शिमला/शैल। सुक्खू सरकार अपना दूसरा बजट पेश करने जा रही है। यह बजट चुनावी वर्ष में आ रहा है। क्योंकि लोकसभा इसी वर्ष मई तक होने हैं। यह चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं। यह संभावना बनी हुई है। फिर सत्ता संभालते ही इस सरकार ने प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति का जिक्र करते हुये प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे हो जाने की चेतावनी भी दी थी। सुक्खू सरकार ने 2022 में दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में सत्ता संभाली थी। ऐसे में 31 मार्च 2023 तक की इस सरकार को पूर्व सरकार द्वारा पारित बजट के अनुसार ही कार्य करना था। पूर्व सरकार ने विधानसभा के चुनावी वर्ष के परिदृश्य में बजट के अन्दर घोषित कौन-कौन सी योजनाओं में आवंटित बजट से अधिक या कम खर्च किया है। इसका लेखा-जोखा 2023-24 के बजट सत्र में पिछले वर्ष की अनुपूरक मांगों के रूप में आना था और यह सरकार 13141.07 करोड़ की अनुपूरक मांगे लेकर सदन में आयी थी। स्मरणीय है कि वर्ष 2022-23 के लिये 51364.76 करोड़ का बजट सदन से पारित हुआ था। जब इस वर्ष के लिये 13141.07 करोड़ की अनुपूरक मांगे रखी गयी तो बजट के कुल आकार में केवल 4836 करोड़ की ही बढ़ौतरी हुई। इस बढ़ौतरी का अर्थ था कि वित्त वर्ष 2022-23 की बजट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सुक्खू सरकार को केवल 4836 करोड़ का ही प्रबन्ध करना था। लेकिन सुक्खू द्वारा लिये गये कर्ज के आंकड़े भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने आरटीआई से जानकारी जुटा कर जारी किये हैं। उनके मुताबिक 31 मार्च 2023 तक सरकार ने 6700 करोड़ का कर्ज लिया है। जबकि इस सरकार ने सत्ता संभालते ही पूर्व सरकार द्वारा अंतिम छः माह में लिये गये फैसलों को पलटते हुये करीब 1000 संस्थाओं और कार्यालय को बंन्द कर दिया था। मंत्रिमंडल में मंत्रियों के तीन पद खाली रखे थे। 31 मार्च 2023 तक इस सरकार ने कोई भर्तीयां भी नहीं की है। फिर मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने बजट भाषण में स्वयं स्वीकारा है कि वर्ष 2022-23 का राजकोषीय घाटा 6170 करोड़ था। ऐसे यह सवाल खड़ा होता है कि अनुपूरक मांगों से बजट का आकार केवल 4836 करोड़ बड़ा है और राजकोषीय घाटा 6170 करोड़ ही रहा है तो फिर वर्ष 2022-23 के लिये इस सरकार को 6700 करोड़ का कर्ज क्यों लेना पड़ा। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस सरकार ने डीजल पर वेट बढ़ाने का फैसला संस्थान बन्द करने के फैसले के साथ ही लिया था। इसके बाद बिजली और पानी के रेट भी 31 मार्च 2023 से पहले ही बढ़ायें हैं। कर्मचारियों के लिये ओ.पी.एस लागू करने के फैसले का मार्च 2023 तक सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा है। इसलिए मार्च 2023 तक 6700 करोड़ का कर्ज क्यों लिया गया और कहां खर्च किया गया यह सवाल इन लोकसभा चुनावों में पूरी मुखरता के साथ पूछा ही जायेगा। क्योंकि कर्ज का भुगतान आम आदमी से उठाये गये करों से ही किया जाता है। सुक्खू सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जो कर्ज ले रखा है उसकी भरपाई भी आम आदमी से लिये गये टैक्स से होती है। फिर अभी यह भी सामने आ गया है कि सरकार इस बजट में पैशन में 20% की कटौती करने जा रही है। यह खुलासा नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने प्रदेश के सामने रखा है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने व्यवस्था परिवर्तन के प्रयोग के बाद अब प्रदेश को आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि देश का अग्रणी राज्य भी अगले विधानसभा चुनावों तक बनाने की घोषणा की है। ऐसे दावों के परिदृश्य में भी यह सवाल पूछना आवश्यक हो जाता है कि यह कर्ज खर्च कहां किया जा रहा है और प्रतिमाह एक हजार करोड़ का कर्ज लेने की नौबत क्यों आयी है। क्या आने वाला बजट यह जवाब देगा की प्रतिमाह 1000 करोड़ का कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है।
शिमला/शैल। क्या कांग्रेस हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु की धर्मपत्नी श्रीमती कमलेश ठाकुर को प्रत्याशी बनाने जा रही है। यह चर्चा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह के उस ब्यान के बाद सामने आयी है जिसमें उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री ने हमीरपुर से उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की बेटी डॉ.आस्था का नाम सुझाया है और उपमुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर का नाम प्रपोज किया है। सूत्रों के मुताबिक यह दोनों हाईकमान के संज्ञान में आ चुके हैं। स्मरणीय है कि हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस एक लम्बे अरसे से हारती चली आ रही है। इस समय संयोग वश मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही आते हैं। फिर विधानसभा चुनावों में हमीरपुर जिले में भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पायी है। सत्रह विधानसभा क्षेत्रों पर आधारित इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के पांच ही विधायक हैं। कांग्रेस के पास ग्यारह और दो निर्लदलीय हैं। इस गणित में कांग्रेस के लिये सबसे आसान क्षेत्र हमीरपुर ही माना जा रहा है। मुकेश अग्निहोत्री की पत्नी के अचानक निधन से उस परिवार का सारा गणित बिगड़ गया है। इसलिये ऐसी परिस्थितियों में उस परिवार पर लोकसभा लड़ने की जिम्मेदारी डालना जायज नहीं माना जायेगा।
फिर हमीरपुर क्षेत्र से भाजपा के दो शीर्ष नेता ताल्लुक रखते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा बिलासपुर से ताल्लुक रखते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर यहां से सांसद हैं। भाजपा की ओर से अनुराग या नड्डा में से ही कोई यहां से चुनाव लड़ेगा यह तय है। ऐसे में भाजपा के इन दिग्गजों के मुकाबले में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी से बेहतर और कोई उम्मीदवार हो नहीं सकता। कमलेश ठाकुर नादौन विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय भी हो गयी हैं। बल्कि नादौन विधानसभा क्षेत्र का संचालन मुख्यमंत्री ने श्रीमती कमलेश ठाकुर को ही सौंप रखा है। स्थानीय रेस्ट हाउस सेरा उनकी गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है और यहीं से वह स्थानीय प्रशासन को निर्देशित करती हैं। इसलिये वर्तमान परिदृश्य में यदि कमलेश ठाकुर को कांग्रेस हमीरपुर से उम्मीदवार बनाती है और वह जीत जाती हैं तो मुख्यमंत्री के लिये इससे बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकती।
हिमाचल के कांग्रेस संगठन और सरकार में किस तरह का तालमेल चला हुआ है यह प्रतिभा सिंह और राजेन्द्र राणा तथा अन्य नेताओं के ब्यानों से सामने आ चुका है। इस सब की जानकारी कांग्रेस हाईकमान को भी हो चुकी है। सरकार की एक वर्ष की उपलब्धियां क्या हैं इसकी व्यवहारिक परीक्षा इन लोकसभा चुनाव में हो जायेगी। अभी बजट सत्र होने जा रहा है उसमें वित्तीय प्रबन्धन का खुलासा सामने आ जायेगा। सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन का जो प्रयोग शुरू कर रखा है उसके कितने सार्थक परिणाम जनता तक पहुंचे हैं इसका भी खुलासा यह चुनाव कर देंगे। क्योंकि सरकार की हर कारगुजारी की परीक्षा चुनाव परिणाम होते हैं। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जो स्थिति बनती जा रही है उसके परिदृश्य में कांग्रेस शासित राज्यों से हाईकमान को पूरी-पूरी सीटें जीतने की अपेक्षा होगी। उस गणित में प्रदेश सरकार और संगठन दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। क्योंकि एक वर्ष में सरकार बेरोजगार युवाओं को कुछ विशेष नहीं दे पायी है। विपक्ष और अन्य वर्गों ने जो भी सवाल एक वर्ष में उछाले हैं उनका जवाब चुनावों में व्यवस्था परिवर्तन नहीं बन पायेगा। जो परिस्थितियां इस समय बनी हुयी है उनमें विश्लेषकों के अनुसार कमलेश ठाकुर का नाम सामने लाकर मुख्यमंत्री के विरोधियों ने एक तीर से कई निशाने साधने का काम किया है क्योंकि संगठन के सक्रिय सहयोग के बिना चुनावों में सफलता कठिन हो जाती है। कर्मचारियों के कई वर्ग सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं। आम जनता को कोई राहत यह सरकार दे नहीं पायी है। केवल केन्द्र पर असहयोग के आरोप के सहारे चुनावी सफलता संभव नहीं लगती। क्योंकि सरकार ने अपने खर्चों पर कोई लगाम नही लगायी है। इस वस्तुस्थिति में मुख्यमंत्री के लिये कमलेश ठाकुर के नाम का अनुमोदन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा मण्डी से लोकसभा सांसद श्रीमती प्रतिभा सिंह ने अभी फिर कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सरकार में अनदेखी होने का दुखः सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है। उन्होंने खुलासा किया है कि पार्टी की अध्यक्षा होने के नाते वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सरकार के विभिन्न आदारों में समायोजन हेतु मुख्यमंत्री को एक सूची भी सौंपी थी जिस पर अभी तक कोई अमल नहीं हो पाया है। इसी तरह की चिन्ता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा ने व्यक्त की है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि पार्टी के चुने हुये विधायकों पर कैबिनेट रैंक की ताजपोशीयां पाये गैर विधायक भारी पड़ रहे हैं। राजेंद्र राणा ने तो एक बार फिर मुख्यमंत्री को खुला पत्र लिखकर विभिन्न चुनावी वायदों की याद दिलाई है जो आने वाले लोकसभा चुनावों में जनता द्वारा पूछे जायेंगे। कार्यकर्ताओं की अनदेखी होने का सवाल पूर्व अध्यक्ष विधायक कुलदीप राठौर भी उठा चुके हैं। यह सभी लोग संगठन से जुड़े हुये लोग हैं और इन्ही के कार्यकाल में कांग्रेस ने उपचुनाव और नगर निगम सोलन तथा पालमपुर के चुनाव कार्यकर्ताओं के सहयोग से जीते थे।
मुख्यमंत्री सुक्खु भी संगठन से निकले हुये नेता हैं। एनएसयूआई युवा कांग्रेस और फिर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तक रह चुके हैं। शायद इसी आधार पर वह मुख्यमंत्रा के लिए पहली पसन्द बने हैं। जब सुक्खु पार्टी के अध्यक्ष थे तब उनमें और मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह में गहरे मतभेद रहे हैं यह सब जानते हैं। लेकिन स्व. वीरभद्र सिंह का प्रदेश की राजनीति और जनता में जो अपना एक विशेष स्थान है उस मुकाम तक दूसरे नेताओं को पहुंचने में बड़ा वक्त लगेगा। वीरभद्र के समर्थकों की आज भी एक लम्बी लाईन है और हर नेता को जनता उसी तराजू में तोलकर उसका गुणा-भाग करके आकलन करेगी। मुख्यमंत्री सुक्खु ने भी गैर विधायकों को कार्यकर्ता होने के नाम पर ही ताजपोशियां दी हैं। लेकिन यह ताजपोशियां पाये हुये नेताओं का अपना जनाधार क्या है यह सवाल संगठन में ही उठाना शुरू हो गया है। इन नेताओं के सहारे क्या लोकसभा की कोई एक सीट जीतने का दावा किया जा सकता यह संगठन के अन्दर बड़ा सवाल बनता जा रहा है। लोकसभा चुनावों के लिये इन्हीं मजबूत बनाये गये नेताओं में से ही उम्मीदवार बनाने का सवाल खड़ा किया जा रहा है। यहां तक चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं की मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक कोई मंत्रा लोकसभा चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। जबकि कांग्रेस शासित राज्यों में तो एक भी सीट विपक्ष को नहीं जाने की स्थिति होनी चाहिये। लेकिन हिमाचल में व्यवहारिक रूप से हालात एकदम इससे उलट बनते जा रहे हैं। प्रदेश का कोई भी छोटा-बड़ा नेता केन्द्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का साहस नहीं कर पा रहा है।
इस समय जनता में जाने के लिए ‘‘सरकार गांव के द्वार’’ कार्यक्रम का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन इसके तहत अब तक जितने भी आयोजन हुये हैं। उनमें राजस्व लोक अदालतों के माध्यम से निपटाये गये इन्तकाल और तक्सीम के मामलों के आंकड़ो का ही ब्योरा परोसा जा रहा है। लाभार्थियों के नाम पर आपदा राहत और सुखाश्रय के आंकड़ों से हटकर कोई और उपलब्धि नहीं बताई जा रही है। क्या आज प्रदेश में इनसे हटकर कोई और समस्याएं आम आदमी की नहीं हैं। महंगाई और बेरोजगारी को कम करने के लिये सरकार ने क्या कदम उठाये हैं और उनसे फील्ड में कितने लोगों को लाभ मिला है इसका कोई आंकड़ा जारी नहीं हो पा रहा है। ‘‘सरकार गांव के द्वार’’ और स्कूलों द्वारा आयोजित किये जा रहे वार्षिक समारोहों के कार्यक्रमों से हटकर जनता में जाने के लिये और कोई मंच संगठन या सरकार की ओर से अभी तक सामने नहीं आ पाया है। भाजपा द्वारा उठाये जा रहे सवालों का एक ही जवाब दिया जा रहा है कि केन्द्र ने आपदा में प्रदेश की कोई मदद नहीं की है। प्रदेश के भाजपा सांसदों और विधायकों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह केन्द्र के सामने प्रदेश की आवाज उठाने के लिये सरकार के साथ खड़े नहीं हुये हैं। लेकिन भाजपा ने इस पर सरकार द्वारा लिये गये कर्ज के जो आंकड़े जारी किये हैं उनका कोई तार्किक जवाब नहीं दिया जा रहा है। यह नहीं बताया जा रहा है कि इस कर्ज को खर्च कहां किया जा रहा है।


शिमला/शैल। प्रदेश के एसएमसी शिक्षक हड़ताल पर है। ऐसे मौसम में भी शिमला में धरने पर बैठे हैं। इनकी मांग है कि इनको नियमित किया जाये। नवम्बर में जेबीटी अध्यापकों के रिक्त पदों को भरने के लिये कॉउंसलिंग हुई थी। इसके तहत 1161 पद भरे जाने थे। प्रदेश में जेबीटी के 4000 पद खाली हैं। लेकिन नवम्बर में हुई इस काउंसलिंग के परिणाम अब तक घोषित नहीं हुये हैं। अब इस वर्ग में भी रोष व्याप्त हो गया है। यह लोग भी सड़क पर आने के लिये बाध्य हो रहे हैं। शास्त्री अपना रोष व्यक्त करते हुये विरोध मार्च निकाल चुके हैं। एसएमसी के करीब 2550 अध्यापक प्रदेश में कार्यरत हैं। धूमल के शासनकाल में एसएमसी के माध्यम से यह लोग भर्ती किये थे। एसडीएम और स्कूल के प्रधानाचार्य इसका साक्षात्कार लेने वालों में शामिल रहे हैं। धूमल के बाद वीरभद्र और जयराम की सरकारें भी आकर चली गयी। लेकिन किसी ने भी इनको नियमित करने के लिये कोई कदम नहीं उठाये हैं। सुक्खु सरकार आने के बाद इनके मामले सुलझाने के लिये तीन मंत्रियों की एक कमेटी बनाकर उनसे तीन माह में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था। लेकिन सरकार को 13 माह बाद भी इस कमेटी की रिपोर्ट नहीं मिली है क्योंकि कमेटी की कोई बैठक ही नहीं हो पायी है। क्या मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना ऐसा हो सकता है।
स्मरणीय है कि सुक्खु सरकार ने विभिन्न विभागों में रिक्त पदों की जानकारी हासिल करने के लिए एक तीन मंत्रियों की कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार में कर्मचारियों के 70000 पद खाली हैं। इनमें अकेले शिक्षा विभाग में ही बीस हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। स्कूलों में अध्यापकों के रिक्त पदों के मामले हर सरकार में उच्च न्यायालय तक पहुंचे हैं और अदालत ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुये प्रशासन की निंदा भी की है। कई जगह तो अभिभावकों ने स्कूलों पर ताले तक भी लगा दिये हैं। जयराम सरकार के दौरान मण्डी में ही ऐसा घट चुका है। स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षण अभी भी शायद आउटसोर्स के माध्यम से ही चल रहा है।
शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां शिक्षकों और ड्राइवर के पद खाली रहने का संबद्ध समाज पर गंभीर असर पड़ता है। आज शिक्षा विभाग में गेस्ट शिक्षकों की भर्ती की योजना बनाई जा रही है। क्योंकि शिक्षकों की कमी है। इसी कमी के कारण एसएमसी शिक्षक भर्ती किये गये थे। जो आज आन्दोलन के लिये विवश हो गये हैं। कल को यह गैस्ट शिक्षक भी इसी मुकाम पर पहुंच जायेंगे। सरकार नियमित भर्तियां इसलिये टालती जा रही हैं क्योंकि उसके पास धन का अभाव है। लेकिन दूसरी और भाजपा शासन में अटल आदर्श विद्यालय खोले गये थे और आज उसी तर्ज में राजीव गांधी डे बोर्डिंग स्कूल घोषित किये जा रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक राजीव गांधी डे बोर्डिंग स्कूल खोलने की योजना है। इन स्कूलों को बनाने में ही करोड़ों का खर्च हो जायेगा और उससे लाभ बहुत ही कम लोगों को मिल पायेगा। जबकि इसी खर्च के साथ स्कूलों की वर्तमान दशा को सुधारा जा सकता है। शिक्षकों के सारे खाली पदों को भरा जा सकता है। लेकिन राजीव गांधी डे बोर्डिंग स्कूल और अटल आदर्श विद्यालय खोलकर अपने-अपने आकांओं को तो खुश किया जा सकता है परन्तु उससे स्कूलों की वर्तमान दशा को नही सुधारा जा सकता। इस दशा को सुधारने के लिये आम आदमी के नजरिये से सोचने की आवश्यकता है। आज एसएमसी शिक्षक धरने पर हैं और कोई भी उनसे बात करने का साहस नहीं कर पा रहा है। लेकिन आने वाले समय में इसका आकार क्या रूप ले लेगा उसकी ओर कोई भी सोच नहीं पा रहा है। जबकि हर गांव इससे प्रभावित हो रहा है।
शिमला/शैल। सुक्खु सरकार इस वर्ष पूर्ण राज्यत्व दिवस पर प्रदेश के कर्मचारियों और पैन्शनरों को कोई भी आर्थिक लाभ देने की घोषणा नहीं कर पायी है। इससे कर्मचारियों और पैन्शनरों में स्वभाविक रूप से रोष पनपना नाजायज नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यदि सरकार को प्रदेश की वित्तीय स्थिति ऐसा करने से रोक रही है तो उसे उसी अनुपात में अपने अनुत्पादक खर्चों पर रोक लगाने से शुरुआत करनी होगी। सरकारी अफसरशाही की सचिवालय में इतनी बड़ी संख्या में उपलब्धता के बावजूद एक दर्जन से अधिक सलाहकारों और विशेष कार्यधिकारियों की फौज खड़ी कर लेना अब हर आदमी को चुभने लग गया है। इसकी आवश्यकता मुख्यमंत्री को अपने विशेष कारणों से तो हो सकती है लेकिन शायद प्रदेश की जनता को नहीं है। यही स्थिति मुख्य संसदीय सचिवों की है। इन सारी नियुक्तियों के आईने में कठिन वित्तीय स्थिति का तर्क किसी के भी गले नहीं उतर रहा है।
इस समय अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भंग कर दिये जाने से प्रभावित हुये बेरोजगार युवा धरने प्रदर्शन पर आ गये हैं। संस्कृत और संस्कृति संरक्षण के बैनर तले युवा आक्रोश रैली निकाल चुके हैं। डॉक्टर एन.पी.एस. की मांग को लेकर कई दिनों से विरोध प्रदर्शन में लगे हुये हैं। सरकार अब तक उनके साथ कोई बातचीत नहीं कर पायी है। यह अपनी मांगों को लेकर कभी सड़कों पर उतर सकते हैं। ऐसा होने पर स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पडना स्वभाविक है। अब सचिवालय एवं अन्य संवद्ध पैन्शनर वैल्फेयर संगठन के प्रधान मदन लाल शर्मा और उप प्रधान भूपराम वर्मा ने एक वक्तव्य जारी करके आन्दोलन की चेतावनी दी है। इन लोगों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने 25 जनवरी, 15 अप्रैल, 15 अगस्त एवं दिवाली पर प्रदेश के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते की तीन किस्ते 12 प्रतिशत महंगाई भत्ते के साथ जारी नहीं की है। इसी के साथ संशोधित वेतनमानों का बकाया 1-1-2016 से 31-12-2021 तक जारी नहीं किया है। जबकि 2022 के बाद सेवानिवृत हुये कर्मचारियों को यह दिया जा चुका है।
इन लोगों ने मुख्यमंत्री के विधानसभा में दिये इस ब्यान की निंदा की है जिसमें कहा गया था कि यह भुगतान दो वर्ष बाद 2026 में होगा। कर्मचारी नेताओं ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपने अधीनस्थ कार्यालयों और कोषागार को निर्देश दिये हैं कि जिन केसों में उच्च न्यायालय ने 6 प्रतिशत ब्याज के साथ बकाये के भुगतान के आदेश किये हैं वह भुगतान न करके इसकी अपील की जाये। सरकार के इस फरमान पर कर्मचारियों ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल खोलने के फैसले और सरकार द्वारा अब तक 13000 करोड़ से ज्यादा कर्ज लेने पर भी गंभीर सवाल उठाये हैं। लोकसभा चुनावों से पहले उभरती यह तस्वीर सरकार के लिये घातक मानी जा रही है।