Friday, 19 December 2025
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नेता घोषित किये बिना घातक हो सकता है भाजपा का चुनाव लड़ना

शैल/शिमला। प्रदेश भाजपा जैसे -जैसे अपनी चुनावी तैयारीयों को बढ़ाती जारही है। उसी अनुपात में यह अटकलें भी लगातार तेज होती जा रही है कि भाजपा का आगला मुख्यमन्त्री कौन होगा। बल्कि इस संबध में एक सर्वे भी सामने आया है। जिसमें शान्ता कुमार वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल , कौल सिंह ठाकुर जेपी नड्डा सुधीर शर्मा, जय रा ठाकुर और जीएस बाली के नाम शामिल किये गये है। इसमें शान्ता कुमार के लिये 11.5% वीरभद्र के लिये 18.5% प्रेम कुमार धूमल को 12% और और नड्डा को 31% लोगों की पंसद बताया गया है। इस कथित सर्वे में लोगों की राय में नड्डा 31% के साथ सबसे ऊपर और उनके बाद दूसरे स्थान पर 18.5% के साथ वीरभद्र है और धूमल 12% के साथ तीसरे स्थान पर है जबकि शान्ता कुमार 11.5% के साथ चैथे नम्बर पर है। शेष सब बहुत नीचे है इस सर्वे के मुताबिक प्रदेश के चुनाव वीरभद्र , धूमल और नड्डा तीन लोगों के गिर्द ही घूमेेंगे।
इस समय भाजपा अपने को सत्ता का प्रबल दावेदार मानकर चल रही है बल्कि उसके कुछ नेता तो अभी से अधिकारियों /कर्मचारियों के साथ भावी मन्त्री के नाते व्यवहार कर रहे है। पिछले दिनों भाजपा की सपन्न हुई परिवर्तन यात्रा के दौरान जब मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री ने नाहन - पांवटा आना था तब उनके लिये हैलीकाॅप्टर को कहां लैण्ड करवाया जाये इसको लेकर राजीव बिन्दल संवद्ध अधिकारियों पर अपनी नाराजगी बड़े सख्त अन्दाज में व्यक्त कर चुके है जबकि वह प्रशासन पर एकदम नियमों के विरूद्ध अमल करने का दवाब बना रहे थे। भाजपा नेताओं के ऐसे व्यवहार से स्पष्ट हो जाता है कि यह लोग अभी से अपने को सत्ता में मानकर चल रहे है। स्वभाविक है कि जब नेता और कार्यकर्ता ऐसी मानसिकता के साथ व्यवहार करेंगे तो निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री कौन होगा की रेस में कई नाम जुड़ते चले जायेंगें इस समय मुख्यमन्त्री के लिये प्रेम कुमार धूमल , जेपी नड्डा और अजय जम्वाल के नाम लम्बे अरसे से चर्चा में चल रहे है।
धूमल दो बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रह चुकें है इसलिये उनका आकंलन उनके उस समय के काम के आधार पर होगां वीरभद्र ने उनके कार्यकाल में कई कार्योें पर उनको घेरने का प्रयास किया है बल्कि इस प्रयास के तहत विजिलैन्स में कई मामलें भी दर्ज हुए लेकिन वीरभद्र सरकार को एक भी मामले में सफलता नही मिली हैं बल्कि उल्टी फजीहत ही झेलनी पड़ी है। नड्डा धूमल मन्त्रीमण्डल में एक बार स्वास्थ्यनेता घोषित किये बिना घातक हो सकता है भाजपा का चुनाव लड़ना और एक बार वन मन्त्री रह चुके है। स्वास्थ्य मन्त्री के कार्यकाल में विभाग के निदेशक को जेल जाने तक की नौवत आ गयी थी तो वनमन्त्री के कार्यकाल में विभाग द्वारा प्रदेश से बाहर के एनजीओ को दिये गये करोड़ों के अनुदान पर उठे सवालों का जवाब आज तक नही आया है। इसी तरह कैट प्लान के पैसे से जेपी उद्योग ने आरना मैन्टस की खरीद कैसे कर ली थी यह रहस्य आज भी बना हुआ है। अब केन्द्र में स्वास्थ्य मन्त्री के कार्यकाल में एम्ज में मुख्य सतकर्ता अधिकारी रहे संजीव चतुर्वेदी के मामले में उठा विवाद अभी पूरी तरह थमा भी नही था कि यथावत ने एम्ज की जमीन के मामले को एक नयी चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। नड्डा के आकलन में  यह सबकुछ सामने रहेगा ही यह तय है। संभवतः इसी सबकुछ को सामने रखते हुए भाजपा अध्यक्ष अमितशाह ने यह स्पष्ट कहा है कि भाजपा हिमाचल का चुनाव मुख्यमन्त्री का चुहरा सामने लाये बिना ही लड़ेगी।
भाजपा हाईकमान कई बार यह संकेत दे चुकी है कि वह चुनावों से पहले मुख्यमन्त्री का नाम उजागर नही करेगी  लेकिन इसक वाबजूद भाजपा के संभावित मुख्यमन्त्री चेहरों की सुची लम्बी ही होती जा रही है। अब इस सूची में अजय जम्वाल के बाद अनुपम खेर और सुषमा स्वराज जैसे नाम भी जोड़ दिये गये है। अपुनम खेर ने शिमला के टूटू मे जमीन लेकर मकान बनवाने का का शुरू कर रखा है और सुषमा स्वराज का तो धर्मशाला के धर्मकोट में होटल बना हुआ है। इन नामों के जुड़ने से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा में एक वर्ग बहुत ही योजनाएं तरीके से मुख्यमन्त्री कौन होगा’ के सवाल को जिन्दा रखने की रणनीति अपनाए हुए है। मुख्यमन्त्री की रेस में इतने नामों के जुड़ने से कार्यकर्ता भी स्वभाविक रूप से इन सबसे परोक्ष/अपरोक्ष में अपनी अपनी निकटता बनाने के लिये प्रयासरत हो गये है। ऐसे में सरकार और वीरभद्र के भ्रष्टाचार को जनता में ले जाने का काम कौन करेगा इसको लेकर अभी तक बहुत ज्यादा स्पष्टतः नही उभर सकी है क्योंकि अधिकांश नेताओं और कार्यकर्ताओं को इसकी विस्तृत जानकारी ही नही है।

अभी भी जारी है सुक्खु-वीरभद्र का टकराव

शिमला/शैल। पूर्व मन्त्री और पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे मेजर विजय सिंह मनकोटिया की पद से बर्खास्तगी के बाद वीरभद्र के खिलाफ उठे विरोध और विद्रोह के स्वरों की गूंज बढ़ती जा रही है। मनकोटिया की बर्खास्तगी के बाद सबसे पहले परिवहन मन्त्री जी.एस. बाली खुलकर उनके समर्थन में आ खड़े हुए। बाली के बाद छः विधायकों और कुछ जिलाध्यक्षों ने वीरभद्र और सरकार की कार्यप्रणाली पर असन्तोष व्यक्त करते हुए कांग्रेस हाईकमान को पत्र भेज दिया और इसकी एक प्रति वाकायदा पार्टी अध्यक्ष को भी थमा दी । पार्टी अध्यक्ष सुक्खु ने इस पत्र को रिकार्ड पर स्वीकारा है। इस पत्र पर आयी वीरभद्र की प्रतिक्रियाएं भी इसे सत्यापित करती है। बल्कि अब बाली के जन्म दिन पर इक्कठे हुए विधायकों और मन्त्रीयो तथा अन्य नेताओं की इस उपस्थिति को मीडिया ने वीरभद्र विरोधीयों का शक्ति प्रर्दशन करार दिया है। स्वभाविक है कि मीडिया के इस आकलन को इन नेताओं की हरी झण्डी अवश्य रही होगी। फिर वीरभद्र इस सबसे कहीं न कहीं आहत अवश्य है।
इस परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि वीरभद्र के खिलाफ मुखर हुए विद्रोह के यह स्वर कहां तक जायेंगें सूत्रों की माने तो हाईकमान ने भी इस सबको गंभीरता से लिया है और इसी कारण से प्रदेश के प्रभारीयों को बदला गया है। अब केन्द्र के यह प्रभारी विरोधीयो को लेकर क्या रिपोर्ट देते हैं और संगठन तथा सरकार में उभरे टकराव को कैसे शान्त करवाते हैं इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा लेकिन इस समय भाजपा ने भी चुनावो के मद्देनजर सरकार को कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर तो वीरभद्र को भ्रष्टाचार पर घेरने की रणनीति बनाई है। कानून और व्यवस्था के नाम पर अभी कुछ ही समय में प्रदेश के अगल-अलग हिस्सों से रेप और फिर हत्या के ही कई मामले सामने आ गये हैं। इन मुद्दों पर सरकार  को घेरने के लिये भाजपा की संगठन के तौर पर पूरी तैयारी और क्षमता है। जबकि कांग्रेस में सरकार और संगठन दोनों के स्तर पर कहीं कुछ नजर ही नही आता है। अभी कोटखाई प्रकरण में ही सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ जिस तरह के आरोप प्रचारित हुए हैं उन पर किसी कोने से कोई काऊंटर नही आया है। जिसका अपरोक्ष में अर्थ आरोपों को स्वीकारना हो जाता है।
 भ्रष्टाचार के मामले में अब तिलक राज शर्मा का एक और प्रकरण सरकार के नाम पर जुड़ गया है। पांच लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गये उद्योग विभाग के सयुंक्त निदेशक के खिलाफ सीबीआई मुख्यमन्त्री के ओएसडी रघुवंशी को भी सरकारी गवाह बनाकर पेश करेगी। क्योंकि इस मामलें की एफआईआर के मुताबिक तिलक राज शर्मा से यह पांच लाख रघुवंशी को जाना था। यह स्वयं तिलक राज की रिकार्डिंग में आ चुका है। इससे यह तो स्वतः ही प्रमाणित हो जाता है कि यह रिश्वत ली जा रही थी। अब रघुवंशी यही कहेगा कि उसने पांच लाख की कोई मांग नही की थी और न ही पहले कभी तिलक राज से ऐसे कोई पैसा लिया गया है। लेकिन इस सबसे यही प्रमाणित होगा कि उद्योग  विभाग में रिश्वत ली जा रही थी। यही आरोप विपक्ष लगाता आया है। यह इस परिदृश्य में भ्रष्टाचार और कानून एवम् व्यवस्था के सवालों पर वीरभद्र के विरोधीयों को शान्त करना आसान नही होगा। सरकार और संगठन में उठा यह सवाल घातक होगा यह तय है । इस पर यदि यह विद्रोही अब शान्त होकर बैठ जाते  है तो इनका भी नुकसान होना तय है क्योंकि तब जनता का इन पर विश्वास खत्म हो जायेगा।

क्या हिमाचल में आकार ले पायेगी आम आदमी पार्टी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के आकार ले पाने को लेकर फिर सवाल उठने शुरू हो गये हैं और यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि पार्टी की प्रदेश ईकाई के भंग कर दिये जाने के करीब एक साल बाद पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह ने पिछले सप्ताह शिमला में कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करने के बाद आयोजित की गयी पत्रकार वार्ता में यह घोषणा की कि पार्टी प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। इस संबन्ध में रिपोर्ट तैयार करने के लिये एक सात सदस्यों की कमेटी गठित करने की भी जानकारी दी और यह भी दावा किया कि पन्द्रह दिन के भीतर पार्टी के प्रदेश संयोजक की भी घोषणा कर दी जायेगी। लेकिन अब सात सदस्यों की कमेटी के स्थान पर ग्यारह सदस्यों की कमेटी गठित की गयी है। पार्टी के प्रभारी संजय सिंह के शिमला से दिल्ली पहुंचते-पहुंचते ही कमेटी के सदस्यों की संख्या 7 से 11 हो गयी है। प्रदेश के 12 जिलें है और कमेटी में करीब आधे जिलों के ही सदस्य हैं इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जिन कारणों से प्रदेश ईकाई को एक वर्ष पहले भंग कर दिया गया था वह आज भी वैसे ही बने हुए हैं। क्योंकि अभी जो कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ उसके मंच पर लगे वैनर को लेकर इन कार्यकर्ताओं में हाथा-पाई की नौबत तक आ गयी और बैनर को मंच से हटवा दिया गया। यह झगड़ा उन लोगों ने किया जो लम्बे अरसे से अपने को सोशल मीडिया पर प्रदेश का भावी मुख्यमन्त्री प्रचारित करते आ रहे हैं। इन्ही लोगों के कारण अब फिर नयी शुरूआत से पहले ही पार्टी के बनने से पहले ही उसके बिखरने के आसार सामने आ गये हैं। क्योंकि जो 11 सदस्य चुनावों को लेकर अपनी रिपोर्ट देंगे उनमें संभवतः एक भी सदस्य ऐसा नही हो जो यह दावा कर सके कि वह अमुक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडे़गा।
अभी जिस तरह कार्यकर्ता सम्मेलन में झगडा हुआ है और जो कमेटी सामने आयी है उससे यह तय है कि पार्टी को प्रदेश संयोजक तय करना आसान नही होगा। आप ने 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर उम्मीदवार उतार कर शुरूआत की थी लेकिन चुनावों के दौरान भी संगठन का कोई स्वरूप नही बन पाया। चुनावों कें बाद स्थिति यह बनी कि जिन चार लोगों ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था उनमें से दो ने तभी पार्टी से किनारा कर लिया। इसके बाद जो दो बचे उनमें से एक को संयोजक बनाया गया। उसने संगठन के लिये जो भी किया उसके कारण प्रदेश ईकाई को भंग करना पड़ा और आज वह संयोजक भापजा में घर वापसी का आवेदक है कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है। निष्पक्ष विश्लेष्कों का मानना है कि आज पार्टी में कार्यकर्ताओं के नाम पर जो भी लोग बचे हैं उनमें से जमीन पर काम करने वाला शायद एक प्रतिशत भी पूरा न हो और बाकी सारे सोशल मीडिया के नेता हैं। आज यह सोशल मीडिया के हीरो पार्टी के सर्वेसर्वा बनना चाह रहे हैं लेकिन इनमें से एक भी चुनाव लड़ने की स्थिति में नही है।
आम आदमी पार्टी से देश की जनता को उम्मीद बंधी थी कि पार्टी कांग्रेस और भाजपा का एक कारगर विकल्प बन पायेगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों से जनता उत्साहित हुई थी लेकिन उसके बाद जो कुछ दिल्ली में घटता गया और उसका प्रभाव परिणाम नगर निगम चुनावों में सामने आया उससे आम आदमी का विश्वास बुरी तरह टूटा है। उसके साथ ही पंजाब विधान सभा चुनावों में जिस तरह से प्रदेश नेतृत्व को लेकर विवाद उठा उसका परिणाम चुनावों में सामने आया है। बल्कि अभी भी पंजाब विधानसभा में ‘आप’ के विधायक दल के नेतृत्व को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है वह पुराने ही विवाद का प्रतिफल है। इसलिये आज ‘आप’ के केन्द्रिय नेतृत्व को हर प्रदेश की व्यहारिक स्थिति को सामने रखकर कदम उठाने होंगे। पार्टी को किन कारणों से यहां की ईकाई भंग करनी पड़ी कौन लोग उसके लिये कितने जिम्मेदार रहे है और आज उन सबकी स्थिति क्या है इसको लेकर जब तक केन्द्रिय नेतृत्व स्पष्ट नही हो जाता है तब तक किसी भी प्रयास का कोई परिणाम सकारात्मक नही रहेगा यह तय है।
इस समय विधान सभा चुनावों में हिस्सा लेना चुनाव आयोग के नियमों के कारण हो सकता है पार्टी की आवश्यकता हो क्योंकि राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता बनाये रखने के लिये यह अनिवार्य हो सकता है। परन्तु इसके लिये यदि एक बार फिर चयन करने में पार्टी से चूक हो जाती है तो उसका नुकसान न केवल पार्टी को ही होगा बल्कि प्रदेश को भी होगा। आज प्रदेश को कांग्रेस और भाजपा का विकल्प चाहिये क्योंकि प्रदेश गहरे आर्थिक और राजनीतिक संकट की ओर बढ़ता जा रहा है। लेकिन इसमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह दोनों बड़े दल आसानी से यह विकल्प नही बनने देंगे। इस समय पार्टी को प्रदेश में संठगन खड़ा करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका नेतृत्व इतना सशक्त होना चाहिए कि वह कांग्रेस और भाजपा के नेता और नीतियों पर एक साथ प्रहार कर सके। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्रदेश को लेकर उसके अपने पास कितना कारगार रोड मैप है। आप की जो टीम अब तक सामने आयी है उस पर अभी आम आदमी का भरोसा नही बन पा रहा है। फिर ‘आप’ का केन्द्र में भाजपा से जो टकराव चल रहा है उसको भी ध्यान में रखकर चलना होगा। इसके लिये प्रदेश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की पूरी समीक्षा और उसके लिये कांग्रेस और भाजपा नेतृत्व कहां-कहां और कितना जिम्मेदार रहा है इसका पूरा लेखा जोखा हर समय तैयार रखना होगा।

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