षा प्रदान कर दी। एकदम इतनी सुरक्षा और चर्चा पा लेने के परिणाम स्वरूप यह क्यास लगाये जाने शुरू हो गये कि राष्ट्रपति उसे सांसद मनोनीत करने वाले हैं और बिहार विधान सभा चुनावों में कंगना भाजपा की स्टार प्रचार हो जायेंगी। हिमाचल में भी उसे भविष्य में बड़ी भूमिका में देखा जाने लगा। प्रदेश भाजपा ने उसके अवैध निर्माण को गिराये जाने के खिलाफ शिमला की रिज से उसके पक्ष में प्रदेशभर में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया। मोदी -भाजपा के भक्तों ने तो मीडिया और उसके बाहर बदले में प्रियंका गांधी के आवास को गिराये जाने की मांग तक छेड़ दी।
लेकिन जैसे ही सुशान्त सिंह राजपूत मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी और उसके बाद एम्ज़ की विशेषज्ञ कमेटी ने पूरी स्पष्टता के साथ सुशान्त की मौत को हत्या की बजाये आत्महत्या ही करार दिया तो सारा परिदृश्य ही बदल गया। अब तो सीबीआई ने भी सुशान्त सिंह मामले को आत्महत्या ही कहा है। जब सारी बहस का मुद्दा ही बदल गया तो एनवीएसए ने कुछ मीडिया चैनलों के खिलाफ अपनी गाज गिराते हुए उन्हें जुर्माना लगाया और फतवा दिया कि सुशान्त मामले में बहुत कुछ झूठ परोसा जा रहा था। इस कारवाई से पूरे प्रकरण का परिदृश्य ही बदल गया है। प्रदेश भाजपा के लिये कंगना रणौत अब कोई मुद्दा नही रह गया है और कंगना ने स्वयं भी इस संबंध में मौन धारण कर लिया है। अब जब अदालत के निर्देशों पर कंगना के खिलाफ मामले दर्ज हो गये हैं और भाजपा इस पर कोई चर्चा नहीं कर पा रही है तो राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में दबी जुबान से यह कहा जाने लगा है कि कंगना के कन्धों पर महाराष्ट्र और बिहार में कोई बड़ी गेम खेलने की विसात बिछा रही थी जो एम्ज की रिपोर्ट आने से आगे नहीं बढ़ पायी।

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