Friday, 19 December 2025
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नड्डा ने आयोजित की दिल्ली स्थित प्रदेश के अधिकारियों से मुख्यमन्त्री की मुलाकात

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दिल्ली में प्रदेश काडर के केन्द्र की प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारियों से शनिवार को भेंट की है। यह मुलाकात केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा के आवास पर हुई है। नड्डा के आवास पर हुई यह बैठक स्वभाविक है कि नड्डा द्वारा ही आयोजित की गयी है। क्योंकि यदि ऐसे आयोजन का विचार मुख्यमन्त्री का अपना होता तो यह आयेाजन नड्डा के आवास पर होने की बजाये हिमाचल भवन में भी हो सकता था। नड्डा के आवास पर यह आयोजन होने से यह संदेश जाता है कि नड्डा ने इन अधिकारियों का परिचय मुख्यमन्त्री से करवाया और उनसे आग्रह किया कि वह मुख्यमन्त्री और राज्य सरकार को सहयोग प्रदान करें। दिल्ली स्थित प्रदेश के अधिकारियों से ऐसी मुलाकात किया जाना अपने में एक सकारात्मक प्रयास है लेकिन यदि इन अधिकारियों ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नये मुख्यमन्त्री से स्वयं मुलाकात करने की पहल की होती तो इसके राजनीतिक और प्रशासनिक मायने ही बदल जाते। इससे मुख्यमन्त्री का कद और ऊंचा हो जाता। लेकिन ऐसा नही हो पाया है। आज मुख्यमन्त्री की इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक विश्लेष्कों के लिये यह सवल खड़ा हो गया है कि क्या इस समय ऐसी मुलाकात की कोई आवश्यकता थी भीे या नहीं क्योंकि केन्द्र की ओर से जो योजनाएं राज्य में लागू हैं उनके तहत केन्द्र से ज्यादा से ज्यादा सहयोग प्राप्त कर पाना राज्य के उन अधिकारियों पर निर्भर करता है जो इनके तहत प्रस्ताव तैयार करके केन्द्र को भेजते हैं। हर योजना के लिये राज्य और केन्द्र की कितनी- कितनी भागीदारी होगी इसके मानक तय रहते हैं और इन तय मानकों को नज़रअन्दाज कर पाना संभव नही हो पाता है। ऐसे में केन्द्र से यह सहयोग लेना राज्य के अधिकारियों पर ज्यादा निर्भर करता है। अभी प्रदेश सरकार ने बड़े स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल को अंजाम दिया है। इस फेरबदल में यह भी सामने आया है कि कई अधिकारी ऐसे स्थानों पर नियुक्त हो गये हैं जहां वह अपने अनुभव और योग्यता का पूरा- पूरा योगदान शायद न कर पायें। इसलिये जब तक प्रदेश के प्रशासन में अपने स्तर पर स्थिरता नही आ पायेगी तब तक केन्द्र के सहयोग का कोई ज्यादा प्रश्न ही नही उठता है। क्योंकि अभी एक माह के समय में ही सरकार ने कई ऐसे फैसलें ले लिये हैं जिनके प्रभाव से सरकार को बाहर निकलने में काफी समय लग जायेगा।
नड्डा के आवास पर हुए इस आयोजन में मुख्यमन्त्री के साथ मुख्यसचिव विनित चौधरी, पुलिस प्रमुख एस. आर. मरडी के अतिरिक्त प्रदेश के कुछ अन्य अधिकारी भी शामिल रहे हैं लेकिन इस अवसर पर मुख्यमन्त्री अपने किसी सहयोगी मन्त्री को साथ नही ले गये थे। इस अवसर पर नड्डा ने राज्य तथा केन्द्र में कार्य कर रहे अधिकारियों के बीच राज्य के हित में बेहतर सामंजस्य व तालमेल पर बल दिया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के अधिकारियों की कुशल व प्रभावशाली सेवाओं के लिये उनकी सराहना की और उम्मीद जताई कि वे भविष्य में भी केन्द्र तथा राज्य की इसी जज्बे से सेवा करना जारी रखेंगे।
मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा केन्द्र को भेजी गई परियोजनाओं तथा प्रस्तावों की स्वीकृतियों में तेजी लाने में संबंधित मंत्रालयों में अग्र-सक्रिय भूमिका के लिये अधिकारियों से आग्रह किया ताकि विकास की गति में तेजी आ सके। उन्होंने कहा कि अधिकारी किसी भी सरकार की रीढ़ होते हैं और नीतियां व कार्यक्रमों के निर्माण तथा जमीनी स्तर पर विकासात्मक गतिविधियों के कार्यान्वयन को गति देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जय राम ठाकुर ने कहा कि यह हिमाचल प्रदेश के लिये गौरव की बात है कि भारत सरकार में कार्यरत अनेक कुशल अधिकारी राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों से राज्य के हितों की रक्षा करने तथा राज्य की उन्नति में प्रभावी भूमिका निभाने को कहा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के कर्मचारियों से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं और सरकार उनकी बहुमूल्य सेवाओं को देखते हुए उनके हितों की रक्षा के लिये वचनबद्ध है।
मुख्य सचिव विनीत चौधरी ने केन्द्रीय मंत्री तथा मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया और आश्वासन दिया कि सरकार की नीतियों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिये हर संभव प्रयास किए जाएंगे और राज्य के लोगों का कल्याण प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित बनाया जाएगा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं आवासीय आयुक्त अनिल खाची सहित भारत सरकार में कार्यरत हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में उपस्थित थे।

क्या एचपीसीए के मामले वापिस हो पायेंगे

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद यह ऐलान किया था कि वीरभद्र शासन में राजनीतिक प्रतिशोध की नीयत से बनाये गये आपराधिक मामले तुरन्त वापिस लिये जायेंगे। इस संद्धर्भ में एचपीसीए के खिलाफ बनाये गये मामलों का विशेष रूप से जिक्र किया गया था। सरकार का यह ऐलान दस तारीख को धर्मशाला में हुई मन्त्रीमण्डल की बैठक के बाद सामने आया था, लेकिन इसके बाद जब एचपीसीए के खिलाफ बनाया गया पहला ही मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया तब वहां यह सवाल उठा कि क्या मामले वापिस लिये जा रहे हैं क्योंकि अब तो प्रदेश में भाजपा की ही सरकार सत्ता में है। इस सवाल के उठने के बाद मामले में प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता से जब पूछा गया तो उन्होने स्पष्ट कहा कि अभी तक उन्हें ऐसी कोई हिदायत नही है। महाधिवक्ता को अबतक ऐसी हिदायत होने को लेकर इस संद्धर्भ में कई तरह की चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं।
स्मरणीय है कि एचपीसीए के खिलाफ बने पहले ही मामले में अनुराग ठाकुर एचपीसीए के पदाधिकारियों सहित पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सनान और कई अन्य अधिकारी बतौर अभियुक्त नामज़द हैं। इनके अतिरिक्त वीरभद्र के प्रधान सचिव रहे टीजी नेगी और प्रधान नीजि सचिव रहे सुभाष आहलूवालिया भी इसमें खाना 12 में अभियुक्त नामज़द है। खाना 12 में रखे गये अभियुक्तों को अदालत जब चाहे मुख्य अभियुक्तों में शामिल कर सकती है क्योंकि अदालत में आये चालान में इसका विस्तार से खुलासा किया गया है कि पूरे मामले में इनकी भूमिका क्या रही है। चालान में इन अधिकारियों के खिलाफ यह आरोप है कि इन्होने एचपीसीए द्वारा ज़मीन की मांग किये जाने से एक सप्ताह पहले ही मन्त्री परिषद् को सही स्थिति न बताकर एचपीसीए के पक्ष में जमीन का  आबंटन करवा दिया। यही नहीं एचपीसीए का यह भी आवेदन नही रहा है कि ज़मीन की लीज़ की दर एक रूपया की जाये। एक रूपया लीज़ रेट करने का फैंसला सुभाष आहलूवालिया का बैतार निदेशक रहा है। यह आरोप अपने में गंभीर है। फिर एच पी सी ए को जो ज़मीन दी गयी है वह विलेज काॅमन लैण्ड है। सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब में मामले में दिये फैंसले में विलेज़ काॅमन लैण्ड के इस तरह के आबंटन पर पूरे देश में तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगा दिया है। राज्यों के मुख्य सचिवों को इस फैसले पर अमल करने के निर्देश देते हुये उनसे अनुपालना रिपोर्ट भी तलब की गयी है। एचपीसीए के प्रकरण में तो अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व पर आरोप ही यह है कि उन्होंने इस ज़मीन के ट्रांसफर का फैसला भी अपने ही स्तर पर ले लिया जबकि वह इसके लिये अधिकृत नहीं थे। इस पर फैसले का अधिकार केवल मन्त्रिपरिषद् को था।
इस मामले का चालान जब धर्मशाला कोर्ट में दायर हुआ और उसके बाद जब इसपर संज्ञान लिये जाने की प्रक्रिया शुरू हुई तब इसे प्रदेश उच्च न्यायालय में एचपीसीए ने चुनौती दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय ने एचपीसीए की याचिका अस्वीकार करते हुए इस पर संज्ञान लिये जाने को हरी झण्डी दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय में हारने के बाद एचपीसीए इसमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चली गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर ट्रायल स्टे कर दिया। उसके बाद से अब तक यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। इस मामले के सारे तथ्यों की जानकारी रखने वालों का मानना है कि इसमें जितने भी अधिकारियों की भूमिका रही है उन्होने सरकार और मुख्यमन्त्री को इसमें निश्चित तौर पर गुमराह किया है। लेकिन अब जब प्रदेश उच्च न्यायालय इसको संज्ञान योग्य मान चुका है तो क्या सरकार इसको आसानी से वापिस ले पायेगी। क्योंकि किसी मामले को वापिस लेने के लिये उसमें यह आधार बनाना पड़ता है कि उपलब्ध तथ्यों के मुताबिक मामला नही बनता है और ऐसा तभी संभव है जब इसमें किसी कारण से पुनः जांच किये जाने की नौबत आ जाये। वैसे अभी तक आर सीएस की ओर से यह नहीं आया है कि एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी क्योंकि जब एचपीसीए ने इसे सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का आग्रह आरसीएस से किया था तब विभाग इस आग्रह पर लगभग एक वर्ष तक खामोश बैठा रहा था। जबकि इस आग्रह को तुरन्त प्रभाव से स्वीकार या अस्वीकार किया जाना चाहिये था क्योंकि बहुत संभव है कि यदि यह आग्रह तुरन्त प्रभाव से अस्वीकार हो जाता है तो एचपीसीए इसे कंपनी बनाती ही ना। इस समय प्रदेश की राजनीति में एचपीसीए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। जो वीरभद्र इस मामले में अपने शासनकाल में कुछ नही कर पाया अब वह इस मामले को वापिस लिये जाने का विरोध कर रहा है। जयराम सरकार इसमें क्या और कैसे करती है उस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।

नौ वर्षों में 35,000 करोड़ डकार चुके उद्योगों के लिये फिर मांगी गयी राहतें

शिमला/शैल। कैग रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल के उद्योगों को 2009 से 2014 के बीच 35000 करोड़ की विभिन्न करों में राहत मिल चुकी है लेकिन इस राहत के बावजूद यह उद्योग प्रदेश के युवाओं को वांच्छित रोज़गार नही दे पाये हैं। 35000 करोड़ का यह आंकड़ा सरकारी फाईलों में दर्ज रिटर्नज़ पर आधारित है। यह दावा है केन्द्र के वित्त विभाग का जिसे प्रदेश की अफसरशाही मानने को तैयार नही हैं लेकिन कैग में दर्ज इस रिपोर्ट को प्रदेश के यह बड़े बाबू खारिज भी नही कर पाये हैं। 2017 में उद्योग विभाग ने प्रदेश में पंजीकृत छोटे बडे़ उद्योगों, उनमें हुए निवेश और इनमे मिले रोज़गार के आंकड़े जारी किये थे। इन आंकड़ो के मुताबिक प्रदेश में 40,000 उद्योग ईकाईयां पंजीकृत हैं जिनमें उद्योगपतियों का 17000 करोड़ का निवेश है तथा इन उद्योगों में 2,58,000 कर्मचारी कार्यरत है। इन आंकड़ोे से यह स्पष्ट होता है कि 52,000 करोड़ के निवेश से करीब तीन लाख लोगों को रोज़गार हासिल हुआ है। क्योंकि 40,000 उद्योपति और 2,58,000 कर्मचारी मिला कर तीन लाख का आंकड़ा बनता है। 35000 करोड़ की राहत तो 2009 से 2014 के बीच मिली है जबकि उद्योगों की ओर से 1977 से ही जब शान्ता कुमार के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तभी से विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उसी दौरान परवाणु, मैहतपुर-पांवटा साहिब और डमटाल के ओद्यौगिक परिसरों की स्थापना हुई थी।
1977 से ही उद्योगों को राहतें प्रदान की जाती रही है और यदि तब से लेकर अब तक मिल चुकी राहतों के सारे आंकड़ो को इकट्ठा करके देखा जाये तो यह रकम एक लाख करोड़ से अधिक की हो जाती है। उद्योगों को सुविधायें देने के लिये ही वित्त निगम की स्थापना की गयी थी। प्रदेश का खादी बोर्ड भी उद्योगों की ही सेवा कर रहा था। इन संस्थानों के माध्यम से उद्योगों को ऋण सुविधा दी जाती रही है लेकिन आज यह दोनों संस्थान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके प्रदेश मुख्यालय के बाहर के कई कार्यालय बन्द हो चुके हैं क्योंकि इनका दिया हुआ बहुत सारा कर्ज डूब चुका है। इस परिदृश्य में आज यह सबसे बड़ा सवाल बन चुका है कि क्या हमारी उद्योगनीति सही दिशा में रही या नहीं। आज उसका नये सिरे से आंकलन करने की आवश्यकता है लेकिन क्या प्रदेश की अफसरशाही यह आंकलन होने देना चाहेगी? क्योंकि वित्त निगम का तो पूरा प्रबन्धन अफसरशाही के ही पास रहा है। प्रदेश का मुख्य सचिव ही वित्त निगम का अध्यक्ष होता है और सचिव वित्त इसके निदेशकों में शामिल रहता है। इसी अफसरशाही के प्रबन्धन में चलता आ रहा वित्त निगम पूरी तरह फेल हो चुका है।
प्रदेश के उद्योगों और उद्योग नीति का निष्पक्ष और व्यवहारिक आंकलन राजनीतिक नेतृत्व को करना है लेकिन अभी दिल्ली में राज्यों के वित्त मन्त्रीयों की केन्द्रिय वित्त मन्त्री के साथ आयोजित बजट पूर्व बैठक में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने उद्योगों के लिये नये सिरे से राहत की मांग की है। उन्होनेे प्रदेश में लगने वाले उद्योगों के लिये पहले पांच वर्षों में सौ प्रतिशत और अगले पांच वर्षों में 50% करो में राहत प्रदान करने की मांग की है। इसी के साथ सात वर्षों की अवधि के लिये ब्याज में सात प्रतिशत की छूट दिये जाने की भी मांग की है। इसके तहत उद्योगपतियों को लम्बी अवधि के कर्जों और पूंजीगत कर्जों पर सात प्रतिशत ब्याज की राहत मांगी गयी है।

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