शिमला/शैल। कुछ समय पहले तक निदेशक बागवानी और एमडी कृषि विपणन बोर्ड का एक साथ कार्यभार संभाल रहे डा. एचएस बवेजा को अब सरकार ने स्थायी रूप से कृषि बोर्ड कार्यभार सौंप दिया है। डा. बवेजा जब निदेशक बागवानी थे उस समय ठियोग के पास बन रहे एक कोल्ड स्टोर की सब्सिडी के मामलें में काफी विवाद उठा था। कोल्ड स्टोर बना रही कंपनी ने डा. बवेजा के खिलाफ काफी गंभीर आरोप लगाते हुए एक शिकायत भी सरकार को भेजी थी। शिकायत में आरोप था कि सब्सिडी रिलिज करने के लियेे दो करोड़ रूपये की मांग की गयी थी लेकिन सरकार ने इस शिकायत पर कोई कारवाई न करके अब इस तरह से उन्हे राहत प्रदान कर दी है। जबकि ऐसी शिकायतों को तुरन्त विजिलैन्स को भेजकर जांच करवाई जाती है लेकिन बवेजा के मामले में ऐसा नही हुआ।
यही नही डा. बवेजा के खिलाफ सोलन के चंबाघाट में 374 वर्गमीटर सरकारी भूमि का अतिक्रमण करने का मामला भी अभी तक लंबित चल रहा है। इस अक्रिमण की जांच करके ग्रामीण राजस्व अधिकारी वृत बसाल त. सोलन ने 8.10.2015 को रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट में भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 के तहत कारवाई किये जाने का मामला पाया गया था। नियमानुसार इस रिपोर्ट के बाद डा. बवेजा के खिलाफ कन्डक्ट रूल्ज 1964 के तहत कार्यवाही हो जानी चाहिये थी। क्योंकि 14 सितम्बर 2005 को इस संद्धर्भ में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में नियम 4.। के उल्लेख में स्पष्ट कहा गया है।
सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमणों पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए इन अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश दिये हुए हैं। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों पर कारवाई करते हुए कई बागवानों को बागीचों से हाथ धोना पड़ा है। इन्ही निर्देशों की अनुपालना करते हुए जिलाधीश सोलन ने अगस्त 2017 में तहसीलदार सोलन को इनमें तुरन्त प्रभाव से कारवाई करने के निर्देश जारी किये हैं। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी तक आगे कोई बड़ी कारवाई नही हुई है।
सरकार का डा. बवेजा के प्रति ऐसा नरम रूख क्यों है कि उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई कारवाई होती ही नही है। इस संद्धर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि 2012 में जब डा. बवेजा नौणी विश्वविद्यालय में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे तब एक मामले में इनके खिलाफ जांच के आदेश हुए थे और इसके लिये 21.7.12 को सेवानिवृत सैशन जज ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाया गया था। लेकिन डा. बवेजा ने ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाये जाने का विरोध किया। इस विरोध के बाद ओपी शर्मा के स्थान पर 14.8.2012 को ही सेवानिवृत आईएएस अधिकारी राकेश कौशल को जांच सौंप दी गयी। लेकिन बवेजा ने कौशल को जांच अधिकारी लगाये जाने का भी विरोध किया। जब सरकार ने उनके विरोध को स्वीकार नही किया तो बवेजा ने इस पर 1.9.2012 को राज्यपाल के पास बतौर चांसलर अपील दायर कर दी और राज्यपाल ने इस अपील पर 7.9. 2012 को जांच स्टे कर दी। इस स्टे के बाद अन्ततः 20.3.2013 को राज्यपाल ने डा. बवेजा को इस मामले मे क्लीनचीट दे दी। जबकि इसमें कोई जांच रिपोर्ट आयी ही नही। लेकिन इसी 2013 के दौरान ही बोर्ड में हुई कुछ खरीददारीयों और अन्य मामलों में डा. बवेजा के खिलाफ सरकार के पास शिकायतें आयी जिन पर कोई कारवाई नही हुई जबकि इस शिकायत में सबसे बड़ा आरोप 60 लाख के सीसीटीवी कैमरों की खरीद का रहा है। इनमें अरोप है कि टैण्डर आदि की सारी प्रक्रिया को पूरी तरह पूरी किये बिना ही यह कैमरे संजौली स्थित ग्लोबल नेटवर्क गुरूनानक बिल्ड़िग आईजीएमसी रोड़ से खरीद लिये गये। यह कंपनी मुख्यमन्त्री के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की कही जाती है। और संभवतः इसी संपर्क का लाभ डा. बवेजा आज तक उठा रहे हैं। तभी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण जैसे गंभीर मामले में अभी तक कोई कारवाई नही हो पा रही है।



शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिये ’’हिसाब मांगे हिमाचल’’ के नाम से चार पन्नों का एक पोस्टरनुमा पर्चा छापकर अपनी नीयत और नीति सार्वजनिक कर दी है। चुनावी संद्धर्भ में आयोजित पहली पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा ने यह चर्चा मीडिया को जारी करते हुए न केवल प्रदेश सरकार और इसके मुखिया वीरभद्र सिंह पर हमला बोला बल्कि कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए सावल किया कि वीरभद्र जैसे आरोपों में घिरे नेता को देव भूमि हिमाचल का नेतृत्व क्यों सौंपा?
भाजपा के इस चार पन्नो के पोस्टर में सबसे पहले उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री के उद्योग विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि पिछले चार वर्षों में अवैध खनन के 30,000 से अधिक मामले सामने आये हैं और इनमें प्रदेश को 2400 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है। सोलन की एक कंपनी से खनन के लिये मिलने वाली 22.72 करोड़ की रायल्टी और 4.39 करोड़ का ब्याज क्यों नही वसूला गया यह और सवाल उठाया गया है।
खनन के बाद ड्रग्स को लेकर आरोप लगाया गया है कि इसमें 900 करोड़ का अवैध करोबार चल रहा है और 40% हिमाचली युवा इसके शिकार हो चुके हैं। इससे होने वाली मौते दस गुना बढ़ गयी है। जबकि इस अवैध धन्धे में लिप्त लोगों की गिरफ्तारियों में 30% अधिक की गिरावट आयी है। वन माफिया के नाम पर आरोप लगाया गया है कि प्रदेश के वन क्षेत्र मे से 54000 हैक्टेयर पर अतिक्रमण हो चुका है। बिल्डर माफिया हर कहीं अन्धाधुन्द अवैध निर्माण में लगा हुआ है और विभाग की मिली भगत से यह निर्माण नियमित भी होते जा रहे हैं। राज्य आपदा राहत कोष से 19 करोड़ रूपया निकालकर सरकारी इमारतों की मुरम्मत पर खर्च कर दिया गया। लोक निर्माण विभाग ने 9 करोड़ रूपया सड़कों की रिपेयर करने की बजाये अधिकारियों के लिये गाड़ियां खरीदने पर खर्च कर दिया गया। जिन क्षेत्रों में बर्फ पड़ती ही नही वहां पर 20 करोड़ रूपया बर्फ हटाने के नाम पर खर्च कर दिया गया। लोक निर्माण विभाग की भ्रष्ट कार्य प्रणाली के कारण पांच वर्षो में 500 करोड़ के कोलतार का ही नुकसान कर दिया गया। मंडी में 20 करोड़ की लागत वाली 20 सड़कों को डीपीआर के अनुसार नही बनाया गया और अधूरी सड़को को ही यातायात के लिये खोल दिया गया। 250 करोड़ की लागत से बनने वाले सस्पेंडिडस्काईवे ट्रांसफोर्ट सिस्टम का ठेका बेला रूस की कंपनी स्काईवे टेक्नोलाॅजी को बिना किसी प्रक्रिया के दे दिया गया। पेयजल और सिंचाई योजनाओं में 1053 करोड़ का घोटाला किये जाने का भी आरोप लगाया गया है। जंगी थोपन पवारी जल विद्युत परियोजना में ब्रेकल पावर कारपोरेशन पर भाजपा सरकार के दौरान 1800 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था लेकिन कांग्रेस सरकार ने न केवल इसे माफ कर दिया बल्कि ब्रेकल से वसूले गये 280 करोड़ के अग्रिम शुल्क को भी वापिस करने का फैसला कर दिया। सोरंग परियोजना का ठेका 20 करोड़ का अग्रिम लिये बिना ही एक अन्तर्राष्ट्रीय कंपनी को दे दिया।
इन आरोपों के अतिरिक्त बागवानी निदेशालय के निदेशक डा. बवेजा मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया उनकी पत्नी मीरा वालिया रि मेजर जनरल धर्मवीर सिंह राणा और मुख्य सचिव वीसी फारखा की नियुक्तियों पर भी गंभीर सवाल उठाये गये हैं। इन आरोपों के अतिरिक्त मुख्यमन्त्री पर व्यक्तिगत रूप से हमला बोलते हुए वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य द्वारा दिल्ली के मैहरौली में खरीदे गये फार्म हाऊस निजि आवास हाॅलीलाॅज को एक कन्स्ट्रक्शन कंपनी को किराये पर देने आदि के आरोपों को फिर से दोहराया गया है।
भाजपा ने इसी पत्रकार वार्ता में यह भी घोषणा की है कि इस तर्ज पर आने वाले दिनो में चार पत्रकार वार्ताएं आयोजित की जायेगी। इन वार्ताओं में किसी न किसी मुद्दे पर सरकार से हिसाब मांगा जायेगा। जिस तर्ज पर भाजपा की पहली पत्रकार वार्ता में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उठाया गया है। उसमें प्रदेश में सरकार नही बल्कि माफिया राज चलने का आरोप लगाया है। आने वाली पत्रकार वार्ताओं में भी सरकार की यही माफिया छवि जनता में उभारने का प्रयास किया जायेगा यह स्पष्ट हो गया है।
भाजपा के आरोपों पर वीरभद्र सरकार या कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई ठोस प्रतिकार नही आया है। बल्कि सूत्रों के अनुसार जिन विभागों के खिलाफ आरोप लगाये गये हैं उनसे भी इन आरोपों के बारे में कोई जानकारी नही मांगी गयी है। इससे यही संकेत उभरता है कि या तो सरकार के पास इसका कोई जवाब ही नही है या वह फिर इन्हे गंभीरता से नही ले रही है। लेकिन यह माना जा रहा है कि यदि समय रहते सरकार और संगठन की ओर से कोई काऊंटर नही आता है तो जनता के पास इन्हे सही मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही रह जायेगा।
हिमाचल में है 895 सत्संग घर और 6000 बीघे से अधिक जमीन
शिमला/शैल। विधानसभा सदन में एक प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार राधास्वामी सत्संग व्यास के पास प्रदेश के विभिन्न भागों में 6 हजार बीघे से अधिक भूमि है। राधास्वामी सत्संग व्यास की स्थापना डेरा बाबा जैलम सिंह व्यास जिला जालंधर में 1891 को हुई थी। अकेले हिमाचल में ही इसके 895 सत्संग घर हैं और इसके अनुयायीयों की संख्या प्रदेश में लाखों मे है। सामाजिक कार्यों के नाम पर प्रदेश के हमीरपुर जिले के भोटा में संस्था का एक चैरिटैबल अस्पताल भी चल रहा है। संस्था के मुताबिक 2010- 11 से 2015-16 के बीच ही इन्हें 208 स्थानों पर लोगों से दान के रूप में 65 एकड़ जमीन मिली है। इनके पास प्रदेश जनजातीय क्षेत्र किन्नौर तक में जमीन है जबकि वहां पर केवल जनजातीय लोगों को ही जमीन लेने का हक है।
राधास्वामी सत्संग व्यास के अनुयायीयों की संख्या लाखों में होने के कारण चुनावी राजनीति को सामने रखते हुए हर सरकार इनकी सुविधा के अनुसार लैण्ड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों में संशोधन करती आयी है। प्रदेश में लैण्ड सीलिंग एक्ट 1972 लागू है। 1971 में लागू हुए इस एक्ट के मुताबिक अधिकतम जमीन रखने की सीमा 161 बीघे है। इस सीमा से बाहर केवल राज्य सरकार, केन्द्र सरकार या सहकारी संस्था ही जमीन रख सकती है। प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचली सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकता। गैर कृषक हिमाचली भी जमीन नही खरीद सकता। इसके लिये भू-राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है। किसी भी तरह की संस्था कृषक नही हो सकती है सिवाये कृषि सहकारी संस्थाओं के। लेकिन राधास्वामी सत्संग व्यास ने जब 1990-91 में भौटा में अस्पताल बनाने का फैसला लिया तब सरकार से इसके लिये अनुमति चाहिये थी परन्तु उस समय भी इनके पास लैण्डसीलिंग से अधिक जमीन थी। तब शान्ता सरकार ने इनको 7 अगस्त 1991 कोे कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया। इसके लिये जनरल क्लाज़ज एक्ट हिमाचल प्रदेश की धारा 2;35द्ध और भू- राजस्व अधिनियम की धारा 2;2द्ध के तहत कृषक और व्यक्ति का दर्जा प्रदान कर दिया।
यह दर्जा प्राप्त होने के बाद संस्था कृषक बनकर प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना ही कहीं भी ज़मीन खरीदने-लेने की पात्रा बन गयी। इसके बाद धूमल सरकार ने लैण्डसीलिंग एक्ट में संशोधन करके धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को सीलिंग एक्ट की सीमा से बाहर कर दिया। लेकिन इस संशोधन में यह भी साथ ही जोड़ दिया कि यह सुविधा तभी तक रहेगी जब तक वह संस्था के घोषित उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित रखेंगे। अब राधास्वामी सत्संग व्यास ने प्रदेश के विभिन्न भागों में फैली जमीनों को बेचनेे की अनुमति मांगी है। वीरभद्र सरकार यह अनुमति देना भी चाहती है। सूत्रों के मुताबिक संस्था ने इस अनुमति के लिये सरकार और प्रशासन पर पूरा दबाव बनाया हुआ है। सरकार भी चुनावी गणित को सामने रखकर यह अनुमति देने के हक में है। यहां तक कि भाजपा भी इसका विरोध नहीं कर रही है जबकि संशोधन में लैण्डयूज़ का राईडर उन्होने ही लगाया था। लेकिन इस प्रकरण की चर्चा बाहर आने के बाद जो सवाल उभरे है उनसे प्रशासन भी कठघरे में आ गया है, क्योंकि 1991 में जब इन्हे कृषक का दर्जा दिया गया था उस समय सरकार ने यह सूचना नही ली कि क्या वास्तव में ही यह संस्था दान में मिली हुई जमीन पर कृषि कार्य कर रही है बल्कि यह जानकारी आज भी सरकार के पास नही है। जबकि कृषक का दर्जा उसी संस्था को मिल सकता था जो वास्तव में ही कृषि कार्य कर रही हो। क्योंकि प्रदेश में कई मन्दिरों के पास उनके गुजारे के लिये जमीने थी और वह उन पर खेती करते थे और इस नाते वह कृषक थे। लेकिन इस संस्था का आज भी ऐसा कोई रिकार्ड नही है। इसलिये 7 अगस्त 1991 को इन्हे मिली यह सुविधा सवालों में आ जाती है। इसी के साथ संस्था ने जमीन बेचने की अनुमति के लिये जो आवदेन किया है उसमें स्पष्ट कहा है कि यह ज़मीन उन्हे दान में मिली है। दान में मिली हुई संपत्ति को बेचने के लिये दानकर्ता की अनुमति चाहिये। ऐसे में इन्हे यह अनुमति देने से पहले दान कर्ताओं से अनुमति लेना आवश्यक हो जायेगा और अब जब से सिरसा का बाबा राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा विवादों में आया है उससे अब दानकर्ताओं द्वारा ऐसी सहमति मिलने को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं।
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