Friday, 19 September 2025
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बैम्लोई बिल्डर्ज़ मामलें में टीसीपी और नगर निगम की कार्यप्रणाली फिर सवालो में

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के पास एनजीटी का आदेश आने से पहले करीब एक हजार लोगों के भवन निर्माण के नक्शे पास करने के आवेदन लंबित थे। अब इनमें से कुछ लोगों के नक्शे पास करके उन्हे निर्माण की अनुमति दी जा रही है। यह सभी निर्माण तीन से अधिक मंजिलों के हैं। इसमें तर्क यह दिया जा रहा है कि यह नक्शे एनजीटी का आदेश आने से बहुत पहले ही पास कर दिये गये थे लेकिन नगर निगम इसकी सूचना नही भेज पाया था। नगर निगम का यह तर्क निगम ही नही पूरी सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्योंकि एनजीटी ने अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर रोक लगा रखी है। एनजीटी का यह आदेश उन निर्माणों पर भी लागू है जो उस समय चल रहे थे और पूरे नही हुए थे। एनजीटी ने यहां पर अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर इसलिये रोक लगायी क्योंकि यह क्षेत्र गंभीर भूकंप जोन में आते हैं। सरकार के अपने ही अध्ययनो में यह आ चुका है कि भूकम्प के हादसे में सैंकड़ो भवनों का नुकसान होगा और हजारों लोगों की जान जायेगी। प्रदेश उच्च न्यायालय भी इस संबंध में सरकार और निगम प्रशासन के खिलाफ सख्त टिप्पणीयां कर चुका है। एनजीटी के आदेशों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने के कई बार आश्वासन दिये जा चुके हैं लेकिन अभी तक ऐसा हो नही पाया है और जब तक एनजीटी का फैसला रद्द नही हो जाता है तब तक तो यही फैसला लागू रहेगा।
लेकिन शिमला शहरी चुनाव क्षेत्र की राजनीति में यह नक्शे ही सबसे बड़ा जनहित का मुद्दा होता है। इसी जनहित के नाम पर नौ बार अवैध निर्माणों को नियमित करने के लिये रिटैन्शन पालिसियां लायी जा चुकी हैं। ऐसे में इस बार यदि अदालत के आदेशों को नज़रअन्दाज करने के लिये इन नक्शों के एनजीटी के आदेशों से पहले ही पास होने का तर्क लिया जाता है तो इसमें कोई आश्चर्य नही होना चाहिये। क्योंकि नगर निगम में अराजकता का आलम यह है कि यहां पर अदालत के फैसलों पर अमल करने या उसमें अपील में जाने की बजाये प्रशासन ऐसे फैसलों को मेयर के सामने पेश करके उस पर हाऊस की कमेटी बनाकर राय ली जाती है। ऐसा उन लोगो के मामलों में होता है जिन्हें सरकार परेशान करना चाहती है। विकास के मामलों को भी जिनमें किसी पार्षद का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हित जुड़ा होता है उन्हे वर्षों तक अदालत में लटकाये रखा जाता है ऐसा एक अम्बो देवी बनाम नगर निगम मामलें मे देखने को मिला है। इसमें निगम के नाले की चैनेलाइजेशन होनी है।
अभी बेमलोई बिल्डर्ज़ प्रकरण में इसी तरह का आचरण देखने को मिला है। स्मरणीय है कि एक समय इस प्रौजैक्ट ने प्रदेश की सियासत को हिला कर रख दिया था। प्रदेश विधानसभा में यह मामला गर्माया था। इसी मामलें में तत्कालीन मेयर और आयुक्त नगर निगम एक दूसरे से टकराव में आ गये थे। इसी टकराव के बाद यह मामला CWP 8945/2011 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंच गया था। उच्च न्यायालय में यह मामला अब तक लम्बित है उच्च न्यायालय ने बेमलोई बिल्डर्ज़ के निर्माण को बिजली-पानी का कनैक्शन देने पर रोक लगा रखी है और यह रोक अब तक जारी है जब तक किसी निर्माण को बिजली -पानी नही मिल जाता है उसे तब तक कम्पलीशन का प्रमाण पत्रा जारी नही किया जा सकता यह स्थापित नियम है। लेकिन इस नियम को नजऱअन्दाज करके इस वर्ष फरवरी में इन्हे यह पूर्णता का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। यह प्रमाण पत्र जारी होने के बाद डीएलएफ ने अपने ग्राहकों को इसकी सूचना देकर अगली कारवाई भी शुरू कर दी। लेकिन सरकार और नगर निगम का यह मामला याचिकाकर्ता के संज्ञान में आया तब उसने अपने वकील संजीव भूषण के माध्यम से इस पर नोटिस भिजवा दिया। वकील का नोटिस मिलने के बाद पूर्णता के प्रमाण पत्र को वापिस ले लिया गया है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि अदालत के आदेशों को क्यों नज़रअन्दाज किया गया। वकील के नोटिस में साफ कहा गया है कि इस नोटिस का खर्च 21000 रूपये भी निगम से वसूला जायेगा। क्या इस तरह की कार्यप्रणाली को अराजकता की संज्ञा नही दी जानी चाहिये? क्या इसके लिये शीर्ष प्रशासन को भी बराबर का जिम्मेदार नही ठहराया जाना चाहिये।






























आयकर विभाग भी जांचेगा मानवभारती विश्व विद्यालय मामला

शिमला/शैल। वर्तमान में जिला पुलिस सोलन मानव भारती विश्वविद्यालय, लाडो सुल्तानपुर (सोलन) के फर्जी डिग्री घोटाले की जांच कर रही है। इस सन्दर्भ में तीन आपराधिक मामले अभियोग संख्या 22/20, 26/20 व 27/20 जेरधारा 420, 467, 468 व 120-बी0 भारतीय दंण्ड संहिता के अन्तर्गत थाना धर्मपुर, जिला सोलन में पंजीकृत किए गये हैं। उपरोक्त मामलों की जांच हिमाचल पुलिस के एक विशेष अन्वेषण दल द्वारा की जा रही है। अन्वेषण से पाया गया है कि मानव भारती विश्वविद्यालय ने इसकी स्थापना के बाद से उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में फर्जी ड़िग्रियां जारी की और उसके बदले उनसे भारी संख्या में पैसे लिये।
मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वामित्व में मानव भारती विश्वविद्यालय की स्थापना मानव भारती विश्वविद्यालय (स्थापना और विनियमन) अधिनियम 2009 के अनुसार की गई थी। मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राज कुमार राणा हैं व उनकी पत्नी अशोनी कंवर, पुत्रा आईना राणा ट्रस्ट के न्यासी हैं। इसी ट्रस्ट के तत्वावधान में वर्ष 2013 में माधव विश्वविद्यालय, राजस्थान की स्थापना भी की गई थी।जांच के दौरान पाया गया है कि राज कुमार राणा द्वारा हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और अन्य स्थानों पर भारी मात्रा में चल व अचल संपत्ति अर्जित की गई है, जिसके लिये धनराशि की फर्जी डिग्री जारी करके प्राप्त की गई है। राणा का परिवार अर्थात् उनकी पत्नी, पुत्र और पुत्री वर्तमान में आस्ट्रेलिया में रह रहे हैं।फर्जी डिग्रियों के अतिरिक्त अपराध के वित्तीय पहलुओं की जांच करना आवश्यक है, जिसके लिए अपराध से संबंधित वित्तीय लेनदेन इत्यादि का मूल्यांकन आयकर विभाग द्वारा किया जाना चाहिए।
क्योंकि राज कुमार राणा द्वारा भारी मात्रा में चल व अचल सम्पति अर्जित की गई है तथा राजस्थान में एक नये विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, अतः पुलिस महानिदेशक हिमाचल प्रदेश द्वारा मुख्य आयुक्त आयकर, शिमला के साथ आरोपी की सम्पति, उसके आय के स्त्रोतों इत्यादि की जांच करने के लिये मामला उठाया गया है।

बागवानी विभाग के 50 लाख के घपले पर कारवाई क्यों नहीं

शिमला/शैल। प्रदेश के बागवानी विभाग में 50 लाख से अधिक की अनावश्यक मशीनरी खरीद करके सरकारी धन का दुरूपयोग हुआ है यह आरोप हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं संघ नेताओं ने एक प्रैस ब्यान जारी करके लगाया है। आरोप है कि खरीद की गयी मशीनरी न केवल अनुपयोगी ही थी बल्कि इसमें वित्तिय नियमों की भी धज्जियां उड़ाई गयी हैं। यह खरीद विभाग के निदेशक द्वारा की गयी है और इसके लिये भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कारवाई की जानी चाहिये यह मांग महासंघ के राज्य महासचिव गीतेश और जिला शिमला के अध्यक्ष गोविन्द बरागटा ने की है।
महासंघ के नेताओं का आरोप है कि विभाग में वर्ष 2018-19 में 37 लाख की मशीनरी बिना मांग और वित्तिय प्रक्रियाओं को नजरअन्दाज करके खरीदी गयी जबकि इसकी कोई आवश्यकता नही थी। इस खरीद पर कैग रिपोर्ट में सवाल उठाये गये हैं। इसके बाद वर्ष 2019 में दिल्ली की एक फर्म से मशीनरी खरीदने के लिये 14 लाख रूपये सरकारी कोष से निकाले गये परन्तु यह मशीनरी आज तक नहीं आयी है। जबकि निदेशक 30-8-2020 को सेवानिवृत भी हो गये हैं। यही नहीं विभागीय फल विधायन केन्द्र और सामुदायिक डिब्बाबंदी केन्द्र में तो तीन साल से भी अधिक समय की कैश बुक का सत्यापन ही नही हो पाया है। यह सारी अनियमितताएं कैग रिपोर्ट में दर्ज है लेकिन आज तक इस पर कोई कारवाई नही हो सकी है और इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टालरैन्स के दावे पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।
महासंघ के नेताओं ने मांग की है कि विभाग की कार्यप्रणाली को सुधारों के लिये निदेशक के पद पर आईएएस की नियुक्ति की जानी चाहिये। इसी के साथ विभाग के तीन संयुक्त निदेशक के पदों में से एक पद पर एचएएस की नियुक्ति किये जाने की भी मांग की गयी है। वैसे कैग रिपोर्ट में स्वास्थ्य विभाग की सौ करोड़ की खरीद पर भी गंभीर सवाल उठे हुए हैं। आपदा प्रबन्धन के पैसों से सरकारी भवनों की रिपयेर किये जाने को कैग ने एकदम नियमों के विरूद्ध करार दिया है। इस रिपेयर पर खर्च होने के कारण आपदा प्रभावित को राहत नहीं दी जा सकी है। लेकिन कैग की इन स्पष्ट रिपोर्टों पर कारवाई न होने से भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की नीयत और नीति दोनों सवालों में आ जाते हैं।

विधायक निधि बन्द करना सरकार की राजनैतिक मन्शा साबित हुई हैः मुकेश अग्निहोत्री

शिमला/शैल। जब कोरोना को लेकर सरकार ने लाकडाऊन लगाया था उसके बाद खर्चे कम करने के लिये विधायकों /सासंदो के वेत्तनभत्तों पर 30% की कटौती का आदेश भी जारी किया गया था। यही नहीं सरकार में नये पदों के सृजन और भर्ती पर भी रोक लगा दी गयी थी। कर्मचारियों की मंहगाई भत्ते की किश्त लंबित कर दी गयी थी और उनका एक दिन का वेत्तन भी काट लिया गया था। केन्द्र सरकार ने तो वर्ष 2020-21 की सारी नयी योजनाओं को 31 मार्च 2021 तक स्थगित कर रखा है। कोरोना के कारण बाज़ार का जो नुकसान हुआ है वह अनलाक चार पर भी 25% से अधिक रिस्टोर नही हो पाया है। इसके कारण केन्द्र सरकार का जीएसटी संग्रहण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। केन्द्र राज्यों को उनका हिस्सा देने में असमर्थ हो गया है। राज्य इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पर विवश हो गये हैं। सांसदो/विधायकों की क्षेत्र विकास निधि रद्द कर दी गयी है। लेकिन मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर जिस तरह से प्रदेश के विभिन्न भागों मेें दौरा करकेे हजारों करोड़ की योजनाएं घोषित कर चुके हैं उनसे यह कतई आभास नहीं होता है कि प्रदेश में किसी तरह का कोई वित्तय संकट चल रहा है। मुख्यमन्त्री की इन घोषणाओं का पक्ष और विपक्ष दोनों के विधायकों पर गंभीर असर हुआ है। बल्कि एक बार दोनों ओर के विधायक इसके लिये विधानसभा सत्र बुलाने के लिये सांझा पत्र लिखने की कवायद भी कर चुके हैं। इस पर सत्ता पक्ष के विधायकों पर नाराज़गी भी व्यक्त की जा चुकी है। लेकिन अब जब विधानसभा का सत्र होने ही जा रहा है तो उसमें यह मुद्दा प्रमुख रूप से उठने की संभावना है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने एक ब्यान जारी करके विधायक निधि तुरन्त बहाल करने ही मांग की है। इस ब्यान से ही स्पष्ट हो जाता है कि इस बार सदन में यह मुद्दा उठेगा ही।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने विधायक निधि रोक कर विधायकों के अधिकारों पर जानबूझ कर कुठाराघात किया है। उन्होंने कहा कि कोविड काल में विधायक निधि बन्द करने की सरकार की मन्शा राजनैतिक साबित हुई है। उन्होंने कहा कि जयराम सरकार ने विधायकों के स्वाभिमान को अपने समय में जबरदस्त नुकसान पहुुंचाया है । मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि सरकार बताएं कि अन्य किन राज्यों में विधायकों की पूरी विधायक निधि पर हथियार चलाया गया है? उन्होंने कहा कि विधायकों की संस्था एक सवैंधनिक संस्था है। जब सरकार प्रदेश में चेयरमैनो की भरकम फौज खडी कर रही है और रोजाना नई नियुक्तियां हो रही है तो विधायकों की निधि काटना कहां तक वाजिब है? उन्होंने कहा कि सरकार ने तो विधायकों को पहले से आवंटित किश्त वापिस ले ली, यह कहां तक न्यायोचित है? उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रदेश में जब भारी रकम पंचायतों का गठन अपनी राजनैतिक सुविधा के मुताबिक कर दिया और नई पंचायतों पर करोडों रूपया खर्च होगा तो सरकार किस मुुँह से विधायकों की निधि रोक सकती है? उन्होंने कहा कि सरकार का हर फैसला तर्क संगत होना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि सरकार नए नगर निगम व नगर पंचायतें जब बना रही है तो विधायक निधि में कटौती को कैसे सही ठहराती है? उन्होंने कहा कि पिछले दिनों कांग्रेस व भाजपा के कई विधायक इस सिलसिले में इकटट्ठे हुए थेे लेकिन सरकार ने भाजपा विधायकों को जवाब तलब कर दिया। उन्होंने कहा कि नए संस्थान रोजाना मन्त्रिमण्डल की बैठक में खोले जा रहे हैं, अफसरशाही के हित में । नए नए पद सृजित कर कोष पर बोझ डाला जा रहा है। सरकार लगातार खुले दिल से कर्जे लेकर राजनैतिक हसरतें पूरी कर रही है, तो क्या कोविड काल में एक साथ कटौती सिर्फ विधायक निधि की ही बनती है? जबकि यह पैसा विधायकों को नहीं मिलता अलबता गांव के विकास के छोटे-छोटे कामों के लिए खर्चा जाता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री ने इस पर रोक लगाते हुए यह कहा था कि जल्द ही इस पर पुर्नविचार कर जारी कर देंगे, तो क्या सरकार ने पुर्नविचार किया? नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमन्त्री से कहा कि विधायकों का स्थान महत्वपूर्ण है और इसकी मजबूती के लिए सरकार क्या करती आई है? उन्होंने दलील दी कि अब पहली दफा हालत ऐसे कर दिए हैं कि मुख्यमन्त्री और मन्त्रियों के दौरों की सूचना तक विपक्षी विधायकों को नहीं दी जाती और राज्य स्तरीय और जिला स्तरीय समारोह में अदब से नहीं बुलाया जाता। कई बार तो राहगीरों के हाथ में विधायकों के कार्ड भेेजने से भी गुरेज नहीं किया जाता है। उन्होंने कहा कि विधायक प्राथमिकताओं पर जनता द्वारा अस्वीकारे गए लोगों के नाम अंकित करने की परिपाटी जयराम सरकार ने डाल दी है और विधान सभा हल्कों में विधायकों की जगह हारे, नकारे व असवैंधनिक लोग सरकारी बैठकें ले रहे हैं। विधायकों की नाम पटिकाएं जो विधान सभा हल्कों में तोडी गई थी, उस पर मुख्यमन्त्री के सदन में आश्वासन के बावजूद बदलने के लिए प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाए ।
उन्होंने कहा कि कोविड काल में हमारे विधायकों ने तत्परता से काम किया लेकिन विधायक निधि के अभाव में भूमिका निर्वहन में दिक्कत आ रही है और इससे अफसरशाही को ही बढ़ावा मिला है। हाल ही में अफसरशाही ने विधायकों के पुरानी मंजूरियों को डाइवर्ट (divert) करने के अध्किार पर भी रोक लगा दी है इसका भी विरोध किया जाएगा।
उन्होंने अफसोस जताया कि विधायकों को नीतिगत फैसलों की सरकार व प्रशासन से कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि विधायकों ने अपना वेतन कोविड के लिए दिया है लेकिन निधि जनता के कायों की है इसलिए सरकार तत्काल प्रभाव से विधायकों की विधायक निधि जारी करें।

राष्ट्रीय वेतन नीति पर जल्द फैसला ले मुख्यमन्त्रीः महासंघ

शिमला/शैल। राज्य के स्टाफ को लागू होने वाले जनवरी 2016 से संशोधित वेतनमानों पर सरकार से शीघ्र गंभीरता से विचार कर फैसला लेने की मांग करते हुए हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ के नेताओं ने कहा है कि देश में 10 वर्ष की अवधि के बाद वेतन आयोग का गठन होता है और उसके उपरांत आयोग  देश के हर राज्य का बजटीय प्रावधान, राजस्व आय व्यय और वहां की जनसंख्या अनुपात जैसे विषयों के आकलन करने के उपरांत वेतनमानों के संशोधन की सिफारिश सरकार को देता है और सरकार आयोग की उन सभी सिफारिशों का आकलन कर रिपोर्ट को वैधानिक रूप से लागू करने  की स्वीकृति देती है। केंद्र की मोदी  सरकार ने 2016 के वेतन आयोग की रिपोर्ट को  समय पर लागू करने के लिए पहले ही बजट में अग्रिम  प्रावधान कर लिया था ताकि तय और देय समय पर देश का कर्मचारी वर्ग संशोधित वेतनमानो का लाभ उठा सकें, लेकिन हिमाचल का कर्मचारी वर्ग संशोधित वेतनमान लागू होने का पाँच साल से इन्तजार कर रहा है।
महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष विनोद कुमार, महासचिव गीतेश पराशर,जिला शिमला के अध्यक्ष गोबिन्द बरागटा महासचिव विनोद शर्मा वरिष्ठ उपाध्यक्ष संत राम शर्मा उपाध्यक्ष शालिग राम चौहान अतिरिक्त महासचिव एल डी चौहान ने कहा है कि हिमाचल का कर्मचारी वर्ग संशोधित वेतनमानो को लेकर केंद्रीय सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग कर रहा है और  इस बारे लिखित रूप में सरकार को एक साल पहले दिए गए ज्ञापन पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से भी चर्चा की गई है तथा प्रदेश के मुख्य सचिव अनिल खाची जी जो उस समय वित विभाग को देख रहे थे से भी लम्बी चर्चा हुई है और इस पर सरकार ने कार्य शुरू कर दिया था लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के कारण पैदा हुए विपरीत हालातों के चलते इसमें व्यवधान उत्पन्न हुऐ है,और इन परिस्थितियो में कर्मचारी वर्ग ने सरकार को  हर सम्भव सहयोग किया है लेकिन वेतन आयोग की रिपोर्ट को केंद्र और अन्य राज्यों की तर्ज पर प्रदेश में लागू होना और करवाना यह प्रदेश के कर्मचारीयों का अधिकार है। महासंघ नेताओं ने कहा है कि यदि कोई संघ केन्द्रीय वेतनमान से सहमत नहीं है तो वह अपने विभाग और संस्था के लिए पंजाब वेतनमान का अलग से विकल्प दे सकता है। महासंघ नेताओं ने कहा कि पंजाब में अकाली भाजपा सरकार ने नवम्बर 2015 में वेतन आयोग की घोषणा कर दी थी लेकिन पंजाब की कैप्टन अमरेन्द्र सरकार अभी तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंची है और असमंजस में है, इसलिए जब मोदी सरकार देश मे राष्ट्रीय भर्ती नीति लागू कर रही है तो राष्ट्रीय वेतन नीति भी लागू हो जिस बारे मुख्यमंत्री शीघ्र फैसला ले। विनोद कुमार ने कहा है कि यदि किसी वर्ग के पदों के वेतन में कोई भिन्नता आती है तो उस विसंगति का निवारण 2.56 के फार्मूले से स्वत ही हो जाएगी।

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