केंद्र के अस्पष्ट पत्रों से उलझा हाटी मामला
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Created on Wednesday, 08 November 2023 19:17
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Written by Shail Samachar
- एक वर्ष में स्थिति स्पष्ट न कर पाना राज्य सरकार की असफलता
शिमला/शैल।हिमाचल के सिरमौर जिले के गिरीपार क्षेत्र के हाटियों को पचास वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद भारत सरकार द्वारा संसद में संशोधन लाकर जो जनजातिय का दर्जा दिया था उसकी अनुपालना करवाने के लिए भी हाटी समुदाय को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ रहा है। 154 पंचायतों के तीन लाख हाटीयों को आंदोलन का रास्ता इसलिए अपनाना पड़ा है कि 2022 में भाजपा शासन के दौरान केंद्र ने संविधान संशोधन करके हाटीयों को जनजातिय का दर्जा दिया था। लेकिन राज्य सरकार इस पर अब तक अमल करने के आदेश जारी नहीं कर पायी है। सरकार के अनुसार जो संशोधन राष्ट्रपति से हस्ताक्षरित होकर आया है उसमें कहा गया है कि गिरीपार रहने वाले सभी लोगों को जनजातिय का दर्जा हासिल होगा। लेकिन संबद्ध मन्त्रालय के अवर सचिव से जो पत्र राज्य सरकार को मिला है उसमें इस क्षेत्र में रहने वाले एस सी समाज को इससे बाहर रखा गया है। इसी के साथ केंद्र की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस फैसले को लागू करने का आधार वर्ष क्या होगा। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इन बिन्दुओं पर केंद्र सरकार से कोई स्पष्टीकरण आय बिना इस फैसले को लागू किया जा सकता है या नहीं। क्योंकि ऐसे मामलों में एक आधार वर्ष तो तय किया ही जाता है जो केंद्र ने न तो राष्ट्रपति को भेजें और न ही संसद से पारित संशोधन में स्पष्ट किया है तथा न ही अवर सचिव द्वारा भेजे गये पत्र मे। स्मरणीय है कि गिरी पार क्षेत्र के लोगों द्वारा जनजातीय दर्जा दिये जाने का मुद्दा 1967 में जौनसार बाबर को यह दर्जा मिलने के बाद उठाया जाना शुरू हुआ। क्योंकि दोनों क्षेत्रों की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियां एक जैसी थी। विकास के नाम पर यह क्षेत्र पिछड़े हुये थे। जातिवाद और देव दोष जैसे संस्कृति से जकड़े हुये थे। खाप पंचायत की तर्ज पर खुम्वली के फैसलों से बंधा समाज था। लेकिन आज जब 2023 में इनको जनजाति का दर्जा दिया जा रहा है तब आधा शतक पहले की परिस्थितियां नहीं है। अब तो शायद दूसरे क्षेत्रों के लोग भी वहां के निवासी हो गये है। ऐसी वस्तुस्थिति में फैसले पर अमल के लिए एक आधार वर्ष चिन्हित होना आवश्यक है। दूसरी ओर जब वहां के रहने वाले अनुसूचित जाति के लोगों को भी जनजाति करार दे दिया गया तब उसमें रोष होना स्वाभाविक था। क्योंकि 1950 में अनुसूचित जाति और जनजाति का फैसला और वर्गीकरण हो गया था। इसके अनुसार अनुसूचित जाति को 15 % आरक्षण हासिल है जो इस क्षेत्र के इन लोगों को हासिल है परन्तु अब उन्हें भी जनजाति घोषित कर दिये जाने से उनके इस अधिकार में कटौती हो रही है। इसके लिए गिरी पार अनुसूचित जाति अधिकार संरक्षण समिति के मंच तले प्रदेश उच्च न्यायालय में केंद्र के फैसले को चुनौती दे दी गयी है। उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के तीन मंत्रालयों को नोटिस जारी कर दिया है । 18 दिसम्बर को यह मामला लगा है उधर आन्दोलन हाटी मंच ने इस फैसले पर दीपावली तक अमल करने के लिए राज्य सरकार को चेतावनी दे दी है। उसके बाद आन्दोलन के उग्र होने की घोषणा भी कर दी है। ऐसे में सुक्खु सरकार इस स्थिति से कैसे निपटती है यह देखना रोचक हो गया है। क्योंकि यह आन्दोलन उस समय आया है जब आगे लोकसभा चुनाव होने हैं।
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