Friday, 19 September 2025
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क्या प्रदेश सरकार का राम मय होना चुनावी लाभ दे पायेगा?

  • एक मंत्री और दो विधायकों का अयोध्या जाना किसी बड़ी राजनीति का संकेत है
  • क्या ई.डी. के एजैण्डे पर हिमाचल सरकार आ गई है

शिमला/शैल। हिमाचल के सुक्खु सरकार ने राम मन्दिर के प्राण प्रतिष्ठा अवसर पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया था। इस अवसर पर सुक्खु के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह अयोध्या इस आयोजन में शामिल होने भी गये थे। विधायक सुधीर शर्मा और चैतन्य शर्मा भी इस आयोजन में शामिल रहे हैं। इस आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री सुक्खु और कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और दूसरे मंत्रियों और नेताओं के जिस तर्ज में इस आयोजन पर ब्यान रहे हैं उससे लगता था कि हिमाचल की पूरी सरकार इस मौके पर अयोध्या होगी। लेकिन शायद जब केन्द्र में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस आयोजन को संघ/भाजपा का आयोजन करार देकर इसमें शामिल होने से मना कर दिया तब हिमाचल सरकार ने भी अपना फैसला बदला। फिर भी इस कार्यक्रम से अपने मानसिक जुड़ाव को प्रदर्शित करते हुये इस अवसर पर जो योजनाएं और कार्यक्रम घोषित कर सकते थे वह सब कुछ किया है। राज्य सरकार और उसके नेताओं के इस आचरण का विपक्षी एकता के गठबंधन ‘‘इन्डिया’’ पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका पता तो आने वाले दोनों में चलेगा। कांग्रेस हाईकमान भी इस सबको कैसे लेती है यह देखना भी दिलचस्प होगा।
अभी लोकसभा के चुनाव शायद अप्रैल में होने जा रहे हैं। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार होने के नाते कितनी सीटों पर पार्टी जीत हासिल कर पाती है यह सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
इस समय सुक्खु सरकार की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। सरकार को हर माह एक हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज लेना पड़ रहा है। जो सरकार विधायक विकास निधि का भुगतान विधायकों को न कर पायी हो। कुछ निगमो/बोर्डों के कर्मचारीयों को समय पर वेतन और पैन्शन का भुगतान न कर पा रही हो। जिसे पत्रकारों के मकानों का किराया पांच गुना बढ़ाना पड़ा हो। जो संशोधित वेतनमानों के बकाये का भुगतान न कर पायी हो उसके विकास संबंधी दावों और अन्य घोषणाओं पर कितना विश्वास कोई कर पायेगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। इस परिदृश्य में सरकार और उसके नेताओं के आचरण को लेकर राजनीतिक अटकलें लगाया जाना स्वभाविक हो जाता है। क्योंकि केन्द्र की सरकार पर अपनी जांच एजैन्सियों ई.डी.,सी.बी.आई. और आयकर आदि के इस्तेमाल से राज्य सरकारों में दखल देने के आरोप पहले दिन से ही लगते आये हैं। फिर संयोगवश हिमाचल सरकार के कई मंत्री और दूसरे नेता ठेकेदारी/बिल्डरों की भूमिका से ताल्लुक रखते हैं। फिर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार से वैसे ही मनोबल गिरा हुआ है। ऊपर से सरकार के सिर पर गारंटीयों की ऐसी तलवार लटकी हुई है जिसका कोई समाधान सामने नहीं है। फिर व्यवस्था परिवर्तन के जुमले से जनता को और अंधेरे में रख पाना संभव नहीं होगा। स्थिति यहां तक पहुंच जायेगी की नेता अपनी ही जनता का सामना नहीं कर पायेंगे। चुनावों में हर दावे और योजना की सच्चाई सामने आ जायेगी।
फिर इस समय हिन्दी पट्टी में कांग्रेस के पास केवल हिमाचल की ही सरकार बची हुई है। इस सरकार को ढोये रखना जहां कांग्रेस की आवश्यकता है तो इस गणित में सरकार को अस्थिर करना भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता है। इसके लिये ठेकेदार और बिल्डर पृष्ठभूमि के नेताओं को साधने के लिये ई.डी. से बड़ा हथियार और क्या हो सकता है। विश्लेष्कांे के मुताबिक जब पत्र बम्ब संस्कृति के तहत कुछ पत्र जारी हुये थे उनसे ई.डी. के दखल की जमीन तैयार की गई थी। इसमें कुछ शीर्ष अफसरशाहों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्हीं के सहयोग से कांग्रेस के कुछ विधायक मंत्री और दूसरे नेता केन्द्रीय एजैन्सियों के राडार पर चल रहे हैं। राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री सुक्खु अभी भी राजनीतिक असन्तुलन के लग रहे आरोपों को साधने के लिये कोई गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। कर्मठ कार्यकर्त्ताओं को अभी सरकार में कोई समायोजन नहीं मिल रहा है। इसी परिदृश्य में जब मार्च में मुख्य संसदीय सचिवों को लेकर उच्च न्यायालय का फैसला आयेगा तब राजनीतिक समीकरण और गड़बड़ायेंगे। अभी तक सरकार की योजनाओं को लेकर कोई सवाल नहीं उठे हैं। लेकिन जब इन योजनाओं की व्यवहारिकता पर सवाल उठेंगे तब पता चलेगा कि जमीनी हकीकत क्या है। इस समय यह सरकार अपने की भार से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच चुकी है। क्योंकि चुनावों में यह आंकड़े सामने रखने होंगे कि कितने लोगों को स्थाई रोजगार मिल पाया है? कितने युवा सोलर यूनिट लगा पाये हैं? कितने युवाओं को ई-टैक्सी योजना में उपदान मिल पाया है? सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिये आम आदमी पर महंगाई का बोझ डाले बिना क्या उपाय किये हैं। कठिन वित्तिय स्थिति के चलते अपने खर्चे कितने काम किये हैं? कर्ज के खर्च का ब्योरा भी इन्हीं चुनावों में पूछा जायेगा। इसलिये माना जा रहा है कि इस दौरान सरकार को लेकर अवश्य कुछ घटेगा। क्योंकि सरकार और संगठन दोनों ही मोदी सरकार पर तथा भाजपा संघ पर मौन साधे चले हुये हैं। यह मौन ही आने वाले घटनाक्रम का एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।

 

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