Friday, 19 December 2025
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धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करने से बढ़ेगा क्षेत्रीय टकरावःबालनाहटा

शिमला/जे.पी.भारद्वाज
रोहडू के पूर्व विधायक खुशी राम बालनाटाह ने कहा है कि वीरभद्र सरकार द्वारा धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करने से अनावश्यक रूप से क्षेत्रीय टकराव बढ़ेगा और वित्तीय संकट खड़ा होगा। बालनाटाह ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि उस क्षेत्र की जनता को लाभ देने के लिए यह निर्णय लिया गया है न केवल हास्यास्पद है अपितु राजनीति बेईमानी भी है। अंग्रेजो के राज में जब सारे देश की राजधानी शिमला थी। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सभी प्रान्त इसी राजधानी से शासित होते थे तब देश के किसी कोने से भी इसका विरोध नहीं हुआ था। किन्तु आज जब शिमला से 6 घण्टों में धर्मशाला पहुँच सकते हैं तो दूसरी राजधानी का औचित्य क्या है। शिमला अंतराष्ट्रीय महत्व का शहर है यहाँ पर पहले से राजधानी की सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध है जबकि दूसरी जगह पर यह सब नव निर्माण करना पड़ेगा।
बालनाहटा ने कहा कि जिस छोटे से प्रदेश पर 40,000 करोड़ रूपये से ऊपर का कर्जा हो और हर वर्ष सैकड़ों करोड़ का अनुत्पादक खर्च बढ़ रहा हो ऐसे में दूसरी राजधानी का निर्णय प्रदेश हित में नहीें बल्कि आगामी विधान सभा चुनावों को ध्यान में रख कर लिया गया निर्णय है।
बालनाहटा ने माँग की कि मुख्यमंत्राी बताएं कि शिमला धर्मशाला में कितने-2 समय के लिए सरकार बैठेगी? इस पर कुल कितना धन व्यय किया जाएगा, क्या धर्मशाला के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति स्थानीय स्तर पर होगी या शिमला से कर्मचारियों को स्थानान्तरित किया जाएगा?
बालनाहटा ने आरोप लगाया कि वीरभद्र सरकार सारा समय मंत्रीयों व मुख्यमंत्री विधायकों के आपसी टकराव में बीत गया इसलिए जनता को भ्रमित करने के लिए यह निर्णय लिया गया क्योंकि यह सरकार बेरोज़गारी दूर करने व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने जैसी समस्याओं पर पूरी तरह विफल रही है। बालनाहटा ने कहा कि लम्बे समय के पश्चात् सभी प्रदेशवासियों के सहयोग से नया-पुराना हिमाचल नीचे-ऊपर का हिमाचल जैसे जुमलों को भुलाकर संभी सौहार्दता के साथ प्रदेश में रह रहे है, किन्तु लोगों को बांटने वाला यह निर्णय दुर्भाग्य पूर्ण है जिस जनहित में वापिस लिया जाए।

15 लाख या इससे अधिक के पुराने नोट जमा करवाने वाले आयकर के राडार पर

शिमला/शैल। आठ नवम्बर को लागू हुई नोटबंदी के तहत 500 और 1000 रूपये के नोटों का चलन बन्द कर दिया गया था। इसके बाद इन पुराने नोटों को बैंक में जाकर बदलवाने या अपने खाते में जमा करवाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही था। इसके लिये सरकार ने 30 दिसम्बर तक का वक्त दिया था। इसके बाद 31 मार्च तक इन पूराने नोटों को रिर्जव बैंक की चिन्हित शाखाओं में ही जमा करवाया जा सकता है। 30 दिसम्बर तक करोड़ो खातों  में यह नोट जमा हुए हैं। 31 मार्च तक और समय है लेकिन इसके वाबजूद कुछ लोगों ने यह समय सीमा बढ़ाये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केन्द्र सरकार से जबाव मांगा था। इस पर केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इसमें समय बढ़ाने के हक मेें नही है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिकाएं आने से यह स्पष्ट हो जाता है कि कुछ लोगों के पास अभी पुराने 500 और 1000 के नोट  है। इस वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए सरकार ने एक बार फिर प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना के तहत 50% टैक्स और 25% तक चार वर्ष के लिये बिना ब्याज के इस योजना में निवेश करने का मौका दिया है यह खुलासा प्रदेश के प्रधान चीफ कमीश्नर ने एक पत्रकार वार्ता में किया है।
इस वार्ता में यह भी खुलासा हुआ कि प्रदेश में 30 दिसम्बर तक हजारों की संख्या में पुराने नोट जमा करवाये गये हैं। इनकी कुल संख्या और जमा करवाने वालों की कुल संख्या का अभी तक आंकलन किया जा रहा है। लेकिन इसमें जिन लोगों ने 15 लाख और इससे अधिक की राशी जमा करवाई है ऐसे लोगों से उनकी आय का स्त्रोत पूछा जा रहा है। इसके लिये विभाग ने वाकायदा लोगों को नोटिस भेजे हैं। विभाग द्वारा भेजे गये नोटिसों पर अभी तक 550 लोगों का जबाव नही आया है। माना जा रहा है कि इन लोगों में ऐसे भी हैं जिन्होनें एक करोड़ या इससे भी अधिक पैसा जमा करवाया हैं। शिमला में भी ऐसे लोग हैं जिन्होने इस तरह का पैसा जमा करवाया है। जनधन खातों के माध्यम से भी कुछ लोगों द्वारा भारी संख्या में पैसा जमा करवाये जाने भी संभावना है। कोई व्यक्ति अपने घर में कितना कैश रख सकता है इसको लेकर कोई सीमा तय नही है। इसमें केवल यही आवश्यकता है कि ऐसे कैश का वैध स्त्रोत होना चाहिए। इसे संबधित व्यक्ति की आयकर रिर्टन के साथ मिलाकर फैसला लिया जायेगा। इसमें उन लोगों के लिये थोडी कठिनाई आ सकती है जिन्होने अपनी आय का स्त्रोत कृषि या बागवानी बता रखा है। क्योंकि कृषि और बागवानी से होने वाली आय पर कोई इन्कम टैक्स नही लगता है।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के सहकारी बैंक के माध्यम से 500 और 1000 के 653 करोड़ के पुराने नोट जमा हुए है। इसमें अकेले सोलन में ही 153 करोड़ जमा हुए है शिमला, चम्बा, मण्डी, किन्नौर आदि सेब उत्पादक क्षेत्रों में राज्य सहकारी बैंक की शाखाएं दूसरे बैंकों से कहीं ज्यादा हैं और इन सबमें करोड़ो के हिसाब से पुराने नोट जमा हुए हैं। इनके कई खाता धारकों को आयकर विभाग के नोटिस मिल चुके हैं। जिनमें  से कई लोगों ने अभी तक जबाब दायर नहीं किये हैं। सूत्रों की माने तो बहुत सारे लोगों के पास सेब/फल बेचने और इस आधार पर दिखायी गयी आय को प्रमाणित करने के वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। कुछ मामलों में सेब आढतियों/कमीशन ऐजैन्टों के पास भी उचित रिकार्ड उपलब्ध नही है। ऐसे मामलों में कभी भी बड़ी कारवाई की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता। शिमला में पिछले दिनों जिन सोना व्यापारियों का रिकार्ड खंगालने आयकर विभाग की टीेम ने दस्तक दी थी। सूत्रों के मुताबिक उनके खंगाले गये दस्तावेजो में सोने की खरीद और बेच के रिकार्ड में काफी अन्तर पाया गया है। चर्चा है कि एक ज्वैलर के पास 20 करोड़ की खरीद/बेच के जो दस्तावेज मिले हैं उनकी प्रमाणिकता को लेकर गंभीर सवाल खडे हो गये है। इस खरीद/बेच का संबध प्रदेश के दो राजनेताओं और कुछ बड़े अधिकारियों के साथ जोड़ा जा रहा है। पुराने नोटों के जमा करवाये जाने के साथ ही बेनामी संपत्तियों को लेकर भी बड़े पैमाने पर कारवाई चल पडी है। इसमें भी कई लोगों को नोटिस जारी हो चुके हैं।

भाजपा-अनुराग की सर्वोच्च न्यायालय में एक और जीत

शिमला/बलदेव शर्मा सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मशाला पुलिस द्वारा धारा 447 के तहत अनुराग ठाकुर और विशाल मरबाहा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। हिमाचल सरकार इस मामलें में अपील में सुप्रीम कोर्ट गयी थी इस एफआईआर का रद्द होना निश्चित रूप से अनुराग ठाकुर के लिये एक बड़ी राहत और सफलता है। जबकि सरकार के लिये यह एक करारा झटका है क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय ने ही इसे एक कमजोर और ज़बरदस्ती बनाया गया मामला करार दिया था। लेकिन वीरभद्र के सलाहकारों ने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में जाने का फैसला लिया और वहां हार का मुंह देखा। इसी तरह का परिणाम ए.एन. शर्मा मामलें में रहा है। लेकिन अब जब इस एफआईआर के रद्द होने की खबरें छपी तो यह संदेश गया कि एचपीसीए के खिलाफ विजिलैन्स के जिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल स्टे कर रखा है उसे रद्द कर दिया गया है। इन खबरों से परेशान होकर सरकार ने एक प्रैस नोट जारी करके स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि विजिलैन्स वाला मामला अब तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और 29 मार्च को लगा है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया है कि विजिलैन्स के दो अन्य मामले भी एचपीसीए के खिलाफ अभी तक लंबित है।
स्मरणीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एचपीसीए के जिस मामले पर ट्रायल स्टे किया हुआ है उसका सोसायटी से कंपनी बनाये जाने वाला मूल प्रकरण अभी तक आरसीएस और प्रदेश होईकोर्ट के बीच लंबित है। धर्मशाला में एक भूमिहीन प्रेमु की जमीन खरीदने का जो मामला अनुराग और अरूण के खिलाफ दर्ज हुआ था उसमें एसडीएम की रिपोर्ट काफी अरसा पहले आ चुकी है। उसमें एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट में इसे उच्च न्यायालय में उठाये जाने की संस्तुति की है। लेकिन वीरभद्र के सलाहकार इस मामले में अब तक उच्च न्यायालय नही गये है। आज यह चुनावी वर्ष है और राजनीतिक तथा प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा बनी हुई है कि प्रदेश विधान सभा के चूनाव मई-जून में हो सकते है। यह चर्चा कितनी ठीक निकलती है इसका पता तो आने वाले समय मे ही लगेगा। लेकिन इस चर्चा का यह लाभ अवश्य होगा कि वीरभद्र का प्रशासन और विजिलैन्स एचपीसीए और धमूल के कथित संपति मामलों में आने वाले समय में कुछ ठोस नही कर पायेंगे। भाजपा और धूमल के लिये यह स्थिति लाभदायक मानी जा रही है।
स्मरणीय है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में भी भ्रष्टाचार केन्द्रिय मुद्दा बना था। इस बार भी भ्रष्टाचार के नाम पर ही चुनाव लड़ा जायेगा। क्योंकि विकास के नाम पर हर चुनाव क्षेत्रा में इस कार्यकाल में वीरभद्र सिंह ने जितनी भी घोषणाएं की है वह सब पूरी नही हुई हैं। बल्कि अधिकांश तो केवल कोरी घोषणाएं होकर ही रह गयी है। फील्ड में हर कार्यालय में कर्मचारीयों के कई-कई स्थान रिक्त चले हुए है। जितने नये स्कूल खोलने की घोषणाएं हुई है उससे अधिक तो बन्द करने के आदेश जारी हो चुके हैं। ऐसे मे विकास के नाम पर वीरभद्र को वोट मांगना आसान नहीं होगा। इस परिदृश्य में यदि भाजपा वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को केन्द्रिय चुनावी मुद्दा बनाने में सफल हो जाती है तो कांग्रेस के पास इसका कोई जबाव नही होगा। लेकिन भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर अब तक सीबीआई और ईडी ने वीरभद्र को घेरा है वह आज ऐसे मोड़ पर आकर रूक गये है कि उनसे भाजपा को लाभ मिलने की बजाये नुकसान होने का खतरा बन गया है। क्योंकि सीबीआई के मामले में भले ही दिल्ली उच्च न्यायालय में फैसला रिर्जव चल रहा है लेकिन ईडी की शेष बची जांच का अब तक पूरा न होना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। ईडी ने आधी जांच करके आनन्द चैहान के संद्धर्भ में तो उसे गिरफ्रतार करके चालान भी ट्रायल कोर्ट में पहुंचा दिया है लेकिन सब जानते हैं कि इसमें आनन्द ही अन्तिम लाभार्थी नही है। आनन्द को जमानत न मिल पाने पर जन सहानुभूति उसके पक्ष में होती जा रही है। ईडी को अपनी शेष बची जांच को पूरा करने के लिये किसी अदालत से कोई रोक नही है। फिर ईडी में मनीलाॅंडरिंग के मामलों में जांच को जल्द से जल्द पूरा करवाने की जिम्मदारी तो जेटली के वित्त विभाग की है।
सीबीआई ने हिमाचल उच्च न्यायालय से मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करवाने में जो कदम उठाये थे उससे यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका को फजीहत से बचाने की टिप्पणी के साथ ट्रंासफर कर दिया था। फिर सीबीआई ने जब चालान की अनुमति के लिये आग्रह रखा तब दैनिक आधार पर इसकी सुनवाई हुई। लेकिन आज दो माह से अधिक समय से इसमें फैसला रिजर्व चल रहा है। इस रिजर्व फैसले को शीघ्र घोषित करवाने के लिये अब तक सीबीआई द्वारा कोई कदम ना उठाये जाने के कारण पूरा परिदृश्य बदलता नज़र आ रहा है। रिजर्व फैसला कितनी देर में घोषित हो जाना चाहिये इसको लंकर कानून में कुछ स्पष्ट नहीं है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इस संद्धर्भ में 1976 से लेकर अब तक कई बार दिशा निर्देश जारी कर चुका है। आर सी शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया, अनिल राय बनाम बिहार सरकार और बी. के. शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया मामलों में इस संद्धर्भ में निर्देश आ चुके हैं। जस्टिस गांगूली ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 60 दिनों के भीतर रिजर्व फैसला घोषित हो जाना चाहिये। यदि इस मामले में शीघ्र फैसला नहीं आता है और इसकी पुनः सुनवाई स्थिति आ जाती है तो भ्रष्टाचार को केन्द्रिय मुद्दा बनाने के भाजपा के सारे प्रयासों पर पानी फिर जायेगा और यह भाजपा के लिये सबसे ज्यादा नुकसानदेह होगा।

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