

शिमला/शैल। हमीरपुर लोकसभा सीट पर लम्बे अरसे से भाजपा का कब्जा चला आ रहा है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर वहां से भाजपा सांसद हैं। अनुराग ठाकुर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्रखर और मुखर आलोचकों में गिने जाते हैं। इस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और इसके मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर के नादौन क्षेत्र से आते हैं। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ऊना के हरोली क्षेत्र से आते हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में हमीरपुर से भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। लेकिन अब जो राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में बगावत उभरी उसका केन्द्र भी हमीरपुर और ऊना जिले ही रहे हैं। दोनों जिलों में कांग्रेस के दो-दो विधायकों ने राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग करके बगावत को अंजाम दे दिया। हमीरपुर में तो निर्दलीय विधायक ने भी राज्यसभा में कांग्रेस के खिलाफ वोट कर दिया। इस क्रॉस वोटिंग के कारण राज्यसभा में मिली हार के बाद कांग्रेस के यह चारों विधायक दल-बदल कानून के तहत निष्कासित हो गये हैं। यह सब भाजपा में शामिल हो गये हैं भाजपा ने कांग्रेस के सभी बागियों को उपचुनाव में अपना उम्मीदवार भी नामजद कर दिया है।शिमला/शैल। कांग्रेस ने भाजपा की कंगणा रणौत के मुकाबले लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह को मण्डी से लोकसभा प्रत्याशी बनाया है। कंगणा एक स्थापित सिने तारिका है और मण्डी से ही आती है। कंगणा का परिवार भी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला है लेकिन विक्रमादित्य सिंह की राजनीतिक विरासत कंगणा ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य राजनेताओं से भी भारी है। विक्रमादित्य प्रदेश के छः बार मुख्यमंत्री रहे और स्व वीरभद्र सिंह और मण्डी की वर्तमान सांसद प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा प्रतिभा सिंह के बेटे हैं। कंगणा पहली बार राजनीति में प्रवेश ले रही है जबकि विक्रमादित्य सिंह दूसरी बार विधायक बनकर इस बार मंत्री भी बन गये हैं। शैक्षणिक योग्यता में भी विक्रमादित्य कंगणा पर भारी है। क्योंकि कंगणा ज्यादातर तारिकाओं की तरह स्कूल से आगे नहीं गयी है। कंगणा का सारा ज्ञान सिने पाठशाला में पढ़े और भोगे पाठों पर आधारित है और उसी के आधार पर वह सफलता के मुकाम पर पहुंची है। जबकि विक्रमादित्य सिंह की शिक्षा दीक्षा विश्वविद्यालय के प्रांगण से बाहर राजनीति की व्यवहारिक जमीन पर भी हुई है। इसलिये व्यावहारिक तौर पर विक्रमादित्य सिंह चुनावी प्रांगण में निश्चित रूप से अपने प्रतिद्वन्दीयों से कहीं भारी है। लेकिन क्या चुनाव राजनीतिक और आर्थिक समझ के मानकों पर लड़ा जायेगा? शायद नहीं। यह चुनाव शह और मात की विरासत पर लड़ा जायेगा क्योंकि यह कोई धर्म युद्ध नहीं है। विक्रमादित्य भविष्य के नेता है और यह चुनाव जीतने के बाद वह स्थापित भी हो जायेंगे । यह स्थापित होना ही उन्हें कई अपनों और प्ररायों के लिये प्रतिद्वन्दी बना देगा। इस समय भाजपा ने इस चुनाव की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष जयराम को सौंप रखी है। इसलिये मण्डी में नाराज चल रहे नेताओं को मनाने जयराम उनके घरों तक दस्तक दे रहे है। इसी के साथ जयराम ने प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य को लेकर बागी विधायकों के सन्द्धर्भ में जो यह ब्यान दिया था कि पहले इन लोगों ने बागीयों को ब्यान देकर उकसाया और बाद में पलट गये । जयराम के अतिरिक्त भाजपा के और नेताओं ने भी इस ब्यान को दोहराया है। कंगणा रणौत ने भी यह दोहराया है कि विक्रमादित्य भाजपा मुख्यालय के चक्कर लगाते रहे है। जयराम ने यह भी कहा है कि विक्रमादित्य के चुनाव लड़ने पर वह और भी खुलासा करेंगे। जयराम और भाजपा के इन संकेतों से स्पष्ट हो जाता है कि वह इस चुनाव में प्रतिभा और विक्रमादित्य को खलनायक प्रमाणित करना चाहते है। यह शुरू से ही माना जा रहा था की मण्डी लोस चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी अन्ततः हॉलीलॉज पर ही आयेगी। राज्यसभा प्रकरण पर भी पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट में कांग्रेस के संकट के लिये जिस तरह से प्रतिभा - विक्रमादित्य को जिम्मेदार ठहराने को प्रचारित और प्रसारित किया गया था उसके पीछे भी विश्लेष्कांे को एक तय एजैन्डा नजर आया था। अब उस एजैन्डे को जयराम और भाजपा के माध्यम से आगे बढ़ाये जाने की पूरी पूरी संभावना है। क्योंकि जयराम के ब्यानों का अभी तक किसी भी कांग्रेस नेता ने कोई जवाब नहीं दिया है। ऐसे में इस चुनाव में विक्रमादित्य सिंह स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के संपर्कों को कितना और कैसे भुना पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि भाजपा और जयराम की यह राजनीतिक आवश्यकता बनती जा रही है कि वह इन्हीं चुनाव के दौरान सरकार को गिराने में सफल हो जाये। मण्डी का चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस होने के स्थान पर अपरोक्ष में जयराम के माध्यम से कांग्रेस का आपसी स्कोर सैटल करने का मैदान बनता नजर आ रहा है क्योंकि सरकार के पक्ष में उपलब्धियों के नाम पर धरातल पर कुछ नहीं है।
शिमला/शैल। सरकार के हर वर्ग के कर्मचारी/अधिकारी अपने सेवा स्थान पर सरकारी आवास पाने के पात्र हैं। यह सुविधा प्राप्त करने की शर्त है कि संबंधित अधिकारी कर्मचारी के पास सेवा स्थान पर अपने नाम या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम पर कोई आवास नहीं होना चाहिए। आवास आवंटन के समय इस आश्य की जानकारी एक स्व हस्ताक्षरित प्रपत्र पर ली जाती है। यदि यह जानकारी किसी भी समय गलत पायी जाये तो संबंधित अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ नियमानुसार कारवाई की जाती है। लेकिन क्या ऐसी कारवाई करने के लिये मामला संज्ञान में आने के बाद छः माह से भी अधिक का समय लग जाना चाहिये। जबकि मामला मुख्य सचिव के भी संज्ञान में हो और संबंधित विभागों के प्रभारी मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हो। यह स्थिति प्रशासन को लेकर ऐसे सवाल खड़े कर देती है जिसमें प्रशासन की नीयत और नीति दोनों कटघरे में आ जाते हैं।
स्मरणीय है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य अभियंता पी.सी. गुप्ता को 2022 में आवास आबंटित हुआ था और उन्होंने 3-3-2022 को इसका कब्जा भी ले लिया था। इससे पहले यही आवाज उनकी पत्नी डॉ. रचना गुप्ता के नाम पर आबंटित था। डॉ. गुप्ता लोक सेवा आयोग में सदस्य थीं जिन्हें आयोग का अध्यक्ष बनाने की अधिसूचना भी जारी हो गयी थी। लेकिन डॉ. गुप्ता ने अपने निजी कारणों से अध्यक्ष पद सरकार नहीं किया और सदस्य के रूप में ही आयोग से सेवानिवृत हो गयी। इस सेवानिवृत्ति के कारण उन्हें सरकारी आवास छोड़ना था। परंतु उनके पति के नाम पर कोई सरकारी आवास नहीं था और सरकार ने उन्हें वही मकान आबंटित कर दिया जो उनकी पत्नी के नाम था। नियम ऐसे आबंटन की अनुमति देते हैं। यक आबंटन लेते समय पी.सी. गुप्ता को लिखित में विभाग को यह सूचित करना पड़ा की उनके अपने नाम या परिवार के किसी सदस्य के नाम शिमला में अपना कोई भवन नहीं है। लेकिन किसी देवाशीष ने उनके खिलाफ यह शिकायत कर दी की पी.सी. गुप्ता के नाम पर तो शिमला में भवन है।
यह शिकायत आने पर पी.सी. गुप्ता से फिर उनके नाम भवन होने की जानकारी मांगी गयी। इस पर पी.सी. गुप्ता ने जानकारी देते हुये स्वीकार किया कि उनके नाम पंथाघाटी शिमला में मकान है जो 1-9-21 से उन्होंने 61040 रुपये मासिक किराया पर दे रखा है। गुप्ता की इस सवीकारोक्ति के बाद विभाग को उनके खिलाफ तुरंत प्रभाव से नियमानुसार कारवाई करनी थी। लेकिन अक्तूबर 2023 से अब तक यह कारवाई पत्राचार के स्तर से आगे नहीं बढ़ी है। आम कर्मचारियों और अधिकारियों में इन दिनों यह चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसमें ‘‘समर्थ को नहीं दोस्त गोसाईं’’ की कहावत ही चरितार्थ होगी।
