शिमला/शैल। इस समय पूरा प्रदेश भारी बारिश से आयी आपदा से जूझ रहा है। इस आपदा के लिए प्रकृति कितनी जिम्मेदार है और सरकार की नीतियां कितनी जिम्मेदार रही है। इसको लेकर भी राष्ट्रीय स्तर पर बहस चल पड़ी है। सरकारों की नीतियों को ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। लेकिन आपदा की इस घड़ी में सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा कर ही समस्या हल नहीं हो जाता है। आज की आवश्यकता आपदा से प्रभावितों को तुरन्त राहत पहुंचाने और नये सिरे से निर्माण को खड़ा करने की है। सरकार एक निरन्तरता होती है। राजनीतिक नेतृत्व के परिवर्तन से सरकार की सोच और उसकी नीतियों एवं प्राथमिकताओं पर असर पड़ता है। परन्तु उसकी निरन्तरता पर नहीं। इस निरन्तरता के सच को स्वीकारते हुये लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने प्रदेश की जनता से क्षमायाचना करते हुये यह स्वीकारा है कि शायद पूर्ववर्ती सरकारों की कोई गलतियां रही होगी इतना नुकसान हुआ है। उन्होंने भविष्य को लेकर जनता से सुझाव भी मांगे हैं और भरोसा भी दिलाया है कि निर्माण को लेकर आगे कड़े फैसले लिये जायेंगे। बतौर लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह का यह एक बड़ा ब्यान है। ऐसा ब्यान और किसी मंत्री का नहीं आया है। बल्कि जिस तर्ज पर कुछ ब्यान आये हैं उससे इस आपदा में भी राजनीति के प्रभावी होने की गंध आने लगी है।
जब यह आपदा घटी तब सभी जनप्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावितों के साथ खड़े मिले हैं। प्रतिभा सिंह ने कुल्लू मंडी में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करके स्थिति का जायजा लिया। प्रभावितों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। फिर लोकनिर्माण मंत्री को साथ लेकर केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करके उन्हें स्थिति से अवगत करवाया। इस मुलाकात के बाद प्रदेश को इन मंत्रियों से सहायता भी मिली। लोकसभा में हिमाचल का विषय रखने का मणिपुर के कारण समय नहीं मिल पाया यह प्रदेश की जनता को बताया। केंद्रीय मंत्री और हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर भी लगातार लोगों के संपर्क में रहे। अपनी सांसद निधि से सहयोग देने के साथ प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के समक्ष भी वस्तुस्थिति रखी तथा राहत का प्रबंध किया। राज्यसभा सांसद डॉक्टर सिकन्दर ने राज्यसभा में इस पर प्रश्न पूछा। प्रश्न पर मिला उत्तर और प्रश्न दोनों प्रदेश की जनता के सामने रखें। शिमला के प्रभावित क्षेत्रों में सांसद निधि से राहत बांटी। मुख्यमंत्री स्वयं अपने सहयोगियों के साथ फील्ड में उतरे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के साथ संपर्क में रहे। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर भी इस आपदा में प्रभावितों और सरकार के साथ खड़े रहे। केंद्र में जाकर प्रदेश का पक्ष रखा और सहायता प्राप्त करने में अपना पूरा योगदान दिया। इस आपदा में प्रदेश के पक्ष और विपक्ष के किसी भी नेता के सहयोग को कम आंकना सही नहीं होगा।
हिमाचल सरकार इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किये जाने की मांग के साथ ही राहत नियमों में ढील देकर प्रदेश की मदद करने का आग्रह कर रही है। क्योंकि इस आपदा में जान और माल का जितना नुकसान हुआ है उसकी पूर्ति राज्य के अपने संसाधनों से हो पाना संभव नहीं है। इसके लिये केंद्र से अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता रहेगी। राज्य सरकार को इसके लिये केन्द्र से इस आपदा को राज्य आपदा घोषित करने में ही समय लग गया है। इसलिए केंद्र सरकार को भी अपने नियमों में छूट देने में कुछ समय लगेगा। लेकिन इस बीच केंद्र से जो सहायता मिली है कुछ उसके आंकड़ों को लेकर विरोधाभास क्यों सामने आ रहा है। इन आंकड़ों पर राज्य सरकार और नेता प्रतिपक्ष, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर तथा भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिंदल एकमत क्यों नहीं हो रहे हैं। क्या आंकड़ों की असहमति आने वाले लोकसभा चुनावों के कारण हो रही है। प्रदेश के सांसदों ने भी इस आपदा में राहत के लिये अपना पूरा योगदान दिया है। फिर मुख्यमंत्री सुक्खू को यह सवाल क्यों करना पड़ा की प्रदेश के चारों सांसद कहां हैं? उन्होंने अपने सवाल में राज्यसभा सांसदों को क्यों बाहर रखा? मुख्यमंत्री ने जिस तर्ज में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की प्रशंसा की है उससे यह सवाल उठने लगा है कि अभी जब नड्डा प्रदेश में आये थे और मुख्यमंत्री से मुलाकात की है। क्या नड्डा का यह आना बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष था? क्या अब केंद्र किसी राज्य की सहायता अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष की अनुशंसा पर करेगा? भाजपा देश का सबसे अमीर राजनीतिक दल है नड्डा बतौर अध्यक्ष भाजपा पार्टी की ओर से प्रदेश को कोई सहायता दे सकते थे। लेकिन ऐसी किसी सहायता का कोई आंकड़ा सामने नहीं आया है। जबकि उन्होंने जब मुख्यमंत्री से मुलाकात की तब शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी भी उस बैठक में शामिल थे। नड्डा के इस दौरे के बाद मुख्यमंत्री के ब्यानों के परिदृश्य में यह सवाल उठने लग पड़ा है कि 2024 के चुनावों के लिये नड्डा कोई बड़ी विसात तो नहीं बिछ़ा गये हैं। क्योंकि प्रदेश से राज्यसभा सांसद होने के नाते उनकी बड़ी भूमिका प्रदेश के संदर्भ में सामने नहीं आ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में मुख्यमंत्री के ब्यान और नड्डा का आना संकेतों से भरा हुआ है।
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के आठ माह के कार्यकाल में पावर कॉरपोरेशन की कार्य प्रणाली को लेकर दूसरा पत्र वायरल होकर चर्चा में आ गया है। यह पत्र सी.बी.आई. निदेशक के नाम लिखा गया है। पत्र में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। आरोपों की छाया मुख्यमंत्री तक आ रही है। पत्र लिखने वाले ने अपना नाम अनमोल सिंह ठाकुर बताते हुये स्वयं को इसी कॉरपोरेशन का सहायक प्रबंधक होने का दावा किया है। भ्रष्टाचार का आकार सैकड़ों करोड़ का कहा गया है। अपने आरोपों के साक्ष्य के रूप में इस पत्र के साथ 38 पन्नों के दस्तावेज भी संलग्न करने का दावा है। यह आरोप लगाने वाला अनमोल सिंह इसी कॉरपोरेशन का सहायक प्रबंधक है या नहीं इसकी कोई पुष्टि नहीं है। लेकिन इसको लेकर कॉरपोरेशन या सरकार की ओर से कोई अधिकारिक खंडन भी जारी नहीं हुआ है। लेकिन कॉरपोरेशन के सूत्रों का यह भी दावा है कि बिना आग के धुआं नहीं उठता। जब इसी कॉरपोरेशन को लेकर पहला पत्र बम्ब जारी हुआ था तब यह कहा गया था कि पत्र और उसमें दर्ज आरोपों की प्रमाणिकता सत्यापित करने के निर्देश जारी किये गये हैं। लेकिन इन निर्देशों का परिणाम क्या रहा है यह अब तक सामने नहीं आया है। वह पत्र प्रधानमंत्री को भेजा गया था और आरोपों पर सी.बी.आई. जांच की मांग की गयी थी। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी उस पत्र को सी.बी.आई. को सौंपने की मांग की थी। तब इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि जयराम जिससे चाहे जांच करवा लें। वह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय से होकर सी.बी.आई. तक पहुंच गया था। क्योंकि पटेल इंजीनियरिंग कंपनी जम्मू-कश्मीर के प्रोजेक्ट के संदर्भ में पहले से ही सी.बी.आई. के राडार पर चल रही है। हिमाचल पॉवर कॉरपोरेशन भी आई.डी.बी.आई.आदि बैंकों के माध्यम से धन का जुगाड़ कर रही है। इन ऋणों के लिए केंद्र सरकार की गारन्टी रहती है। 90ः10 के अनुपात में मिलने वाले इन ऋणों के कारण केंद्रीय एजैन्सी सी.बी.आई. का दखल भी इस मामले पर बन जाता है। पावर कॉरपोरेशन को कुछ और जल विद्युत परियोजनाओं के निष्पादन का काम भी सरकार ने सौंप रखा है। इस परिदृश्य में यदि वर्तमान पत्र को देखा जाये तो यह भी संकेत उभरता है कि कहीं सी.बी.आई. ने पावर कॉरपोरेशन से कोई रिकॉर्ड तो तलब नहीं कर लिया है। कुछ सूत्रों का यह भी दावा है कि यह पत्र उसी कड़ी में है। इन पत्रों की जांच हो पाती है या नहीं? उस जांच का परिणाम क्या रहता है? क्या इन पत्रों और इन पर उठी जांच की मांग का कोई संबंध आने वाले लोकसभा चुनावों से भी निकलता है या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन कॉरपोरेशन को लेकर आये दोनों पत्रों की आंच का मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचना इसका निश्चित संकेत है कि मुख्यमंत्री को घेरने के लिए एक पुख्ता योजना पर काम हो रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री के अपने खिलाफ जो थ्प्त् का मामला अदालत में लंबित चल रहा है वह भी चुनावों में एक विषय बनेगा। इस परिदृश्य में लोकसभा चुनावों तक जो राजनीतिक घटनाक्रम उभरता नजर आ रहा है उसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। क्योंकि लोकसभा जीतने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। इन पत्रों में मुख्यमंत्री के अपने कार्यालय पर छीटें आना और मुख्यमंत्री द्वारा कोई कारवाई न कर पाना अपने में बहुत कुछ कह जाता है।
यह है पत्र
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