शिमला/शैल। भाजपा की परिवर्तन रैली भाजपा के भीतर ही कई बदलावों के संकेत दे गयी है यह मानना है राजनीतिक विश्लेषकों का। और इस मानने का आधार है प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नड्डा के बिलासपुर में देश के पहले हाईड्रो इंजीनियरिंग काॅलिज के उद्घाटन के अवसर पर वहां लगी पट्टिका। इस पट्टिका में प्रदेश के राज्यपाल, प्रदेश के मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल और मन्त्री जीएस बाली। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने इसके लिये केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जेपी नड्डा के नाम की भी संस्तुति की थी। क्योंकि नड्डा बिलासपुर जिले से ताल्लुक रखते है और मोदी के सहयोगी मन्त्री है तथा उन्हे प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के रूप में भी देखा जा रहा है। परन्तु जब पीएमओ से इस पट्टिका पर लिखे जाने वाले नामों की सूची राज्य सरकार के पास पहुंची तो नड्डा का नाम इस सूची से गायब पाये जाने पर सब हैरान थे। नड्डा के इस प्रकरण के साथ ही पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् पूर्व केन्द्रिय मन्त्री रहे शान्ता कुमार का इस रैली में जिन भी कारणों से भाषण नही हो सका उसके संकेत भी बहुत सकारात्मक नही रहे है।
फिर इस रैली से पूर्व नगर निगम शिमला की पूर्व मेयर रही मधु सूद अपने पति सहित कांग्रेस छोड़ भाजपा में हुई। मधू सूद के अतिरिक्त कैलाश फैडरेशन के अध्यक्ष बृज लाल और उनके साथ सीता राम धीमान व गुरूदत्त शर्मा वगैरा भी भाजपा में शामिल हुए। पिछले काफी अरसे से यह क्यास लगाये जा रहे थे कि कांगे्रस के कुछ मन्त्री और विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है। कई विधायकों/मन्त्रीयों के नाम तक खबरों में उछल गये थे। जब प्रधानमऩ्त्री शिमला आ ही रहे थे तो ऐसे लोगों को भाजपा में शामिल करवाने का उससे अच्छा मौका कोई ओर हो ही नही सकता था। प्रदेश को कांग्रेस मुक्त करने के लिये कुछ बड़े लोगों को इस अवसर पर भाजपा में शामिल करवाया जाना बनता था। ताकि एक बड़ा संकेत और संदेश जाता। इससे कई दिनों तक प्रदेश के राजनीतिक पारे को गर्म रखा जा सकता था। लेकिन संयोगवश भाजपा यह सब नहीं कर पायी ।
अभी नगर निगम शिमला के चुनाव होने जा रहे हैं। नगर निगम शिमला में इस दौरान एशियन विकास बैंक की ऋण सहायता से पर्यटन विभाग के तहत करीब 260 करोड़ का सौन्दर्यीकरण का काम चल रहा है। इस काम को अंजाम देने में बतौर ठेकेदार अभी भजपा में शमिल हुई पूर्व मेयर मधू सूद के पति पी के सूद की बड़ी भूमिका है। इस काम की गुणवता पर भाजपा के पूर्व प्रदेश और शिमला के विधायक सुरेश भारद्धाज स्वयं सवाल उठा चुके हैं। अभी निगम चुनावों में यह एक बडा मुद्दा होगा यह तय है। फिर नोटबंदी के दौरान लेबर के माध्यम से पुराने नोट मालरोड के बैंक से बदलवाने में भी कई चर्चाएं रही है। सूत्रों की माने तो आयकर विभाग सूची में भी यह नाम पड़ताल के दायरे मे आ चुके हैं। भाजपा में शामिल होने वाले इन सबके अपने - अपने कारण है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा प्रदेश कांग्रेस मुक्त करके साठ के आंकड़े को कैसे हालिस कर पाती है।
इस समय राष्ट्रीय स्तर पर जो लहर भाजपा के पक्ष में चल रही है। वह विधान सभा चुनावों तक कैसे बरकरार रह पाती है यह एक बड़ा सवाल होगा। क्योंकि अभी एमसीडी के चुनाव में जिन दो सीटों पर मतदान नही हो सका था अब वहां दो दिन बाद ही चुनाव में दोनों सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत हुई है उसमें भी एक सीट उस राजौरी गार्डन की है जहां विधान सभा के उप- चुनाव में आम आदमी पार्टी की जमानत जब्त हुई थी। दो दिन में ही भाजपा की लहर का गाबय हो जाना यह इंगित करता है कि आम आदमी पार्टी ने ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर जो सवाल उठाये थे शायद उनमें कोई दम था। अब ईवीएम पर उठते इन्ही सवालों के कारण चुनाव आयोग ने हिमाचल सहित आने वाले हर चुनाव में VVPAT सिस्टम मशीनों के इस्तेमाल की घोषणा की है।
ऐसे में हिमाचल के आने वाले चुनावों में भ्रष्टाचार ही सबसे बड़ा मुद्दा होगा। इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व एक बराबर घिरा हुआ है। कौन किसको पहले अंजाम तक पहुंचाता है यह देखना शेष है। इसी परिदृश्य में आज भाजपा सत्ता के सपने के कारण एकदम खेमों में बंटती नजर आ रही है। सभी खेमे यह भ्रम पाले हुए हैं कि उन्हे आसानी से सत्ता हासिल हो जायेगी। भाजपा में केवल प्रेम कुमार धूमल में ही वीरभद्र से टकराने का साहस है। वीरभद्र भी इस तथ्य को स्वीकारते हैं इसीलिये वही वीरभद्र के निशाने पर रहते हैं। कांग्रेस में आज भी वीरभद्र के खिलाफ कोई भी खुली बगावत का साहस नही कर पा रहा है जबकि वह केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों से बुरी तरह घिरे हुए हैं। इस परिदृश्य में यदि भाजपा की परिवर्तन रैली का आकलन किया जाये जो यह नही लगता कि इससे कोई बडा दीर्घकालिक लाभ भाजपा को मिल पायेगा। नगर निगम शिमला पर अब तक भाजपा अपना कब्जा नही कर पायी है। पिछली बार महापौर और उप-महापौर के सीधे चुनाव होने के कारण पार्षदों का बहुमत होने के बावजूद भाजपा जीत कर भी हार गयी थी। इस बार फिर पुराने पैट्रन पर चुनाव होने जा रहे हैं। वाम दल भी पूरी ताकत के साथ चुनाव में होंगे। ऐसे में क्या तिकोने मुकाबले में भाजपा निगम पर कब्जा कर पायेगी? यह बड़ी चुनौती उसके सामने होगी। प्रधानमन्त्री द्वारा शिमला में परिवर्तन रैली को संबोधित करने के बावजूद भी यदि भाजपा को सफलता नही मिल पाती है तो इसका नुकसान विधानसभा चुनावों में भी उठाना पड़ सकता है।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के गिर्द सीबीआई और ईडी जांच का घेरा जैसे - जैसे बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में कांग्रेस संगठन के अन्दर भी एक तरह की अराजकता का वातावरण पनपता जा रहा है। इस दौरान न तो मन्त्रीमण्डल की ओर से और न ही संगठन की ओर से वीरभद्र केे साथ खड़े रहने का कोई सामूहिक ब्यान या दावा सामने आया है। जबकि इस दौरान कांग्रेस के कई मन्त्रियों और विधायकों के पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं का बाजार गर्म है क्योंकि इससे पहले कांग्रेस के सहयोगी सदस्य रहे निर्दलीय विधायक बलवीर वर्मा ने अचानक भाजपा का दामन थामने का एलान कर दिया। इसी तरह जब अन्य निर्दलीय विधायकों को राहूल गांधी के साथ भेंट करवायी गयी उसके तुरन्त बाद इनके भाजपा में शामिल होने की चर्चा सामने आ गयी जिसका इनमें से किसी ने भी खण्डन नहीं किया क्योंकि इस समय एक बार फिर उसी तरह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने का दौर शुरू हो गया है। जैसा कि यूपी और उत्तराखण्ड विधानसभा चुनावों के दौरान हुआ था और उससे पहले लोकसभा चुनावों के दौरान भी ऐसा हुआ था। कुल मिलाकर कांग्रेस को लेकर एक ऐसा राजनीतिक वातावरण बन चुका है। जिसमें हर अफवाह पर विश्वास करने की स्थिति बन गयी है।
ऐसे में यदि प्रदेश की राजनीतिक स्थिति का आकलन किया जाये तो यह सामने है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ आये से अधिक संपति मामले में सीबीआई ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी है। इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की वीरभद्र की गुहार को दिल्ली उच्च न्यायालय अस्वीकार कर चुका है। अब इसमें देर-सवेर आरोप तय होने की नौबत आ गयी है। इसी तरह ईडी मनीलाॅड्रिंग में दूसरी अटैचमैन्ट जारी करने के बाद वीरभद्र सिंह से लम्बी पूछ-ताछ कर चुका है। इस मामले में दोबारा कभी भी बुलाये जाने की तलवार लटकी ही हुई है। जबसे ईडी की यह कारवाई शुरू हुई है उसके बाद से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुक्खु विधानसभा स्पीकर बुटेल स्वयं मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह, परिवहन मन्त्री जी एस बाली और राज्य सभा सांसद विपल्व ठाकुर, सोनिया गांधी से भेंट कर चुके हैं। भले ही इन नेताओं ने अपने मिलने को शिष्टाचार भेंट कहा है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि इन मुलाकातों में प्रदेश के राजनीतिक हालात पर चर्चा हुई है। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह तो राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से भी मुलाकात कर आये हैं।
इस समय यदि कांग्रेस के पांच छः विधायक/ मंत्री पार्टी छोड़ देते है तो सरकार तुरन्त प्रभाव से अल्पमत में आ जायेगी । उस स्थिति में मुख्यमन्त्री के पास सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने या फिर विधान सभा भंग करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जाता है क्योंकि सरकार के अप्लमत में आते ही भाजपा सरकार बर्खास्तगी की मांग करेगी। उस परिदृश्य में राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। सरकार को बहुमत सिद्ध करने का समय देने या सीधे केन्द्र और राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने की स्थिति आ जाती है। विश्लेषकों का यह स्पष्ट मानना है कि प्रदेश में यह स्थिति कभी भी आ सकती है। मुख्यमन्त्री की राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद संभावना ज्यादा चर्चा में है। अभी नगर निगम शिमला के चुनाव होने जा रहे है। यह चुनाव पार्टी के चिन्ह पर लडे़ जायें या नही, इसको लेकर मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पार्टी अध्यक्ष सुक्खु में मतभेद चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमन्त्री यह चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़ना चाहते हैं लेकिन सुक्खु इसके पक्ष में नही है। संगठन के कई मुद्दों पर वीरभद्र और सुक्खु में मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। हमीरपुर जिले में सुक्खु की अध्यक्षता में पार्टी दो उपचुनाव हार चुकी है। इसे सुक्खु की व्यक्तिगत हार माना जा रहा है क्योंकि हमीरपुर सुक्खु का गृह जिला है।
दूसरी ओर भाजपा की अभी राष्ट्रीय परिषद् की बैठक के बाद यह चर्चाएं लगातर सामने आ रही हैं कि भाजपा ने प्रदेश विधानसभा के चुनावों के लिये अभी से रणनीति बना ली है। अभी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी शिमला आ रहें है। मोदी के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह मई में प्रदेश दौरे पर आ रहे है। मोदी और शाह की इन प्रदेश यात्राओं को विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में ही देखा जा रहा है लेकिन भाजपा की इन चुनावी तैयारीयों के मुकाबले में कांग्रेस की ओर से सरकार और संगठन के स्तर पर कुछ भी नजर नही आ रहा है। कांग्रेस के मन्त्रीयों ने भी अपने को अपने चुनाव क्षेत्रों तक ही सीमित करके रख लिया है। इस समय वीरभद्र के बाद पार्टी के अन्दर दूसरी पंक्ति का नेतृत्व नही के बराबर है। वीरभद्र के बाद पार्टी का दूसरा बड़ा नेता कौन है? पार्टी को कौन आगे संभाल सकता है? इसको लेकर जनता तो दूर स्वयं पार्टी के विधायकों तक को यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। अधिकांश विधायक नेतृत्व के प्रश्न पर कुछ भी कहने की स्थिति में नही है क्योंकि अब तक जिस भी नेता ने इस मुद्दे पर स्वर उभारने का प्रयास किया ओर दो चार विधायकों को साथ जोड़ा उसी ने वीरभद्र से अपने दो चार व्यक्तिगत काम निकलवाकर अपने को शंात कर लिया। फिर इस समय भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त करने के अभियान पर है और इसके लिये कांग्रेस नेताओं का अपने में शामिल करने की येाजना पर काम कर रही है। इस समय प्रदेश में भाजपा के पास भी लगभग एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस के मुकाबले के लिये कोई बड़े सशक्त चेहरे नही है। ऐसे में इस समय भाजपा के पक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर जो हवा बनी हुई है उसके सहारे हिमाचल में कांग्रेस के अन्दर तोड़-फोड़ कोई ज्यादा कठिन नहीं होगा। इसके लिये चुनावों में टिकट के ठोस आश्वासन से अधिक कांग्रेसीयों को कुछ नही चाहिए। टिकट का आश्वासन पाकर वह अगले पांच साल अपने लिये सुरक्षित कर लेते हैं।
माना जा रहा है कि वीरभद्र भी इन राजनीतिक संभावनाओं पर बराबर नजर बनाये हुए है। जैसे ही सीबीआई की चार्जशीट और ईडी की कारवाई आगे बढ़ेगी उसी के साथ वीरभद्र विधानसभा भंग करने का ऐलान कर सकते हैं क्योंकि ऐसी कारवाई के बढ़ने के साथ ही सरकार का गिरना निश्चित हो जायेगा। ईडी कभी भी दोबारा बुला सकती है। सूत्रों के मुताबिक 21 को मेडिकल कारणों से ईडी में नही जा सके थे क्योंकि रात को ही मैडिकल सहायता की आश्वयकता आ पड़ी थी
पहले यह जांच मुख्य सचिव ने करनी थी
शिमला/शैल।धर्मशाला के मकलोड़गंज में 2004 से बीओटी के तहत बन रहे बस स्टैण्ड और चार मंजिला होटल तथा शापिंग काम्लैक्स के निर्माण पर फिर अनिश्चितता की तलवार लटक गयी है। स्मरणीय है कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है जिसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अनुमतियां न लिये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी के समक्ष एक अतुल भारद्वाज ने शिकायत डाली थी। इस शिकायत की जांच करके सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में रखी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निर्माण पर कानूनी प्रावधानों की गंभीर उल्लंघना के आरोप लगाते हुए सारै संवद्ध प्रशासनिक तन्त्र इसमें मिली भगत पायी गयी थी। इसमें प्रदेश सरकार पर एक करोड़ रूपये का जुर्माना भी लगाया गया था। सरकार के साथ ही निर्माण कार्य कर रही कंपनी मै. प्रंशाति सूर्य को ब्लैक लिस्ट करने और जुर्माना लगाने की संस्तुति की गयी थी।
सीईसी की इस रिपोर्ट को मै. प्रशांति सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया। इस फैसले में मै0 प्रशांति सूर्य को पर्यावरण संरक्षण के एनजीटी अधिनियम की धारा 15 और 17 के तहत 15 लाख का जुर्माना लगाया गया। यह जुर्माना प्रदेश के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में जमा करवाना होगा। इसी के साथ प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग तथा बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथाॅरिटी पर भी दस लाख का जुर्माना लगाया गया। हिमाचल सरकार पर पांच लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का अलग से जुर्माना लगा है। इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को भी दो सप्ताह के भीतर गिराये जाने के निर्देश दिये गये हैं। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को इस पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने पारित किये हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की बस अड्डा प्राधिकरण ने फिर अपील के माध्यम से चुनौति दी। इस अपील की सनुवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस संद्धर्भ में जो जांच प्रदेश के मुख्य सचिव को करने की जिम्मेदारी दी थी अब जांच जिला कांगड़ा के सत्र न्यायधीश को करने की जिम्मेदारी दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है। कि We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers responsible for the construction of the bus stand / hotel/accompanying complex and to submit a report to this Court as to the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a suitable presenting officer to assist him in the matter. We further direct that the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his/her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek any clarification or direction considered necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report before this Court within a period of four months from the date a copy of this order is received by him.
सैशन जज धर्मशाला ने इस जांच के संद्धर्भ में अभी तक अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को नहीं सौंपी है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय और सीईसी ने जिस विस्तार से इस मामले में हुई हुई धांधलीयों को उजागर करते हुए सभी संबद्ध पक्षो को कड़ी फटकार और जुर्माना लगाया है उसे देखते हुए इसमें संलिप्त रहे सारे अधिकारियोें की व्यक्तिगत जिम्मेदारीयां तय होना निश्चित माना जा रहा है। क्योंकि इसमें हुई अनियमितताओं का संज्ञान तो शीर्ष अदालत पहले ही ले चुकी है। अब इसमें केवल यह तय होना ही शेष है कि किस अधिकारी के स्तर पर क्या कोताही हुई है।
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