शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने हिमाचल सहित कुछ राज्यों की ऋण सीमा में कटौती की है। प्रदेश की सुक्खू सरकार ने इस कटौती को केन्द्र द्वारा राज्य को सहयोग न देना करार दिया है। सरकार का आरोप है कि जब प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के लिये ओ.पी.एस. बहाल की तभी केन्द्र ने कर्ज की सीमा पर कैंची चला दी। सरकार के इस आरोप पर पलटवार करते हुये भाजपा ने पूछा कि जब कांग्रेस चुनाव से पूर्व गारंटियां बांट रही थी तब क्या उसको प्रदेश की वित्तीय स्थिति की जानकारी नहीं थी। भाजपा नेताओं सर्वश्री रणधीर शर्मा, त्रिलोक जमवाल, त्रिलोक कपूर और राकेश जम्वाल ने संयुक्त ब्यान में कहा है कि कांग्रेस के मन्त्री पांच-छः बार के विधायक रहे हैं और इस नाते प्रदेश की स्थिति की उन्हें जानकारी रहना आवश्यक है। इसलिए आज कांग्रेस नेता अपनी नाकामियों को छुपाने के लिये केन्द्र को दोष न दें। स्मरणीय है कि जब कांग्रेस विपक्ष में थी तब जयराम सरकार पर प्रदेश को कर्ज में डूबाने का आरोप लगाती थी। प्रदेश की जनता से कहा था कि सत्ता में आते ही वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लायेंगे। इसी सबको संज्ञान में रखते हुये चुनावों के दौरान दस गारंटियां जनता को परोसी थी। महिलाओं से 1500 रूपये के लिये फॉर्म तक भरवाये गये थे। युवाओं को पहले ही मंत्रिपरिषद की बैठक में एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाने की बात की थी। भाजपा सरकार द्वारा दी जा रही 125 यूनिट मुफ्त बिजली की जगह 300 यूनिट मुफ्त देने की गारंटी दी थी। कांग्रेस की सारी गारंटियां अनिश्चितता के भंवर में उलझ गयी है। क्योंकि कर्ज की सीमा पर कटौती लगने से सुक्खू सरकार जिस कदर परेशान हो उठी है उससे लगता है कि यह गारंटियां कर्ज के सहारे ही पूरी करने की योजना थी जिस पर अब प्रश्न चिन्ह लग गया है। आज प्रदेश वितीय चुनौतियों के मुहाने पर एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। सरकार वितीय चुनौतियों का सामना कर पाने में असमर्थ नजर आने लग गयी है। क्योंकि जो प्रशासन वितीय कुप्रबंधन के लिये मूलतः जिम्मेदार रहा है यह सरकार उसके खिलाफ कोई कारवाई करना तो दूर बल्कि उन्हें जिम्मेदार मानने तक को तैयार नहीं है। क्योंकि आज प्रदेश का शीर्ष प्रशासन ही उन्ही लोगों के हवाले कर दिया गया है। राज्य सरकारें जीडीपी के तीन प्रतिश्त तक ही कर्ज ले सकती है यह एक स्थापित नियम है। जब जब सरकारें इस सीमा का अतिक्रमण करती है तभी केन्द्र की ओर से चेतावनी जारी हो जाती है। हिमाचल सरकार को पिछले लम्बे समय से ऐसी चेतावनी जारी होती रही है। शैल इन चेतावनी को अपने पाठकों के सामने रखता भी रहा है। हिमाचल की सरकारें तो राज्य की समेकित निधि सीमा का भी अतिक्रमण करती आ रही है। हर कैग रिपोर्ट में इसका जिक्र होता आया है। हिमाचल को तो कर्ज की किश्त और ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज लेना पड़ता रहा है यह भी कैग रिपोर्ट में दर्ज है। जब देश कोरोना के कारण लॉकडाउन से गुजर रहा था और सारी गतिविधियां एक प्रकार से बन्द हो गयी थी तब केन्द्र ने दो बार राज्यों की कर्ज सीमा में बढ़ौतरी करी थी। अब जब स्थितियां सामान्य हो गयी है और सरकारे अपने राजनीतिक लाभों के लिये रेवड़ीयां बांटने की स्थिति में आ गयी है तब इस बढ़ी हुई कर्ज सीमा को वापस ले लिया गया है।
हिमाचल कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिये दस गारंटियों का तोहफा जनता को दिया था। लेकिन यह नहीं कहा था कि कर्ज लेकर यह गारंटियां पूरी की जायेगी। फिर अभी तक यह सरकार जितना कर्ज ले चुकी है उसके आंकड़े विपक्ष जारी कर चुका है। इन आंकड़ों का कोई खण्डन नहीं आया है। मन्त्रीपरिषद की हर बैठक में किसी न किसी सेवा या वस्तु के दाम बढ़ते आ रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद कोई गारंटी अभी तक लागू नहीं हो पायी है। जिस ओ.पी.एस. बहाली को बड़ी उपलब्धि करार दिया जा रहा है उसका व्यवहारिक खर्च सरकार के इस कार्यकाल में बहुत कम होने जा रहा है। यदि एन.पी.एस. के नाम पर केन्द्र के पास जमा नौ हजार करोड़ से अधिक की राशि राज्य सरकार को वापस मिल जाती है तो उसमें भी एक तरह से आमदनी हो जाती है। इसलिये ओ.पी.एस. का तर्क रखना ज्यादा सही नहीं होगा यह स्पष्ट हो जा रहा है कि सत्ता में आने के लिये ही गारंटियों का पासा फैंका गया था और इन्हें कर्ज से ही पूरा किया जाना था जिस पर अब प्रश्न चिन्ह लगता है नजर आ रहा है।