शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा के महिला मोर्चा ने चार दिन पहले शिमला में एक गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया है इस आयोजन में करीब दो सौ कार्यकर्ताओं ने भाग लिया है। इसमें मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज भी शामिल रहे हैं दोनों ने इसके हवन में आहूतियां डालकर कोरोना के कहर से निजात दिलाने के लिये दैवीशक्तियों का आह्वान किया है। मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षा रश्मिधर सूद ने इसे कोरोना के संद्धर्भ में प्रदेश की जनता को जागरूक करने की दिशा में एक बडा योगदान करार दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमन्त्री के आह्वान पर देश कोरोना को भगाने के लिये ताली-थाली बजाने से लेकर दीपक जलाने तक के सारे प्रयोग कर चुका है। लेकिन इन सारे प्रयासों के बाद भी कोरोना का कहर थमा नही है और आज इससे प्रभावितों में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश बन गया है। हिमाचल में भी इस यज्ञ से कोई लाभ नही मिला है बल्कि इसके मामलों में और अधिक वृद्धि हुई है। इस वृद्धि से यह समझ आता है कि यह महामारी इन उपायों से कम होने वाली नहीं है और इसके लिये कोई अलग ही कदम उठाने होंगे। गायत्री यज्ञ के आयोजन में उन सारे निर्देशों की अवेहलना हुई है जो कोरोना को लेकर प्रधानमन्त्री देश के नाम जारी कर चुके हैं। बल्कि पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के आवास पर उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य पर रखें आयोजन को लेकर कोरोना निर्देशों के उल्लंघन के जो आरोप भाजपा ने लगाये थे आज स्वयं उन्हीं आरोपों के साये में घिर गयी है। प्रदेश कांग्रेस ने राज्य सरकार के पर्यटकों को लेकर किये गये फैसले के विरोध में सचिवालय तक एक रोष रैली का आयोजन किया था। इस आयोजन में कोरोना निर्देशों के उल्लंघन के आरोपो के तहत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सहित कई कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले बनाये गये हैं। लेकिन महिला मोर्चा के आयोजन में भी उन सारे निर्देशों का उल्लंघन हुआ है लेकिन इस पर प्रशासन कोई भी कारवाई करने का साहस नही कर पाया है। लाहौल स्पिति मे जब वहां की महिलाओं ने कृषि मन्त्री डा. मारकण्डेय पर कोरोना निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए उनका रास्ता रोका था तब उन पर आपराधिक मामले बना दिये गये। इन प्रकरणों में भी यही प्रमाणित होता है कि भाजपा सरकार इस महामारी में भी राजनीति कर रही है और महामारी को इस राजनीति का एक अवसर मानकर आचरण कर रही है। पिछले चार दिनों से प्रदेश में हर रोज़ कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। अब जो मामले बढ़ रहे है वह सोलन, मण्डी, सिरमौर, शिमला, कुल्लु, किन्नौर ज़िलों में बढ़ रहे हैं। आज सोलन, कांगड़ा के बराबर पहुंच गया है जबकि ऊना इनसे बहुत पीछे चल रहा है जिसे एक समय तबलीगी समाज का केन्द्र बता दिया गया था। लेकिन आज जो स्थिति देश/प्रदेश की बन गयी है वो किसी हिन्दु-मुस्लिम के कारण नहीं बल्कि सरकार के गलत आकलन और उसके प्रभाव में बनी नीतियों के कारण हुई प्रदेश में जो मामले अब बढ़ रहे हैं वह सेब क्षेत्रों और औद्यौगिक क्षेत्रों में बढ़ रहे हैं। यहां इसलिये बढ़ रहे है क्योंकि जो श्रमिक निति इन क्षेत्रों के लिये बनाई गयी उसमें कोरोना के लिये पहले बनाये गये बहुत सारे निर्देशों में ढील दे दी गयी। श्रमिक नीति के साथ ही पर्यटक नीति में भी वैसी ही कमीयां रहने दी गयी। बल्कि पर्यटकों के लिये अलग और प्रदेश के बाहर से आने वाले हिमाचलियों के लिये अलग नीति बन गयी। इस नीति को लेकर कई वरिष्ठ पूर्व नौकरशाहों ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर रोष भी व्यक्त किया है।
कोरोना आई एम ए के मुताबिक सामुदायिक संक्रमण और प्रसार की स्टेज पर पहुंच गया है। ऐसे में यदि इसका संक्रमण शहरी क्षेत्रों से निलकर ग्रामीण क्षेत्रों में फैल गया तो उससे स्थिति बहुत जटिल हो जायेगी। क्योंकि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बहुत ही कमजा़ेर है। प्रदेश में जो 400 के करीब डाक्टरों के पद खाली हैं वह अधिकांश में ग्रामीण क्षेत्रों में ही हैं। इसलिये कोरोना को लेकर नये सिरे से आकलन करके नीति बनानी होगी यह स्पष्ट होना होगा कि सही में सरकार कोरोना को कितना घातक मानती है क्योंकि इसमें डाक्टरों की राय अलग-अलग रही है। ऐसे में यदि सरकार अपने आकलन में कोरोना को गंभीर मानती है तब इसके निर्देश सबके ऊपर एक समान लागू करने होंगे। यह नहीं हो सकता कि पर्यटकों, उद्योग श्रमिकों, बागवानी श्रमिकों और प्रदेश के स्थायी निवासियों सभी के लिये अलग अलग नियम बनाये जायें। अब तक सरकार अपने नियमों को एक ही दिन में दो दो बार बदलने का खेल कर चुकी है। जब सरकार अपने ही नियमों के बारे में स्थिर और स्पष्ट नही होगी तब उसकी गायत्री यज्ञ जैसी ही फजीहत होगी कि भगवान से ऊपर नेताओं के चित्रों को स्थान मिल जाये। इस समय एक स्पष्ट नीति के साथ प्रदेश की जनता को आयूष का काढ़ा उपलब्ध करवाना होगा जो कि पहले वरिष्ठ नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों तक ही उपलब्ध करवाया गया है।
शिमला/शैल। हिमाचल की जयराम सरकार ने कोरोना काल में बिजली की दरों का युक्तिकरण करने के नाम पर 100 करोड़ का बोझ प्रदेश की जनता पर डाला है। इस बोझ के कारण प्रदेश में बिजली के रेट बढ़ गये हैं। इसी काल में एपीएल परिवारों को सस्ते राशन के दायरे से बाहर कर दिया और बीपीएल परिवारों को मिलने वाले सस्ते राशन की मात्रा में भी कमी की है। अब बस किराये में भी बढ़ौत्तरी की जा रही है। सरकारी स्कूलों मे तीन माह की फीस आदि लेने का भी फैसला हो गया है। यह भी चर्चा है कि बिजली बोर्ड को भी प्राईवेट सैक्टर को दिया जा रहा है। उसमें शायद प्राईवेट सैक्टर बोर्ड के मौजूदा करीब नौ हजार करोड़ के कर्ज की जिम्मेदारी लेने को तैयार नही है। लेकिन यह पक्का है कि विनिवेश के नाम पर बोर्ड प्राईवेट सैक्टर को दिया जा रहा है। वैसे तो सरकार मन्त्रीमण्डल की हर बैठक में किसी
न किसी विभाग में कुछ पदों पर नयी नियुक्तियां करने के फैसले लेती रही है लेकिन इसी दौरान नागरिक आपूर्ति निगम से 76 डाटा एन्ट्री आप्रेटरों को नौकरी से भी निकाल दिया गया है। पथ परिवहन निगम और पर्यटन निगम में कई कर्मचारियों को शायद नियमित वेतन भी नही मिल पाया है। कोरोना के चलते सरकार को प्रतिमाह अनुमानित राजस्व नही मिल पा रहा है। इसी कारण से वित्त सचिव ने 29 जून को सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि वह सितम्बर माह तक एस ओ ई का 20ः से अधिक खर्च नही करेंगे। भारत सरकार ने भी सीमा से
अधिक कर्ज लेने के लिये शर्तें और कड़ी कर दी हैं। इस वस्तुस्थिति से यह आभास होता है कि सरकार की वित्तिय स्थिति ठीक नही है। लेकिन वित्त विभाग के 29 जून के बाद भी मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और उनके सहयोगी मन्त्रीयों ने जनता में जितने पैसे की घोषणाएं विभिन्न कार्यों और योजनाओं के नाम पर कर दी हैं उससे यह कतई नही लगता कि सरकार को
कोई वित्तिय कठिनाई भी है। बल्कि जब से सरकार ने यह खुलासा किया है कि उसके पास 14000 करोड़ रूपये अनसपैंट पड़े हैं तब से वित्तिय स्थिति को लेकर स्थिति एकदम अस्पष्ट सी हो गयी है। क्योंकि इसी दौरान सरकार ने कर्ज भी उठाया है और केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर के ब्यानों के मुताबिक केन्द्र से भी प्रदेश को अच्छी आर्थिक सहायता मिली है। इस तरह सरकार के पास चैदह हजार करोड़ अनस्प्पैंट पड़े हो और केन्द्र से भी पर्याप्त सहायता मिल रही हो उसे बिजली के रेट तथा बस किराये में बढ़ौत्तरी करने की आवश्यकता क्यो ंपड़नी चाहिये। लेकिन सरकार न केवल इन
सेवाओं के रेट बढ़ा रही है बल्कि अलग से प्रदेश पर कर्ज का बोझ भी बढ़ाती जा रहा है। 31 मार्च 2018 तक की कैग रिपोर्ट के मुताबिक उस समय तक सरकार का कर्जभार 52000 करोड़ से ऊपर हो गया था। यह कर्ज इस समय साठ
हजार करोड़ का आंकड़ा पार करने वाला है। सरकार केवल कार्यों के नाम पर कर्ज लेती है। लेकिन विकास के नाम पर लिये गये इस कर्ज की सही तस्वीर कैग रिपोर्ट के मुताबिक इस कर्ज में से एक भी पैसा विकास कार्यों के लिये उपलब्ध नही था। सरकार ने कर्ज का उपयोग कैसे और क्या किया है इस पर कैग की टिप्पणी चैंकाने वाली है। यही नहीं सरकार आपदा प्रबन्धन के पैसे का उपयोग भी सरकारी भवनों की रिपेयर के लिये करती रही है। आपदा प्रबन्धन के पैसे में से सरकार के पास जरूरतमंद आपदा पीड़ितों को देने के लिये पैसा नहीं था। आपदा प्रबन्धन कोष का पैसा आपदा प्रभावी पर ही खर्च किया जा सकता है। इसका कहीं और उपयोग अपराध की श्रेणी में आता है।
Interest payments as percentage of Revenue Receipts increased from
9.36 per cent of 2016-17 to 10.34 per cent in 2017-18 which shows that the interest payments on public debt was increasing resulting in less availability of funds for development activities.
42.06 to 75.94 per cent of debt receipts were used for its repayments
during 2013-18. During 2017-18, 63 per cent of borrowed funds were
used for discharging existing liabilities.
The net funds available on account of the Internal debt and loans and
advances from GoI and other obligations after providing for the interest and repayments varied between minus ` 63 crore and ` 2,201 crore during 2013-18. The net debt available to the State for the year 2017-18 was minus ` 729 crore.
The State Executive Committee was not discharging its duty of ensuring that money drawn from SDRF was being properly utilised, resulting in diversion and misutilisation of ` 2.19 crore from SDRF by Deputy Commissioners for repair and restoration of Government office and residential buildings not damaged by disaster/ calamity, while claims of 3.19 crore for immediate relief to victims of natural calamities remained pending, defeating the purpose of SDRF. कैग की इन टिप्पणीयों के परिदृश्य में सरकार के वित्तिय प्रबन्धन पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े होते हैं। वित्त विभाग के पत्र के बाद भी जितनी वित्तिय घोषणाएं मुख्यमन्त्री स्वयं कर चुके हैं उस परिप्रेक्ष में शायद अब विधायक भी अपनी क्षेत्र विकास निधि की बहाली की मांग करने लग पड़े हैं। यही नहीं वित्तिय प्रबन्धन की इन्हीं विसंगतियों के कारण सरकार से श्वेत पत्र की मांग की जाने लग पड़ी है क्योंकि जब सरकार एक ओर से तो यह दावा करे कि उसके चैदह हजार करोड़ बिना खर्चे पड़े हैं और दूसरी ओर जनता पर कीमतें बढ़ाने और कर्ज का बोझ डालने का प्रयास करे तो सही स्थिति जानने के लिये श्वेतपत्र जारी किये जाने की मांग जायज हो जाती है।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष पद 27 मई से खाली चला आ रहा है। बल्कि किसी को भी कार्यकारी अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी नही दी गयी। भाजपा जैसी अनुशासित और संघ से नियन्त्रित पार्टी में भी ऐसी स्थिति का आ खड़ा होना कालान्तर में सरकार और संगठन दोनो के लिये ही घातक होगा यह तय है। फिर इसमें इससे और भी गंभीरता आ जाती है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा भी हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं। यहीं पर वह स्वास्थ्य और वन मन्त्री रह चुके हैं। इस नाते इतनी देर तक यहां अध्यक्ष पद का खाली रहना कई सवाल खड़े कर जाता है। इसमें उस समय तो और भी स्थिति हास्यस्पद हो गयी जब राज्यसभा सांसद सुश्री इन्दु गोस्वामी का नाम अध्यक्ष के लिये सोशल मीडिया से लेकर अखबार तक छप गया और कैलाश विजयवर्गीय जैसे आदमी ने बधाई तक दे दी और बाद में वह सबकुछ हवाहवाई निकला। इन्दु गोस्वामी के अध्यक्ष बन जाने की चर्चा मीडिया में कैसे आ गयी? इसी चर्चा में संगठन मन्त्री पवन राणा का नाम कैसे आ गया? फिर अखबार में छपी खबर पर इन्दु गोस्वामी की अलग प्रतिक्रियायें आना कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जब भी खुलासा होगा तो उससे कोई बड़ा विस्फोट होगा यह तय है। क्योंकि इन्दु गोस्वामी अपने अध्यक्ष बनने की खबर मीडिया को तब तक नही देंगी जब तक नियुक्ति पत्र उनके हाथ में नही होगा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि किसी ने बडे़ ही सुनियोजित ढंग से इस नाम को उछालकर उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया है।
ऐसा किसने और क्यों किया होगा इसके लिये यदि पिछे घटे कुछ अहम बिन्दुओं पर विचार करें तो बहुत सारी चीजें समझ में आ जाती हैं। इन्दु गोस्वामी को पार्टी ने पालमपुर से चुनाव लड़वाया था। यहां टिकट के लिये कितने और कौन कौन लोग उनके प्रतिद्वन्दी थे सब जानते हैं। चुनाव में पार्टी के ही बड़े लोगों ने उन्हें कितना सहयोग दिया यह भी किसी से छिपा नही है। चुनाव हारने के बाद उन्होने कैसे अपने पद से त्यागपत्र दिया यह उन्ही के पत्र से स्पष्ट हो जाता है जो उन्होने नेतृत्व को लिखा था। इस पत्र पर पार्टी की ओर से कैसी और किस तर्ज पर प्रतिक्रिया आयी थी यह भी सब जानते हैं। राज्य सभा के लिये वह कैसे गयीं सब जानते हैं कि यहां से उनका नाम सूची में नही था और दिल्ली के निर्देशों पर उनका नाम भेजा गया। इस तरह जिसे विधायक नही बनने दिया गया वह राज्यसभा सांसद बन गयी। स्वभाविक है कि जो लोग उन्हे पहले विधायक फिर सांसद नहीं बनने देना चाहते थे वह अब आसानी से प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनने देंगे। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का पार्टी के आम कार्यकर्ता पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आकलन तो आने वाले समय में ही होगा। इसी दौरान यह चर्चा भी चली कि दो विधायकों को मन्त्री बनाया जा रहा है और अमुक दिन शपथ हो रही है लेकिन अन्त में परिणाम शून्य रहा। फिर चार लोगों को विभिन्न निगमों /बोर्डाें मे अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा चली और यह भी सिरे नही चढ़ी। इसके बाद मुख्यमन्त्री के ओएसडी और राजनीतिक सलाहकार को सचिवालय से बाहर ताजपोशीयां देने की जोरदार चर्चा चली। यह भी सही है कि यह सारी चर्चाएं हवाहवाई ही नही थीं लेकिन इनको रूकवा दिया गया। आज प्रशासन में हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि जयराम ठाकुर बतौर वित्त मन्त्री तो सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को सचिव वित्त से निर्देश दिला रहे हैं कि बजट के 20% से ज्यादा खर्च न किया जाये। लेकिन दूसरी ओर बतौर मुख्यमन्त्री करोड़ों के शिलान्यास और घोषणाएं कर रहे हैं। यह दावा किया जा रहा है कि सरकार के पास 14000 करोड़ बिना खर्च पड़े हुए हैं परन्तु विधायकों की क्षेत्रा विकास निधि स्थगित पड़ी है। इस तरह के कई विरोधाभास आज सरकार की कार्यप्रणाली में सामने आ रहे हैं।
इस परिदृश्य में कल को जो भी पार्टी का अध्यक्ष बनता है वह सरकार की इस तरह की कार्यशैली से कैसे संगठन और सरकार में तालमेल बिठा पायेगा यह एक बड़ा सवाल रहेगा। ऐसे में इन्दु गोस्वामी ही अन्ततः अध्यक्ष बन जाती हैं तब तो स्थिति और भी दिलचस्प हो जायेगी।
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस खेमों में बंटती जा रही है यह अब खुलकर सामने आ गया है। यह खेमेबाजी पिछले दिनों पूर्वमन्त्री ठाकुर कौल सिंह के घर हुए पार्टी नेताओं के भोज से शुरू होकर अब पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के आवास पर हुए लंच आयोजन पर इसका पहला दौर पूरा हो गया है। कौल सिंह के घर सभी नेताओं को आमन्त्रण नही था और जितनों को था वह लगभग सभी थे लेकिन वीरभद्र के घर सभी बड़ों और पूर्व विधायकों को आमन्त्रण था। लेकिन यहां नौ विधायकों समेत करीब तीस नेता इसमें शामिल नही हुए यह हकीकत है। कौल सिंह के घर पर हुए भोज में पार्टी को लेकर कोई घोषित एजैण्डा नही था। लेकिन इस भोज के बाद हाईकमान को एक पत्र गया और उस पत्र में पार्टी की राज्य में स्थिति को लेकर चिन्ता व्यक्त की गयी थी। हाईकमान से आग्रह किया गया था। प्रदेश में संगठन की स्थिति को लेकर गंभीर चिन्तन की आवश्यकता है। यह पत्र मीडिया में वायरल हो गया और इसे पार्टी विरोधी गतिविधि करार दे दिया गया। पार्टी की अनुशासन समिति ने इसका संज्ञान लेकर संवद्ध नेताओं से जवाब तलबी कर ली और इस पर नेताओं ने अपने पदों से त्यागपत्र तक दे दिये। इस पत्र लिखने को संगठन के नेतृत्व के खिलाफ खुली बगावत मान लिया गया। कौल सिंह के घर हुई बैठक में कौल सिंह और सुखविन्दर सिंह दो ऐसे पूर्व अध्यक्ष रहे हैं जिन्हे हटाने के लिये वीरभद्र सिंह बहुत दूर तक चले गये थे सुक्खु के वक्त में तो वीरभद्र ब्रिगेड तक का गठन हो गया था और यह ब्रिगेड वाकायदा एक पंजीकृत एनजीओ तर्ज पर गठित किया गया था। जब इसका संगठन ने संज्ञान लिया तब इसे भंग कर दिया गया। इसके अध्यक्ष ने सुक्खु के खिलाफ मानहानि का दावा तक कर दिया। फिर अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों के मुकाबले में समानान्तर सत्ता केन्द्र खड़े कर दिये। इसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा चुनावों में भी इनमें आपसी तालमेल का अभाव रहा और पार्टी चुनाव हार गयी। चुनाव परिणाम आने के बाद कौल सिंह जैसे नेताओं ने इस तरह के आरोप खुलेआम लगाये हैं।
ऐसे में विधानसभा चुनावों के बाद वीरभद्र सिंह ने सुक्खु को हटवाने के लिये पूरी ताकत लगा दी और सुक्खु हट गये। लेकिन सुक्खु का विकल्प कुलदीप राठौर बनाये गये। राठौर कभी विधायक नही रहे हैं इसलिये उन्हे संगठन के सारे खेमों मे तालमेल बिठाना एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिये राठौर ने सबसे पहले पुरानी कार्यकारिणी में ही विस्तार करके उसका साईज़ बढ़ा दिया। लेकिन लोकसभा चुनावों में भी जब वीरभद्र सिंह ने मण्डी को लेकर यह ब्यान दिया कि कोई भी मकरझण्डू चुनाव लड़ लेगा तो उसी से स्पष्ट हो गया था कि चुनाव परिणाम क्या रहने वाले हैं। पार्टी का यही भीतरी बिखराव विधानसभा उपचुनावों तक जारी रहा है और करारी हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा उपचुनावों की हार कुलदीप राठौर की राजनीतिक असफलता बन गयी क्योंकि उसका व्यक्तिगत आकलन भी इसमें फेल हो गया। अभी तक कुलदीप राठौर कार्यकर्ताओं को भाजपा और जयराम सरकार के खिलाफ कोई ठोस ऐजैण्डा नही दे पाये हैं। उनका कोई भी प्रवक्ता सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नही उछाल पाये हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को अपनी ही पार्टी की आर्थिक और सामाजिक सोच के बारे में पूरी और सही जानकारी ही नही हैं जबकि आज भाजपा ने केन्द्र से लेकर राज्यों तक जो वातावरण खड़ा कर दिया है उसे सबसे पहले विचारधारा के स्तर पर जनता में चुनौती देनी होगी। लेकिन दुर्भाग्य से आज कांग्रेस इसी पक्ष पर सबसे कमजो़र है। यदि यही स्थिति आगे भी बनी रहती है तो कांग्रेस के लिये आने वाला समय और भी कठिन हो जायेगा।
लेकिन कांग्रेस इस पक्ष की ओर ध्यान देने की बजाये अभी से अगले नेता को लेकर आपस में झगड़ने लग पड़ी है। यह सही है कि वीरभद्र सिंह आज उम्र के जिस पडा़व पर पहुंच चुके हैं वहां से वह अगले चुनावों में पार्टी का नेतृत्व नही कर पायेंगे। ऐसे में पार्टी का अगला नेता कौन होगा इस बारे में भी शायद खुलेआम किसी एक नेता का नाम वीरभद्र सिंह नही लेंगे और यही उनकी सबसे बड़ी कमजा़ेरी भी है। जबकि इस समय यदि किसी को अगला नेता प्रौजैक्ट कर दिया जाता है तो वह नेता चुनावों तक अपने को संगठन और जनता में प्रमाणित कर पायेगा तथा सबको साथ लेने में सफल भी हो सकता है। लेकिन अभी पार्टी में इस लाईन पर कोई सोच ही नही बन पायी है। पार्टी नये लोगों को जोड़ ही नही पा रही है। भाजपा ने संपर्क से समर्थन कार्यक्रम चलाकर बहुत सारे लोगों को अपना आलोचक होने से रोक दिया था। लेकिन कांग्रेस अभी तक भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आये सुरेश चन्देल को भी पूरा सक्रिय नही कर पायी है। आज जब वीरभद्र के लंच पर सभी आमन्त्रित नही पहुंचे हैं तो इससे स्पष्ट हो जाना चाहिये कि पार्टी के अन्दर एक बड़ा वर्ग अब नेतृत्व में बदलाव चाहता है। आज नेतृत्व को भाजपा सरकार के खिलाफ वैसी ही आक्रामकता लानी होगी जैसी वीरभद्र सिंह ने अपने समय में दिखायी है।
आज जयराम सरकार बहुत सारे अन्तःविरोधों में घिरी हुई है लेकिन कांग्रेस की ओर से सरकार को घेरने के लिये कोई कारगर प्रयास नही किये जा रहे हैं। बल्कि यह संदेश जा रहा है कि वीरभद्र नहीं चाहते कि जयराम सरकार के खिलाफ सही में ही कोई बड़ा मुद्दा खड़ा किया जाये। यदि कांग्रेस समय रहते इस ओर ध्यान नही देती है तो आने वाले दिनों में संगठन के भीतर एक बड़ी बगावत को रोक पाना संभव नही होगा। क्योंकि अब ‘‘मै नही तो कोई भी नही’’ की नीति पर चलकर सत्ता पा लेना संभव नही होगा।
निलिट के माध्यम से आऊटसोर्स पर अब तक जारी है भर्तीयां
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने अक्तूबर 2015 से प्रदेश के 1131 वरिष्ठ माध्यामिक स्कूलों में सूचना प्रौद्योगिकी के शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम शुरू कर रखा है। इसके लिये सरकार के अपने पास शिक्षक नही थे। यह शिक्षक उपलब्ध करवाने के लिये सरकार ने भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक्स एवम् सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय से संवद्ध संस्थान निलिट से एक एमओयू साईन किया। यह संस्थान शिमला में ही स्थित था और 1995 में तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने ही इसका उद्घाटन किया था। इस संस्थान ने मार्च 2016 तक एमओयू के तहत सूचना प्रौद्योगिकी के लिये 1300 अध्यापक उपलब्ध करवाने थे। लेकिन यह अध्यापक उपलब्ध करवाने से पहले ही सरकार ने पूरे प्रदेश में इसके संचालन की जिम्मेदारी इसी संस्थान निलिट को सौंप दी। इसके साथ जून 2020 तक का अनुबन्ध कर लिया गया क्योंकि यह संस्थान भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक मन्त्रालय से संवद्ध था। बल्कि स्कूलों के अतिरिक्त विभिन्न विभागों में आउटसोर्स पर कम्पयूटर आप्रेटर आदि भी निलिट के माध्यम से भरने के आदेश कर रखे हैं जो आज तक चल रहे हैं। माना जा रहा है कि इस समय 50ः से भी अधिक आउटसोर्स पर भर्ती हुये कर्मचारी निलिट के इन्ही संस्थानों से हैं।
जब सरकार के स्कूलों में यह कार्यक्रम शुरू हो गया और सरकार ने यह शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने करने वाले छात्र-छात्राओं को स्कालरशिप आदि के रूप में प्रोत्साहित करना शुरू किया तब निलिट ने भी सरकार के कार्यक्रम का संचालन संभालने के साथ ही अपने यहां भी यह शिक्षण-प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। भारत सरकार के इलाक्ट्रानिक्स मंत्रालय से संवद्ध होने के कारण इनके यहां पढ़ने वाले छात्र भी उन सारी सुविधाओं के पात्र बन गये जो इनके समकक्ष सरकारी स्कूलों में ले रहे थे। इसका यह भी असर हुआ कि प्रदेश के ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन में भी निलिट के नाम से संस्थान खुल गये। यहां भी शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम शुरू हो गया। इनके यहां पढ़ने वाले छात्रों को भी वही सुविधाएं सरकार से मिल गयी जो दूसरे स्थानों पर मिल रही थी।
जब छात्रवृति के आबंटन में घोटला होने के आरोप लगे और तब यह मामला जांच के लिये सीबीआई के पास पहुंच गया। सीबीआई अपनी जांच में जब इन संस्थानों तक पहुंची तब यह सामने आया कि ऊना, कांगडा़, चम्बा और नाहन में निलिट के नाम से चल रहे संस्थानों के पास भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक मन्त्रालय से कोई संवद्धता ही नही थी। संवद्धता न होने का अर्थ है कि यह संस्थान गैर कानूनी तरीके से आप्रेट कर रहे थे और सरकार से मिलने वाली सुविधाओं के भी पात्र नहीं थे। सीबीआई ने 28-8-2019 को इस संबंध में उच्च शिक्षा निदेशक को पत्र लिख कर सूचित भी कर दिया है। सीबीआई ने स्पष्ट कहा है कि ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के इन संस्थानों के पास भारत सरकार के मन्त्रालय से कोई संवद्धता नही है। सीबीआई ने जब इन संस्थानों के यहां दबिश दी तब यह सामने आया कि इनका प्रोपराईटर कोई कृष्णा पुनिया है और उसमंे इनसे जुड़ा सारा 2013-14 से 2016-17 का सारा रिकार्ड नष्ट कर दिया है। रिकार्ड नष्ट किये जाने से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह संस्थान गैर कानूनी तरीके से कार्य कर रहे थे।
निलिट के साथ प्रदेश सरकार ने अक्तूबर 2015 में एमओयू साईन किया था। यह एमओयू शिमला स्थित संस्थान से साईन किया गया और 2016 में इसे 30 जून 2020 तक बढ़ा दिया गया। ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के संस्थानों की 2017 तक की जांच चल रही है। छात्रवृति घोटाला 2018 में चर्चा में आया था और तब इसकी जांच राज्य परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण से करवाई गयी थी। शक्ति भूषण की पांच पन्नो की रिपोर्ट के आधार पर 16-11-18 को थाना छोटा शिमला में मामला दर्ज किया गया था जिसे बाद में सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया। प्रदेश के 266 प्राईवेट स्कूलों में यह छात्रवृतियां मिल रही हैं लेकिन जांच केवल तीन दर्जन संस्थानों तक ही रखी गयी थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि 2018 में ही सरकार के संज्ञान में छात्रवृति घोटाला आ गया था। लेकिन किसी को भी यह सन्देह नही हुआ कि निलिट के ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के संस्थान फ्राड हैं। भारत सरकार में भी किसी को यह जानकारी नही हो सकी कि उसके नाम से कोई फर्जी संस्थान चल रहे हैं। यहां तक की शिमला में जो संस्थान वाकायदा संवद्धता लेकर चल रहा था उसे भी यह पता नही चला कि प्रदेश में चार संस्थान उसी नाम से बिना संवद्धता चल रहे हैं। अब जब सीबीआई ने 28-8-2019 को इस संबंध में निदेशक को लिखित में सूचित कर दिया है उसके बाद भी सरकार की ओर से इस बारे में कोई कारवाई न किया जाना कई सवाल खड़े करता है।
सीबीआई की सूचना से पहले इन संस्थानों पर सन्देह शायद इसलिये नही हो सकता था कि ऐसे संस्थान खोलने के लिये राज्य सरकार से अनुमतियां लेने का कोई प्रावधान ही नही किया गया है। कोई भी किसी से भी संवद्धता का दावा करके संस्थान खोल सकता है। इसमें यह तो माना जा सकता है कि जब शिमला में निलिट ने एक संस्थान को संवद्धता दे रखी थी और उसने कुसुम्पटी में भी एक शाखा खोल रखी है तो स्वभाविक रूप से यह जानकारी रहना संभव है कि उसकी तरह चार और स्थानों पर भी निलिट खोलने के लिये किसी ने संवद्धता ली है। ऐसे में यह स्वाल उठाना स्वभाविक है कि निलिट के इस फर्जी वाड़े पर सरकार कारवाई क्यों नही कर रही है। सरकार ने शायद अभी तक भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक्स मन्त्रालय को भी इस फर्जी वाडे की सूचना नही दी है। क्योंकि भारत सरकार द्वारा भी ऐसा कोई मामला दर्ज नही करवाया गया है कि कैसे कोई उसके नाम का फर्जी तरीके से प्रयोग कर रहा था। वैसे भी कंम्प्यूटर प्रशिक्षण के सैंकड़ो संस्थान प्रदेश में चल रहे हैं लेकिन उनके बारे में कोई विशेष नियम या प्रक्रिया अभी तक तय नही है। निलिट भारत सरकार का उपक्रम है उसके नाम पर शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करके इन चारों संस्थानों के कई छात्र सरकार के विभिन्न विभागों में भी कार्यरत हो सकते है जबकि उनके प्रमाणपत्रों की कोई मान्यता ही अब नही रह गयी है। हो सकता है कि सरकार के स्कूलों में इन संस्थानों से निकले लोग सेवायें दे रहे हों।
सीबीआई का पत्र