शिमला/शैल। क्या हिमाचल को कांग्रेस हाईकमान ने अपनी सूची से खारिज कर दिया है? यह सवाल इसलिये उठने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस की राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणीयां जो पिछले वर्ष नवम्बर में भंग कर दी गयी थी उनका पुनर्गठन अब तक नहीं हो पाया है। प्रदेश में इस वर्ष के अन्त में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव होने हैं। ऐसे में इन चुनावों की तैयारी कांग्रेस संगठन के तौर पर कैसे और कब कर पायेगी यह सवाल हर कार्यकर्ता के दिमाग में उठने लगा है। राज्य में कांग्रेस की सरकार इसलिये बन पायी थी क्योंकि पार्टी ने विधानसभा चुनावों के दौरान दस गारंटियां प्रदेश की जनता को दी थी। इन गारंटियों पर जमीन पर कितना काम हुआ है यह चुनाव उसकी परीक्षा प्रमाणित होंगे। इन गारंटियों में प्रतिवर्ष प्रदेश के युवाओं को एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाने और 18 से 60 वर्ष की हर महिला को 1500 रूपये प्रतिमाह देने पर प्रमुख थे। युवाओं को रोजगार का दावा कितना सफल हो पाया है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इस दौरान प्रदेश में बेरोजगारी में 9 सितम्बर 2024 को विधानसभा में आये एक प्रश्न के उत्तर के अनुसार वर्ष 2021-22 से वर्ष 2023-24 में 4% की वृद्धि हुई है और उद्योग पलायन करने लग गये हैं। महिलाओं को 1500 रूपये प्रति माह सिर्फ लाहौल स्पीति में ही मिल पाये हैं और जगह नहीं।
प्रदेश सरकार के फैसले भी अब जनता के गले नहीं उतर पा रहे हैं। क्योंकि सरकार एक ओर तो कठिन वित्तीय स्थिति का हवाला देकर जनता पर करों का बोझ लगातार बढा़ती जा रही है और दूसरी ओर इसी कठिन वित्तीय स्थिति में निगमों/बोर्डों के अध्यक्षों/उपाध्यक्षों/सदस्यों का मानदेय बढ़ा रही है। यह बढ़ौतरी भी आपदा काल में हुई है। शिमला से धर्मशाला रेरा कार्यालय को स्थानांतरित करना इसी कड़ी का एक और उदाहरण है। जिन कर्मचारियों ने कांग्रेस को सत्ता में लाने की प्रमुख भूमिका अदा की थी वह सारे वर्ग आज एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन के लिये तैयार हो रहे हैं। यह पिछले दिनों कर्मचारी संगठनों के आवाहन पर जूटे अलग-अलग संगठनों की उपस्थिति से प्रमाणित हो गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का फील्ड में क्या हाल है यह जनता के बीच जाने से पता चलता है। आज सरकार की हालत यह हो गयी है कि कर्ज आधारित योजनाओं के अतिरिक्त और कोई काम नहीं चल रहा है। आज कर्ज और करों का निवेश उन योजनाओं पर हो रहा है जिनके परिणाम वर्षों बाद आने हैं। फिर इस कर्ज में भी किस तरह का भ्रष्टाचार हो रहा है उसका खुलासा पूर्व मंत्री धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा के ब्यान से हो जाता है ।
आज कांग्रेस की सरकारें केवल तीन राज्यों हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना में ही रह गयी हैं। कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों का आकलन यहां की सरकारों की परफारमेन्स के आधार पर होगा। इस समय कांग्रेस नेतृत्व बिहार में चुनाव आयोग से लड़ रहा है। यदि इस लड़ाई में हिमाचल की देहरा विधानसभा के उप-चुनाव में जो कुछ कांग्रेस शासन में घटा है उसका जिक्र उठा दिया गया तो यह सारी लड़ाई कुन्द होकर रह जाएगी। यह दूसरी बात है कि इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस और भाजपा में आपसी सहमति चल रही है। लेकिन जिस तरह से प्रदेश सरकार हर रोज जनाक्रोश से घिरती जा रही है उसमें संगठन का आधिकारिक तौर पर नदारद रहना क्या संकेत और संदेश देता है इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्षा स्वयं कई बार यह आग्रह हाईकमान से कर चुकी है की कार्यकारिणी का गठन शीघ्र किया जाये। परन्तु यह आग्रह जब अनसुने हो गये हों तो यही कहना पड़ेगा कि शायद कांग्रेस हाईकमान की सूची से हिमाचल को निकाल ही दिया गया है। क्या हाईकमान के प्रतिनिधि प्रदेश प्रभारीयों ने भी इस और आंखें और कान बंद कर रखे हैं। या आज यह स्थिति आ गयी है कि प्रदेश में कोई भी संगठन की जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं हो रहा है।