Thursday, 18 December 2025
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क्या प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा का एक दूसरे के भ्रष्टाचार पर खामोश रहने का कोई समझौता है?

  • देहरा उपचुनाव में बांटे गये 78 लाख से उठा सवाल
  • होशियार सिंह की शिकायत पर अब तक क्यों नहीं हुई कोई कारवाई?
शिमला/शैल। क्या प्रदेश सरकार और भाजपा में एक दूसरे के भ्रष्टाचार पर खामोश रहने का कोई समझौता है। इस समय प्रदेश की वित्तीय स्थिति जिस मुकाम पर पहुंच गयी है उसके मुताबिक सारा ढांचा कब चरमरा कर ढह जाये यह स्थिति बनी हुई है। 2025-26 के बजट दस्तावेज पर नजर डालने पर यह सामने आया है कि इस वर्ष सरकार का कुल बजट 58514.31 करोड़ का है। जिसमें राज्य सरकार की अपनी कुल आय 20291.46 करोड़ है। शेष सब कुछ केन्द्र से आना है। कर्ज लेने की सीमा 7000 करोड़ है। वेतन और पैन्शन पर ही सरकार का 26294.08 करोड़ खर्च आयेगा। इसके अतिरिक्त कर्ज और ब्याज की अदायगी पर 12578.99 करोड़ खर्च होगा। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार की अपनी आय और कर्ज से इन दो माहों का खर्च भी पूरा नहीं कर सकती है। सरकार की यह आय भी दो वर्ष में प्रदेश पर 5200 करोड़ का करभार डालने के कारण हुई है। ऐसे में सरकार की घोषणाएं और अन्य कार्यक्रम जमीन पर कितना आकार ले पायेंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इस तरह की वितीय स्थिति में सरकार को अपने खर्चों और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना पड़ता है। लेकिन क्या सरकार यह सब कर पा रही है? अभी बजट सत्र में मंत्रियों, विधायकों सभी के वेतन भत्तों में ध्वनि मत से बढ़ौतरी हुई है। विपक्ष भी इस मौके पर चुप्पी साधे सरकार को समर्थन देता रहा है। विपक्ष सरकार के साथ किस हद तक खड़ा है यह देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला और जिला कल्याण अधिकारी कांगड़ा द्वारा बांटे गये पैसे की शिकायत पर सामने आया है। यह पैसा बांटने की शिकायत इस उप चुनाव में भाजपा से प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक होशियार सिंह ने की है। शिकायत के मुताबिक इस उप चुनाव में कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक ने देहरा क्षेत्र के 67 महिला मण्डलों को चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद पचास-पचास हजार रुपए दिये। कांगड़ा जिला समाज कल्याण अधिकारी प्रदेश द्वारा क्षेत्र की एक हजार महिलाओं को 4500-4500 रूपये बांटे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में शायद सौ से कम पोलिंग बूथ हैं और हर पोलिंग बूथ तक शायद यह पैसा पहुंचा है। आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह पैसा बांटा जाना आचार संहिता का खुला उल्लंघन है। उपचुनाव के दौरान यह पैसा बांटा गया। इसलिये इसे चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है। इस तरह यह बड़ा अपराध बन जाता है। संविधान की धारा 191(1) (e) के तहत चुनाव परिणाम आने के बाद इसकी शिकायत प्रदेश के राज्यपाल से किये जाने का प्रावधान है। इसलिए इसकी शिकायत होशियार सिंह ने 25 मार्च को राज्यपाल को भेजी है। हिमाचल में ऐसा पहली बार सामने आया है कि सरकारी अदारों ने चुनाव के दौरान इस तरह से पैसा बांटा हो। इससे आने वाले दिनों में हर चुनाव के दौरान हर चुनाव क्षेत्र में इस तरह से सरकारी अदारों द्वारा पैसा बांटने की अपेक्षा मतदाताओं को उम्मीदवार से हो जायेगी। इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होने के साथ ही भ्रष्टाचार का एक नया रास्ता सामने आ जायेगा जिसके परिणाम घातक होंगे। लेकिन प्रदेश भाजपा का नेतृत्व इस मुद्दे पर एकदम खामोश होकर बैठ गया है। इससे यही इंगित होता है कि शायद भाजपा शासन में भी इसी तरह का कुछ विधान सभा क्षेत्रों में हुआ हो। क्योंकि जब इस तरह से सरकारी अदारें ही चुनाव में पैसा बांटने लग जायेंगे तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। होशियार सिंह की शिकायत को राज्यपाल की टिप्पणी के साथ चुनाव आयोग को भेजा जाना है लेकिन अभी तक ऐसा होने की कोई जानकारी सामने नहीं आयी है। सबसे बड़ी हैरानी तो यह है कि इस मामले पर प्रदेश भाजपा का नेतृत्व एकदम खामोश होकर बैठ गया है। जबकि ऐसा माना जा रहा है कि इस पर संभावित कारवाई से प्रदेश का पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल जायेगा। क्योंकि आने वाले दिनों में कांग्रेस नेतृत्व से राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से एक कांग्रेस शासित राज्य में उपचुनाव के दौरान एक विधानसभा क्षेत्र में 78 लाख रुपए बांट दिया जाने का औचित्य और वैधानिक पात्रता क्या है?

क्या सुक्खू सरकार पर नड्डा के आरोप केवल रस्म अदायगी है या कुछ...?

शिमला/शैल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा प्रदेश के दो दिन के प्रवास पर थे। इस प्रवास में नड्डा ने एक पत्रकार वार्ता में प्रदेश की सुक्खू सरकार पर जमकर हमला बोला है। प्रदेश सरकार जब से सत्ता में आयी है तभी से पूर्व की जयराम सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती आ रही है। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति के लिये पूर्व सरकार को जिम्मेदार ठहराती आ रही है। केन्द्र सरकार पर भी यह आरोप लगाया जाता रहा है कि केन्द्र प्रदेश को वांच्छित वित्तीय सहयोग नहीं दे रहा है। नड्डा ने प्रदेश सरकार के आरोपों का केन्द्र द्वारा दी जा रही सहायता के आंकड़े जारी करते हुये जवाब दिया है। नड्डा ने आंकड़े जारी करते हुए प्रदेश सरकार पर नॉन परफॉरमिंग का आरोप लगाया है। इसके खुलासे में नड्डा ने बताया कि जब वह पहली बार केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री बने थे तब प्रदेश के लिये एक मेडिकल डिवाइस पार्क की 100 करोड़ों की योजना स्वीकृत करवाई थी और इसके लिये 25 करोड़ रुपए रिलीज भी कर दिये गये थे। लेकिन अब इस सरकार ने वह 25 करोड़ यह कहकर वापस कर दिये कि यह हमसे नहीं हो पायेगा। यह आरोप अपने में बहुत गंभीर है।
इस आरोप की गंभीरता को समझते हुये प्रदेश के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान और तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने जवाब देते हुए आरोप लगाया है कि इसमें 500 करोड़ की जमीन को 12 लाख में उद्योगपतियों को देने का प्रस्ताव था। इसलिये प्रदेश के हितों के साथ यह समझौता न करते हुये यह पैसा केन्द्र को वापस लौटा दिया गया। क्योंकि 100 करोड़ की सहायता के साथ ऐसी शर्तें जोड़ रखी गयी थी जो प्रदेश हित में नहीं थी। नड्डा जब पहली बार स्वास्थ्य मंत्री बने थे तब यह योजना प्रदेश के लिये स्वीकृत हुई थी। यह योजना प्रदेश हित में नहीं थी इसका खुलासा अब हुआ जब नड्डा ने सरकार पर हमला बोला। सुक्खू सरकार को भी सत्ता में आये दो वर्ष से अधिक का समय हो गया है लेकिन इस पर प्रदेश सरकार चुप रही। अब जब नड्डा ने नॉन परफॉरमिंग का आरोप लगाया तब प्रदेश सरकार ने यह खुलासा सामने रखा। संभव है नड्डा प्रदेश सरकार के आरोपों का जवाब अवश्य देंगे यदि आरोप लगाना केवल अदायगी नहीं है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा में राजनीतिक रिश्ते जिस तरह तलख हो उठे हैं उसके परिदृश्य में नड्डा और प्रदेश सरकार का यह एक दूसरे पर हमला बोलना गंभीर परिणामों का संकेत हो सकता है। क्योंकि नड्डा ने सुक्खू को स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार नहीं चला सकते हैं तो छोड़ दो। राष्ट्रीय संबंधों के परिपेक्ष में इस समय कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करना शायद भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता होती जा रही है। हिमाचल में जिस तरह से एक पुराने मुद्दे को नये रूप में उठाया गया है और उसमें भी राष्ट्रीय अध्यक्ष की भागीदारी हो गई है उसके संकेत प्रदेश के लिये सुखद नजर नहीं आ रहे हैं।

क्या हेराल्ड को विज्ञापन और मुख्य सचिव की पार्टी सरकार पर भारी पड़ेगी?

  • क्या शीर्ष प्रशासन पर सरकार नियंत्रण खो चुकी है।
  • क्या भाजपा अब भी सरकार का साथ देने का साहस करेगी
  • भाजपा की देहरा उपचुनाव पर हुए खर्च पर चुप्पी से उठे सवाल

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार अपने ही भार से डूबने के कगार पर पहुंच चुकी है? क्या शीर्ष नौकरशाही पर सरकार नियंत्रण खो चुकी है? क्या हिमाचल सरकार और प्रदेश कांग्रेस के सहारे राहुल गांधी भाजपा से लड़ पायेंगे? यह सारे सवाल इसलिये खड़े हुये हैं कि हिमाचल सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड साप्ताहिक समाचार पत्र को दो वर्षाें में दो करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन देने का सच उस समय सामने आया जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी तथा अन्य के खिलाफ ई.डी. ने धन शोधन के आरोपों पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। यह आरोप पत्र दाखिल किये जाने के खिलाफ कांग्रेस ने पूरे देश में ई.डी. कार्यालयों के बाहर धरना प्रदर्शन करके इस पर रोष प्रकट किया और इसे बदले की कारवाई करार दिया। आरोप पत्र का मामला अदालत में विचाराधीन है। वहां यह मामला टिक पाता है या नहीं यह समय बतायेगा। इस मामले पर शिमला में भी कांग्रेस ने धरने प्रदर्शन की रस्म अदायगी की है क्योंकि कांग्रेस नेताओं ने जनता के सामने यह कोई तर्क नहीं रखा कि कानूनी तौर पर इसमें क्या ज्यादती है। राष्ट्रीय स्तर पर जब इस आरोप पत्र के कानूनी तौर पर कमजोर पक्षों पर सवाल उठे तब भाजपा और कुछ मीडिया मंचों ने हिमाचल सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड को दो वर्षाें में दो करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन दिये जाने का मुद्दा उठाया। यह विज्ञापन दिये जाने का खुलासा विधानसभा के बजट सत्र में 26 मार्च को भाजपा विधायक डॉ. जनक राज द्वारा इस आशय के प्रश्न के जवाब में सामने आया है लेकिन यह जानकारी राष्ट्रीय मुद्दा सोनिया और राहुल के खिलाफ ई.डी. के आरोप पत्र के बाद बना। जिस भाजपा ने विधानसभा में यह प्रश्न किया था वह भी इस पर खामोश थी। इससे प्रदेश भाजपा और सुक्खू सरकार के रिश्तों का खुलासा भी सामने आ जाता है।
इसी बीच प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा होली के अवसर पर पार्टी देने का खुलासा सामने आया। इस पार्टी पर खर्च हुये एक लाख बाईस हजार का भुगतान सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा किया गया है। यह मुद्दा भी राष्ट्रीय स्तर पर समाचार बना है। लेकिन प्रदेश भाजपा इस मुद्दे पर चुप रही है। मुख्य सचिव इस पार्टी का खर्च सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उठाये जाने को नियमों के खिलाफ नहीं मानते। वैसे जिन अधिकारियों को आतिथ्य भत्ता मिलता है उन्हें ऐसी पार्टियों का खर्च अपनी जेब से ही देना पड़ता है। इस मुद्दे पर राज्य के मुख्यमंत्री और विपक्ष पूरी तरह खामोश है। क्या खामोशी विरोध की रस्म अदायगी की ओर इशारा नहीं करती है। क्योंकि मुख्य सचिव की पार्टी का आमंत्रण कार्ड जी.ए.डी. विभाग की ओर से जारी नहीं हुआ है। जो फोटो इस पार्टी का सामने आया है उसमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं जो अधिकारी नहीं हैं। यह पार्टी होली के दिन 14 मार्च को हुई थी। मुख्य सचिव को सेवा विस्तार 31 मार्च को मिला है। स्वभाविक है कि सुक्खू सरकार ने इस सेवा विस्तार का आग्रह केन्द्र से इस पार्टी के बाद किया है। केन्द्र ने भी राज्य सरकार के इस आग्रह को अपनी अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करके मान लिया। इससे साफ हो जाता है कि मुख्यमंत्री और उनकी टीम के रिश्ते केन्द्र के साथ कैसे हैं।
हिमाचल सरकार का कर्जभार एक लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है। सरकार सबको पैन्शन नहीं दे सकी है यह एचआरटीसी के पैन्शनरों के प्रोटैस्ट से सामने आ चुका है। सोलन में ठेकेदार अपने बिलों की अदायगी के लिये प्रदर्शन कर चुके हैं। पीजीआई चण्डीगढ़ में हिमकेयर कि करोड़ों की पेमैन्ट करने को है। चम्बा में जल शक्ति विभाग के काम पैसे के अभाव में बन्द हो चुके हैं। लेकिन साप्ताहिक नेशनल हेराल्ड को विज्ञापन देने के मामले में मुख्यमंत्री और उनकी पूरी टीम इसे जायज ठहराने में लग गये हैं। यह विज्ञापन दिया जाना नियमों के विरुद्ध है। फिर सुक्खू सरकार प्रदेश के अखबारों और पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह की नीति अपना कर चल रही है वह एकदम कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर घोषित नीति के खिलाफ है। हेराल्ड को विज्ञापन देने को जायज ठहराने के लिये सरकार के मीडिया सलाहकार ने जयराम सरकार के दौरान भाजपा के प्रकाशनों को दिये गये विज्ञापनों के खर्चे की सूची जारी कर दी। लेकिन जयराम सरकार ने इन समाचार पत्रों को पांच वर्ष में जीतने के विज्ञापन दिये उतने के विज्ञापन दो वर्ष में सुक्खू सरकार ने हेराल्ड को ही दे डालें हैं। यह ठीक है कि कोई भी सरकार हो वह उन अखबारों और पत्रकारों का शोषण करती है जो सरकार से कठिन सवाल पूछते हैं। इस नाते दोनों सरकारों का आचरण नीति विरुद्ध रहा है। लेकिन सुक्खू सरकार ने जिस तरह से पुलिस तन्त्र के माध्यम से पत्रकारों को डराने का काम शुरू किया है वह अपने में अलग ही है। इस समय सरकार जिस तरह के वित्तीय संकट से गुजर रही है उसमें सरकार और उसके शीर्ष प्रशासन को संवेदनशील होना आवश्यक है। लेकिन इन विज्ञापनों और मुख्य सचिव की पार्टी के खर्च की भरपाई सरकार द्वारा किये जाने से यही परिलक्षित होता है कि आम आदमी सरकार के लिये कोई मायने ही नहीं रखता है।
अब भाजपा ने राष्ट्रीय कारणों से जिस तरह से हेराल्ड के विज्ञापनों को मुद्दा बनाया है उससे यह लगता है कि भाजपा को इस मुद्दे को आगे बढा़ना राजनीतिक आवश्यकता हो जायेगी। इस समय भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को कमजोर और अक्ष्म प्रमाणित करना आवश्यक हो जायेगा। बंगाल में भड़की हिंसा के परिदृश्य में वहां राष्ट्रपति शासन लगाना आसान हो जायेगा। हिमाचल सरकार वित्तीय संकट और अपनी फिजूल खर्ची के कारण अपने ही भार से डूबने के कगार पर पहुंच चुकी है। जिस सरकार को देहरा विधानसभा का उपचुनाव जीतने के लिये कांगड़ा सहकारी बैंक और जिला समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से 78 लाख रुपया खर्च करना पड़ा हो उसे चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप से कोई कैसे बचा पायेगा? राज्यपाल और चुनाव आयोग कितनी देर इसका संज्ञान नहीं लेंगे? प्रदेश भाजपा नेतृत्व कितनी देर इसे मुद्दा नहीं बनायेगा? जिस प्रशासन ने यह पैसा बांटने का साहस किया है उसे किसने निर्देशित किया होगा और वह सरकार का कितना शुभचिंतक होगा? इस परिदृश्य में भाजपा को अपने कारणों से इन मुद्दों को अन्तिम परिणाम तक ले जाना बाध्यता हो जायेगा।

यह है मुख्य सचिव की पार्टी का आमंत्रण कार्ड और फोटो

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या विमल नेगी की मौत दूसरा गुड़िया कांड बनेगा?

  • पावर कारपोरेशन के भ्रष्टाचार पर जांच से क्यों डर रही है सरकार
  • क्या तकनीकी आरोपों का जवाब राजनेता दे सकते हैं

शिमला/शैल। पावर कारपोरेशन के चीफ इंजीनियर विमल नेगी की मौत के कारणों की जांच पुलिस के साथ ही सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को भी सौंप दी थी। पुलिस ने स्व. नेगी के परिजनों की शिकायत पर एफ.आई.आर. दर्ज की है। परिजनों की शिकायत रही है कि स्व. नेगी को कॉरपोरेशन में उनके वरिष्ठों प्रबंधन निदेशक हरिकेश मीणा और निदेशक देशराज ने एक ऐसी मानसिक प्रताड़ना का शिकार बना दिया था जिसके कारण उन्हें अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ा। परिजनों ने मानसिक प्रताड़ना का आरोप देशराज और हरिकेश मीणा पर लगाया था। परन्तु पुलिस ने केवल देशराज का नाम एफ. आई.आर. में शामिल किया मीणा का नहीं। मीणा की जगह प्रबन्ध निदेशक पदेन किया। एफ.आई.आर. में नाम आते ही देशराज ने अग्रिम जमानत के लिये उच्च न्यायालय में दस्तक दे दी। उच्च न्यायालय ने देशराज के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। देशराज सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये वहां पर उनकी जमानत याचिका का विरोध करने के लिये सरकार की ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ और देशराज को जमानत मिल गयी। देशराज को जमानत मिलने के बाद मीणा ने भी जमानत के लिये उच्च न्यायालय का रुख किया और उन्हें जमानत मिल गयी। मीणा ने अपने आवेदन में यह कहा है कि वह स्व. नेगी को व्यक्तिगत रूप से जानते ही नहीं है। पुलिस अभी तक इस मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं कर पायी है। देशराज और मीणा से हिरासत में लेकर पूछताछ करने के लिये पहले उनकी जमानतें रद्द करवानी पड़ेगी और अब तक के आचरण के सामने इसकी संभावना नहीं के बराबर है।
प्रशासनिक जांच की रिपोर्ट सरकार के पास पहुंच गयी है। इस जांच में क्या कारपोरेशन के पूरे निदेशक मण्डल से सवाल जवाब हुये हैं या नहीं? कॉरपोरेशन के अध्यक्ष से कोई सवाल जवाब हुये है या नहीं इस बारे में अभी तक कुछ भी सामने नहीं आ पाया है। प्रशासनिक जांच कर रहे अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को इंजीनियर सुनील ग्रोवर ने जो हस्ताक्षरित ब्यान सौंपा है उसमें पावर कॉरपोरेशन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर जो तथ्य रखे गये हैं उन तथ्यों को सामने रखते हुये कॉरपोरेशन के पूरे निदेशक मण्डल से अध्यक्ष सहित जवाब किये जाने आवश्यक माने जा रहे हैं। पूर्व उद्योग मंत्री विधायक विक्रम ठाकुर और नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने भी अलग-अलग पत्रकार वार्ताओं में कॉरपोरेशन अध्यक्ष की नियामक भूमिका को लेकर सवाल उठाये हैं। इन सवालों के जवाब जिस तरह से सरकार के मंत्री और सलाहकार दे रहे हैं उससे स्पष्ट हो जाता है कि कुछ छिपाने का प्रयास किया जा रहा है।
कॉरपोरेशन में व्याप्त भ्रष्टाचार को इंजीनियर सुनील ग्रोवर ने बेनकाब किया है। इंजीनियर ग्रोवर हिमाचल सरकार में भी एमडी रह चुके हैं। ऑल इण्डिया फैडरेशन के संरक्षक हैं। जो तथ्य ग्रोवर के ब्यान में उजागर हुये हैं उनका जवाब उसी स्तर के इंजीनियर से आना चाहिये जो विषय का ज्ञाता हो। जब तकनीकी सवालों का जवाब राजनेता देने का प्रयास करते हैं तो स्वतः ही यह सन्देश चला जाता है कि कुछ ‘खास’ छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि यह तो आम आदमी भी समझ जाता है कि आधा काम ही होने पर पूरे के पैसे नहीं दिये जाते। कम्पनी को ब्याज मुक्त ऋण देने का प्रावधान कैसे किया गया। यह आरोप शोंग टोंग परियोजना को लेकर है। पेखुबेला में डीपीआर से लेकर आगे तक सब कुछ सवालों में है। कॉरपोरेशन अपनी बैंक की सी.सी. लिमट से ही परियोजना का वित्त पोषण कर रही थी। यह कैसा प्रबन्धन है? विपक्ष इस परियोजना में फॉर्च्यूनर और इनोवा गाडी़यां के तोहफे बांटे जाने के आरोप लगा रहा है। हिमाचल सरकार का वित्तीय संकट आज उस मोड पर पहुंच गया है कि सरकार को वित्त वर्ष के पहले ही दिन कर्ज लेना पड़ा है। ऐसी स्थिति में जब इस तरह के भ्रष्टाचार को दबाने के प्रयास आम आदमी के सामने आयेंगे तो इसके परिणाम दूरगामी होंगे। विपक्ष ने मुख्य सचिव के सेवा विस्तार को भी इस कॉरपोरेशन के साथ जोड़ दिया है।

 

इस कर्ज के आगाज का अन्जाम क्या होगा-उठने लगा है सवाल

शिमला/शैल। प्रदेश का वित्तीय वर्ष 2025-26 का बजट सत्र 28 मार्च को समाप्त हुआ है और सुक्खू सरकार को नये वित्तीय वर्ष में 2 अप्रैल को ही 900 करोड़ रुपए का कर्ज लेकर वर्ष की शुरुआत करनी पड़ी है। इस कर्ज के आगाज का अन्जाम क्या होगा यह प्रश्न इसलिये प्रसांगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वर्ष 2024-25 के अंतिम दिनों में ट्रेजरी बन्द रही है। ट्रेजरी बन्द होने का अर्थ और परिणाम क्या होता है यह वित्तीय समझ रखने वाला हर आदमी जानता है। जब सरकार विधानसभा में बजट दस्तावेज रखती है तो उसमें तीन वर्षों के आय और व्यय के आंकड़े शामिल रहते हैं। वर्ष 2025-26 के बजट अनुमानों के साथ ही 2024-25 के संशोधित आंकड़े और 2023-24 के वास्तविक आंकड़े सदन में आये हैं। इसी के साथ वर्ष 2023-24 की कैग रिपोर्ट भी इसी सत्र में सदन में आयी है। इस सरकार ने सत्ता दिसम्बर 2022 में संभाली थी और पिछली सरकार के अन्तिम दिनों के फैसले पलट दिये थे। इन्हीं फैसलों में एक फैसला पेट्रोल डीजल पर जो वैट पूर्व सरकार ने कम किया था उसे फिर से लागू कर दिया था। ऐसे ही कई और वित्तीय फैसले भी रहे हैं। इन फैसलों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सुक्खू सरकार ने अपने वित्तीय संसाधन बढ़ाने के कर और अन्य शुल्क बढ़ाने का कदम सत्ता संभालते ही उठा लिया था। लेकिन वर्ष 2023-24 की जो कैग रिपोर्ट आयी है और उसमें जो सवाल उठाये गये हैं उनसे इस सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल हो जाते हैं। कैग ने टिप्पणी की है कि यह सरकार 2795 करोड़ के कर्ज का कोई जवाब ही नहीं दे पायी है। वर्ष 2023 के बरसात में प्रदेश के कुछ भागों में आयी प्राकृतिक आपदा राहत में सरकार ने अपने संसाधनों से 4500 करोड़ खर्च किया है। केन्द्र पर यह लगातार आरोप है कि उसने इस आपदा में प्रदेश की कोई मदद नहीं की है। लेकिन कैग रिपोर्ट के मुताबिक आपदा में सरकार ने केवल 1209.18 करोड़ रुपए खर्च किये हैं जिसमें से 1190.35 करोड़ रुपए केन्द्र ने दिये हैं। इस तरह सुक्खू सरकार के अपने वित्तीय प्रबंधन पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं।
वर्ष 2023-24 में राजस्व प्राप्तियां 37999.87 करोड़ अनुमानित थी जिनके मुकाबले में वास्तव में यह प्राप्तियां 39173.04 करोड़ रही। पूंजीगत प्राप्तियां 11865.71 करोड़ अनुमानित थी और 12206.06 करोड़ वास्तव में रही है। इस तरह करीब 1500 करोड़ यह कुल प्राप्तियां अनुमानों से अधिक रही हैं। परन्तु सरकार के कर और गैर कर राजस्व के आंकड़ों के मुताबिक कर राजस्व 2023-24 में 13025.97 करोड़ अनुमानित था और गैर कर राजस्व 3447.01 करोड़ था। परन्तु इन अनुमानों के मुकाबले कर राजस्व 11835.29 करोड़ और गैर कर राजस्व 3020.28 करोड़ रहा है। इस तरह कर और गैर कर राजस्व अनुमानों से 1617.41 करोड़ कम रहा है। कर और गैर कर राजस्व अनुमानों से कम रहा है परन्तु राजस्व आय और पूंजीगत आय अनुमानों से 1500 करोड़ ज्यादा रही और कुल कर-करेतर आय 1700 करोड़ कम रहा है। राजकोषीय घाटा जो 9900.14 करोड़ अनुमानित था वह वास्तव में 11265.74 करोड़ रहा। इसमें राजकोषीय घाटे में 1365.60 करोड़ का अन्तर रहा।
इन आंकड़ों के मुताबिक राजस्व और पूंजीगत आय अनुमानों से 1500 करोड़ अधिक रही और कुल करेतर आय 1700 करोड़ कम रही। राजकोषीय घाटा 1365.60 करोड़ रहा। लेकिन 2023-24 के लिये अनुपूरक मांगे 10307 करोड़ रही है। वर्ष 2023-24 में ही सरकार द्वारा करीब 10,000 करोड़ का कर्ज लेने का आरोप भाजपा ने एक आरटीआई जानकारी के आधार पर लगाया था। मुख्यमंत्री ने इस बार भी 2023 की आपदा राहत में 4500 करोड़ खर्च करने का दावा बजट भाषण में किया है। जबकि कैग रिपोर्ट के मुताबिक आपदा में कुल 1209 करोड़ खर्च किये गये हैं। इस तरह कैग रिपोर्ट में दर्ज तथ्यों के आधार पर 2023-24 के खर्च के जो वास्तविक आंकड़े इस बार के बजट दस्तावेजों में दिखाये गये हैं उनकी प्रमाणिकता पर स्वतः ही सवाल खड़े हो जाते हैं। इसलिये जब सरकार को वर्ष 2025-26 के पहले ही दिन कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ गयी है तो इस वर्ष के अन्त तक कुल स्थिति क्या हो जायेगी उसका अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि 2024-25 के मुकाबले 2025-26 के बजट आकार में इतनी कम वृद्धि हुई है कि उसमें संभावित महंगाई को जोड़ दिया जाये तो यह आकार 2024-25 से कम हो जाता है।

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