Friday, 19 December 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

वीरभद्र मामलें में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद ईडी की अगली कारवाई पर लगी नजरें

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी तथा अन्य के खिलाफ ईडी में चल रहे मनीलाॅंड्रिंग मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह, चुन्नी लाल, विक्रमादित्य सिंह और पिचेश्वर गड्डे द्वारा दायर याचिकाओं को तीन जुलाई को सुनाये फैसले में अस्वीकार कर दिया है। इन लोगों ने ईडी की कारवाई को "Without jurisdiction and authority of law "कह कर चुनौती देते हुए इस संद्धर्भ में दर्ज मामले को निरस्त करने तथा ईडी की अब तक की कारवाई को रद्द करने का आग्रह किया था इन याचिकाओं को अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा है कि It is clear from the   above   discussion that the  Prevention of Money-Laundering Act, 2002 is a complete Code which overrides thegeneral criminal law to the exrent of inconsistency. This law establishes its own  enforcement machinery and other authorities with  adjudicatory powers and jurisdiction. There is no  requirement in law that an officer empowered by PMLA may not take up investigation of a PMLA  offence or may not arrest any person as permitted by its provision without  obtaining authorization from the court. Such inhibitions cannot be read into  the law by the court.अदालत के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि ईडी को इस संद्धर्भ में अगली कारवाई बढ़ाने के लिये किेसी तरह की कोई बंदिश नही है। स्मरणीय है कि इसी मामले में ईडी ने 23 मार्च 2016 को पहला अटैचमैन्ट आदेश जारी किया था जिसमें करीब आठ करोड़ की चल/ अचल संपत्ति अटैच की गयी थी। इस आदेश में यह साफ कहा गया था कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के संद्धर्भ में अभी तक जांच जारी है। इस आदेश के बाद एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी हुई थी। चैहान तब से लेकर आज तक हिरासत में चल रहा है। चैहान के खिलाफ चालान भी ट्रायल कोर्ट में दाखिल हो चुका है। अदालत ने इसका संज्ञान लेकर अगली सुनवाई भी शुरू कर दी है और अब इसमें चार सितम्बर तक अनुपूरक चालान दायर करने का समय दिया है। चैहान की हिरासत भी तब तक बढ़ा दी गयी है।
इस प्रकरण में ईडी ने 31.3.17 को दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी करके विक्रमादित्य की कंपनी मैप्प्ल डैस्टीनेशन और ड्रीम बिल्ड द्वारा डेेरा मण्डी महरौली में एक पिचेश्वर गड्डे परिवार से खरीदे गये फार्म हाऊस को अटैच किया है, इसमें यह आरोप है कि इस फार्म हाऊस की खरीद में वक्कामुल्ला द्वारा वीरभद्र को दिये गये 2.4 करोड़ के ऋण में से ही 90 लाख रूपया वीरभद्र ने विक्रमादित्य को दिया है इस फार्म हाऊस की रजिस्ट्री 1.20 करोड़ की है और 90 लाख के बाद शेष बचा 30 लाख 15-15 लाख के दो चैकों के माध्यम से एक जय दुर्गा कंपनी द्वारा विक्रमादित्य को दिया गया है। इस प्रकरण में वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर, राम प्रकाश भाटिया, विनित मिश्रा और गड्डे परिवार की भूमिका विशेष रही है। फार्म हाऊस को लेकर जारी हुए अटैचमैन्ट आदेश के अनुसार वक्कामुल्ला 19.11.2011, 22.11.2011 और 25.11.2011 को 2 करोड़ विक्रमादित्य के खाते में जमा करवाता है। उसके बाद 10.1.2012 को विक्रमादित्य की कपंनी 1.50 करोड़ तारिणी और 50 लाख वक्कामुल्ला के खाते में जामा करवाते हैं। ईडी ने इस लेन देन पर अभी तक विक्रमादित्य से उनका पक्ष नहीं पूछा है। प्रतिभा सिंह ने इस पर ईडी को यही कहा है कि इसकी जानकारी विक्रमादित्य ही दे सकते है।
ऐसे में अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद ईडी इस मामले में सीधे चालान ही दायर करती है या इसमें फिर से सम्मन जारी करके इस प्रकरण में सामने आये लोगों से पूछताछ करती है या नही। इस अटैचमैन्ट आदेश के बाद किसी की गिरफ्तारी होती है या नही इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। यदि इस मामलें में सीधे चालान ही अदालत में जाता है (जो कि चार सितम्बर तक दायर करना ही होगा) तो इस प्रकरण का प्रदेश की राजनीति पर कांग्रेस के संद्धर्भ में कोई ज्यादा नकारात्मक प्रभाव नही पडे़गा क्योंकि उस स्थिति में कई वर्षों तक यह मामला अदालत में ही उलझा रहेगा।

तिलक राज प्रकरण में फिर बढ़ी हिरासत-जमानत याचिका हुई अस्वीकार

शिमला/शैल। पांच लाख की रिश्वत लेते सीबीआई द्वारा रंगे हाथों पकड़े गये उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक तिलकराज शर्मा और उनके सहयोगी बद्दी के ही एक उद्योगपत्ति अशोक राणा की न्यायिक हिरासत फिर बढ़ गयी है। दोनों इस समय चण्डीगढ़ में सीबीआई अदालत की हिरासत में है। सीबीआई ने इन्हे 30 मई को चण्डीगढ़ में पकड़ा था और चार दिन के पुलिस रिमांड के बाद से अब तक न्यायिक हिरासत में चल रहे हैं। इस मामले में तिलक राज ने तो अभी तक जमानत के लिये आवेदन ही नहीं किया है लेकिन इस बार अशोक राणा ने जमानत के लिये आग्रह किया था जिसे अस्वीकार कर दिया गया है। अशोक राणा के जमानत आवदेन के अस्वीकार होने के बाद इस मामले की गंभीरता और बढ़ गयी है।
सीबीआई ने एक फार्मा उद्योग के सीए चन्द्रशेखर की शिकायत पर वाकायदा ट्रैप लगाकर इन लोगों को चण्डीगढ़ में गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने ट्रैप  में तिलक राज, अशोक राणा और शिकायतकर्ता चन्द्रशेखर के बीच हुई बातचीत को वाकायदा रिकार्ड करने के बाद उसकी पूरी शिनाख्त करके इन लोगों पर हाथ डाला था। रिकार्ड हुई बातचीत में यह भी आया है कि तिलक राज जो पैसा रिश्वत में ले रहा था वह आगे दिल्ली में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के ओएसडी रघुुवंशी को दिया जाना था। स्मरणीय है कि तिलक राज के उद्योग विभाग के कुल चैदह वर्ष के कार्यकाल में से ग्याहर वर्ष का कार्यकाल यहीं बद्दी औद्योगिक क्षेत्र का ही है। स्वभाविक है कि एक अधिकारी बद्दी जैसे महत्वपूर्ण औद्यौगिक क्षेत्रों में इतने लम्बे समय तक बिना उच्च राजनीतिक संरक्षण के नहीं रह सकता। अभी भी उसके स्थानान्तरण आदेश हुए थे लेकिन इन पर अमल नही हुआ। बल्कि आदेश अधिकारिक तौर पर रद्द भी नही हुए लेकिन फिर भी तिलक राज बद्दी में ही काम करता रहा। किसी अधिकारी ने उसके आदेशों पर अमल होने का सवाल नही उठाया। भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों में उसे एक बराबर संरक्षण प्राप्त रहा बल्कि उसे पदोन्नत्ति देने में भी उससे वरिष्ठों को नजरअन्दाज किया गया था। विभाग के एक निदेशक ने एक बार जब उसकी कार्यप्रणाली पर कुछ सवाल उठाये थे तो तिलक राज के कारण राजनीतिक आकाओं और बड़े अधिकारियों ने निदेशक को ही विभाग से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बड़े अधिकारी, बड़े पत्रकार और बडे़ राजनेता सब उसके संरक्षण और प्रशंसक रहे हैं।
तिलक राज की इसी पृष्ठभूमि के कारण लम्बे अरसे से वह कई ऐजैन्सीयों के राडार पर चल रहा था। जब मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई और ईडी ने अपनी जांच बढाई थी उस दौरान बद्दी-नालागढ़ क्षेत्र के 26 स्टोनक्रशरों के खिलाफ ईडी ने एक मामला दर्ज करके जांच शुरू की थी। उस जांच में भी कई ऐसे सवाल उठे थे जो उद्योग और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के बद्दी स्थित अधिकारियों तक पहुंचे थे। ऐसे में अब जब सीबी आई ने तिलक राज और अशोक राणा को रंगे हाथों गिरफ्तार किया तब चार दिन के रिमांड में इन लोगों से वह सारी जानकारियां बाहर आ गयी हैं जिन पर केन्द्र की यह ऐजैन्सीयां लम्बे समय से अपनी नजर बनाये हुए थी। सूत्रों की माने तो रिमांड के दौरान करीब एक दर्जन लोगों के नाम सामने आये है। इन नामों में मन्त्री, अधिकारी और पत्रकार तक शामिल हैं। इन सब लोगों पर केन्द्र की ऐजैन्सीयों की नजर बनी हुई है। सीबीआई के साथ ही यह मामला ईडी में भी पहुंच गया है। दोनों ऐजैन्सीयों ने अपनी जांच बढ़ा दी है और बहुत लोगों की प्रदेश और प्रदेश से बाहर की संपत्तियों की शिनाख्त कर ली गयी है। रघुवंशी और उनके एक सहयोगी सुरेश पठानिया से सीबीआई और ईडी प्रारम्भिक जांच कर चुकी है। माना जा रहा है कि ईडी इस प्रकरण में कभी भी विधिवत रूप से मामला दर्ज करके अगली कारवाई को अन्जाम दे सकती है। सूत्रों की माने तो ईडी शिमला स्थित कार्यालय ने काफी अरसा पहले वीरभद्र के दो मन्त्रीयों, दो बडे़ अधिकारियों को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट अपनी मुख्यालय को भेज रखी है। इस रिपोर्ट पर भी अब कारवाई हो रही है। सूत्रों की माने तो अभी वीरभद्र के मन्त्री और एक चेयरमैन चण्डीगढ़ में सीबीआई अधिकारियों से संर्पक बनाने का प्रयास कर रहे थे। यह लोग आईबी की नजर में भी थे बल्कि अब जब मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के राष्ट्रपति भवन के एक कार्यक्रम के संद्धर्भ में दिल्ली जाने की सूचना चर्चा में आयी उसी के साथ आईबी के अधिकारी भी एकदम सक्रिय हो गये और मुख्यमन्त्री की इस प्रस्तावित यात्रा के संबध में जानकारी जुटाने में लग गये। संभवतः आईबी की यह सक्रियता सीबीआई और ईडी के सुझाव पर बढ़ी थी। माना जा रहा है कि सीबीआई तो 90 दिन के भीतर इस मामले में अपना चालान अदालत में डाल दे लेकिन सीबीआई के चालान से पहले ही इस मामलें में भी दो एक लोगों की ईडी से गिरफ्तारी हो सकती है।

14 अगस्त तक करना होगा 1950 से लेकर अब तक के भू-लेखों का डिजिटलाईजेशन

शिमला/शैल।  मोदी सरकार ने नोटबंदी से पहले बेनामी संपत्तियों की स्वेच्छा से घोषणा करने के लिये लोगों को करीब एक वर्ष का समय दिया था। इस घोषणा की समय सीमा समाप्त होने के बाद नोटबंदी के तहत पांच सौ और एक हजार के पुराने नोटों का चलन बंद कर दिया था। सरकार के यह दानों फैसले काले धन के खिलाफ बड़ी कारवाई करार दिये गये थे। क्योंकि यह माना जाता है कि काले धन का निवेश व्यक्ति सामान्यतः चल/अचल संपत्ति खरीदने में करता है। यदि संपत्ति में यह निवेश नहीं है तो फिर पांच सौ और एक हजार के नोटों में ही इसका संग्रह करेगा। लेकिन बेनामी संपत्ति की घोषणा और उसके बाद नोटबंदी के आने से भी काले धन के संद्धर्भ में कोई विशेष परिणाम सामने नही आये हैं। इसलिये सारी भू-संपत्तियों की डिजिटलाईजेशन किये जाने और उसको आधार नम्बर से जोड़ने का फैसला लिया गया है।
15 जून को देश के सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/अतिरिक्त मुख्य सचिवों को सारे भू-अभिलेखों को 14 अगस्त तक डिजिटलाईज़ और आधार से लिंक करने के आदेश जारी किये गये है। क्योंकि हर भू -संपत्ति का राजस्व में रिकार्ड उपलब्ध रहता है। हर भू-संपत्ति का राजस्व रिकार्ड में कोई न कोई मालिक होना आवश्यक है। जिस संपत्ति का कोई मालिक नहीं है उसकी मालिक सरकार होती है। भू-संपत्ति अर्जित भी व्यक्ति दो ही प्रकार से करता है, या तो खरीद कर उसका मालिक बनता है या फिर पुश्तैनी रूप से उसे मिलती है। ऐसे में जो संपत्ति व्यक्ति के राजस्व रिकार्ड में होगी उसी का उसे मालिक माना जायेगा। इस डिजिटलाईजेशन के लिये 1950 को आधार वर्ष माना गया है क्योंकि 1947 में देश की आजादी और बंटवारे के बाद सारी स्थितियां सामान्य हो गयी थी और 26 जनवरी 1950 को ही संविधान लागू हुआ था। इसलिये व्यक्ति को उसकी वंश परम्परा से कब क्या मिला और उसने अपने स्तर पर कब क्या खरीदा इसका रिकार्ड राजस्व अभिलेख में होना आवश्यक है।
केन्द्र सरकार के आदेश के मुताबिक 1950 से लेकर अब तक सारे भू-अभिलेख म्यूटेशन और खरीद- बेच जिसमें कृषि योग्य और गैर कृषि योग्य, मकान, प्लाॅट व्यक्तिगत या सोसायटी के माध्यम से हासिल किया गया है सबका डिजिटलाईजेशन 14 अगस्त तक पूरा किया जाता है। जो संपत्तियां आधार नम्बर से लिंक नहीं होगी उन्हे बेनामी संपत्ति मानकर उसके खिलाफ आयकर अधिनियम 1861 की धारा दो तथा बेनामी संपत्ति संशोधित अधिनियम 2016 के तहत कारवाई की जीयेगी। केन्द्र सरकार ने इस काम को पूरा करने के लिये केवल दो माह का समय दिया है। ऐसे में स्पष्ट है कि हर पटवारखाने को कम्प्यूटर से लैस करना होगा। हर पटवारी को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना होगा। सारे भू-रिकार्ड को 1950 से लेकर अब तक उसकी डाटा एंट्री करनी होगी। क्या सरकार इस काम को दो माह के समय में पूरा कर पायेगी? क्योंकि प्रदेश के कई पटवारखानों में पटवारी तैनात ही नहीं है। कई जगह एक-एक पटवारी को दो-दो पटवारखानांे का काम सौंपा हुआ है।
इस समय विभाग में पटवारीयों के 2565 पद सृजित है और 2338 पटवार वृत हैं जिनमें 397 कानूनगो सेवायें दे रहे हैं। विभाग में करीब 2400 पटवारी काम कर रहे हैं। सरकार ने भू -अभिलेखों को डिजिटल करने का काम पिछले एक दशक से शुरू कर रखा है। पटवारीयों को इस काम को अन्जाम देने के लिये लैपटाॅप भी उपलब्ध करवा रखे हैं। लेकिन अभी तक एक दशक में करीब वर्षों के रिकार्ड को ही डिजिटल किया जा सका है और इसको भी आधार से लिंक नही किया गया है। अब केन्द्र सरकार ने 1950 से लेकर अब तक के रिकार्ड डिजिटलाईज़ करके आधार से लिंक करने के आदेश किये हैं। केन्द्र का यह आदेश अभी तक निदेशक लैण्ड रिकार्ड तक नही पहुंचा है। लेकिन इसमें विभाग के सामने संभवतः कई कठिनाईयां आ सकती है कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद पंजाब के जो भाग हिमाचल में मिले हैं जिनमें वर्तमान कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, कुल्लु और शिमला के कुछ भाग आते हैं इनका 1966 से पहले का लैण्ड रिकार्ड आज यहां उपलब्ध होगा या नहीं। यदि यह रिकार्ड उपलब्ध न हुआ तो क्या इसे पंजाब से हासिल किया जायेगा। विभाग ने संभवतः इस पक्ष पर अभी तक विचार ही नहीं किया है। ऐसे में भारत सरकार के आदेश की 14 अगस्त तक पूरी तरह से अनुपालना हो पाना संभव नहीं लग रहा है।

More Articles...

  1. जनादेश के बाद रणनीति में भी भाजपा भारी पड़ी कांग्रेस पर
  2. तिलक राज प्रकरण का ईडी ने भी लिया संज्ञान जारी रही न्यायिक हिरासत
  3. वीरभद्र से त्यागपत्र मांगना बना भाजपा नेतृत्व की मजबूरी
  4. तिलक राज प्रकरण में सीबीआई की नीयत और नीति फिर चर्चा में
  5. भाजपा ने सौंपा एक और आरोप पत्र कांग्रेस व वामपंथीयों पर बोला हमला
  6. सी बी आई प्रकरण केे परिदृश्य में फिर शुरू हुआ नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों का दौर
  7. सरकारी तन्त्र केे उत्पीडन से न्याय के लिये अनशन पर बैठने के कगार पर पहुंचे सुरेश तोमर
  8. मनाली की अदालत में महिला प्रार्थियों ने बनाया पीएमओ और मुख्यमन्त्री को अदालत में गवाह
  9. कांग्रेस नेता आई.डी.बाली ठियोग से चुनाव लड़ेंगे
  10. वीरभद्र और अन्य को जारी हुए नोटिस
  11. कसौली के छः होटलों का एनजीटी ने लिया कड़ा संज्ञान, संवद्ध विभागों के अधिकारियों को किया तलब
  12. पीएमओ में हटा हाईड्रो काॅलिज की पट्टिका से नड्डा का नाम
  13. क्या वीरभद्र विधान सभा भंग करने का फैसला लेंगे
  14. सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी सैशन जज को मकलोड़गंज बस अड्डा प्रकरण की जांच
  15. दूरगामी होंगे कांग्रेस के लिये भोरंज की हार के परिणाम
  16. आवासीय परिसर गिराने के मामले में एच पी सी ए के खिलाफ रद्द नही हुई एफ आई आर
  17. पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी को लेकर फिर उठे सवाल
  18. ईडी ने जारी किया दूसरा अटैचमैन्ट आदेश
  19. कब से होगी धर्मशाला दूसरी राजधानी इसका अधिसूचना में नहीं है कोई जिक्र
  20. प्रिंयका गांधी मामलें में वीरभद्र सरकार ने बदला स्टैण्ड

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search