Saturday, 20 December 2025
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क्या प्रदेश सरकार का राम मय होना चुनावी लाभ दे पायेगा?

  • एक मंत्री और दो विधायकों का अयोध्या जाना किसी बड़ी राजनीति का संकेत है
  • क्या ई.डी. के एजैण्डे पर हिमाचल सरकार आ गई है

शिमला/शैल। हिमाचल के सुक्खु सरकार ने राम मन्दिर के प्राण प्रतिष्ठा अवसर पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया था। इस अवसर पर सुक्खु के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह अयोध्या इस आयोजन में शामिल होने भी गये थे। विधायक सुधीर शर्मा और चैतन्य शर्मा भी इस आयोजन में शामिल रहे हैं। इस आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री सुक्खु और कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और दूसरे मंत्रियों और नेताओं के जिस तर्ज में इस आयोजन पर ब्यान रहे हैं उससे लगता था कि हिमाचल की पूरी सरकार इस मौके पर अयोध्या होगी। लेकिन शायद जब केन्द्र में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस आयोजन को संघ/भाजपा का आयोजन करार देकर इसमें शामिल होने से मना कर दिया तब हिमाचल सरकार ने भी अपना फैसला बदला। फिर भी इस कार्यक्रम से अपने मानसिक जुड़ाव को प्रदर्शित करते हुये इस अवसर पर जो योजनाएं और कार्यक्रम घोषित कर सकते थे वह सब कुछ किया है। राज्य सरकार और उसके नेताओं के इस आचरण का विपक्षी एकता के गठबंधन ‘‘इन्डिया’’ पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका पता तो आने वाले दोनों में चलेगा। कांग्रेस हाईकमान भी इस सबको कैसे लेती है यह देखना भी दिलचस्प होगा।
अभी लोकसभा के चुनाव शायद अप्रैल में होने जा रहे हैं। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार होने के नाते कितनी सीटों पर पार्टी जीत हासिल कर पाती है यह सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
इस समय सुक्खु सरकार की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। सरकार को हर माह एक हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज लेना पड़ रहा है। जो सरकार विधायक विकास निधि का भुगतान विधायकों को न कर पायी हो। कुछ निगमो/बोर्डों के कर्मचारीयों को समय पर वेतन और पैन्शन का भुगतान न कर पा रही हो। जिसे पत्रकारों के मकानों का किराया पांच गुना बढ़ाना पड़ा हो। जो संशोधित वेतनमानों के बकाये का भुगतान न कर पायी हो उसके विकास संबंधी दावों और अन्य घोषणाओं पर कितना विश्वास कोई कर पायेगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। इस परिदृश्य में सरकार और उसके नेताओं के आचरण को लेकर राजनीतिक अटकलें लगाया जाना स्वभाविक हो जाता है। क्योंकि केन्द्र की सरकार पर अपनी जांच एजैन्सियों ई.डी.,सी.बी.आई. और आयकर आदि के इस्तेमाल से राज्य सरकारों में दखल देने के आरोप पहले दिन से ही लगते आये हैं। फिर संयोगवश हिमाचल सरकार के कई मंत्री और दूसरे नेता ठेकेदारी/बिल्डरों की भूमिका से ताल्लुक रखते हैं। फिर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार से वैसे ही मनोबल गिरा हुआ है। ऊपर से सरकार के सिर पर गारंटीयों की ऐसी तलवार लटकी हुई है जिसका कोई समाधान सामने नहीं है। फिर व्यवस्था परिवर्तन के जुमले से जनता को और अंधेरे में रख पाना संभव नहीं होगा। स्थिति यहां तक पहुंच जायेगी की नेता अपनी ही जनता का सामना नहीं कर पायेंगे। चुनावों में हर दावे और योजना की सच्चाई सामने आ जायेगी।
फिर इस समय हिन्दी पट्टी में कांग्रेस के पास केवल हिमाचल की ही सरकार बची हुई है। इस सरकार को ढोये रखना जहां कांग्रेस की आवश्यकता है तो इस गणित में सरकार को अस्थिर करना भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता है। इसके लिये ठेकेदार और बिल्डर पृष्ठभूमि के नेताओं को साधने के लिये ई.डी. से बड़ा हथियार और क्या हो सकता है। विश्लेष्कांे के मुताबिक जब पत्र बम्ब संस्कृति के तहत कुछ पत्र जारी हुये थे उनसे ई.डी. के दखल की जमीन तैयार की गई थी। इसमें कुछ शीर्ष अफसरशाहों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्हीं के सहयोग से कांग्रेस के कुछ विधायक मंत्री और दूसरे नेता केन्द्रीय एजैन्सियों के राडार पर चल रहे हैं। राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री सुक्खु अभी भी राजनीतिक असन्तुलन के लग रहे आरोपों को साधने के लिये कोई गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। कर्मठ कार्यकर्त्ताओं को अभी सरकार में कोई समायोजन नहीं मिल रहा है। इसी परिदृश्य में जब मार्च में मुख्य संसदीय सचिवों को लेकर उच्च न्यायालय का फैसला आयेगा तब राजनीतिक समीकरण और गड़बड़ायेंगे। अभी तक सरकार की योजनाओं को लेकर कोई सवाल नहीं उठे हैं। लेकिन जब इन योजनाओं की व्यवहारिकता पर सवाल उठेंगे तब पता चलेगा कि जमीनी हकीकत क्या है। इस समय यह सरकार अपने की भार से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच चुकी है। क्योंकि चुनावों में यह आंकड़े सामने रखने होंगे कि कितने लोगों को स्थाई रोजगार मिल पाया है? कितने युवा सोलर यूनिट लगा पाये हैं? कितने युवाओं को ई-टैक्सी योजना में उपदान मिल पाया है? सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिये आम आदमी पर महंगाई का बोझ डाले बिना क्या उपाय किये हैं। कठिन वित्तिय स्थिति के चलते अपने खर्चे कितने काम किये हैं? कर्ज के खर्च का ब्योरा भी इन्हीं चुनावों में पूछा जायेगा। इसलिये माना जा रहा है कि इस दौरान सरकार को लेकर अवश्य कुछ घटेगा। क्योंकि सरकार और संगठन दोनों ही मोदी सरकार पर तथा भाजपा संघ पर मौन साधे चले हुये हैं। यह मौन ही आने वाले घटनाक्रम का एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।

 

कर्ज के आंकड़ों के आईने में क्या केन्द्र की अनदेखी मुद्दा बन पायेगी

  • केन्द्र से प्रदेश को एक वर्ष में मिले 33000 करोड़-परमार

शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को पिछले एक वर्ष में 33000 करोड़ दिये हैं। आपदा में भी केन्द्र ने प्रदेश सरकार को 3000 करोड़ दिये यह दावा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुलह के विधायक विपिन सिंह परमार ने एक ब्यान में किया है। परमार भाजपा के कांगड़ा चम्बा के प्रभारी हैं। परमार से पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ.राजीव बिन्दल ने भी केन्द्रीय सहायता के विस्तृत आंकड़े जारी किये। हमीरपुर के सांसद केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी इस आश्य के आंकड़े जारी करते रहे हैं। लेकिन भाजपा नेताओं के इन दावों का प्रमाणिक खण्डन करने की बजाये केन्द्र पर हिमाचल की सहायता न करने का आरोप सुक्खू सरकार के मंत्री और कांग्रेस नेता लगाते आ रहे हैं। केंद्रीय सहायता को जिस तरह से मुद्दा बनाकर परोसने का काम किया जा रहा है उससे यह लग रहा की आने वाले लोकसभा चुनाव इसी मुद्दे के गिर्द केन्द्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस परिदृश्य में पूरी वस्तुस्थिति का आकलन करना आवश्यक हो जाता है। पूर्व सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन और प्रदेश को कर्ज में डूबने के आरोप लगाते हुये सुक्खू सरकार वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लेकर भी आयी है। इस श्वेत पत्र के अनुसार जयराम सरकार सुक्खू सरकार पर 92000 करोड़ की देनदारियां छोड़ गयी है। कुप्रबंधन के कई आंकड़े और तथ्य इस श्वेत पत्र में दर्ज हैं। लेकिन इस कुप्रबंधन के लिये किसी को भी चिन्हित नहीं किया गया है। जब कोई विशेष रूप से चिन्हित ही नहीं है तो किसी के भी खिलाफ कोई कारवाई किए जाने का प्रश्न ही नहीं उठा। कुप्रबंधन के साथ ही केन्द्र सरकार पर यह आरोप है की प्रदेश के कर्ज लेने की सीमा में भी केन्द्र ने कटौती कर दी है। विदेशी सहायता पर भी सीमा लगा दी गयी है। किसी भी राज्य को कर्ज जीडीपी के एक तय अनुपात के अनुसार मिलता है। जिन राज्यों में इस नियम की अनुपालना नहीं हुई है वह इसके विरुद्ध अदालत में गये हैं। लेकिन हिमाचल ने ऐसा नहीं किया है। इसी के साथ जब राजीव बिन्दल ने सुक्खू सरकार द्वारा लिये गये कर्ज के आंकड़े आरटीआई के माध्यम से सूचना लेकर जारी किये तो स्थिति एकदम बदल गयी। इस सरकार पर प्रति माह 1000 करोड़ से भी अधिक का कर्ज लेने का खुलासा सामने आ गया।
इस वस्तुस्थिति में यह देखना रोचक हो गया है की क्या सुक्खू सरकार और कांग्रेस संगठन केन्द्र की अनदेखी को प्रमाणिकता के साथ चुनावी मुद्दा बन पायेंगे? क्योंकि इस सरकार ने पहले दिन से ही कर्ज लेना शुरू कर दिया है। कर्ज के साथ आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं के दामों में भी बढ़ौतरी की है। राजस्व वृद्धि के दावों के साथ यह प्रश्न लगातार अनुतरित रह रहा है कि सरकार चुनावों में दी हुई गारंटीयों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठा पा रही है? आज बेरोजगार युवाओं को आश्वासनों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल पा रहा है। यह युवा सरकार के खिलाफ अपना रोष सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने पर मजबूर क्यों होते जा रहे हैं। आने वाले लोकसभा चुनावों में सरकार का कर्ज़ के खर्च और गारंटीयों पर घिरना तय माना जा रहा है।

हिमाचल रसोई ब्लास्ट पर कुण्डू के खुलासे से सरकार फिर सवालों में

शिमला/शैल। क्या 18 जुलाई 2022 को शिमला के माल रोड के साथ लगता मिडल बाजार स्थित हिमाचल रसोई में हुए ब्लास्ट में आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ है? इस ब्लास्ट की जांच एस पी शिमला की पुलिस ने की थी और इसमें जुन्गा स्थित फारैन्सिक लैब का भी सहयोग लिया गया था। इस जांच में इसे गैस सिलैण्डर लीक होने के कारण हुआ धमाका करार दिया गया था। इसी जांच के दौरान दिल्ली से एनएसजी के विशेषज्ञों की टीम भी घटनास्थल पर आयी थी और जांच करके चली गयी थी। इस जांच में धमाके का कारण क्या पाया गया है इसका अधिकारिक खुलासा आज तक सामने नहीं आया है। लेकिन इस धमाके के बाद जब पालमपुर के एक कारोबारी निशान्त शर्मा का एक झगड़ा एक वरिष्ठ वकील और एक पूर्व आईपीएस अधिकारी तथा इसी मामले में वर्तमान डीजीपी कुण्डू की भूमिका को लेकर चर्चा में आया और निशान्त शर्मा की शिकायत का स्वतः संज्ञान लेते हुये याचिका दायर कर कारवाई शुरू की तब इस मामले में भी यह मोड़ आया है।
स्मरणीय है कि निशान्त शर्मा की शिकायत पर स्वतः संज्ञान लेते हुये यह मामला दो बार उच्च न्यायालय और दो ही बार सुप्रीम कोर्ट तक हो आया है। उच्च न्यायालय ने पहली बार उसके सामने एसपी कांगड़ा और एसपी शिमला की रिपोर्टों के माध्यम से सामने आये तथ्यों की विवेचना करते हुये डीजीपी और एसपी कांगड़ा को उनके पदों से हटाने के निर्देश जारी किये थे। इन निर्देशों पर अमल करते हुये प्रदेश सरकार ने डीजीपी को प्रधान सचिव आयुष तैनात कर दिया था। एसपी कांगड़ा को लेकर कोई आदेश जारी नहीं हुये थे। उच्च न्यायालय के इस फैसले को डीजीपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी कुण्डू को राहत देते हुये ट्रांसफर आदेश को स्टे करके उन्हें फिर से उच्च न्यायालय में जाने और पहले फैसले को रिकॉल करने की याचिका दायर करने के निर्देश दिये। इन निर्देशों पर डीजीपी कुण्डू ने उच्च न्यायालय में रिकॉल याचिका दायर कर दी। उच्च न्यायालय ने इस रिकॉल याचिका को अस्वीकार करते हुये बहुत सारे तथ्य भी रिकॉर्ड पर ला दिये। इस पर कुण्डू दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये। इस बार कुण्डू ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया की जिस एसपी शिमला ने उनके खिलाफ उच्च न्यायालय में स्टेटस रिपोर्ट दायर की है वह द्वेषपूर्ण है। क्योंकि एसपी शिमला ने हिमाचल रसोई में हुये धमाके को लेकर गैस सिलैण्डर लीक होने की जो रिपोर्ट सौंपी है वह सही नहीं है। उन्होंने इसकी रिपोर्ट को लेकर सरकार को पत्र लिखे हैं। एनएसजी की रिपोर्ट में ब्लास्ट का कारण आरडीएक्स पाया गया है। यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के बारह जनवरी के फैसले में दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिये कोई उपलब्ध नहीं था। इसलिए हिमाचल रसोई में हुये ब्लास्ट का जो कारण डीजीपी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया है उसे ही मानना पड़ेगा।
लेकिन इस स्थिति में नये सवाल उभर कर सामने आते हैं क्या उन्हें आसानी से नजर नजरअंदाज किया जा सकता है। हिमाचल रसोई में ब्लास्ट 18 जुलाई को हुआ था जिसमें मौतें तक हुई हैं। पुलिस ने इसे गैस सिलैण्डर लीक करार दिया था। इसमें आरडीएक्स इस्तेमाल हुआ होने की बात पहली बार सर्वाेच्च न्यायालय में करीब सात माह बाद सामने आयी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि निशान्त शर्मा कुण्डू प्रकरण सर्वाेच्च न्यायालय न पहुंचता तो क्या तब भी हिमाचल रसोई प्रकरण में आरडीएक्स इस्तेमाल होने की खुलासा हो पाता? इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि यदि एसपी शिमला की जांच पर सवाल खड़े करते हुये डीजीपी ने सरकार को पत्र लिखे हैं तो उन पर सरकार ने कोई कारवाई क्यों नहीं की? केंद्रीय जांच एजैन्सी की रिपोर्ट को आज तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? इस रिपोर्ट पर जुन्गा की फारैन्सिक लैब से सवाल क्यों नहीं किये गये? यदि हिमाचल रसोई प्रकरण में जुन्गा की रिपोर्ट अविश्वसनीय है तो अन्य मामलों में विश्वसनीय कैसे हो सकती है? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इनसे सरकार के पूरे तंत्र पर कई गंभीर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं?

हिमाचल रसोई ब्लास्ट पर कुण्डू के खुलासे से सरकार फिर सवालों में

शिमला/शैल। क्या 18 जुलाई 2022 को शिमला के माल रोड के साथ लगता मिडल बाजार स्थित हिमाचल रसोई में हुए ब्लास्ट में आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ है? इस ब्लास्ट की जांच एस पी शिमला की पुलिस ने की थी और इसमें जुन्गा स्थित फारैन्सिक लैब का भी सहयोग लिया गया था। इस जांच में इसे गैस सिलैण्डर लीक होने के कारण हुआ धमाका करार दिया गया था। इसी जांच के दौरान दिल्ली से एनएसजी के विशेषज्ञों की टीम भी घटनास्थल पर आयी थी और जांच करके चली गयी थी। इस जांच में धमाके का कारण क्या पाया गया है इसका अधिकारिक खुलासा आज तक सामने नहीं आया है। लेकिन इस धमाके के बाद जब पालमपुर के एक कारोबारी निशान्त शर्मा का एक झगड़ा एक वरिष्ठ वकील और एक पूर्व आईपीएस अधिकारी तथा इसी मामले में वर्तमान डीजीपी कुण्डू की भूमिका को लेकर चर्चा में आया और निशान्त शर्मा की शिकायत का स्वतः संज्ञान लेते हुये याचिका दायर कर कारवाई शुरू की तब इस मामले में भी यह मोड़ आया है।
स्मरणीय है कि निशान्त शर्मा की शिकायत पर स्वतः संज्ञान लेते हुये यह मामला दो बार उच्च न्यायालय और दो ही बार सुप्रीम कोर्ट तक हो आया है। उच्च न्यायालय ने पहली बार उसके सामने एसपी कांगड़ा और एसपी शिमला की रिपोर्टों के माध्यम से सामने आये तथ्यों की विवेचना करते हुये डीजीपी और एसपी कांगड़ा को उनके पदों से हटाने के निर्देश जारी किये थे। इन निर्देशों पर अमल करते हुये प्रदेश सरकार ने डीजीपी को प्रधान सचिव आयुष तैनात कर दिया था। एसपी कांगड़ा को लेकर कोई आदेश जारी नहीं हुये थे। उच्च न्यायालय के इस फैसले को डीजीपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी कुण्डू को राहत देते हुये ट्रांसफर आदेश को स्टे करके उन्हें फिर से उच्च न्यायालय में जाने और पहले फैसले को रिकॉल करने की याचिका दायर करने के निर्देश दिये। इन निर्देशों पर डीजीपी कुण्डू ने उच्च न्यायालय में रिकॉल याचिका दायर कर दी। उच्च न्यायालय ने इस रिकॉल याचिका को अस्वीकार करते हुये बहुत सारे तथ्य भी रिकॉर्ड पर ला दिये। इस पर कुण्डू दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये। इस बार कुण्डू ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया की जिस एसपी शिमला ने उनके खिलाफ उच्च न्यायालय में स्टेटस रिपोर्ट दायर की है वह द्वेषपूर्ण है। क्योंकि एसपी शिमला ने हिमाचल रसोई में हुये धमाके को लेकर गैस सिलैण्डर लीक होने की जो रिपोर्ट सौंपी है वह सही नहीं है। उन्होंने इसकी रिपोर्ट को लेकर सरकार को पत्र लिखे हैं। एनएसजी की रिपोर्ट में ब्लास्ट का कारण आरडीएक्स पाया गया है। यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के बारह जनवरी के फैसले में दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिये कोई उपलब्ध नहीं था। इसलिए हिमाचल रसोई में हुये ब्लास्ट का जो कारण डीजीपी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया है उसे ही मानना पड़ेगा।
लेकिन इस स्थिति में नये सवाल उभर कर सामने आते हैं क्या उन्हें आसानी से नजर नजरअंदाज किया जा सकता है। हिमाचल रसोई में ब्लास्ट 18 जुलाई को हुआ था जिसमें मौतें तक हुई हैं। पुलिस ने इसे गैस सिलैण्डर लीक करार दिया था। इसमें आरडीएक्स इस्तेमाल हुआ होने की बात पहली बार सर्वाेच्च न्यायालय में करीब सात माह बाद सामने आयी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि निशान्त शर्मा कुण्डू प्रकरण सर्वाेच्च न्यायालय न पहुंचता तो क्या तब भी हिमाचल रसोई प्रकरण में आरडीएक्स इस्तेमाल होने की खुलासा हो पाता? इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि यदि एसपी शिमला की जांच पर सवाल खड़े करते हुये डीजीपी ने सरकार को पत्र लिखे हैं तो उन पर सरकार ने कोई कारवाई क्यों नहीं की? केंद्रीय जांच एजैन्सी की रिपोर्ट को आज तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? इस रिपोर्ट पर जुन्गा की फारैन्सिक लैब से सवाल क्यों नहीं किये गये? यदि हिमाचल रसोई प्रकरण में जुन्गा की रिपोर्ट अविश्वसनीय है तो अन्य मामलों में विश्वसनीय कैसे हो सकती है? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इनसे सरकार के पूरे तंत्र पर कई गंभीर प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं?

क्या अवैध निर्माण के आरापों में घिरे भवन में सरकारी कार्यालय हो सकता है

  • नगर निगम द्वारा दी गयी जानकारी से उठी चर्चा
  • नगर निगम और सरकार दोनों की कार्यप्रणाली सवालों में

शिमला/शैल। क्या किसी ऐसे भवन में सरकारी कार्यालय हो सकता है जिसके निर्माण पर अवैधता के आरोप लगे हों और नगर निगम ने दो मंजिलों को गिराने का नोटिस जारी किया हो यह स्थिति लोअर पंथाघाटी स्थित हरि विश्राम भवन की है। जिसमें फूड कमिश्न का कार्यालय कार्यरत है। इस भवन के बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य ने नगर निगम से इसके मालिक और क्या इस भवन का नक्शा आवासीय उद्देश्य के लिये पारित है या व्यावसायिक के लिये 18-10-2023 को मांगी गयी सूचना का 200 पन्नों से अधिक का जवाब 10-01-2024 को प्राप्त हुआ है। इस जवाब के मुताबिक इसके मालिक प्रवीण गुप्ता और रचना गुप्ता हैं। प्रवीण गुप्ता प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में मुख्य अभियन्ता है और रचना गुप्ता प्रदेश लोक सेवा आयोग की सदस्य हैं। रचना गुप्ता के पास शायद सरकारी आवास भी है जिसके लिये शायद यह शपथ पत्र पड़ता है कि प्रार्थी के नाम पर कोई अपना निजी आवास नहीं है। इस परिप्रेक्ष में हरी विश्राम भवन को लेकर आयी सूचना का प्रभाव क्षेत्र बढ़ जाता है।
नगर निगम आयुक्त द्वारा 31-12-2015 को अतिरिक्त सचिव शहरी विकास विभाग को लिखे पत्र के मुताबिक पार्किंग फ्लोर की कोई योजना न तो भेजी ही गयी थी और न ही स्वीकृत की गयी है। इसी पत्र में इनके द्वारा एक और मंजिल का निर्माण कार्य शुरू कर दिये जाने का उल्लेख जिसकी स्वीकृति नहीं है। इस अवैधता पर इनको नोटिस जारी किये जाने का भी जिक्र है। पत्र में इनके खिलाफ निगम आयुक्त के अदालत में इस अवैध निर्माण को न गिरने पर कारवाई चलाने की भी उल्लेख है। इस पत्र से पहले भी इन्हें छठी मंजिल को गिराने के आदेश दो बार नगर निगम से 2014 और 2015 में जारी हुये हैं।
नगर निगम द्वारा भेजे गये दस्तावेजों से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस भवन की पांचवी और छठी मंजिल को लेकर अवैधता के नोटिस इन्हें भेजे गये थे। इसको लेकर निगमायुक्त की अदालत में कारवाई चलने का भी विवरण है। लेकिन नगर निगम से 18-10-2023 को यह पूछा गया था कि क्या यह भवन आवासीय अनुमोदित है या व्यवसायिक। अब जनवरी 24 में आये जवाब में नगर निगम का इस पर मौन यही इंगित करता है कि यह मामला अभी भी लंबित चल रहा है या नगर निगम किसी दबाव में इसका स्पष्ट उत्तर नहीं दे पा रहा है। ऐसे में यह सवाल और भी गंभीर हो जाता है कि जिस भवन के निर्माण पर अवैधता के आरोप लगाते हये नगर निगम उसे तोड़ने का नोटिस दे रहा हो क्या उसी भवन की उन्हीं मंजिलों में सरकारी कार्यालय खोला जा सकता है।

यह है दस्तावेज

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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