Thursday, 18 September 2025
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विमल नेगी की हत्या हुई है या आत्म हत्या ही है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उठी आशंका

शिमला/शैल। क्या विमल नेगी की मौत का प्रकरण दूसरा गुड़िया कांड बनने जा रहा है? क्या यह प्रकरण कांग्रेस संगठन और सरकार दोनों के लिए घातक प्रमाणित होगा? क्या यह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनने जा रहा है? यह सारी आशंकाएं इसलिये उभरी हैं क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंपने पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं इस पर एस.पी. शिमला और प्रदेश महाधिवक्ता की पत्रकार वार्ताओं के माध्यम से सामने आयी हैं उनसे यह संकेत उभरे हैं। विमल नेगी दस मार्च को अपने कार्यालय से गायब हुये। इस गायब होने पर उनके परिजनों ने उन्हें तलाशने की गुहार लगाई और डी.जी.पी. ने इस पर एक एस.आई.टी. गठित कर दी। लेकिन यह तलाश कुछ परिणाम लाती उससे पहले ही विमल नेगी का शव 18 मार्च को गोविंद सागर झील में मिल गया। 19 मार्च को इस मृतक शरीर का पोस्टमार्टम एम्स बिलासपुर में करवाया गया। जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आयी है उसके मुताबिक मृतक की मौत पांच दिन पहले हो चुकी थी। पोस्टमार्टम के मुताबिक विमल नेगी की मौत बारह/तेरह मार्च को हो चुकी थी। इस रिपोर्ट से यह सवाल उठता है कि यदि मौत बारह/तेरह मार्च को हो गयी थी और शव अठारह मार्च को गोविंद सागर झील में मिला तो क्या यह मृतक शरीर करीब एक सप्ताह पानी में रहा? क्या मृतक के शरीर पर ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि मृतक शरीर इतना समय पानी में रहा है? क्योंकि इतना समय पानी में रहने से मृतक शरीर पर बदलाव आ जाता है। फिर मृतक के शरीर से पैन ड्राइव और मोबाइल फोन भी मिले हैं। क्या इन उपकरणों पर एक सप्ताह पानी में रहने से बदलाव नहीं आया होगा। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट का जितना जिक्र उच्च न्यायालय के फैसले में आया है उसमें इस ओर कोई संकेत नहीं है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उभरता है कि शायद यह आत्महत्या का मामला न होकर हत्या का मामला तो नहीं है?
18 मार्च को शव बरामद होने के बाद 19 मार्च को पुलिस मृतक की पत्नी किरण नेगी की शिकायत पर एफ.आई.आर. दर्ज कर लेती हैं। एक एस.आई.टी. बनाकर एफ.आई.आर. पर जांच शुरू हो जाती है। सरकार प्रशासनिक जांच भी आदेशित कर देती है और इसकी जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को सौंप दी जाती है और पन्द्रह दिन के भीतर जांच पूरी करने को कहा जाता है। दूसरी ओर विमल नेगी की पत्नी किरण नेगी सरकार की कार्यप्रणाली से अप्रसन्न होकर सी.बी.आई. जांच के अनुरोध की याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर कर देती है। इस याचिका पर उच्च न्यायालय डी.जी.पी., ए.सी.एस. होम और एस.पी. शिमला से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर लेता है। प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालना में ए.सी.एस. होम और डी.जी.पी. तथा एस.पी. अपनी रिपोर्ट्स उच्च न्यायालय को सौंपते हैं। तीनों ही रिपोर्टें अन्तः विरोधी हैं। उच्च न्यायालय तीनों अन्तः विरोधी रिपोर्टें देखकर इस मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंप देता है।
उच्च न्यायालय का सी.बी.आई.जांच का फैसला आते ही इस पर एस.पी. शिमला डी.जी.पी. के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। पत्रकार वार्ता के माध्यम से डी.जी.पी. और ए.सी.एस गृह के खिलाफ गंभीर आरोप लगा देते हैं। यही नहीं प्रदेश के मुख्य सचिव के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगा देते हैं। एस.पी. शिमला के इस व्यवहार पर डी.जी.पी. एस.पी. को तुरंत प्रभाव से निलंबित करने के लिये गृह सचिव को पत्र भेज देते हैं। इसी प्रकरण में प्रदेश के महाधिवक्ता भी पत्रकार वार्ता के माध्यम से ए.सी.एस. होम ओंकार शर्मा और डी.जी.पी. के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। इस मोर्चा खोलने पर प्रदेश के महाधिवक्ता भी डी.जी.पी. और ए.सी.एस. होम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर देते हैं। विमल नेगी प्रकरण की जांच से परोक्ष/अपरोक्ष में जुड़े अधिकारियों का आचरण स्पष्ट कर देता है कि निश्चित रूप से पुलिस जांच पूरे प्रकरण को आत्महत्या की ओर ले जा रही थी। जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक हत्या होने की ओर भी पर्याप्त संकेत उभरते हैं। ए.सी.एस. होम की जांच में जो शपथ पत्र इंजीनियर सुनील ग्रोवर का ब्यान आया है उसमें पावर कॉरपोरेशन की शौंग टौंग जल विद्युत परियोजना में सैकड़ो करोड़ का घोटाला हुआ है और पेखूबेला सोलर परियोजना में सौ करोड़ का घपला हुआ है। इन घपलों के लिये विमल नेगी पर अनुचित दबाव डाला जा रहा था। दबाव और प्रताड़ना के आरोप ए.सी.एस. होम की रिपोर्ट में भी आये हैं। पुलिस की जांच इसे आत्महत्या का मामला मान रही है जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत 12-13 मार्च को ही हो जाना हत्या होने की ओर बड़ा संकेत बनता है। इसलिये सी.बी.आई. की जांच से ही स्पष्ट हो पायेगा कि यह हत्या है या आत्महत्या और इसके लिये पावर कॉरपोरेशन की परियोजनाओं पर लग रहे सैकड़ो करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोपों की क्या भूमिका रही है। जिस तरह से बड़े अधिकारियों में अपने में ही घमासान शुरू हुआ है उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कुछ छुपाने और दबाने के प्रयास हो रहे थे। इसी से इस मामले की गुड़िया कांड पार्ट दो बनने की संभावना बनती जा रही है।

बैंस ने प्रदेश सरकार से किया सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह

  • एस.आई.टी की कार्यप्रणाली पर उठाये गंभीर सवाल
  • बैंस द्वारा दर्ज करवायी गयी शिकायत की जांच क्यों नहीं?
  • बैंस की शिकायत में दर्ज हैं कई बड़े नाम

शिमला/शैल। क्या युद्ध चन्द बैंस को हिमाचल सरकार सुरक्षा उपलब्ध करवायेगी? क्या युद्ध चन्द बैंस की शिकायत में नामितों को विजिलैन्स की एस.आई.टी. जांच के लिये बुलायेगी? यह प्रश्न बैंस द्वारा 19 मई को डी.जी.पी. के नाम भेजी शिकायत एवं आग्रह के बाद चर्चा में आ गये हैं। बैंस ने इस पत्र की प्रत्तियां प्रदेश के राज्यपाल, मुख्य सचिव और गृह सचिव तथा एस.पी. विजिलैन्स को भी भेजी है। बैंस ने इस पत्र में खुलासा किया है कि उसने सितम्बर 2024 में व्यास नदी के किनारे हो रहे अवैध खनन और कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर नई दिल्ली स्थित ई.डी. कार्यालय में एक शिकायत दर्ज करवाई थी। इस शिकायत पर हुई प्रारंभिक जांच के बाद अवैध खनन प्रकरण में ज्ञानचन्द और संजय धीमान ई.डी की हिरासत में चल रहे हैं। बैंस की ई.डी. में इस शिकायत के बाद प्रदेश विजिलैन्स ने उसके खिलाफ 8 जनवरी 2025 को ऊना में उसके ऋण प्रकरण पर एक आपराधिक मामला दर्ज कर लिया। यह आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद बैंस ने प्रदेश उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत की गुहार लगा दी। इस पर उच्च न्यायालय ने बैंस को जांच में शामिल होने की शर्त पर अस्थायी जमानत दे दी। जमानत की शर्तों की अनुपालना में बैंस नियमित रूप से जांच में शामिल होता रहा। विजिलैन्स की हर जांच के बाद उसकी स्टेटस रिपोर्ट भी उच्च न्यायालय को सौंपी जाती रही। इसी जांच के दौरान बैंस ने कांगड़ा सहकारी बैंक को लेकर एक विधिवत शिकायत विजिलैन्स में दायर कर दी। उच्च न्यायालय ने विजिलैन्स द्वारा समय-समय पर सौंपी गयी स्टेटस रिपोर्टों के आधार पर बैंस को नियमित जमानत दे दी।
बैंस विजिलैन्स द्वारा बुलाये जाने पर हर बार जांच में शामिल होता रहा है। लेकिन बैंस के मुताबिक विजिलैन्स ने उसकी शिकायत में नामितों से एक बार भी पूछताछ नहीं की है। जबकि उसने बैंक अधिकारियों और अन्य के खिलाफ गंभीर आरोप लगाये हैं। यह सामान्य समझ की बात है कि एक अपराधी को भी दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने का पूरा अधिकार है। उसकी शिकायत को बिना जांच के खत्म नहीं किया जा सकता। बैंस ने जिन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा रखी है वह सरकार में बड़े नाम हैं और बैंस का दावा है कि उसके पास इन लोगों के खिलाफ पर्याप्त दस्तावेजी प्रमाण है। बैंस के इस दावे और एस.आई.टी. द्वारा अब तक की गयी एक पक्षीय जांच और एस.आई.टी की कार्य प्रणाली पर इस पत्र में उठाये गये सवाल अपने में महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यह स्पष्ट है की बैंस के खिलाफ चल रही जांच में तब तक अदालत में चालान नहीं सौंपा जा सकता जब तक एस.आई.टी. बैंस की शिकायत पर भी उसी प्रक्रिया में जांच नहीं कर लेती है। ऐसे में बैंस ने जो प्रदेश सरकार से सुरक्षा मांग रखी है उस आग्रह को ठुकराना इन परिस्थितियों में आसान नहीं होगा।

यह है बैंस का डी.जी.पी. के नामपत्र

To

Director General of Police,
Himachal Police Headquarters ,Nigam Vihar
Shimla ,Himachal Pradesh (171002)
Subject – Request for Security Cover Within Himachal Pradesh

Sir,

I Yudh Chand Bains ,a resident of District Mandi had made a complaint against the Illegal mining within beas basin and Corruption within Kangra Central Cooperative Bank, Dharmshala in September 2024 with Enforcement Directorate Office ,New Delhi. The Complaint involved Chief Minister Sukhwinder Singh Sukhu ,his close associate Gyan Chand (already arrested), Sanjay Dhiman (already arrested), Political adviser to CM Sunil Bittu,Principal Secreatry to CM Vivek Bhatia,Doon MLA Ram Kumar Chaudhary, Secretary Cooperative C Paulrasu ,Kangra Central Cooperative Bank Chairman Kuldeep Pathania, Vicky Handa( Jeweller Close to Kuldeep Pathania and Sunil Bittu ).

Since the submission of my Complaint with the ED Office ,I have been pressurized through different channels, with both lucrative offers as well as threat,, to withdraw my complaint. When every attempt to coerce me into withdrawing my complaint failed ,a fabricated and politically motivated FIR was filed against me on 8.01.2025 at SV & ACB,Police Station Una.

Using this FIR as a revenge tool, I have been summoned regularly for attending Inquiry at Vigilance Headquarters ,Shimla. Since January,2025 i have been constantly harassed on the pretext of Inquiry and it has been more than 4 months now that I am still being summoned again and again despite the fact that all the questions raised by Inquiry Officer had been answered multiple times , all the record along with documents at my disposal have been already either seized by SIT or has been handed over by myself Voluntarily.
Sir, the conduct of Members of SIT seems questionable and motivated by ulterior designs for following reasons

• Summons to call me are being used to track my locations and whereabouts with the motive of leaking my confidential information to miscreants ,causing a threat to my personal security. To Justify this Claim, in the starting weeks of this planned inquiry ,I was being called at 10:30AM and Inquiry Officers allowed me to leave only after 6:00PM. I have Security from Ministry of Home Affairs and sensing this design of allowing me to leave inquiry only after it was dark outside, my PSO’s got alert. On one such evening ,PSO’s accompanying warned me of a suspicious vehicle following us as soon as we left Vigilance HQ. Apprising the danger to my Safety, the PSO’s stopped the vehicle and confronted the people siting inside. To my Surprise ,all occupants were staffed at Police HQ and even the vehicle was registered with Police HQ with registration number HP 03 C 7354. What was the need of following my vehicle, on whose direction was i being followed and to whom my locations were being shared ?

• I have submitted a Formal written Complaint with the SIT at Vigilance Office, Shimla highlighting how money was extorted from me on the pretext of OTS in Kangra Central Cooperative Bank and saving my properties along with the names of those involved in this corrupt extortion racket from CM Office To Chairman of Kangra Central Cooperative Bank (as have been named in Complaint to ED). Since January,2025, I have attended the said inquiry more than 30 times ,but not once those named in my formal complaint have been summoned ,why ? Is this a one way inquiry, sole motive of which is to somehow fabricate me in a false case and coerce me into withdrawing my complaint ?
Sir, I have a potential threat to my life, for mycomplaint against the powerful and influential and this act of constantly summoning me ,making me to wait for whole day in waiting room, seems suspicious and part of a bigger conspiracy to track my movement and somehow cause harm to me through miscreants. Supporters of these powerful and influential named in my complaint can take the form of a Mob at public places to harm me. This threat to my life is the only reason which has forced me to relocate myself out of Himachal Pradesh. If anything happens either to me or my family, then those named in my complaint shall be held responsible.

I thus request your good office to please take note of this grave issue and provide me with ample security cover whenever I am summoned to attend the inquiry ,from the time I enter the boundary of Himachal Pradesh and till I leave the state boundary. I have been Summoned to attend inquiry on 20th May, 2025 at Shimla Vigilance Office at 10:30 AM. My fight is scheduled to land at Shimla airport at 7:30 AM on 20th May, 2025.

I Further request your good office to please direct SP ,SV &ACB ,Shimla and members of SIT to act on my formal written complaint submitted with them and involve and Include all those named in my complaint within the ambit of this inquiry.

“Justice must not only be done, but must also be seen to be done”

 

Regards
Yudh Chand Bains
R/O Village Bhiura,P.O. Rajgarh,Tehsil Balh, Distt.
Mandi ,Himachal Pradesh (175027)
Contact – 9041049507
Dated-19th May, 2025

 

• Copy to Hon’ble Governor, Himachal Pradesh
• Copy to Chief Secreatry ,Govt. Of Himachal Pradesh
• Copy to Secreatry Home ,Govt. Of Himachal Pradesh
• Copy to SP, SV & ACB,Shimla

 

 

क्या सरकार की साख नयी कार्यकारिणी के गठन में समस्या है?

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस ब्लॉक स्तर से लेकर प्रदेश तक की कार्यकारिणीयां पिछले नवम्बर से भंग है। केवल प्रदेश अध्यक्षा ही सारा काम देख रही हैं। कार्यकारिणीयां भंग करने के लिये तर्क दिया गया था कि निष्क्रिय पदाधिकारीयों के स्थान पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को पदभार दिये जाएंगे। फिर सक्रिय कार्यकर्ताओं का पता लगाने के लिये हाईकमान द्वारा पर्यवेक्षकों की टीम भेजी गयी थी। इस टीम की रिपोर्ट गये हुये भी काफी समय हो गया है। इसी बीच प्रदेश प्रभारी को भी बदल दिया गया। अब प्रदेश अध्यक्षा का भी कार्यकाल पूरा हो गया है और उनके स्थान पर नया अध्यक्ष बनाने की भी चर्चाएं चल पड़ी हैं। यह कहा जा रहा है कि नया अध्यक्ष प्रदेश के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुये अनुसूचित जाति के किसी विधायक को बनाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह की वस्तुस्थिति प्रदेश सरकार की चल रही है उसको सामने रखते हुये यह नहीं लगता कि संगठन की कार्यकारिणीयां बनाना इतना आसान होगा। क्योंकि पिछले दिनों जिस तरह से उपमुख्यमंत्री की सोशल मीडिया पर डाली गयी पोस्ट और उसका लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह द्वारा समर्थन किया जाना सामने आया है उससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और संगठन में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जो कुछ घटा है उसका यदि संज्ञान किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और संगठन में कोई तालमेल नहीं बैठ पाया है। यह एक स्थापित सत्य है कि कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों में सरकार बनने के बाद संगठन का स्थान दूसरे दर्जे पर आ जाता है क्योंकि संगठन का सरकार पर कोई दबाव नहीं रह जाता है। प्रदेश में कांग्रेस का संगठन इसी नीयत और नीति का शिकार रहा है। क्योंकि सरकार व्यवस्था परिवर्तन के ऐसे अपरिभाषित सूत्र को अपना नीति वाक्य बनाकर चली जिसमें सरकार में भी धीरे-धीरे सारा कुछ मुख्यमंत्री में ही केंद्रित होकर रह गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मुख्यमंत्री पर शीर्ष अफसरशाही का एक सीमित सा वर्ग हावी होकर रह गया। परिणामस्वरूप प्रशासन में शीर्ष से लेकर नीचे तक अधिकारी-कर्मचारी अपने-अपने स्थानों पर यथास्थिति बने रहंे जिनकी कारगुजारियों से भाजपा चुनाव हारी थी। इससे फील्ड में बैठा हुआ कांग्रेस का कार्यकर्ता और दूसरा समर्थक अपने को पार्टी और सरकार से जोड़ने की बजाये पहले तो तटस्थ रहा और फिर धीरे-धीरे छिटककर किनारे बैठ गया। कार्यकर्ताओं को सरकार में समायोजित करने के सारे प्रयास जब असफल हो गये तो पार्टी के छः विधायकों को संगठन से बाहर जाने पर विवश होना पड़ा। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह से टूट गया। दूसरी ओर सरकार ऐसे अन्तःविरोधी फैसले लेते चली गयी जिससे सरकार की अपनी साख गिरनी शुरू हो गयी। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति पर प्रदेश को श्रीलंका जैसे हालात हो जाने की चेतावनी देते हुये स्वयं अपने खर्चों पर कंट्रोल करना भूल गयी। मुख्यमंत्री अपने मित्रों को सरकार में स्थापित करने में इस हद तक चले गये कि मित्रों की सरकार होने का तमगा ले बैठे। वितीय संकट के कारण आज सभी वर्गों को एक साथ वेतन और पैन्शन नहीं मिल पा रही है। जो गारंटियां चुनाव के दौरान जनता को देकर आये थे उन पर अमल भाषणों में ही है जमीन पर नहीं। राजस्व बढ़ाने के लिये प्रदेश के हर वर्ग पर परोक्ष/अपरोक्ष इतना टैक्स भार लाद दिया है कि आम आदमी परेशान हो उठा है। सरकार से आम आदमी कितना खुश है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री को अपनी धर्मपत्नी को विधानसभा का उपचुनाव जितवाने के लिये कांगड़ा सहकारी बैंक और जिला समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से 78 लाख कैश चुनाव क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता के दौरान बंटवाना पड़ा है। ऐसे में आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में कितने चुनाव क्षेत्रों में ऐसे पैसा बांटा जा सकेगा? जिस कार्यकर्ता के सामने सरकार की इस तरह की कारगुजारी होगी वह क्या कह कर सरकार और संगठन की जनता में वकालत कर पायेगा? इस समय सरकार अपने फैसलों के लिये जरूरत से ज्यादा विवादित हो गयी है। रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां और उपभोक्ता संरक्षण परिषद की प्रस्तावित नियुक्तियां बहुत अरसे से प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित हो चुकी है लेकिन सरकार ने उन्हें अधिमान नहीं दिया है। एक तरह से न्यायालय की निष्पक्षता पर यह स्थिति अपरोक्ष में प्रश्न चिन्ह लगाने वाली हो जाती है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। कुल मिलाकर सरकार किसी एक मानक पर भी खरी नहीं उतर रही है। यह आशंका बढ़ती जा रही है कि हिमाचल सरकार के फैसले राष्ट्रीय स्तर पर समस्याएं पैदा करेंगे। इस वस्तुस्थिति में संगठन के लिये नया अध्यक्ष और कार्यकारिणी का चयन एक चुनौती बनता जा रहा है।
क्या सरकार की साख नयी कार्यकारिणी के गठन में समस्या है?
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस ब्लॉक स्तर से लेकर प्रदेश तक की कार्यकारिणीयां पिछले नवम्बर से भंग है। केवल प्रदेश अध्यक्षा ही सारा काम देख रही हैं। कार्यकारिणीयां भंग करने के लिये तर्क दिया गया था कि निष्क्रिय पदाधिकारीयों के स्थान पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को पदभार दिये जाएंगे। फिर सक्रिय कार्यकर्ताओं का पता लगाने के लिये हाईकमान द्वारा पर्यवेक्षकों की टीम भेजी गयी थी। इस टीम की रिपोर्ट गये हुये भी काफी समय हो गया है। इसी बीच प्रदेश प्रभारी को भी बदल दिया गया। अब प्रदेश अध्यक्षा का भी कार्यकाल पूरा हो गया है और उनके स्थान पर नया अध्यक्ष बनाने की भी चर्चाएं चल पड़ी हैं। यह कहा जा रहा है कि नया अध्यक्ष प्रदेश के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुये अनुसूचित जाति के किसी विधायक को बनाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह की वस्तुस्थिति प्रदेश सरकार की चल रही है उसको सामने रखते हुये यह नहीं लगता कि संगठन की कार्यकारिणीयां बनाना इतना आसान होगा। क्योंकि पिछले दिनों जिस तरह से उपमुख्यमंत्री की सोशल मीडिया पर डाली गयी पोस्ट और उसका लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह द्वारा समर्थन किया जाना सामने आया है उससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और संगठन में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जो कुछ घटा है उसका यदि संज्ञान किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और संगठन में कोई तालमेल नहीं बैठ पाया है। यह एक स्थापित सत्य है कि कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों में सरकार बनने के बाद संगठन का स्थान दूसरे दर्जे पर आ जाता है क्योंकि संगठन का सरकार पर कोई दबाव नहीं रह जाता है। प्रदेश में कांग्रेस का संगठन इसी नीयत और नीति का शिकार रहा है। क्योंकि सरकार व्यवस्था परिवर्तन के ऐसे अपरिभाषित सूत्र को अपना नीति वाक्य बनाकर चली जिसमें सरकार में भी धीरे-धीरे सारा कुछ मुख्यमंत्री में ही केंद्रित होकर रह गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मुख्यमंत्री पर शीर्ष अफसरशाही का एक सीमित सा वर्ग हावी होकर रह गया। परिणामस्वरूप प्रशासन में शीर्ष से लेकर नीचे तक अधिकारी-कर्मचारी अपने-अपने स्थानों पर यथास्थिति बने रहंे जिनकी कारगुजारियों से भाजपा चुनाव हारी थी। इससे फील्ड में बैठा हुआ कांग्रेस का कार्यकर्ता और दूसरा समर्थक अपने को पार्टी और सरकार से जोड़ने की बजाये पहले तो तटस्थ रहा और फिर धीरे-धीरे छिटककर किनारे बैठ गया। कार्यकर्ताओं को सरकार में समायोजित करने के सारे प्रयास जब असफल हो गये तो पार्टी के छः विधायकों को संगठन से बाहर जाने पर विवश होना पड़ा। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह से टूट गया। दूसरी ओर सरकार ऐसे अन्तःविरोधी फैसले लेते चली गयी जिससे सरकार की अपनी साख गिरनी शुरू हो गयी। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति पर प्रदेश को श्रीलंका जैसे हालात हो जाने की चेतावनी देते हुये स्वयं अपने खर्चों पर कंट्रोल करना भूल गयी। मुख्यमंत्री अपने मित्रों को सरकार में स्थापित करने में इस हद तक चले गये कि मित्रों की सरकार होने का तमगा ले बैठे। वितीय संकट के कारण आज सभी वर्गों को एक साथ वेतन और पैन्शन नहीं मिल पा रही है। जो गारंटियां चुनाव के दौरान जनता को देकर आये थे उन पर अमल भाषणों में ही है जमीन पर नहीं। राजस्व बढ़ाने के लिये प्रदेश के हर वर्ग पर परोक्ष/अपरोक्ष इतना टैक्स भार लाद दिया है कि आम आदमी परेशान हो उठा है। सरकार से आम आदमी कितना खुश है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री को अपनी धर्मपत्नी को विधानसभा का उपचुनाव जितवाने के लिये कांगड़ा सहकारी बैंक और जिला समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से 78 लाख कैश चुनाव क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता के दौरान बंटवाना पड़ा है। ऐसे में आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में कितने चुनाव क्षेत्रों में ऐसे पैसा बांटा जा सकेगा? जिस कार्यकर्ता के सामने सरकार की इस तरह की कारगुजारी होगी वह क्या कह कर सरकार और संगठन की जनता में वकालत कर पायेगा? इस समय सरकार अपने फैसलों के लिये जरूरत से ज्यादा विवादित हो गयी है। रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां और उपभोक्ता संरक्षण परिषद की प्रस्तावित नियुक्तियां बहुत अरसे से प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित हो चुकी है लेकिन सरकार ने उन्हें अधिमान नहीं दिया है। एक तरह से न्यायालय की निष्पक्षता पर यह स्थिति अपरोक्ष में प्रश्न चिन्ह लगाने वाली हो जाती है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। कुल मिलाकर सरकार किसी एक मानक पर भी खरी नहीं उतर रही है। यह आशंका बढ़ती जा रही है कि हिमाचल सरकार के फैसले राष्ट्रीय स्तर पर समस्याएं पैदा करेंगे। इस वस्तुस्थिति में संगठन के लिये नया अध्यक्ष और कार्यकारिणी का चयन एक चुनौती बनता जा रहा है।
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बैंस को नियमित जमानत मिलने से सरकार के आचरण पर उठे सवाल

ई.डी के जिन मामलों में बैंस शिकायतकर्ता है अब उनके आगे बढ़ने की बनी संभावना

शिमला/शैल। कांग्रेस नेता युद्ध चन्द बैंस को प्रदेश उच्च न्यायालय की जस्टिस राकेश कैंथला की एकल पीठ से 8-1-25 को दर्ज एफआईआर में 24-4-25 को नियमित जमानत मिल गयी है। बैंस के खिलाफ कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा 20 करोड़ का कर्ज लेने के खिलाफ ऊना के विजिलैन्स थाना में यह मामला दर्ज करवाया गया था। बैंस को यह 20 करोड़ का कर्ज जुलाई 2019 में मिला था। आरोप था की बैंस ने कर्ज लेने के लिये जो दस्तावेज बैंक को सौंपे थे उनकी सत्यता संदिग्ध थी और बैंक ने ऋण देने के नियमों, आर.बी.आई. के दिशा निर्देशों और नाबार्ड नियमों की अवहेलना करते हुए यह कर्ज दिया। बैंस के खिलाफ यह मामला जनवरी 2025 में दर्ज किया गया और जनवरी में ही प्रदेश उच्च न्यायालय में ई.डी. की डासना जेल पहुंच चुके नादौन के खनन कारोबारी ज्ञानचंद की जमानत याचिका खारिज हो गयी थी। बैंस और ज्ञानचंद के मामलों में इसलिये संबंध बनता है क्योंकि बैंस ने ही यह दावा किया है कि ज्ञानचंद वगैरा के मामले में ई.ड़ी. में वह शिकायतकर्ता है। बैंस ने शिकायतकर्ता होने का दावा वाकायदा एक पत्रकार वार्ता में किया है। बैंस को केंद्र की ओर से सुरक्षा भी उपलब्ध है। स्मरणीय है कि ई.डी. ने 2-7-24 को ज्ञानचंद वगैरा के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी और 4-5 जुलाई को नादौन और हमीरपुर में छापेमारी की थी। इस मामले में ज्ञानचंद और संजय अभी ई.डी. की हिरासत में ही चल रहे हैं। दो और लोगों के खिलाफ भी वारंट जारी है। ज्ञानचंद का मामला प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में एक विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। विधानसभा के धर्मशाला सत्र में भी इसकी गुंज रह चुकी है।

इस पृष्ठभूमि में बैंस के खिलाफ दर्ज किया गया मामला अपने में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि बैंस की जमानत पर आये 26 पृष्ठों के फैसले में माननीय अदालत ने जिस तरह से टिप्पणियां की है उससे स्पष्ट हो जाता है कि शायद यह मामला बैंस पर दबाव बनाने के लिये दर्ज किया गया था। इस मामले में मान्यअदालत की यह टिप्पणियां महत्वपूर्ण है :

22. It was submitted that the economic offences are to be viewed differently from the normal offences. There is no quarrel with the proposition of law that the cases involving economic fraud are to be viewed seriously and a person involved in the economic fraud is not entitled to the concession of pre-arrest bail. However, before applying this principle, it has to be established that economic fraud was committed. In the present case, the investigation conducted so far does not show any economic offence. At the cost of repetition, the Board of Directors, who are responsible for this economic fraud are still at large and no steps are being taken to apprehend any of them. Hence the plea that there is economic fraud is not acceptable. 

26. In the present case, the proceedings under SARFAESI Act are pending and if the recovery is to be effected, it has to be as per law and not by resorting to the threat of arrest. Hence the  submission that the petitioner is to be arrested to recover the money will not help the prosecution.
27. It was submitted that there is a violation of bail conditions. The status report mentions that petitioner Yudh Chand Bains reported at the Police Station SV & ACB Una at 10.45 a.m. when he was directed to report at 11.30 a.m. He left aftersome minutes and held up the press conference. He failed to abide by the conditions to report at the police station at 11.30 a.m. Reporting earlier than the stipulated time cannot be a violation of the terms of the bail and the bail cannot be cancelled because thepetitioner had reported earlier.

28. It was also submitted that the petitioner failed to join the investigation from 13th to 17th January 2025 by taking a plea that he was summoned by the ED office on 18.1.2025 and he joined the investigation on 18.1.2025. If the petitioner was summoned by ED, it is difficult to see how he could have joined the investigation before the police. Hence, it cannot be said to be a violation of the bail condition.

29. It was submitted that the petitioner has conducted a press conference. It is difficult to see how that can amount to the violation of the conditions imposed by the Court. The Constitution guarantees freedom of speech to every person and this freedom is not taken away merely because a criminal case is pending against him.

32. In view of the above, the present petitions are allowed and the interim orders passed by the Court are made absolute.

इस परिदृश्य में अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ई.डी. में जिन मामलों में बैंस उसके मुताबिक शिकायतकर्ता है उनमें ई.डी. की अगली कारवाई कब और क्या सामने आती है। देहरा उपचुनाव में कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा क्षेत्र के 67 महिला मण्डलों को पचास-पचास हजार चुनाव के दौरान दिये जाने की जानकारी भी ई.ड़ी. के सूत्रों से ही बाहर आयी थी। नादौन में हुये अवैध खनन मामले की जांच आगे बढ़ने में यह सामने आने की संभावना प्रबल है कि जिस जगह अवैध खनन हुआ है उसकी मालिक भी सरकार है। क्योंकि यह सारी जमीने लैण्ड सीलिंग एक्ट के तहत 1974 में ही सरकार की हो चुकी है। बल्कि लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू होने से राजा नादौन के नाम से बेची गयी सारी जमीने सरकार की है। इसलिए अब जब बैंस को अपने मामले में राहत मिल गई है तब स्वभाविक है कि जिन मामलों में वह शिकायतकर्ता है उनकी पैरवी करना उसकी प्राथमिकता हो जाएगी।

क्या प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा का एक दूसरे के भ्रष्टाचार पर खामोश रहने का कोई समझौता है?

  • देहरा उपचुनाव में बांटे गये 78 लाख से उठा सवाल
  • होशियार सिंह की शिकायत पर अब तक क्यों नहीं हुई कोई कारवाई?
शिमला/शैल। क्या प्रदेश सरकार और भाजपा में एक दूसरे के भ्रष्टाचार पर खामोश रहने का कोई समझौता है। इस समय प्रदेश की वित्तीय स्थिति जिस मुकाम पर पहुंच गयी है उसके मुताबिक सारा ढांचा कब चरमरा कर ढह जाये यह स्थिति बनी हुई है। 2025-26 के बजट दस्तावेज पर नजर डालने पर यह सामने आया है कि इस वर्ष सरकार का कुल बजट 58514.31 करोड़ का है। जिसमें राज्य सरकार की अपनी कुल आय 20291.46 करोड़ है। शेष सब कुछ केन्द्र से आना है। कर्ज लेने की सीमा 7000 करोड़ है। वेतन और पैन्शन पर ही सरकार का 26294.08 करोड़ खर्च आयेगा। इसके अतिरिक्त कर्ज और ब्याज की अदायगी पर 12578.99 करोड़ खर्च होगा। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार की अपनी आय और कर्ज से इन दो माहों का खर्च भी पूरा नहीं कर सकती है। सरकार की यह आय भी दो वर्ष में प्रदेश पर 5200 करोड़ का करभार डालने के कारण हुई है। ऐसे में सरकार की घोषणाएं और अन्य कार्यक्रम जमीन पर कितना आकार ले पायेंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इस तरह की वितीय स्थिति में सरकार को अपने खर्चों और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना पड़ता है। लेकिन क्या सरकार यह सब कर पा रही है? अभी बजट सत्र में मंत्रियों, विधायकों सभी के वेतन भत्तों में ध्वनि मत से बढ़ौतरी हुई है। विपक्ष भी इस मौके पर चुप्पी साधे सरकार को समर्थन देता रहा है। विपक्ष सरकार के साथ किस हद तक खड़ा है यह देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला और जिला कल्याण अधिकारी कांगड़ा द्वारा बांटे गये पैसे की शिकायत पर सामने आया है। यह पैसा बांटने की शिकायत इस उप चुनाव में भाजपा से प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक होशियार सिंह ने की है। शिकायत के मुताबिक इस उप चुनाव में कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक ने देहरा क्षेत्र के 67 महिला मण्डलों को चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद पचास-पचास हजार रुपए दिये। कांगड़ा जिला समाज कल्याण अधिकारी प्रदेश द्वारा क्षेत्र की एक हजार महिलाओं को 4500-4500 रूपये बांटे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में शायद सौ से कम पोलिंग बूथ हैं और हर पोलिंग बूथ तक शायद यह पैसा पहुंचा है। आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह पैसा बांटा जाना आचार संहिता का खुला उल्लंघन है। उपचुनाव के दौरान यह पैसा बांटा गया। इसलिये इसे चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है। इस तरह यह बड़ा अपराध बन जाता है। संविधान की धारा 191(1) (e) के तहत चुनाव परिणाम आने के बाद इसकी शिकायत प्रदेश के राज्यपाल से किये जाने का प्रावधान है। इसलिए इसकी शिकायत होशियार सिंह ने 25 मार्च को राज्यपाल को भेजी है। हिमाचल में ऐसा पहली बार सामने आया है कि सरकारी अदारों ने चुनाव के दौरान इस तरह से पैसा बांटा हो। इससे आने वाले दिनों में हर चुनाव के दौरान हर चुनाव क्षेत्र में इस तरह से सरकारी अदारों द्वारा पैसा बांटने की अपेक्षा मतदाताओं को उम्मीदवार से हो जायेगी। इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होने के साथ ही भ्रष्टाचार का एक नया रास्ता सामने आ जायेगा जिसके परिणाम घातक होंगे। लेकिन प्रदेश भाजपा का नेतृत्व इस मुद्दे पर एकदम खामोश होकर बैठ गया है। इससे यही इंगित होता है कि शायद भाजपा शासन में भी इसी तरह का कुछ विधान सभा क्षेत्रों में हुआ हो। क्योंकि जब इस तरह से सरकारी अदारें ही चुनाव में पैसा बांटने लग जायेंगे तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। होशियार सिंह की शिकायत को राज्यपाल की टिप्पणी के साथ चुनाव आयोग को भेजा जाना है लेकिन अभी तक ऐसा होने की कोई जानकारी सामने नहीं आयी है। सबसे बड़ी हैरानी तो यह है कि इस मामले पर प्रदेश भाजपा का नेतृत्व एकदम खामोश होकर बैठ गया है। जबकि ऐसा माना जा रहा है कि इस पर संभावित कारवाई से प्रदेश का पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल जायेगा। क्योंकि आने वाले दिनों में कांग्रेस नेतृत्व से राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से एक कांग्रेस शासित राज्य में उपचुनाव के दौरान एक विधानसभा क्षेत्र में 78 लाख रुपए बांट दिया जाने का औचित्य और वैधानिक पात्रता क्या है?

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