Saturday, 20 December 2025
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कांग्रेस के इस संकट के लिये कौन जिम्मेदार है? सुक्खू-बागी या हाईकमान

शिमला/शैल। हिमाचल का राजनीतिक संकट कांग्रेस प्रत्याशी की राज्यसभा चुनाव में हार से शुरू हुआ है। इस हार के बाद यह सवाल जबाव मांग रहा है कि इसके लिये जिम्मेदार कौन है। स्मरणीय है कि जब सुक्खू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और स्व.वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे कांग्रेस पार्टी कुछ चुनाव हार गयी थी। उस हार पर बतौर पार्टी अध्यक्ष सुक्खू ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये इसके लिये सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया था। सुक्खू का यह ब्यान वायरल होकर सामने आ चुका है। तब भी सरकार और संगठन में आज ही की तरह मतभेद थे। इसलिये चुनावी हार के लिये पहली जिम्मेदारी सरकार की ही रहती है। वर्तमान संकट के लिये भी पहली जम्मेदारी मुख्यमंत्री की ही बनती है। क्योंकि सरकार के कार्यों का ही प्रतिफल चुनावी हार जीत होता है। सुक्खू सरकार के गठन से लेकर आज तक के सरकार के कार्यों, फैसलों और योजनाओं का आकलन किया जाये तो सरकार के पक्ष में कुछ नहीं जाता। आगामी लोकसभा चुनाव के लिये हाईकमान द्वारा करवाये गये सर्वेक्षण में भी यही सामने आया था कि पार्टी चारों लोकसभा सीटें हार रही है। सरकार और संगठन में मतभेद मंत्रिमण्डल में क्षेत्रीय असन्तुलन तथा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन न होने की शिकायतें लगातार हाईकमान के पास पहुंचती रही लेकिन न तो हाईकमान ने इसका गंभीर संज्ञान लिया और न ही मुख्यमंत्री ने। मुख्यमंत्री अपने मित्रों की ही ताजपोशीयों में लगे रहे और जमीनी हकीकत से दूर होते चले गये।
राजनीतिक स्थितियों का समय-समय पर आकलन करना सरकार में सीआईडी का काम होता है। सरकार के बाहर यह काम मीडिया का होता है। उसमें सरकार का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विभाग प्रिंट और न्यूज़ चैनलों तथा सोशल मीडिया रिपोर्टों का आकलन करके उसे सरकार के पास रखता है। लेकिन सुक्खू सरकार ने उन पत्रकारों को अपना दुश्मन मान लिया जो पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ लिख रहे थे। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर चाटुकारों से घिर कर रह गये और आज सरकार जाने के कगार पर पहुंच गयी। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से चार कांग्रेस के विधायक और एक निर्दलीय भाजपा के पक्ष में वोट डाल गये और सरकार के तन्त्र को इसकी पूर्ण जानकारी ही नहीं हो पायी। शैल ने इस क्रॉसवोटिंग के बारे में समय रहते लिख दिया था। ऐसे में इस हार के लिये मुख्यमंत्री के एक दर्जन से ज्यादा सलाहकार और सरकारी तन्त्र ही जिम्मेदार है। आज तो चर्चा यहां तक पहुंच गयी है कि या तो इन लोगों की निष्ठाएं संदिग्ध हैं या फिर इनमें योग्यता की कमी है। अन्यथा यह संकट इतना बड़ा नहीं था और न ही है जिसका हल न निकल सके।
इस समय सरकार टूटने के कगार पर पहुंच चुकी है। छः विधायकों के निष्कासन ने इस पर मोहर लगा दी है। क्योंकि यदि निष्कासन का फैसला अदालत में पलट जाता है तो यह बागियों की पहली जीत है और उसके बाद नेतृत्व परिवर्तन का सवाल और गंभीर हो जायेगा। अन्यथा इन निष्कासितों की सीटों पर लोकसभा चुनाव के साथ चुनाव हो जायेंगे। इन चुनावों में कांग्रेस फिर यह छः सीटें जीत जायेगी इसकी वर्तमान परिदृश्य में कोई भी संभावना नही है। यह सीटें भाजपा के पक्ष में जायेंगी और फिर दोनों साईड 34-34 की स्थिति होगी। जबकि सरकार बनाने के लिये 35 की संख्या चाहिये। इसमें स्पीकर को मतदान का अधिकार नहीं होता। उस स्थिति में कांग्रेस की संख्या 33 ही रह जायेगी और तब भी सुक्खू सरकार सत्ता में नही रह पायेगी।

क्या सुक्खू सरकार युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रही है?

  • अनुबन्ध का विकल्प तलाशने से उठी चर्चा

शिमला/शैल। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान जो दस गारंटीयां जनता को दी थी उनमें से एक युवाओं को रोजगार देने की थी। सरकार ने इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए तीन मंत्रियों की एक कमेटी बनाकर सरकार में खाली पदों की जानकारी हासिल करने का प्रयास किया था। इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार में 70,000 पद खाली होने की जानकारी आयी थी। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश में 185698 पद नियमित 5726 अंशकालिक और 4593 दैनिक वेतन भोगी है। तदर्थ और अनुबन्ध आदि की जानकारी सर्वेक्षण में नहीं दी गयी है ऐसा क्यों है इसका कोई कारण नहीं बताया गया है। सरकार में 70,000 पद खाली होने से युवाओं में नौकरी मिलने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन विधानसभा के इस बजट सत्र में जिस भी विधायक ने यह जानकारी मांगी है कि 15-01-24 तक सरकार कितने लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा पायी है तो इसमें ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ का ही जवाब आया है। सरकार इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दे पा रही है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल सरकार ने एक समय अनुबन्ध के आधार पर सरकारी नौकरी देने का नियम बनाया था। एक तय समय अवधि के बाद ऐसे नियुक्त हुये कर्मचारी नियमित हो जाते थे। लेकिन इन्हें पूरे सेवा लाभ नहीं मिल पाते थे और यह सरकार की बचत होती थी। परन्तु पिछले दिनों तीन कान्ट्रेक्ट के अलग-अलग मामलों में यह व्यवस्था दी है कि कान्ट्रेक्ट काल सारे सेवा लाभों पदोन्नति और पैन्शन आदि में गणना में आयेगा तो उससे सरकार के लिये कठिनाई बढ़ी है। बल्कि कान्ट्रेक्ट की जगह नियमित नौकरी देने को ही बेहतर माना जा रहा है।
इस समय सरकार की जो स्थिति चल रही है उसमें प्रदेश की वरिष्ठ नौकरशाही ने कान्ट्रेक्ट का विकल्प तलाशने के लिये मुख्य सचिव की अध्यक्षता में छः फरवरी को एक बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में अठारह वरिष्ठ नौकरशाहों ने भाग लिया। इस बैठक में अदालती आदेशों की अनुपालना करने से बढ़ने वाले आर्थिक बोझ से बचने के लिए गुजरात मॉडल अपनाने पर चर्चा की गई। इसमें प्रधान सचिव कार्मिक को गुजरात मॉडल का अध्ययन करने और उसकी कानूनी स्थिति जांचने की जिम्मेदारी दी गई है। अफसरशाही के इस प्रयास का सीधा सा अर्थ है कि सरकार नौकरी देने के लिये ऐसी व्यवस्था लाना चाहती है जिसमें वित्तीय बोझ कम से कम पड़े। दूसरे शब्दों में अब सरकार ऐसी व्यवस्था लाना चाहती है जिसमें सरकार पर कोई बाध्यता न पड़े। कहने के लिये तो सरकारी नौकरी हो परन्तु व्यवहार में नहीं। सरकार के इस प्रयास का बेरोजगार युवाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका पता आने वाले समय में चल जाएगा।

 

  • यह तय हुआ है अफसरशाही की बैठक में।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कांग्रेस को सीटें जीतने के लिये मंत्रियों या उनके परिजनों को चुनाव में लड़वाना होगा

  • मंत्रियों के चुनाव लड़ने से उनको सरकार की लोकप्रियता का पता चल जायेगा
  • गारंटीयों पर सरकार के दावों की परीक्षा होंगे यह चुनाव
  • व्यवस्था परिवर्तन पर जनता की प्रतिक्रिया की व्यवहारिक जानकारी होंगे यह चुनाव

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस चुनावी सर्वेक्षण के आधार पर लोकसभा उम्मीदवारों का चयन करेगी यह कहना है प्रदेश के लिये नियुक्त स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री भगत चरण दास का। सभी दल प्रायः इसी सिद्धान्त पर उम्मीदवारों का चयन करते हैं। स्मरणीय है कि सर्वे इस संबंध में पहले भी हो चुका है और उसके अनुसार सीटों पर पार्टी की हालत कमजोर पायी गई है। अभी राज्यसभा की भी एक सीट के लिये एक सर्वेक्षण चर्चा में आया है जिसके मुताबिक भाजपा की जीत 67 प्रतिशत और कांग्रेस की 33 प्रतिशत आंकी की गई है जबकि कांग्रेस की सरकार है। जब कोई पार्टी सरकार में होती है और तब चुनावी सर्वेक्षण होता है तो उसमें सरकार की परफारमैन्स सरकार और संगठन में तालमेल और जनता में बन रही छवि मुख्य आधार रहते हैं। राज्य में सरकार होने की स्थिति में पार्टी की राष्ट्रीय नीतियां बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रहती है क्योंकि आम आदमी वक्त की सरकार से ज्यादा प्रभावित रहता है। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होती है तब यह भी देखा जाता है कि प्रदेश की सरकार में से केन्द्र की सरकार की नीतियों पर कितनी आक्रमकता अपनायी गयी है।
सर्वेक्षण के इन मानकों पर यदि प्रदेश की सरकार का आकलन किया जाये तो सबसे पहले और बड़ा बिन्दु यह आता है कि सुक्खू सरकार के एक भी आचरण से आज तक यह लक्षित नहीं हुआ है कि प्रदेश में कोई अलग सरकार है। शासन तक में ट्रांसफर तक हुए जब चुनाव आयोग ने एक स्थान पर तीन साल पूरे कर चुके अधिकारियों को बदलने के आदेश दिये। एक तरह से पक्ष और विपक्ष रस्म अदायगीयों की औपचारिकताओं से आगे नहीं बढ़े हैं। जब सरकार अपनी ही पार्टी द्वारा चुनावों में सार्वजनिक रूप से जारी किये गये आरोप पत्र पर कोई कारवाई न कर पाये तो उसका चुनावी आकलन क्या किया जायेगा। कांग्रेस ने चुनावों के दौरान दस गारंटीयां जारी की थी उनकी पूर्ति के लिये सरकार ने क्या व्यवहारिक कदम उठाये हैं और क्या उपलब्धियां इसका राज्यपाल के अभिभाषण तक में कोई ठोस जिक्र नहीं है। अभी उपलब्धियों का जो विज्ञापन जारी किया जा गया है उसमें भी गारंटीयों का कोई उल्लेख नहीं है। आज इन गारंटीयों को लेकर कांग्रेस के अपने ही विधायक विधानसभा के अन्दर न केवल सवाल ही पूछ रहे हैं बल्कि खुला पत्र लिखने की नौबत तक पहुंच गये हैं।
शिखर सम्मेलन में विदेशी मेहमानों के लिये राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भोज में केवल हिमाचल के ही मुख्यमंत्री शामिल हुये थे बाकी कांग्रेसी मुख्यमंत्री इससे बाहर रहे थे। अब राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर भी हिमाचल सरकार ने ही सार्वजनिक अवकाश घोषित किया और इसके तीन नेता इसमें शामिल हुये। आने वाला लोकसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस में गंभीर आरोपों -प्रत्यारोपों का अखाड़ा होगा। इसमें हिमाचल कांग्रेस के नेता किस मुंह से मोदी सरकार के खिलाफ कुछ भी बोल पायेंगे। सरकार और संगठन में तालमेल की क्या स्थिति है इसको लेकर समय-समय पर प्रदेश अध्यक्षा के ब्यान ही अपने में बड़े प्रमाण हैं। कर्मचारियों के कितने वर्ग धरने प्रदर्शनों के लिये मजबूर हो चुके हैं यह सबके सामने है। इस वस्तु स्थिति में होने वाले चुनावी सर्वे के परिणाम क्या होंगे इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। आज स्थिति पार्टी में पदाधिकारी के त्यागपत्रों तक पहुंच गई है। हाईकमान के आचरण से भी यही झलक रहा है कि उसके लिए मुख्यमंत्री के दावे ही अन्तिम सच हैं या उसने हिमाचल को उसके हाल पर ही छोड़ दिया है। जबकि भाजपा इस चुनाव में साम-दाम-दण्ड और भेद के सारे सूत्र एक प्रयोग करके चल रही है। आने वाले दिनों में यदि कुछ मंत्रियों के खिलाफ भी सनसनी खेज दस्तावेजी खुलासे सामने आ जायें तो कोई हैरानी नहीं होगी।
इस समय यदि हाईकमान प्रदेश और लोकसभा चुनाव के लिये गंभीर है तो उसे चारों सीटों से किसी न किसी मंत्री को ही चुनाव में उतरना चाहिये। इससे पार्टी के प्रति इन लोगों की निष्ठाओं से ज्यादा इनकी परफारमैन्स का भी टेस्ट हो जायेगा। क्योंकि सरकार के दावों का फील्ड में व्यवहारिक सच क्या है और व्यवस्था परिवर्तन के जुमले पर आम आदमी की प्रतिक्रिया क्या है इसका इनको प्रत्यक्ष ज्ञान हो जायेगा। इस समय हमीरपुर लोकसभा सीट पर लम्बे अरसे से कांग्रेस हारती चली आ रही है। आज मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों इसी हमीरपुर क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इसलिये इस सीट से मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी से ज्यादा प्रभावी उम्मीदवार कौन हो सकता है। फिर सरकार और मुख्यमंत्री के दावों की व्यवहारिक परीक्षा भी हो जायेगी। यही नहीं कमलेश ठाकुर के प्रत्याशी बनने से प्रदेश के चुनाव में गंभीरता भी आ जायेगी। चारों सीटों पर इसी तरह का प्रयोग किया जाना चाहिये अन्यथा प्रदेश से कोई भी सीट कांग्रेस को मिल पाना संभव नहीं होगा।

कर्ज का भार बढ़ायेगा यह बजट

  • ‘‘28 पैसे विकास के लिये’’ के अनुसार 16364.32 करोड़ का प्रावधान चाहिये था
  • लेकिन विकासात्मक बजट केवल 9989.49 करोड़ ही रखा गया है।
  • जब वेतन पर पिछले वर्ष के मुकाबले कम प्रावधान है तो नयी सरकारी नौकरियां कैसे संभव होगी?

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपना दूसरा बजट सदन में रखा है। वर्ष 2024-25 के इस बजट का आकार 58444 करोड़ है। इसमें मुख्यमंत्री ने सात नयी योजनाएं और तीन नयी नीतियां लाने की घोषणा की है। 58444 करोड़ के इस बजट में 42153 करोड़ की राजस्व प्राप्तियां और 46667 करोड़ राजस्व व्यय होने का अनुमान है। वर्ष के अन्त में राजकोषीय घाटा 10784 करोड़ रहने का अनुमान है। इसके खर्च का ब्योरा इस प्रकार रहने वाला है। 100 रूपये के कुल खर्च में 25 रूपये वेतन पर 17 रूपये पैन्शन, ब्याज अदायीगी पर 11 रूपये, ऋण की वापसी पर 9 रूपये, स्वायत्त संस्थानों की ग्रांट पर 10 रूपये, 28 रूपये पूंजीगत कार्यों पर खर्च होंगे। 42153 करोड़ की राजस्व प्राप्तियां में राज्य से 18739.39 करोड़, केंद्रीय प्राप्तियां से 18141.47 करोड़, केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत अनुदान से 5272.22 करोड़ प्राप्त होंगे। पूंजीगत प्राप्तियां 12786.66 करोड़ होंगी। जिसमें 12759.11 करोड़ ब्याज मुक्त ऋण होगा। राज्य का कुल राजस्व 15100.69 करोड़ और गैर राजस्व 3638.70 करोड़ रहेगा। पिछले वर्ष का राजस्व 13025.97 करोड़ और गैर कर राजस्व 3447.01 करोड़ था। इस तरह पिछले वर्ष के मुकाबले 2266.61 करोड़ का कर और गैर कर राजस्व इस वर्ष बढ़ा है। यह बढ़ौतरी वर्ष में विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के दामों में की गयी वृद्धि का परिणाम है।
वर्ष 2023-24 के लिये जो 10307.59 करोड़ की अनुपूरक मांगे लायी गयी है उसके बाद वर्ष का राजस्व घाटा 5480 करोड़ रहने का अनुमान है। जबकि 2023-24 के बजट अनुमान सदन में रखते हुये यह घाटा 4704.1 2 करोड़ रहने का अनुमान था और राजकोषीय घाटा 9900.14 करोड़ आंका गया था। इस वर्ष का विकासात्मक बजट 9989.49 करोड़ रखा गया है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक 2022-23 का सकल ऋण 76650.70 करोड़ दिखाया गया है। वर्ष 2023-24 का आर्थिक सर्वेक्षण भी सदन में रख दिया गया है। जिसके मुताबिक प्रति व्यक्ति आय 2,35,199 आंकी गयी है। इसी तरह प्रति व्यक्ति कर्ज का आंकड़ा 1,18,000 रूपये हैं। पिछले वर्ष वेतन पर खर्च 26.40 खर्च रखा गया था जो इस बार 25 रह गया। मुख्यमंत्री के बजट भाषण के अनुसार 28 पैसे पूंजीगतकार्यों पर खर्च होंगे। पूंजीगत खर्च विकासात्मक खर्च माना जाता है। 28 पैसे विकास पर खर्च होने का अर्थ है की 58444 करोड़ में से 16,364.32 करोड़ विकास पर खर्च होने चाहिये जबकि विकासात्मक बजट केवल 9989.49 करोड़ है। यह अन्तर क्यों है इसकी कोई व्याख्या दस्तावेजों में नहीं है।
बजट के इन आंकड़ों के परिदृश्य में यदि मुख्यमंत्री द्वारा की गयी घोषणाओं को देखा जाये तो यह लगता है कि बजट तैयार करने वालों ने घोषणाएं तो करवा दी हैं लेकिन उनका पूरा करने के सक्षम बजट प्रावधान नहीं रखे गये हैं। सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि उसे हर माह एक हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है। और इसके लिये वाकायदा आरटीआई के माध्यम से आंकड़े जारी करके इसको प्रमाणित भी किया गया है लेकिन बजट में इसका कोई उल्लेख या स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पिछले वर्ष के मुकाबले जब इस वर्ष वेतन अदायगी के लिये कम प्रावधान किया गया है तो क्या इससे यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि इस वर्ष में सरकार नयी नौकरियां नहीं दे पायेगी। बजट दस्तावेजों के मुताबिक 72 पैसे प्रतिबद्ध खर्चों के लिये हैं और 28 पैसे विकास के लिये के अनुसार 16364.32 करोड़ होनी चाहिये थे लेकिन विकास के लिये तो बजट में केवल 9989.49 करोड़ का ही प्रावधान है। क्या इस अंतर को कर्ज लेकर पूरा किया जायेगा? इसी तरह बजट दस्तावेजों से यह स्पष्ट हो जाता है कि इससे कर्ज का भार और बढ़ेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कौन होगा राज्यसभा का अगला उम्मीदवार आशा या कौल सिंह

शिमला/शैल। हिमाचल से राज्यसभा में कौन जायेगा यह मुद्दा सुक्खू सरकार और संगठन के लिये एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है। क्योंकि मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्षा दोनों ने ही इसके लिये सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के नाम का प्रस्ताव हाईकमान को दिया था। अब जब सोनिया गांधी का राजस्थान से उम्मीदवार होना लगभग तय माना जा रहा है तो स्वभाविक है कि प्रियंका गांधी उन्हीं की सीट से लोकसभा में जाना पसन्द करेंगी। प्रियंका राज्यसभा के माध्यम से संसद में जाने का रास्ता नहीं चुनेंगी। ऐसे में राज्यसभा के लिये प्रदेश से ही किसी का चयन होगा।
इस समय सरकार और संगठन में किस तरह का तालमेल चल रहा है यह जगजाहिर है। विधानसभा चुनावों में जो गारंटीयां दी गयी थी उनकी व्यवहारिक स्थिति भी सामने है। कर्मचारियों के कई वर्ग सरकार से नाराज होकर धरने प्रदर्शनों पर उतर आये हैं। युवाओं को नौकरी के वादे की जगह आउटसोर्स कर्मचारीयों को निकाल कर स्थिति और जटिल हो गयी है। जब से पैन्शन में 20% कटौती किये जाने की संभावना का खुलासा नेता प्रतिपक्ष ने किया है उससे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गयी हैं। ऐसी वस्तुस्थिति में राज्यसभा के लिये प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं ठाकुर कौल सिंह या आशा कुमारी जैसों में से ही किसी एक को राज्यसभा में भेज कर राजनीतिक संतुलन बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। क्योंकि अभी तक जितने लोगों को इस सरकार में ताजपोशियां मिली हैं उनकी मेरिट मुख्यमंत्री से मैत्री से अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ऐसे में राज्यसभा इस समय एक ऐसा अवसर है जिसके माध्यम से प्रदेश में संतुलन बनाया जा सकता है। यदि आनन्द शर्मा को हाईकमान अनुमोदित नहीं करती है तो आशा और कौल सिंह में से किसी एक को यह अवसर मिलना चाहिए।

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