Friday, 19 September 2025
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तीन वर्षों से नहीं आयी उच्च शिक्षा विनियामक आयोग की रिपोर्ट

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार में प्राइवेट सैक्टर में खुले उच्च शिक्षण संस्थानों को रैगुलेट करने के लिये 2010 में एक विनियामक आयोग की स्थापना की थी। हॉयर एजुकेशन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना as per the notification the Commission shall prepare and submit the annual report to the Government as required under the provision of section 13 of the Act, giving true and full account of the activities undertaken during the previous year.  के अनुसार यह आयोग हर वर्ष अपनी वर्ष भर की गतिविधियों को लेकर एक वार्षिक रिपोर्ट जारी करेगा। यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर भी रखी जाती है। आयोग की वेबसाइट पर भी लोड की जाती है तथा आर.टी.आई. के तहत भी उपलब्ध रहती है। वर्ष 2019 तक यह रिपोर्ट बराबर प्रकाशित होती रही है। लेकिन उसके बाद आज तक यह रिपोर्ट सामने नहीं आयी है। इस संबंध में जब भी आर.टी.आई. के तहत सूचना मांगी गयी तो एक ही जवाब मिला की रिपोर्ट तैयार हो रही है।
स्मरणीय है कि विनियामक आयोग इसलिये स्थापित किया गया था ताकि निजी क्षेत्र में खुले उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों और उनके अभिभावकों का शोषण न हो। वहां हो रहा शिक्षण और वहां तैनात सारा स्टाफ वॉइस चान्सलर से लेकर नीचे तक तह मानकों  के तहत भर्ती किया गया हो। पिछले दिनों जब मानव भारती विश्वविद्यालय में हुई गड़बड़ी सामने आयी है तब से इस आयोग की कार्य प्रणाली और भी महत्वपूर्ण हो गयी है। कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की शैक्षणिक योग्यताओं को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। यहां तक आशंकाएं व्यक्त की गयी है कि इन संस्थान में कई विषयों के लिये इतनी-इतनी सीटें दे दी जाती है जो सरकार क्षेत्र में कई दशकों से खुले शिक्षण संस्थानों को भी उपलब्ध नहीं हो पाती है। सीटें देना और तय मानकों की अनुपालन सुनिश्चित करवाना यह सब इस आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह आशंकाएं व्यक्त की जा रही है कि कुछ विश्वविद्यालयों को कई कोर्सों में इतनी अधिक सीटें दे दी गयी है जिनके वह शायद पात्र ही नहीं थे। इसमें शूलिनी विश्वविद्यालय तक नाम उछल रहा है।

वित्तीय श्वेत पत्र झूठ का पुलिंदा-जयराम

  • नौ माह में ही 8000 करोड़ का कर्ज लेना अपने में ही एक बड़ा सवाल है
  • गारंटीयों पर अब लोग सवाल करने लग पड़े हैं

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार में उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री द्वारा सदन में रखे गये वित्तीय श्वेत पत्र को झूठ का पुलिंदा करार देते हुये इसमें दिखाये गये कुछ आंकड़ों को भी गलत कहा है। जयराम ने कहा कि प्रदेश में वित्तिय कुप्रबन्धन की शुरुआत 1993 से 1998 तक रही कांग्रेस सरकार के समय हुई थी। जब बिजली बोर्ड और कुछ निगमों के नाम पर खुले बाजार में से एक हजार करोड़ का कर्ज लिया गया था जो उस समय सबसे अधिक था और आगे चलकर वह वित्तीय बोझ बनता चला गया। जबकि इस ऋण की उस समय इतनी आवश्यकता नहीं थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि जब 2012 में भाजपा ने सरकार छोड़ी थी तब प्रदेश पर 28000 करोड़ की देनदारी थी। लेकिन जब 2017 में उन्होंने सत्ता संभाली तो उन्हें 48000 करोड़ का ऋण विरासत में मिला जो कि 66ः की बढ़ौतरी थी। ठाकुर ने यह भी स्पष्ट किया कि जब उन्होंने सत्ता छोड़ी तो उस समय 69622 करोड़ के कुल कर्ज था 75000 करोड़ का नहीं। जयराम ने यह भी स्पष्ट किया कि इन्वैस्टर मीट के लिये 10 करोड़ केंद्र ने दिया था। और दो बार 13000 तथा 28000 करोड़ एम.ओ.यू. हस्ताक्षरित हुये थे। जिनमें से 8000 करोड़ के उद्योग शुरू भी हो चुके हैं। इसी कड़ी में जयराम ने मुकेश अग्निहोत्री से यह भी पूछा कि जब वह उद्योग मंत्री थे तब कितने एम.ओ.यू. साइन हुये थे और कितने धरातल पर साकार हुये है। जयराम ने आरोप लगाया कि यह सरकार नौ माह के कार्यकाल में ही 8000 करोड़ का ऋण ले चुकी है। जिस तरह से श्वेत पत्र केवल एक ही सरकार के कार्यकाल को लेकर लाया गया है तो वह निश्चित रूप से श्वेत पत्र की जगह आरोप पत्र हो जाता है। ऐसे में अपने पर लग रहे आरोपों का पुरजोर खण्डन करना स्वभाविक हो जाता है। लेकिन जिस तरह की कार्य प्रणाली पिछले नौ माह में इस सरकार की रही है उसको लेकर प्रश्न उठना स्वभाविक है क्योंकि यह सरकार दस गारंटीयां देकर सत्ता में आयी है। उन गारंटीयों पर व्यवहारिक रूप से अभी कोई कदम नहीं उठाये गये हैं। गारंटीयां जारी करते हुये यह नहीं कहा गया था कि पांच वर्ष के कार्यकाल में इनको पूरा किया जायेगा। इसलिए जयराम ने अपनी पत्रकार वार्ता में मुकेश अग्निहोत्री का ही ब्यान प्ले करके सुनाया है। जयराम सरकार के कार्यकाल के अन्तिम छः माह में लिये गये फैसलों को पलटते हुये इस सरकार ने करीब एक हजार संस्थाओं को बन्द कर दिया है। जब सुक्खू सरकार ने संस्थान बन्द करने का फैसला लिया तभी इस मुद्दे को भाजपा पूरे प्रदेश में ले गयी थी। इससे कांग्रेस के लोग भी घिर कर रह गये हैं क्योंकि उनके क्षेत्रों में भी यह संस्थान खुले थे। इसलिये इस संबंध में यह सरकार दो टूक फैसला नहीं ले पा रही है। भाजपा इस मुद्दे को प्रदेश उच्च न्यायालय में भी ले जा चुकी है। इसी मुद्दे के साथ मुख्य संसदीय सचिवों का मुद्दा भी अदालत में चल रहा है। अब श्वेत पत्र पर पलटवार करते हुये जो आंकड़े जयराम ने उठाये हैं वह सब 8 मार्च 2018 को विधानसभा में आये उनके बजट भाषण में दर्ज हैं। कांग्रेस इन कर्ज के आंकड़ों पर आज तक जवाब नहीं दे पायी है। इसलिये अब एक ही सरकार के कार्यकाल को लेकर लाये गये श्वेत पत्र पर सवाल उठना स्वभाविक ही है। क्योंकि जिस अफसरशाही ने सरकार को आंकड़े पढ़ाये हैं उसी ने ही विपक्ष को भी परोसे हैं। ऐसे में नौ माह में ही 8000 करोड़ का कर्ज ले लेना और गारंटीयों पर अमल कर पाना आसान नहीं होगा। श्वेत पत्र पर उठी यह बहस लोकसभा चुनाव तक क्या शक्ल लेती है यह देखना दिलचस्प होगा।

वितीय स्थिति पर श्वेत पत्र या पूर्व सरकार पर आरोप पत्र है यह दस्तावेज

  • जो लोग फिजूल खर्ची और कुप्रबंधन के लिये जिम्मेदार रहे हैं क्या उनके खिलाफ कोई कारवाई होगी
  • क्या वित्त विभाग मंत्रिमण्डल के आगे नतमस्तक हो गया था
  • क्या यह श्वेत पत्र और कर्ज लेने की भूमिका है?
  • इस श्वेत पत्र को एक ही सरकार के कार्यकाल तक सीमित क्यों रखा गया?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर जनता को यह कहा था की प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। प्रदेश की जनता से वादा किया था कि वह इस पर श्वेत पत्र जारी करेगी। इस वायदे के अनुसार सरकार ने 46 पन्नों का यह श्वेत पत्र विधानसभा के सामने रखा है। इस पत्र के अनुसार सुक्खू सरकार को 92774 करोड़ रुपए की प्रत्यक्ष देनदारियां विरासत में मिली हैं। जिन में 76630 करोड़ की ऋण देनदारी और आरक्षित निधि के तहत जमा हुई 5544 करोड़ की अन्य बकाया देनदारियां और वेतन संशोधन तथा दिसम्बर 2022 तक महंगाई भत्ते की लगभग 10600 करोड़ की बकाया देनदारियां शामिल हैं। 2017-18 के अन्त में यह देनदारियां 47906 करोड़ थी जो 2018-19 से 2022-23 तक बढ़कर 76630 करोड़ पर पहुंच गई है। इन देनदारीयों के कारण आज प्रदेश का हर बच्चा 102818 रुपए के कर्ज तले हैं। श्वेत पत्र के अनुसार प्रदेश की यह स्थिति इसलिए हुई है की जयराम सरकार ने संसाधन बढ़ाने के उपाय न करके केवल कर्ज लेकर ही काम चलाने की नीति पर चलते रहे। दिये गये आंकड़ों के अनुसार अकेले वित्तीय वर्ष 2022-23 में 12912 करोड़ का ऋण लिया गया जो अब तक एक वर्ष में लिया गया सबसे अधिक कर्ज है।

प्रदेश के 23 सार्वजनिक उपकरणों से 17 घाटे में चल रहे हैं। 31 मार्च 2017 को इनका संचित घाटा 3584.91 करोड़ था जो 31 मार्च 2022 तक बढ़कर 4902.78 करोड़ हो गया। सार्वजनिक उपक्रमों में राज्य विद्युत बोर्ड 1809.61 करोड़ के घाटे के साथ पहले स्थान पर है और एच.आर.टी.सी. 1707.12 करोड़ के साथ दूसरे नम्बर पर है। एच.आर.टी.सी. प्रतिमाह 60 करोड़ के घाटे में चल रही है। केंद्र सरकार द्वारा योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग लाने से भी प्रदेश को प्रतिवर्ष 3000 करोड़ का नुकसान हुआ है। राजस्व घाटा अनुदान में प्रतिवर्ष केंद्र कमी कर रहा है इससे भी सांसदों संसाधनों में कमी आयी है। इसी तरह जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति बन्द होने से भी राज्य का राजस्व कम हो गया है। इसी के साथ प्रदेश सरकार की उधार लेने की सीमा में भी कटौती करने से भी संसाधनों पर असर पड़ा है। यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि राज्य सरकार केंद्र के पास अपने हितांे की ठीक से पैरवी नहीं कर पायी है। इस तरह 2022-23 के मुकाबले 2023-24 में इस सरकार के पास 6779 करोड़ के संसाधन कम होंगे।
पूर्व की जयराम सरकार कर्ज पर निर्भरता के अतिरिक्त फिजूल खर्ची और दोषपूर्ण नीतियों का भी आरोप है। इसमें इन्वैस्टर मीट पर 27 करोड़ खर्च करके जो आयोजन किये गये और उन में निवेश आने और रोजगार मिलने के जो दावे पेश किये गये थे वह जमीन पर पूरे नहीं हुए। यही नहीं मानकों की अवहेलना करके संस्थाओं का खोला जाना सबसे बड़ी फिजूल खर्ची रही है। प्रशासनिक विभागों ने 584 प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजे जिनमें से केवल 94 प्रस्तावों को वित्त विभाग की स्वीकृति मिली। स्वास्थ्य विभाग ने 140 प्रस्ताव भेजे जिनमें से सिर्फ नौ को स्वीकृति मिली। शिक्षा विभाग ने 25 प्रस्ताव भेजें और वित विभाग से दो को स्वीकृति मिली। राजस्व विभाग ने 62 प्रस्ताव भेजें और दो को स्वीकृति मिली। यही नहीं कई प्रस्ताव तो वित्त विभाग को भेजे बिना ही सीधे कैबिनेट को भेज दिये गये। शिक्षा विभाग ने 23 महाविद्यालय वित्त विभाग के परामर्श के बिना ही खोल दिये। इसी तरह राजनीतिक कार्यक्रमों आजादी का अमृत महोत्सव और जन मंच कार्यक्रमों पर 6,93,00,238 तथा 534.38 लाख खर्च किये गये। प्रगतिशील हिमाचल स्थापना के 75 वर्ष कार्यक्रमों पर 28,42,63,033 रूपये खर्च किये गये। इस तरह पिछली सरकार राजस्व प्राप्तियां में वृद्धि और राजस्व व्यय में वृद्धि के बीच सन्तुलन बनाये रखने में असफल रही। इसके परिणाम स्वरूप राजस्व व्यय में तो 12.72 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2018-19 में 29442 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 44425 करोड़ हो गया। जबकि इसी अवधि में राजस्व आय 5.77 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 30950 करोड़ से बढ़कर केवल 38089 करोड़ ही हो पायी। इसके परिणाम स्वरुप राज्य की वित्तीय स्थिति बिगड़ गयी।
श्वेत पत्र में आये इस विवरण और आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है की पिछली सरकार इस संदर्भ में कतई भी संवेदनशील नहीं रही। न ही डबल इंजन की सरकार होने का प्रदेश को कोई लाभ नही मिल पाया है। लेकिन इसी के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी खड़ा होता है कि जब पिछली सरकार यह सब कर रही थी तो प्रशासन क्या कर रहा था। जब वित्त विभाग को नजरअन्दाज करके प्रस्ताव सीधे कैबिनेट को भेज दिये गये तो उस पस वित विभाग ने अपनी आपत्ति क्यों दर्ज नहीं करवाई क्योंकि मंत्रिमण्डल की हर बैठक में वित्त विभाग की उपस्थिति अनिवार्य होती है। हर बोर्ड कॉरपोरेशन के संचालक मण्डल में वित्त विभाग का प्रतिनिधि रहता है। यह श्वेत पत्र राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा तो प्रशासन की निष्ठाओं पर सवाल उठाता है। श्वेत पत्र में यह नहीं कहा गया है कि मंत्रिमण्डल ने वित्त और प्रशासनिक विभागों की राय को नजरअन्दाज करके फैसले लिये तथा प्रशासन पर थोपे। क्योंकि यह श्वेत पत्र एक गंभीर आरोप पत्र है जिसमें सरकार पर कुप्रबंधन और फिजूल खर्ची के आरोप लगाये गये हैं। आरक्षित निधि को भी खर्च कर दिया गया जो कि अपने में ही अपराध है। परंतु इन अपराधों के लिये किसी के खिलाफ कोई कारवाई भी की जाएगी ऐसा कुछ नहीं कहा गया है। इस तरह यह श्वेत पत्र एक रस्मअदायगी से ज्यादा कुछ नहीं रह जाता है। बल्कि आगे के लिये भी ऐसा ही करने का रास्ता खोल देता है। जबकि यहा आना चाहिये था कि जो प्रदेश आज 92774 करोड़ की देनदारीयों पर पहुंच गया है उसमें यह चलन कब और क्यों शुरू हुआ। कर्ज लेकर राहत बांटना कब तक जारी रहेगा। क्योंकि आवश्यक सेवाएं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर ज्यादा देर संसाधन नहीं जुटाये जा सकते। जनता को महंगाई और बेरोजगारी से निजात दिलाने के लिये बजटों में की जाने वाली घोषणाओं पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।

आपदा में मिली केंद्रीय सहायता पर विपक्ष हुआ बेनकाब

  • वायदों और घोषणाओं से अधिक कुछ नहीं मिला केन्द्र से प्रदेश को
  • सदन के पटल पर सच आया सामने

शिमला/शैल। प्रदेश में आयी आपदा से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 13000 करोड़ का नुकसान हुआ है। इस नुकसान की भरपाई प्रदेश के संसाधनों से ही कर पाना संभव नहीं है। इसलिए प्रदेश सरकार इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग कर रही है। यदि इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया जा सकता तो गुजरात के भुज और उत्तराखंड के केदारनाथ में हुए नुकसान में दिये गये विशेष पैकेज की तर्ज पर हिमाचल को भी राहत दी जाये। लेकिन केंद्र ने अभी तक हिमाचल के एक भी आग्रह पर कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह व्यक्तिगत तौर पर भी प्रधान से ऐसा आग्रह कर चुके हैं। दूसरी ओर प्रदेश भाजपा के नेता प्रदेश को केंद्र से मिल रही सहायता के कई आंकड़े प्रदेश की जनता के सामने रखते रहे हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी प्रदेश का दौरा करके 200 करोड़ की सहायता तुरन्त देने का ऐलान कर गये थे। हमीरपुर के सांसद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी राहत के आंकड़े परोसे हैं। यही नहीं प्रदेश से राज्यसभा सांसद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने भी प्रदेश का दौरा करके अधिकारियों की बैठक ली और यह घोषणा की थी कि सरकार जो मांगेगी वह केन्द्र की ओर से उसे खुले मन से मिलेगा। अपने नेताओं के इन दावों से प्रभावित होकर प्रदेश भाजपा के विधायक विधानसभा का सत्र शीघ्र बुलाये जाने का आग्रह करने लगे। अब जब विधानसभा का सत्र आरम्भ हुआ तो सरकार ने नियम 102 के तहत आपदा पर चर्चा सूचीबद्ध की हुई थी। शोकोदगार के बाद जैसे ही प्रश्न काल शुरू हुआ तो विपक्ष ने नियम 67 के तहत चर्चा का आग्रह किया। जिसे अध्यक्ष ने स्वीकार नहीं किया तो विपक्ष सदन से बाहर चला गया। जब अध्यक्ष ने नियम 102 के साथ ही नियम 67 को संलग्न करके चर्चा की अनुमति दी और मुख्यमंत्री ने नियम 102 के तहत अपने संकल्प को सदन में रखा तो नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर इसमें भाग लेने के लिये खड़े हो गये और प्रधानमंत्री द्वारा प्रदेश को दिये गये 5000 घरों और ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2600 करोड़ के आंकड़े सदन में रखे। इन आंकड़ों पर हस्तक्षेप करते हुये जब मुख्यमंत्री ने यह बताया कि नितिन गडकरी ने जो 200 करोड़ प्रदेश को तुरन्त देने की बात की थी वह अभी तक पूरी नहीं हुई है। 2600 करोड़ प्रदेश को पी एम जी एस वाई के तीसरे चरण के बकाये के रूप में मिला है जो केवल ग्रामीण सड़कों पर ही खर्च होगा। यदि केन्द्र ने इसकी अतिरिक्त कुछ और प्रदेश को दिया है तो उसके आंकड़े आप सदन में रख सकते हैं। लेकिन विपक्ष ऐसा कुछ नहीं रख पाया। क्योंकि घोषणाओं और वादों के अतिरिक्त प्रदेश को केन्द्र से कुछ नहीं मिला है।

आपदा में गिरे अवैध निर्माणों के लिये राहत का मानदण्ड क्या होगा?

  • शिमला के कृष्णा नगर में हुए नुकसान से उठा सवाल
  • आरटीआई सूचना के अनुसार करीब दो हजार अवैध निर्माण हैं
  • 2006 और 2007 में अदालत में हुए थे इन्हें गिराने के आदेश

शिमला/शैल। विधानसभा में आपदा और राहत को लेकर सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में जोरदार बहस होने की संभावना है। केन्द्र से कितनी राहत मिली है और राज्य सरकार ने कहां और किसको कितनी राहत प्रदान की है यह सारे आंकड़े सदन में सामने आने की उम्मीद है। लेकिन क्या इस सवाल पर भी चर्चा होगी कि इस आपदा में जो अवैध रूप से बनाये गये निर्माण गिरे हैं या क्षतिग्रस्त हुये हैं उन मामलों में राहत प्रदान करने का मापदंड क्या रहेगा? क्या जिस प्रशासन के क्षेत्र में ऐसे अवैध निर्माण गिरे हैं और जान माल की हानि हुई उसके लिये संबंधित प्रशासन को जिम्मेदार ठहराकर उनसे इसकी वसूली की जायेगी? प्रदेश के हर क्षेत्र में आपदा से सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार की संपत्तियों को भारी नुकसान हुआ है। इस नुकसान के लिए अवैध खनन को बड़ा कारण माना गया है। बल्कि सरकार के मंत्रियों के बीच भी इसको लेकर द्वंद्व की स्थिति उभर चुकी है। ऐसे इस आपदा से सबक लेते हुये अवैध निर्माणों को लेकर एक कठोर फैसला लेने की आवश्यकता है क्योंकि यह राहत भी तो सार्वजनिक संसाधनों से ही दी जा रही है।
अवैध निर्माणों और उनके गिरने का प्रश्न राजधानी शिमला के कृष्णा नगर में हुये नुकसान से उभरा है। यहां हुये भूस्खलन से गिरे मकान और 28 करोड़ से नगर निगम शिमला द्वारा बनाये गये स्लॉटरहाउस के गिरने से जो सवाल उठे हैं उन्हें आसानी से नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। स्थानीय पार्षद ने भी यह सवाल उठाया है कि जब यह क्षेत्र सिंकिंग जोन में आता है तो यहां पर यह स्लॉटर हाउस बनाया ही क्यों गया। इसको लेकर एक जांच भी चल रही है। लेकिन एक ओम प्रकाश की आरटीआई के माध्यम से आई जानकारी के अनुसार कृष्णा नगर में करीब दो हजार अवैध निर्माणों की जानकारी सामने आयी है। नगर निगम ने यह सूची देते हुये स्वीकारा है कि इन अवैध निर्माणों को गिराने के लिये उच्च न्यायालय के निर्देशों पर इन अवैध निर्माणों के खिलाफ एसी टू डीसी और एसडीएम ;शहरीद्ध तथा संयुक्त आयुक्त की अदालत में अवैध निर्माणकर्ताओं के खिलाफ कारवाई अमल में लाकर इनको गिरने के आदेश 2006 और 2007 में पारित हो चुके हैं। उस समय यह निर्माण कच्चे ढारों के रूप में रिकॉर्ड पर आये हैं। यह भी रिकॉर्ड पर आया है कि किसी भी ढारे में बिजली और पानी के कनैक्शन उपलब्ध नहीं थे।
इन अदालतों ने इन अवैध निर्माणों को गिराने के स्पष्ट आदेश किये हुए हैं। लेकिन अब जब आपदा में नुकसान हुआ तो पक्के बहुमंजिला निर्माण गिरे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब 2006, 2007 में यह कच्चे ढारे थे और अवैध करार देकर गिराने के आदेश हुये थे तो फिर वहां पर पक्के निर्माण कैसे बन गये? क्या यह पक्के निर्माण अवैध नहीं थे? यह भी जानकारी सामने आयी है कि निगम इसमें प्रॉपर्टी टैक्स भी वसूलता रहा है। जब यह धंसने वाला क्षेत्र चिह्नित और घोषित था तब यहां बने निर्माणों के लियेे प्रशासन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये यह सवाल सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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