मेयर और डिप्टी मेयर पर भाजपा का कब्जा तय
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनाव प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देशानुसार करवा लिये गये हैं। इन निर्देशों के अनुसार 19 जून को नये हाऊस का गठन हो गया है लेकिन कोरम पूरा न होने के कारण इसके महापौर और उपमहापौर का चुनाव नही हो सका है। इसके लिये 20 जून को फिर हाऊस की बैठक बुलाई गयी है। निगम के हाऊस का गठन पार्षदों के साथ शपथ लेने के साथ पूरा हो गया है। प्रशासन की जिम्मेदारी 19 जून तक हाऊस का गठन करने की थी लेकिन हाऊस के गठन के बाद इसके मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव भी प्रशासन की ही जिम्मेदारी है। इसको लेकर एक्ट मे कुछ स्पष्ट नही है। बल्कि चार जून को पिछले सदन का कार्यकाल पूरा होने के बाद 19 जून तक निगम की वैधानिक स्थिति क्या है इसको लेकर भी एक्ट में कुछ स्पष्ट नही है। क्योंकि नगर परिषदों के लिये तो एक्ट में यह प्रावधान है कि चयनित हाऊस की गैर मौजूदगी में इस पर प्रशासक नियुक्त हो जाता है। नगर परिषद् ठियोग में काफी समय तक इसके प्रशासक की जिम्मेदारी नायब तहसीलदार के पास रही है जबकि परिषद् में सचिव स्थायी तौर पर नियुक्त था। किन्तु नगर निगम के संद्धर्भ में एक्ट के अन्दर प्रशासक का कोई प्रावधान नही किया गया है। नगर निगम का आयुक्त प्रशासक की जिम्मेदारी नहीं निभा सकता है, क्योंकि वह तो निगम का अधिकारी होने के नाते हाऊस को जवाबदेह है। इसलिये जो निगम के हाऊस को जवाबदेह है वह उसका प्रशासक नही हो सकता। इसी के साथ एक्ट में यह भी स्पष्ट नही है कि यदि पार्षदों की संख्या दो भागों में बराबर-बराबर हो जाये तो उस स्थिति में क्या होगा। निगम की वैधानिकता को लेकर इस बार शहरी विकास विभाग ने चार जून को बनी स्थिति पर सरकार से निर्देश मांगे थे। सचिवालय में फाईल विधि विभाग को राय के लिये भेज दी लेकिन विधि विभाग ने कोई स्पष्ट राय देने के स्थान पर राज्य चुनाव आयोग के विचार जानने की 
सलाह दे दी। चुनाव आयोग ने यह कहकर निपटारा कर दिया कि एक्ट में इस बारे में कुछ नही कहा गया है।
स्मरणीय है कि निगम के चुनाव नियमों में भाजपा और कांग्रेस दोनो के शासनकालों में संशोधन हुए है। जब मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव सीधे मतदान से करवाया गया था। तब चुनाव नियमों में संशोधन हुआ। अब जब 11.2.2016 को पुनः नियमों में संशोधन करके मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान से करवाने की अधिसूचना जारी की गयी तब भी एक्ट की इन कमीयों की ओर ध्यान नही दिया गया। बल्कि इस बार जब चुनावों को लेकर मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा जब भी इस ओर ध्यान नही दिया गया। अब 11.2.2016 को अधिसूचित हुए चुनाव नियमों के अनुसार इस बार मेयर का पद पहले आधे कार्यकाल के लिये अनुसूचित जाति को जायेगा। उसके बाद बाकी बचेे आधे कार्यकाल में यह पद अनुसूचित जनजाति को जायेगा। उसके अगले कार्यकाल में पहले अर्द्ध में सामान्य वर्ग को जायेगा और शेष अर्द्ध में महिला के लिये होगा। यह महिला सामान्य और रिजर्व किसी भी वर्ग से हो सकती है। इस पर भी नियमों में पूरी स्पष्टता नही है। क्योंकि यदि फिर यह चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से करवाने का फैसला लेकर नियमों में संशोधन किया जाता है उस स्थिति में रोस्टर प्रावधान का क्या होगा इस पर भी नियमों में कुछ स्पष्ट नही है। For rule 12 of the said rules, the following rule shall be substituted, namely:-"12 Reservation and rotation of the office of Mayor- (1) The reservation for the office of Mayor shall be as under:-
(i) During the first two & half years SC
(ii) During the Second two & half years ST
(iii) During the next two & half years Gerenal
( iv) During the next two & half years Woman
Provided that where the population of any class of persons referred to above is less than fifteen percent of the total population of the Corporation area, the office of Mayor shall not be reserved for that class and same shall be thrown open to all the categories. इस बार जब निगम में वार्डो की संख्या बढ़ाकर 34 की गयी थी उस समय यह चिवार नही किया गया कि चुनाव परिणाम में पक्ष और विपक्ष में बराबर संख्या होने पर क्या किया जायेगा। इस बार यह पार्टी चिन्ह पर नही हुए हैं और उस दृष्टि से सभी एक प्रकार से निर्दलीय हैं। कब कौन पासा बदल ले इसकी संभावना ऐसे खंडित जनादेश में बराबर बनी रहती है। कोई भी दल अपने सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई नही कर पायेगा क्योंकि चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं हुए हैं। इस बार भाजपा ने कांग्रेस को जनादेश में हराकर मेयर के लिये रणनीति में भी करारी हार दे दी है। लेकिन इस तरह से जुटाये गये बहुमत को संभाले रखना भी आसान नही होता है क्योंकि ऐसी रणनीति के केन्द्र में सिन्द्धातो के स्थान पर सत्ता रहती है और सत्ता का लालच खतरनाक सिद्ध होता है। इस परिदृष्य में यदि भाजपा निगम एक्ट की कमीयों को सुधारने में सफल हो जायेगी तो भविष्य की ऐसी सारी संभावनाएं समाप्त हो सकती है अन्यथा हर बार यह खतरे बने रहेंगे।
कुछ अधिकारियों और नेताओं तक आ सकती है आंच
शिमला/शैल। पांच लाख के रिश्वत मामलों में एक उद्योगपति के साथ रंगे हाथों सीबीआई द्वारा पकड़े गये हिमाचल उद्योग विभाग के बद्दी स्थित संयुक्त निदेशक तिलक राज शर्मा अभी तक न्यायिक हिरासत से बाहर नही आ पाये हैं। सीबीआई के चार दिन के रिमांड के बाद अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। यह चौदह दिन पूरे होने के बाद जब तिलक राज को पुनः अदालत में पेश किया गया तब सीबीआई ने उनकी हिरासत जारी रखने का आग्रह किया जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया क्योंकि तिलक राज ने स्वयं ही जमानत के लिये याचना नही की थी। तिलक राज ने जमानत के लिये क्यों आवदेन नही किया इस सवाल की पड़ताल में यह सामने आया है कि अब इस प्रकरण का सीबीआई के साथ ही ईडी ने भी संज्ञान ले लिया है।
स्मरणीय है कि जब एक फार्मा उद्योग की सब्सिडी की फाईल प्रौसैस करने के लिये तिलक राज ने अशोक राणा के माध्यम से दस लाख की रिश्वत की मांग की थी और इस मांग की सूचना सीबीआई को दी गयी थी तब सीबीआई ने तिलक राज, अशोक राणा और शिकायतकर्ता चन्द्रशेखर के बीच इस संद्धर्भ में हो रही बातचीत को रिकार्ड किया था जब उस संवाद में यह सामने आया था कि रिश्वत का यह पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना है। फिर तिलक राज और अशोक राणा के चार दिन के रिमांड के दौरान सीबीआई को जो जानकारीयां मिली हैं उनमें एक दिल्ली स्थित सुरेश पठानियां का नाम भी सामने आया है। इसके अतिरिक्त दो नेताओं, दो बड़े अधिकारियों और इनके कुछ परिजनों तथा कुछ पत्राकारों के नाम भी सामने आने की चर्चा है जिन लोगों ने अकसर तिलक राज की सवेाओं का लाभ भी उठाया है और उसे संरक्षण भी दिया है। यह सारी जानकारियां मिलने के बाद सीबीआई ने इन सारे लोगों के बारे में आयकर, आईबी आदि के माध्यम से भी पड़ताल की है। इस पड़ताल के बाद ही दिल्ली में रघुवंशी और सुरेश पठानिया से अलग-अलग पूछताछ करने के साथ ही तिलक राज और अशोक राणा को आमने-सामने बैठा कर भी सवाल जवाब किये गये हंै। सूत्रों की माने तो बहुत लोगों की दिल्ली, चण्डीगढ़ और देहरादून तक संपत्तियां होने की जानकारी सामने आयी है।
बद्दी में कुछ फार्मा उद्योगों के लाईसैन्सों को लेकर तथा कुछ स्टोन क्रशरों पर ईडी लम्बे समय से नजर रखे आ रहा था। इसमें उद्योग विभाग के साथ-साथ, पाल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड, तथा स्वास्थ्य विभाग के ड्रग कन्ट्रोल बोर्ड, तथा स्वास्थ्य विभाग के ड्रग कन्ट्रोल से जुडे अधिकारी केन्द्रिय एैजैन्सियों के राडार पर चल रहे थे कुछ उद्योगों के दस्तावेजों को लेकर तो एक अधिवक्ता की सेवाएं भी ली गयी है। इस अधिवक्ता ने भी अपनीे रिपोर्ट में कुछ उद्योगों की प्रमाणिकता पर गंभीर सवाल उठाये हैं। यह रिपोर्ट भी कुछ उद्योगों द्वारा सब्सिडी लिये जाने के संद्धर्भ में आई है। इस रिपोर्ट के बाद ही ईडी ने करीब डेढ़ दर्जन उद्योगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर रखी है। माना जा रहा है कि तिलक राज और उसके संपर्काे पर ऐजैन्सीयों की लम्बे समय से नजर चली आ रही थी। अब तिलक राज की गिरफ्तारी और जमानत के लिये आवदेन न करने से यह माना जा रहा है कि यह पूरा प्रकरण काफी लम्बा चलेगा और इसमें आने वाले दिनों में कई लोगों पर गाज गिरेगी।
अब ईडी द्वारा इसका संज्ञान लेने के बाद तथा इस संद्धर्भ में रघुवंशी और सुरेश पठानिया से भी प्रारम्भिक पूछताछ होने से यह माना जा रहा है कि इस मामले में कई बड़े लोगों से निकट भविष्य में पूछताछ की जायेगी तथा कुछ और गिरफ्तारीयां भी हो सकती है।
शिमला/शैल। भाजपा के हर छोटे बडे़ नेता को मुख्यमन्त्री वीरभद्र से त्यागपत्र मागंना क्या राजनीतिक मजबूरी बन गया है यह सवाल अब चर्चा में आने लगा है। क्योंकि वीरभद्र के खिलाफ केन्द्र की तीन ऐजैन्सीयों आयकर सीबीआई और ईडी में मामले चल रहे हैं। इनमे सीबीआई के आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच पूरी होकर चालान भीअदालत में पहुंच चुका है। इस मामले में वीरभद्र सहित सभी नामजद़ अभियुक्तों को अदालत से
जमानत मिल चुकी है। इस मामले कोअन्तिम निर्णय तक पहुचने के लिये ट्रायल कोर्ट से सर्वोच्च न्यायालय तक का लम्बा सफर तय करना पडे़गा यह तय है। ऐसे में इस मामले का अभी कोई प्रतिकूल राजनीतिक प्रभाव पड़ना संभव नहीं है।
सीबीआई के बाद ईडी में मनीलाॅडरिंग का मामला चल रहा है। इस मामले में ईडी चल /अचल संपत्ति को लेकर दो अटैचमैन्ट आदेश जारी कर चुकी है। पहला आदेश जारी होने के बाद ईडी ने जुलाई 2016 में वीरभद्र के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर लिया था। आनन्द की जमानत याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय भी रद्द कर चुका है। उसके खिलाफ चालान भी अदालत में पहुंच चुका और अदालत ने उसका संज्ञान लेने के बाद अगली प्रक्रिया भी शुरू कर दी है लेकिन दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी होने के बाद किसी की भी गिरफ्तारी नही हुई है। इस मामले में नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर किसी अदालत से कोई रोक नही है फिर भी अभी तक किसी की गिरफ्रतारी हुई नही है। अब तक किसी अन्य की गिरफ्तारी न हो पाने और आनन्द की जमानत उच्च न्यायालय द्वारा भी अस्वीकार कर दिये जाने से इस मामले को लेकर ईडी और केन्द्र सरकार की नीयत तथा नीति पर ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि ईडी सीधे जेटली के वित्तमन्त्रालय के अधीन आती है।
इन मामलों से हटकर अब सीबीआई ने प्रदेश के उद्योग विभाग के बद्दी स्थित संयुक्त निदेशक तिलकराज शर्मा को एक उद्योगपति अशोक राणा के साथ पांच लाख की रिश्वत लेते चण्डीगढ में रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। चार दिन के रिमाण्ड के बाद इन लोगों को चौदह दिन की ज्यूडिश्यिल कस्टडी में भेज दिया गया है। इस मामले में भी यह आया है कि रिश्वत का पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना था लेकिन इस मामले में भी अभी तक कोई और गिरफ्तारी नही हुई है। जबकि यह चर्चा आम हो चुकी है कि चार दिन के रिमाण्ड में तिलक राज ने मुख्यमन्त्री के ही कार्यालय के दो अधिकारियों का नाम लिया है जिनको रिश्वत का पैसा जाता था। यह भी चर्चा है कि उद्योगमंन्त्री और उनके अधिकारियों का नाम भी सामने आया है यह भी चर्चा है कि इसमें कुछ पत्रकारों के भी नाम सामने आये हैं। जिनके माध्यम से ऊपर तक लेन-देन होता था। चार महिलाओं के नाम भी चर्चा में हैं। तिलक राज प्रकरण के सामने आते ही भाजपा नेताओं ने भी इस पर काफी ब्यानबाजी शुरू की थी जो अब बन्द है। चर्चा है कि तिलक राज के साथ गिरफ्तार हुए अशोक राणा की सास सत्या राणा ऊना की एक प्रमुख भाजपा नेत्री हैं और उनका मायका रोहडू में है। रोहडू के नाते उनके संबध मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह से भी बहुत अच्छे हैं। इसी के साथ यह भी चर्चा है कि तिलक राज की भाजपा नेतृत्व के साथ भी बराबर की नजदीकीयां हैं। इस मामलें में भी और कोई गिरफ्तारी नही हुई है। साथ ही भाजपा भी इस प्रकरण पर अब चुप है।
ऐसे में आज वीरभद्र के मामलों की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी कि एचपीसीए और अनुराग-धूमल के मामलों की है। बल्कि केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा के खिलाफ भी ऐम्ज का मामला एक लम्बे अरसे से चर्चा में चल रहा है। संजीव चतुर्वेदी ने इस ऐम्ज प्रकरण में अदालत तक में नड्डा की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठाये हैं इन चर्चाओं में अब ऐम्ज की जमीन का हजारों करोड़ का मामला भी जुड़ गया है। इस जमीन मामले को संघ परिवार के ही एक सहयोगी प्रकाशन ने दस्तावेजों सहित पाठकों के सामने रखा है। फिर जब नड्डा प्रदेश वन मन्त्री थे तब जेपी उद्योग ने कैट प्लान में आभूषणों की खरीद दिखाकर जो कारनामा किया था विभाग में आज भी उसकी चर्चा सुनी जा सकती है। उस दौरान वन विभाग द्वारा विभिन्न एनजीओ को जो करोड़ो का अनुदान दिया गया था उसमें अधिकांश के तो नाम पते भी संदिग्ध रहे हैं। ऐसे मे भ्रष्टाचार आज एक ऐसा विषय बन गया है जिस पर कड़ा स्टैण्ड दिखाना और विरोधी से त्यागपत्र मांगना महज एक राजनीतिक संस्कृति मात्र रह गया है जिसके प्रति कभी कोई गंभीर नही होता। इस परिदृश्य में भाजपा को वीरभद्र के मामलों से अब राजनीतिक लाभ मिलने की बजाये नुकसान होने की ज्यादा संभावना हो गयी है।
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