Saturday, 20 December 2025
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स्वर्ण आयोग की राजनीति में घिरती कांग्रेस और भाजपा

क्रीमी लेयर की सीमा आठ लाख करना क्या सही है
क्या स्वर्ण आयोग के पक्षधर विधानसभा में क्रीमी लेयर पर चर्चा करेंगे

शिमला/शैल। पिछले दिनों प्रदेश की राजधानी शिमला में कुछ स्वर्ण संगठनों ने स्वर्ण आयोग की मांग को लेकर 800 किलोमीटर की हरिद्वार तक पदयात्रा करने के कार्यक्रम की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ ही शिमला में एट्रोसिटी एक्ट की शव यात्रा भी निकाली है। इस शव यात्रा का अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के संगठनों ने विरोध किया है। इस शव यात्रा को संविधान का अपमान करार देते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय में इस आश्य की याचिका दायर करने की भी बात की है। इस शव यात्रा के विरोध में हर जिले में इन वर्गों का नेतृत्व जिलाधीशों के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन देने की रणनीति पर आ गया है। जो स्वर्ण संगठन स्वर्ण आयोग गठित किए जाने की मांग कर रहे हैं उनकी मांगों में यह भी शामिल है कि आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं वरन आर्थिक आधार पर होना चाहिए। क्रीमी लेयर के मानक का कड़ाई से पालन होना चाहिए। यदि इन मांगों को ध्यान से देखा समझा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि यह मांग राजनीति से प्रेरित और अंतः विरोधी है। क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 22.5% आरक्षण का प्रावधान देश की पहली संसद द्वारा गठित काका कालेलकर आयोग की सिफारिशें आने पर कर दिया गया था। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने पर गठित हुए मंडल आयोग की सिफारिशें स्व.वी.पी. सिंह की सरकार के कार्यकाल में लागू करने से अन्य पिछड़ा वर्ग को भी 27% का आरक्षण लाभ मिल गया था। इसी सरकार में इस आरक्षण के खिलाफ आंदोलन हुआ। वीपी सिंह की सरकार इसकी बलि चढ़ गई और आरक्षण का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में जा पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए आरक्षण का आधार आर्थिक कर दिया। आर्थिक संपन्नता के लिए क्रीमी लेयर को मानक बना दिया। उस समय जो क्रीमी लेयर की सीमा एक लाख तय की गई थी वह आज मोदी सरकार में आठ लाख हो गई है। मोदी सरकार ही क्रीमी लेयर की सीमा दो बार बढ़ा चुकी है। यह है आज की व्यवहारिक सच्चाई। हो सकता है स्वर्ण आयोग के गठन की मांग करने वाले सभी लोगों को इस स्थिति का ज्ञान ही ना हो।
जब सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही हर तरह के आरक्षण का आधार आर्थिक करके क्रीमी लेयर का मानक तक बना दिया है तब आरक्षण के विरोध का आधार कहां बनता है। या तो यह मांग की जाये की किसी भी तरह का आरक्षण हो ही नहीं। चाहे कोई अमीर है या गरीब है किसी के लिए भी आरक्षण होना ही नहीं चाहिये। गरीबों के लिए किसी भी तरह की कोई योजना होनी ही नहीं चाहिये। वेलफेयर स्टेट की अवधारणा ही खत्म कर दी जानी चाहिये। क्या आज स्वर्ण आयोग के गठन की मांग करने वाला कोई भी राजनेता या राजनीतिक दल यह कहने का साहस कर सकता है कि सभी तरह का आरक्षण बंद होना चाहिये। वी.पी. सिंह सरकार के समय में जब मंडल बनाम कमंडल हुआ था तो उस समय किस विचारधारा के लोगों ने आरक्षण का विरोध किया था। अब जब से मोदी सरकार आयी है तब से कई राज्यों में आरक्षण को लेकर आंदोलन हुये हैं। हर आंदोलन में यही मांग उठी है कि या तो हमें भी आरक्षण दो या सबका समाप्त करो। संघ प्रमुख मोहन भागवत तक आरक्षण पर बयान दे चुके हैं। लेकिन इसी सबके साथ जब भी इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण को लेकर कोई व्यवस्था दी तो मोदी सरकार ने संसद में शीर्ष अदालत के फैसले को पलट दिया है।
इस दौरान हिमाचल ही एक ऐसा राज्य रहा है आरक्षण को लेकर कोई आंदोलन नही उठा है। अब जयराम सरकार के अंतिम वर्ष में आरक्षण पर स्वर्ण आयोग की मांग के माध्यम से एक मुद्दा खड़ा किया जा रहा है। इसमें भी महत्वपूर्ण यह है कि यह मुद्दा भी मुख्यमंत्री के उस बयान का परिणाम है जिसमें उन्होंने कहा की स्वर्ण जातियों के हितों की रक्षा के लिए स्वर्ण आयोग का गठन किया जायेगा। मुख्यमंत्री के इस बयान में कांग्रेस के भी विक्रमादित्य सिंह जैसे कई विधायक पार्टी बन गये हैं। सभी स्वर्ण आयोग गठित करने के पक्षधर बन गये हैं। क्या यह लोग विधानसभा के इस सत्र में इस पर चर्चा करेंगे की क्रीमी लेयर में आठ लाख का मानक कैसे तय हुआ है। आठ लाख की वार्षिक आय का अर्थ है करीब 67000 प्रति माह। यदि 67 हजार प्रतिमाह की आय वाला व्यक्ति भी आरक्षण का हकदार है तो सरकार को यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि इस मानक में प्रदेश के कितने लोग आ जाते हैं। स्वर्ण आयोग की मांग करने वालों को भी इस मानक पर अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिये। जब आरक्षण आर्थिक आधार पर मांगा जा रहा है तो फिर और मुद्दा ही क्या बचता है।

भाजपा के तीन दिन के मंथन का परिणाम है सुरेश कश्यप और रणधीर शर्मा के ब्यान

सुरेश कश्यप ने अतिविश्वास और सहानुभूति को हार का कारण बताया

रणधीर शर्मा ने कहा भीतरघात से हुई हार

कृपाल परमार और पवन गुप्ता के त्याग पत्रों का जिक्र तक नहीं हुआ

शिमला/शैल। जयराम सरकार उपचुनाव में चारों सीटें हार गयी है। यह हार तब हुई है जबकि प्रदेश और केंद्र दो जगह भाजपा की सरकारें हैं। तीन विधानसभा और एक लोकसभा की सीट पर उपचुनाव हुए। ऐसे में चारों सीटों पर हार का अर्थ है कि लोग प्रदेश और केंद्र दोनों ही सरकारों से खफा हैं। इस हार के कारणों को चिन्हित करने के लिए शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई। तीन दिन की इस बैठक में पहले दो दिन तो कोर कमेटी और उसकी विस्तारित बैठक ने ही ले लिये। दो दिन की कोर कमेटी में जो कुछ पका उसे तीसरे दिन कार्यकारिणी को परोसा गया। कोर कमेटी की दूसरे दिन की बैठक के बाद मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने प्रैस को संबोधित किया और कहा कि भीतरघात के कारण हार हुई तथा इन भीतरघातियों के खिलाफ कारवाई की जायेगी। मुख्य प्रवक्ता के इस ब्यान से यह स्पष्ट हो जाता है कि भीतरघातियों को चिन्हित कर लिया गया था। लेकिन तीसरे दिन की बैठक के बाद प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने लंच पर मीडिया को संबोधित किया। सुरेश कश्यप ने भाजपा नेताओं के अति विश्वास और कांग्रेस के 6 बार रहे मुख्यमंत्रा स्वर्गींय वीरभद्र सिंह के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर को अपनी हार तथा कांग्रेस की जीत का कारण बताया। सुरेश कश्यप ने भीतरघात का जिक्र तक नहीं किया। यहां यह उल्लेखनीय हो जाता है कि इस मंथन बैठक से ठीक पहले पूर्व राज्यसभा सांसद और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष कृपाल परमार ने अपने पद से त्यागपत्रा दे दिया। यह त्यागपत्रा देने के साथ ही परमार का जो पत्रा सोशल मीडिया में सामने आया उसमें उन्होंने आरोप लगाया कि वह चार वर्षों से लगातार जलालत का सामना कर करते आ रहे हैं। कृपाल परमार ने यह भी कहा कि उन्होंने इस संबंध हर स्तर पर बात करके देख लिया और अब त्यागपत्र देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प उनके पास नहीं बचा है। कृपाल परमार के बाद प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य और सिरमौर के प्रभारी पवन गुप्ता का त्यागपत्र सामने आया। पवन गुप्ता ने तो सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाया। बघाट सरकारी बैंक का संद्धर्भ उठाते हुये गुप्ता ने पूरी बेबाकी से यह आरोप लगाया कि मुख्यमंत्रा कार्यालय में बैठा एक अधिकारी भ्रष्टाचारियों को बचा रहा है क्योंकि उसने अपनी पत्नी के नाम से भारी कर्ज ले रखा है।

इन त्याग पत्रों को प्रदेश प्रभारी ने यह कहकर हल्का बताने का प्रयास किया कि यह त्यागपत्रा अभी सोशल मीडिया में ही चर्चा में है। जब उनके पास आयेंगे तब उस पर चर्चा करेंगे। इसी तर्ज को दोहराते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी अपने आभासी संबोधन में इन त्यागपत्रों का उल्लेख तक नहीं किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक सभी की यह राजनीतिक मजबूरी है कि वह त्यागपत्रां के कड़वे घूंट को चुपचाप निगल जायें। लेकिन यह त्यागपत्रा और इनमें उठे मुद्दे पर देश की जनता के संज्ञान में आ चुके हैं क्योंकि यह सब लंबे अरसे से संगठन और सरकार में घटता आ रहा है। एक समय इन्दु गोस्वामी ने भी अपने पद से त्यागपत्रा देते हुये यही सब कुछ कहा है। भले ही संगठन सरकार और मीडिया के कुछ हल्के इस सबको नजरअंदाज कर दे लेकिन प्रदेश की जनता ने इसका संज्ञान लिया है और उसका प्रमाण चार शून्य के परिणाम में सामने की भी आ चुका है। इसी मन्थन बैठक में मुख्य प्रवक्ता और प्रदेश अध्यक्ष के  भीतरघातियों को लेकर अलग-अलग ब्यानों से यह स्पष्ट हो जाता है की इन त्यागपत्रों ने जयराम से लेकर नड्डा तक सभी की नींद हराम कर दी है।

सुरेश कश्यप जब भाजपाइयों के अति विश्वास को हार का कारण मान रहे हैं तब उन्हें यह बताना होगा कि जयराम सरकार की ऐसी कौन सी उपलब्धियां जिनसे अति विश्वास बना। कल तक तो कांग्रेस को हर भाजपाई नेता विहीन पार्टी करार दे रहा था। यदि नेता विहीन होते हुए भी कांग्रेस जयराम सरकार से चारों सीटें छीन ले गयी तो अब आगे क्या होगा। स्वर्गीय वीरभद्र के निधन से उपजी सहानुभूति की लहर की पूरी पिक्चर तो आम चुनाव में सामने आयेगी। इस मंथन में भले ही भाजपा नेतृत्व ने अपने ही नेताओं के उन ब्यानों का संज्ञान लिया हो जिनमें यह कहा गया था कि आगे ठेकों के काम उसी को मिलेंगे जिन की सिफारिश पार्टी के प्रत्याशी से आयेगी। यह भी कहा गया था कि यदि हमारा कुत्ता भी पड़ोसी के घर चला जाये तो हम उसे भी घर वापस नहीं आने देते हैं। इन ब्यानों के वीडियोज चुनावों में खूब चर्चित रहे हैं। क्या ऐसे ब्यानों से पार्टी की छवि निखरेगी या यह सामने आयेगा कि अब सत्ता का नशा दिमाग तक चढ़ चुका है। इस मंथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों तक प्रदेश में न तो सरकार और न ही संगठन के स्तर पर किसी भी तरह का कोई परिवर्तन होगा। जो भी घटेगा वह यूपी के परिणामों के बाद ही घटेगा। इसका प्रमाण त्यागपत्रों पर अपनाई गयी खामोशी से सामने आ चुका है। इसी दौरान यह भी सामने आ जायेगा की मुख्यमंत्री की कार्यशैली में क्या अंतर आता है।

सरकार के वितीय प्रबन्घन पर उठने लगे सवाल

2021-22 में 50,192 करोड़ का बजट पूरा करने के लिए 20,000 करोड़ का कर्ज लिया जायेगा
इस वर्ष करों और गैर करों से 7938.14 करोड़ ही मिलेंगे
केन्द्रीय करों का हिस्सा भी 22672 करोड़ ही रहने की संभावना है
30,000 करोड़ की आय से 50,000 करोड का खर्च कैसे होगा
25 करोड़ की लागत से बने होटल सिराज को प्राइवेट सेक्टर को देने की चर्चा

 शिमला/शैल। जयराम सरकार इस माह दो हजार करोड़ का ऋण लेने जा रही है। इसके लिए भारत सरकार से वांच्छित अनुमति ले ली गया है। इसमें कुछ पैसा प्रतिभूतियों की नीलामी से जुटाया जा रहा है। इसके लिए 18 नवम्बर को आरबीआई को लिखे पत्र में कहा गया है कि सरकार को यह कर्ज विकास कार्यों में निवेश के लिये चाहिये। परंतु इस संद्धर्भ छपे समाचारों में यह कहा गया कि सरकार को वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए पैसा चाहिये। सरकार के वित्तीय प्रबंधन के लिए एफआरबीएम अधिनियम पारित है। इस अधिनियम के अनुसार सरकार अपने प्रतिबद्ध खर्चे पूरा करने के लिए कर्ज नहीं ले सकती। कर्ज केवल जन विकासात्मक कार्यों के लिए लिया जा सकता है जिनसे नियमित रूप से राजस्व आय होगी। एफआरबीएम की धारा सात में इसका स्पष्ट उल्लेख है और इसकी खुलकर अवहेलना हो रही है। ऐसा इसलिये है क्योंकि इसी अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि किसी भी आर्थिक फैसले के लिए कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। इसी का लाभ उठाकर अफसरशाही केवल कर्ज लेकर घी पीने के सिद्धांत पर चल रही है।

स्मरणीय है कि जब मुख्यमंत्री जयराम ने अपना पहला बजट भाषण नौ मार्च 2018 को सदन में पड़ा था तब यह कहा था कि सरकार को 46385 करोड़ का कर्ज विरासत में मिला है। यह भी कहा था कि पूर्व सरकार ने 18000 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज ले रखा है। आज यदि कर्ज पर नजर डाली जाये तो यह आंकड़ा इस इसी वित्तीय वर्ष के अंत तक 70,000 करोड़ से भी पार चला जायेगा यह स्थिति बनी हुई है। प्रदेश का कर्ज भार जितना बढ़ता जायेगा उसका सीधा असर रोजगार और महंगाई पर पड़ेगा। इसलिए आज जनता के सामने यह रखा जाना चाहिये कि यह कर्ज कौन से विकास कार्यों पर खर्च हो रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 2021-22 के लिए 50192 करोड़ के कुल खर्च का बजट सदन में रखा है। इस कुल खर्च में सरकार के पास कर राजस्व से 5184.49 करोड़ और गैर कर राजस्व से 2753.65 मिलेगा अर्थात करों से कुल 7938.14 करोड़ मिलेगा। इस वर्ष की वार्षिक योजना 9405 करोड़ की है जिसमें 90% केंद्र से मिलेगा और 10% अपने साधनों से जुटाना पड़ेगा। केंद्रीय करों में हिस्से के तहत पिछले वर्ष 22672 करोड़ मिलने का अनुमान था। कोरोना के कारण केंद्र और राज्य सरकारों सभी के राजस्व पर असर पड़ा है। उसके चलते यह माना जा सकता है कि इस बार भी केंद्रीय हिस्से के रूप में 22672 करोड़ तो मिल ही जायेंगा। इस तरह प्रदेश की कुल आय 30610.14 करोड़ रहेगी। लेकिन इस तीस हजार करोड़ की आय के मुकाबले सरकार का कुल खर्च 50,000 करोड़ का है। इसका सीधा अर्थ है कि यह खर्च पूरा करने के लिए सरकार को बीस हजार करोड़ लेना पड़ेगा।
इस वस्तु स्थिति में सरकार से यह सवाल करना आवश्यक हो जाता है कि वह यह बीस हजार करोड़ का निवेश कहां कर रही है और उससे कितना राजस्व सरकार को कितने समय में मिलेगा? यह जानना इसलिए आवश्यक हो जाता है कि सरकार जिस तरह से दो मंजिला मकानों में लिफ्ट लगा रही है और शिमला में ही कर्ज के पैसे से 50 लाख में शौचालय और 35 लाख में वर्षाशालिका का निर्माण करती रही तो आम आदमी ऐसे खर्च को विकास के स्थान पर कर्ज लेकर घी पीने की ही संज्ञा देगा। क्योंकि जब एशियन विकास बैंक के पैसे से सरकार होटल बनाकर उसे पहले ही दिन से चलाने के लिए प्राइवेट सेक्टर को दे देगी तो उसके वित्तीय प्रबंधन पर तो सवाल उठेंगे ही। चर्चा है कि मण्डी के जंजैहली में सरकार ने एशियन विकास बैंक के वित्तपोषण से 25 करोड़ की लागत से होटल सिराज का निर्माण किया है। लेकिन इस होटल को एचपीटीडीसी द्वारा चलाने के बजाये प्राइवेट सेक्टर को दिया जा रहा है। इस निर्णय से सरकार को नियमित आय हो सकती है यदि एचपीटीडीसी इसे स्वयं चलाये तो। ऐसा कई और जगह भी हो रहा है जिसकी चर्चा आने वाले दिनों में की जाएगी।

अभी तक जारी नहीं हो पायी एससी एसटी ओबीसी छात्रों की छात्रवृत्ति

पढ़ाई छोड़ने की कगार पर पहुंचे सैकड़ों छात्र
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के छात्रों को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति प्रदान करती है। यह छात्रवृत्ति सरकारी और प्राइवेट तथा हिमाचल या हिमाचल से बाहर पोस्ट मैट्रिक शिक्षा ग्रहण कर रहे प्रदेश के बच्चों को दी जाती है। इस योजना के तहत पंजाब के मोहाली स्थित वी.जे.ई.एस. गु्रप शिक्षण संस्थान में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठयक्रमों में प्रदेश के कई बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लेकिन इन छात्रों को वर्ष 2017, 2018 और 2019 से यह भुगतान नहीं किया जा रहा है। शिक्षा विभाग भुगतान न किए जाने के कारणों से इन छात्रों और इनके अभिभावकों को कोई भी संतोषजनक कारण नहीं बता रहा है। जबकि छात्रों ने इसके लिए वांच्छित सारे सत्यापित दस्तावेज समय पर विभाग को भेज रखे हैं। इस छात्रवृत्ति के सहारे ही इन वर्गों के छात्र ऐसे संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लेकिन जब उन्हें सरकार से उचित समय पर यह छात्रवृत्ति ही नहीं मिलेगी तो यह लोग पढ़ाई कैसे जारी रख पायेंगे यह एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
पिछले दिनों एससी वर्ग के लोगों ने शिमला में एक आयोजन करके यह आरोप लगाया था कि सरकार इन वर्गों के लिए आवंटित बजट का केवल 7% ही इनके लिए खर्च कर रही है इस आशय का एक ज्ञापन भी राज्यपाल को सौंपा गया है। लेकिन इसके बावजूद व्यवहारिक स्थिति यह है।
यही नहीं इन वर्गों के नेताओं के लिए भी यह सवाल बना हुआ है क्योंकि इस समय सत्तारूढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी एस सी समुदाय से हैं। सरकार में मंत्री भी ओबीसी समुदाय से हैं। अभी जब स्वर्ण आयोग के गठन को लेकर 300 किलोमीटर की पदयात्रा और शिमला में स्वर्ण आयोग के समर्थकों द्वारा आरक्षण की शव यात्रा निकालने का मामला गरमाया तब एस सी के नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। इसे संविधान का अपमान बताकर उच्च न्यायालय से इस आश्य की याचिका दायर करने की बात की। लेकिन इन लोगों के लिए सैकड़ों बच्चों की यह समस्या कोई व्यवहारिक अर्थ नहीं रख रही है। बल्कि इससे यही संदेश जाता है कि इन वर्गों के नेताओं के लिए इनके नाम पर राजनीति करना ही प्राथमिकता है इनकी समस्याओं का हल नही।

बेबी केयर किट खरीद पर उठते सवालों का जवाब कब आयेगा

शिमला/शैल। जयराम सरकार अटल आशीर्वाद योजना के तहत नवजात शिशुओं और उनकी माताओं के लिये एक बेबी किट दे रही है। इस किट मेंं कुल 15 चीजें रखी गई हैं जो नवजात जच्चा-बच्चा दोनों के लिए उपयोगी मानी गयी है। 2019 से यह योजना लागू है। अभी कोविड कॉल में 01-04-2020 से 31-01-2021 तक 104738 किट खरीदी गयी है। इसके लिये ई- टेंडर के माध्यम से निविदायें मांगी गयी और इसमें 8 फर्मां ने भाग लिया। यह किट प्रदेश के स्वास्थय संस्थानों को दिए गए हैं। यह खरीद 1074.98 रुपए प्रति किट के हिसाब से हुई है। इस पर आम चर्चा है कि जो किट सरकार ने 1074.98 में खरीदी है उसकी बाजार में कीमत 500 से 600 के बीच है। उप चुनावों के दौरान सोलन से कांग्रेस नेता कुशल जेठी ने एक पत्रकार वार्ता में यह मुद्दा उठाया था और इस पर जांच की मांग की थी। लेकिन अभी तक सरकार की ओर से ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है।
स्मरणीय है की 24 मार्च 2020 को कोरोना के कारण पूरे देश में लाकडाउन लग गया था। उस दौरान अस्पतालों की वर्किंग भी प्रभावित हुई थी । लोगों ने अस्पताल जाना छोड़ दिया था। इस दौरान कैसे यह किट प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचे होंगे यह अपने में एक सवाल बनकर खड़ा है और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी अधिकारी इस पर कुछ भी नही कह पा रहे हैं। इसी कारण से करोड़ों की इस खरीद पर सवाल उठ रहे हैं।

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