Friday, 19 September 2025
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क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना सरकार की नीति है?

  • इण्डस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय प्रकरण से उठी चर्चा
  • अक्तूबर 22 में विनियामक आयोग विश्वविद्यालय बन्द करने की सिफारिश भेजता है
  • लेकिन जनवरी में नये कोर्स शुरू करने की भी अनुमति दे देता है क्यों?
शिमला/शैल। हिमाचल को शैक्षणिक हब बनाने के नाम पर जब प्रदेश में प्राइवेट सेक्टर में निजी विश्वविद्यालय और अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थान बड़े पैमाने पर खुले थे तब यह आरोप लगा था कि शिक्षा का बाजारीकरण किया जा रहा है। यह आरोप लगा था कि इन संस्थानों में छात्रों और उनके अभिभावकों दोनों का ही यहां शोषण होगा। इन आरोपों का गंभीर संज्ञान लेते हुये सरकार ने 2010 में ही एक निजी शिक्षण संस्थान विनियामक आयोग की स्थापना कर दी थी। इन शिक्षण संस्थानों में यूजीसी के मानकों के अनुसार अध्यापन हो रहा है। इन संस्थानों में नियुक्त किया जा रहा टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टॉफ यूजीसी द्वारा तय शैक्षणिक योग्यता के अनुसार रखा जा रहा है। और उसे यूजीसी के मानकों के अनुसार वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं यह सुनिश्चित करना इस आयोग के क्षेत्राधिकार में रखा गया था। जो संस्थान तय मानकों पर जितना उतरेगा उसे उसी के अनुरूप पाठय कोर्स आवंटित किये जाएंगे। यह सब सुनिश्चित करने के लिए आयोग द्वारा समय-समय पर इन संस्थानों का निरीक्षण किया जाना और उस निरीक्षण की रिपोर्ट सरकार को सौंपना आयोग के कार्य क्षेत्र का अनिवार्य हिस्सा है। यही नहीं इन शैक्षणिक संस्थाओं की कार्यशैली को पारदर्शी बनाने के लिए हर विश्वविद्यालय की ई.सी. में विधायकों का भी मनोनयन विधानसभा द्वारा किया जाता है। सभी विश्वविद्यालयों को इतनी इतनी जमीन खरीद की अनुमतियां हासिल हैं कि शायद ही कोई विश्वविद्यालय अपनी आधी जमीन का भी अब तक उपयोग कर पाया हो। जबकि दो वर्ष के भीतर ऐसी हासिल जमीन का उपयोग करना होता है और इसकी रिपोर्ट भी आयोग को देनी होती है। लेकिन सरकार द्वारा नियामक आयोग स्थापित किए जाने के बाद भी मानव भारतीय विश्वविद्यालय प्रकरण इस प्रदेश में घट गया। आज ऊना स्थित इण्डस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय भी कुछ कुछ इस कगार पर पहुंचता नजर आ रहा है। इसमें विश्वविद्यालय में ज्यादा सवाल तो विनियामक आयोग की कार्य प्रणाली और सरकार की उदासीनता पर उठ रहे हैं। स्वभाविक है कि किसी भी विश्वविद्यालय में बच्चे वहां पढ़ा रहे अध्यापकों की योग्यता से प्रभावित होकर ही आते हैं। जिस संस्थान में छात्रों की संख्या हर वर्ष गिरती चली जाये वह संस्थान ज्यादा देर कार्यशील नहीं रह सकता यह तय है। इस विश्वविद्यालय में 2019-20 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों की संख्या 135 थी जो 2020-21 में घटकर 55 रह गई और 2021-22 में शून्य पहुंच गई। 2022-23 में स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों में 166 है। छात्रों की इस घटती संख्या का विनियामक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अयोग्य फैक्लटी और यूजीसी के मानकों के अनुसार स्टॉफ को वेतन न दिया जाना। विनियामक आयोग इन कमियों पर इस विश्वविद्यालय को जुर्माना भी लगता है और फिर कोविड के नाम पर आधा जुर्माना माफ भी कर देता है। जब विश्वविद्यालय में कोई सुधार नहीं होता है तो यह आयोग अक्तूबर 22 में इसे बन्द करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सरकार को पत्र भेज देता है। लेकिन अक्तूबर के बाद 2023 में इसी विश्वविद्यालय को बी.ए.एम.एस. और एल.एल.बी. जैसे नये कोर्स शुरू करने की अनुमति देता है। उधर सरकार आयोग के अक्तूबर 22 के पत्र पर आज तक कोई कारवाई नहीं करती है। जब रिकॉर्ड पर यह स्थितियां आ चुकी हो और फिर भी कुछ कारवाई न हो पाये तो इसे भ्रष्टाचार को संरक्षण देना न कहा जाये तो और क्या कहा जाये?

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