Saturday, 20 September 2025
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14 अगस्त तक करना होगा 1950 से लेकर अब तक के भू-लेखों का डिजिटलाईजेशन

शिमला/शैल।  मोदी सरकार ने नोटबंदी से पहले बेनामी संपत्तियों की स्वेच्छा से घोषणा करने के लिये लोगों को करीब एक वर्ष का समय दिया था। इस घोषणा की समय सीमा समाप्त होने के बाद नोटबंदी के तहत पांच सौ और एक हजार के पुराने नोटों का चलन बंद कर दिया था। सरकार के यह दानों फैसले काले धन के खिलाफ बड़ी कारवाई करार दिये गये थे। क्योंकि यह माना जाता है कि काले धन का निवेश व्यक्ति सामान्यतः चल/अचल संपत्ति खरीदने में करता है। यदि संपत्ति में यह निवेश नहीं है तो फिर पांच सौ और एक हजार के नोटों में ही इसका संग्रह करेगा। लेकिन बेनामी संपत्ति की घोषणा और उसके बाद नोटबंदी के आने से भी काले धन के संद्धर्भ में कोई विशेष परिणाम सामने नही आये हैं। इसलिये सारी भू-संपत्तियों की डिजिटलाईजेशन किये जाने और उसको आधार नम्बर से जोड़ने का फैसला लिया गया है।
15 जून को देश के सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/अतिरिक्त मुख्य सचिवों को सारे भू-अभिलेखों को 14 अगस्त तक डिजिटलाईज़ और आधार से लिंक करने के आदेश जारी किये गये है। क्योंकि हर भू -संपत्ति का राजस्व में रिकार्ड उपलब्ध रहता है। हर भू-संपत्ति का राजस्व रिकार्ड में कोई न कोई मालिक होना आवश्यक है। जिस संपत्ति का कोई मालिक नहीं है उसकी मालिक सरकार होती है। भू-संपत्ति अर्जित भी व्यक्ति दो ही प्रकार से करता है, या तो खरीद कर उसका मालिक बनता है या फिर पुश्तैनी रूप से उसे मिलती है। ऐसे में जो संपत्ति व्यक्ति के राजस्व रिकार्ड में होगी उसी का उसे मालिक माना जायेगा। इस डिजिटलाईजेशन के लिये 1950 को आधार वर्ष माना गया है क्योंकि 1947 में देश की आजादी और बंटवारे के बाद सारी स्थितियां सामान्य हो गयी थी और 26 जनवरी 1950 को ही संविधान लागू हुआ था। इसलिये व्यक्ति को उसकी वंश परम्परा से कब क्या मिला और उसने अपने स्तर पर कब क्या खरीदा इसका रिकार्ड राजस्व अभिलेख में होना आवश्यक है।
केन्द्र सरकार के आदेश के मुताबिक 1950 से लेकर अब तक सारे भू-अभिलेख म्यूटेशन और खरीद- बेच जिसमें कृषि योग्य और गैर कृषि योग्य, मकान, प्लाॅट व्यक्तिगत या सोसायटी के माध्यम से हासिल किया गया है सबका डिजिटलाईजेशन 14 अगस्त तक पूरा किया जाता है। जो संपत्तियां आधार नम्बर से लिंक नहीं होगी उन्हे बेनामी संपत्ति मानकर उसके खिलाफ आयकर अधिनियम 1861 की धारा दो तथा बेनामी संपत्ति संशोधित अधिनियम 2016 के तहत कारवाई की जीयेगी। केन्द्र सरकार ने इस काम को पूरा करने के लिये केवल दो माह का समय दिया है। ऐसे में स्पष्ट है कि हर पटवारखाने को कम्प्यूटर से लैस करना होगा। हर पटवारी को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना होगा। सारे भू-रिकार्ड को 1950 से लेकर अब तक उसकी डाटा एंट्री करनी होगी। क्या सरकार इस काम को दो माह के समय में पूरा कर पायेगी? क्योंकि प्रदेश के कई पटवारखानों में पटवारी तैनात ही नहीं है। कई जगह एक-एक पटवारी को दो-दो पटवारखानांे का काम सौंपा हुआ है।
इस समय विभाग में पटवारीयों के 2565 पद सृजित है और 2338 पटवार वृत हैं जिनमें 397 कानूनगो सेवायें दे रहे हैं। विभाग में करीब 2400 पटवारी काम कर रहे हैं। सरकार ने भू -अभिलेखों को डिजिटल करने का काम पिछले एक दशक से शुरू कर रखा है। पटवारीयों को इस काम को अन्जाम देने के लिये लैपटाॅप भी उपलब्ध करवा रखे हैं। लेकिन अभी तक एक दशक में करीब वर्षों के रिकार्ड को ही डिजिटल किया जा सका है और इसको भी आधार से लिंक नही किया गया है। अब केन्द्र सरकार ने 1950 से लेकर अब तक के रिकार्ड डिजिटलाईज़ करके आधार से लिंक करने के आदेश किये हैं। केन्द्र का यह आदेश अभी तक निदेशक लैण्ड रिकार्ड तक नही पहुंचा है। लेकिन इसमें विभाग के सामने संभवतः कई कठिनाईयां आ सकती है कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद पंजाब के जो भाग हिमाचल में मिले हैं जिनमें वर्तमान कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, कुल्लु और शिमला के कुछ भाग आते हैं इनका 1966 से पहले का लैण्ड रिकार्ड आज यहां उपलब्ध होगा या नहीं। यदि यह रिकार्ड उपलब्ध न हुआ तो क्या इसे पंजाब से हासिल किया जायेगा। विभाग ने संभवतः इस पक्ष पर अभी तक विचार ही नहीं किया है। ऐसे में भारत सरकार के आदेश की 14 अगस्त तक पूरी तरह से अनुपालना हो पाना संभव नहीं लग रहा है।

जनादेश के बाद रणनीति में भी भाजपा भारी पड़ी कांग्रेस पर

मेयर और डिप्टी मेयर पर भाजपा का कब्जा तय

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनाव प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देशानुसार करवा लिये गये हैं। इन निर्देशों के अनुसार 19 जून को नये हाऊस का गठन हो गया है लेकिन कोरम पूरा न होने के कारण इसके महापौर और उपमहापौर का चुनाव नही हो सका है। इसके लिये 20 जून को फिर हाऊस की बैठक बुलाई गयी है। निगम के हाऊस का गठन पार्षदों के साथ शपथ लेने के साथ पूरा हो गया है। प्रशासन की जिम्मेदारी 19 जून तक हाऊस का गठन करने की थी लेकिन हाऊस के गठन के बाद इसके मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव भी प्रशासन की ही जिम्मेदारी है। इसको लेकर एक्ट मे कुछ स्पष्ट नही है। बल्कि चार जून को पिछले सदन का कार्यकाल पूरा होने के बाद 19 जून तक निगम की वैधानिक स्थिति क्या है इसको लेकर भी एक्ट में कुछ स्पष्ट नही है। क्योंकि नगर परिषदों के लिये तो एक्ट में यह प्रावधान है कि चयनित हाऊस की गैर मौजूदगी में इस पर प्रशासक नियुक्त हो जाता है। नगर परिषद् ठियोग में काफी समय तक इसके प्रशासक की जिम्मेदारी नायब तहसीलदार के पास रही है जबकि परिषद् में सचिव स्थायी तौर पर नियुक्त था। किन्तु नगर निगम के संद्धर्भ में एक्ट के अन्दर प्रशासक का कोई प्रावधान नही किया गया है। नगर निगम का आयुक्त प्रशासक की जिम्मेदारी नहीं निभा सकता है, क्योंकि वह तो निगम का अधिकारी होने के नाते हाऊस को जवाबदेह है। इसलिये जो निगम के हाऊस को जवाबदेह है वह उसका प्रशासक नही हो सकता। इसी के साथ एक्ट में यह भी स्पष्ट नही है कि यदि पार्षदों की संख्या दो भागों में बराबर-बराबर हो जाये तो उस स्थिति में क्या होगा। निगम की वैधानिकता को लेकर इस बार शहरी विकास विभाग ने चार जून को बनी स्थिति पर सरकार से निर्देश मांगे थे। सचिवालय में फाईल विधि विभाग को राय के लिये भेज दी लेकिन विधि विभाग ने कोई स्पष्ट राय देने के स्थान पर राज्य चुनाव आयोग के विचार जानने की
सलाह दे दी। चुनाव आयोग ने यह कहकर निपटारा कर दिया कि एक्ट में इस बारे में कुछ नही कहा गया है।

स्मरणीय है कि निगम के चुनाव नियमों में भाजपा और कांग्रेस दोनो के शासनकालों में संशोधन हुए है। जब मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव सीधे मतदान से करवाया गया था। तब चुनाव नियमों में संशोधन हुआ। अब जब 11.2.2016 को पुनः नियमों में संशोधन करके मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान से करवाने की अधिसूचना जारी की गयी तब भी एक्ट की इन कमीयों की ओर ध्यान नही दिया गया। बल्कि इस बार जब चुनावों को लेकर मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा जब भी इस ओर ध्यान नही दिया गया। अब 11.2.2016 को अधिसूचित हुए चुनाव नियमों के अनुसार इस बार मेयर का पद पहले आधे कार्यकाल के लिये अनुसूचित जाति को जायेगा। उसके बाद बाकी बचेे आधे कार्यकाल में यह पद अनुसूचित जनजाति को जायेगा। उसके अगले कार्यकाल में पहले अर्द्ध में सामान्य वर्ग को जायेगा और शेष अर्द्ध में महिला के लिये होगा। यह महिला सामान्य और रिजर्व किसी भी वर्ग से हो सकती है। इस पर भी  नियमों में पूरी स्पष्टता नही है। क्योंकि यदि फिर यह चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से करवाने का फैसला लेकर नियमों में संशोधन किया जाता है उस स्थिति में रोस्टर प्रावधान का क्या होगा इस पर भी नियमों में कुछ स्पष्ट नही है। For rule 12 of the said rules, the following rule shall be substituted, namely:-"12 Reservation and rotation of the office of Mayor- (1) The reservation for the office of Mayor shall be as under:-

(i) During the first two & half years SC 

(ii) During the Second two & half years ST 

(iii) During the next two & half years Gerenal

( iv) During the next two & half years Woman

Provided that where the population of any class of persons referred to above is less than fifteen percent of the total population of the Corporation area, the office of Mayor shall not be reserved for that class and same shall be thrown open to all the categories. इस बार जब निगम में वार्डो की संख्या बढ़ाकर 34 की गयी थी उस समय यह चिवार नही किया गया कि चुनाव परिणाम में पक्ष और विपक्ष में बराबर संख्या होने पर क्या किया जायेगा। इस बार यह पार्टी चिन्ह पर नही हुए हैं और उस दृष्टि से सभी एक प्रकार से निर्दलीय हैं। कब कौन पासा बदल ले इसकी संभावना ऐसे खंडित जनादेश में बराबर बनी रहती है। कोई भी दल अपने सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई नही कर पायेगा क्योंकि चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं हुए हैं। इस बार भाजपा ने कांग्रेस को जनादेश में हराकर मेयर के लिये रणनीति में भी करारी हार दे दी है। लेकिन इस तरह से जुटाये गये बहुमत को संभाले रखना भी आसान नही होता है क्योंकि ऐसी रणनीति के केन्द्र में सिन्द्धातो के स्थान पर सत्ता रहती है और सत्ता का लालच खतरनाक सिद्ध होता है। इस परिदृष्य में यदि भाजपा निगम एक्ट की कमीयों को सुधारने में सफल हो जायेगी तो भविष्य की ऐसी सारी संभावनाएं समाप्त हो सकती है अन्यथा हर बार यह खतरे बने रहेंगे।

 

तिलक राज प्रकरण का ईडी ने भी लिया संज्ञान जारी रही न्यायिक हिरासत

कुछ अधिकारियों और नेताओं तक आ सकती है आंच

शिमला/शैल। पांच लाख के रिश्वत मामलों में एक उद्योगपति के साथ रंगे हाथों सीबीआई द्वारा पकड़े गये हिमाचल उद्योग विभाग के बद्दी स्थित संयुक्त निदेशक तिलक राज शर्मा अभी तक न्यायिक हिरासत से बाहर नही आ पाये हैं। सीबीआई के चार दिन के रिमांड के बाद अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। यह चौदह दिन पूरे होने के बाद जब तिलक राज को पुनः अदालत में पेश किया गया तब सीबीआई ने उनकी हिरासत जारी रखने का आग्रह किया जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया क्योंकि तिलक राज ने स्वयं ही जमानत के लिये याचना नही की थी। तिलक राज ने जमानत के लिये क्यों आवदेन नही किया इस सवाल की पड़ताल में यह सामने आया है कि अब इस प्रकरण का सीबीआई के साथ ही ईडी ने भी संज्ञान ले लिया है। 

स्मरणीय है कि जब एक फार्मा उद्योग की सब्सिडी की फाईल प्रौसैस करने के लिये तिलक राज ने अशोक राणा के माध्यम से दस लाख की रिश्वत की मांग की थी और इस मांग की सूचना सीबीआई को दी गयी थी तब सीबीआई ने तिलक राज, अशोक राणा और शिकायतकर्ता चन्द्रशेखर के बीच इस संद्धर्भ में हो रही बातचीत को रिकार्ड किया था जब उस संवाद में यह सामने आया था कि रिश्वत का यह पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना है। फिर तिलक राज और अशोक राणा के चार दिन के रिमांड के दौरान सीबीआई को जो जानकारीयां मिली हैं उनमें एक दिल्ली स्थित सुरेश पठानियां का नाम भी सामने आया है। इसके अतिरिक्त दो नेताओं, दो बड़े अधिकारियों और इनके कुछ परिजनों तथा कुछ पत्राकारों के नाम भी सामने आने की चर्चा है जिन लोगों ने अकसर तिलक राज की सवेाओं का लाभ भी उठाया है और उसे संरक्षण भी दिया है। यह सारी जानकारियां मिलने के बाद सीबीआई ने इन सारे लोगों के बारे में आयकर, आईबी आदि के माध्यम से भी पड़ताल की है। इस पड़ताल के बाद ही दिल्ली में रघुवंशी और सुरेश पठानिया से अलग-अलग पूछताछ करने के साथ ही तिलक राज और अशोक राणा को आमने-सामने बैठा कर भी सवाल जवाब किये गये हंै। सूत्रों की माने तो बहुत लोगों की दिल्ली, चण्डीगढ़ और देहरादून तक संपत्तियां होने की जानकारी सामने आयी है।
बद्दी में कुछ फार्मा उद्योगों के लाईसैन्सों को लेकर तथा कुछ स्टोन क्रशरों पर ईडी लम्बे समय से नजर रखे आ रहा था। इसमें उद्योग विभाग के साथ-साथ, पाल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड, तथा स्वास्थ्य विभाग के ड्रग कन्ट्रोल बोर्ड, तथा स्वास्थ्य विभाग के ड्रग कन्ट्रोल से जुडे अधिकारी केन्द्रिय एैजैन्सियों के राडार पर चल रहे थे कुछ उद्योगों के दस्तावेजों को लेकर तो एक अधिवक्ता की सेवाएं भी ली गयी है। इस अधिवक्ता ने भी अपनीे रिपोर्ट में कुछ उद्योगों की प्रमाणिकता पर गंभीर सवाल उठाये हैं। यह रिपोर्ट भी कुछ उद्योगों द्वारा सब्सिडी लिये जाने के संद्धर्भ में आई है। इस रिपोर्ट के बाद ही ईडी ने करीब डेढ़ दर्जन उद्योगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर रखी है। माना जा रहा है कि तिलक राज और उसके संपर्काे पर ऐजैन्सीयों की लम्बे समय से नजर चली आ रही थी। अब तिलक राज की गिरफ्तारी और जमानत के लिये आवदेन न करने से यह माना जा रहा है कि यह पूरा प्रकरण काफी लम्बा चलेगा और इसमें आने वाले दिनों में कई लोगों पर गाज गिरेगी।
अब ईडी द्वारा इसका संज्ञान लेने के बाद तथा इस संद्धर्भ में रघुवंशी और सुरेश पठानिया से भी प्रारम्भिक पूछताछ होने से यह माना जा रहा है कि इस मामले में कई बड़े लोगों से निकट भविष्य में पूछताछ की जायेगी तथा कुछ और गिरफ्तारीयां  भी हो सकती है।

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