शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार रेरा अध्यक्ष पद की नियुक्ति में केन्द्र सरकार के क्रामिक विभाग द्वारा जारी दिशा निर्देशों को अनदेखा कर पायेगी? यह सवाल इसलिये चर्चा में आया है क्योंकि इस पद के लिये जिन लोगों ने आवेदन कर रखा है उनमें एक नाम प्रदेश में कार्यरत मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना का भी कहा जा रहा हैै। प्रबोध सक्सेना इसी मार्च माह में सेवानिवृत होने जा रहे हैं। इसलिये चर्चाओं के मुताबिक सरकार सेवा निवृत्ति के बाद भी इस अधिकारी की सेवाएं लेना चाहती है। इससे पहले भी इस पद पर सेवा निवृत मुख्य सचिव अपनी सेवाएं देते रहे हैं। लेकिन वर्तमान मुख्य सचिव के खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित चल रहा है। आई एन एक्स मीडिया प्रकरण में सक्सेना पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ सह अभियुक्त हैं। यह मामला 2017 में सीबीआई में पंजीकृत हुआ था और सीबीआई की अदालत में लंबित चल रहा है। इसकी जानकारी प्रदेश के क्रामिक विभाग ने 20-2-2025 को प्रदेश के प्रधान सचिव हाऊसिंग को दे रखी है। क्योंकि रेरा का प्रशासनिक नियंत्रण हाऊसिंग के तहत है।
भारत सरकार के क्रामिक की अक्तूबर 2024 में जारी अधिसूचना के अनुसार यदि किसी अधिकारी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला अदालत में लंबित चल रहा हो तो उस स्थिति में ऐसे अधिकारी को किसी संवेदनशील पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। न ही ऐसे अधिकारी को सरकार में किसी दूसरे पद पर सेवानिवृत्ति के बाद भी नियुक्त किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने 2024 में अपने नियमों में किये संशोधन में स्पष्ट कर दिया है कि अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामले का दायर होना ही पर्याप्त है चाहे उसकी स्टेज कोई भी क्यों न रही हो। ऐसे में इस मामले के लंबित चलते इस अधिकारी को विजिलैन्स क्लीयरैन्स ही जारी नहीं हो सकता था और उसके अभाव में अधिकारी इस आवेदन के लिये पात्र ही नहीं हो पाता। अब जब यह सब कुछ संज्ञान में होने के बावजूद भी विजिलैन्स क्लीयरैन्स जारी हुआ है तो माना जा रहा है कि सरकार अपने निहित कारणों से नियुक्ति तक भी चली जाये।
यही नहीं धर्मशाला के योल निवासी अनूप दत्ता ने 2002 में जब सक्सेना शायद कांगड़ा के जिलाधीश थे तब भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत दी गयी जमीन खरीद की अनुमति में की गयी हेराफेरी में एक दर्जन के करीब अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त और अब सीबीआई जांच की मांग कर सरकार के सामने एक गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। क्योंकि इस मामले में यह मान लिया गया है की धारा 118 के तहत दी गयी अनुमति अवैध है। लेकिन यह अवैधता करने वालों के खिलाफ आज तक कोई कारवाई न हो पाना अपने में एक बड़ा सवाल बन जाता है। अनूप दत्ता का आरोप है कि संबद्ध अधिकारियों ने उच्च न्यायालय को भी अंधेरे में रखने का प्रयास किया है। अनूप दत्ता का सबसे बड़ा आरोप तो यह है कि उसे ही रास्ते से हटाने के प्रयास किये गये और यह संबद्ध अधिकारी मौन बैठकर इसमें योगदान करते रहे। अनूप दत्ता ने मुख्यमंत्री कार्यालय को भी इस बारे में अवगत कराया है परन्तु कोई जवाब नहीं मिला है। इस मामले की जब भी जांच होगी तब इसमें कई विस्फोट होंगे।
ऐसे में अनूप दत्ता के आरोपों और केंद्र की अक्तूबर 2024 की अधिसूचना तथा इस सबका सरकार को संज्ञान होने से स्थिति बहुत रोचक हो गयी है।
यह है कार्मिक विभाग का पत्र
यह है अनूप दत्ता की शिकायत
शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार कर्ज लेकर घी पीने के चार्वाक दर्शन का अनुसरण कर रही है या रोम जल रहा था नीरो बांसुरी बजा रहा था को दोहरा रही है। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो रहे हैं क्योंकि सरकार हर माह कर्ज लेकर काम चला रही है। लेकिन सरकार अपने अनावश्यक खर्चों पर रोक नहीं लगा पा रही है। अभी सरकार ने वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल को लीज पर देने के लिये एक कंसल्टेंट की सेवाएं लेने का फैसला लिया है। यह कंसलटेंट लीज की शर्तें तय करेगा। जब सरकार के दिल्ली के हिमाचल भवन को एक देनदारी अदा न कर पाने की एवज में उच्च न्यायालय ने अटैच कर दिया था तब पूरे पर्यटन विभाग की कारगुजारी चर्चा में आ गयी थी। उच्च न्यायालय ने अठारह होटलों को बन्द करने के आदेश जारी कर दिये थे। तब भारत सरकार से सेवानिवृत सचिव तरूण श्रीधर ने सरकार और पर्यटन विभाग को इस संकट से उभारने के लिये निःशुल्क अपनी सेवाएं प्रदान करने का प्रस्ताव दिया था। क्योंकि वह एक समय पर्यटन विकास निगम के प्रबंध निदेशक रह चुके थे। तरुण श्रीधर की सेवाएं लेकर पर्यटन निगम और विभाग की कार्य प्रणाली में कुछ सुधार आया है जबकि सरकार श्रीधर की पूरी रिपोर्ट पर अमल नहीं कर पायी है। आज सरकार के पास श्रीधर की सेवाएं उपलब्ध हैं। सरकार में वरिष्ठ आईएएस अफसर की एक लम्बी लाइन उपलब्ध है। वित्तीय निवेश पर राय देने के लिये सलाहकार उपलब्ध है यह सारा कुछ उपलब्ध होते हुए भी जब सरकार एक लीज की शर्त तय करने के लिये कंसल्टेंट की सेवाएं लेने पर आ जाये तो उसे क्या कहा जायेगा? क्या सरकार को अपनी अफसरसाही पर विश्वास नहीं रहा है या फिर किसी व्यक्ति विशेष को लाभ देने के लिये यह रास्ता अपनाया जा रहा है।
सरकार पर केंद्रीय धन के दुरुपयोग के आरोप विपक्ष लम्बे अरसे से लगाता आ रहा है जब रामपुर में आपदा राहत के नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना में आया पैसा उन लोगों को बांट दिया गया जिन्होंने कभी इसके लिये आवेदन ही नहीं किया था। जब यह चर्चा में आया तो उन लोगों को रिकवरी नोटिस भेज दिये और अब यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया है। केन्द्रीय योजनाओं के पैसे से कर्मचारियों का वेतन दिया जा रहा है। यह आरोप समग्र शिक्षा अभियान के संद्धर्भ में सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पत्र विपक्ष द्वारा सार्वजनिक करने से प्रमाणित हो चुका है। प्रदेश वित्तीय संकट से गुजर रहा है और कभी भी श्री लंका जैसे हालात हो सकते हैं यह चेतावनी सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री ने दे दी थी। यह चेतावनी देने के बाद भी सी.पी.एस. की नियुक्तियां करना और प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अवैध करार देने के बाद उस मामले में सर्वाेच्च न्यायालय में उनके बचाव के लिये करोड़ों खर्च करने का आरोप विपक्ष लगा रहा है। फिर इस में वकालत कर रहे वकीलों के नाम से यह इंगित हो जाता है कि सही में करोड़ों खर्च किये जा रहे होंगे।
विधायक प्राथमिकता योजनाओं को लेकर विपक्ष अरसे से सरकार के खिलाफ लामबन्द है। इसी लामबन्दी के परिणाम स्वरुप विपक्ष ने बजट पूर्व होने वाली प्राथमिकता बैठकों का बहिष्कार किया। संभव है कि विपक्ष सर्वदलीय बैठक का भी बहिष्कार करें। सुक्खू सरकार वित्तीय संकट और कुप्रबंधन के लिये लगातार विपक्ष को कोसती आ रही है। सरकार के इस आरोप में कितना दम है यदि इस बहस और आंकड़ों में भी जायें तो सरकार के मंत्रियों के बयानों से ही यह स्पष्ट हो जाता है की प्रदेश में वित्तीय संकट है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब संकट है तो उसमें अनुत्पादक खर्चों से तो परहेज किया जाना चाहिए था। लेकिन सी.पी.एस. और सलाहकारों तथा विशेष कार्यधिकारियों की कैबिनेट रैंक में एक लम्बी फौज खड़ा करने की क्या आवश्यकता थी। मंत्रियों के दफ्तरों की रिपेयर और साज सजा के नाम पर करोड़ों खर्च करने की क्या आवश्यकता है। जब वित्तीय संकट हो और विधानसभा का बजट सत्र पन्द्रह दिन बाद आने वाला हो तो उस समय जो मुख्यमंत्री अपने परिवार और मित्रों के साथ छुटियां मनाने विदेश चला जाये उनकी प्रदेश और सरकार के बारे में गंभीरता को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। यही कहा जायेगा कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसरी बजा रहा था। कल कोई यदि आर.टी.आई. में यह जानकारी मांग ली जाये कि मुख्यमंत्री की इस यात्रा पर सरकार का कितना खर्च हुआ है तो शायद इसका उत्तर यह कहकर नहीं टाला जा सकेगा कि यह प्राइवेट और व्यक्तिगत जानकारी है। क्योंकि मुख्यमंत्री इस यात्रा पर न कोई अवकाश लेकर तथा न ही अपना चार्ज किसी दूसरे को देखकर गये थे। क्योंकि मुख्यमंत्री के छुटी पर जाने के लिये कोई निश्चित नियम नहीं है और इनके आभाव में वह हर समय कार्यशील मुखिया रहता है और आर.टी.आई. के दायरे में आता है। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो जाते हैं कि वित्तीय संकट के कारण प्रदेश लगातार कर्ज की दलदल में धस्ता चला जा रहा है ।
ई.डी के वारंट से प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म
खनन में अवैधता के साथ संबंधित जमीन भी अवैध होने की संभावना
नादौन में विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच आयी चर्चा में
लैण्ड सीलिंग लागू होने के बाद राजा नादौन के पास बची ही केवल 316 कनाल जमीन थी
316 कनाल के मालिक के नाम पर हजारों कनाल कैसे बिक गयी उठा सवाल
एचआरटीसी की वर्कशॉप के लिए भी ऐसी ही जमीन खरीदी गयी है
शिमला/शैल। अवैध खनन और मनी लॉडरिंग के आरोपों पर नादौन, हमीरपुर तथा अधवाणी में ई.डी. और आयकर की छापेमारी में चार लोगों के खिलाफ मामला बनाया गया था। इन चार लोगों में से दो ज्ञान चन्द और संजय की गिरफ्तारी हो चुकी है और उनके खिलाफ एक चालान भी दायर हो चुका है। इन लोगों ने हिमाचल उच्च न्यायालय से जमानत की गुहार भी लगायी थी जो अस्वीकार हो चुकी है। परन्तु इस मामले के दो अन्य कथित अभियुक्त धर्मेंद्र और संजय शर्मा ई.डी. के हाथ नहीं लगे थे। अब ज्ञान चन्द का ई.डी. ने फिर रिमांड हासिल कर लिया है। इस रिमांड के साथ ही धर्मेंद्र के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने की चर्चा है। ज्ञान चन्द के रिमांड और धर्मेंद्र के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने से यह मामला फिर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारो में चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि इस वारंट जारी होने से पहले कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश के प्रभारी को अचानक बदल दिया है। इस बदलाव के बाद यह माना जा रहा है कि प्रदेश में होने वाली राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियों की सही जानकारी समय-समय पर हाईकमान तक पहुंच जायेगी।
इस प्रकरण में मनी लॉडरिंग होने का आरोप तब ज्यादा गंभीर हो गया है जब इन्ही कथित अभियुक्तों द्वारा सहारनपुर में एक स्टोन क्रेशर खरीदे जाने और इस खरीद में 1.6 करोड़ का नकद भुगतान होने तथा इस भुगतान के तार नादौन के क्रेशर से जुड़े होने का आरोप लगा है। यह कैश भुगतान कहां से आया और यह पैसा किसका है यह जांच का मुख्य बिंदु बन गया है। लेकिन इस कैश भुगतान के अतिरिक्त नादौन में हुये पूरे खनन पर ही अवैधता का आरोप है। यह अवैधता कैसी है? क्या यह खनन बिना उचित अनुमतियों के किया गया? क्या जिस क्रेशर से यह खनन हुआ है वह ही अवैध रूप से ऑपरेट हुआ है? क्रेशर की अवैध्ता पर उस समय से सवाल उठने शुरू हो गये थे जब अदालत के आदेशों से इसे हटाया गया था। अवैधता के यह आरोप जांच में कितने प्रमाणित होते हैं इन सवालों से बड़ा सवाल यह हो गया है कि जिन जगहों पर यह खनन हुआ है उनका मालिक कौन है?
इस खनन में प्रयुक्त हुई जमीने संबंधित मालिकों द्वारा किसी समय राजा नादौन से खरीदी गयी कही जा रही है। यह खरीद ही सबसे बड़ी अवैधता है। क्योंकि राजा नादौन के पास लैण्ड सीलिंग एक्ट के बाद केवल 316 कनाल जमीन बची थी और एक लाख कनाल से अधिक जमीन सरकार को चली गयी थी। स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1897 में अंग्रेज हकूमत से 1,59,986 कनाल की जागीर मिली थी जो कि रियासत के 329 गांवों में फैली हुई थी और अलग-अलग किस्म की जमीन थी। लेकिन इस जमीन के राजस्व रिकॉर्ड में यह दर्ज था कि इसके इस्तेमाल का हक स्थानीय लोगों को हासिल रहेगा। इस जमीन में से 1,01,391 कनाल जमीन की किस्म बंजर कदीम थी और यह बंजर कदीम शामलात देह के तहत विलेज कॉमन लैण्ड घोषित हो गयी। 1974 में लैण्ड सीलिंग एक्ट आने पर यह जमीन हिमाचल सरकार की हो गयी। इस जमीन पर आज की राजस्व इन्दराज में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान दर्ज है। इस इन्दराज से स्पष्ट हो जाता है कि ऐसी जमीने विलेज कॉमन लैण्ड है जिनकी खरीद बेच नहीं हो सकती। 2011 में सर्वाेच्च न्यायालय ने ऐसी जमीनों की सुरक्षा के लिये देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को कड़े निर्देश देते हुये इस पर रिपोर्ट तलब कर रखी है। लेकिन नादौन में 2011 के बाद हजारों कनाल ऐसी जमीन की खरीद बेच हुई है। सबसे हैरानी वाला तथ्य यह है कि इन जमीनों को बेचने वाला व्यक्ति राजा नादौन है और उसने अपने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से यह जमीने बेची हैं। जबकि राजा नादौन के अपने पास लैण्ड सीलिंग एक्ट 1971 से लागू होने के बाद बची ही केवल 316 कनाल जमीन थी। ऐसे में यह बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जिस व्यक्ति के पास बची ही 316 कनाल थी उसके नाम से हजारों कनाल जमीन बिक कैसे गयी? स्पष्ट है की अदालत के फैसलों के बावजूद लैण्ड सीलिंग नादौन रियासत में राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हुआ। ऐसी जमीनों के खरीददार कई प्रभावशाली लोग हैं। सबसे हैरान करने वाला तथ्य तो यह है कि सुक्खू सरकार ने नादौन में एचआरटीसी की ई-वर्कशॉप बनाने के लिये जो 70 कनाल जमीन 6 करोड़ 72 लाख रुपए में तीन लोगों से खरीदी है उन तीन लोगों ने भी यह जमीन राजा नादौन से 2015 में 2,40,000 में खरीदी थी। सरकार यह जमीन खरीद रही थी तो स्वभाविक है कि राजस्व विभाग से लेकर मुख्य सचिव और मुख्य मंत्री को भी इसकी जानकारी रही होगी। तब भी लैण्ड सीलिंग एक्ट और सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों की जानकारी न हो पाना या इस सब को नजरअन्दाज कर दिया जाना अपने में बहुत कुछ कहा जाता है।
इस परिदृश्य में लगता है कि जिन जमीनों पर अवैध खनन होने के आरोप ई.डी. ने लगाये हैं उनके मालिक भी वह संबंधित लोग न निकले। क्योंकि वहां भी गैर मुमकिन दरिया और ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान का इन्दराज राजस्व में है। ऐसे में अवैध खनन के साथ जमीन की अवैधता भी साथ जुड़ जाने से पूरे मामले की गंभीरता और भी बढ़ जाती है। नादौन मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र है और ई.डी. द्वारा पकड़े गये लोगों की निकटता मुख्यमंत्री से चर्चा में आ चुकी है। मुख्यमंत्री इस निकटता पर स्वयं धर्मशाला में हुये शीत सत्र में ब्यान दे चुके हैं। इसलिये इस मामले पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
शिमला/शैल। पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर में सरकार पर यह आरोप लगाया कि कुछ समय से ट्रेजरी ही बन्द चल रही है और सारे ठेकेदारों के बिल लंबित पड़े हुये हैं। इसी के साथ यह आरोप लगाया था कि केंद्रीय स्कीमों के तहत आये पैसे से कर्मचारियों के वेतन का भुगतान किया जा रहा है। इसके लिये समग्र शिक्षा के लिये आये पैसे से अध्यापकों का वेतन दिये जाने के लिये सरकार द्वारा इस संबंध में लिखे पत्र का हवाला भी दिया गया था। केंद्रीय योजनाओं के पैसे को डाइवर्ट करके कर्मचारियों के वेतन देने के लिये इस्तेमाल करना अपने में एक बड़ी वित्तीय अनियमितता है। इसका संज्ञान लेकर केंद्र इन योजनाओं के लिये पैसे भेजने पर रोक भी लगा सकता है। नेता प्रतिपक्ष के इस आरोप का जवाब देते हुये मुख्यमंत्री ने कहा कि पैसे की कोई कमी नहीं है। पैसा सही इस्तेमाल के लिये उपलब्ध है लूटने के लिये नहीं। इसी के साथ मुख्यमंत्री ने कहा की व्यवस्था बदलने के लिये नियम बदले जा रहे हैं और इसी का प्रभाव ट्रेजरी पर पड़ा है। शीघ्र ठेकेदारों के बिलों का भुगतान कर दिया जायेगा। मुख्यमंत्री के इस ब्यान की स्पोर्ट में विधायकों मलिन्द्र राजन और अजय सोलंकी ने एक संयुक्त ब्यान में वित्तीय संकट के लिये पूर्व की जयराम सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुये आरोप लगाया कि पूर्व सरकार ने अन्तिम छः माह में कर्ज लेकर रेवड़ियां बांटते हुये साधन संपन्न लोगों को भी सब्सिडी के दायरे में रखा। विधायकों ने आरोप लगाया है कि पिछली सरकार 75000 करोड़ का कर्ज और दस हजार करोड़ की कर्मचारियों की देनदारियां विरासत में छोड़ गयी है। जबकि इस सरकार ने एक्साईज, टूरिज्म, पावर और माइनिंग पॉलिसी में बदलाव करके तीन हजार करोड़ की आय अर्जित की है।
सुक्खू सरकार ने दिसम्बर 2022 में प्रदेश की सत्ता संभाली थी और सत्ता संभालते ही यह चेतावनी दी थी कि प्रदेश की हालत कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। यह चेतावनी देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति का इस सरकार को पता था। इससे यह सवाल उठता है कि जब वित्तीय स्थिति का पता था तो किस आधार पर गारन्टीयां देने और उन्हें पूरा करने का उपक्रम किया गया? जब वित्तीय स्थिति ठीक नहीं थी तो फिर मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां क्यों की गयी? कठिन वित्तीय स्थिति के बावजूद प्रदेश पर कैबिनेट का दर्जा देकर सलाहकारों और ओ.एस.डी. का भार क्यों डाला गया? क्योंकि कठिन वित्तीय स्थिति में यदि सरकार अपने अनावश्यक खर्चों पर रोक नहीं लगाती है तो उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं।
इसी के साथ यह सवाल भी उठता है कि सरकार के सत्ता में दो वर्ष हो गये हैं। इन दो वर्षों में सरकार ने दो कर मुक्त बजट पेश किये हैं। पांच गारन्टियां पूरी करने का दावा किया है। इन दो वर्षों में सरकार ने कर्मचारियों के दस हजार की विरासत में मिली देनदारी में से इस सरकार ने कितना अदा कर दिया है इसका कोई आंकड़ा अब तक जारी नहीं हो सका है। पिछली सरकार द्वारा लिये गये कर्ज में से कितने की आदायगी इस सरकार द्वारा की गयी है इसका भी कोई आंकड़ा सामने नहीं आया है। जबकि सरकार के कर्ज लेने की सीमा में कटौती राष्ट्रीय नीति के तहत हुई है। कोविड काल में जो सीमा साढ़े पांच प्रतिशत थी वह कोविड काल के बाद फिर साढे़ तीन प्रतिशत कर दी गयी है। इस तरह यह सवाल अनुतरित बना हुआ है कि पिछली सरकार द्वारा लिये गये कर्ज और छोड़ी गयी देनदारी का सरकार पर व्यवहारिक असर क्या पड़ा है। जब सरकार ने कर और शुल्क बढ़ाकर तीन हजार करोड़ अर्जित किये हैं तो फिर कर मुक्त बजट पेश करने के दावों का औचित्य क्या है। सरकार के इन दोनों बजटों में सरकार कि कुल आय और व्यय में बीस हजार करोड़ से कम का अन्तर रहा है। लेकिन इस अन्तर को पाटने के लिये तीस हजार करोड़ से अधिक का कर्ज क्यों ले लिया गया और उसका निवेश कहां हुआ है यह सवाल भी लगातार अनुतरित रहा है। जबकि नियमों के अनुसार सरकार अपने प्रतिबद्ध खर्चों के लिये कर्ज नहीं ले सकती है। कर्ज उसी कार्य के लिये लिया जा सकता है जिससे सरकार के खजाने को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचे। इसलिए सरकार को अब तक लिये गये कुल एक लाख पांच हजार करोड़ के कर्ज का यह श्वेत पत्र जारी करना चाहिये कि किस कार्य के लिये कितना कर्ज लिया गया और उससे राजस्व में कितनी बढ़ौतरी हुई। मुफ्ती के वायदों को पूरा करने के लिये नियमों में कर्ज लेने का कोई प्रावधान नहीं है। यह तथ्य विधायकों और जनता दोनों को समझना होगा। अन्यथा केंद्रीय योजनाओं के पैसे को राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन के लिये इस्तेमाल करने के परिणाम घातक हो सकते हैं।