Friday, 19 December 2025
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आवासीय परिसर गिराने के मामले में एच पी सी ए के खिलाफ रद्द नही हुई एफ आई आर

शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने एच पी सी ए के खिलाफ राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला के आवासीय परिसर को अवैध रूप से गिराने और उसकी 720 वर्गमीटर भूमि पर नाजायज़ कब्जा करने के प्रकरण में दर्ज एफ आई आर को रद्द किये जाने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया है। उच्च न्यायालय का यह फैसला एच पी सी ए और अनुराग ठाकुर के लिये एक करारा झटका माना जा रहा है। यह मामला विशेष जज धर्मशाला की अदालत में लंबित है क्योंकि अदालत द्वारा इसका संज्ञान लेने के तुरन्त बाद इसे उच्च न्यायालय में चुनौति दे दी गई थी। इस एफ आई आर को रद्द किये जाने के लिये एच पी सी ए से संजय शर्मा और गौतम ठाकुर ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी। इसमें एफ आई आर रद्द किये जाने के लिये उच्च न्यायालय के समक्ष सात आधार रखे गये थे। इनमें एक आधार यह था।
Prosecution sanction against some of the officers had already been refused by the Central Government and in case of certain individuals, the State Government itself had not granted the prosecution sanction and that apart some of the officers who are the blue eyed boys of the government have been intentionally left out and not arraigned as an accused, therefore,     the prosecution proceedings cannot continue and deserve to be quashed. अदालत ने इस आधार को यह कहकर अस्वीकार कर दिया है Suffice it to state that even this contention sansmerit as all these questions can only be determined during the trial wherein the exact role and complicity of the petitioners visa- vis the so-called blue eyed boys or with those of the officials where prosecution sanction has been refused can be evaluated and considered. Moreover, the mere fact that the Central Government has refused to accord sanction does not in any  manner improve the case of the petitioners as they admittedly are not government servants and no prosecution sanction in their cases is otherwise required to be obtained.
स्मरणीय है कि यह मामला कांगडा जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी की शिकायत पर 1.8.2013 को आईपीसी की धारा 420,406,120 B, 201 और पी सी एक्ट की धारा 13(2) के तहत एफ आई आर न0 12/13 के रूप में दर्ज किया गया था। इसकी जांच के दौरान यह सामने आया कि 4.4.2008 को तत्कालीन जिलाधीश कांगडा के. क.े पन्त की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें एस डी एम कार्यकारी अभियन्ता, सहायक अभियन्ता, प्रधानाचार्य राजकीय महाविद्यालय और संजय शर्मा शामिल हुए। यह बैठक काॅलिज के आवासीय परिसर को कहीं दूसरी जगह शिफट करने को लेकर बुलाई गयी थी और इसमें यह निर्णय हुआ कि काॅलिज के प्रिंसिपल इस परिसर की स्थिरता का आकलन करने के लिये कार्यकारी अभियन्ता को पत्र लिखेंगे और तहसीलदार की सहायता से जगह की तलाश करेंगे। इसी के साथ यह भी तय हुआ कि प्रिंसिपल सचिव शिक्षा को पत्र लिखकर इसके लिये धन का प्रावधान करें। जिलाधीश कांगडा यहां रह रहे अध्यापकों को अन्यत्र आवास उपलब्ध करवायें तथा एच पी सी ए भी इसके लिये धन का योगदान दे। इस बैठक में हुये फैंसलों की जानकारी 20.3.2008 को निदेशक उच्च शिक्षा को भेज दी गयी और प्रिंसिपल ने 25 दिन बाद इसके आकलन के लिये कार्यकारी अभियन्ता को पत्र भेजकर सूचित कर दिया कि That “It is submitted that Type-IV quarter constructed opposite cricket stadium at Dharamshala are in very dilapidated condition and are beyond economical repair”.
इसके बाद 8 जून 2008 को प्रधान सचिव युवा सेवायें एवम खेल ने प्रधान सचिव शिक्षा को यह पत्र भेजा कि एच पी सी ए इस ज़मीन को लीज़ पर लेना चाहती है और यह जमीन शिक्षा विभाग के नाम है और इस पर परिसर स्थित है जिसके कारण इसे नहीं दिया जा सकता और इसके लिये शिक्षा विभाग का एनओसी चाहिये। इसके बाद शिक्षा विभाग ने यह एनओसी जारी कर दिया जिसे 19.11.2008 को शिक्षा मन्त्री ने स्वीकृति प्रदान कर दी तथा 25.11.2008 को यह युवा सेवायें विभाग के नाम हो गया। इस जमीन की लीज़ के लिये अनुराग ठाकुर ने बतौर एच पी सी ए अध्यक्ष 3.7.2008 को निदेशक युवा सेवायें एवं खेल को पत्र लिखा। जबकि जिलाधीश 4.4.2008 को ही इस संदर्भ में अपनी कारवाई बैठक बुलाकर शुरू कर देते हैं। इसके बाद 8 जून 2008 को प्रधान सचिव युवा सेवायें एवम् खेल प्रधान सचिव शिक्षा को पत्र लिखकर इसके लिये एनओसी का प्रबन्ध कर लेते हैं। यह भवन 2009-10 में गिराया जाता है जब रियो कन्सट्रक्शन और एएनएस इसका निर्माण कार्य शुरू करते हैं। इस मामले के पूरे तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि इसमें युवा सेवायें और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अति उत्साही होकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस आवासीय परिसर का निमार्ण ही 1979-80 में हुआ था और इसके लिये यूजीसी ने भी करीब चार लाख रूपया उस समय दिया था। यह भवन स्टेडियम के मुख्य द्वार और स्टेडियम के बीच पड़ता था और इस नाते एच पी सी ए को इसकी आवश्यकता थी। लेकिन उसके लिये अधिकारियों ने जिस ढ़ग से सारे काम को अन्जाम दिया है उससे आज यह अपराध बनकर सामने खड़ा हो गया है। एचपीसीए ने इस एफआईआर को रद्द किये जाने के लिये एक आधार यह भी लिया है कि इसमें अधिकारियों के स्तर पर हुये प्रशासनिक चूक के लिये उन पर अपराधिक जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती है।
लेकिन एचपीसीए के इन तर्कों से यह इंगित होता है कि जब इस मामले का ट्रायल शुरू होगा तो "Blue eyed" अधिकारियों का खुलासा भी होगा और उनके खिलाफ कारवाई की नौबत भी आयेगी। सचिवालय के गलियारों में इसको लेकर चर्चाओं का दौर शुरू है।

पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी को लेकर फिर उठे सवाल

शिमला/शैल। शिमला स्थित पत्रकारों सहकारी हाऊसिंग सोसायटी को लेकर 12.11.2014 को वरिष्ठ सीएम कुभंकरणी ने जो सवाल उठाये थे उनको लेकर जिलाधीश शिमला को पत्र लिखा था। इस पत्र में सोसायटी के कुछ सदस्य पत्रकारों के शपथ पत्रों की प्रमाणिकता पर सन्देह व्यक्त किया गया था। इस पत्रा पर हुई कारवाई के तहत यह मामला आगामी कारवाई के लिये 24.12.2014 को एसडीएम को भेजा गया था। इससे पहले 21.4.2011 को भी ऐसा ही एक पत्र दिनेश गुप्ता ने सहायक पंजीकार सहकारी सभाओं को भेजा था। कुंभकरणी और दिनेश गुप्ता के पत्रों पर अन्तिम रूप से क्या कारवाई हुई है इसकी कोई ज्यादा जानकारी सामने नहीं आ पायी है। परन्तु पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी के अतिरिक्त सचिवालय कर्मचारियों की हाऊसिंग सोसायटी अधिकारियों की हाऊसिंग सोसायटी विधायकों की हाऊसिंग सोसायटी और डाक्टरों की हाऊसिंग सोसायटी को लेकर भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। इन सवालों के जबाव पंजीयक सहकारी सभाओं की ओर से आने हैं। लेकिन इस समय प्रदेश में करीब पचास हजार एनजीओ सहकारिता अधिनियम के तहत पंजीकृत है। नियमों के अनुसार इन सबका आॅडिट करने की जिम्मेदारी सहकारिता विभाग की है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी तक करीब चार हजार की ही आॅडिट रिपोर्ट विभाग के पास है। पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी को लेकर एक आरटीआई एक्टिविस्ट डा.पवन बंटा ने आरटीआई के तहत सूचना हासिल करके यह आरोप लगाया है कि यह सोसायटी लीज़ अनुबन्ध की धारा 9 और 12(बी) के प्रावधानों का खुले तौर पर उल्लंघन कर रही है। धारा नौ के तहत इसके सरकार की अुनमति के बिना इसका लैण्डयूज नहीं बदला जा सकता। धारा 12(बी) के तहत इसके सदस्यों को यह शपथ पत्र देना होता है कि शिमला में उनके अपने या अपने किसी परिजन के नाम पर कोई मकान, फलैट या प्लाॅट नहीं होना चाहिये। डा. बन्टा का आरोप है कि इस सोसायटी के करीब आधा दर्जन सदस्यों के पास शिमला में सोसायटी के गठन से पहले ही मकान, फलैट या प्लॅाट हैं और उन्होने गल्त शपथ पत्र दायर किये हैं। कुछ सदस्यों पर सोसायटी के परिसर पत्रकार बिहार से वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने का भी आरोप है।
डा. बन्टा ने अपने आरोपों के प्रमाण भी आरटीआई के माध्यम से ही हालिस करे रखे हैं। इस संबध में जिलाधीश शिमला और पंजीयक सहकारी सभाओं को भी शिकायत भेज दी गयी है। माना जा रहा है कि यदि इन कार्यालयों की ओर से कोई कदम न उठाये गये तो मामला न्यायालय तक भी पहुंच सकता है।

ईडी ने जारी किया दूसरा अटैचमैन्ट आदेश

मैहरोली का फाॅर्म हाऊस हुआ अटैच
विक्रमादित्य की बढ़ सकती है पेरशानी
वीरभद्र के खिलाफ गलत शपथ पत्र का भी उभरा मामला

शिमला/बलदेव शर्मा
ईडी ने अन्ततः वीरभद्र के मनीलाॅंडरिंग प्रकरण में अपनी शेष बची जांच को पूरा करते हुए इसमें अटैचमैन्ट आदेश जारी करने के साथ मैहरोली स्थित फाॅर्म हाऊस अटैच कर लिया है। यह फाॅर्म हाऊस विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी के नाम है। इस मामले की जांच के दौरान वीरभद्र सिंह ने यह ब्यान दिया है कि फाॅर्म हाऊस की खरीद विक्रमादित्य ने अपने पैसों से की है।लेकिन विक्रमादित्य ने इस दौरान जो आयकर रिटर्न दायर की है उसमें अपनी कुल आय 2,97,149 दिखाई है। इस फाॅर्म हाऊस की रजिस्ट्री 1.20 करोड़ की है और जिस गढ्ढे परिवार से यह खरीदा गया है। उसने आयकर विभाग को दिये ब्यान में यह स्वीकारा है। उसने इसमें 5 करोड़ कैश में लिया है और वह उसके लिये जुर्माना और टैक्स अदा करने के लिये तैयार है। अब ईडी ने इस फाॅर्म हाऊस की कीमत 27 करोड़ रूपये आंकी है। ऐसे में अब विक्रमादित्य को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि उनके पास फाॅर्म हाऊस खरीदने के लिये इतना पैसा कंहा से आया। यदि इस धन का वैध स्त्रोत स्थापित हो सका तो यह सब मनीलाॅंड़रिंग बन जायेगा और इसमें विक्रमादित्य के लिये काफी कठिनाई बढ़ जायेगी। The submission of the petitioner no. 1 that his son has purchased the said farmhouse from his own source of income is fallacious, as the total income reflected by the son in the income tax return for the year 2012-13 is Rs. 2,97,149/- which is nowhere close to the amount required to purchase a farm house. He submits that the investigation has revealed that the farm house is included in the total assets of the petitioner no. 1, and that he had, amongst others, given around Rs. 90 lakhs for purchase of the same.

यही नहीं वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई जांच में यह भी सामने आया है कि 2012 में प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ते समय जो शपथ पत्र दायर किया है उसमें भी उन्होंने अपनी आय छिपाई है। क्योंकि जुलाई 2011 में जो आयकर रिटर्न दायर की थी उसमें कुल आय 25 लाख दिखाई थी लेकिन जब 02.03.2012 को इसे संशोधित करके दायर किया गया तो यह आय 1.55 करोड़ दिखायी। परन्तु जब अक्तूबर 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ते समय जो शपथ पत्रा दायर किया गया उसमें कुल आय 18.66 लाख दिखायी गयी है। इस तरह चुनाव आयोग के पास भी वीरभद्र के खिलाफ अपनी आय कम दिखाने का आरोप आ जाता है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य को भी चुनाव आयोग के समक्ष रखने का जिक्र किया है। अब चालान दायर होने के बाद यह शपथपत्र का मामला भी आयोग में खुलने की संभावना बढ़ गयी है।It has come to light that that the first ITR for the AY 2011-12 was filed by Shri Vir Bhadra Singh on 11.07.2011 showing his agricultural income as Rs. 25 lakhs. The revised ITR for this year, showing an income of Rs.1.55 crores was filed by him on 02.03.2012. Thereafter, while contesting HP Assembly elections, he filed an affidavit on 17.10.2012 showing his income as Rs. 18.66 lakhs only. Thus, Shri Vir Bhadra Singh appears to have grossly suppressed his income in the said affidavit. This matter is proposed to be brought to the notice of the Election Commission of India, for taking necessary action as deemed fit.

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