Friday, 19 September 2025
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मंत्री मण्डल में हमीरपुर को अब भी नही मिल पाया स्थान मंत्री परिषद में राजपूतो को मिले छः स्थान पांच विधायकों ने पार्टी बैठक में न आकर दिये अलग संकेत

शिमला/शैल। जयराम सरकार में 2019 के लोकसभा चुनावों के परिदृश्य में मन्त्री परिषद में दो पद खाली हुए थे। किश्न कपूर को कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिये मन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा था। अनिल शर्मा के बेटे को कांग्रेस ने मण्डी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया था और इसके कारण भाजपा ने नैतिक आधार पर उनका त्यागपत्र ले लिया था। इसके बाद स्वास्थ्य मन्त्री विपिन परमार को स्वास्थ्य विभाग में उभरे पत्र बम के परिणाम स्वरूप मन्त्री से विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया और यह पद भी खाली हो गया। इस तरह खाली हुए तीनों मन्त्री पदों को भरने का प्रयास लम्बे समय से किया जा रहा था। बल्कि कोरोना के कारण जिस हद तक सरकार को अपने खर्चो पर रोक लगाने के लिये वाकायदा वित्त विभाग से इस आश्य का पत्र सभी विभागों को जारी करवाना पड़ा था उसके परिदृश्य में यह माना जाने लगा कि शायद जब तक कोरोना संकट चल रहा है तब तक नये मन्त्रीयों के खर्च का बोझ सरकार के खजाने पर नही डाला जायेगा। लेकिन राजनीतिक जटिलताओं के कारण महामारी भी इस विस्तार को रोक नही पायी है। ऐसे में जब कोरोना संकट के बावजूद भी यह विस्तार हो ही गया है तो इसका आकलन भी राजनीति के ही मानकों पर किया जाना आवश्यक हो जाता है।
इस नाते सबसे पहला प्रश्न आता है कि क्या प्रदेश के सारे जिलों और वर्गों को बराबर का हिस्सा मिल पाया है। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है वहां से पन्द्रह विधायक आते हैं। उसके बाद मण्डी दस सीटों के साथ दूसरे और शिमला आठ के साथ तीसरे स्थान पर आता है। बिलासपुर और कुल्लु से चार-चार और किन्नौर तथा लाहौल-स्पिति से एक एक सीट है। चम्बा, ऊन्ना, हमीरपुर, सोलन और सिरमौर से पांच-पांच सीटे हैं। जातीय गणित में ब्राहमण और राजपूत लगभग बराबरी पर हैं। इनके बाद एस सी एस टी और ओबीसी आतें हैं। इसके बाद अन्य छोटे वर्ग आते हैं। इस गणित में कांगड़ा से तीन मन्त्री हैं मण्डी से मुख्यमन्त्री सहित दो, शिमला, सोलन, सिरमौर, ऊना, बिलासपुर, कुल्लु और लाहौल स्थिति से एक एक मन्त्री हैं। जातीय गणित में ‘राजपूत वर्ग’ से छः ब्राहमण दो, ओबीसी दो, एससी एक और बनिया एक हैं । जिलों में हमीरपुर को मन्त्रीमण्डल में कोई स्थान नही मिला है। इसलिये यह नही कहा जा सकता कि जातीय और ़क्षेत्रीय सन्तुलन के मानक पर यह मन्त्रीमण्डल सही उतरता हो। इसी के साथ यह भी है कि विभागों के बंटवारे में भी राजपूत वर्ग को अन्यों की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण विभाग दिये गये हैं। आने वाले दिनों में यह चर्चाएं उठंेगी ही यह तय है।
इसके बाद यदि राजनीतिक दृष्टि से आकलन किया जाये तो यह सामने आ ही गया है कि इस विस्तार के बाद जो भाजपा विधायक दल की बैठक बुलाई गयी थी उसमें पांच विधायक रमेश धवाला, नरेन्द्र बरागटा, राजीव बिन्दल, नरेन्द्र ठाकुर और विक्रम जरयाल इस बैठक में शामिल नही हुए हैं। यह सभी लोग विधायक हैं और माना जा रहा था कि इनके अनुभव को देखते हुए इन्हें मन्त्रीमण्डल में अवश्य स्थान मिलेगा। राजीव बिन्दल, नरेन्द्र बरागटा और रमेश धवाला धमूल सरकार में मन्त्री रह चुके हैं। बिन्दल को वरिष्ठता के आधार पर ही विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था। स्वास्थ्य विभाग की जिस खरीद को लेकर बिन्दल विवाद में आये और स्पीकर पद से त्यागपत्र देना पड़ा उसमें सरकार ने एक जांच कमेटी बिठाई थी। उस कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी है और उसमें बिन्दल को क्लीनचिट मिल चुकी है। लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंत्री नही बनाया जाना अपने में कई सवाल खड़े करता है। ऐसे में इन पांच विधायकों का इस बैठक में न आना एक महज संयोग न होकर भविष्य की राजनीति का एक सकेंत हैं इसी के साथ सरवीण चैधरी और मारकण्डेय के विभागों में हुए इस तरह फेरबदल पर यह लोग कितने और कब तक सहज बने रहेंगे इसका पता भी आने वाले दिनों में ही लगेगा। इस तरह राजनीतिक मानक पर भी यह विस्तार कोई ज्यादा सन्तुलित नही माना जा रहा है।

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