Saturday, 20 December 2025
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मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव के खिलाफ जांच के आदेश से सरकार की निष्पक्षता कसौटी पर

बतौर आबकारी एवम् कराधान आयुक्त किये फैसलों से सरकार को पहुंचा है करोड़ो का नुकसान
क्या अधिकारों के दुरूपयोग को जांचने के लिये विजिलैन्स रूल्ज़ आफ बिजनैस देखेगी
क्या यह सामने आ पायेगा कि यह फैसले मन्त्री परिषद में हुए या सचिव और आयुक्त स्तर पर ही सब हो गया

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के प्रधान सचिव जगदीश शर्मा के खिलाफ विशेष जज शिमला की अदालत ने एक मामलें में जांच किये जाने के आदेश जारी किये हैं। विशेष जज ने विजिलैन्स को यह जांच तीन माह में पूरी करने के आदेश दिये हैं। जज ने यह आदेश जारी करते हुए लिखा है कि After thorough consideration of the rival arguments advanced by learned counsel, this court observes that though applicant has not filed objections in writing against the investigation/inquiry report submitted by the respondent but it is evident that the first allegation of the complaint which is with respect to acquisition of assets disproportionate to his known sources of income by Sh. Jagdish Chander Sharma when posted as Excise and Taxation Commissioner from 08.12.2009 to 04.12.2013, has not been specifically dealt with and there is no report submitted on this allegation in particular. Though, investigating agency has submitted that Sh. Jagdish Chander had purchased 30 bighas of land for ? 60,00,000/- but investigating agency has not reported/commented on this first allegation which appears to be the main allegation. Since applicant has not filed objections/response to the findings arrived at and reported in the inquiry/ investigation report, same cannot be said to be without basis. Despite, this court deems proper and in the interest of justice to have complete report on all allegations so as to finally consider the allegations of complainant more specifically allegation No.1 with respect to acquisition of assets disproportionate to the known sources of income by Sh. Jagdish Chander Sharma.  

जज के इस आदेश के संद्धर्भ में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि जगदीश शर्मा के खिलाफ आदेश क्या लगाये थे। स्मरणीय है कि जगदीश शर्मा 8-12-2009 से 4-12-2013 तक आबकारी एवम् कराधान विभाग के आयुक्त थे। इस दौरान उन पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होकर आय से अधिक संपति अर्जित करने के आरोप लगाये गये हैं। ऐसे 23 आरोपों की सूची विजिलैन्स को पूरे दस्तोवजों के साथ विभाग में ही अधिकारी रही गीता सिंह ने सौंपी थी। जब विजिलैन्स ने इस शिकायत पर नियमानुसार कारवाई नही की तब गीता सिंह ने सीआरपीसी की धारा 156;3द्ध के तहत अदालत में इस आश्य की शिकायत दायर कर दी और अदालत ने 17-10-2015 को इसे विजिलैन्स को जांच के लिये भेज दिया। विजिलैन्स ने 6-1-2016 को अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी और कहा कि आरोपों की पुष्टि करने के कोई प्रमाण उसे नहीं मिले हैं। इस रिपोर्ट पर गीता सिंह ने एतराज दायर किये और अदालत ने इस एतराज को अधिमान देते हुए यह आदेश किया

Objections to the inquiry report were filed by applicant Ms. Geeta Singh and my learned predecessor in court observed vide order dated 12.07.2017 passed in Cr. M. P. No. 177-S/4 of 2016 as under:-
“ From the inquiry report, it can be gathered that the persons from whom Sh. Jagdish Chander purchased the land were not associated during the inquiry. Even the copies of their bank accounts material witnesses as per the version of the applicant were not examined. All the allegations leveled by her were not properly inquired into.
That being so, I do not agree with the inquiry report furnished by the respondent. He is directed to further inquire into the matter in the light of the objections put forth by the applicant/ objector. She wil be joined during the course of inquiry by the inquiry officer in the interest of justice and fair play. The objections are allowed in part.
Police file alongwith a copy of this order and copy of the objections instituted by the applicant/ objector be returned to the respondent for further necessary action at his end. He is directed to conclude further inquiry/ investigation in the matter as per law within a period of three months from the date of receipt of police file”.

इस आदेश के बाद विजिलैन्स ने फिर जांच की और रिपोर्ट अदालत में सौंप दी। लेकिन इस बार भी विजिलैन्स ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं की। केवल पहले तीन आरोपों की ही जांच की है। इस जांच में शिकायतकर्ता को शामिल किया गया था यह नहीं इस पर भी रिपोर्ट में विरोधाभास है। लेकिन इस रिपोर्ट के बाद यह सवाल खड़ा हुआ कि आपराधिक मामलों में अदालत अपने ही आदेश का रिव्यू कैसे कर सकती है। इसी सवाल पर यह मामला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया और इस बात को सभी ने स्वीकार भी कर लिया। इसके बाद विशेष जज ने 6-1-2016 की रिपोर्ट पर जो इस मामले की पुनः जांच का आदेश दिया था वह आदेश अपनी जगह बरकरार रहा। अब उसी आदेश की पुष्टि इस आदेश से पुनः हुई है। अब फिर यह महत्वपूर्ण सवाल आयेगा कि क्या अब विजिलैन्स इस मामले में एफआईआर दर्ज करके अगली जांच करेगी या पहले की ही तरह निपटाने का प्रयास करेगी। लेकिन इस मामले में बुनियादी सवाल ही एफआईआर दर्ज किये जाने का है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस मामले की जांच ही एफआईआर दर्ज किये जाने से ही शुरू होगी।
जो आरोप जगदीश शर्मा पर लगाये गये हैं उनमें बुनियादी आरोप ही अपने अधिकारों से बाहर जाकर आदेश करने का है। अधिकारों के इस दुरूपयोग से सरकारी कोष को करोड़ो का नुकसान पहुंचा है यही ईटीओ स्वारघाट के आदेश से और रिपोर्ट से सामने आ जाता है। विजिलैन्स ने अपनी पहले की रिपोर्ट में अधिकारों के इस दुरूपयोग को सरकार के एक उपसचिव के पत्र से कवर करने का प्रयास किया है। लेकिन रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सरकार से जो स्पष्टीकरण विभाग को आया क्या उसे मन्त्री परिषद की स्वीकृति थी या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि सचिव ने यह मामला मन्त्री परिषद मे ले जाये बिना ही अपने ही स्तर पर आदेश/स्पष्टीकरण जारी कर दिया हो। सरकार के काम काज के निपटारे के लिये विधानसभा के पारित रूल्ज़ आफ बिजनैस होते हैं उनमें हर अधिकारी/कर्मचारी के अधिकार और उनकी सीमायें परिभाषित हैं। इनमें कोई भी संशोधन कोई भी अधिकारी अपने स्तर पर नहीं कर सकता है।
जगदीश शर्मा के खिलाफ अधिकारों के ही दुरूपयोग मूल आरोप हैं। इस आरोप की जांच के लिये इसका दायरा सचिव तक बढ़ाना होगा। क्योंकि जिस तरह के फैसलों का जिक्र किया गया है उससे निश्चित तौर पर सरकार को कारोड़ो का नुकसान पहुंचा है और शायद आज भी पहुंच रहा हो। ऐसे में यह सामने आना बहुत आवश्यक है कि क्या मन्त्री परिषद ने ऐसे फैसले लिये हैं या सचिव और आयुक्त के स्तर पर ही यह सबकुछ हो गया है। अब जो जांच रिपोर्ट अदालत को इन आरोपों पर सौंपी जायेगी उसके बाद अदालत यह फैसला लेगी कि इस मामले में एफआईआर की जाये या नहीं। लेकिन इस समय जगदीश शर्मा मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव हैं और इस नाते पूरी सरकार पर उनका प्रभाव होना स्वभाविक है और इसी प्रभाव के कारण इस बार सौंपी जाने वाली रिपोर्ट की निष्पक्षता पर भी सवाल उठने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। बल्कि अपरोक्ष मे इसके छींटें मुख्यमन्त्री तक भी पहुंच जायें जो इसमें आश्चर्य नहीं होगा।
यह हैं आरोप

i) That Sh. Jagdish Chander IAS was posted as Excise & Taxation Commissioner from 8.12.2009 to 4.12.2013. During this period, he indulged in corrupt practices on a large scale and acquired assets disproportionate to his known sources of income.
ii) That he purchased 30 bighas of valuable land from royal family of Koti, Tehsil Theog without prior approval of the Govt.
iii) That sale deed was got executed for rupees sixty lacs but actual transaction is believed to be over Rs. One Crore.
iv) That he passed order dated 27.11.2010 (Annexure-A-1) in favour of Wire Manufacturers Association for a consideration.
v) That above order had the effect of reducing rate of tax from 13.75% to 5% on winding wire.
vi) That he did not have the authority to do so.
vii) That rules of Business of the Govt. lay down that all proposals relating to change of rate of tax must be placed before the Council of Ministers for approval.
viii) That he ordered that winding wire could be treated as Industrial Input (Taxable at lower rate of tax). He was not competent to do so.
ix) That Govt. has notified 226 items as Industrial Inputs under entry 54 of Part-II scheduled A annexed to HP Vat Act 2005 passed by the State Legislative Assembly.
x) That Excise and Taxation Commissioner or any other officer is not empowered to add or delete any item in the above list without prior approval of Council of Ministers.
xi) That by passing above illegal order he caused a recurring loss of crores of rupees to the public exchequer.
xii) That M/S SPS Steal Rolling Mills Ltd. Gawalthai, Distt. Bilaspur is engaged in manufacture of TMT Sariya from steel Billets supplied by Steel Authority of India (SAIL) Chandigarh and manufactured product i.e. TMT Sariya is returned to SAIL Chandigarh.
xiii) That above firm did not pay any entry tax on Steel Billets (raw material) worth rupees forty crores brought from Chandigarh. The firm also did not pay any VAT or CST on manufactured product.
xiv) That ETO Swarghat detected this and imposed entry tax/ penalty of Rs. 2.08 Crores on the firm vide order dated 23.3.2011.
xv) That during examination of the case it came to light that the firm was avoiding entry tax under the garb of illegal clarification given by Sh. Jagdish Chander ETC on 26.4.2010 and 12.05.2010.
xvi) That orders passed by Excise and Taxation Commissioner on 26.4.2010 and 12.5.2010 in the shape of clarifications were illegal. These orders were passed for causing wrongful gain of Rs. 2.08 Crores to M/S SPS steel rolling Mill and wrongful loss to the State Exchequer.
xvii) That order dated 26.4.2010 (Annexure A-2) was illegal as the case in had was not covered by provisions of section 3(4) (ii) and (iii). The firm brought steel billets (raw material) from outside the state and manufactures TMT Sariya which is a commodity different from the original steel Billets. Further manufactured goods in this case were not transferred by way of interstate sale but merely stock transferred without paying any CST.
xviii) That in order dated 26.04.2010 the ETC deliberately used the term “inter-state transaction” 'instead of inter-state sales” on 5.3.2010(AnnexureA-3) further clarification was sought whether stock transfer was covered in interstate transactions. Vide ordered dated 12.5.2010 (Annexure-4) he clarified that no entry tax is leviable on interstate sales or interstate stock transfer.
xix) The above order/ clarification was illegal as interstate stock transfers are taxable under section 3(3) of the H.P. Tax on Entry of Goods into local Area Act 2010.
xx) That Sh. Jagdish Chander issued above illegal clarification in favour of M/s SPS steel Rolling Ltd for a consideration.
xxi) That said officer issued several illegal and corrupt clarifications/ instructions from time to me which created Chaotic situation in the field (Annexure A-5 letter dated 25.3.2013).
xxii) That successor ETC tried to correct the situation and ordered whole sale withdrawal of instructions/clarification issued by Sh. Jagdish Chander (letter dated 18.1.2013. (Annexure A-6).
xxiii) That subsequent withdrawal of instructions/ clarifications could not undo the corrupt act. Sh. Jagdish Chander had issued these illegal instructions/ clarifications for consideration which was not reversed.
xxiv) That Sh. Jagdish Chander during his tenure as ETC shielded the corrupt and victimized the innocent. Complaints sent by Vigilance were hushed up. Recommendations of Vigilance for starting Departmental Enquiry were turned down to favour corrupt elements.


क्या शिमला का जल प्रबन्धन फेल हो चुका है निर्वाणा वुडज़ के पत्र से उठा सवाल

शिमला/शैल। नगर निगम क्षेत्रा शिमला के जल प्रबन्धन को लेकर इन दिनों गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल उठने में नगर निगम शिमला के पूर्व पार्षद और संघ भाजपा के युवा नेता गौरव शर्मा ने ही पहल की है। यह सवाल पानी के बिलों को लेकर उठ रहे हैं क्योंकि यह बिल उपभोक्ता की पानी की वास्तविक खपत पर नहीं दिये जा रहे हैं। इसी कारण से यह बिल कई गुणा बढ़कर आ रहे हैं। यह स्पष्ट नहीं किया जा रहा है कि क्या पानी के दाम बढ़ा दिये गये हैं या भारी भरकम बना दिये गये प्रबन्धन के खर्चे पूरे करने के लिये बढ़ाये गये हैं। क्योंकि जब पार्टी के ही नेता इस प्रबन्धन की तुलना ईस्ट इण्डिया कंपनी के साथ करना शुरू कर दे तो निश्चित रूप से यह मानना ही पड़ेगा कि कहीं तो गंभीर गड़बड़ हैै। शिमला के जल प्रबन्धन को सुचारू करने के लिये ही शिमला जल प्रबन्धन निगम का गठन किया गया था। लेकिन इस प्रबन्धन के बाद एक बड़ा सवाल पानी के मीटरों की खरीद को लेकर उठ रहा है और इस संद्धर्भ में जांच भी शुरू कर दी गयी है। इसलिये जब तक यह जांच रिपोर्ट सामने नहीं आ जाती है तब तक इस पर कुछ ज्यादा कहना संगत नहीं होगा। क्योंकि हजारों मीटरों के गायब होने का आरोप है।
पानी के दामों और बिलों को लेकर विधानसभा तक में भी सवाल उठ चुके हैं। हर बार जवाब दिया गया है वास्तविक रिडिंग पर ही बिल दिये जा रहे हैं जबकि ऐसा हुआ नही हैं। स्वभाविक है कि जब औसत के आधार पर बिल दिया जोयगा तो उसमें पूरे क्षेत्र के सारे खर्च हो मिलकर सारे उपभोक्ताओं के आधार पर औसत निकाली जायेगी और उसमें कम पानी खर्च करने वालों को ज्यादा बड़े बिल थमा दिये जायेंगे। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जल प्रबन्धन हर मीटर की रिडिंग करने की व्यवस्था क्यों नहीं कर पा रही है? क्योंकि जब तक वास्तविक रिडिंग नहीं हो जाती है तब तक इस समस्या का सही हल नहीं निकल पायेगा और यह आरोप लगता रहेगा कि प्रभावशाली व्यवसायियों के दबाव में ऐसा किया जा रहा है। यह बात निर्वाणा वुडज़ द्वारा शिमला जल प्रबन्धन निगम को लिखे पत्र से सामने आयी है। निर्वाणा वुडज पर यह आरोप है कि उसके निर्माण के कारण वहां की सीवरेज लाईन को नुकसान पहुंचा है इसके लिये उसे पत्र लिखा गया। वैसे सरकारी संपति को नुकसान पहुंचाने के लिये आपराधिक मामला तक दर्ज करवाने तक का नियमों में प्रावधान है। निर्वाणा वुडज ने जल प्रबन्धन के पत्र का जो जवाब दिया है उसमें उसने सीवरेज लाईन को हुए नुकसान की जिम्मेदारी अपने स्तर पर नहीं ली है। उसमें प्रबन्धन को अपने स्तर पर ही इस लाईन की रिपेयर करवाने को कहा है साथ ही यह भी कहा है कि इस रिपेयर का खर्च जल प्रबन्धन को देने के लिये तैयार है।
निर्वाणा वुडज ने अगर सीवरेज लाईन को नुकसान ही नहीं पहुंचाया है तो वह इसका खर्च उठाने को क्यों सहमत हो रहा है? इससे यह संकेत उभरना स्वभाविक है कि जल प्रबन्धन ने इस मामले में या तो वांच्छित कारवाई नहीं की है या फिर निर्वाणा वुडज को बिना गलती के दण्डित किया जा रहा है। दोनो में से जो भी स्थिति रही हो उससे जल प्रबन्धन की कार्यशैली पर ही सवाल उठते हैं।



क्या मकलोड़गंज प्रकरण में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कारवाई हो पायेगी

सर्वोच्च न्यायालय ने होटल रेस्तरां को तोड़ने के दिये निर्देश
शीर्ष अदालत ने सीईसी और एनजीटी दोनों के फैसलों को रखा बहाल
सीईसी और एनजीटी लगा चुके हैं एक करोड तीस लाख का सरकार को जुर्माना
सत्र न्यायधीश धर्मशाला ने आधा दर्जन विभागों को ठहराया है दोषी
सीईसी, एनजीटी और सत्र न्यायधीश ने दोषियों को चिन्हित करके दण्डित करने को कहा है
2018 में सत्र न्यायधीश की रिपोर्ट आने के बाद भी दोषीयों को बचाने के प्रयास सवालों में।

शिमला/शैल। मकलोड़गंज प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का अन्तिम फैसला आ गया है और शीर्ष अदालत ने यहां बने होटल रेस्तरां को गिराने के आदेश दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सीईसी और एनजीटी के इस प्रकरण में दिये पूर्व के फैसलों को बहाल रखते हुए अपना फैसला सुनाया है। सीईसी ने इस प्रकरण में सरकार को एक करोड़ और एनजीटी ने 30 लाख का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माने अधिकारियों द्वारा निर्माता कंपनी प्रशांती सूर्य को सारे नियमों/ कानूनों को अंगूठा दिखाकर लाभ पहुंचाने के कारण लगाया गया है। सर्वोच्च न्यायालय तक ने अधिकारियों की भूमिका की कड़ी निंदा की है। सभी सरकारों ने अधिकारियों और प्रशांती सूर्य को बचाने के लिये जिस हद तक प्रयास किये हैं उससे अधिकारियों के साथ ही राजनीतिक नेतृत्व की नीयत पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। इस फैसले के बाद जयराम सरकार के दो मन्त्रीयों सुरेश भारद्वाज और राकेश पठानिया ने वीरभद्र सरकार पर सवाल दागते हुए उसे इसके लिये जिम्मेदार ठहराया है। शैल ने सीईसी और एनजीटी के फैसलों और फिर सत्र न्यायधीश धर्मशाला की रिपोर्ट को पूरे विस्तार के साथ अपने पाठकों के सामने रखा है। इनसे स्पष्ट हो जाता है कि हर सरकार ने भ्रष्टाचार को संरक्षण देने में कोई कसर नहीं रखी है।

स्मरणीय है कि हिमाचल सरकार ने 12-11-97 को भारत सरकार के वन एवम् पर्यावरण मन्त्रालय से मकलोड़ गंज में पार्किंग के निर्माण के लिये 0.093 है. वन भूमि का उपयोग बदलने के लिये पत्र लिखा जिसकी अनुमति कुछ शर्तों के साथ उसे मिल गयी उसके बाद 1-3-2001 को 0.48 है. और वन भूमि यहीं पर बस स्टैण्ड बनाने के लिये मिल गयी। दोनों अनुमतियों में साफ कहा गया था कि यदि किसी भी शर्त का उल्लघंन हुआ तो अनुमति रद्द कर दी जायेगी। यह ज़मीन सड़क के दोनों ओर स्थित थी। ज़मीन का उपयोग एसडीएम धर्मशाला और प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा किया जाना था और इनकी अनुमानित निर्माण लागत एक की दस लाख और दूसरे की 90-95 लाख रखी गयी थी। इसी दौरान अप्रैल 2000 में बस अड्डा प्राधिकरण का गठन का हो गया और 2006 फरवरी में वन भूमि इन उपयोग ऐजैन्सीयों को 99 वर्ष की लीज पर ट्रांसफर कर दी गयी। इसके बाद 7-11-2003 को बस अड्डा प्राधिकरण के लिये निदेशक मण्डल ने अनुमानित निर्माण लागत के अधिक होने के कारण या निर्माण बीओटी के माध्यम से करवाने का निर्णय लिया और 19-11-2003 को इसके लिये निविदायें आमन्त्रित की लेकिन एक ही आफर आने के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया। इस पर निर्माण का प्रारूप बदल कर 13-7-2004 को निविदायें मांगी गयी। नया प्रारूप बहुमंजिला व्यवसायिक काम्पलैक्स बनाया गया और इसके लियक स्वभाविक रूप से निर्माण एरिया बढ़ गया। 13-10-2004 को निविदाओं को अन्तिम रूप देकर न्यूनतम निविदा वाले से 23-12-2004 को निर्माण अनुबन्ध साईन कर लिया गया। यह अनुबन्ध प्रशांती सूर्य के साथ किया गया और निर्माण के 16 वर्ष 7 माह 15 दिन के बाद यह परिसर प्राधिकरण को ट्रांसफर किया जाना था। अनुबन्ध 15-12-2005 से लागू होना था इसके मुताबिक प्रशांती सूर्य को एक वर्ष में यह निर्माण पूरा करके आप्रेशन में लाना था ताकि उसकी कमाई शुरू हो जाती। इसलिये उसने टीसीपी द्वारा परिसर के नक्शे स्वीकृत किये जाने का इन्तजार किये बिना ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया जबकि टीसीपी को यह नक्शे ही मार्च 2006 में भेजे गये। टीसीपी ने 10 मार्च को ही नक्शों में कुछ कमियां पाकर और सूचनाएं मांगी। इसके लिये 19-2-2007 तक कई पत्र लिखे गये। इस दौरान भी प्रशांती सूर्य ने निर्माण जारी रखा। टीसीपी ने अक्तूबर 2006, मार्च 2007 और जून 2008 को यह निर्माण बन्द करने के लिये लिखा लेकिन प्रशांती सूर्य ने यह निर्माण जारी रखा।
इसी दौरान प्रदेश सरकार ने मई 2007 को वन एवम् पर्यावरण मन्त्रालय को एक और प्रस्ताव भेजकर 0.573 है. वन भूमि जिसकी स्वीकृति गैर वन कार्यो के लिये दी गयी थी उसे बस अड्डा परिसर निर्माण में बदलने के साथ ही इसकी यूज़र ऐजैन्सी भी बदलने का आग्रह किया जिसे 12-6-2007 को अस्वीकार कर दिया गया। लेकिन प्रशांती सूर्य द्वारा निर्माण कार्य जारी रखे जाने पर एक शिकायत के माध्यम से यह मामला सीईसी में पहुंच गया। सीईसी ने कार्य स्थल का निरीक्षण किया 18-8-2008 को मुख्य सचिव से रिपोर्ट ली। सीईसी के सामने यह आ गया कि यह निर्माण नक्शे स्वीकृत किये बिना हो रहा है और यूज़र ऐजैन्सी बदलने का आग्रह भी अस्वीकार हो चुका है। प्रस्तावित एरिया से 6265 वर्ग मीटर एरिया भी बढ़ा दिया गया है। यह सब संवद्ध तन्त्र के सामने हो रहा था लेकिन इसे रोकने के लिये कोई क्रियात्मक कदम नहीं उठाये गये। सीईसी तन्त्र की इस उदासीनता का कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार पर एक करोड़ का जुर्माना लगाया। सीईसी से इस आदेश की अपील की गयी और मामला एनजीटी में जा पहुंचा। एनजीटी ने भी इसमें अधिकारियों की स्पष्ट मिली भगत को जिम्मेदार माना है।
सीईसी और एनजीटी दोनों ने ही संवद्ध विभागों के दोषी अधिकारियों की पहचान करके उन्हें दण्डित करने के निर्देश हुए हैं। इसकी जिम्मेदारी मुख्य सचिव को दी गयी थी। सरकार ने फिर इसकी अपील दायर कर दी। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने 16-5-2016 को मुख्य सचिव के स्थान पर यह जिम्मेदारी सत्र न्यायधीश धर्मशाला को सौंप दी। सत्र न्यायधीश ने 9-10-2018 को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आधा दर्जन विभागों को दोषी ठहरा कर उनके खिलाफ कड़ी कारवाई की संस्तुति की है। अक्तूबर 2018 में सत्र न्यायधीश की रिपोर्ट आने के बाद जयराम सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अधिकारियों का बचाव करने का हर संभव प्रयास किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने जयराम सरकार की सारी दलीलों को अस्वीकार करके सीईसी और एनजीटी के फैसलों को बहाल रखते हुए इस निर्माण को गिराने के आदेश दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद जयराम के दो मन्त्रीयों की प्रतिक्रियाएं आने से इस सरकार के लिये यह सवाल खड़े हो जाते हैं कि क्या यह सरकार दोषी अधिकारियों को चिहिन्त करके उनके खिलाफ कारवाई करने का साहस करेगी? अधिकारियों की मिली भगत और राजनीतिक नेतृत्व की चुप्पी का परिणाम है कि सरकार को जुर्माना लगा तथा निर्माण को गिराने के आदेश हुए। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि इस करोडों के नुकसान की भरपायी सरकारी कोष से न करके दोषी अधिकारियों से करवाई जाये। जयराम सरकार ने जब सत्र न्यायधीश धर्मशाला की रिपोर्ट के बाद भी दोषियों को बचाने का प्रयास किया उससे इस सरकार की नीयत और नीति पर सवाल उठने स्वभाविक हैं। क्योंकि पूर्व की दोनों सरकारों के समय में यह संभावना बनी हुई थी कि शायद सरकार के पक्ष को शीर्ष अदालत मान ले। लेकिन 2018 में सत्र न्यायाधीश की रिपोर्ट के बाद तो यह स्पष्ट हो गया था कि इस मामले में जयराम सरकार के खिलाफ ही फैसला आयेगा और अन्त में आया भी। ऐसे में यदि जयराम सरकार सही में ईमानदारी से भ्रष्टाचार के खिलाफ है तो उसे उन अधिकारियों को जो इसके लिये जिम्मेदार रहे हैं उन्हे सज़ा देनी होगी। अन्यथा इस भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की सारी जिम्मेदारी इसी सरकार के नाम लगेगी। क्योंकि जो अधिकारी उस समय एचआरटीसी का प्रबन्धन देख रहे थे वह इस सरकार में सेवानिवृति के बाद और भी प्रभावशाली हो गये हैं।
                                                           सी ई सी की रिपोर्ट के अंश

22. The above clearly highlights that there has been absolute anarchy in the matter of construction of the parking place and Bus Stand. At the same time there is a very real need at McLeod Ganj for both the Parking place and the Bus Stand Complex on the two pieces of forest land. With a view to finding a way out of this terrible muddle created by the deep vested interests and at the same time ensuring that those who have connived in the serious lapse are not allowed to go scot free the following is recommended:
c) there has been a collective failure and serious lapses on the part of the officials and others of the State Government connected with the unauthorized and illegal construction of the twin project on the two pieces of forest land and reflects on the pathetic state of affairs in the matter of governance. In this background the State Government of Himachal Pradesh
has to take the blame and may be directed to deposit an amount of Rupees one crore, in a special fund for the conservation and protection of the forest and wildlife;
d) the State Government may also be directed to simultaneously identify and initiate stringent and deterrent action in a time bound manner against all the concerned
persons and officials for complete abdication of their responsibility and accountability in the matter of governance and who are responsible for blatantly allowing the unauthorized and illegal building structures to come up on the two pieces of forest land in flagrant violation of the Forest (Conservation) Act, 1980, the HP Town and Country Planning Act, 1977 and other relevant local laws; and

                                          एन जी टी की रिपोर्ट के अंश

“A. At no point of time there was any permission, sanction or approval granted by the Competent Authority in the State Government and/or Central Government under the Act of 1980 and even (under) other relevant laws for the hotel and shopping complex.
B. Right from the initial stages, the hotel and shopping complex were never a part of the project for which the Government departments and/or the project proponent even submitted applications for grant of approval/sanction from the Competent Authority. MoEF&CC vide its letter dated 12th June, 2007 had specifically declined the permission for
conversion of the forest land for any other non forest activity.
Once such permission for hotel and shopping complex was declined, the project proponent could not have been taken up and commenced any activity.
C. The project proponent not only started the construction without obtaining appropriate approval and sanction from the concerned State and the Central Government, but had also worked in collusion with some of the authorities who consented [to] the commencement of construction temporarily which was entirely uncalled for and in fact was illegal.”

                                      सत्र न्यायधीश की रिपोर्ट के अंश

In his report, the District and Sessions Judge has found that the Bus Stand Complex:
(i) Has been constructed on forest land, in violation of the provisions of the Forest Act;
(ii) Has been constructed without requisite permissions being obtained from the TCP Department;
(iii) Does not conform to the plans prepared by third-party consultants hired by the appellant, which were submitted during the RFP;
(iv) Has not been properly maintained, and is plagued by issues of seepage; and
(v) Suffers from architectural defects due to which it is extremely difficult for buses to turn into the bus stand from the main road.
31 The District and Sessions Judge concludes that the second respondent could not have engaged in this illegal construction without the connivance of the officials of the following departments: (i) the appellant; (ii) Himachal Pradesh Tourism Department; (iii) TCP Department; (iv) Forest Department; (v) Municipal
Committee and Municipal Corporation; (vi) Revenue Department; and (vii) Electricity Department. The report states this in the following terms:
“28. I have no hesitation to conclude that the officials/officers of all the departments were hand in gloves with the M/s Prashanti Surya Construction Company, in order to give undue advantage to M/s Prashanti Surya Construction Company including the financial benefits. For the same these
officers/officials are liable. It is a case of serious lapse and
failure on the part of officers/officials of State Government,
who were duty bound to take prompt and immediate action to stop the un-authorised and illegal construction of the structure in dispute. So, it is my humble submission that concerned Disciplinary Authority/Authorities of the State Government be directed to take deterrent action against the defaulting officers/officials. It appears that the CEO and Board of Directors suo moto assumed the powers to change the conceptual plan and allowed the construction work of illegal
structure on the spot by throwing into the air the statutory provisions of law. Moreover, the structure of bus stand on the spot has not been properly erected. As submitted here in above, due to pillars, there was lack of sufficient space for turning the buses and at the same time there is no separate entry and exit point of the buses. The structure has not been properly maintained and seepage was found on the spot.
There is no separate place for idle bus parking. So, it appears
that the Bus Stand Authority’ has got no control over the maintenance of the bus stand structure and it is not paying any heed in this regard. In view of my submissions, it is a case of open favoritism of M/s Prashanti Surya Construction Company. All the concerned Authorities were well aware of
the legal requirements, but they preferred to continue with the
illegal construction without following the legal requirements. It cannot be believed that the construction work on the spot continued from mid 2005 to beginning 2009 without connivance [sic of] the aforesaid Government Agencies and these officials/officers.


सरकारी ज़मीन कब्जाने को लेकर मनोनीत पार्षद संजीव सूद के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर

नगर निगम से लेकर सरकार तक सबकी कार्यप्रणाली सवालों में

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में यहां के भराड़ी एरिया से एक संजीव सूद को प्रदेश सरकार ने 2020 में पार्षद मनोनीत किया था। मनोनयन होने के बाद पद की शपथ लेने से पहले निदेशक शहरी विकास विभाग के पास अपनी पात्रता को लेकर वाकायदा एक शपथपत्र भी दायर किया। शपथ पत्र में दावा किया गया है कि उसके खिलाफ कहीं पर भी कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। जबकि दो बार 28.2.2020 और 30.3.2020 को सरकारी जमीन अवैध रूप से कब्जाने को लेकर शिकायतें संवद्ध अधिकारियों के पास गयी हुई थी और लंबित थी। शिकायतकर्ता राकेश कुमार ने 26-5-2020 को इसकी सूचना निदेशक शहरी विकास को भी दे दी और आरोप लगाया कि संजीव सूद ने जो शपथ पत्र उनके पास दायर कर रखा है वह गलत है।
नगर निगम शिमला के पार्षदों को पद और गोपनीयता की शपथ निदेशक शहरी विकास दिलाता है। इस नाते जब किसी भी पार्षद को लेकर ऐसी कोई शिकायत उनके पास आ जाती है तब उसकी जांच करवाने के लिये पार्षद के खिलाफ मामला दर्ज करवाना और अन्य कदम उठाना निदेशक की जिम्मेदारी हो जाती है ऐसा नियमों में प्रावधान हैं लेकिन निदेशक ने ऐसा नहीं किया। मुख्यमन्त्री कार्यालय तक भी शिकायतें गयी लेकिन कोई कारवाई नही हुई। अन्ततः राकेश कुमार ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत ने इसकी प्रारम्भिक जांच किये जाने के निर्देश दिये। इन निर्देशों के बाद यह जांच हुई और इसकी रिपोर्ट अदालत में गयी। अदालत ने इस रिपोर्ट को देखने के बाद एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिये और अब पुलिस चौकी लक्कड़ बाज़ार शिमला में आपराधिक मामला दर्ज हो गया है।
इस प्रकरण में यह सवाल उभरता है कि जब यह मनोनयन हुआ तब अवैध रूप से सरकारी जमीन कब्जाने का मामला नगर निगम शिमला के ही जेई की रिपोर्ट के माध्यम से नगर निगम शिमला के संज्ञान में था। बल्कि जेई की रिपोर्ट के आधार पर ही राकेश कुमार ने इस संबंध में शिकायत की है। इसलिये यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह मामला सबके संज्ञान में होने के बाद भी नगर निगम के लिये मनोनयन हो जाता है। मनोययन के बाद निदेशक शहरी विकास के पास शपथपत्र झूठा होने की शिकायत आ जाती है। यह शिकायत आने के बाद निदेशक की सीआरपीसी धारा 200 के तहत यह जिम्मेदारी हो जाती है कि वह इसमें मामला दर्ज करवाकर जांच करवाते। लेकिन निदेशक भी ऐसा नहीं करता है। स्वभाविक है कि सभी पर राजनीतिक दबाव रहा होेगा। इस तरह स्थितियां होने के बाद भी जब सरकार सुशासन होने का दावा करे तो यही मानना पड़ेगा कि अब भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गयी है।

क्या 2009 से 2019 तक नगर निगम शिमला के शीर्ष प्रशासन और हाऊस तक सभी गैर जिम्मेदार थे

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के काम को सुचारू और प्रभावी बनाने के लिये निगम में सैहब सोसायटी का गठन किया गया था। सोसायटी का पंजीकरण 12 फरवरी 2019 को हुआ था। सोसायटी को कूडा गारबेज कलैक्शन के साथ ही पयार्वरण संरक्षण, हैरिटेज संरक्षण और शिमला के सौंदर्यकरण की भी जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। इस काम को अंजाम देने के लिये कर्मचारियों के अतिरिक्त सुपरवाईज़र और कोओडिनेटर भी लगाये गये थे। बाद में सोसायटी की सहायता के लिये एक सेवानिवृत उप सचिव एम एल शर्मा की सेवाएं भी ली गयी जो आज तक चल रही है। एम एल शर्मा को बतौर कन्सलटैन्ट 1-9-2018 को एक वर्ष के लिये रखा गया था। एम एल शर्मा के काम से प्रभावित होकर उनकी सेवाओं को 31-7-2021 तक विस्तार दे दिया गया है। इस विस्तार का आधार शर्मा की कार्य कुशलता बनी है। शर्मा के प्रयासों से ही नगर निगम सरकार के विभागों से कूडा उठाने की एवज में 6 करोड़ प्रतिवर्ष सरकार से ले पायी है इसे निगम ने अपने रिकार्ड में दर्ज किया है।
शर्मा की सेवाएं सैहब सोसायटी 2018 से ले रही है। 2019 में जब उन्हें कार्य विस्तार देने का प्रस्ताव सैहब की ओर से आया तब उसमें एक माह के लिये विस्तार देने का प्रस्ताव था। जिसे बाद में लिखने में गलती लग जाने के नाम पर एक वर्ष किया गया अब इसे 2021 तक कर दिया गया। शर्मा को सैहब के काम के लिये ही कन्सलटैन्ट नियुक्त किया गया है और उनके काम की भी प्रशंसा की गयी है। लेकिन निगम हाऊस की 10वीं साधारण बैठक में 31-1-2020 को जो प्रस्ताव लाया गया था उसमें यह कहा है कि जब से सहैब सोसायटी का गठन हुआ है तब से लेकर अब तक इसमें नियुक्त हुए सुपर वाईज़रों और कोआडिनेटरों को उनके कार्यो का निर्धारण ही नहीं किया गया था जो अब शर्मा ने किया है। नगर निगम में यह प्रस्ताव 31-1-20 को लाया गया। इससे स्पष्ट होता है कि सैहब और नगर निगम मे जो भी शीर्ष प्रशासन और हाऊस रहा है वह सब लोग इतने गैर जिम्मेदार थे कि उन्हें यही पता नहीं लगा कि सोसायटी के निगरान स्टाफ को ग्याहर वर्षों से कार्यों और जिम्मेदारीयों का आंवटन ही नहीं हो पाया है। इस प्रस्ताव से यह भी सामने आता है कि शर्मा को भी यह समझने में एक वर्ष से भी अधिक का समय लग गया है। इसी प्रस्ताव के अन्त में कृत्यकारक समिति का प्रस्ताव भी दर्ज है जिसमें शर्मा को छः माह का विस्तार देने की बात रिकार्ड पर है।
नगर निगम के इन प्रस्तावों के परिप्रेक्ष में भीतरी सूत्रों का यह कहना है कि शर्मा को विस्तार देने के लिये ही इस तरह की भूमिका तैयार की गयी है। सैहब सोसायटी में निगम के आयुक्त से लेकर हैल्थ अफसर तक सभी बडे़ अधिकारी उसके संचालन मण्डल के वरिष्ठ पदाधिकारी हैं। मुख्यमन्त्री सोसायटी के चीफ संरक्षक हैं। ऐसे में निगम हाऊस में 31-1-2020 को लाया गया प्रस्ताव इन सब लोगों पर व्यक्तिगत रूप से एक गंभरी टिप्पणी बन जाता है।
Since the inception  of the office of the SEHB Society, the duties and functions of  supervisors/Co-ordinators were not prescribed which has now been done under the guidance of consultants.
साधारणकृत्यकारक समीति के उक्त मद् सख्या 2(3)पर विचार विमर्श उपरान्त समीति द्वारा विभागीय प्रस्तावना को इस आधार पर अनुमोदित किया गया कि श्री एम एल शर्मा  ( Consaltant with SEHB Society) की सर्वीसिज को छः माह क लियेे एक्सटैन्ड किया जाये।
अतः मामला सदन समुख अनुमोदनार्थ प्रस्तुत है।
विचार विमर्श उपरान्त सदन द्वारा उक्त समीति की सिफारिश को अनुमोदित किया गया।














































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