Friday, 19 September 2025
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सी.बी.आई. की जांच हुई अस्वीकार आरोप तय होने पर पहुंचा चिदम्बरम मामला

प्रबोध सक्सेना भी हैं इसमें सह अभियुक्त

  • यदि सक्सेना पर आरोप तय हो जाते हैं तो क्या सुक्खु उन्हें पद से हटा पायेंगे।
  • इस मामले में जल्द आरोप तय होने की संभावना है क्योंकि तीन वर्षों से इसी प्रीचार्ज स्टेज पर है यह मामला
शिमला/शैल। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदम्बरम और अन्य 14 के खिलाफ 15-5-2017 को सी.बी.आई. में दर्ज हुआ मामला अब अदालत में आरोप तय होने के कगार पर पहुंच गया है। इस मामले में हिमाचल के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना भी सह अभियुक्त हैं। जिस समय 2007 में आई.एन.एक्स.मीडिया को 305 करोड़ का विदेशी निवेश लेने की अनुमति वित्त मंत्रालय द्वारा दी गयी थी उस समय प्रबोध सक्सेना भी विदेशी निवेश संबर्द्धन बोर्ड में तैनात थे। इसलिए वित्त मन्त्री के साथ इस कार्यालय में तैनात कुछ कर्मचारियों/अधिकारियों को भी इस मामले में सीबीआई ने सह अभियुक्त बना रखा है। 2017 में दर्ज हुये इस मामले में सी.बी.आई. अदालत में आरोप पत्र दायर कर चुकी है। लेकिन इसमें आरोप तय होने से पूर्व ही कीर्ति चिदम्बरम ने सी.बी.आई. द्वारा संज्ञान में लिये गये दस्तावेजों का अवलोकन करने की गुहार अदालत से लगा दी। मार्च 2021 में सी.बी.आई. अदालत ने इस आग्रह को स्वीकार करते हुये दस्तावेजों के अवलोकन की अनुमति दे दी। सी.बी.आई. ने इसका विरोध करते हुये दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवम्बर 21 को सी.बी.आई. की अपील को खारिज कर दिया। इस पर सी.बी.आई. सर्वाच्च न्यायालय में चली गयी और जुलाई 2023 में सर्वाच्च न्यायालय ने भी सी.बी.आई. की याचिका को अस्वीकार कर दिया। इस तरह यह मामला फिर सी.बी.आई. के ट्रायल कोर्ट में पहुंच गया और इसमें आरोप बनते हैं या नहीं इस पर बहस होनी है। यह है सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1. We find no reason to interfere with the impugned order passed by the High Court. The Special Leave Petition is, accordingly, dismissed.
2. Pending interlocutory application(s) is/are disposed of.
पी.चिदम्बरम कांग्रेस के बड़े नेता हैं और इस समय देश की राजनीति जिस तर्ज पर चल रही है उसको देखते हुये इस मामले की अहमियत बढ़ जाती है। माना जा रहा है कि इस मामले को इतना लम्बा भी अदालत में के माध्यम से राजनीतिक उद्देश्यों के लिये ही किया गया है ताकि चुनाव में कांग्रेस नेताओं को भ्रष्ट प्रचारित करने के लिये इसका उपयोग किया जा सके। ऐसे में यदि इस मामले में आरोप तय हो जाते हैं तो इसका प्रभाव हिमाचल के प्रशासन और राजनीति पर भी पड़ेगा। क्योंकि प्रबोध सक्सेना भी इसमें सह अभियुक्त है यदि उनके खिलाफ आरोप तय हो जाते हैं तब भी क्या मुख्यमंत्री उन्हें अपना मुख्य सचिव बनाये रखते हैं या नहीं। यह सवाल इसलिये अहम हो जाता है की सुक्खु सरकार ने चार वरिष्ठों को नजरअंदाज करके सक्सेना को पदोनित किया था।
जबकि प्रदेश की जिस वित्तीय स्थिति पर यह सरकार श्वेत पत्र लेकर आयी है उसमें अधिकांश समय तक सक्सेना ही प्रदेश के वित्त सचिव रहे हैं। सक्सेना सुक्खु के विश्वसनीय अधिकारी हैं यह तो एक समय वायरल हुये व्हाट्सएप मैसेज से भी स्पष्ट हो गया था। इसलिये आज सक्सेना के स्थान पर किसी दूसरे को नियुक्त कर पाना सुक्खु के लिये सहज नहीं माना जा रहा है।

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