शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर को प्रदेश की सत्ता संभाले हुए तीन वर्ष हो गये हैं और इतना कार्यकाल सरकार का आकलन करने के लिये बहुत काफी होता है। सरकार हर बार एक वर्ष पूरा होने पर अपनी उपलब्धियां जनता के सामने रखने के साथ ही परोक्ष/अपरोक्ष में स्वयं अपना आकलन भी करती आयी है। हर वर्ष पूरा होने पर उपलब्धियों का विज्ञापन जारी होता रहा है। लेकिन इस बार तीन वर्ष पूरे होने पर आयोजित पत्रकार वार्ता में मुख्यमन्त्री ने स्वयं यह कहकर कि अफसरशाही काम नही करती है और उससे आगे दो वर्षो में काम लेने के लिये आक्रमक रणनीति अपनाई जायेगी। अपने समर्थकों और विरोधीयों दोनांे को ही एक चर्चा और चिन्तन का मुद्दा दे दिया है। हर कोई यह सवाल कर रहा है कि क्या सही में ही अफसरशाही को समझने में तीन वर्ष लग गये हैं या अब अफसरों ने भी नियमों/कानूनों से बाहर जाने के लिये हाथ खड़े कर दिये हैं। क्योंकि तीन वर्षों का यह कड़वा सच है कि इस दौरान प्रदेश सरकार कर्ज की सारी सीमाएं लांघ गयी है। शायद इसी कारण से उपलब्धियों का कोई विधिवत विज्ञापन भी जारी नही हो सका है।
इन तीन वर्षो में चैथा मुख्यसचिव प्रदेश देख रहा है यह चर्चा भी चल पड़ी है कि पांचवा मुख्य सचिव लाया जा रहा है। इन तीन वर्षों में यदि सरकार ने कोई बड़ा काम किया है तो यह शायद प्रशासनिक तबादलों का ही रहा है। कई बार तो शायद ऐसा भी हुआ है कि कार्मिक विभाग से कोई तबदाला प्रस्ताव जाने से पहले ही उसके पास आदेश आ जाते रहे हैं बल्कि सरकार को तबादला सरकार की संज्ञा दी जाने लग पडी थी। अधिकारियों के तबादलों में किसका दखल ज्यादा रहा है इसकी चर्चा सचिवालय से स्कैण्डल तक कभी भी सुनी जा सकती है। इन्ही चर्चाओं के कारण इस सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे संरक्षण देना आवश्यकता बन गयी थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने, बोलने वालों को सरकार का विरोधी माना जाता रहा है। ऐसे लोगों की आवाज दबाने के लिये हर संभव प्रयास किया गया है। इसके कई प्रमाण मौजूद है।
लेकिन यह सब करने के बावजूद इन तीन वर्षों की उपलब्धियों का आकलन मुख्यमन्त्री के इसी कथन से हो जाता है कि अफसरशाही काम नही करती है। अफसरशाही की चुन चुन कर नियुक्तियां किसके ईशारों पर होती रही है। क्या नियुक्तियां पाने के लिये कई अधिकारी ऐसे प्रभावी लोगों के चरण स्पर्श तक नही करते रहे हैं? हो सकता है कि मुख्यमन्त्री इन प्रभावी लोगों की सामर्थय और प्रशासन में इनकी भूमिका का सही आकलन न कर पाया हों। परन्तु यह सच है कि सरकार का अब तक का कार्याकाल कतई रचनात्कम नही रहा है। किसी भी मुद्दे पर सरकार को अपेक्षित सफलता नही मिल पायी है। औद्यौगिक निवेश के लिये किये गये सारे प्रयासों का परिणाम कोई सन्तोषजनक नही रहा है। कोरोना का फैलाव प्रदेश में रोकने के लिये सरकार के सारे फैसले अप्रसांगिक रहे है। ऐसे में इन सारे फैसलों के लिये अकेले नौकरशाही को जिम्मेदार ठहराना कतई सही नही होगा। बल्कि मुख्यमन्त्री को अपने में आत्म मंथन करने की आवश्यकता है।