Friday, 19 September 2025
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कहां तक जाएगा मंत्रियों के ब्यानों पर उभरा विवाद

शिमला/शैल। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह मंत्रिमण्डल के सबसे युवा मंत्री है और एक ऐसे बाप के बेटे हैं जो छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस नाते उन्हें एक समृद्ध राजनीतिक विरासत धरोहर के रूप में मिली हुई है। इस विरासत को वह कितना संभाल कर रख पाते हैं और कितना आगे बढ़ा पाते हैं यह आने वाला समय ही तय करेगा। अभी दूसरी बार विधायक बने हैं। युवा मंत्री होने के नाते वह अपने ब्यानों में इतनी बेबाक और स्पाट बातें बोल जाते हैं जिससे उनके राजनीतिक प्रतिद्वन्दी कई बार परेशान होना शुरू हो जाते हैं। इसलिए उनके ब्यानों पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि राजनेताओं की जगह कर्मचारी नेता को उन्हें जवाब देने और उन पर हमला करने के लिये उतारा गया है। स्मरणीय है कि जब कांग्रेस ने चुनाव के दौरान पुरानी पैन्शन बहाल की बात की थी तब उसी नेता ने सोलन में एक पत्रकार वार्ता करके इस पर सवाल उठाये थे। आज विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह के खिलाफ ई.डी. और सी.बी.आई. के मामले में प्रधानमन्त्री से कार्यवाही की मांग की जा रही है। जबकि यह मामले इस समय अदालतों में विचाराधीन चल रहे हैं। शायद गवाहीयों के दौर से गुजर रहे हैं। यहां पर यह उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है कि आने वाले संसद सत्र में जिन 49 कानूनों को केंद्र सरकार निरस्त करने जा रही है उनमें मनी लॉंडरिंग भी शामिल है। अब इनसे जेल की सजा के बदले केवल जुर्माने का ही प्रावधान रखा जा रहा है। इसलिये इन मामलों में कारवाही की मांग करना केवल राजनीति रह जाता है। विक्रमादित्य सिंह ने यू.सी.सी. का समर्थन किया था और कहा था कि एक देश में एक ही कानून होना चाहिए। संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में इस आश्य का निर्देश मौजूद है लेकिन इसे लागू करने के लिए धारा 371 में भी संशोधन करना होगा। इस संशोधन से गुजरात महाराष्ट्र समेत एक दर्जन राज्य प्रभावित होते हैं। राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि मोदी सरकार में यह संशोधन लाने का साहस नहीं है। विक्रमादित्य ने यही प्रश्न किया था कि नौ वर्षों में मोदी सरकार को यह विधेयक लाने से कौन रोक रहा था। लेकिन इस ब्यान के भी मायने बदलने का पूरा प्रयास किया गया। विक्रमादित्य के ब्यान में यह कहीं नहीं था कि वह पार्टी की लाइन से हटकर कोई अपना अलग कदम उठाएंगे। अभी विक्रमादित्य सिंह ने इस बाढ़ और भूस्खलन के लिये अवैध खनन को कारण बताया था। इस अवैध खनन के ब्यान पर उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने यह कहा है कि अवैध खनन कुछ जगह पर कारण हो सकता है लेकिन सभी जगह नहीं। उन्होंने विक्रमादित्य सिंह के ब्यान को बचकाना करार दिया है। लेकिन यह कहने से ही यह विवाद बढ़ कर राजनीतिक आकार लेने लग पडा है। जहां तक निर्माण संबंधी अवैधताओं का प्रश्न है तो इसके लिए प्रदेश उच्च न्यायालय एन.जी.टी. और सर्वोच्च न्यायालय के दर्जनों आदेश निर्देश इसकी पुष्टि करते हैं कि प्रदेश में अवैध निर्माणों के कारण पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है। एन.जी.टी. ने तो शिमला से कार्यालयों को दूसरे स्थानों पर ले जाने तक निर्देश दे रखे हैं। इसलिए मंत्रियों के ब्यानों को लेकर खड़ा किया जा रहा विवाद अपने में कोई मायने नहीं रखता है। क्योंकि इस आपदा ने बहुत कुछ साफ कर दिया है। थुनाग के बाजार में बहती मिली लकड़ी पर जांच आदेशित होना बहुत कुछ साफ कर देती है। लेकिन इन ब्यानों से विवाद का असर प्रदेश के सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर पड़ेगा यह तय है। इस समय लोकसभा की 2014 और 2019 के चुनावों में चारों सीटें भाजपा के पास रही हैं। मण्डी उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने जयराम सरकार को हराकर इस सीट पर कब्जा किया है। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए हाईकमान चारों सीटों की उम्मीद करेगा। इसके लिए समय-समय पर आकलन भी किए जाएंगे। यही अपेक्षा भाजपा हाईकमान को भी यहां से है। क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक केन्द्रीय मन्त्री प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में ऐसे ब्यानों और उन पर उभरी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से प्रदेश की राजनीति में नये समीकरण उभारने का प्रयास किया जायेगा यह तय है।

क्या धारा 118 के तहत 105 एकड़ चाय बागान गैर हिमाचली को कृषि के लिए बेचा जा सकता है

यह है अनूप दत्ता की शिकायत

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की कथनी करनी पर उठने लगे सवाल

शिमला/शैल। धर्मशाला के योल बाजार निवासी एक अनूप दत्ता ने मुख्यमंत्री को संबोधित एक ईमेल भेजकर भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अवैध तरीके से दी गयी एक जमीन खरीद की अनुमति को रद्द किये जाने और संबद्ध अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने का आग्रह किया है। आरोप लगाया गया है कि एक गैर हिमाचली गैर कृषि को 105 एकड़ चाय बागान कृषि उद्देश्य के लिये खरीदने की अनुमति दी गयी है। जबकि नियमों के अनुसार चार एकड़ से अधिक की अनुमति के लिये आवेदन ही नहीं किया जा सकता है। अनुप दत्ता ने इस आश्य की शिकायत 17-06-23 और 29-06-23 मुख्य सचिव, प्रधान सचिव राजस्व, प्रधान सचिव विजिलैन्स और सचिव लॉ मंत्री को भेजी थी। लेकिन इसकी प्राप्ति की कोई सूचना न मिलने पर मुख्यमंत्री को यह शिकायत भेजी है। आठ पन्नों की इस शिकायत में प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। दत्ता के मुताबिक यह मामला 2002 में घटा था और तब से लेकर वह इसकी शिकायत करता रहा है और यह शिकायत करने की वजह से वह स्वयं भी उत्पीड़न का शिकार हुआ है। लेकिन वह इस लड़ाई से पीछे नहीं हटा है। स्मरणीय है कि लैण्ड सिलिंग अधिनियम में चाय बागानों को अधिकतम भूमि सीमा से बाहर रखा गया था। ऐसे बागानों को बेचने के लिये पहले उन्हें लैण्ड सिलिंग के दायरे में लाना होगा और उसके बाद ही उसे बेचने की अनुमति मिल सकती है। गैर कृषक और गैर हिमाचली को चार एकड़ से अधिक की अनुमति मिल ही नही सकती। इसलिये अनूप दत्ता की शिकायत में दम है। फिर हिमाचल सरकार में तो 31 अक्तूबर 1997 को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक रिवार्ड स्कीम तक अधिसूचित कर रखी है और यह आज भी लागू है क्योंकि इसे वापस नहीं लिया गया है। ऐसे में जब इस तरह की कोई शिकायत आये और शिकायतकर्ता बीस वर्षों से लगातार उसको उठाता आया हो तब ऐसी शिकायत को जनता के सामने रखना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि भ्रष्टाचार को लेकर सरकारों की कथनी और करनी का सच सामने आना ही चाहिये। सुक्खू सरकार ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरैन्स घोषित कर रखी है लेकिन करनी अलग है। भ्रष्टाचार की कई शिकायतें मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही लंबित चल रही है। इसलिए अनूप दत्ता की शिकायत को जनता के सामने यथास्थिति रखा जा रहा है।


क्या हिमाचल में भी महाराष्ट्र घट सकता है

  • कांग्रेसी से भाजपाई बने हर्ष महाजन की सक्रियता से उभरी आशंकाएं
  • विपिन परमार और त्रिलोक कपूर के ब्यानों से बढ़ी चिन्ताएं
  • मंत्री परिषद का विस्तार क्यों टाला जा रहा है
  • विभिन्न निगमों/बोर्ड़ों में कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां कब?

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे और अब भाजपा की प्रदेश कोर कमेटी के सदस्य हर्ष महाजन कि पिछले दिनों दिल्ली में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू तथा कुछ कांग्रेसी विधायकों से हुई मुलाकात और अब विपिन परमार तथा त्रिलोक कपूर के ब्यानों से महाराष्ट्र के परिदृश्य में हिमाचल में भी अटकलों का बाजार तेज होने लग गया है। सुक्खू और हर्ष महाजन के रिश्ते कांग्रेस में बहुत अच्छे रहे हैं यह सब जानते हैं। विधानसभा चुनावों से पहले भी कई कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं उठती रही हैं। बल्कि सुक्खू और जयराम का एक फ्लाइट में संयोगवश इकट्ठे होना तथा उस फ्लाइट में और किसी यात्री का न होना भी कई चर्चाओं का विषय रहा है। इस परिदृश्य में बनी कांग्रेस सरकार में मंत्रियों से पहले मुख्य संसदीय सचिवों की शपथ हो जाना और बाद में उनकी नियुक्तियों को भाजपा नेताओं द्वारा ही उच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना और अब इन्हें अदालत के नोटिस तामील न हो पाना कुछ ऐसे संयोग हैं जिन्हें अगर एक साथ रखकर पढ़ने की कोशिश की जाये तो बहुत सारे ऐसे सवाल खड़े हो जाते हैं जिनका जवाब तलाशना कठिन हो जाता है।
सुक्खू सरकार में मंत्रियों के तीन पद खाली चले हुये हैं जो मंत्रिमण्डल में असन्तुलन का सीधा प्रमाण हैं और मंत्रिमण्डल का विस्तार लटकता जा रहा है। विभिन्न निगमों/बोर्डों में अभी तैनातीयां नहीं हो पायी हैं इससे वरिष्ठ कार्यकर्ता भी हताशा में आ गये हैं। जबकि पार्टी अध्यक्षा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सरकार में मान-सम्मान दिये जाने की मांग कर चुकी है। प्रशासनिक तौर पर अभी भी भाजपा शासन के दौरान लगाये अधिकारियों को ही प्रशासन के शीर्ष पदों पर तैनात रखा है। मुख्यमंत्री प्रशासन के माध्यम से प्रदेश में सरकार बदलने का संदेश नहीं दे पाये हैं। बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का दावा प्रशासनिक अराजकता बनता जा रहा है। आम आदमी की शिकायत है कि मुख्यमंत्री को दिये जा रहे प्रार्थना पत्रों/प्रतिवेदनों का कोई अता पता ही नहीं चल रहा है। चर्चा है कि एक मंत्री अपने विभाग के सचिव की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे। उन्होंने मुख्यमंत्री से सचिव को बदलने का आग्रह किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने सचिव को बदलने की बजाये मंत्री का ही विभाग बदलने की पेशकश कर दी। एक अन्य मंत्रा की सिफारिश पर मुख्यमंत्री ने तो फाइल पर अनुमोदन कर दिया लेकिन सचिव स्तर पर काम नहीं हुआ। पता चला कि मुख्यमंत्री ने ही सचिव को ऐसे निर्देश दिये थे। बहुत सारे ऐसे मामले चर्चा में हैं जहां मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बावजूद सचिव स्तर पर काम रुक रहे हैं। इससे प्रशासन में अनचाहे ही अराजकता का वातावरण बनता जा रहा है।
मंत्रा परिषद में असन्तुलन कार्यकर्ताओं में मोहभंग की स्थिति पैदा होना तथा प्रशासन में बढ़ती अराजकता अब ऐसे तथ्य बन गये हैं कि शायद हाईकमान के भी संज्ञान में आ चुके हैं। शायद इसी सबका परिणाम रहा है की चुनावी सर्वे में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिल पा रही है। इसी सर्वे के बाद हाईकमान ने निष्पक्ष रिपोर्ट के लिये पूर्व मंत्री कॉल सिंह को दिल्ली बुलाया था। चर्चा है कि कॉल सिंह की रिपोर्ट में 23 विधायकों और मंत्रियों के भी हस्ताक्षर हैं। जब से कॉल सिंह की रिपोर्ट और सर्वे के परिणाम चर्चा में आये हैं तब से स्थितियां और उलझती जा रही हैं। बल्कि अब तो यहां तक चर्चाएं चल रही हैं कि मुख्यमंत्री स्वस्थ्य लाभ के नाम पर चंडीगढ़ बैठकर पूरी स्थिति का आकलन करने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरी ओर यह माना जा रहा है की मुख्य संसदीय सचिवों को लेकर दायर हुई याचिका पर जल्द फैसले के हालात पैदा किये जायें। क्योंकि यह तय है की यह नियुक्तियां संविधान के प्रावधान के अनुरूप नहीं हैं इसलिए यह रद्द होंगी ही। उस समय राजनीतिक समीकरण नये सिरे से आकार लेंगे। प्रदेश पहले ही वित्तीय संकट से गुजर रहा है और जब इसके साथ राजनीतिक संकट के आसार बन जाएंगे तब केन्द्र सरकार और भाजपा को खेल खेलने का खुला अवसर मिल जायेगा। क्योंकि जिस तरह भाजपा कर्नाटक में प्रधानमंत्री मोदी के व्यापक चुनाव प्रचार के बाद भी हार गयी उससे अब गैर भाजपा सरकारों को अस्थिर करने वहां सत्ता पलटने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं बचते हैं। फिर अभी केन्द्रीय मंत्री परिषद के संभावित फेरबदल में अनुराग ठाकुर को मंत्री पद से हटाकर संगठन में जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चाओं से भी यही संकेत उभर रहे हैं कि भाजपा हिमाचल में कोई बड़ा खेल खेलने के लिये जमीन तैयार कर रही है। यदि कांग्रेस हाईकमान और प्रदेश सरकार समय रहते सचेत न हुई तो हिमाचल में कोई बड़ा नुकसान हो सकता है।

अब लोक सेवा आयोग की भर्तियों पर भी उठने लगे सवाल

  • तीन लोगों ने भेजी मुख्यमंत्री को शिकायत
  • आयोग में भी प्रश्न पत्र बिकने का है आरोप
  • आयोग के अध्यक्ष ने सिरे से खारिज किया है आरोपों को
  • क्या बिना किसी जांच के आरोपों को नकारना सही है
  • जब भाजपा बेनामी पत्र की जांच की मांग कर चुकी है तो इस बार चुप्पी क्यों?
  • आयोग पर पूर्व में भी उठ चुके हैं सवाल
  • आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियों के लिये सर्वोच्च न्यायालय और प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालन कब होगी?

शिमला/शैल। प्रदेश लोक सेवा आयोग में भी विभिन्न भर्तियों के प्रश्न पत्र लीक हो रहे हैं और बिक भी रहे हैं। यह आरोप मुख्यमंत्री को भेजे एक शिकायत पत्र में तीन लोग गौरव चौहान, रणेश और दीप्ति नेगी ने लगाये हैं। दो पन्नों के पत्र में इन आरोपों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। आयोग के अध्यक्ष ने इन आरोपों को जांच से पहले ही सिरे से खारिज़ कर दिया है। यह शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री को भेजी गयी है। इस नाते इस शिकायत की जांच करवानी है या नहीं इसका फैसला मुख्यमंत्री और सरकार को करना है और सरकार के किसी फैसले से पहले आयोग द्वारा इनको खारिज़ कर देना कुछ अटपटा सा लगता है। इस पत्र को पढ़ने से ही यह समझ आ जाता है कि इस शिकायत के पीछे ऐसे लोग हैं जो आयोग की कार्यशैली को अन्दर तक जानते हैं। इसलिये इन आरोपों को सोर्स सूचना मानते हुये इनकी जांच करवाकर आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवालों का जवाब दिया जा सकता है। इस पत्र पर नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी भाजपा की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आयी है जबकि पावर कॉरपोरेशन को लेकर पिछले दिनों आये बेनामी पत्र पर इन लोगों ने सीबीआई जांच की मांग की थी। यह बेनामी पत्र प्रधानमंत्री को संबोधित किया गया था और वहां से यह ईडी तक पहुंच चुका है। जब पीएमओ एक बेनामी पत्र का संज्ञान ले सकता है तो उसी गणित से इस तीन लोगों के पत्र पर कार्यवाही क्यों नहीं?
हिमाचल लोक सेवा आयोग द्वारा एक समय भर्ती किये गये एक्साईज़ इंस्पैक्टरों का मामला भी प्रदेश उच्च न्यायालय पहुंच चुका है। इसके बाद इसी आयोग में अध्यक्ष और सचिव में प्रश्नपत्र चेस्ट की चाबी का विवाद उठ चुका है और तुरन्त प्रभाव से सचिव को हटा दिया गया था। इस शिकायत पत्र में आरोप लगाया गया है कि पिछले दो वर्षों से ऐसा हो रहा है। स्मरणीय है कि इसी दौरान यह आयोग 48 दिनों तक बिना अध्यक्ष के केवल एक सदस्य के सहारे रह चुका है। चर्चा है कि सरकार आयोग पर दबाव बनाना चाहती थी। क्या इस दौरान लिये गये फैसलों पर सरकार का दबाव नहीं रहा होगा। आयोग द्वारा ली गयी परीक्षाओं और साक्षात्कारों का परिणाम एक समय एक तय अवधि के दौरान निकाल दिया जाता था। लेकिन उसके बाद परिणाम निकालने में एक वर्ष से भी अधिक का समय लगता रहा है। क्या परिणाम निकालने में इतना समय लग जाना अपने में ही सन्देहों को जन्म नहीं देगा। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि जिस आयोग को प्रदेश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं के लिये भर्ती करने की जिम्मेदारी दी गयी है उसके आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की अपनी नियुक्तियों को लेकर ही कोई तय प्रक्रिया नही है। सर्वोच्च न्यायालय ने साहिल सबलोक मामले में सरकारों को ऐसी प्रक्रिया तय करने के निर्देश दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को इन नियुक्तियों के बारे में एक प्रक्रिया निर्धारित करने के निर्देश दिये हैं जिन पर न तो पूर्व सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही व्यवस्था परिवर्तन करने का दम भरने वाली इस सरकार ने सात माह में कोई कदम उठाया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सरकार अदालत के निर्देशों की अनुपालना क्यों नही कर रही है? क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि सरकार आयोग पर अपना दबाव बनाये रखने के लिये इन निर्देशों की अनुपालन नहीं करना चाहती है।

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