Saturday, 20 December 2025
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क्या बाली का पत्र परोक्ष में बागियों के मुद्दों को समर्थन दे गया?

  • पहले स्व. जी.एस.बाली और अब आर.एस.बाली द्वारा रोजगार यात्राएं निकालने से प्रमाणित हो जाता है कि बेरोजगारी प्रदेश का बड़ा मुद्दा है
  • बेरोजगारी की ही बात राजेंद्र राणा और दूसरे बागी कर रहे थे
शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक कांगड़ा और हमीरपुर के लोकसभा क्षेत्र तथा छः विधानसभा उपचुनावों के लिये उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पायी है। कांगड़ा से नगरोटा-बगवां के विधायक आर.एस.बाली का नाम भी संभावितों के रूप में मीडिया चर्चा में आया और इसी चर्चा को आधार बनाकर बाली ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम एक पत्र लिख दिया। यह पत्र भी मीडिया में चर्चा में आ गया। बाली ने इस पत्र में पार्टी के लिये उनके योगदान का उल्लेख करते हुये अपने स्व. पिता श्री जी.एस.बाली द्वारा 2012 में बेरोजगार यात्रा शुरू करने का जिक्र उठाया है। दावा किया है कि इसी रोजगार यात्रा से कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता में वापसी हुई। इसी रोजगार यात्रा को उन्होंने भी शुरू किया दो माह में लम्बी यात्रा करने के बाद नगरोटा-बगवां में एक विशाल चुनावी रैली में इसका समापन हुआ। बाली ने दावा किया है कि जिन-जिन क्षेत्रों से होकर यह यात्रा गुजरी है वहां पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। बाली बेरोजगारी को प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा मानते हैं। बाली के मुताबिक इसीलिए सुक्खू सरकार ने पांच लाख युवाओं को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। बाली ने अन्य विकास कार्यों के साथ अपने चुनाव क्षेत्र में पांच हजार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा है। क्षेत्र के लोगों ने उन्हें भारी मतों से विजयी बनाकर विधायक बनाया है। इसलिये उनकी पहली प्राथमिकता विधानसभा चुनाव क्षेत्र है। उन्हें कोई और जिम्मेदारी सौंपने के लिये क्षेत्र के लोगों की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है। बाली के पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। एक विधायक के नाते बाली का यह पत्र लिखना एकदम जायज है।
बाली मानते हैं कि प्रदेश में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। सुक्खू सरकार ने पांच लाख को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। बाली ने भी पांच हजार को अपने चुनाव क्षेत्र में रोजगार देने का वायदा किया है। बाली इस समय कैबिनेट रैंक में पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी संभाले हुये हैं। मुख्यमंत्री के विश्वस्तों में गिने जाते हैं। लेकिन बाली यह नहीं बता पाये हैं कि सरकार के पन्द्रह माह के कार्यकाल में वह और सरकार कितना रोजगार दे पाये हैं। जिस बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर स्व. जी.एस.बाली और फिर आर.एस.बाली ने भी रोजगार यात्राएं निकाली तो उसी मुद्दे पर सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा का चिन्ता उठाना और मुख्यमंत्री से सवाल पूछना कैसे गलत हो सकता है। रोजगार को लेकर विधानसभा सूत्रों में जितने भी विधायकों द्वारा सवाल पूछे गये हैं उनके जो भी जवाब दिये गये हैं उससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश की जनता के सामने सच्चाई नहीं रखी जा रही है। शैल विधानसभा में आये प्रश्नों और उनके उत्तरों को पहले ही पाठकों के सामने रख चुका है।
बाली कांगड़ा से लोकसभा के उम्मीदवार बनते हैं या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन बाली द्वारा रोजगार के मुद्दे का जिक्र करना और अपने विधान सभा क्षेत्र को प्राथमिकता देना कांग्रेस के बागियों के मुद्दे को समर्थन देना बन जाता है। बाली के पत्र से यह स्पष्ट झलकता है कि वह लोकसभा लड़ने के लिये तैयार नहीं है। क्योंकि सरकार की कथित उपलब्धियां भाषणों में तो गिनाई जा सकती हैं परन्तु व्यवहार में नहीं।
                                                        यह है पत्र
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

डॉ.आस्था अग्निहोत्री ने भी हमीरपुर से लड़ने में दिखाई असमर्थता

  • हमीरपुर में प्रत्याशी का चयन बना सरकार और संगठन की परीक्षा
  • सरकार के दावे लगे दाव पर
शिमला/शैल। हमीरपुर लोकसभा सीट पर लम्बे अरसे से भाजपा का कब्जा चला आ रहा है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर वहां से भाजपा सांसद हैं। अनुराग ठाकुर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्रखर और मुखर आलोचकों में गिने जाते हैं। इस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और इसके मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर के नादौन क्षेत्र से आते हैं। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ऊना के हरोली क्षेत्र से आते हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में हमीरपुर से भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। लेकिन अब जो राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में बगावत उभरी उसका केन्द्र भी हमीरपुर और ऊना जिले ही रहे हैं। दोनों जिलों में कांग्रेस के दो-दो विधायकों ने राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग करके बगावत को अंजाम दे दिया। हमीरपुर में तो निर्दलीय विधायक ने भी राज्यसभा में कांग्रेस के खिलाफ वोट कर दिया। इस क्रॉस वोटिंग के कारण राज्यसभा में मिली हार के बाद कांग्रेस के यह चारों विधायक दल-बदल कानून के तहत निष्कासित हो गये हैं। यह सब भाजपा में शामिल हो गये हैं भाजपा ने कांग्रेस के सभी बागियों को उपचुनाव में अपना उम्मीदवार भी नामजद कर दिया है।
लेकिन कांग्रेस में घटे इस विद्रोह के कारण पार्टी अभी तक लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के लिये उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पा रही है। लोकसभा के लिये उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने ऊना के पूर्व विधायक सतपाल रायजादा के नाम की घोषणा कर दी। यह दावा किया की रायजादा का नाम फाइनल हो गया है। परंतु इसी बीच मुकेश अग्निहोत्री की बेटी डॉ.आस्था अग्निहोत्री का नाम उम्मीदवार के रूप में चर्चा में आ गया। इस पर डॉ. आस्था अग्निहोत्री को एक पत्राकार वार्ता के माध्यम से यह कहना पड़ा कि वह अभी मातृ शोक से उभर नहीं पायी है इसलिए यह चुनाव लड़ने की मानसिकता में नहीं है। डॉ. आस्था का तर्क जायज है। लेकिन ऊना में मुकेश अग्निहोत्री के परिवार के बाहर कांग्रेस में उसी स्तर का कोई दूसरा नाम भी सामने नहीं है। लेकिन अग्निहोत्री पर भी यह सवाल उठने लग गया है कि उन्होने अपने चुनाव क्षेत्र हरोली के बाहर ऊना ही के दूसरे चुनाव क्षेत्रों में कोई बड़ा योगदान नहीं दिया है। इसलिये लोकसभा लड़ने में असमर्थता दिखाई जा रही है।
मुख्यमंत्री सुक्खू का चुनाव क्षेत्र नादौन भी हमीरपुर लोकसभा में ही आता है। एक समय मुख्यमंत्री की पत्नी कमलेश ठाकुर का नाम भी चर्चा में आया था। लेकिन बाद में चर्चा से गायब हो गया। भाजपा ने यहां से अनुराग ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। अनुराग राहुल गांधी के सबसे बडे़ आलोचकों में गिने जाते हैं। लेकिन हिमाचल कांग्रेस के किसी नेता या सुक्खू सरकार के किसी मंत्री ने आज तक अनुराग ठाकुर या मोदी सरकार की किसी योजना के खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला है। इसलिये आज चुनाव में अनुराग के खिलाफ कांग्रेस का कोई बड़ा नाम आने को तैयार नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस हाईकमान भी शायद इस वस्तुस्थिति को समझ चुकी है। लेकिन हाईकमान हमीरपुर को लेकर फैसला लेने में शायद प्रदेश के नेतृत्व पर ज्यादा निर्भरता नहीं रखेगा। माना जा रहा है कि शायद हाईकमान मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री में से किसी एक के परिवार पर उपचुनाव लड़ने की जिम्मेदारी डाल दे। क्योंकि ऐसा करने से ही राज्य सरकार के दावों की सही परीक्षा हो पायेगी। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों के जिलों में इतनी बड़ी बगावत विधायक दल में हो गयी जिसका समय से पहले पता ही क्यों नहीं चल सका? यह सवाल अब तक अनुतरित है। इसके लिये विपक्ष को कोसने के अतिरिक्त कांग्रेस और कुछ नहीं कर पा रही है और यही कांग्रेस का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष सिद्ध हो रहा है। आज कांग्रेस के पास छः विधायकों के पाला बदलने के अतिरिक्त और कोई मुद्दा ही केन्द्र के खिलाफ नहीं है।

क्या मण्डी का चुनाव मुद्दों पर आ पायेगा?

  • जयराम के ब्यानों से उभरी आशंका
  • जयराम के ब्यानों पर कांग्रेस की खामोशी सवालों में

शिमला/शैल। कांग्रेस ने भाजपा की कंगणा रणौत के मुकाबले लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह को मण्डी से लोकसभा प्रत्याशी बनाया है। कंगणा एक स्थापित सिने तारिका है और मण्डी से ही आती है। कंगणा का परिवार भी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला है लेकिन विक्रमादित्य सिंह की राजनीतिक विरासत कंगणा ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य राजनेताओं से भी भारी है। विक्रमादित्य प्रदेश के छः बार मुख्यमंत्री रहे और स्व वीरभद्र सिंह और मण्डी की वर्तमान सांसद प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा प्रतिभा सिंह के बेटे हैं। कंगणा पहली बार राजनीति में प्रवेश ले रही है जबकि विक्रमादित्य सिंह दूसरी बार विधायक बनकर इस बार मंत्री भी बन गये हैं। शैक्षणिक योग्यता में भी विक्रमादित्य कंगणा पर भारी है। क्योंकि कंगणा ज्यादातर तारिकाओं की तरह स्कूल से आगे नहीं गयी है। कंगणा का सारा ज्ञान सिने पाठशाला में पढ़े और भोगे पाठों पर आधारित है और उसी के आधार पर वह सफलता के मुकाम पर पहुंची है। जबकि विक्रमादित्य सिंह की शिक्षा दीक्षा विश्वविद्यालय के प्रांगण से बाहर राजनीति की व्यवहारिक जमीन पर भी हुई है। इसलिये व्यावहारिक तौर पर विक्रमादित्य सिंह चुनावी प्रांगण में निश्चित रूप से अपने प्रतिद्वन्दीयों से कहीं भारी है। लेकिन क्या चुनाव राजनीतिक और आर्थिक समझ के मानकों पर लड़ा जायेगा? शायद नहीं। यह चुनाव शह और मात की विरासत पर लड़ा जायेगा क्योंकि यह कोई धर्म युद्ध नहीं है। विक्रमादित्य भविष्य के नेता है और यह चुनाव जीतने के बाद वह स्थापित भी हो जायेंगे । यह स्थापित होना ही उन्हें कई अपनों और प्ररायों के लिये प्रतिद्वन्दी बना देगा। इस समय भाजपा ने इस चुनाव की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष जयराम को सौंप रखी है। इसलिये मण्डी में नाराज चल रहे नेताओं को मनाने जयराम उनके घरों तक दस्तक दे रहे है। इसी के साथ जयराम ने प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य को लेकर बागी विधायकों के सन्द्धर्भ में जो यह ब्यान दिया था कि पहले इन लोगों ने बागीयों को ब्यान देकर उकसाया और बाद में पलट गये । जयराम के अतिरिक्त भाजपा के और नेताओं ने भी इस ब्यान को दोहराया है। कंगणा रणौत ने भी यह दोहराया है कि विक्रमादित्य भाजपा मुख्यालय के चक्कर लगाते रहे है। जयराम ने यह भी कहा है कि विक्रमादित्य के चुनाव लड़ने पर वह और भी खुलासा करेंगे। जयराम और भाजपा के इन संकेतों से स्पष्ट हो जाता है कि वह इस चुनाव में प्रतिभा और विक्रमादित्य को खलनायक प्रमाणित करना चाहते है। यह शुरू से ही माना जा रहा था की मण्डी लोस चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी अन्ततः हॉलीलॉज पर ही आयेगी। राज्यसभा प्रकरण पर भी पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट में कांग्रेस के संकट के लिये जिस तरह से प्रतिभा - विक्रमादित्य को जिम्मेदार ठहराने को प्रचारित और प्रसारित किया गया था उसके पीछे भी विश्लेष्कांे को एक तय एजैन्डा नजर आया था। अब उस एजैन्डे को जयराम और भाजपा के माध्यम से आगे बढ़ाये जाने की पूरी पूरी संभावना है। क्योंकि जयराम के ब्यानों का अभी तक किसी भी कांग्रेस नेता ने कोई जवाब नहीं दिया है। ऐसे में इस चुनाव में विक्रमादित्य सिंह स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के संपर्कों को कितना और कैसे भुना पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि भाजपा और जयराम की यह राजनीतिक आवश्यकता बनती जा रही है कि वह इन्हीं चुनाव के दौरान सरकार को गिराने में सफल हो जाये। मण्डी का चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस होने के स्थान पर अपरोक्ष में जयराम के माध्यम से कांग्रेस का आपसी स्कोर सैटल करने का मैदान बनता नजर आ रहा है क्योंकि सरकार के पक्ष में उपलब्धियों के नाम पर धरातल पर कुछ नहीं है।

प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा हुआ चौदह लाख से पार

  • करीब बारह लाख युवा इस बार मतदान में भाग लेंगे
  • सरकार के विभिन्न विभागों में 70,000 पद खाली
  • लेकिन 2023 में 4751 हीविज्ञापित हुये और भरे केवल 257
  • निजी क्षेत्र में 11681 नौकरियां घोषित हुई और भरी केवल 6933
शिमला/शैल।  हिमाचल में इस बार करीब बारह लाख युवा जो तीस वर्ष के आयु वर्ग में आते है। चुनाव में मतदान करने जा रहे है। बारह लाख का यह आंकड़ा चुनाव परिणामों को कोई भी दिशा दशा दे सकता है क्योंकि प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा भी 1 जनवरी 2023 को चौदह लाख के पार हो चुका है। यह जानकारी विधानसभा में विधायक केवल सिंह पठानिया के एक प्रश्न के उत्तर में आयी है। यह भी जानकारी दी गई है कि वर्ष 2021-22 और 22-23 में केवल 39779 को ही रोजगार मिल पाया है। वर्ष 2023 में सरकारी क्षेत्र में 4751 नौकरियां विज्ञापित की गयी जिसमें से केवल 257 को ही दिसम्बर 2023 तक सरकारी नौकरी मिल पायी है इसमें किन्नौर और लाहौल स्पीति जिलों में एक भी युवा को सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी है। इसी अवधि में प्राइवेट सेक्टर में 11681 नौकरियां घोषित हुई लेकिन केवल 6933 को ही नौकरी मिल पायी है। वर्ष 2023 में 1,09083 प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण करवाया लेकिन नौकरी केवल 257 को ही मिल पायी है। वर्ष 2024 के बजट सत्र में रोजगार को लेकर जितने भी प्रश्न पूछे गये उनमें हरेक में यही जवाब दिया गया है कि अभी सूचना एकत्रित की जा रही है। रोजगार को लेकर यह आंकड़े विधानसभा में दी गई जानकारी और आर्थिक सर्वेक्षणों में दर्ज आंकड़ों पर आधारित है। प्रदेश में बेरोजगारी की दर में 4 ़4प्रतिशत की दर से प्रति वर्ष बढ़ोतरी हो रही है। हिमाचल में सरकार ही रोजगार का सबसे बड़ा साधन है यदि एक लाख के पंजीकरण पर केवल 257 को नहीं सरकार नौकरी दे पाये तो चौदह लाख को नौकरी मिलने में कितना समय लगेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। आंकड़ों के इस आईने को सामने रखकर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि पांॅच लाख लोगों को नौकरी देने की गारंटी पूरी करने में कितने दशक लगेंगे। इस सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों में खाली पदों का आंकड़ा लेने के लिये मंत्रियों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार में कर्मचारी के 70000 पद खाली चल रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि 70000 पद खाली होते हुये 4751 ही क्यों विज्ञापित किये गये और फिर केवल 257 ही गये। इसमें सरकार की नियत और नीति दोनों पर सवाल उठ जाते हैं। सरकार विकास के नाम पर करीब हर माह कर्ज ले रही है यदि यह कर्ज लेकर किया गया विकास बेरोजगार युवाओं को न तो सरकार में और न ही प्राइवेट सेक्टर में रोजगार दे पाये तो उसे क्या लाभ । सरकार बेरोजगार युवाओं को एक हजार प्रति माह और विकलांगों को1500 रुपये बेरोजगारी भता दे रही है। लेकिन यह भता केवल 2 वर्ष के लिये दिया जा रहा है। लेकिन क्या 2 वर्ष तक बेरोजगारी भत्ता लेने वालों को इसी अवधि में रोजगार भी मिल पा रहा है। इसी तरह कौशल विकास भत्ते की स्थिति है। सरकार भताा दे रही है लेकिन उसके परिणामों की कोई जानकारी है। इस परिदृश्य में यह सवाल पूछा जाना आवश्यक हो जाता है कि जब सरकार में इतने पद खाली है और उनके भरने की गति 257 1 वर्ष में है तो क्या सरकार अपरोक्ष में सरकारी सेवा को आउटसोर्स में बदलने जा रही है। क्योंकि सरकार ने जिस तरह से अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड को भंग किया है और उसके स्थान पर पहले लोक सेवा आयोग को ही यह जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया और बाद में अलग से एक और अदारा बनाने का निर्णय लिया जिस काम करने की स्थिति तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। हिमाचल में बेरोजगारी की एक बड़ी समस्या बनती जा रही है और सरकारों की सोच की गति से ऐसा नहीं लगता है कि उसके प्रति गंभीर भी है। ऐसे में यह बारह लाख युवा मतदान इस चुनाव में बेरोजगारी को कितना बड़ा मुद्दा बना पाते हैं क्या देखना रोचक होगा।
 

यह आवासीय आबंटन बना चर्चा का विषय

शिमला/शैल। सरकार के हर वर्ग के कर्मचारी/अधिकारी अपने सेवा स्थान पर सरकारी आवास पाने के पात्र हैं। यह सुविधा प्राप्त करने की शर्त है कि संबंधित अधिकारी कर्मचारी के पास सेवा स्थान पर अपने नाम या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम पर कोई आवास नहीं होना चाहिए। आवास आवंटन के समय इस आश्य की जानकारी एक स्व हस्ताक्षरित प्रपत्र पर ली जाती है। यदि यह जानकारी किसी भी समय गलत पायी जाये तो संबंधित अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ नियमानुसार कारवाई की जाती है। लेकिन क्या ऐसी कारवाई करने के लिये मामला संज्ञान में आने के बाद छः माह से भी अधिक का समय लग जाना चाहिये। जबकि मामला मुख्य सचिव के भी संज्ञान में हो और संबंधित विभागों के प्रभारी मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हो। यह स्थिति प्रशासन को लेकर ऐसे सवाल खड़े कर देती है जिसमें प्रशासन की नीयत और नीति दोनों कटघरे में आ जाते हैं।
स्मरणीय है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य अभियंता पी.सी. गुप्ता को 2022 में आवास आबंटित हुआ था और उन्होंने 3-3-2022 को इसका कब्जा भी ले लिया था। इससे पहले यही आवाज उनकी पत्नी डॉ. रचना गुप्ता के नाम पर आबंटित था। डॉ. गुप्ता लोक सेवा आयोग में सदस्य थीं जिन्हें आयोग का अध्यक्ष बनाने की अधिसूचना भी जारी हो गयी थी। लेकिन डॉ. गुप्ता ने अपने निजी कारणों से अध्यक्ष पद सरकार नहीं किया और सदस्य के रूप में ही आयोग से सेवानिवृत हो गयी। इस सेवानिवृत्ति के कारण उन्हें सरकारी आवास छोड़ना था। परंतु उनके पति के नाम पर कोई सरकारी आवास नहीं था और सरकार ने उन्हें वही मकान आबंटित कर दिया जो उनकी पत्नी के नाम था। नियम ऐसे आबंटन की अनुमति देते हैं। यक आबंटन लेते समय पी.सी. गुप्ता को लिखित में विभाग को यह सूचित करना पड़ा की उनके अपने नाम या परिवार के किसी सदस्य के नाम शिमला में अपना कोई भवन नहीं है। लेकिन किसी देवाशीष ने उनके खिलाफ यह शिकायत कर दी की पी.सी. गुप्ता के नाम पर तो शिमला में भवन है।
यह शिकायत आने पर पी.सी. गुप्ता से फिर उनके नाम भवन होने की जानकारी मांगी गयी। इस पर पी.सी. गुप्ता ने जानकारी देते हुये स्वीकार किया कि उनके नाम पंथाघाटी शिमला में मकान है जो 1-9-21 से उन्होंने 61040 रुपये मासिक किराया पर दे रखा है। गुप्ता की इस सवीकारोक्ति के बाद विभाग को उनके खिलाफ तुरंत प्रभाव से नियमानुसार कारवाई करनी थी। लेकिन अक्तूबर 2023 से अब तक यह कारवाई पत्राचार के स्तर से आगे नहीं बढ़ी है। आम कर्मचारियों और अधिकारियों में इन दिनों यह चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसमें ‘‘समर्थ को नहीं दोस्त गोसाईं’’ की कहावत ही चरितार्थ होगी।

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