शिमला/शैल। वीरभद्र के इस शासनकाल में हमीरपुर जिला में यह दूसरा उपचुनाव हुआ है और उसमें भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमीरपुर जिले से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुखबिन्दर सिंह सुक्खु ताल्लुक रखते हैं। जब से वीरभद्र इस बार मुख्यमन्त्री बने हैं तभी से सुक्खु प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। इन दोनों के नेतृत्व में कांग्रेस ने पहले लोकसभा की चारों सीटें हारी और उसके बाद हमीरपुर जिले के ही पहले सुजानपुर तथा अब भोरंज में हुए उपचुनावों में हार देखनी पड़ी है। इस हार पर प्रतिक्रिया देते हुए वीरभद्र ने इसे संगठन की निश्प्रियता का परिणाम बताया और सुक्खु ने संगठन के अतिरिक्त अन्य कारणों को इसके लिये जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन यह अन्य कारण क्या है इसका खुलासा नही किया है। इस हार के असली कारणों का खुलासा और उसके अनुसार कारवाई यह दोनों नेता संगठन और सरकार के स्तर पर कर पायेंगे इसको लेकर सन्देह है। इस हार की जिम्मेदारी सरकार और संगठन पर एक बराबर आती है क्योंकि परिणाम आने तक सभी जीत के बड़े-बड़े दावे कर रहे थे।
इस उपचुनाव के प्रचार में पंजाब के मुख्यमन्त्री अमरेन्द्र सिंह भी आयेंगे यह दावा संगठन की ओर से किया गया था लेकिन अमरेन्द्र सिंह नही आये। अब यह सवाल उठ रहा है कि अमरेन्द्र सिंह के आने का प्रचार क्यों किया गया था। क्या उनसे समय लेकर उनके आने का दावा किया गया था? इसी तरह जिन मन्त्रीयों विधायकों की जिम्मेदारीयां चुनाव में लगाई गयी थी क्या उनको विश्वास में लेकर यह किया गया था या सिर्फ संगठन सर्वोपरि होता है इस नाते जिम्मेदारीयां लगायी गयी थी?अब जो लोग चुनाव प्रचार में नहीं आए हैं क्या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की जायेगी? इस हार की समीक्षा में यह सारे बिन्दु महत्वपूर्ण होंगे। लेकिन आज जो परिस्थ्तिियां बनी हुई हैं उनमें नही लगता कि इन सवालों पर कोई चर्चा तक भी हो पायेगी कारवाई करना तो दूर की बात होगी। क्योंकि इस समय संगठन में भी सरकार की तरह अराजकता फैली हुई है। बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जाये या नहीं इसको लेकर काफी खीचंतान रही। लेकिन जब इस पर सहमति हुई तो इसकी घोषणा परिवहन मन्त्री जी एस बाली ने मन्त्री मन्त्रीमण्डल का औपचारिक फैलसा आने से पहले ही एक पत्रकार सम्मेलन बुलाकर कर दी। इसके बाद बाली सुक्खु ने बेरोजगार युवाओं का एक सम्मेलन बुलाकर इस भत्ते के लिये भरे जाने वाले आवेदन फार्माे को सम्मेलन में बांट दिया। जबकि माना जा रहा था कि हिमाचल डे के आयोजन पर मुख्यमन्त्री ये करेंगे। यह ऐसे कदम हैं जिनसे जनता में पुख्ता तौर पर यह सन्देश जाता है कि मुख्यमन्त्री की अथाॅरिटी को अपरोक्ष में चुनौती दी जा रही है।
पिछले दिनों जब चैपाल के निर्दलीय विधायक बलवीर वर्मा जो कांग्रेस का सहयोगी सदस्य होने के लिये स्पीकर के पास याचिका झेल रहे हैं ने भाजपा में शामिल होने की सार्वजनिक घोषणा की उसके बाद शेष निर्दलीय को कांग्रेस हाईकमान के सामने दिल्ली में पेश करके उन्हे कांग्रेस टिकट का आश्वासन उन्हें दिया गया। लेकिन दिल्ली से लौटने के तुरन्त बाद इसमें से एक अन्य ने भाजपा में जाने की मंशा जाहिर कर दी। इसी दौरान एक मन्त्री और कुछ विधायकों के भाजपा में जाने के नाम चर्चित हो गये। लेकिन इन चर्चित हुए नामों में से किसी एक ने भी इन समाचारों का खण्डन नहीं किया और न ही कांग्रेस के संगठन की ओर से इस पर कर कोई प्रतिक्रिया आयी। अब इस उपचुनाव की कमान जिस मंत्राी को सौंपी गयी थी वह एक दिन के लिये भी भोरंज नही आया। यही नही हमीरपुर के अधिकांश स्थानीय नेता भी इस चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हुए। जब कुछ नेताओं से इसका कारण पूछा तो उन्होने स्पष्ट कहा कि उन्हें राजेन्द्र राणा का नेतृत्व स्वीकार नहीं है और उनके कारणों में दम है। लेकिन इस पर संगठन और सरकार के स्तर पर कोई कदम नहीं उठाये जायेंगे यह स्पष्ट है। जबकि जो उपचुनाव का परिणाम आया है उससे स्पष्ट झलकता है कि इस चुनाव में जो मेहनत वीरभद्र सिंह ने की है यदि उतनी ही मेहनत ईमानदारी से दूसरे मन्त्रीयों और नेताओं ने की होती तो परिणाम कुछ और ही होते। इस उपचुनाव का असर अभी आने वाले शिमला नगर निगम के चुनावों पर भी पडेगा। यदि नगर निगम शिमला का चुनाव भी कांग्रेस हार गयी तो उसे विधानसभा चुनावों का भी आईना मान लिया जायेगा यह तय है। इस समय कांग्रेस के अधिकांश मन्त्रीयों और विधायकों की स्थिति यह है कि यदि उन्हे आज भाजपा से टिकट का पक्का आश्वासन मिल जाये तो वह पाला बदलने में एक क्षण भी नहीं लगायेंगे। लेकिन आज इन लोगों में न तो सुक्खु के खिलाफ और न ही वीरभद्र के खिलाफ सीधे विद्रोह और विरोध करने का साहस है।
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने एच पी सी ए के खिलाफ राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला के आवासीय परिसर को अवैध रूप से गिराने और उसकी 720 वर्गमीटर भूमि पर नाजायज़ कब्जा करने के प्रकरण में दर्ज एफ आई आर को रद्द किये जाने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया है। उच्च न्यायालय का यह फैसला एच पी सी ए और अनुराग ठाकुर के लिये एक करारा झटका माना जा रहा है। यह मामला विशेष जज धर्मशाला की अदालत में लंबित है क्योंकि अदालत द्वारा इसका संज्ञान लेने के तुरन्त बाद इसे उच्च न्यायालय में चुनौति दे दी गई थी। इस एफ आई आर को रद्द किये जाने के लिये एच पी सी ए से संजय शर्मा और गौतम ठाकुर ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी। इसमें एफ आई आर रद्द किये जाने के लिये उच्च न्यायालय के समक्ष सात आधार रखे गये थे। इनमें एक आधार यह था।
Prosecution sanction against some of the officers had already been refused by the Central Government and in case of certain individuals, the State Government itself had not granted the prosecution sanction and that apart some of the officers who are the blue eyed boys of the government have been intentionally left out and not arraigned as an accused, therefore, the prosecution proceedings cannot continue and deserve to be quashed. अदालत ने इस आधार को यह कहकर अस्वीकार कर दिया है Suffice it to state that even this contention sansmerit as all these questions can only be determined during the trial wherein the exact role and complicity of the petitioners visa- vis the so-called blue eyed boys or with those of the officials where prosecution sanction has been refused can be evaluated and considered. Moreover, the mere fact that the Central Government has refused to accord sanction does not in any manner improve the case of the petitioners as they admittedly are not government servants and no prosecution sanction in their cases is otherwise required to be obtained.
स्मरणीय है कि यह मामला कांगडा जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी की शिकायत पर 1.8.2013 को आईपीसी की धारा 420,406,120 B, 201 और पी सी एक्ट की धारा 13(2) के तहत एफ आई आर न0 12/13 के रूप में दर्ज किया गया था। इसकी जांच के दौरान यह सामने आया कि 4.4.2008 को तत्कालीन जिलाधीश कांगडा के. क.े पन्त की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें एस डी एम कार्यकारी अभियन्ता, सहायक अभियन्ता, प्रधानाचार्य राजकीय महाविद्यालय और संजय शर्मा शामिल हुए। यह बैठक काॅलिज के आवासीय परिसर को कहीं दूसरी जगह शिफट करने को लेकर बुलाई गयी थी और इसमें यह निर्णय हुआ कि काॅलिज के प्रिंसिपल इस परिसर की स्थिरता का आकलन करने के लिये कार्यकारी अभियन्ता को पत्र लिखेंगे और तहसीलदार की सहायता से जगह की तलाश करेंगे। इसी के साथ यह भी तय हुआ कि प्रिंसिपल सचिव शिक्षा को पत्र लिखकर इसके लिये धन का प्रावधान करें। जिलाधीश कांगडा यहां रह रहे अध्यापकों को अन्यत्र आवास उपलब्ध करवायें तथा एच पी सी ए भी इसके लिये धन का योगदान दे। इस बैठक में हुये फैंसलों की जानकारी 20.3.2008 को निदेशक उच्च शिक्षा को भेज दी गयी और प्रिंसिपल ने 25 दिन बाद इसके आकलन के लिये कार्यकारी अभियन्ता को पत्र भेजकर सूचित कर दिया कि That “It is submitted that Type-IV quarter constructed opposite cricket stadium at Dharamshala are in very dilapidated condition and are beyond economical repair”.
इसके बाद 8 जून 2008 को प्रधान सचिव युवा सेवायें एवम खेल ने प्रधान सचिव शिक्षा को यह पत्र भेजा कि एच पी सी ए इस ज़मीन को लीज़ पर लेना चाहती है और यह जमीन शिक्षा विभाग के नाम है और इस पर परिसर स्थित है जिसके कारण इसे नहीं दिया जा सकता और इसके लिये शिक्षा विभाग का एनओसी चाहिये। इसके बाद शिक्षा विभाग ने यह एनओसी जारी कर दिया जिसे 19.11.2008 को शिक्षा मन्त्री ने स्वीकृति प्रदान कर दी तथा 25.11.2008 को यह युवा सेवायें विभाग के नाम हो गया। इस जमीन की लीज़ के लिये अनुराग ठाकुर ने बतौर एच पी सी ए अध्यक्ष 3.7.2008 को निदेशक युवा सेवायें एवं खेल को पत्र लिखा। जबकि जिलाधीश 4.4.2008 को ही इस संदर्भ में अपनी कारवाई बैठक बुलाकर शुरू कर देते हैं। इसके बाद 8 जून 2008 को प्रधान सचिव युवा सेवायें एवम् खेल प्रधान सचिव शिक्षा को पत्र लिखकर इसके लिये एनओसी का प्रबन्ध कर लेते हैं। यह भवन 2009-10 में गिराया जाता है जब रियो कन्सट्रक्शन और एएनएस इसका निर्माण कार्य शुरू करते हैं। इस मामले के पूरे तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि इसमें युवा सेवायें और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अति उत्साही होकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस आवासीय परिसर का निमार्ण ही 1979-80 में हुआ था और इसके लिये यूजीसी ने भी करीब चार लाख रूपया उस समय दिया था। यह भवन स्टेडियम के मुख्य द्वार और स्टेडियम के बीच पड़ता था और इस नाते एच पी सी ए को इसकी आवश्यकता थी। लेकिन उसके लिये अधिकारियों ने जिस ढ़ग से सारे काम को अन्जाम दिया है उससे आज यह अपराध बनकर सामने खड़ा हो गया है। एचपीसीए ने इस एफआईआर को रद्द किये जाने के लिये एक आधार यह भी लिया है कि इसमें अधिकारियों के स्तर पर हुये प्रशासनिक चूक के लिये उन पर अपराधिक जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती है।
लेकिन एचपीसीए के इन तर्कों से यह इंगित होता है कि जब इस मामले का ट्रायल शुरू होगा तो "Blue eyed" अधिकारियों का खुलासा भी होगा और उनके खिलाफ कारवाई की नौबत भी आयेगी। सचिवालय के गलियारों में इसको लेकर चर्चाओं का दौर शुरू है।
शिमला/शैल। शिमला स्थित पत्रकारों सहकारी हाऊसिंग सोसायटी को लेकर 12.11.2014 को वरिष्ठ सीएम कुभंकरणी ने जो सवाल उठाये थे उनको लेकर जिलाधीश शिमला को पत्र लिखा था। इस पत्र में सोसायटी के कुछ सदस्य पत्रकारों के शपथ पत्रों की प्रमाणिकता पर सन्देह व्यक्त किया गया था। इस पत्रा पर हुई कारवाई के तहत यह मामला आगामी कारवाई के लिये 24.12.2014 को एसडीएम को भेजा गया था। इससे पहले 21.4.2011 को भी ऐसा ही एक पत्र दिनेश गुप्ता ने सहायक पंजीकार सहकारी सभाओं को भेजा था। कुंभकरणी और दिनेश गुप्ता के पत्रों पर अन्तिम रूप से क्या कारवाई हुई है इसकी कोई ज्यादा जानकारी सामने नहीं आ पायी है। परन्तु पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी के अतिरिक्त सचिवालय कर्मचारियों की हाऊसिंग सोसायटी अधिकारियों की हाऊसिंग सोसायटी विधायकों की हाऊसिंग सोसायटी और डाक्टरों की हाऊसिंग सोसायटी को लेकर भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। इन सवालों के जबाव पंजीयक सहकारी सभाओं की ओर से आने हैं। लेकिन इस समय प्रदेश में करीब पचास हजार एनजीओ सहकारिता अधिनियम के तहत पंजीकृत है। नियमों के अनुसार इन सबका आॅडिट करने की जिम्मेदारी सहकारिता विभाग की है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी तक करीब चार हजार की ही आॅडिट रिपोर्ट विभाग के पास है। पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी को लेकर एक आरटीआई एक्टिविस्ट डा.पवन बंटा ने आरटीआई के तहत सूचना हासिल करके यह आरोप लगाया है कि यह सोसायटी लीज़ अनुबन्ध की धारा 9 और 12(बी) के प्रावधानों का खुले तौर पर उल्लंघन कर रही है। धारा नौ के तहत इसके सरकार की अुनमति के बिना इसका लैण्डयूज नहीं बदला जा सकता। धारा 12(बी) के तहत इसके सदस्यों को यह शपथ पत्र देना होता है कि शिमला में उनके अपने या अपने किसी परिजन के नाम पर कोई मकान, फलैट या प्लाॅट नहीं होना चाहिये। डा. बन्टा का आरोप है कि इस सोसायटी के करीब आधा दर्जन सदस्यों के पास शिमला में सोसायटी के गठन से पहले ही मकान, फलैट या प्लॅाट हैं और उन्होने गल्त शपथ पत्र दायर किये हैं। कुछ सदस्यों पर सोसायटी के परिसर पत्रकार बिहार से वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने का भी आरोप है।
डा. बन्टा ने अपने आरोपों के प्रमाण भी आरटीआई के माध्यम से ही हालिस करे रखे हैं। इस संबध में जिलाधीश शिमला और पंजीयक सहकारी सभाओं को भी शिकायत भेज दी गयी है। माना जा रहा है कि यदि इन कार्यालयों की ओर से कोई कदम न उठाये गये तो मामला न्यायालय तक भी पहुंच सकता है।
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