Friday, 19 December 2025
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वनभूमि अतिक्रमण पर उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद अभी तक कोई कारवाई नहीं

सरकार, विजिलैन्स और ईडी ने अभी तक नही उठाया कोई कदम


शिमला/शैल। वनभूमि पर किये नाजायज कब्जों का कड़ा संज्ञान लेते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने 29.8.2016 को दिये अपने फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिये थे कि वनभूमि पर नाजायज कब्जा करके उस पर फलदार पौधे लगाने वालों की पहचान करके उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके इन अवैध कब्जों को छुड़ाये। उच्च न्यायालय ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के निदेशक प्रर्वतन (ईडी) को भी निर्देश दिये थे कि वह ऐसे अवैध कब्जा धारकों के खिलाफ धन शोधन (मनी लाॅड़रिंग) के तहत तीन ताह के भीतर मामले दर्ज करके कारवाई करे। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिये थे कि वह चार सप्ताह के भीतर ऐसे लोगों की पूरी जानकारी ईडी को उपलब्ध करवाये जिन्होने दस बीघे या इससे अधिक वनभूमि का अतिक्रमण कर रखा है। वनभूमि पर हुुए अतिक्रमणों को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय के पास Cr. Appeal No. 224 of 2010 तथा CWPIL 17 of 2014 दो याचिकाएं थी जिन पर फैसला देते हुए अदालत ने यह निर्देश दिये है। स्मरणीय है कि इन मामलों की सुनवाई के दौरान भी इन अतिक्रमणों को हटाने और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के अन्तरिम निर्देश देते रहें है लेकिन इस पर पूरी ईमानदारी से कारवाई नहीं हुई और अब अन्त में अदालत ने ईडी को भी इसमें कारवाई के निर्देश दिये है।
उच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर ऐसे लोगों की जानकारी ईडी कोे देनी थी। ईडी को तीन माह के भीतर ऐसे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके अगली कारवाई शुरू करनी थी। उच्च न्यायालय का फैसला और निर्देश आये हुए तीन माह का समय निकल चुका है। लेकिन अभी तक इस दिशा में कहीं भी कोई कारवाई शुरू नहीं हुई है। राज्य सरकार के सचिवालय से इस संद्धर्भ में 3.9.2016 को पत्र संख्या FFE-B-E (3). 74/2016 को प्रधान अरण्यपाल को इस फैसले की कापी भेजकर इसमें अदालत के निर्देशानुसार तय समय के भीतर आवश्यक कारवाई करने के निर्देश जारी किये गये थे। इस फैसले के बाद ईडी ने भी आवश्यक जानकारी सरकार से मांगी है। सचिवालय ने 16.11.2016 को प्रधान अरण्यपाल को फिर पत्र भेजकर इस संद्धर्भ में निर्देशित कारवाई करने के लिये कहा है। शैल ने जब वन विभाग के संवद्ध अधिकारियों से इस बारे में बात की तो उन्होने राज्य सचिवालय से 3.9.2016 को कोई ऐसा पत्र आने से साफ इन्कार कर दिया। संवद्ध अधिकारी ने 16.11.2016 का पत्र मिलने को स्वीकारते हुए यह बताया कि इस पत्र के बाद फील्ड के संवद्ध अधिकारियों को इस संबध में आवश्यक कारवाई करने के निर्देश जारी कर दिये है। वन विभाग द्वारा की जा रही इस कारवाई से स्पष्ट हो जाता है कि विभाग इन अतिक्रमणों के खिलाफ कारवाई करने के लिये कितना गंभीर है। उच्च न्यायालय ने चार सप्ताह के भीतर जो कारवाई करने के निर्देश दिये थे उस संबंध में तीन माह बाद फील्ड अधिकारियों को आवश्यक कारवाई करने के लिये पत्र भेजा गया है।
वनभूमि पर अतिक्रमण करके प्रदेश के सारे सेब उत्पादक क्षेत्रों में करीब हर परिवार के खिलाफ थोड़े बहुत अतिक्रमण का आरोप है। दस बीघे या उससे अधिक वनभूमि पर अतिक्रमण के हजारों मामलों की सूची अदालत के पास मामले की सुनवाई के दौरान ही आ चुकी है। प्रदेश वनभूमि पर अतिक्रमण के सबसे अधिक मामले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुराने चुनाव क्षेत्र रोहडू से सामने आये है। स्मरणीय है कि प्रदेश सरकार ने सरकारी भूमि पर हुए अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये वर्ष 2002 में एक नीति घोषित की थी। इस नीति के तहत लोगों से स्वेच्छा से अपने अवैध कब्जों की वाकायदा शपथ पत्र के साथ राज्य सरकार को जानकारी देने को कहा गया था। इस नीति के तहत एक लाख से अधिक लोगों ने सरकारी/वनभूमि पर अवैध कब्जा होना स्वीकारा है। लेकिन इस नीति पर अमल होने से पहलेे ही इसे प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गयी। उच्च न्यायालय ने इस नीति पर प्रशासन को अपनी प्रक्रिया जारी करने के निर्देश देते हुए यह कहा था कि इसमें अवैध कब्जा धारक को भूमि पट्टा अदालत का अन्तिम फैसला आने तक न दिया जाये। यह मामला अभी भी उच्च न्यायालय में लंबित है। अब यह मामला प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक बन गया है। क्योंकि लाखों लोग प्रदेश में सरकारी वनभूमि पर अवैध कब्जे के दोषी है। प्रदेश उच्च न्यायालय के ताजा फैसले से इन सब लोगों से अवैध कब्जे छुड़ाने होंगे। माना जा रहा है कि पूरे मामले की राजनीतिक गंभीरता को देखते हुए इस मामले को लम्बाने की नीति अपनाई जा रही है।

नोटबंदी प्रकरण पर क्या केजरीवाल गलत वक्त पर सही सवाल उठा रहे हैं

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के फैसले को एक बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। उनका आरोप है कि भाजपा में कुछ को इस फैसले की पूर्व जानकारी थी और उन्होने फैसला घोषित होने तक अपने कालेधन को ठिकाने लगा दिया था। इस आरोप के लिये उनका तर्क है कि पूर्व जानकारी होने के कारण ही यह लोग बैंको के आगे लगी लाईनों में खडे होते नजर नही आ रहे हैं। इनका मानना है कि नोटबंदी के फैसले से कालेधन पर कोई फर्क नही पडे़गा क्योंकि कालाधन तो विदेशी बैंको में पडा है और जब तक इसे लाने के लिये कदम नही उठाये जायेंगे तब तक इस प्रयास के परिणाम बहुत बडे़ नहीं होंगे। नोटबंदी के फैसले को लागू करने के लिये जो प्रबन्ध किये जाने चाहिये थे वह नही किये गये हैं। यह आरोप भाजपा नेता राज्यसभा सांसद डा. स्वामी का भी है। इसके लिये उन्होने वित्त मन्त्रालय को दोषी ठहराया है। डा. स्वामी ने अरूण जेटली और उनके वित्त सचिव को इस दिशा में पर्याप्त प्रबन्ध न करने का दोषी करार दिया है। नोटबदी से आम आदमी को जिस तरह से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है उससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकार से फैसले की व्यापकता का आकलन करने में अवश्य चूक हुई है जिसके कारण उचित प्रबन्ध नही हो पाये हैं।
लेकिन केजरीवाल का घोटाला करार देना एक गंभीर आरोप है और सरकार की ओर से भी इसमें कोई संतोषजनक उत्तर सामने नही आ पाया है। केजरीवाल के आरोपों में इस कारण से दम नजर आता है कि नोटबंदी के फैसले से पहले और कालेधन तथा बेनामी संपत्ति की घोषणा के लिये रखी गयी अन्तिम समय सीमा 30 सितम्बर के बाद विक्कीलीकस के नाम से सोशल मीडिया में स्विस बैकों में कालाधन रखने वाले भारतीय की दो सूचियां जारी हुई हैं। दोनो सूचियों में 24, 24 लोगों के नाम दर्ज हैं। एक सूची में पहला नाम संघ प्रमुख मोहन भगावत का है। तो दूसरी सूची में पहला नाम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का है। इन सूचीयों को लेकर न तो केन्द्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आयी है और न ही संघ भाजपा और कांग्रेस की ओर से। जबकि इनमें इन्ही से ताल्लुक रखने वालों के नाम हैं। कालेधन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर एसआईटी गठित है। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने रजत शर्मा के आपकी अदालत कार्यक्रम में कालेधन पर पूछे गये सवाल में यह कहा था कि कालाधन रखने वालों के नामों की जानकारी दो -मैं उनके खिलाफ कारवाई करूंगा। इस परिदृश्य में विक्कीलीकस के हवाले से सोशल मीडिया में यह सूची जांच का विषय नही होनी चाहिये थी? विक्कीलीकस के नाम से चल रही इस खबर की प्रामाणिकता पर वायरल, सच की पड़ताल, करने वाले चैनल एबीपी न्यूज ने भी कोई पड़ताल नही की है। जबकि इस चैनल ने 2000 के नोट में प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी के सन्देश को अपनी पड़ताल में सही पाया है। दो हजार के नोट में प्रधान मन्त्री का देश के नाम संदेश क्यों दर्ज है। इसका भी कोई तर्क अभी तक सामने नही आया है।
इसी तरह एक और सवाल सोशल मीडिया में सामने आया है। इससे भी नोट बंदी के फैसले की कुछ लोगों को पूर्व जानकारी होने की ओर इशारा किया गया है। इसमें सवाल उठाया गया है कि नोटबंदी का फैसला आठ नवम्बर की रात को घोषित हुआ। प्रधानमन्त्री ने एक ब्यान में यह दावा किया है कि नये नोटों की छपाई का काम पिछले छः माह से चल रहा है। नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं। रिजर्व बैंक के नये गवर्नर पटेल ने तो सितम्बर में कार्यभार संभाला है और नये नोटों पर पटेल के हस्ताक्षर हैं। यदि वास्तव में ही यह नये नोट सितम्बर से पहले ही छपने शुरू हो गये थे तो इन पर नये गवर्नर ऊर्जित पटेल के हस्ताक्षर होने का अर्थ हो जाता है कि उन्हे पूर्व जानकारी थी और उनके हस्ताक्षर पहले ही ले लिये गये थे। उर्जित पटेल अंबानी परिवार के दामाद कहे जा रहे हैं। अंबानी परिवार की प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी से नजदीकीयां 2014 के लोकसभा चुनावों से ही चर्चा में है। बल्कि अंबानी के जीयो सिम लांच को भी नोटबंदी के साथ जोड़ा गया है। नोटबंदी के तहत पुराने नोट बदलने की अन्तिम तारीख 30 दिसम्बर है जबकि जीयो सिम के लांच के तहत मिल रही फ्री इन्टरनैट सुविधा 31 दिसम्बर को खत्म हो रही है। जीयो सिम के लिये करोड़ो आधार कार्ड रिलांयस के पास पहुंचे हुए हैं। इन आधार कार्डो का प्रयोग कालेधन को सफेद करने के लिये होने की आशंका जताई जा रही है।
ऐसे में नोटबंदी के साथ सोशल मीडिया में चर्चित हो रहे इन सवालों पर सरकार की ओर से कोई भी अधिकारिक खण्डन न आने से केजरीवाल के आरोपों को स्वतः ही एक आधार मिल जाता है। यदि यह उठ रही आशंकाएं वास्तव में ही सही हैं तो निश्चित रूप से इस पूरे प्रकरण की जांच होना आवश्यक है। संसद में भी एक संसदीय कमेटी की जांच की मांग सभंवतः इन्ही सवालों के आधार पर आयी है। सरकार का इस संयुक्त जांच के लिये तैयार न होना इन आशंकाओं को और बल देगा। देश का आम आदमी सिद्धान्त रूप में इस फैसले के साथ खड़ा है लेकिन उसे इन आशंकाओं की गहन जानकारी नही है। केजरीवाल ने अपने आरोपों को लेकर जनता में जाने की घोषणा की है। केजरीवाल के सवाल भले ही आज जनधारणा के विपरीत हैं परन्तु इन सवालों को नजर अन्दाज करना भी घातक होगा।

सीबीआई प्रकरण में फैसले के कगार पर पहुंचा वीरभद्र मामला

एक पखवाडे में ईडी की दो बार दस्तक
30 सितम्बर के बाद खुले बैंक खातों की जानकारी में जुटा आयकर
वीरभद्र के विरोधी फिर हुए सक्रिय चण्डीगढ में की बैठक

शिमला/शैल। वीरभद्र के खिलाफ चल रही सीबीआई जांच का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में अब फैसले के दौर में पहुंच गया है। पिछली पेशी में हिमाचल सरकार का पक्ष रख रहे प्रदेश के महाधिवक्ता को अपना पक्ष संक्षेप में लिखित में 2 दिसम्बर को अदालत के सामने रखने को कहा है। उसी दिन सीबीआई इस याचिका से जुडे़ सारे वादीयों के दावों का जबाव देगी। इस जबाव में सीबीआई को जितना भी समय लगेगा उसके बाद इस मामले का फैसला आना है। यदि वीरभद्र सिंह की याचिका स्वीकार हो जाती है तो पूरा प्रकरण वहीं समाप्त हो जायेगा और यदि यह याचिका अस्वीकार हो जाती है तो फिर इसमें चालान ट्रायल कोर्ट में दायर हो जायेगा। हिमाचल सरकार, वीरभद्र और अन्य याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस मामले में सीबीआई का प्रदेश सरकार की अनुमति के बिना या किसी अदालत के निर्देशों के बिना जांच का क्षेत्राधिकार ही नही बनता है और ऐसे में सीबीआई की सारी कारवाई गैर कानूनी हो जाती है। लेकिन उच्च न्यायालय ने प्रदेश के महाधिवक्ता को यह भी स्पष्ट कर दिया था कि जांच अवधि के काल में वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री थे और इस कारण दिल्ली क्षेत्राधिकार बन जाता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस मामले में चालान दायर होना तय है।

जैसे जैसे यह मामला फैसले की ओर बढ़ रहा है उसी अनुपात में ईडी ने भी इस प्रकरण में अपनी शेष बची जांच तेज कर दी है। पिछले एक पखवाडे़ में ईडी की टीम दो बार रामपुर और शिमला का दौरा कर चुकी है। ईडी ने रामपुर के एक ऐडवोकेट राम आसरा से भी कुछ जानकारी हासिल की है। राम आसरा भी वीरभद्र के सेब बागीचे के प्रबन्धन से अप्रत्यक्षतः जुड़े रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि वीरभद्र ने जो पुश्तैनी संपति विक्रमादित्य और अन्य के नाम ट्रांसफर की है उसका रिकार्ड भी ऐजैन्सी ने हासिल कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक ईडी टीम का दूसरा दौरा सरकार के नोटबंदी फैसले के बाद हुआ है और इसमें आयकर विभाग के लोग भी शामिल थे। चर्चा के मुताबिक कालाधन और बेनामी संपति की घोषणा योजना की 30 सितम्बर को अवधि समाप्त होने के बाद अचानक कई बैंक खाते खुलने की सूचना ईडी और आयकर विभाग को मिली थी। उसी की प्रमाणिकता जांचने के लिये ईडी टीम ने दस्तक दी थी। माना जा रहा है कि इन खातों की जानकारी के लिये आरटीआई का भी सहारा लिया गया है। क्योंकि आरटीआई के तहत खाता धारक की जानकारी तो नही मिल सकती है। लेकिन बैंक के पास अमुक अवधि में खुली खातों की संख्या की जानकारी को नहीं रोका जा सकता है । आयकर और ईडी सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी फैसले के बाद तीन बडे़ बैंको के बडे़ अधिकारियों की सरकार के एक बडे़ अधिकारी और एक राजनेता के साथ हुई बैठक की जानकारी मिलने के बाद यह ऐजैन्सीयां हरकत में आयी है और अब बराबर निगरानी बनाये हुए हैं। इस सद्धर्भ में ईडी ने राज्य सहकारी बैंक को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है। 

दूसरी ओर अदालत में मामला फैसले के कगार पर पहुंचने और ईडी द्वारा अपनी जांच तेज कर दिये जाने के साथ ही वीरभद्र विरोधीयों ने भी अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। माना जा रहा है यदि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चालान अदालत में दायर हो जाता है तो उन पर पार्टी के भीतर भी त्याग पत्र देने का दबाव आ सकता है। ऐसे में एक वर्ग का मानना है कि वीरभद्र पद त्यागने की बजाये विधानसभा भंग करवाकर चुनाव में जाने की रणनीति पर चलेंगे। लेकिन दूसरा वर्ग चुनाव की बजाये नया नेता लाने की वकालत कर रहा है। इस संद्धर्भ में पार्टी के कुछ विधायकों की चण्डीगढ में बैठक हुई है। इस बैठक की जानकारी प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी को भी रही है। बल्कि सूत्रों का दावा तो यहां तक है कि इस बैठक में सोनी का एक विश्वस्त भी शामिल रहा है। इस बैठक की जानकारी पंजाब की प्रभारी आशा कुमारी को भी रही है। बैठक में शामिल रहे एक विधायक ने दावा किया है कि पार्टी हाईकमान को विधायकों की चिन्ता और उनके फैसले से सूचित करवा दिया गया है। बैठक में पार्टी की एक जुटता बनाये रखने के लिये कौल सिंह को मुख्यमंत्री और जी एस बाली को उपमुख्यमन्त्री बनाने पर सहमति बनी है। इस फैसले से कांगडा और मंडी क्षेत्रों में राजनीतिक सन्तुलन बन जाता है। यह माना जा रहा है कि विधायक वीरभद्र को विधान सभा भंग करने का फैसला नही लेने देंगे। क्योंकि अभी उनके पास एक साल का कार्यकाल बचा हुआ है। जिसे वह खोना नही चाहेंगे। ऐसे में हाईकमान को भी पार्टी के बहुमत के फैसले को अधिमान देना होगा अन्यथा पार्टी के अन्दर बगावत हो जायेगी यह माना जा रहा है।

 

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