शिमला। प्रदेश के सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैण्डल प्वाईंट तक यह चर्चा हर कहीं सुनी जा सकती है कि हिमाचल में शिमला सहित कई स्थानों पर कई बैंकों के कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने पुराने नोटों को बदलने में काफी माल बना लिया है। पुराने नोट बिजली, पानी, टेलीफोन, ट्रांसपोर्ट, गैस खरीद आदि के भुगतान के लिये मान्य कर दिये गये थे। कई लोगों ने सुविधाओं का खुलकर दुरूपयोग किया है। पुराने नोट बदलने की सुविधा आरबीआई ने सहकारी बैंकों को छोड़कर अन्य सभी बैकों को दे रखी थी। सहकारी बैंक इस सुविधा से इस धारणा पर वांच्छित रखे गये थे कि वह सीधे राजनेताओं/बड़े लोगों के प्रभाव में रहते हैं। हिमाचल का राज्य सहकारी बैंक अब श्डयूल बैंक की श्रेणी में आ चुका है इस लिये उसके पास यह सुविधा थी।
नोट बदलने में बड़े लोगों ने गरीबों के जनधन योजना के तहत जीरो बैलेन्स से खुले खातों का दुरूपयोग किया है। यह अब जगजाहिर हो चुका है। शिमला के मालरोड़ स्थित एक बैंक के बाहर नोट बदलवाने के लिये लगी भीड़ में बार-बार वही मजदूर देखे जाते रहे हैं। तर्क यह दिया जा रहा था कि उनके मालिक ने उनको एक वर्ष का वेतन एडवांस में दे दिया है। गरीबों के खातों के इस तरह के दुरूपयोग की रिपोटों पर ही आयकर और ईडी ने बैंकों से ऐसे खातांे और उनमें हुए लेन देन की जानकारी मांग रखी है। राज्य के सहकारी बैंक प्रबन्धन से भी यह जानकारी मांगी गयी है।
नोटबंदी के बाद किस बैंक में कितने पुराने नोट बदले गये। यह नोट किससे आये किसके खाते में जमा हुए इसका पूरा विवरण बैंकों से मांगा गया है। चर्चा है कि राज्य के सहकारी बैंक में भी करीब छः सौ करोड़ के पुराने नोट बदले गये हैं। यह इतनी बड़ी धन राशी कितने लोगों की थी? क्योंकि इतनी बड़ी रकम नकदी में दो चार दस लोगों के ही पास होना संभव नही लगती। क्यांेकि इतनी राशी को साधारण से बदलना संभव ही नही था क्योंकि इसके लिये एक सीमा तय थी। इसलिये माना जा रहा है कि इसकी जांच में कोई बड़ा खुलासा सामने आ सकता है।
मजे की बात तो यह है कि नोट बदलने के पवित्र कार्य में हिमाचल हाईकोर्ट यूको बैंक की शाखा का नाम भी चर्चा में चल रहा है। कई बड़ो ने इस बैंक शाखा का भी पूरा-पूरा लाभ उठाया है क्योंकि शिमला में एसबीआई के बाद आरबीआई की चैस्ट केवल यूको बैंक के ही पास है। चर्चा है कि इसके प्रबन्धकों ने बड़ो के घरों में जा कर नोटों की डिलिवरीे दी है। इस कड़ी में आईसीआईसीआई बैंक का विवरण तो आयकर विभाग के पास जांच केे लिये पहुंच भी चुका है और उसमें काफी बडे़ खुलासे सामने आने की संभवना है।
शिमला/शैल। प्रदेश के सरकारी कॉलिजों में भी मुकेश अबांनी की कंपनी जियो ने अपने 4-जी सिम के ग्राहको की तर्ज पर अपनी फ्री सेवायें देना आरम्भ कर दिया है। इन सेवाओं के प्रयोग के लिये छात्रां की स्मार्ट क्लासज़ तक लगायी जा रही हैं। 4-जी सेवाओें के इस्तेमाल के लिये कॉलिज प्रबन्धन इन्हे आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवा रहा है। इन सेवाओं के लिये अभी जियो स्मार्ट क्लासज़ के माध्यम से इन सेवाओं के उपयोग के प्रतिछात्र अच्छे ट्रेंड हो जायेंगे और इससे कम्प्यूटर के प्रयोग करने में भी सहायता मिलेगी। जियो ने अब ग्राहकों को मुफ्त सेवाएं देने की समय सीमा 31 मार्च 2017 तक बढ़ा दी है। इस समय सीमा तक इन कॉलिजो में छात्र और अध्यापक पूरी तरह इनके अभयस्त हो जायेंगे और यह उनकी आवश्यकता बन जायेगी। जब 31 मार्च को मुफ्त सेवा अवधि समाप्त हो जायेगी उसके बाद कॉलिजो को इसका उपभोक्ता शुल्क स्वंय उठाना पडे़गा। छात्रों के लिये स्मार्ट क्लासों का प्रबन्ध भी अपने स्तर पर ही करना होगा। 
रिलायंस जियो की एंट्री एक सुनियोजित तरीके से कैसे हो गयी और आने वाले समय में प्रबन्धन पर इसका क्या प्रभाव पडेगा इसको लेकर शिक्षा विभाग के पास क्या प्रारूप है इसकी कोई जानकारी विभाग के पास उपलब्ध नही है। सूत्रों के मुताबिक सचिव स्तर पर इसकी कोई जानकारी ही नही है। सचिवालय सूत्रों के मुताबिक विभाग में निदेशक स्तर पर ही जियो को एन ओ सी जारी कर दिया गया है। लेकिन जब शैल ने निदेशक उच्च शिक्षा कार्यालय से इस बारे में बात की तो उन्होने भी इस बारे मे अनिभज्ञता जाहिर की और अतिरिक्त निदेशक से संपर्क करने को कहा। अतिरिक्त निदेशक ने भी इस सबंध में उनके पास जानकारी होने से इन्कार किया। रिलायंस के सूत्रों के मुताबिक उन्होने यह शुरू करने से पहले शिक्षा निदेशक से एन ओ सी हासिल किया है। बल्कि अब जियो की तर्ज पर अब कई और कंपनीयां भी प्रदेश सरकार के विभिन्न अदारों में इस तरह की एंट्री के लिये आगे आ रही हैं। इन कपंनीयों के साथ बैठकें भी चल रही हैं। इसमें क्या फैसला होता है यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन रिलायंस जियो की एंट्री प्रदेश के पूरे कॉलिज सैक्टर में कैसे हो गयी इसकी पूरी जानकारी किसी के पास भी नहीं है। इसके बारे में मुख्यमंत्री कार्यालय को कितनी जानकारी है? क्योंकि शिक्षा विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है इस पर भी विभाग में कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। बहरहाल रिलायंस जियो को प्रदेश के कॉलिज एक सुनिश्चित बाजार के रूप में उपलब्ध हो गये हैं।
शिमला/शैल। पिछले कुछ अरसे से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खु प्रदेश संगठन का खजाना खाली होने की चिन्ता व्यक्त करते आ रहे हैं। संगठन का काम चलाने के लिये वह पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ताओं से एक निश्चित धन राशि वर्ष में एक बार लेने की योजना बना रहे हैं। पार्टी की प्रदेश में सदस्य संख्या 13 लाख बताई गयी है और यदि एक व्यक्ति से वर्ष में 200 रूपये भी लिये जाते हैं तो पार्टी के पास एक साल में ही 26 करोड़ इक्टठे हो जायेंगे। यदि इस येाजना पर सही में ही काम किया जाता है तो इससे संगठन न केवल मजबूत होगा बल्कि पार्टी की सरकार पर भी हावि हो जायेगा। हर कार्यकर्ता पार्टी के लिये पूरी सक्रियता से काम करेगा। इस योजना से यह धारणा भी समाप्त हो जायेगी कि कांग्रेस का संगठन तभी नजर आता है जब उसकी सरकार होती है। संगठन में पैसे की कमी की चर्चा खुलकर बाहर आ चुकी है। लेकिन इस चर्चा पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर नीचे तक किसी ने कोई प्रतिक्रिया नही दी है। 
अभी जब सोनिया गांधी अपनी बेटी के मकान के सिलसिले में शिमला आयी थी तब जिला शिमला कांग्रेस के अध्यक्ष केहर सिंह खाची ने उनसे लम्बी बात-चीत की है। इस बातचीत का राजनीतिक फीड बैक लिया जाना चर्चित किया गया है। इसमें एक महत्वपूर्ण संयोग यह भी घटा है कि इस बार सेानिया के निजी सविच जैन भी मालरोड़ पर पार्टी के कई ऐसे कार्यकर्ताओं से बातचीत करते रहे जो वीरभद्र विरोधी खेमे से ताल्लुक रखने वाले माने जाते हैं। प्रियंका के मकान को लेकर सोनिया दर्जनो बार शिमला आ चुकी हैं लेकिन इस तरह की राजनीतिक चर्चा पहली बार ही सामने आयी है और इसी दौरान संगठन का खजाना खाली होने के समाचार प्रमुखता से समाने आये। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और चार साल से सत्ता में है। कांग्रेस में ऐसे पदाधिकारियों की भी कमी नही है जिनके पास 80/80 लाख की गाड़ियां है दर्जनों लोग करोड़ पति हैं लेकिन संगठन में पैसे की कमी की चर्चा पहली बार सार्वजनिक रूप से बाहर आयी है। इससे सरकार और संगठन के रिश्तों पर भी सवाल उठता है। क्योंकि जब वीरभद्र के कुछ समर्थकों ने उनके नाम से एक ब्रिगेड का गठन किया था तब उस कदम को एक समानान्तर संगठन खड़ा करने के प्रायस के रूप में देखा गया था और तुरन्त प्रभाव से उसे बन्द कर दिया गया था। लेकिन उसके थोड़े समय बाद ही वीरभद्र के उन्ही समर्थकों ने उस ब्रिगेड को एक एनजीओ के रूप में फिर खड़ा कर दिया। इस एनजीओ का वाकायदा पंजीकरण करवाया गया है। बल्कि इस एनजीओ के प्रधान बलदेव ठाकुर ने तो प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु के खिलाफ कुल्लु की अदालत में एक मानहानि का मामला तक दायर कर रखा है। पार्टी के अन्दर घट रहें इन घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नही चल रहा है।
दूसरी ओर जब से युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य द्वारा अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा सार्वजनिक हुई है उससेे भी संगठन के भीतरी समीकरणों में बदलाव देखने को मिल रहा है। जिला शिमला में ही आईपीएच मन्त्री विद्या स्टोक्स ने अब अपने विरोधीयों से रिश्ते सुधारने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले दिनों स्टोक्स के जुब्बल कोटखाई के दौरे को इसी आईने में देखा जा रहा है। आज भले ही विक्रमादित्य ने यह कहा है कि यदि संगठन उन्हे टिकट देगा तो वह चुनाव लडे़ेगे। लेकिन एक समय यही विक्रमादित्य टिकटों को लेकर हाईकमान के दखल का विरोध कर चुके हैं। ऐसे में यह स्पष्ट है कि उनका चुनाव लड़ना हाईकमान के फैसले पर नहीं बल्कि उनके अपनेे फैसले पर टिका है। फिलहाल कुछ हल्कों में विक्रमादित्य के चुनाव लड़ने की इस पूर्व घोषणा को इस संद्धर्भ में भी देखा जा रहा है कि प्रदेश के किस चुनाव क्षेत्र से कार्यकर्ता उन्हें चुनाव लड़ने की आॅफर देते हैं। क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक विक्रमादित्य का चुनाव लड़ना कोई बड़ा मुद्दा नही है बल्कि बड़ा मुद्दा यह है कि वह अपने कितने समर्थकों को पार्टी का टिकट दिलाकर चुनाव लड़वा पाते हैं। माना जा रहा है कि वह अपने करीब एक दर्जन समर्थकों को चुनाव में उतारने का मन बना चुके हैं।
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