शिमला/शैल। पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने केंद्र की मोदी सरकार के चार सालों को निराशाजनक करार देते हुए प्रधानमंत्री को प्रचार करने के बजाय पश्चाताप करने की सलाह दी है। राजधानी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में आनंद शर्मा ने कहा कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, दो करोड़ सालाना रोजगार देने, महिलाओं व दलितों की सुरक्षा व सशक्तिकरण से लेकर विदेश नीति और कूटनीति के क्षेत्र में प्रधानमंत्री विफल रहे हैं। देश की जनता के लिए मोदी सरकार के चार साल अच्छे दिन नहीं लाए, ये तकलीफ के चार साल रहे।
शर्मा ने कहा कि मोदी
सरकार में पिछले चार सालों में नोटबंदी के फैसले व जीएसटी को गलत तरीके से लागू करने की वजह से करोड़ों रोजगार टूटे है। पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा शराब, रियल इस्टेट जैसी चार पांच महत्वपूर्ण मदों को जीएसटी से बाहर रख दिया इन्हीं से 45 फीसद कर राजस्व एकत्रित होता है। इसके अलावा जीएसटी की जो लाखों करोड़ों रुपयों की रकम रिफंड होनी थी वह बकाया बची है। सुक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों में से 33 फीसद बंद हो गए जिसकी वजह से चार करोड़ के करीब रोजगार टूट गए।
शर्मा ने कहा कि छह दशकों में निवेश की दर ऐतिहासिक तौर पर न्यूनतम रही है। यह 34 फीसद से 27 फसद तक पहुंच गई। यही नहीं देश की राष्ट्रीय बचत दर भी पिछले 15 सालों में न्यूनतम आंकड़े पर पहुंच गई है। बैंकों में पैसा ही नहीं बचा है। उन्होंने कहा कि नए उद्योग नहीं लगे और पुराने उद्योग एक तिहाई क्षमता का दोहन कर पा रहे है। उन्होेंने इल्जाम लगाया कि बैंक कुप्रबंधन का शिकार हो गए। तीन लाख करोड़ का एनपीए था जो कि पिछले चार सालों में 11 लाख करोड़ रुपए हो गया। इस में से सात लाख करोड़ तो उन औद्योगिक घरानों का है जो प्रधानमंत्री के साथ विदेशों में भ्रमण में रहते हैं। जो कुछ बैंकों को लूट कर चले गए वह भी सरकार के मित्रा है।
आरबीआई की विश्वसनीयता व साख पूरी दुनिया में टूट चुकी है। डीजल व पेट्रोल की कीमतों को लेकर पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमते गिरी हैं। इससे दुनिया के बाकी देशों में 67 फीसद कीमतें गिरी लेकिन भारत में यह मई 2014 के बाद 110 फीसद बढ़ी है। जनता की जेब से सरकार ने दस लाख करोड़ रुपए उग रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन चार सालों में आरबीआई, सीबीआई, ईडी जैसे संस्थानों की ही नहीं सुप्रीम कोर्ट की साख भी गिरी है। यह बेहद चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि कूटनीति में तो प्रधानमंत्री बिल्कुल विफल रहे है। वह केवल तस्वीरें ही खिंचवाते रहे।
पाकिस्तान के साथ भारत की नीति सबसे ज्यादा विफल रही है। उन्होंने कहा कि 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री अचानक काबुल से पाकिस्तान चले गए। यह यात्रा अचानक नहीं थी पहले से नियोजित थी। क्योंकि जो उपहार खरीदे गए थे वह देश में ही बहुत पहले खरीद लिए गए थे। वह पाकिस्तान की धरती पर उतरे लेकिन उन्हें सलामी नहीं दी गई। आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। छोटे छोटे देशों के नेताओं को भी सलामी दी जाती है। उन्हें तो फौज की टुकड़ी तक ने सलामी नहीं दी। वह वहां व्यक्तिगत यात्रा पर नहीं गए थे। वह प्रधानमंत्री के तौर पर गए थे व उनके जहाज पर तिरंगा लगा था। यह अपमानजनक था।
आनंद शर्मा ने कहा कि 2019 में कांग्रेस व कांग्रेस नीत गठबंधन भाजपा की सत्ता से विदाई कर देगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता से बाहर हो जाए। उन्होंने उम्मीद जताई की गठबंधन बनेगा। बिहार में गठबंधन बना था तो भाजपा वहां हार गई। उतरप्रदेश के उपचुनावों में दो ही दल साथ हुए थे ऐसे में भाजपा को वहां भी हार का मुंह देखना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं दिया जाएगा।
आनंद शर्मा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों पर एतराज जताते हुए आनंद शर्मा ने कहा कि वह शालीनता से बात नहीं करते है सभी मर्यादाएं तोड़ दी है। चुनावी भाषणों में ऐतिहासिक झूठ बोले गए। प्रधानमंत्राी लोगो की भावनाएं भड़का गए और सेना को भी नहीं छोड़ा। जनरल करियप्पा व जनरल थम्मैया को लेकर सरेआम झूठ बोला।
उन्होेंने कहा कि प्रधानमंत्री का सच्चाई से झगड़ा रहता है। उन्होेंने दावा किया कि भाजपा कर्नाटक चुनाव में 15 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। कांगेस के 42 प्रत्याशियों पर आयकर के छापे डलवाए गए हैं।
शिमला/शैल। जयराम सरकार एचपीसीए के खिलाफ वीरभद्र शासनकाल में बनाये गये मामलों को वापिस लेने के लिये कितनी गंभीर हैं इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार के एडवोकेट जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को सरकार की मंशा से अवगत करवा दिया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय से अभी इसके लिये हरी झण्डी नही मिली है। बल्कि जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया उस दिन पी चिदाम्बरम भी न्यायालय में उपस्थित रहे थे। इसके बाद दूसरी पेशी में अनूप चौधरी उपस्थित रहे। चिदाम्बरम और चौधरी दोनो ही वीरभद्र सिंह के वकील रहे हैं और इस मामले में एचपीसीए ने एक स्टेज पर वीरभद्र सिंह को भी प्रतिवादी बना रखा है। इस नाते एचपीसीए पर अपना पक्ष रखने का हक भी वीरभद्र सिंह को हासिल हो जाता है। क्योंकि वीरभद्र के पांच वर्ष के कार्यकाल की यही सबसे बड़ी उपलब्धि रही है कि विजिलैन्स ने न केवल एचपीसीए के खिलाफ मामले ही बनाये बल्कि उनको अदालत तक भी पहुंचा दिया। आज अदालत तक पहुंच चुके इन मामलों को वापिस लेना भी आसान नही रह गया है।
लेकिन इसी के साथ सरकार की नीयत और नीति को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि एचपीसीए का एक सबसे बड़ा आज भी रजिस्ट्रार सहकारी सभाएं और उच्च न्यायालय के बीच लंबित चल रहा है। इसमें यह फैसला आना है कि एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी। जयराम सरकार को भी सत्ता में आये चार माह हो गये हैं उच्च न्यायालय में एजी के साथ सरकार के वकीलों की पूरी टीम मौजूद है परन्तु इस मामले को फैसला शीघ्र आने के लिये कोई कदम नही उठाये गये हैं। यही नही एचपीसीए में जिन अधिकारियों के खिलाफ भी मामले बने थे सरकार ने इन अधिकारियों के खिलाफ मुकद्दमा चलाने की अनुमति वापिस लेने का फैसला लिया हैं सरकार ने अपने फैसले से विजिलैन्स को अवगत भी करवा दिया है लेकिन विजिलैन्स ने अभी अदालत के सामने सरकार के इस फैसलेे को नही रखा है। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक विजिलैन्स इन मामलों को वापिस लेने के पक्ष में नही है। विजिलैन्स इस संद्धर्भ में सरकार के फैसले से सहमत नही है।
इसमें सबसे बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि सरकार ने भी अभी तक विजिलैन्स को इस बारे में पूछा ही नही है। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार भी इसमे राजनीतिक औपचारिकता निभाने के अतिरिक्त और ज्यादा गंभीर नही है। क्योंकि यदि संवद्ध अधिकारी इन मामलों से किसी कारण से बाहर हो जाते हैं तो इनका अदालत में सफल होना स्वतः ही संदिग्ध हो जाता है और वीरभद्र के जो लोग इनमें अभियुक्त नामज़द है वह पहले ही मुख्य अभियुक्त न होकर खाना 12 में दर्ज हैं। इस परिदृश्य में जयराम सरकार का आरसीएस और उच्च न्यायालय में लंबित मामले में कोई त्वरित कदम न उठाना तथा विजिलैन्स का मुकद्दमें की अनुमति वापिस लेने के फैसलों को अभी तक अदालत में न ले जाना राजनीतिक अर्थो में कुछ और ही संकेत देता है।
शिमला/शैल। कसौली हत्या कांड का कड़ा संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल राज्य सरकार को लताड़ ही लगायी है बल्कि पूरे प्रदेश में हुए अवैध निर्माणों और उनके खिलाफ की गयी कारवाई की भी रिपोर्ट तलब की है। शीर्ष अदालत ने कुल्लु , मनाली , कसोल, धर्मशाला और मकलोड़गंज में हुए निर्माणों का विशेष रूप से जिक्र किया है। स्मरणीय है कि जब 2016 में सरकार ने टीपीसी एक्ट में संशोधन करके इसमें धारा 30बी को जोड़ा था तब इसे 2017 में तीन अलग-अलग याचिकाओं CWP 612 of 2017, CWP 704 of 2017 तथा CWP 819 of 2017 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इन याचिकांओं के माध्यम से उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया गया था कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार अवैध निर्माणों के 35000 दोषीयों को राहत पहुंचाना चाहती है। उस समय सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए यह कहा था कि ऐसे लोगों को नोटिस देकर यह कहा गया है कि वह इन अवैध निर्माणों को स्वयं गिरा दें। लेकिन इसी के साथ यह भी कहा था कि ऐसा करने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जायेगी लेकिन अदालत ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए इस संशोधन को रद्द कर दिया था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति त्रिलोक चौहान की खंडपीठ ने यह कहा कि In view of our aforesaid discussion, we hold that:
(i) Insertion of Section 30-B by the Amending Act is contrary to the object and purpose of the Principal Act, as also ultra vires the Constitution of India, as such we strike it down.
(ii) Judgment rendered in Consumer Action Group (supra) is clearly distinguishable, having no binding effect on the grounds of assailing the validity of the Amending Act.
(iii)&(iv) In view of specific finding in Shayra Bano (supra), holding the observations made in Binoy Viswam (supra) that arbitrariness cannot be a ground for invalidating a legislation, only to be in per incurium, as such, we hold the amendment to be violative of Article 14 of the Constitution, being manifestly arbitrary, irrational,illogical, capricious and unreasonable.
(v) Much, as we had desired, the amendment being totally ultra vires, cannot be saved by adopting the doctrine of severability.
अदालत के इस फैसले के बाद अब जयराम सरकार ने भी उसी तरह संशोधन सदन से पारित करवा लिया है। जबकि अदालत ने इन अवैध निर्माणों के लिये दोषी अधिकारियों /कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने की अनुशंसा की है जब अदालत में यह मामला चल रहा था तब प्रशासन ने ऐसे अवैध निर्माणों की शिनाख्त करके अदालत को सूचित भी कर दिया था। इस सूचना के बाद ही अदालत ने इन अवैध निर्माणों के बिजली, पानी काटने के आदेश दिये थे। इन अवैध निर्माणों की सूची में कई प्रभावशाली लोग शामिल हैं। इन्ही लोगों के दबाव में जयराम सरकार को यह संशोधन लाना पड़ा है। लेकिन उच्च न्यायालय के साथ ही एनजीटीे और फिर सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन अवैधताओं के लिये जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने के आदेश किये हैं। शीर्ष अदालत ने तो ऐसे करीब एक दर्जन लोगों को सीधे नाम से चिन्हित करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हुए हैं।
लेकिन इन लोगों के खिलाफ न तो पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा ने कोई कारवाई की और न ही अब विनित चौधरी कोई कारवाई करे पा रहे हैं। इन चिन्हित लोगों में टीसीपी, पर्यटन और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के लोग हैं। सूत्रों की माने तो अब जब कसौली में इन निर्माणों को गिराये जाने के लिये जिलाधीश सोलन के आदेशों पर चार टीमें गठित की जा रही थी उस समय भी इन्ही चिन्हित लोगों में से कुछ अवैध निर्माणों के मालिकोे को यह आश्वासन दे रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। यह दावा किया जा रहा था कि सरकार कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी। कसौली कांड के बाद जिस तरह के ब्यान आये हैं उनसेे भी यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि कहीं न कहीं किसी बड़े का आश्वासन अवश्य था और इसी बड़े के कारण मुख्य सचिव कोई कारवाई भी नही कर पा रहे हैं।
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